उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में इस बार दीपोत्सव तो मनाया जाएगा लेकिन दोनों का अंदाज अलग होगा। एक ओर उत्तरप्रदेश सरकार इस बार दीपोत्सव में ग्रीन आतिशबाज़ी’ से अयोध्या को जगमगाने की तैयारी में है तो वहीं उत्तराखंड सरकार ने इस बार “विकास दीपोत्सव” मनाने की परंपरा शुरू की है। सीएम पुष्कर सिंह धामी ने एक ट्वीट कर इसकी जानकारी दी है, ट्वीट में उन्होंने एक वीडियो शेयर करते हुए लिखा- उत्तराखंड मना रहा है विकास का दीपोत्सव, हमारी सरकार द्वारा धार्मिक स्थलों पर किए गए समग्र विकास कार्यों के परिणामस्वरूप लगभग प्रत्येक तीर्थस्थल पर श्रद्धालुओं की रिकॉर्ड संख्या पहुंच रही है। दोनों राज्यों के कार्यक्रमों में मुख्य अंतर यह है कि यूपी में यह दीपोत्सव भव्यता और पर्यावरण के संतुलन का संदेश दे रहा है, जबकि उत्तराखंड में विकास दीपोत्सव के माध्यम से पर्यटन, सुरक्षा और तीर्थाटन के स्तर को बढ़ाया जा रहा है। पहले सरयू तट पर होने वाले दीपोत्सव के बारे में जानिए… अयोध्या दीपोत्सव 2025 इस बार न केवल आस्था और भव्यता का प्रतीक बनेगा, बल्कि पर्यावरण-संवेदनशील नवाचार का भी संदेश देगा। 19 अक्टूबर को सरयू तट पर जब असंख्य दिये जलेंगे और आकाश में ग्रीन आतिशबाज़ी का दिव्य दृश्य खिलेगा, तो धुआँ और प्रदूषण की जगह केवल स्वच्छ प्रकाश फैलेगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस आयोजन के लिए विशेष रूप से ग्रीन पटाखों और इको-आतिशबाज़ी तकनीक अपनाने के निर्देश दे दिए हैं। इसमें पारंपरिक रासायनिक तत्वों की जगह कम-कार्बन और कम-धुआं उत्सर्जित करने वाले यौगिकों का प्रयोग किया जाएगा। परिणामस्वरूप, यह दीपोत्सव न केवल आस्था का प्रतीक होगा, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छता का भी संदेश देगा। सरयू के ऊपर खिलेगा “ग्रीन सूर्य”, जो न तो धुआं उत्पन्न करेगा और न ही शोर करेगा। लाखों मिट्टी और गोबर मिश्रित बायोडिग्रेडेबल दीये जलेंगे, जिससे स्थानीय कुम्हार और ग्रामीण महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त होंगी। उत्तराखंड में सरकार क्यों मना रही विकास दीपोत्सव, हर धाम के विकास से समझिए… केदारनाथ केदारनाथ में करीब 500 करोड़ रुपए की लागत से विकास कार्य चल रहे हैं। पहले चरण में 125 करोड़, दूसरे में 200 करोड़ और तीसरे चरण में 175 करोड़ का काम शामिल है। तीसरे चरण का निर्माण वर्तमान में प्रगति पर है। सोनप्रयाग और केदारनाथ के बीच भारत का पहला ट्राई-केबल रोपवे बनने की योजना है। यह 12.9 किलोमीटर लंबा होगा और श्रद्धालु केवल 36 मिनट में सफर पूरा कर सकेंगे। यह रोपवे सुरक्षा और आधुनिक तकनीक के मामले में दुनिया में सबसे आगे होगा। बद्रीनाथ बद्रीनाथ में मास्टर प्लान के तहत विकास कार्य चल रहे हैं, जिनकी अनुमानित लागत लगभग 600 करोड़ रुपए है। 2025-26 के बजट में मंदिर समिति को 127 करोड़ रुपए आवंटित थे, जिनमें से 64 करोड़ रुपए का उपयोग बद्रीनाथ मंदिर के विकास में किया गया। सरकार चरणबद्ध तरीके से निर्माण कर रही है और बढ़ती तीर्थाटन संख्या को देखते हुए यात्रियों की सुविधा और सुरक्षा को प्राथमिकता दी जा रही है। यमुनोत्री यमुनोत्री धाम तक पैदल यात्रा मार्ग को वैष्णो देवी मार्ग की तरह सुरक्षित और आधुनिक बनाने की योजना है। 170 करोड़ की लागत से एक रूप परियोजना शुरू हुई है, जिसकी लंबाई लगभग 3.9 किलोमीटर है। इस परियोजना से यात्रियों के लिए पैदल मार्ग अधिक सुरक्षित, सुविधाजनक और तीर्थाटन के अनुकूल होगा। गंगोत्री गंगोत्री धाम में सड़क मरम्मत, बिजली आपूर्ति और तीर्थाटन सुविधाओं का विकास किया गया है। यह सुनिश्चित किया गया है कि तीर्थ यात्री आरामदायक और सुरक्षित यात्रा का अनुभव प्राप्त कर सकें।सरकार ने गंगोत्री में बुनियादी ढांचे का नया रूप देते हुए, तीर्थाटन की सुरक्षा और सुविधा को प्राथमिकता दी है। धामों के विकास से लोगों को मिल रहा रोजगार उत्तराखंड में पिछले चार वर्षों में सरकार के प्रचार और निवेश के कारण लगभग 25 करोड़ श्रद्धालु प्रदेश के धार्मिक स्थलों पर पहुंचे हैं।बढ़ती तीर्थाटन संख्या ने स्थानीय लोगों के लिए रोजगार और आजीविका के नए अवसर सृजित किए हैं। पंच केदार के प्रचार प्रसार के प्रयासों से तीर्थ यात्रियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। राज्य अलग लेकिन मुखियाओं की जन्मभूमि एक पुष्कर सिंह धामी कुमाउं मंडल में आने वाले पिथौरागढ़ जिले के टुंडी गांव से हैं। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से मानव संसाधन प्रबंधन और एलएलबी की पढ़ाई की और 2021 में प्रदेश के सीएम बन गए। तो वहीं, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जन्मभूमि भी उत्तराखंड ही है, वह गढ़वाल मंडल के पौड़ी गढ़वाल जिले के पंचुर गांव में जन्में हैं। उनकी पढ़ाई भी उत्तराखंड में ही हुई है, हालांकि संन्यास लेने के बाद वह गोरखनाथ मठ के महंत बन गए और अब दूसरी बार उत्तरप्रदेश के सीएम हैं। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में इस बार दीपोत्सव तो मनाया जाएगा लेकिन दोनों का अंदाज अलग होगा। एक ओर उत्तरप्रदेश सरकार इस बार दीपोत्सव में ग्रीन आतिशबाज़ी’ से अयोध्या को जगमगाने की तैयारी में है तो वहीं उत्तराखंड सरकार ने इस बार “विकास दीपोत्सव” मनाने की परंपरा शुरू की है। सीएम पुष्कर सिंह धामी ने एक ट्वीट कर इसकी जानकारी दी है, ट्वीट में उन्होंने एक वीडियो शेयर करते हुए लिखा- उत्तराखंड मना रहा है विकास का दीपोत्सव, हमारी सरकार द्वारा धार्मिक स्थलों पर किए गए समग्र विकास कार्यों के परिणामस्वरूप लगभग प्रत्येक तीर्थस्थल पर श्रद्धालुओं की रिकॉर्ड संख्या पहुंच रही है। दोनों राज्यों के कार्यक्रमों में मुख्य अंतर यह है कि यूपी में यह दीपोत्सव भव्यता और पर्यावरण के संतुलन का संदेश दे रहा है, जबकि उत्तराखंड में विकास दीपोत्सव के माध्यम से पर्यटन, सुरक्षा और तीर्थाटन के स्तर को बढ़ाया जा रहा है। पहले सरयू तट पर होने वाले दीपोत्सव के बारे में जानिए… अयोध्या दीपोत्सव 2025 इस बार न केवल आस्था और भव्यता का प्रतीक बनेगा, बल्कि पर्यावरण-संवेदनशील नवाचार का भी संदेश देगा। 19 अक्टूबर को सरयू तट पर जब असंख्य दिये जलेंगे और आकाश में ग्रीन आतिशबाज़ी का दिव्य दृश्य खिलेगा, तो धुआँ और प्रदूषण की जगह केवल स्वच्छ प्रकाश फैलेगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस आयोजन के लिए विशेष रूप से ग्रीन पटाखों और इको-आतिशबाज़ी तकनीक अपनाने के निर्देश दे दिए हैं। इसमें पारंपरिक रासायनिक तत्वों की जगह कम-कार्बन और कम-धुआं उत्सर्जित करने वाले यौगिकों का प्रयोग किया जाएगा। परिणामस्वरूप, यह दीपोत्सव न केवल आस्था का प्रतीक होगा, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छता का भी संदेश देगा। सरयू के ऊपर खिलेगा “ग्रीन सूर्य”, जो न तो धुआं उत्पन्न करेगा और न ही शोर करेगा। लाखों मिट्टी और गोबर मिश्रित बायोडिग्रेडेबल दीये जलेंगे, जिससे स्थानीय कुम्हार और ग्रामीण महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त होंगी। उत्तराखंड में सरकार क्यों मना रही विकास दीपोत्सव, हर धाम के विकास से समझिए… केदारनाथ केदारनाथ में करीब 500 करोड़ रुपए की लागत से विकास कार्य चल रहे हैं। पहले चरण में 125 करोड़, दूसरे में 200 करोड़ और तीसरे चरण में 175 करोड़ का काम शामिल है। तीसरे चरण का निर्माण वर्तमान में प्रगति पर है। सोनप्रयाग और केदारनाथ के बीच भारत का पहला ट्राई-केबल रोपवे बनने की योजना है। यह 12.9 किलोमीटर लंबा होगा और श्रद्धालु केवल 36 मिनट में सफर पूरा कर सकेंगे। यह रोपवे सुरक्षा और आधुनिक तकनीक के मामले में दुनिया में सबसे आगे होगा। बद्रीनाथ बद्रीनाथ में मास्टर प्लान के तहत विकास कार्य चल रहे हैं, जिनकी अनुमानित लागत लगभग 600 करोड़ रुपए है। 2025-26 के बजट में मंदिर समिति को 127 करोड़ रुपए आवंटित थे, जिनमें से 64 करोड़ रुपए का उपयोग बद्रीनाथ मंदिर के विकास में किया गया। सरकार चरणबद्ध तरीके से निर्माण कर रही है और बढ़ती तीर्थाटन संख्या को देखते हुए यात्रियों की सुविधा और सुरक्षा को प्राथमिकता दी जा रही है। यमुनोत्री यमुनोत्री धाम तक पैदल यात्रा मार्ग को वैष्णो देवी मार्ग की तरह सुरक्षित और आधुनिक बनाने की योजना है। 170 करोड़ की लागत से एक रूप परियोजना शुरू हुई है, जिसकी लंबाई लगभग 3.9 किलोमीटर है। इस परियोजना से यात्रियों के लिए पैदल मार्ग अधिक सुरक्षित, सुविधाजनक और तीर्थाटन के अनुकूल होगा। गंगोत्री गंगोत्री धाम में सड़क मरम्मत, बिजली आपूर्ति और तीर्थाटन सुविधाओं का विकास किया गया है। यह सुनिश्चित किया गया है कि तीर्थ यात्री आरामदायक और सुरक्षित यात्रा का अनुभव प्राप्त कर सकें।सरकार ने गंगोत्री में बुनियादी ढांचे का नया रूप देते हुए, तीर्थाटन की सुरक्षा और सुविधा को प्राथमिकता दी है। धामों के विकास से लोगों को मिल रहा रोजगार उत्तराखंड में पिछले चार वर्षों में सरकार के प्रचार और निवेश के कारण लगभग 25 करोड़ श्रद्धालु प्रदेश के धार्मिक स्थलों पर पहुंचे हैं।बढ़ती तीर्थाटन संख्या ने स्थानीय लोगों के लिए रोजगार और आजीविका के नए अवसर सृजित किए हैं। पंच केदार के प्रचार प्रसार के प्रयासों से तीर्थ यात्रियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। राज्य अलग लेकिन मुखियाओं की जन्मभूमि एक पुष्कर सिंह धामी कुमाउं मंडल में आने वाले पिथौरागढ़ जिले के टुंडी गांव से हैं। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से मानव संसाधन प्रबंधन और एलएलबी की पढ़ाई की और 2021 में प्रदेश के सीएम बन गए। तो वहीं, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जन्मभूमि भी उत्तराखंड ही है, वह गढ़वाल मंडल के पौड़ी गढ़वाल जिले के पंचुर गांव में जन्में हैं। उनकी पढ़ाई भी उत्तराखंड में ही हुई है, हालांकि संन्यास लेने के बाद वह गोरखनाथ मठ के महंत बन गए और अब दूसरी बार उत्तरप्रदेश के सीएम हैं। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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यमुनानगर में बडे़ धार्मिक उत्सव की तैयारी:श्रीकपालमोचन-श्री आदि बद्री मेला एक नवंबर से, 10 लाख श्रद्धालुओं के पहुंचने की संभावना हरियाणा में यमुनानगर जिले के व्यासपुर में स्थित पवित्र तीर्थस्थल कपालमोचन एक बार फिर धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव का केंद्र बनने को तैयार है। 1 से 5 नवंबर तक श्री कपालमोचन-श्री आदि बद्री मेला आयोजित होने जा रहा है। यह मेला हिंदू-सिख एकता का प्रतीक है। इस बार कपालमोचन सरोवर, ऋण मोचन सरोवर, और सूरजकुंड सरोवर में स्नान के लिए देशभर से 8 से 10 लाख श्रद्धालु जुटने की उम्मीद है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ सहित अन्य राज्यों से आने वाले श्रद्धालु यहां स्नान कर पापों से मुक्ति और मनोकामनाओं की पूर्ति की कामना करेंगे। यमुनानगर प्रशासन ने मेले को भव्य और सुरक्षित बनाने के लिए व्यापक तैयारियां शुरू कर दी हैं, जिसमें तकनीकी नवाचार और बीमा कवरेज जैसे विशेष इंतजाम शामिल हैं। इंटरेक्टिव हिस्ट्री से दर्शाया जाएगा महत्त्व इस बार मेले में श्रद्धालुओं के अनुभव को और समृद्ध करने के लिए प्रशासन ने इंटरेक्टिव डिजिटल हिस्ट्री बोर्ड लगाने का फैसला किया है। ये बोर्ड मेले के धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व को आकर्षक और आधुनिक ढंग से प्रस्तुत करेंगे, जिससे श्रद्धालु कपाल मोचन की पौराणिक कथाओं और सांस्कृतिक विरासत से आसानी से परिचित हो सकेंगे। इसके साथ ही, प्रशासन ने श्रद्धालुओं और दुकानदारों की सुरक्षा के लिए व्यापक बीमा कवरेज की व्यवस्था की है। प्रतिदिन 2 लाख श्रद्धालुओं के लिए इंश्योरेंस पॉलिसी और दुकानदारों के लिए 1 लाख तक की कवरेज सुनिश्चित की गई है, ताकि किसी भी अप्रिय स्थिति में आर्थिक सुरक्षा प्रदान की जा सके। 100 से ज्यादा सीसीटीवी कैमरों और ड्रोन से रखी जाएगी नजर एसडीएम जसपाल सिंह ने बताया कि सुरक्षा के लिए मेला क्षेत्र में 2,000 से अधिक पुलिसकर्मी और 4,000 से 5,000 सिविल कर्मचारी तैनात किए जाएंगे। वहीं 100 से ज्यादा सीसीटीवी कैमरे और ड्रोन की मदद से मेला क्षेत्र के हर कोने पर कड़ी नजर रखी जाएगी, ताकि कोई ब्लैक स्पॉट न रहे। सड़क यातायात को सुगम बनाने के लिए रणजीतपुर, लेडी-प्रताप नगर, व्यासपुर और साढौरा से कपालमोचन तक की सड़कों की मरम्मत का कार्य तेजी से चल रहा