वाराणसी कचहरी ब्लास्ट के आज 17 साल पूरे:कनपटी में आज भी छर्रे धंसे; घायलों को सरकार से नहीं मिली मदद, सिक्योरिटी में अब भी लूपहोल

वाराणसी कचहरी ब्लास्ट के आज 17 साल पूरे:कनपटी में आज भी छर्रे धंसे; घायलों को सरकार से नहीं मिली मदद, सिक्योरिटी में अब भी लूपहोल

वाराणसी कोर्ट और कलेक्ट्रेट परिसर में सीरियल ब्लास्ट के आज 17 साल पूरे हो गए। इस आतंकी हमले में तीन अधिवक्ता समेत 9 लोगों की मौत हुई थी, 50 से अधिक घायल हुए थे। लेकिन आज भी घायलों को कोई सहायता नहीं मिली, न ही कोर्ट में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था हो सकी। कचहरी की सुरक्षा को लेकर तत्कालीन क्षेत्राधिकारी संसार सिंह ने सिक्योरिटी प्लान बनाकर पुलिस अधिकारियों से लेकर शासन तक रिपोर्ट भेजी, लेकिन फाइल कहीं किसी कोने में आज भी दबी ही है। दैनिक भास्कर ने कचहरी और कलेक्ट्रेट की सुरक्षा-व्यवस्था की पड़ताल की तो कई लूपहोल सामने आए। पहले उनसे मिलिए, जिनकी कनपटी में छर्रे आज भी धंसे हैं वो दोपहर याद करते हुए आज भी एडवोकेट वशिष्ठ नारायण मिश्र की आंखें डबडबा जाती हैं। 17 साल से कनपटी में छर्रे धंसे हैं। अब तक सरकार से उन्हें कोई मदद नहीं मिली। वशिष्ठ नारायण मिश्र बताते हैं कि 23 नवंबर 2007 को मैं अपने साथियों के साथ चौकी पर बैठा था। कचहरी में अजय राय अपने भाई की हत्या के मामले में गवाही देने आए थे। सिविल कोर्ट की तरफ जब बम धमाके की आवाज सुनी तो सबको लगा कि अजय राय पर मुख्तार अंसारी गैंग ने हमला बोल दिया है। सभी उसी दिशा में भागे जिधर से धमाके की आवाज आई। इसी बीच मैं भी अपने साथियों के साथ जाने के लिए आगे बढ़े। कुछ कदम आगे बढ़ा तो मेरे नजदीक भी एक ब्लास्ट हुआ। इसके बाद कुछ याद नहीं कि क्या हुआ। महीनेभर बाद कोमा से बाहर निकला तो खुद को हॉस्पिटल के बेड पर पाया। डॉक्टरों ने बताया कि मेरी कनपटी के आसपास छर्रे धंसे हैं, जिन्हें निकालना बहुत मुश्किल है। छर्रे के चलते बोलने में भी दिक्कत होती है। छड़ी के सहारे चलने को मजबूर ब्लास्ट में वशिष्ठ नारायण के तीन अधिवक्ता साथी मारे गए। वशिष्ठ नारायण आज अपने दोनों पैरों पर ठीक से खड़े नहीं हो पाते है। चलने के लिए छड़ी का सहारा लेना पड़ता है। कहते हैं कि पैर आज भी सुन्न हैं। किसी की मदद के बिना न खड़ा हो पाता हूं न बैठ पाता हूं। इलाज में लाखों खर्च हुए, सरकार की तरफ से कोई आर्थिक मदद नहीं मिली। हर साल सीरियल ब्लास्ट की बरसी पर कुछ अधिवक्ता मित्र सहायता राशि देते हैं, जिससे बड़ी मदद मिल जाती है। ब्लास्ट में अधिवक्ता भोलानाथ सिंह, ब्रह्मदेव शर्मा, बुधिराम समेत 9 लोग मारे गए थे। अधिवक्ता साथियों के चेहरे आज भी जेहन में घूमते हैं। सबने सोचा मुख्तार ने कराया हमला
कचहरी में दो ब्लास्ट हुए तो लोगों ने समझा कि माफिया मुख्तार अंसारी ने अजय राय पर हमला कराया है। जिस जगह पहला धमाका हुआ वहां से कुछ ही दूरी पर अजय राय खड़े थे। अजय राय ने भी उस समय यही बयान दिया कि हमला मुख्तार अंसारी ने कराया है। इस मामले में सुरक्षा एजेंसियों ने भी मुख्तार अंसारी को लेकर जांच की लेकिन उसका कोई हाथ नहीं था। लखनऊ- अयोध्या दहली, तब समझ आया आतंकियों ने किए सीरियल ब्लास्ट
वाराणसी के बाद लखनऊ और अयोध्या (तब फैजाबाद) की कचहरी में थोड़े अंतराल पर जब ब्लास्ट हुए तब सरकार और आम नागरिकों को समझ आया कि ये आतंकी घटना है। आतंकियों ने सीरियल ब्लास्ट की वारदात को अंजाम दिया है। हालांकि अजय राय तब भी यही कहते रहे कि हमला उन पर ही हुआ है, मुख्तार ने ही सीरियल ब्लास्ट कराए हैं ताकि उस पर शक न जाए। वकीलों ने बोला था हमला, इसलिए आतंकियों ने लिया बदला
एटीएस और सुरक्षा एजेंसियों की मानें तो कचहरी विस्फोट के तार संकटमोचन, कैंट रेलवे स्टेशन पर हुए ब्लास्ट से जुड़ा था। दरअसल, 07 मार्च 2006 को वाराणसी के संकटमोचन मंदिर और कैंट रेलवे स्टेशन पर ब्लास्ट हुआ था जिसमे 18 काल के गाल में समा गए थे और 76 से अधिक लोग घायल हुए थे। इस मामले में पुलिस ने प्रयागराज के फूलपुर निवासी वलीउल्लाह को गिरफ़्तार किया था। उस पर अपने साथियों जकारिया, मुस्तकीम, जुबेर और बशीरुद्दीन के साथ मिलकर संकटमोचन, कैंट स्टेशन पर ब्लास्ट करने का आरोप था। पांच अप्रैल 2006 को वलीउल्लाह लखनऊ से गिरफ्तार हुआ। पूछताछ में जानकारी हुई कि वर्ष 2005 में उसने ही साथियों के साथ मिलकर दशाश्वमेध घाट पर विस्फोट किया था जिसे पुलिस उस समय सिलेंडर ब्लास्ट बता रही थी। 20 अप्रैल को पुलिस वलीउल्लाह को वाराणसी कचहरी पहुंची जहां वकीलों ने उसकी पिटाई करने के साथ ही केस लड़ने से इनकार कर दिया था। कहते है कि पाकिस्तान में प्रशिक्षण पाए आतंकी वलीउल्लाह की पिटाई से आतंकी संगठन बौखला गए थे और एक साथ लखनऊ, वाराणसी और अयोध्या की कचहरी में सीरियल ब्लास्ट किया। गिरफ्तार वलीउल्लाह के केस को गाजियाबाद ट्रांसफर कर दिया गया था। वलीउल्लाह की पिटाई से बौखलाए आतंकी संगठन हुजी ने वाराणसी, लखनऊ और अयोध्या में सीरियल ब्लास्ट की घटना को अंजाम दिया। वलीउल्लाह को फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। अब समझिए सुरक्षा- व्यवस्था का हाल
कहना गलत नहीं कि पांच बार आतंकी घटना झेल चुके वाराणसी की सुरक्षा महादेव के हाथ में ही है। 17 साल बाद भी यहां कलेक्ट्रेट और कचहरी परिसर की सुरक्षा भगवान भरोसे ही है। कचहरी के गेट 1,2,3 की सुरक्षा सुबह से लेकर शाम तक ठीक रहती है। तीनों गेट पर डोर फ्रेम मेटल डिटेक्टर के साथ ही मौजूद सुरक्षाकर्मी हैंड मेटल डिटेक्टर लिए खड़े रहते हैं लेकिन जिला पंचायत और सेंट्रल बार वाले रास्ते से कोई भी शख्स बिना जांच-पड़ताल के प्रवेश कर सकता है। फिर काल न बन जाए साइकिल, बाइक
कचहरी में हुए ब्लास्ट में साइकिल की भूमिका सामने आई थी। मुख्तार उर्फ राजू और सज्जाद ने साइकिल में टिफिन बम को प्लांट किया था। इसके लिए आतंकी कश्मीर से जौनपुर आए थे। आतंकियों को शरण के आरोप में जौनपुर के अब्दुल खालिद को गिरफ्तार किया गया था। कचहरी में सीरियल ब्लास्ट की घटना में 10 आतंकियों के नाम सामने आए थे। इनमें से आतंकी संगठन हूजी के कमांडर हम्मास मारा जा चुका है जबकि अन्य की तलाश आज भी जारी है। आतंकियों ने कचहरी परिसर की ढुलमुल सुरक्षा व्यवस्था का फायदा उठाया था। बिना जांच के वे बड़ी आसानी से साइकिल में बम प्लांट करके प्रवेश कर गए थे। आज भी कलेक्ट्रेट परिसर में बिना जांच के वाहन अंदर प्रवेश करते हैं और पूर्व सैनिक कल्याण बोर्ड, पुलिस कमिश्नर ऑफिस के आसपास गाड़ियां खड़ी करते हैं। 60 कैमरों से निगरानी, बम स्क्वायड अलर्ट नहीं
कचहरी और कलेक्ट्रेट परिसर में 60 कैमरे, चार डीएफएमडी लगे हैं। लेकिन, ये सुरक्षा व्यवस्था के लिए नाकाफी हैं। बम स्क्वायड सुबह कचहरी खुलने के समय आता है और थोड़ी देर में चला जाता है। पुलिस कमिश्नरेट बनने के बाद से परिसर में होने वाली रैंडम चेकिंग तक बंद कर दी गई है। यूपी में हुए कुछ ब्लास्ट वाराणसी कोर्ट और कलेक्ट्रेट परिसर में सीरियल ब्लास्ट के आज 17 साल पूरे हो गए। इस आतंकी हमले में तीन अधिवक्ता समेत 9 लोगों की मौत हुई थी, 50 से अधिक घायल हुए थे। लेकिन आज भी घायलों को कोई सहायता नहीं मिली, न ही कोर्ट में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था हो सकी। कचहरी की सुरक्षा को लेकर तत्कालीन क्षेत्राधिकारी संसार सिंह ने सिक्योरिटी प्लान बनाकर पुलिस अधिकारियों से लेकर शासन तक रिपोर्ट भेजी, लेकिन फाइल कहीं किसी कोने में आज भी दबी ही है। दैनिक भास्कर ने कचहरी और कलेक्ट्रेट की सुरक्षा-व्यवस्था की पड़ताल की तो कई लूपहोल सामने आए। पहले उनसे मिलिए, जिनकी कनपटी में छर्रे आज भी धंसे हैं वो दोपहर याद करते हुए आज भी एडवोकेट वशिष्ठ नारायण मिश्र की आंखें डबडबा जाती हैं। 17 साल से कनपटी में छर्रे धंसे हैं। अब तक सरकार से उन्हें कोई मदद नहीं मिली। वशिष्ठ नारायण मिश्र बताते हैं कि 23 नवंबर 2007 को मैं अपने साथियों के साथ चौकी पर बैठा था। कचहरी में अजय राय अपने भाई की हत्या के मामले में गवाही देने आए थे। सिविल कोर्ट की तरफ जब बम धमाके की आवाज सुनी तो सबको लगा कि अजय राय पर मुख्तार अंसारी गैंग ने हमला बोल दिया है। सभी उसी दिशा में भागे जिधर से धमाके की आवाज आई। इसी बीच मैं भी अपने साथियों के साथ जाने के लिए आगे बढ़े। कुछ कदम आगे बढ़ा तो मेरे नजदीक भी एक ब्लास्ट हुआ। इसके बाद कुछ याद नहीं कि क्या हुआ। महीनेभर बाद कोमा से बाहर निकला तो खुद को हॉस्पिटल के बेड पर पाया। डॉक्टरों ने बताया कि मेरी कनपटी के आसपास छर्रे धंसे हैं, जिन्हें निकालना बहुत मुश्किल है। छर्रे के चलते बोलने में भी दिक्कत होती है। छड़ी के सहारे चलने को मजबूर ब्लास्ट में वशिष्ठ नारायण के तीन अधिवक्ता साथी मारे गए। वशिष्ठ नारायण आज अपने दोनों पैरों पर ठीक से खड़े नहीं हो पाते है। चलने के लिए छड़ी का सहारा लेना पड़ता है। कहते हैं कि पैर आज भी सुन्न हैं। किसी की मदद के बिना न खड़ा हो पाता हूं न बैठ पाता हूं। इलाज में लाखों खर्च हुए, सरकार की तरफ से कोई आर्थिक मदद नहीं मिली। हर साल सीरियल ब्लास्ट की बरसी पर कुछ अधिवक्ता मित्र सहायता राशि देते हैं, जिससे बड़ी मदद मिल जाती है। ब्लास्ट में अधिवक्ता भोलानाथ सिंह, ब्रह्मदेव शर्मा, बुधिराम समेत 9 लोग मारे गए थे। अधिवक्ता साथियों के चेहरे आज भी जेहन में घूमते हैं। सबने सोचा मुख्तार ने कराया हमला
कचहरी में दो ब्लास्ट हुए तो लोगों ने समझा कि माफिया मुख्तार अंसारी ने अजय राय पर हमला कराया है। जिस जगह पहला धमाका हुआ वहां से कुछ ही दूरी पर अजय राय खड़े थे। अजय राय ने भी उस समय यही बयान दिया कि हमला मुख्तार अंसारी ने कराया है। इस मामले में सुरक्षा एजेंसियों ने भी मुख्तार अंसारी को लेकर जांच की लेकिन उसका कोई हाथ नहीं था। लखनऊ- अयोध्या दहली, तब समझ आया आतंकियों ने किए सीरियल ब्लास्ट
वाराणसी के बाद लखनऊ और अयोध्या (तब फैजाबाद) की कचहरी में थोड़े अंतराल पर जब ब्लास्ट हुए तब सरकार और आम नागरिकों को समझ आया कि ये आतंकी घटना है। आतंकियों ने सीरियल ब्लास्ट की वारदात को अंजाम दिया है। हालांकि अजय राय तब भी यही कहते रहे कि हमला उन पर ही हुआ है, मुख्तार ने ही सीरियल ब्लास्ट कराए हैं ताकि उस पर शक न जाए। वकीलों ने बोला था हमला, इसलिए आतंकियों ने लिया बदला
एटीएस और सुरक्षा एजेंसियों की मानें तो कचहरी विस्फोट के तार संकटमोचन, कैंट रेलवे स्टेशन पर हुए ब्लास्ट से जुड़ा था। दरअसल, 07 मार्च 2006 को वाराणसी के संकटमोचन मंदिर और कैंट रेलवे स्टेशन पर ब्लास्ट हुआ था जिसमे 18 काल के गाल में समा गए थे और 76 से अधिक लोग घायल हुए थे। इस मामले में पुलिस ने प्रयागराज के फूलपुर निवासी वलीउल्लाह को गिरफ़्तार किया था। उस पर अपने साथियों जकारिया, मुस्तकीम, जुबेर और बशीरुद्दीन के साथ मिलकर संकटमोचन, कैंट स्टेशन पर ब्लास्ट करने का आरोप था। पांच अप्रैल 2006 को वलीउल्लाह लखनऊ से गिरफ्तार हुआ। पूछताछ में जानकारी हुई कि वर्ष 2005 में उसने ही साथियों के साथ मिलकर दशाश्वमेध घाट पर विस्फोट किया था जिसे पुलिस उस समय सिलेंडर ब्लास्ट बता रही थी। 20 अप्रैल को पुलिस वलीउल्लाह को वाराणसी कचहरी पहुंची जहां वकीलों ने उसकी पिटाई करने के साथ ही केस लड़ने से इनकार कर दिया था। कहते है कि पाकिस्तान में प्रशिक्षण पाए आतंकी वलीउल्लाह की पिटाई से आतंकी संगठन बौखला गए थे और एक साथ लखनऊ, वाराणसी और अयोध्या की कचहरी में सीरियल ब्लास्ट किया। गिरफ्तार वलीउल्लाह के केस को गाजियाबाद ट्रांसफर कर दिया गया था। वलीउल्लाह की पिटाई से बौखलाए आतंकी संगठन हुजी ने वाराणसी, लखनऊ और अयोध्या में सीरियल ब्लास्ट की घटना को अंजाम दिया। वलीउल्लाह को फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। अब समझिए सुरक्षा- व्यवस्था का हाल
कहना गलत नहीं कि पांच बार आतंकी घटना झेल चुके वाराणसी की सुरक्षा महादेव के हाथ में ही है। 17 साल बाद भी यहां कलेक्ट्रेट और कचहरी परिसर की सुरक्षा भगवान भरोसे ही है। कचहरी के गेट 1,2,3 की सुरक्षा सुबह से लेकर शाम तक ठीक रहती है। तीनों गेट पर डोर फ्रेम मेटल डिटेक्टर के साथ ही मौजूद सुरक्षाकर्मी हैंड मेटल डिटेक्टर लिए खड़े रहते हैं लेकिन जिला पंचायत और सेंट्रल बार वाले रास्ते से कोई भी शख्स बिना जांच-पड़ताल के प्रवेश कर सकता है। फिर काल न बन जाए साइकिल, बाइक
कचहरी में हुए ब्लास्ट में साइकिल की भूमिका सामने आई थी। मुख्तार उर्फ राजू और सज्जाद ने साइकिल में टिफिन बम को प्लांट किया था। इसके लिए आतंकी कश्मीर से जौनपुर आए थे। आतंकियों को शरण के आरोप में जौनपुर के अब्दुल खालिद को गिरफ्तार किया गया था। कचहरी में सीरियल ब्लास्ट की घटना में 10 आतंकियों के नाम सामने आए थे। इनमें से आतंकी संगठन हूजी के कमांडर हम्मास मारा जा चुका है जबकि अन्य की तलाश आज भी जारी है। आतंकियों ने कचहरी परिसर की ढुलमुल सुरक्षा व्यवस्था का फायदा उठाया था। बिना जांच के वे बड़ी आसानी से साइकिल में बम प्लांट करके प्रवेश कर गए थे। आज भी कलेक्ट्रेट परिसर में बिना जांच के वाहन अंदर प्रवेश करते हैं और पूर्व सैनिक कल्याण बोर्ड, पुलिस कमिश्नर ऑफिस के आसपास गाड़ियां खड़ी करते हैं। 60 कैमरों से निगरानी, बम स्क्वायड अलर्ट नहीं
कचहरी और कलेक्ट्रेट परिसर में 60 कैमरे, चार डीएफएमडी लगे हैं। लेकिन, ये सुरक्षा व्यवस्था के लिए नाकाफी हैं। बम स्क्वायड सुबह कचहरी खुलने के समय आता है और थोड़ी देर में चला जाता है। पुलिस कमिश्नरेट बनने के बाद से परिसर में होने वाली रैंडम चेकिंग तक बंद कर दी गई है। यूपी में हुए कुछ ब्लास्ट   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर