आजादी के जश्न में कानपुर में सजे थे चांदी के:15 अगस्त 1947 को सूरज की पहली किरण के साथ सड़कों पर उतरे थे लोग; दो माह चला जश्न

आजादी के जश्न में कानपुर में सजे थे चांदी के:15 अगस्त 1947 को सूरज की पहली किरण के साथ सड़कों पर उतरे थे लोग; दो माह चला जश्न

आज स्वतंत्रता दिवस के 78वें वर्ष में हम प्रवेश कर रहे हैं। आज आजादी मिले 77 वर्ष पूरे हो गए। कानपुर में आज भी ऐसे लोग हैं जो जिन्हें आजादी की वो सुबह बखूबी याद है। समाजसेवी व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के पुत्र निन्नी पांडेय आजादी की उस सुबह को कभी नहीं भूल पाते हैं। दैनिक भास्कर से खास बातचीत में उन्होंने बताया कि रात में देश को आजाद होने की सूचना मिल गई थी। मेस्टेन रोड में रात में झंडा फहरा दिया गया था। वहीं सुबह भारत माता की जय के नारों से गलियां, सड़कें गूंज रही थीं। 15 अगस्त की सुबह सूर्य की पहली किरण के साथ पूरा शहर सड़क पर था। नयागंज में बनाया गया था चांदी का गेट
प्रभात फेरी के रूप में हम भी शामिल हुए, तब बहुत छोटे थे। हम भी नयागंज पहुंचे, जहां चांदी की सिल्लियों का बड़ा गेट बनाकर स्वतंत्रता का स्वागत किया जा रहा था। देर शाम तक घूमते रहे। स्वतंत्रता सेनानियों का चौतरफा अभिनंदन किया जा रहा था। करीब 2 माह तक आजादी का जश्न मनाया गया। इसके बाद पहली होली भी कानपुर में जमकर खेली गई। पाकिस्तान से वतन लौटे तो खुश हुए… विभाजन के समय लगभग 77 साल पूर्व भारत आए गुजैनी निवासी 84 साल के श्याम दास पहला जानी उस समय को याद कर आज भी सहम से जाते है। उन्होंने कहा कि उस समय मेरी उम्र लगभग 7 साल थी, लेकिन डर का वो मंजर आज भी रोंगटे खड़े कर देता है। लेकिन आजादी के वक्त यहां जश्न का माहौल था। हम भी उस खुशी में शामिल हुए। आगे बताया कि सिंध में रहकर पिता पेशुमल पहला जानी जमींदारी करते थे। उस समय जब दंग हुआ तो सभी लोग जान बचाकर इधर-उधर भाग रहे थे। हम चार भाइयों को लेकर पिता पेशुमल और मां स्टेशन पहुंचे। यहां पर सभी की तलाशी चल रही थी ताकि कोई पैसा सोनी ये सब लेकर न जा पाए। ऐसे में हमारे कोट में जो भी सोना चांदी था सब भर दिया गया। हम भाई लोग स्टेशन में इधर-उधर पुलिस की निगाहों से बचकर घूमते रहे। इसके बाद सबसे पहले अजमेर पहुंचे जहां दरगाह के सामने हम लोग एक खाली घर में रहने लगे। बड़े भाई गोवर्धन दास कर्फ्यू में लोगों के घर में दूध बांटने जाते थे, जो पैसे मिलते थे उन्हीं पैसों से वो सब का पेट भरते थे। 4 साल तक वहां किसी तरह गुजारे इसके बाद फिर कानपुर आ गए और जाजमऊ में किराए का घर लेकर पिता रहने लगे थे। वहां पर दो वर्ष बिता फिर पी रोड आ गए। देश में आए तो लगा जन्नत में आ गए जिस समय आजाद हुआ भारत तो मानों ऐसा लग रहा था जैसे किसी जन्नत में हम लोग आ गए हो। उम्र जरूर 7 साल थी, लेकिन आज भी याद है लोग हाथों में झंडा लिए बड़ी खुशी मना रहे थे। चारों तरफ का माहौल बिल्कुल बदला-बदला सा नजर आ रहा था। सब मार काट देख-देखकर परेशान थे, फिर अचान से ऐसा माहौल आया तो सभी की खुशी सातवें आसमान पर थी। आंखों में आंसू भर आते हैं… गोविंद नगर निवासी 85 साल के मोती लाल खेमानी आज भी 1947 के वह दृश्य याद कर उनकी आंखों में आंसू भर आते हैं। उन्होंने बताया कि पिता डेटा राम खेमका की सिंध में एक बड़ी कोठी थी। राशन की दुकानें थी और वहां के एक प्रतिष्ठित जमींदार थे। जिस समय कराची से पानी के जहाज से मुंबई पहुंचे तो लगा जैसे नया जीवन मिल गया हो, लेकिन जेब में एक पैसा नहीं था। बस एक बात की तसल्ली थी कि जान बच गई। फिर कानपुर आकर गोविंद नगर में बस गए, सोचा कानपुर मुंबई से थोड़ा सस्ता शहर है तो यहां काम चल जाएगा। ये सोच कर यहां पर आ गए। जगह-जगह था उत्साह का माहौल
जिस समय देश को आजादी मिली तो जगह-जगह एक उत्साह का माहौल दिख रहा था। काफी लंबे समय से जो लोग घरों में कैद थे वो भी खुद को आजाद महसूस कर रहे थे। गलियों से लोगों की टोली हाथों में तिरंगा लेकर निकलती थी। हर चेहरे पर एक अलग ही खुशी दिखती है, जिसे हम उत्साह भी कह सकते हैं। जिन्होंने मारकाट वाला मंजर देखा उनके लिए ये पल सबसे अच्छा था। लग रहा था कि अंदर से भय जा चुका है। हम लोग भी इस खुशी के पल को आपस में क्षेत्र में घूम-घूमकर मना रहे थे। आज स्वतंत्रता दिवस के 78वें वर्ष में हम प्रवेश कर रहे हैं। आज आजादी मिले 77 वर्ष पूरे हो गए। कानपुर में आज भी ऐसे लोग हैं जो जिन्हें आजादी की वो सुबह बखूबी याद है। समाजसेवी व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के पुत्र निन्नी पांडेय आजादी की उस सुबह को कभी नहीं भूल पाते हैं। दैनिक भास्कर से खास बातचीत में उन्होंने बताया कि रात में देश को आजाद होने की सूचना मिल गई थी। मेस्टेन रोड में रात में झंडा फहरा दिया गया था। वहीं सुबह भारत माता की जय के नारों से गलियां, सड़कें गूंज रही थीं। 15 अगस्त की सुबह सूर्य की पहली किरण के साथ पूरा शहर सड़क पर था। नयागंज में बनाया गया था चांदी का गेट
प्रभात फेरी के रूप में हम भी शामिल हुए, तब बहुत छोटे थे। हम भी नयागंज पहुंचे, जहां चांदी की सिल्लियों का बड़ा गेट बनाकर स्वतंत्रता का स्वागत किया जा रहा था। देर शाम तक घूमते रहे। स्वतंत्रता सेनानियों का चौतरफा अभिनंदन किया जा रहा था। करीब 2 माह तक आजादी का जश्न मनाया गया। इसके बाद पहली होली भी कानपुर में जमकर खेली गई। पाकिस्तान से वतन लौटे तो खुश हुए… विभाजन के समय लगभग 77 साल पूर्व भारत आए गुजैनी निवासी 84 साल के श्याम दास पहला जानी उस समय को याद कर आज भी सहम से जाते है। उन्होंने कहा कि उस समय मेरी उम्र लगभग 7 साल थी, लेकिन डर का वो मंजर आज भी रोंगटे खड़े कर देता है। लेकिन आजादी के वक्त यहां जश्न का माहौल था। हम भी उस खुशी में शामिल हुए। आगे बताया कि सिंध में रहकर पिता पेशुमल पहला जानी जमींदारी करते थे। उस समय जब दंग हुआ तो सभी लोग जान बचाकर इधर-उधर भाग रहे थे। हम चार भाइयों को लेकर पिता पेशुमल और मां स्टेशन पहुंचे। यहां पर सभी की तलाशी चल रही थी ताकि कोई पैसा सोनी ये सब लेकर न जा पाए। ऐसे में हमारे कोट में जो भी सोना चांदी था सब भर दिया गया। हम भाई लोग स्टेशन में इधर-उधर पुलिस की निगाहों से बचकर घूमते रहे। इसके बाद सबसे पहले अजमेर पहुंचे जहां दरगाह के सामने हम लोग एक खाली घर में रहने लगे। बड़े भाई गोवर्धन दास कर्फ्यू में लोगों के घर में दूध बांटने जाते थे, जो पैसे मिलते थे उन्हीं पैसों से वो सब का पेट भरते थे। 4 साल तक वहां किसी तरह गुजारे इसके बाद फिर कानपुर आ गए और जाजमऊ में किराए का घर लेकर पिता रहने लगे थे। वहां पर दो वर्ष बिता फिर पी रोड आ गए। देश में आए तो लगा जन्नत में आ गए जिस समय आजाद हुआ भारत तो मानों ऐसा लग रहा था जैसे किसी जन्नत में हम लोग आ गए हो। उम्र जरूर 7 साल थी, लेकिन आज भी याद है लोग हाथों में झंडा लिए बड़ी खुशी मना रहे थे। चारों तरफ का माहौल बिल्कुल बदला-बदला सा नजर आ रहा था। सब मार काट देख-देखकर परेशान थे, फिर अचान से ऐसा माहौल आया तो सभी की खुशी सातवें आसमान पर थी। आंखों में आंसू भर आते हैं… गोविंद नगर निवासी 85 साल के मोती लाल खेमानी आज भी 1947 के वह दृश्य याद कर उनकी आंखों में आंसू भर आते हैं। उन्होंने बताया कि पिता डेटा राम खेमका की सिंध में एक बड़ी कोठी थी। राशन की दुकानें थी और वहां के एक प्रतिष्ठित जमींदार थे। जिस समय कराची से पानी के जहाज से मुंबई पहुंचे तो लगा जैसे नया जीवन मिल गया हो, लेकिन जेब में एक पैसा नहीं था। बस एक बात की तसल्ली थी कि जान बच गई। फिर कानपुर आकर गोविंद नगर में बस गए, सोचा कानपुर मुंबई से थोड़ा सस्ता शहर है तो यहां काम चल जाएगा। ये सोच कर यहां पर आ गए। जगह-जगह था उत्साह का माहौल
जिस समय देश को आजादी मिली तो जगह-जगह एक उत्साह का माहौल दिख रहा था। काफी लंबे समय से जो लोग घरों में कैद थे वो भी खुद को आजाद महसूस कर रहे थे। गलियों से लोगों की टोली हाथों में तिरंगा लेकर निकलती थी। हर चेहरे पर एक अलग ही खुशी दिखती है, जिसे हम उत्साह भी कह सकते हैं। जिन्होंने मारकाट वाला मंजर देखा उनके लिए ये पल सबसे अच्छा था। लग रहा था कि अंदर से भय जा चुका है। हम लोग भी इस खुशी के पल को आपस में क्षेत्र में घूम-घूमकर मना रहे थे।   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर