<p style=”text-align: justify;”><strong>MP By Poll 2024: </strong>मध्य प्रदेश के अमरवाड़ा सीट पर उपचुनाव के लिए बीजेपी ने कमलेश शाह को उम्मीदवार घोषित किया है. बता दें कि बीजेपी की केंद्रीय चुनाव समिति ने उपचुनाव के लिए गुरुवार को उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है. </p> <p style=”text-align: justify;”><strong>MP By Poll 2024: </strong>मध्य प्रदेश के अमरवाड़ा सीट पर उपचुनाव के लिए बीजेपी ने कमलेश शाह को उम्मीदवार घोषित किया है. बता दें कि बीजेपी की केंद्रीय चुनाव समिति ने उपचुनाव के लिए गुरुवार को उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है. </p> मध्य प्रदेश ‘दिल्ली में प्रदूषण में 30 फीसदी की कमी’, मंत्री गोपाल राय का दावा, समर एक्शन प्लान पर कही ये बात
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पानीपत में फर्जी कर्मचारी बनाकर 30 लाख हड़पे:प्राइवेट कंपनी के अधिकारियों पर आरोप, ऑडिट में 6 फेक एंप्लॉय का खुलासा
पानीपत में फर्जी कर्मचारी बनाकर 30 लाख हड़पे:प्राइवेट कंपनी के अधिकारियों पर आरोप, ऑडिट में 6 फेक एंप्लॉय का खुलासा हरियाणा के पानीपत में रिफाइनरी के पास एक बड़ी कंपनी में काम कर रही एक इलेक्ट्रिकल इंस्टॉलमेंट कंपनी के अधिकारियों ने बड़ा कारनामा कर दिया। कंपनी के मैनेजर और इंजीनियर ने 6 लोगों को फर्जी कर्मचारी बनाया। लेकिन उसकी हाजिरी में खुद के ही फिंगर प्रिंट अटैच कर दिए। रोजाना हाजिरी लगाते थे। साल में 30 लाख रुपए हजम कर गए। अब साल भर के काम का ऑडिट हुआ, तो उसमें ये कारनामा उजागर हो गया। जिसके बाद दोनों की शिकायत पुलिस को दी गई है। पुलिस ने शिकायत के आधार पर केस दर्ज कर लिया है। एक साल से चल रहा है काम सदर थाना पुलिस को दी शिकायत में मंदार मोहन कासकर ने बताया कि वह स्टरलिंग इलेक्ट्रो एंटरप्रायजेस प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में जनरल मैनेजर HR के पद पर कार्यरत है। उनकी कंपनी ने ग्रासीम इंडस्ट्रीज लिमिटेड कंपनी में काम शुरू किया था। उस काम को करने के लिए अंकुर चौधरी (कंस्ट्रक्शन मैनेजर) निवासी उत्तर प्रदेश और बिजिश पी. (बिलिंग इंजीनियर) निवासी केरल को साइट पर तैनात किया था। उनका प्रोजेक्ट प्लाट नं 48-62, रिफाइनरी रोड, पानीपत पर चल रहा है। काम करीब 1 साल से चल रहा है। जोकि अब पूरा होने को है। अंकुर है मास्टरमाइंड, बिजिश को साथ मिलाया इसी माह की छानबीन के दौरान पता लगा कि अंकुर चौधरी और बिजिश पी. ने ऐसे 6 लोगों का नाम बताकर पिछले लगभग एक साल से कंपनी से सैलरी ली, जो साइट पर काम भी नहीं करते थे। आरोपियों ने 6 लोगों की सैलरी के नाम पर सालभर में करीब 20 लाख रुपए की धोखाधड़ी की है। उन 6 लोगों के डेबिट कार्ड भी खुद रखे हुए थे। जिससे वे रुपए निकाल लेते थे। इन 6 लोगों को गुजारा भर ही रुपए देते थे। बाकी सभी अपने पास रख लेते थे। दरअसल, अंकुर चौधरी इस खेल का मास्टरमाइंड है। जिसने 6 लोगों के नाम दिए, लेकिन हाजिरी में फिगर अपनी लगाई हुई थी। रोजाना उनके नाम की बायो मैट्रिक हाजिरी वह अपनी उंगलियों से लगाता था। इसका पता बिजिश पी. को लगा, तो अंकुर ने उसे करीब ढाई लाख रुपए देकर अपने साथ गेम में शामिल कर लिया था।
नीट परीक्षा में धोखाधड़ी, षडयंत्र के आरोपी को जमानत नहीं:इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा- डॉटा से छेड़छाड़ की वजह से चयनित छात्रों के नाम गायब हो गए थे
नीट परीक्षा में धोखाधड़ी, षडयंत्र के आरोपी को जमानत नहीं:इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा- डॉटा से छेड़छाड़ की वजह से चयनित छात्रों के नाम गायब हो गए थे इलाहाबाद हाईकोर्ट से मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए आयोजित नीट – 2021/22 काउंसिलिंग प्रक्रिया में धोखाधड़ी, षडयंत्र के आरोपी को राहत नहीं मिली। कोर्ट ने कहा कि याची के खिलाफ गंभीर आरोप हैं। उसे सह आरोपियों को मिली जमानत का लाभ नहीं दिया जा सकता। परीक्षा में गड़बड़ी में इसकी मुख्य भूमिका रही है। लिहाजा वह जमानत पाने का हकदार नहीं है। यह आदेश न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने कुलदीप सिंह वर्मा की जमानत अर्जी खारिज करते हुए दिया। नीट का 2021-22 का मामला
मामला नीट 2021/22 में सफल अभ्यर्थियों की काउंसिलिंग से जुड़ा है। यूपी सरकार ने मेसर्स अपट्रान पावर ट्रॉनिक्स लिमिटेड को काउंसिलिंग का जिम्मा सौंपा था। मेसर्स अपट्रान ने काउंसिलिंग की प्रक्रिया को पूरी करने के लिए दूसरी एजेंसी बी-3 सॉफ्ट सॉल्यूशन कंपनी का सहयोग लिया। काउंसिलिंग प्रक्रिया शुरू होने के दौरान सहयोगी एजेंसी बी- 3 सॉफ्ट साल्यूशन के कुलदीप सिंह वर्मा सहित अन्य लोगों ने मिलकर हार्ड डिस्क में छेड़छाड़ कर हार्ड डिस्क की कॉपी कर चयनित छात्रों के नाम बदल दिए और ऐसे नाम को शामिल कर दिया जो परीक्षा में शामिल ही नहीं हुए थे। इसको लेकर चयनित छात्रों की ओर से आपत्ति जताई गई और मामले की शिकायत की गई। चिकित्सा शिक्षा निदेशालय ने कराई थी जांच
चिकित्सा शिक्षा निदेशालय ने मामले में जांच शुरू की और गड़बड़ी सामने आ गई। आरोपी कुलदीप सिंह वर्मा से इस मामले में जवाब तलब किया लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया। इस पर लखनऊ के हजरतगंज थाने में धोखाधड़ी और षड्यंत्र में याची सहित कुल 15 लोगों के खिलाफ प्राथमिक की दर्ज कराई गई। याची ने अपने खिलाफ दर्ज प्राथमिक पर जमानत की मांग के लिए हाईकोर्ट में कहा कि उसे इस मामले में झूठा फंसाया गया है। उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं है। उसके खिलाफ गलत रूप से एफआईआर दर्ज कराई गई। वह परिणाम से जुड़े काउंसिलिंग प्रक्रिया में ऑथराइज्ड पर्सन नहीं था और उसे इससे कुछ लेना देना नहीं है। मामले में सह आरोपियों को पहले ही जमानत मिल चुकी है। जबकि, सरकारी अधिवक्ता ने इसका विरोध किया। कहा कि याची के खिलाफ डाटा से छेड़छाड़ का आरोप है। मामले में 15 लोगों के खिलाफ प्राथमिक की दर्ज की गई। याची ने डेटा में हेरा फेरी कर फर्जी नाम शामिल कर दिया। जिसकी वजह से चयनित छात्रों के नाम गायब हो गया। लिहाजा, जमानत पाने का हकदार नहीं है। कोर्ट ने सरकारी अधिवक्ता के तर्कों को सही पाते हुए याची की जमानत अर्जी को नामंजूर कर दिया।
जालंधर की एके मैन्युफेक्चरिंग कंपनी के केस में आया फैसला:फर्म के पक्ष में आईटी ट्रिब्यूनल का फैसला टीसीएस जमा न कराने को प्रॉफिट मानना गलत
जालंधर की एके मैन्युफेक्चरिंग कंपनी के केस में आया फैसला:फर्म के पक्ष में आईटी ट्रिब्यूनल का फैसला टीसीएस जमा न कराने को प्रॉफिट मानना गलत जालंधर| सिटी की एके मेन्युफैक्चरिंग कंपनी के केस (आईटीए नंबर 319) में अमृतसर के इनकम टैक्स ट्रिब्यूनल ने ऐतिहासिक फैसला दिया है। इस फर्म ने इनकम टैक्स रिटर्न भरते हुए 4,83,000 का टीसीएस जमा नहीं कराया था। उनकी रिटर्न की एसेसमेंट करने के बाद इनकम टैक्स अफसरों ने ये रकम जमा न कराने पर इसे फर्म की आमदनी में दर्ज कर दिया। ऐसा इनकम टैक्स के सेक्शन 43 बी के तहत किया गया। इस सेक्शन के घेरे में आने वाली फर्में अगर किसी का पैसा नहीं चुकाती हैं तो इसे उनकी कमाई में शामिल माना जाता है। जालंधर की फर्म की तरफ से एडवोकेट अमित बजाज 6 मई को इनकम टैक्स ट्रिब्यूनल में पेश हुए। उन्होंने दलील दी कि टीसीएस को फर्म की कमाई नहीं माना जा सकता है। वजह – ये टैक्स की रकम है जो लोगों ने फर्म के साथ लेनदेन के दौरान बिल के साथ जमा कराया, फर्म तो केवल इस पैसे की कस्टोडियन है, ये पैसा सरकार का है। फर्म ने केवल ग्राहक से लेकर सरकार को देना है। ऐसे में इसे फर्म की कमाई नहीं माना जा सकता। ट्रिब्यूनल का फैसला 4 जून को आया है। इसके अनुसार टैक्स की रकम को प्रॉफिट नहीं माना गया। सेक्शन 43 बी के अनुसार 4,83,000 रुपए को कमाई नहीं माना जा सकता है।