सत्ता की चाहत में जयंत के कोर वोट-बैंक में दरार:आरएलडी का क्यों बिखर रहा कुनबा, बीजेपी से गठबंधन में किसे फायदा और नुकसान राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) की कमान तीसरी पीढ़ी के जयंत चौधरी के हाथों में है। वर्तमान में रालोद के 2 सांसद लोकसभा में हैं। खुद जयंत राज्यसभा में सांसद एवं केंद्र में मंत्री हैं। यूपी विधानसभा में पार्टी के 9 विधायक हैं। पार्टी के एक विधायक को यूपी मंत्रिमंडल में भी जगह मिली हुई है। वहीं, विधान परिषद में भी पार्टी के एक सदस्य हैं। सांसद-विधायकों की संख्या के लिहाज से रालोद प्रदेश की चौथी बड़ी पार्टी है। हालांकि, रालोद में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा। बीजेपी से गठबंधन और हाल ही में लोकसभा से पास किए गए वक्फ संशोधन बिल को लेकर मुस्लिम नेताओं में नाराजगी है। पिछले 1 साल में पार्टी के 7 बड़े चेहरे पार्टी को अलविदा कर चुके हैं। सवाल है कि 2027 विधानसभा चुनाव से पहले रालोद का कुनबा क्यों बिखर रहा? क्या रालोद के कोर वोटरों में शामिल जाट-मुस्लिम साथ छोड़ रहे? बीजेपी से गठबंधन का रालोद को फायदा हुआ या नुकसान? पढ़िए ये रिपोर्ट… सबसे तगड़ी चोट, शाहजेब रिजवी का इस्तीफा
रालोद के प्रदेश महासचिव शाहजेब रिजवी ने न सिर्फ पार्टी छोड़ी, जयंत पर ‘भटक जाने’ और मुसलमानों से विश्वासघात का सीधा आरोप लगाया। मेरठ के रसूलपुर निवासी रिजवी ने कहा- जयंत चौधरी ने उस समुदाय को धोखा दिया, जिसने उन्हें आंखों का तारा बना रखा था। वक्फ बिल पर समर्थन से हम आहत हैं। शाहजेब वही नेता हैं, जिन्होंने 2020 में एक आपत्तिजनक फेसबुक पोस्ट करने वाले युवक के सिर पर 51 लाख का इनाम घोषित कर दिया था। अब वे आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) से जुड़ गए हैं। शाहजेब ने इस्तीफा देते समय जयंत चौधरी पर सियासी हमला बोला था। शाहजेब ने कहा था कि उनके सभी विधायक वहां से जीते हैं, जहां मुस्लिमों का अच्छा खासा वोट बैंक है। 2027 के चुनाव में ही सब कुछ पता चल जाएगा। मुसलमानों को इन्हें एहसास कराना चाहिए कि हमने आप पर भरोसा किया, लेकिन आप हमें छोड़कर चले गए। मोहम्मद जकी का आरोप- सत्ता मोह में रालोद भटक गई
हापुड़ के जिला महासचिव भी वक्फ संशोधन विधेयक के समर्थन करने के बाद पार्टी से अलग हो गए। उन्होंने जयंत चौधरी के रुख पर नाराजगी जताते हुए कहा- रालोद से भारी मन से इस्तीफा देने का निर्णय लिया। यह निर्णय मेरे लिए आसान नहीं था लेकिन, पार्टी के नेतृत्व, नीतियों और आपने जिस तरह से मुसलमानों व अन्य वंचित समुदायों की उपेक्षा की, उसके बाद यह मेरा नैतिक कर्तव्य बन गया था। रालोद पार्टी का दावा था कि वह सभी समुदायों को साथ लेकर चलेगी, लेकिन आज पार्टी सत्ता के मोह में सब कुछ भूल चुकी है। रूहेलखंड में शमशाद अंसारी का है वर्चस्व
रालोद के रूहेलखंड प्रांत के क्षेत्रीय उपाध्यक्ष रहे शमशाद अंसारी ने सैकड़ों समर्थकों के साथ पार्टी से इस्तीफा दिया था। वे भी वक्फ विधेयक के समर्थन से नाराज थे। शमशाद अंसारी समाजवादी पार्टी की पूर्व चेयरपर्सन रुखसाना परवीन के पति हैं। उन्होंने इस्तीफा देते वक्त कहा था कि जयंत चौधरी की धर्मनिरपेक्ष राजनीति के कारण बड़ी संख्या में लोग रालोद से जुड़े थे। लेकिन, वक्फ संशोधन विधेयक पर पार्टी के रुख से मुस्लिम समाज खुद को ठगा महसूस कर रहा है। अब पढ़िए बीजेपी से गठबंधन के बाद पार्टी छोड़ने वाले नेताओं के बारे में
लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी से गठबंधन के बाद पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शाहिद सिद्दीकी ने इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने अपने इस्तीफे में लिखा था- मैं जयंत चौधरी जी और RLD में अपने साथियों का आभारी हूं। आज जब भारत का संविधान और लोकतांत्रिक ढांचा खतरे में है, तो खामोश रहना पाप है। मैं जयंत जी का आभारी हूं, पर भारी मन से RLD से दूरी बनाने के लिए मजबूर हूं। भारत की एकता, अखंडता विकास और भाईचारा सर्वप्रिय है। इसे बचाना हर नागरिक की जिम्मेदारी और धरम है। शाहिद, जयंत के पिता अजीत सिंह के करीबी थे। वे रालोद में 6 साल रहे। जबकि पार्टी के युवा शाखा के प्रदेश प्रवक्ता रोहित जाखड़ ने भाजपा के पूर्व सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह के बेटे को लोकसभा में केसरगंज से टिकट मिलने से नाराज होकर इस्तीफा दिया था। तब खिलाड़ियों ने ब्रजभूषण के खिलाफ कई गंभीर आरोप लगाते हुए मोर्चा खोल रखा था। उन्होंने इस्तीफा देते हुए कहा था- भाजपा बेटियों की अस्मिता से खिलवाड़ कर रही है। वे राष्ट्रीय लोकदल की नीतियों से आहत हैं। रालोद के राष्ट्रीय कैंपेन इंचार्ज ने मोदी को तानाशाह बता पार्टी छोड़ी थी
रालोद के राष्ट्रीय कैंपेन इंचार्ज प्रशांत कनौजिया ने भी लोकसभा 2024 में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘तानाशाह’ बताते हुए पार्टी से इस्तीफा देकर कांग्रेस में शामिल हो गए थे। उन्होंने तब सोशल मीडिया पर इस्तीफे की कॉपी पोस्ट करते हुए लिखा था- मुझे नरेंद्र मोदी में श्रद्धेय चौधरी चरण सिंह नहीं, बल्कि एक क्रूर तानाशाह नजर आता है। 700 किसानों की शहादत के लिए जिम्मेदार, लखीमपुर खीरी में गाड़ी से कुचलने वाले और महिला पहलवानों को प्रताड़ित करने वालों का साथ दिया तो मानवता के साथ देश के साथ गद्दारी होगी। उन्होंने जयंत चौधरी को कम उम्र में बड़ी जिम्मेदारी देने के लिए धन्यवाद दिया था। वहीं, रालोद के राष्ट्रीय प्रवक्ता रहे भूपेंद्र चौधरी ने भी मुस्लिम समुदाय की अनदेखी का आरोप लगाते हुए इस्तीफा दिया था। उन्होंने इस्तीफे में लिखा था- मुस्लिमों के कारण रालोद में जान पड़ी थी। लेकिन भाजपा से गठबंधन कर उन्हें धोखा दिया गया। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में परखेगी रालोद खुद की ताकत
रालोद के प्रवक्ता अनिल दुबे कहते हैं- पंचायत चुनाव पूरी तरह से कार्यकर्ताओं का चुनाव होता है। ये चुनाव किसी सिंबल पर नहीं होते। पार्टी के विस्तार के लिए अभी सदस्यता अभियान चलाया जा रहा है। जो कार्यकर्ता अधिक संख्या में सदस्य बनाएगा, उसे पंचायत चुनाव में मौका दिया जाएगा। पार्टी का बेस पश्चिमी यूपी है, लेकिन हम पूर्वांचल, बुंदेलखंड और मध्य यूपी में भी मजबूती से चुनाव लड़ेंगे। राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी ने भी कार्यकर्ताओं को इसके संकेत दिए हैं। हालांकि अंतिम निर्णय वही लेंगे। सियासी जानकारों का कहना है कि रालोद पंचायत चुनाव के बहाने खुद की ताकत को परखना चाहती है। इसी के आधार पर 2027 में वह बीजेपी के साथ सीटों की मोलभाव करने की स्थिति में होगी। ये भी पता चल जाएगा कि पार्टी के साथ उसके कोर वोटर माने जाने वाले मुस्लिम और जाट में किसने कितना साथ दिया। सपा के साथ गठबंधन में 8 सीटों पर रालोद को मिली थी जीत
रालोद को 2022 यूपी विधानसभा चुनाव में कुल 8 सीटें मिलीं, जबकि उसने 33 सीटों पर सपा के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ा था। रालोद-सपा गठबंधन ने पश्चिमी यूपी की शामली, मुरादाबाद सीटों पर सौ फीसदी और मेरठ-मुजफ्फरनगर बेल्ट में शानदार प्रदर्शन किया था। पश्चिमी यूपी के 24 जिलों में 126 सीटें हैं। 2017 में बीजेपी की 100 सीटें आई थीं। 2022 में बीजेपी की 85 सीटें आईं। हालांकि जो लोग सपा-रालोद गठबंधन के लिए 100 फीसदी सीटें जीतने की उम्मीद कर रहे थे, उन्हें परिणाम से झटका लगा। रालोद-सपा गठबंधन को 41 सीटें ही मिलीं। इसमें रालोद की सिर्फ 8 सीटें थीं। रालोद ने बाद में एक सीट उपचुनाव में जीता था। पश्चिमी यूपी में 26.21% मुसलमान वोटर्स निर्णायक
अब रालोद का सपा से गठबंधन टूट चुका है। बीजेपी के साथ गठबंधन में रालोद ने अपने कोटे की दोनों लोकसभा सीटें जीत ली हैं। लेकिन, वक्फ संशोधन विधेयक के बाद मुस्लिम वोटरों में काफी नाराजगी है। ऐसे में 2027 में रालोद के समीकरण गड़बड़ा सकते हैं। पश्चिमी यूपी में 26.21 फीसदी आबादी मुसलमानों की है। कई जिले में मुस्लिम आबादी 30 से 50% तक है। इसमें मुरादाबाद में 50.8%, रामपुर में 50.6%, बिजनौर में 43.0% सहारनपुर में 42.0%, मुजफ्फरनगर में 41.3%, अमरोहा में 40.8%, बरेली में 34.5% और मेरठ में 34.4% आबादी मुस्लिमों की है। सपा की वजह से जो मुस्लिम वोट बैंक रालोद को विधानसभा चुनाव में मिला था, वो अब भाजपा गठबंधन और वक्फ संशोधन विधेयक के बाद छिटक सकता है। मुजफ्फरनगर दंगों में छिटका, 2022 में रालोद के साथ वापस जुड़ा जाट वोट
अब बात करते हैं जाट वोट बैंक की। पश्चिमी यूपी की 14 लोकसभा सीटों और 76 विधानसभा सीटों पर जाट वोटर्स प्रभावशाली हैं। 76 सीटों पर 15 फीसदी से ज्यादा और 24 सीटों पर 30 फीसदी से ज्यादा जाट वोटर हैं। मुजफ्फरनगर दंगों के बाद बीजेपी ने 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में वेस्ट यूपी में बंपर सीटें जीती थीं। जाट वोट बैंक रालोद से छिटक कर बहुतायत में बीजेपी की ओर ट्रांसफर हो गया था। हालांकि 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले किसान बिल के चलते जाट वोट बैंक एक बार फिर बंटकर रालोद की ओर आया। सपा के साथ गठबंधन में मुस्लिम-जाट समीकरण से रालोद को 8 सीटों पर जीत मिली। अब RLD के जाट-मुस्लिम समीकरण का क्या होगा
यूपी में सपा, बसपा और रालोद सिर्फ अपने-अपने जातीय आधार वाले वोटों के साथ प्लस मुस्लिम वोटों के इर्द-गिर्द पूरी राजनीति करती रही हैं। रालोद पूरी तरह पश्चिमी यूपी आधारित पार्टी है। उसके सियासी आधार भी जाट और मुस्लिम वोटों पर टिका है। पश्चिम यूपी की सियासत में जाट, मुस्लिम और दलित काफी अहम भूमिका अदा करते हैं। रालोद का कोर वोट बैंक जाट-मुस्लिम माना जाता है। अब मुस्लिम वोटर छिटक चुका है। अकेले जाट वोटों के सहारे जयंत चौधरी कुछ खास नहीं कर सकते। पिछले लोकसभा से ऐन पहले रालोद ने भाजपा से गठबंधन किया, लेकिन कार्यकर्ताओं के बीच वो अंडरस्टैंडिंग नहीं दिखी थी। यही कारण रहा था कि पहले चरण में जिन 8 सीटों पर चुनाव हुआ था, उसमें से छह सीट भाजपा गठबंधन हारी थी। बिजनौर रालोद के खाते में और पीलीभीत सीट भाजपा ने जीती थी। बाकी सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, कैराना, मुरादाबाद, रामपुर सीट पर सपा-कांग्रेस ने कब्जा कर लिया था। नगीना सीट पर आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर आजाद ने जीत दर्ज की थी। मुस्लिम मतदाताओं ने इंडी गठबंधन के पक्ष में एकतरफा मतदान किया था। जिस मुजफ्फरनगर सीट पर 2019 में बीजेपी के संजीव बालियान ने रालोद, सपा और बसपा के समर्थन के बावजूद चौधरी अजित सिंह को 6 हजार से अधिक वोटों से हरा दिया था। उस पर 2024 में बीजेपी हार गई। इस बार रालोद साथ आई तो माना जा रहा था कि संजीव बालियान आराम से यह सीट जीत जाएंगे। लेकिन नतीजा आया तो हरेंद्र मलिक चुनाव जीत गए। भाजपा-रालोद गठबंधन से दोनों फायदे में
पश्चिमी यूपी की राजनीति पर बारीक नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र प्रताप राणा के मुताबिक, 2027 के विधानसभा चुनाव में रालोद के पास कोई ऐसा कोई विकल्प नहीं बचा कि वह बीजेपी गठबंधन से बाहर होगा। रालोद का कोर वोटर किसान, जिसमें बहुसंख्यक जाट शामिल हैं और मुसलमान थे। बीजेपी के साथ गठबंधन के चलते मुसलमान पूरी तरह से छिटक गया है। हालांकि, रालोद ये कह सकती है कि उसके दो विधायक मुस्लिम हैं। पर उन्हें भी क्षेत्र में असहज स्थिति का सामना करना पड़ता है। वक्फ संशोधन बिल का समर्थन करने से मुस्लिम वोटरों की नाराजगी और बढ़ चुकी है। मुस्लिम वोटरों के खिसकने से रालोद का अब इंडी गठबंधन या सपा के साथ आने की संभावना नहीं बची है। जाट वोटर जरूर एकजुट हुआ है। पहले जाट वोटरों का एक हिस्सा बीजेपी में और एक रालोद में बंटा हुआ था। लेकिन, जाट समुदाय खेती-बाड़ी से जुड़ा है। रालोद गन्ने का भुगतान या कीमत नहीं बढ़वा पाया। इसे लेकर उसके नेताओं को भी असहज स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। जहां तक रालोद का सवाल है, तो उसके पास 2027 में एनडीए गठबंधन में ही चुनाव लड़ने का विकल्प बचा है। सीटों में फेरबदल हो सकता है। जैसे बागपत लोकसभा क्षेत्र में कई सीटें बीजेपी के पास है। इसकी गुंजाइश कम है कि बीजेपी वहां की सीटें गठबंधन में रालोद को देगी। वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र प्रताप राणा कहते हैं- बीजेपी से गठबंधन का रालोद को फायदा ये मिला कि मोदी कैबिनेट और यूपी सरकार में उसे मंत्री पद मिल गया। उसके दो मेंबर आयोग के अध्यक्ष हैं। एक एमएलसी का पद मिल गया। पर रालोद का जो जलवा विपक्ष में रहते हुए था, वो अब नहीं रहा। इसका अंदाज पिछले दिनों रालोद कोटे से यूपी सरकार में मंत्री अनिल कुमार की एक समीक्षा बैठक से लगा सकते हैं। मंत्री अनिल कुमार बकाया गन्ना भुगतान का रिव्यू करने पहुंचे तो बैठक में बागपत के डीएम और एसएसपी ही नहीं पहुंचे। चीनी मिलों के जीएम तक नहीं पहुंचे। इसके बाद उन्होंने बैठक अगले दिन के लिए टाल दिया। पर बाद में वे खुद इस बैठक में नहीं पहुंचे। अंदरखाने की बात ये है कि गन्ना मंत्री लक्ष्मीनारायण ने इसके लिए मना कर दिया था। जबकि मलकपुर चीनी मिल पर किसानों का 90% (लगभग 450 करोड़ से अधिक) बकाया है। इसे लेकर किसानों में नाराजगी है, जो रालोद का कोर वोटर हैं। हालांकि जाट अभी तक साइलेंट हैं। इस गठबंधन से बीजेपी को ये फायदा हुआ कि किसान आंदोलन के बाद जो एंटी किसान बीजेपी का माहौल था। रालोद से गठबंधन के बाद पश्चिमी यूपी में वो साइलेंट हो गया। किसान आंदोलन को जाट ही लीड करते थे। रालोद से गठबंधन के चलते किसान अब साइलेंट हैं। यही इस गठबंधन की मजबूती है। ————————- ये खबर भी पढ़ें… जो मेरा विरोध करेगा, भगवान उसे दंड देंगे, गोंडा में बृजभूषण बोले- सच सामने आया; यौन शोषण में बरी होने पर किए हनुमानगढ़ी के दर्शन नाबालिग पहलवान से यौन शोषण मामले में बरी होने के बाद बृजभूषण सिंह पहली बार अयोध्या पहुंचे। एयरपोर्ट पर 1000 से ज्यादा कार्यकर्ताओं ने ढोल-नगाड़ों के साथ उनका स्वागत किया। इसके बाद वे हनुमानगढ़ी पहुंचे और हनुमान जी के दर्शन-पूजन किए। बृजभूषण बोले- मैंने कहा था कि अगर मेरे ऊपर लगे आरोप साबित हो जाते हैं, तो मैं खुद फांसी पर लटक जाऊंगा। कोर्ट के फैसले ने मेरी उस बात को सही साबित कर दिया। भूपेंद्र हुड्डा 11 बजे तक मुख्यमंत्री बनने वाले थे, लेकिन संत्री भी नहीं बन पाए। आम आदमी पार्टी का तो सत्यानाश हो गया। पढ़ें पूरी खबर