है। सरोवरों में जलभराव और सफाई का कार्य भी जोरों पर है, ताकि श्रद्धालुओं को स्नान के लिए स्वच्छ और पर्याप्त जल उपलब्ध हो। महिला घाटों की ऊंचाई बढ़ाई गई है, ताकि महिलाएं सुरक्षित और आरामदायक तरीके से स्नान कर सकें। सभी टेंडर प्रक्रियाएं हुई पूरी एसडीएम ने बताया कि श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए श्री बद्रीनारायण और श्री केदारनाथ मंदिरों पर व्हीलचेयर और वॉलंटियर्स की व्यवस्था की जाएगी, जो विशेष रूप से बुजुर्गों और दिव्यांगजनों के लिए सहायक होगी। मेला क्षेत्र में 20 स्थायी शौचालय बनाए गए हैं, और हर साल 15-20 नए शौचालय जोड़े जा रहे हैं। अस्थायी शौचालयों और कैटरिंग सेवाओं के लिए टेंडर प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। प्रकाश व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए सरोवरों पर स्थायी लाइटें और मेला ग्राउंड में अस्थायी लाइटें लगाई गई हैं। बिजली के खंभों और तारों की मरम्मत का कार्य भी तेजी से चल रहा है, ताकि रात के समय मेला क्षेत्र में पर्याप्त उजाला रहे। एसडीएम जसपाल सिंह ने बताया कि सभी तैयारियां एक सप्ताह के भीतर पूर्ण हो जाएंगी, और प्रशासन का लक्ष्य श्रद्धालुओं को एक सुरक्षित और सुविधाजनक अनुभव प्रदान करना है। भगवान शंकर का हुआ था बह्मा कपाली दोष दूर गऊ बच्छा मंदिर के पुजारी सुभाष चंद शर्मा ने बताया कि, स्कंद महापुराण के अनुसार, कलयुग के प्रभाव से ब्रह्मा ने सरस्वती के प्रति अनुचित विचार रखे। सरस्वती ने भगवान शंकर से द्वैत-वन में शरण मांगी। शंकर ने ब्रह्मा का सिर काट दिया, जिससे उन्हें ब्रह्म हत्या का पाप और ब्रह्मा कपाली का चिह्न लगा। तीर्थों में स्नान-दान के बाद भी चिह्न नहीं हटा। शंकर पार्वती सहित सोमसर (कपाल मोचन) तीर्थ पहुंचे। यहां बछड़े ने ब्राह्मण की हत्या कर ब्रह्म हत्या का पाप लिया, लेकिन सोमसर तालाब में स्नान से वह और गोमाता पापमुक्त हो गए। पार्वती के कहने पर शंकर ने भी स्नान किया और ब्रह्मा कपाली दोष से मुक्त हुए। इसलिए यह तीर्थ कपाल मोचन कहलाया। कपालमोचन मेला सिख इतिहास के लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि गुरु गोबिंद सिंह ने भंगानी की लड़ाई के बाद यहां 52 दिनों तक रुककर तपस्या की थी। उन्होंने सिख सैनिकों को सम्मानित करने के लिए यहीं से सिरोपा देने की परंपरा शुरू की और बाद में यहीं पर पहली बार गुरु नानक देव जी का जन्मोत्सव भी मनाया। यह स्थान सिखों और हिंदुओं दोनों के लिए एक पवित्र तीर्थ स्थल है। 100 से ज्यादा ग्रामीण सेवक सेवा में लगे हुए स्थानीय निवासी नवीन कुमार ने बताया कि करीब एक माह से मेले की तैयारियां चल रही हैं। तीन कस्बों के 100 से भी ज्यादा ग्रामीण सेवक सेवा में लगे हुए हैं। इस बार 10 लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं के यहां पर पहुंचने की उम्मीद है। धर्मशालाएं भी पूरी तरह से तैयार हैं। ग्रामीणों को भी इस मेले का बेसब्री से इंतजार रहता है, क्योंकि मेले में उन्हें रोजगार मिल जाता है।
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