यूपी के 14 बड़े चेहरे, जिनकी राजनीति खत्म:बृजभूषण ने बेटे को सौंपी विरासत, मेनका गांधी 35 साल बाद चुनाव हारीं…पढ़िए वजह इस बार लोकसभा चुनाव में हारने या फिर टिकट कटने के बाद यूपी के 14 बड़े सियासी चेहरों का राजनीतिक करियर खत्म होने की कगार पर पहुंच गया है। टिकट कटने वालों की लिस्ट में बृजभूषण शरण सिंह, जनरल वीके सिंह, संतोष गंगवार से लेकर सत्यपाल सिंह तक के नाम हैं। बृजभूषण की सियासत बेटे ने संभाल ली है। जनरल वीके सिंह 73 साल हैं। अगला चुनाव होने तक वह भाजपा की चुनाव लड़ने की लिमिट (75 साल) क्रॉस कर चुके होंगे। संतोष गंगवार 76 साल के हैं। इसलिए अब उनको टिकट नहीं मिलेगा। सत्यपाल सिंह 68 साल के हैं और अब वह अपनी बेटी चारू प्रज्ञा का राजनीतिक करियर आगे बढ़ाएंगे। कई चेहरे ऐसे भी हैं, जो चुनाव हार गए हैं। पॉलिटिकल एक्सपर्ट के मुताबिक, हार ने उनकी राजनीति को मुश्किल में डाल दिया। इनमें मेनका गांधी, महेंद्र नाथ पांडेय, भानु प्रताप वर्मा जैसे कई नाम हैं। 3 दशक बाद मेनका गांधी की हार से उनकी राजनीति खत्म मानी जा रही है। अयोध्या से हारे लल्लू सिंह की भी सियासत खत्म मानी जा रही है। एक नजर… 6 बार सांसद रह चुके हैं बृजभूषण
बृजभूषण शरण सिंह तीन लोकसभा सीटों गोंडा, बलरामपुर और कैसरगंज सीट से 6 बार के सांसद रहे हैं। पत्नी केतकी सिंह भी सांसद रह चुकी हैं। बड़ा बेटा प्रतीक भूषण दूसरी बार गोंडा सदर विधानसभा सीट से विधायक हैं। छोटे बेटे करण भूषण सिंह इस बार कैसरगंज से जीतकर सांसद बने हैं। महिला पहलवानों के साथ यौन शोषण के आरोपों के चलते बृजभूषण को टिकट नहीं मिला था। इसके बाद भी उन्होंने कैसरगंज सीट से अपने बेटे को जिताई। ऐसे में बृजभूषण सिंह को राज्यसभा भेजा जा सकता है या फिर संगठन में कोई पद दिया जा सकता है। फिलहाल बृजभूषण क्षेत्र में अपने दोनों बेटों को मजबूत करेंगे। केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं संतोष गंगवार
8 बार के सांसद संतोष गंगवार केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं। 76 साल की उम्र के चलते उनका टिकट कट गया। इस बात का बरेली में काफी विरोध भी हुआ था। राजनीति में लंबा समय गुजारने के बावजूद उन्होंने अपने अपने परिवार के लोगों को राजनीति में नहीं आने दिया। बीते मई में उनकी पत्नी का निधन हो गया था। अब उनका सियासी करियर खत्म हो गया है। नेगेटिव रिपोर्ट से कटा जनरल वीके सिंह का टिकट
जनरल वीके सिंह 2 बार के सांसद हैं। केंद्रीय मंत्री रहे हैं। संगठन की नेगेटिव रिपोर्ट के चलते उनका टिकट काटा गया। उनकी गाजियाबाद में विधायकों से नहीं पट रही थी। हालांकि, टिकट जारी होने से पहले ही वीके सिंह ने X पर पोस्ट कर चुनाव लड़ने से मना कर दिया था। उनको किसी आयोग में या फिर राज्यसभा में भेजा जा सकता है। फिलहाल सक्रिय राजनीति में उनका करियर खत्म माना जा रहा है। सत्यपाल सिंह का RLD की वजह से कटा टिकट
सत्यपाल सिंह IPS अफसर रह चुके हैं। 2014 में बागपत से चुनाव लड़ने से पहले वह मुंबई के पुलिस कमिश्नर थे। इसके बाद वह लगातार 10 साल तक सांसद रहे। साथ ही केंद्र में मंत्री भी रहे। इस बार बागपत सीट जयंत चौधरी की RLD से गठबंधन होने की वजह से उसके खाते में चली गई, तो टिकट कट गया। सत्यपाल सिंह की उम्र अभी 68 साल है। ऐसे में उनकी सक्रिय राजनीति में करियर खत्म माना जा रहा है। बहरहाल, वह उत्तराखंड के गुरुकुल कांगड़ी यूनिवर्सिटी के कुलपति हैं। उनका 2 साल का कार्यकाल बचा हुआ है। बेटी चारू प्रज्ञा भाजपा की प्रवक्ता है। अब उन्हें राजनीति में आगे बढ़ाने का काम करेंगे। वरुण गांधी के अगले कदम पर निर्भर करेगा मेनका का सियासी भविष्य
मेनका गांधी 8 बार की सांसद हैं। साथ ही अलग-अलग केंद्र में मंत्री भी रही हैं। 2024 का चुनाव वह हार गई हैं। भाजपा ने इस बार पीलीभीत से उनके बेटे वरुण गांधी का टिकट काट दिया था। मेनका की उम्र 67 साल है। ऐसे में उनका सक्रिय राजनीति में वापस लौटना मुश्किल है। चूंकि मेनका, गांधी परिवार से जुड़ी हैं तो भाजपा उन्हें संगठन में कोई पद दे सकती है। वरुण की बगावत के चलते उनका टिकट कटा था। बीच में उनके दूसरी पार्टियों में जाने के कयास भी लगे थे। ऐसे में अब वरुण क्या कदम उठाते हैं, इस पर भी मेनका का सियासी भविष्य तय होगा। राजेंद्र अग्रवाल को संगठन में मिल सकती है जगह
राजेंद्र अग्रवाल तीन बार के सांसद हैं। संसद में यूपी से सबसे ज्यादा सवाल पूछने वाले सांसद हैं। इसके बावजूद अरुण गोविल को मेरठ से उतारने के लिए राजेंद्र अग्रवाल का टिकट भाजपा ने काट दिया। फिलहाल सक्रिय राजनीति में राजेंद्र अग्रवाल के लौटने की संभावना नहीं है। राजेंद्र अग्रवाल संगठन में भी रहे हैं। ऐसे में उन्हें संगठन में जगह दी जा सकती है। बेटी की वजह से खत्म हुआ सत्यदेव पचौरी का करियर
सत्यदेव पचौरी की उम्र 76 साल है। वह एक बार के सांसद और 2 बार के विधायक हैं। सत्यदेव पचौरी के टिकट कटने के पीछे की कहानी में उन्हीं की बेटी है। बेटी नीतू संघ के पूर्व पदाधिकारी के यहां ब्याही है। उनके पति की मौत हो चुकी है। ऐसे में ससुराल के प्रभावी लोग बहू नीतू के लिए टिकट मांग रहे थे। सत्यदेव पचौरी भी टिकट मांग रहे थे। ऐसे में भाजपा ने दोनों को टिकट न देकर रमेश अवस्थी को दे दिया। हालांकि, टिकट बंटने से पहले पचौरी ने X पर पोस्ट कर खुद को चुनाव से अलग कर लिया था। बहरहाल, अब सक्रिय राजनीति में उनका भविष्य खत्म है। अश्लील वीडियो ने थामा उपेंद्र रावत का सियासी सफर
उपेंद्र रावत एक बार के सांसद और एक बार के विधायक हैं। 2024 में भी लोकसभा का टिकट मिला था। लेकिन, चुनाव से ठीक पहले अश्लील वीडियो वायरल होने की वजह से उन्हें टिकट वापस करना पड़ गया। फिलहाल, जब तक वह इस आरोप से बरी नहीं होते, उनके सक्रिय राजनीति में लौटने के चांसेस कम हैं। अभी उपेंद्र रावत की उम्र 55 साल है। अक्षयवर लाल गौड़ का बेटा बना सांसद
अक्षयवर लाल गौड़ 5 बार के विधायक और एक बार के सांसद रहे हैं। उम्र अधिक होने के कारण इस बार उनका टिकट काटकर बेटे आनंद गौड़ को दिया गया। लोकसभा चुनाव में बेटा आनंद गौड़ जीत भी गया। ऐसे में सक्रिय राजनीति में उनका करियर खत्म है। संगठन में उन्हें जगह दी जा सकती है। आगे बेटे की राजनीति को मजबूत बनाने के लिए काम करेंगे। बयानों से लल्लू सिंह की हार और राजनीति खत्म
लल्लू सिंह के बयान के कारण लोकसभा चुनाव में भाजपा को कई सीटों का नुकसान हुआ। लल्लू सिंह 6 बार के विधायक और 2 बार के सांसद रहे हैं। संघ-विहिप से जुड़े रहे हैं। बेटा राजनीति में है। भाजपा लल्लू सिंह काे संगठन में भी एडजस्ट कर सकती है। हालांकि, इसकी भी संभावना काफी कम है। चूंकि, उम्र अधिक हो गई है। ऐसे में सक्रिय राजनीति खत्म मानी जा रही है। महेंद्र नाथ पांडेय ने खुद खत्म किया अपना राजनीतिक करियर
महेंद्र नाथ पांडेय 2 बार के विधायक और 2 बार सांसद रहे हैं। केंद्रीय मंत्री और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं। नेगेटिव रिपोर्ट के बावजूद इनको टिकट दिया गया था। क्षेत्र में नहीं रहते थे। आम लोगों से नहीं मिलते थे। यही वजह थी कि वह लोकसभा चुनाव में हार गए। फिलहाल, राजनीतिक करियर खत्म है। भाजपा से टिकट मिलना मुश्किल है। संगठन में जगह दी जा सकती है। भानु प्रताप को संगठन में मिल सकती है जगह
भानु प्रताप वर्मा 5 बार के सांसद और एक बार विधायक रहे हैं। भाजपा संगठन में भी पदाधिकारी भी रहे हैं। संवैधानिक पद पर भेजा जा सकता है। फिलहाल सक्रिय राजनीति में उनका करियर खत्म है। वह राजनीति में सक्रिय अपने बड़े बेटे को सेटल करने का काम करेंगे। अपने बच्चों को सेटल करेंगे कृपा शंकर सिंह
कृपा शंकर सिंह जौनपुर के निवासी जरूर हैं, लेकिन वह मुंबई में सेटल हैं। वह मुंबई में कांग्रेस से दो बार विधायक और कांग्रेस सरकार में मंत्री भी रहे हैं। 2021 में कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। हालांकि, चुनाव हारने के बाद वह वापस लौटेंगे, इसमें संशय है। वह जौनपुर में अपने बच्चों को सेटल करने की कोशिश करेंगे। 73 साल की उम्र होने की वजह से उनका राजनीतिक करियर खत्म हो गया है। अन्नू टंडन का सक्रिय राजनीति में अब रहना मुश्किल
अन्नू टंडन 4 बार वह लोकसभा चुनाव लड़ चुकी हैं। एक बार सांसद बन चुकी हैं। कांग्रेस छोड़कर वह समाजवादी पार्टी में आई हैं। उनकी उम्र भी 66 साल है। ऐसे में उनका सक्रिय राजनीति में अब रहना मुश्किल है। उनके बेटे राजनीति में सक्रिय हैं। ऐसे में वह अपने बच्चों को राजनीति में सेटल करना चाहेंगी। क्या कहते हैं एक्सपर्ट.. हर चुनाव के बाद ऐसे कई राजनेता होते हैं, जो या तो चुनाव हार जाते हैं या फिर जिनका टिकट कट जाता है। चुनाव बाद पार्टियां इन लोगों के बारे में कुछ बातों का ध्यान रखते हुए सोचती हैं। अगर वे पार्टी के लिए यूजफुल हैं, तो मौका दिया जाता है। फिर उम्र भी देखी जाती है, जिसमें पार्टी के सीनियर नेता होते हैं। वे भले चुनावी मैदान में सफल न हुए हों या उम्र के चलते टिकट न मिला हो, लेकिन उन्हें कभी गर्वनर तो कभी एंबेस्डर का पद दे दिया जाता है। कुछ नेता ऐसे भी होते हैं, जो भले हार गए हों, लेकिन जहां से लड़े, वहां से उन्हें कोई पद देकर जनता को मैसेज दिया जा सके। सीनियर जर्नलिस्ट रतनमणि लाल कहते हैं- इसके लिए स्मृति ईरानी के उदाहरण को देख सकते हैं। जैसे 2014 में वह चुनाव हारीं, तो भी उन्हें मंत्री पद दिया गया। इसके बाद वह लगातार राहुल गांधी के खिलाफ सड़क से संसद तक बोलती रहीं। 2019 में उन्होंने अमेठी से जीत दर्ज की। 60 पार वालों के लिए मुसीबत
भाजपा के जिन नेताओं का टिकट कटा है या जो हारे हैं और 60 साल से ज्यादा उम्र के हैं, उनके लिए आगे का राजनीतिक सफर मुश्किल है। सीनियर जर्नलिस्ट बृजेश सिंह कहते हैं- वजह साफ है, भाजपा में भीड़ बहुत है। इसमें में भी ये देखा जाएगा कि जातीय और क्षेत्रीय समीकरण के आधार पर कौन-सा नेता पार्टी के लिए कितना फायदेमंद है। जिससे फायदा होगा, उसे जिम्मेदारी दी जाएगी, बाकी सभी पूर्व बन कर रह जाएंगे।