तारीख: 11 जून 2024 समय: शाम 5 बजे यह परिवार रायबरेली की जनता के सुख-दुख में खड़ा रहता है। मोदी लहर में भी हम लोगों ने सोनिया गांधी को जिताया था। अबकी बार तो राहुल गांधी थे, जो सीधी टक्कर ले रहे थे। ऐसे में उन्हें कैसे न जिताते। यह कहना है भुएमऊ गेस्ट हाउस पर राहुल और प्रियंका गांधी की धन्यवाद सभा में पहुंचे लोगों का। अपने नेता के इंतजार में खड़े लोगों ने राहुल और प्रियंका गांधी के मंच पर पहुंचते ही राहुल गांधी जिंदाबाद, प्रियंका गांधी जिंदाबाद के नारे लगाए। अमेठी और रायबरेली सीट जीतने के एक हफ्ते बाद 11 जून को कांग्रेस की ओर से आभार सभा का आयोजन रायबरेली के भुएमऊ गेस्ट हाउस में किया गया था। इसमें राहुल-प्रियंका के साथ किशोरी लाल शर्मा ने भी जनता से मुखातिब होकर दोनों जिलों की जनता का आभार जताया। लगभग 5 साल बाद भुएमऊ गेस्ट हाउस पर इतनी भीड़ देखने को मिली। जितने कार्यकर्ता अंदर थे, उससे कहीं ज्यादा गेस्ट हाउस के बाहर थे। उन्हें अंदर जाने का मौका नहीं मिल पाया। बहरहाल, इस सभा में भी इंडी गठबंधन का ध्यान रखा गया। सपा के जिलाध्यक्ष और विधायकों को मंच पर जगह दी गई। रायबरेली में जनता का उत्साह देखकर हमने भी रायबरेली के अलग-अलग हिस्सों में घूम कर यह समझने की कोशिश की कि आखिर अमेठी हारने वाले राहुल गांधी रायबरेली से क्यों जीत गए? इस जीत के मायने क्या हैं? गेस्ट हाउस से राहुल गांधी के जाने के बाद हम सिविल लाइंस पहुंचे। यहां हमारी मुलाकात बबलू से हुई। बबलू किसान हैं। कहते हैं- इस बार यहां की जनता ने इंडी गठबंधन पर भरोसा किया, क्योंकि मोदी सरकार में आम आदमी परेशान था। किसान भी परेशान था। हर घर में एक बेरोजगार बैठा है। इन लोगों ने अग्निवीर योजना शुरू की, जो युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ करने जैसा है। इन लोगों को लगता है, कुछ भी करेंगे सब जनता मान लेगी। दूसरी बात जाहिर है, रायबरेली की जनता का लगाव गांधी परिवार से है। लगातार यह परिवार रायबरेली की जनता के सुख-दुख में खड़ा रहता है। जब 2014 में मोदी की लहर और 2019 में मोदी मैजिक चल रहा था, तब भी यहां की जनता ने सोनिया गांधी को जिताया था। अबकी बार तो राहुल गांधी थे, जो सीधी टक्कर ले रहे थे। ऐसे में उन्हें कैसे न जिताते। रायबरेली के मटिहा गांव के रहने वाले नरेंद्र भी राहुल को देखने रायबरेली पहुंचे थे। कहते हैं- भले ही मोदी की सरकार बन गई, लेकिन यह सरकार चल नहीं पाएगी। हमारा अगला सवाल था कि आखिर किन मुद्दों पर आपने राहुल गांधी को वोट दिया? बिना देर किए नरेंद्र तपाक से बोलते हैं- महंगाई की वजह से जनता परेशान है। छुट्टा जानवर से किसान त्रस्त है। 10 साल से यह सरकार इस समस्या का निदान नहीं खोज पाई। ऐसे में हमारे पास कोई विकल्प नहीं था। अब हमारे सामने सवाल था, रायबरेली में सिर्फ राहुल की जीत है या फिर सपा का सहयोग भी रहा?
इस सवाल का जवाब जानने हम रायबरेली के कैपरगंज पहुंचे, जहां अखिलेश माही से मुलाकात हुई। अखिलेश मुलायम यूथ ब्रिगेड से जुड़े हैं। कहते हैं- सपा का साथ मिलने से कांग्रेस को संजीवनी मिल गई। यह अखिलेश यादव की PDA की राजनीति है, जिसकी वजह से कांग्रेस जीती। रायबरेली में पहले भी सपा गांधी परिवार के सामने अपना प्रत्याशी नहीं उतारती थी। राष्ट्रीय अध्यक्ष का मैसेज होता था, मदद करो। लेकिन, हम अपना पूरा दम नहीं लगाते थे। अब सवाल था, आखिर सोनिया गांधी का 2019 में जीतने का मार्जिन कम क्यों हो गया था?
इसका जवाब हमें तिलक भवन पर कांग्रेस के जिला पंचायत सदस्य वीरेंद्र यादव मिले। वीरेंद्र कहते हैं- 2014 और 2019 में ऐसे तमाम मुद्दों पर जनता को भाजपा ने जनता काे गुमराह किया था। जिससे देश में अलग लहर चल पड़ी थी। वही कारण था कि सोनिया गांधी की जीत का मार्जिन कम होने लगा था। इस बार लहर उल्टी पड़ गई। इसकी वजह से राहुल गांधी हीरो की तरह उभरे और जनता ने उन्हें बड़े मार्जिन से जिताया। वीरेंद्र यादव की बात का समर्थन करते हुए कांग्रेस कार्यकर्ता प्रशांत सिंह कहते हैं- रायबरेली गांधी परिवार का घर है। ऐसे में जब भाजपा आई ताे उसने कांग्रेसियों पर मुकदमे लगाने शुरू कर दिए। रायबरेली की जनता के साथ मोदी सरकार बदले की राजनीति करती आ रही है। अगर यह नहीं होता, तो भाजपा प्रत्याशी क्यों कहते कि अब हम रायबरेली की जनता का काम नहीं करेंगे। कांग्रेस से सभासद पुष्पा सुपर मार्केट में आई थीं। कहती हैं- रायबरेली के मुद्दे किसी दूसरे शहर या देश से अलग नहीं थे। यहां के लोग भी महंगाई-बेरोजगारी से परेशान थे। रायबरेली में जो विकास हुआ, वह कांग्रेस की देन है। चाहे आप AIIMS को देख लें या फिर ITI की बात कर लें। दरअसल, भाजपा से लोग परेशान हो गए थे। इस वजह से राहुल गांधी को जीत मिली। अब सवाल था कि आखिर रायबरेली में भाजपा क्यों नहीं जीत पा रही?
इस सवाल का जवाब जानने के लिए हम डिग्री कॉलेज चौराहे पर दुर्गा मार्केट पहुंचे। यहां हमारी मुलाकात भाजपा के महानगर अध्यक्ष शिवेंद्र सिंह से हुई। शिवेंद्र कहते हैं- इसमें कोई दो राय नहीं कि रायबरेली के लोगों का गांधी परिवार से आत्मिक लगाव है। इस लगाव की वजह से रायबरेली की जनता सही कैंडिडेट का चुनाव नहीं कर पा रही। आखिर कमी कहां रह गई, के सवाल पर शिवेंद्र सिंह कहते हैं- भाजपा के विकास कार्यों पर रिजल्ट नहीं आया, जाति विखंडन पर रिजल्ट आया। रही बात गलती की, तो गलती लोकल और प्रदेश लेवल पर हुई। हम समय से आकलन नहीं कर पाए। दुर्गा मार्केट में ही हमारी मुलाकात भाजपा जिलाध्यक्ष बुद्धीलाल पासी से हुई। हमारा सवाल था, क्या अंतर्कलह से भाजपा चुनाव हार गई? इस पर बुद्धीलाल पासी कहते हैं- ऐसा कहना गलत है कि अंतर्कलह थी। यह हो सकता है, किसी ने कम तो किसी ने ज्यादा मेहनत की हो। राहुल की जीत का मार्जिन इतना नहीं है। पिछली बार तो हमें भी तीन लाख वोट मिले थे। हारने की दूसरी वजह थी। हम