अंतर्राष्ट्रीय लवी मेले के उपलक्ष्य में इस वर्ष एक से तीन नवंबर तक अश्व प्रदर्शनी का आयोजन किया जाएगा। इसमें उन्नत नस्ल के घोड़ों की दौड़ भी देखने को मिलेगी। प्रशासन ने लवी मेले में लगने वाली अस्थाई दुकानों को देखते हुए प्रदर्शनी लगाने का निर्णय लिया है। रामपुर व्यापारिक व ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है। यहां का अंतर्राष्ट्रीय लवी मेला इस साल 11 से 14 नवंबर तक आयोजित हो रहा है। यह मेला न केवल रोजमर्रा के सामान के व्यापार का केंद्र है, बल्कि पशु व्यापार, विशेषकर स्पीति नस्ल के घोड़ों के लिए भी प्रसिद्ध है। अश्व प्रदर्शनी में क्या होगा अश्व प्रदर्शनी के दौरान कई कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। 1 नवंबर को पशुपालन विभाग द्वारा घोड़ों का पंजीकरण किया जाएगा। 2 नवंबर को अश्वपालकों के लिए उन्नत प्रजनन तकनीक और पशुपालन को प्रोत्साहित करने के लिए गोष्ठी का आयोजन होगा। 3 नवंबर को उत्तम घोड़ों का चयन, 400 मीटर और 800 मीटर की रोमांचक घुड़दौड़, तथा गुब्बारा फोड़ प्रतियोगिताएं आयोजित की जाएंगी। स्पीति घोड़ों को क्यों कहते हैं शीत मरुस्थल का जहाज स्पीति घोड़े मजबूत कद-काठी, भारी बर्फ में चलने और ऊंचाई पर कार्य करने की योग्यता के लिए जाने जाते हैं। इन्हें “शीत मरुस्थल का जहाज़” भी कहा जाता है। मूल रूप से तिब्बत के पठार में उत्पन्न होने वाले ये घोड़े बाद में व्यापारियों द्वारा लाहौल-स्पीति और किन्नौर के दुर्गम क्षेत्रों में लाए गए थे। वर्तमान में ये मुख्यतः स्पीति घाटी की पिन वैली और किन्नौर जिले की भाबा वैली में पाए जाते हैं। उत्तराखंड से भी आते हैं व्यापारी प्रदर्शनी के समापन पर मुख्य अतिथि द्वारा पुरस्कार वितरण समारोह होगा। पशुपालन विभाग द्वारा अश्व प्रदर्शनी में भाग लेने वाले सभी घोड़ों को निःशुल्क चारा और दाना प्रदान किया जाएगा। यह मेला कुल्लू, मंडी, उत्तराखंड और अन्य क्षेत्रों से खरीदारों और पशु प्रेमियों को आकर्षित करता है। अंतर्राष्ट्रीय लवी मेले के उपलक्ष्य में इस वर्ष एक से तीन नवंबर तक अश्व प्रदर्शनी का आयोजन किया जाएगा। इसमें उन्नत नस्ल के घोड़ों की दौड़ भी देखने को मिलेगी। प्रशासन ने लवी मेले में लगने वाली अस्थाई दुकानों को देखते हुए प्रदर्शनी लगाने का निर्णय लिया है। रामपुर व्यापारिक व ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है। यहां का अंतर्राष्ट्रीय लवी मेला इस साल 11 से 14 नवंबर तक आयोजित हो रहा है। यह मेला न केवल रोजमर्रा के सामान के व्यापार का केंद्र है, बल्कि पशु व्यापार, विशेषकर स्पीति नस्ल के घोड़ों के लिए भी प्रसिद्ध है। अश्व प्रदर्शनी में क्या होगा अश्व प्रदर्शनी के दौरान कई कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। 1 नवंबर को पशुपालन विभाग द्वारा घोड़ों का पंजीकरण किया जाएगा। 2 नवंबर को अश्वपालकों के लिए उन्नत प्रजनन तकनीक और पशुपालन को प्रोत्साहित करने के लिए गोष्ठी का आयोजन होगा। 3 नवंबर को उत्तम घोड़ों का चयन, 400 मीटर और 800 मीटर की रोमांचक घुड़दौड़, तथा गुब्बारा फोड़ प्रतियोगिताएं आयोजित की जाएंगी। स्पीति घोड़ों को क्यों कहते हैं शीत मरुस्थल का जहाज स्पीति घोड़े मजबूत कद-काठी, भारी बर्फ में चलने और ऊंचाई पर कार्य करने की योग्यता के लिए जाने जाते हैं। इन्हें “शीत मरुस्थल का जहाज़” भी कहा जाता है। मूल रूप से तिब्बत के पठार में उत्पन्न होने वाले ये घोड़े बाद में व्यापारियों द्वारा लाहौल-स्पीति और किन्नौर के दुर्गम क्षेत्रों में लाए गए थे। वर्तमान में ये मुख्यतः स्पीति घाटी की पिन वैली और किन्नौर जिले की भाबा वैली में पाए जाते हैं। उत्तराखंड से भी आते हैं व्यापारी प्रदर्शनी के समापन पर मुख्य अतिथि द्वारा पुरस्कार वितरण समारोह होगा। पशुपालन विभाग द्वारा अश्व प्रदर्शनी में भाग लेने वाले सभी घोड़ों को निःशुल्क चारा और दाना प्रदान किया जाएगा। यह मेला कुल्लू, मंडी, उत्तराखंड और अन्य क्षेत्रों से खरीदारों और पशु प्रेमियों को आकर्षित करता है। हिमाचल | दैनिक भास्कर
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हिमाचल के DC नहीं मानते हाईकोर्ट-सरकार के ऑर्डर:पंचायतों में नहीं लगाया रिजर्वेशन रोस्टर; 25 सितंबर तक लगाना था, इलेक्शन पर संशय हिमाचल सरकार और सभी जिलों के DC हाईकोर्ट के आदेशों की अवमानना कर रहे हैं। पंचायतीराज विभाग के सेक्रेटरी के आदेशों के बावजूद पंचायत चुनाव के लिए किसी भी DC ने अब तक आरक्षण रोस्टर नहीं लगाया, जबकि आरक्षण रोस्टर 25 सितंबर तक हर हाल में लगना जरूरी था। हिमाचल हाईकोर्ट ने मनीष धर्मेक बनाम स्टेट केस में साल 2020 में पंचायत और नगर निकाय चुनाव के लिए आरक्षण रोस्टर कमेंसमेंट ऑफ इलेक्शन प्रोसेस से 90 दिन पहले लगाने के आदेश दिए थे। कोर्ट ने कहा- चुनाव प्रोसेस होने से तीन महीने पहले आरक्षण रोस्टर लगाया जाए, ताकि किसी व्यक्ति को यदि आरक्षण रोस्टर पर आपत्ति है और वह उसे कोर्ट में चुनौती देना चाहता है, इससे व्यक्ति आरक्षण रोस्टर के खिलाफ अदालत में अपील कर सकेगा। कोर्ट को भी आरक्षण रोस्टर पर मिलने वाली अपील के निपटारे के लिए वक्त मिलेगा। यदि आरक्षण रोस्टर देरी से लगेगा और इधर इलेक्शन कमीशन चुनाव की तिथियां घोषित कर दी गई तो अपीलकर्ता से आरक्षण रोस्टर को चुनौती देने का अधिकार छिन जाएगा या फिर इससे इलेक्शन में देरी होगी। 25 सितंबर को लगना जरूरी थी आरक्षण रोस्टर हिमाचल में साल 2020 में पंचायतों की पहली मीटिंग 1 फरवरी 2021 को हुई। लगभग 35 दिन का वक्त चुनावी प्रक्रिया संपन्न करने में लगा। इस लिहाज से तीन महीने पहले यानी 25 सितंबर को हर हाल में आरक्षण रोस्टर लगाना जरूरी था। सेक्रेटरी पंचायतीराज ने भी 15 सितंबर को अपने आदेशों को हाईकोर्ट का जिक्र करते हुए सभी जिलों के DC को पत्र लिखा। इसमें 25 सितंबर तक प्रधान, वार्ड मेंबर, पंचायत समिति सदस्य और जिला परिषद सदस्य के लिए आरक्षण रोस्टर लगाने के निर्देश दिए। पंचायत सेक्रेटरी द्वारा तय तिथि से लगभग 28 दिन अधिक हो गए। मगर अब तक रोस्टर नहीं लग पाया। पंचायत में उप प्रधान ऐसा पद होता है जिसके लिए आरक्षण रोस्टर नहीं लगता। BJP बार बार सरकार को घेरती रही आरक्षण रोस्टर में देरी पर भारतीय जनता पार्टी बार बार सत्तारूढ़ कांग्रेस को घेरती रही है। बीजेपी का आरोप है कि चुनाव में हार के डर से कांग्रेस सरकार चुनाव नहीं कराना चाह रही। सीएम-मंत्री के दावे भी अब तक झूठे वहीं सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू और पंचायतीराज मंत्री अनिरुद्ध सिंह भी कई बार कह चुके हैं कि चुनाव तय समय पर होंगे। मगर अब तक आरक्षण रोस्टर नहीं लगाया जा सका। इससे चुनाव समय पर होंगे, इस पर संशय बना हुआ है। अपील के निपटारे को वक्त मिलेगा मनीष धर्मेक बनाम स्टेट केस में हाईकोर्ट ने कहा- चुनाव प्रोसेस होने से तीन महीने पहले आरक्षण रोस्टर लगना चाहिए, ताकि यदि किसी व्यक्ति को आरक्षण रोस्टर पर आपत्ति है और वह उसे कोर्ट में चुनौती देना चाहता है, तो 90 दिन का वक्त होने से व्यक्ति ऐसा कर पाएगा। कोर्ट को भी आरक्षण रोस्टर पर मिलने वाली अपील के निपटारे को वक्त मिलेगा। दिसंबर-जनवरी में प्रस्तावित चुनाव हिमाचल में 3577 पंचायतें है। इनमें इसी साल दिसंबर में चुनाव होने हैं। मौजूदा प्रतिनिधियों का कार्यकाल 23 जनवरी 2026 को पूरा हो रहा है। स्टेट इलेक्शन कमीशन को 23 जनवरी से पहले चुनाव कराना संवैधानिक बाध्यता है। इलेक्शन कमीशन दिसंबर में ही वोटिंग करवाना चाह रहा है, क्योंकि जनवरी में शिमला, मंडी, लाहौल स्पीति, किन्नौर, कांगड़ा, कुल्लू और सिरमौर जिला के कई भागों में भारी बर्फबारी होती है। बर्फबारी में चुनाव करा पाना टेडी खीर साबित हो सकता है।
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