पंजाब के सरकारी स्कूलों में बच्चों को दिए जाने वाले मिड-डे मील (स्कूल में दोपहर का खाना) को लेकर मान सरकार ने पिछले दो सालों में कई बड़े और ज़मीन से जुड़े फैसले लिए हैं। इन फैसलों ने न सिर्फ बच्चों के पोषण में सुधार किया है, बल्कि हज़ारों ग्रामीण महिलाओं को रोज़गार और सम्मान भी दिया है।
यूकेजी के बच्चों को भी मिड-डे मील
सितंबर 2023 से, मिड-डे मील का फायदा यूकेजी (Upper KG) के छोटे बच्चों को भी मिलने लगा है। पहले यह सुविधा केवल पहली कक्षा और उससे ऊपर के बच्चों को मिलती थी।
इस फैसले से करीब 1.95 लाख छोटे बच्चों को लाभ मिला है।
साबित हुआ है कि छोटे बच्चों को सही पोषण मिले तो दिमाग की ग्रोथ और सीखने की क्षमता बेहतर होती है।
ग्रामीण इलाकों में जहाँ घर का खाना कई बार पूरा पोषक नहीं होता, वहाँ यह कदम बहुत असरदार साबित हुआ।
हफ्ते में एक बार मिलेगा फल – स्थानीय किसानों को फायदा
जनवरी 2024 से, सरकार ने बच्चों को हफ्ते में एक बार मौसमी फल देने की शुरुआत की।
शुरुआत केले से हुई और बाद में कीनू, गाजर जैसे लोकल फल और सब्जियाँ शामिल की गईं।
इससे दो फायदे हुए:
- बच्चों को पोषण बेहतर मिल रहा है
- पंजाब के किसानों को सीधा लाभ हो रहा है क्योंकि फल और सब्जियाँ स्थानीय बाजार से खरीदी जाती हैं।
नया साप्ताहिक मेन्यू – पोषक भोजन पर ज़ोर
नवंबर 2025 में, सरकार ने पोषण विशेषज्ञों (nutrition experts) से सलाह लेकर एक नया मेन्यू जारी किया।
अब खाने में:
- प्रोटीन
- विटामिन
- दालें
- हरी सब्जियाँ
- और अलग-अलग अनाज
संतुलित रूप में शामिल किए जा रहे हैं।
यानि अब खाना सिर्फ पेट भरने के लिए नहीं, बल्कि पोषण देने के लिए बनाया जा रहा है।
जल्द आ सकती है ‘मुख्यमंत्री नाश्ता योजना’
सरकार की योजना है कि बच्चों को सुबह स्कूल आने पर नाश्ता भी दिया जाए, ताकि वे खाली पेट पढ़ाई न करें।
यह योजना अभी कैबिनेट में विचाराधीन है।
अगर लागू हुई तो:
- बच्चों की एकाग्रता और पढ़ाई में सुधार
- और हज़ारों महिलाओं को अतिरिक्त रोजगार मिलेगा।
महिलाओं को रोजगार – सिर्फ नौकरी नहीं, सम्मान
पंजाब में लगभग 44,000 महिलाएँ मिड-डे मील रसोइया (cook) के रूप में काम कर रही हैं।
ये महिलाएँ ज्यादातर:
- ग्रामीण इलाकों से हैं
- आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवारों से हैं
- कई विधवा या अकेली महिलाओं ने इसी काम से घर चलाया है
इनका मासिक मानदेय लगभग ₹3,000 है। यह रकम बड़ी न सही, पर स्टेबल इनकम और सामाजिक सम्मान देती है।
इन महिलाओं को बच्चे प्यार से “स्कूल माँ” कहते हैं।
हरजीत कौर की कहानी – गाँव की असली हीरो
मानसा जिले के एक सरकारी स्कूल में 58 साल की हरजीत कौर पिछले 27 सालों से मिड-डे मील बनाती हैं।
वे सुबह होने से पहले स्कूल पहुँच जाती हैं, और उसी प्यार से खाना बनाती हैं जैसे अपने घर के बच्चों के लिए।
उनके हाथों का राजमा-चावल आज भी गाँव वालों की यादों में बसता है।
जिन बच्चों को उन्होंने खाना खिलाया, वे आज:
- शिक्षक
- सरकारी कर्मचारी
- और माता-पिता बन चुके हैं
और आज भी उन्हें आशीर्वाद लेने वापस आते हैं।
चुनौतियाँ अभी भी हैं
- रसोइयों का मानदेय बढ़ाने की मांग जारी है
- ज्यादातर को बीमा, सुरक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएँ नहीं मिलतीं
- सरकार ने केंद्र सरकार को मानदेय बढ़ाने के लिए प्रस्ताव भेजा है
पंजाब में मिड-डे मील योजना सिर्फ एक भोजन योजना नहीं है।
यह:
-बच्चों का भविष्य
-परिवारों की आर्थिक मजबूती
-महिलाओं का सम्मान
-और समाज में एकजुटता
को मजबूत कर रही है।
मान सरकार द्वारा किए गए ये सुधार दिखाते हैं कि जब नीतियों में संवेदनशीलता और सोच हो, तो छोटे कदम भी बड़ा बदलाव लाते हैं।




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