रायबरेली में उसके सामने चुनाव लड़ रहे थे, जो प्रधानमंत्री पद का दावेदार था। जो देश का सबसे ताकतवर उम्मीदवार था। मोदी के बाद जो था, वह राहुल गांधी थे। राहुल के सामने हमारा लाेकल प्रत्याशी था। जिसने पिछले 5 साल में विकास का काम किया, लेकिन चुनाव जातिगत हो गया। उन्होंने कहा- रही बात गांधी परिवार से रायबरेली का भावनात्मक लगाव की, तो यह गलत है। यह सिर्फ समय होता है। इस बार जनता के सामने उन लोगों ने गलत मुद्दे रखे। लोगों को बरगलाया। रायबरेली की जनता गरीब की गरीब ही रहेगी। एक लाख के चक्कर में वोट दे दिया, लेकिन अब पछता रहे हैं। भाजपा सरकार जिले से बदले की भावना से काम कर रही है? इस सवाल पर वह कहते हैं- ऐसा नहीं है। आप मौके पर देख सकते हैं। वहीं मंत्री दिनेश प्रताप सिंह के वायरल बयान पर जिलाध्यक्ष बुद्धीलाल पासी कहते हैं- ऐसा कोई बयान उन्होंने नहीं दिया। लोगों से और दोनों पक्षों से बात कर हमें तीन बातें समझ आईं पहली: लोकसभा चुनाव में जीत से उत्साहित कांग्रेस ग्रासरूट लेवल पर संगठन को मजबूत करने का काम करेगी। लंबे समय तक वह गठबंधन के भरोसे नहीं रह सकती। क्योंकि 2017 में भी गठबंधन हुआ था, लेकिन चुनाव बाद टूट गया था। दूसरी: राहुल गांधी को लोग अब पीएम मटेरियल मानने लगे हैं, क्योंकि अगर रायबरेली से वह चुनाव हारते तो वह पीएम पद की दावेदारी भी खो देते। तीसरी: रायबरेली और अमेठी से फिलहाल गांधी परिवार का रिश्ता बना रहेगा। गांधी परिवार को यह बात समझ आ गई है कि अगर अपनी पारंपरिक सीट बचानी है, तो दोनों क्षेत्रों में पर्याप्त समय देना होगा। पॉलिटिकल एक्सपर्ट की क्या है राय?
राहुल की जीत का मार्जिन इतना ज्यादा रायबरेली में क्यों रहा? इस सवाल का जवाब जानने के लिए सीनियर जर्नलिस्ट गौरव अवस्थी के पास पहुंचे। वह बताते हैं- 2004 से सोनिया गांधी लगातार यहां से जीत रही हैं। इससे पहले इंदिरा और फिरोज गांधी चुनाव लड़ते रहे, जीतते रहे। 18 लोकसभा चुनाव हुए, जिनमें से 15 कांग्रेस ने जीते। ऐसे में यहां की जनता का लगाव गांधी परिवार से है, तो यह फैक्टर काम करता ही है। दूसरा, इस बार चुनाव में जाति के फैक्टर ने बड़े पैमाने पर काम किया। साथ ही इस बार गठबंधन में सपा ने भी ग्रासरूट लेवल पर जाकर कांग्रेस का साथ दिया। जिसकी वजह से इतने बड़े मार्जिन से राहुल की जीत हुई। तीसरा फैक्टर है, जब से मोदी सरकार आई है रायबरेली के कई विकास के काम ठप हो गए हैं। कई काम सोनिया गांधी ने अप्रूव करा लिए लेकिन वह एक इंच भी नहीं बढ़े, जिसका लोगों में गुस्सा था। यहां के लोगों की उम्मीदें इतनी बढ़ गई हैं कि देश के बड़े नेता ही उसे पूरा कर सकते है। भले ही विधानसभा में भाजपा सरकार को बोलबाला है, लेकिन रायबरेली की उम्मीदें पूरी करना उनके विधायकों के बस की बात नहीं। अब हमारा सवाल था कि क्या भाजपा कैंडिडेट बदलती तो कोई फर्क पड़ता? गौरव अवस्थी साफ कहते हैं- रायबरेली के रिजल्ट पर तब फर्क पड़ता, जब राहुल गांधी के बराबर या कोई बड़ा नेता यहां से लड़ता। जैसा कि अमेठी में हुआ था। तारीख: 11 जून 2024 समय: शाम 5 बजे यह परिवार रायबरेली की जनता के सुख-दुख में खड़ा रहता है। मोदी लहर में भी हम लोगों ने सोनिया गांधी को जिताया था। अबकी बार तो राहुल गांधी थे, जो सीधी टक्कर ले रहे थे। ऐसे में उन्हें कैसे न जिताते। यह कहना है भुएमऊ गेस्ट हाउस पर राहुल और प्रियंका गांधी की धन्यवाद सभा में पहुंचे लोगों का। अपने नेता के इंतजार में खड़े लोगों ने राहुल और प्रियंका गांधी के मंच पर पहुंचते ही राहुल गांधी जिंदाबाद, प्रियंका गांधी जिंदाबाद के नारे लगाए। अमेठी और रायबरेली सीट जीतने के एक हफ्ते बाद 11 जून को कांग्रेस की ओर से आभार सभा का आयोजन रायबरेली के भुएमऊ गेस्ट हाउस में किया गया था। इसमें राहुल-प्रियंका के साथ किशोरी लाल शर्मा ने भी जनता से मुखातिब होकर दोनों जिलों की जनता का आभार जताया। लगभग 5 साल बाद भुएमऊ गेस्ट हाउस पर इतनी भीड़ देखने को मिली। जितने कार्यकर्ता अंदर थे, उससे कहीं ज्यादा गेस्ट हाउस के बाहर थे। उन्हें अंदर जाने का मौका नहीं मिल पाया। बहरहाल, इस सभा में भी इंडी गठबंधन का ध्यान रखा गया। सपा के जिलाध्यक्ष और विधायकों को मंच पर जगह दी गई। रायबरेली में जनता का उत्साह देखकर हमने भी रायबरेली के अलग-अलग हिस्सों में घूम कर यह समझने की कोशिश की कि आखिर अमेठी हारने वाले राहुल गांधी रायबरेली से क्यों जीत गए? इस जीत के मायने क्या हैं? गेस्ट हाउस से राहुल गांधी के जाने के बाद हम सिविल लाइंस पहुंचे। यहां हमारी मुलाकात बबलू से हुई। बबलू किसान हैं। कहते हैं- इस बार यहां की जनता ने इंडी गठबंधन पर भरोसा किया, क्योंकि मोदी सरकार में आम आदमी परेशान था। किसान भी परेशान था। हर घर में एक बेरोजगार बैठा है। इन लोगों ने अग्निवीर योजना शुरू की, जो युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ करने जैसा है। इन लोगों को लगता है, कुछ भी करेंगे सब जनता मान लेगी। दूसरी बात जाहिर है, रायबरेली की जनता का लगाव गांधी परिवार से है। लगातार यह परिवार रायबरेली की जनता के सुख-दुख में खड़ा रहता है। जब 2014 में मोदी की लहर और 2019 में मोदी मैजिक चल रहा था, तब भी यहां की जनता ने सोनिया गांधी को जिताया था। अबकी बार तो राहुल गांधी थे, जो सीधी टक्कर ले रहे थे। ऐसे में उन्हें कैसे न जिताते। रायबरेली के मटिहा गांव के रहने वाले नरेंद्र भी राहुल को देखने रायबरेली पहुंचे थे। कहते हैं- भले ही मोदी की सरकार बन गई, लेकिन यह सरकार चल नहीं पाएगी। हमारा अगला सवाल था कि आखिर किन मुद्दों पर आपने राहुल गांधी को वोट दिया? बिना देर किए नरेंद्र तपाक से बोलते हैं- महंगाई की वजह से जनता परेशान है। छुट्टा जानवर से किसान त्रस्त है। 10 साल से यह सरकार इस समस्या का निदान नहीं खोज पाई। ऐसे में हमारे पास कोई विकल्प नहीं था। अब हमारे सामने सवाल था, रायबरेली में सिर्फ राहुल की जीत है या फिर सपा का सहयोग भी रहा?
इस सवाल का जवाब जानने हम रायबरेली के कैपरगंज पहुंचे, जहां अखिलेश माही से मुलाकात हुई। अखिलेश मुलायम यूथ ब्रिगेड से जुड़े हैं। कहते हैं- सपा का साथ मिलने से कांग्रेस को संजीवनी मिल गई। यह अखिलेश यादव की PDA की राजनीति है, जिसकी वजह से कांग्रेस जीती। रायबरेली में पहले भी सपा गांधी परिवार के सामने अपना प्रत्याशी नहीं उतारती थी। राष्ट्रीय अध्यक्ष का मैसेज होता था, मदद करो। लेकिन, हम अपना पूरा दम नहीं लगाते थे। अब सवाल था, आखिर सोनिया गांधी का 2019 में जीतने का मार्जिन कम क्यों हो गया था?
इसका जवाब हमें तिलक भवन पर कांग्रेस के जिला पंचायत सदस्य वीरेंद्र यादव मिले। वीरेंद्र कहते हैं- 2014 और 2019 में ऐसे तमाम मुद्दों पर जनता को भाजपा ने जनता काे गुमराह किया था। जिससे देश में अलग लहर चल पड़ी थी। वही कारण था कि सोनिया गांधी की जीत का मार्जिन कम होने लगा था। इस बार लहर उल्टी पड़ गई। इसकी वजह से राहुल गांधी हीरो की तरह उभरे और जनता ने उन्हें बड़े मार्जिन से जिताया। वीरेंद्र यादव की बात का समर्थन करते हुए कांग्रेस कार्यकर्ता प्रशांत सिंह कहते हैं- रायबरेली गांधी परिवार का घर है। ऐसे में जब भाजपा आई ताे उसने कांग्रेसियों पर मुकदमे लगाने शुरू कर दिए। रायबरेली की जनता के साथ मोदी सरकार बदले की राजनीति करती आ रही है। अगर यह नहीं होता, तो भाजपा प्रत्याशी क्यों कहते कि अब हम रायबरेली की जनता का काम नहीं करेंगे। कांग्रेस से सभासद पुष्पा सुपर मार्केट में आई थीं। कहती हैं- रायबरेली के मुद्दे किसी दूसरे शहर या देश से अलग नहीं थे। यहां के लोग भी महंगाई-बेरोजगारी से परेशान थे। रायबरेली में जो विकास हुआ, वह कांग्रेस की देन है। चाहे आप AIIMS को देख लें या फिर ITI की बात कर लें। दरअसल, भाजपा से लोग परेशान हो गए थे। इस वजह से राहुल गांधी को जीत मिली। अब सवाल था कि आखिर रायबरेली में भाजपा क्यों नहीं जीत पा रही?
इस सवाल का जवाब जानने के लिए हम डिग्री कॉलेज चौराहे पर दुर्गा मार्केट पहुंचे। यहां हमारी मुलाकात भाजपा के महानगर अध्यक्ष शिवेंद्र सिंह से हुई। शिवेंद्र कहते हैं- इसमें कोई दो राय नहीं कि रायबरेली के लोगों का गांधी परिवार से आत्मिक लगाव है। इस लगाव की वजह से रायबरेली की जनता सही कैंडिडेट का चुनाव नहीं कर पा रही। आखिर कमी कहां रह गई, के सवाल पर शिवेंद्र सिंह कहते हैं- भाजपा के विकास कार्यों पर रिजल्ट नहीं आया, जाति विखंडन पर रिजल्ट आया। रही बात गलती की, तो गलती लोकल और प्रदेश लेवल पर हुई। हम समय से आकलन नहीं कर पाए। दुर्गा मार्केट में ही हमारी मुलाकात भाजपा जिलाध्यक्ष बुद्धीलाल पासी से हुई। हमारा सवाल था, क्या अंतर्कलह से भाजपा चुनाव हार गई? इस पर बुद्धीलाल पासी कहते हैं- ऐसा कहना गलत है कि अंतर्कलह थी। यह हो सकता है, किसी ने कम तो किसी ने ज्यादा मेहनत की हो। राहुल की जीत का मार्जिन इतना नहीं है। पिछली बार तो हमें भी तीन लाख वोट मिले थे। हारने की दूसरी वजह थी। हम रायबरेली में उसके सामने चुनाव लड़ रहे थे, जो प्रधानमंत्री पद का दावेदार था। जो देश का सबसे ताकतवर उम्मीदवार था। मोदी के बाद जो था, वह राहुल गांधी थे। राहुल के सामने हमारा लाेकल प्रत्याशी था। जिसने पिछले 5 साल में विकास का काम किया, लेकिन चुनाव जातिगत हो गया। उन्होंने कहा- रही बात गांधी परिवार से रायबरेली का भावनात्मक लगाव की, तो यह गलत है। यह सिर्फ समय होता है। इस बार जनता के सामने उन लोगों ने गलत मुद्दे रखे। लोगों को बरगलाया। रायबरेली की जनता गरीब की गरीब ही रहेगी। एक लाख के चक्कर में वोट दे दिया, लेकिन अब पछता रहे हैं। भाजपा सरकार जिले से बदले की भावना से काम कर रही है? इस सवाल पर वह कहते हैं- ऐसा नहीं है। आप मौके पर देख सकते हैं। वहीं मंत्री दिनेश प्रताप सिंह के वायरल बयान पर जिलाध्यक्ष बुद्धीलाल पासी कहते हैं- ऐसा कोई बयान उन्होंने नहीं दिया। लोगों से और दोनों पक्षों से बात कर हमें तीन बातें समझ आईं पहली: लोकसभा चुनाव में जीत से उत्साहित कांग्रेस ग्रासरूट लेवल पर संगठन को मजबूत करने का काम करेगी। लंबे समय तक वह गठबंधन के भरोसे नहीं रह सकती। क्योंकि 2017 में भी गठबंधन हुआ था, लेकिन चुनाव बाद टूट गया था। दूसरी: राहुल गांधी को लोग अब पीएम मटेरियल मानने लगे हैं, क्योंकि अगर रायबरेली से वह चुनाव हारते तो वह पीएम पद की दावेदारी भी खो देते। तीसरी: रायबरेली और अमेठी से फिलहाल गांधी परिवार का रिश्ता बना रहेगा। गांधी परिवार को यह बात समझ आ गई है कि अगर अपनी पारंपरिक सीट बचानी है, तो दोनों क्षेत्रों में पर्याप्त समय देना होगा। पॉलिटिकल एक्सपर्ट की क्या है राय?
राहुल की जीत का मार्जिन इतना ज्यादा रायबरेली में क्यों रहा? इस सवाल का जवाब जानने के लिए सीनियर जर्नलिस्ट गौरव अवस्थी के पास पहुंचे। वह बताते हैं- 2004 से सोनिया गांधी लगातार यहां से जीत रही हैं। इससे पहले इंदिरा और फिरोज गांधी चुनाव लड़ते रहे, जीतते रहे। 18 लोकसभा चुनाव हुए, जिनमें से 15 कांग्रेस ने जीते। ऐसे में यहां की जनता का लगाव गांधी परिवार से है, तो यह फैक्टर काम करता ही है। दूसरा, इस बार चुनाव में जाति के फैक्टर ने बड़े पैमाने पर काम किया। साथ ही इस बार गठबंधन में सपा ने भी ग्रासरूट लेवल पर जाकर कांग्रेस का साथ दिया। जिसकी वजह से इतने बड़े मार्जिन से राहुल की जीत हुई। तीसरा फैक्टर है, जब से मोदी सरकार आई है रायबरेली के कई विकास के काम ठप हो गए हैं। कई काम सोनिया गांधी ने अप्रूव करा लिए लेकिन वह एक इंच भी नहीं बढ़े, जिसका लोगों में गुस्सा था। यहां के लोगों की उम्मीदें इतनी बढ़ गई हैं कि देश के बड़े नेता ही उसे पूरा कर सकते है। भले ही विधानसभा में भाजपा सरकार को बोलबाला है, लेकिन रायबरेली की उम्मीदें पूरी करना उनके विधायकों के बस की बात नहीं। अब हमारा सवाल था कि क्या भाजपा कैंडिडेट बदलती तो कोई फर्क पड़ता? गौरव अवस्थी साफ कहते हैं- रायबरेली के रिजल्ट पर तब फर्क पड़ता, जब राहुल गांधी के बराबर या कोई बड़ा नेता यहां से लड़ता। जैसा कि अमेठी में हुआ था। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर