लखनऊ घराने की कथक नृत्यांगना गौरी शर्मा त्रिपाठी को नालंदा अकादमी ने ‘कनक नर्तन पुरस्कार’ से सम्मानित किया है। यह पुरस्कार उन्हें कथक के प्रति 25 वर्षों से अधिक के समर्पण और शिक्षा के माध्यम से भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए प्रदान किया गया। गौरी शर्मा त्रिपाठी भारत की एक प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना, कोरियोग्राफर और शिक्षिका हैं। उनका नाम आधुनिक और पारंपरिक कथक के बीच पुल बनाने वालों में लिया जाता है। लखनऊ से लिया प्रारंभिक शिक्षा
गौरी शर्मा का जन्म लखनऊ में हुआ और प्रारंभिक शिक्षा भी यहीं से हुई। कथक के लखनऊ घराने से जुड़ी हुई हैं। उनका नृत्य परिवार से ही प्रेरित है। गौरी ने कथक नृत्य में शिक्षा अपनी मां और प्रसिद्ध गुरुओं से प्राप्त की। उन्होंने लखनऊ घराने की परंपराओं को आत्मसात करते हुए इसमें अपनी रचनात्मकता जोड़ी। उनकी शैली में तकनीकी दक्षता और भावपूर्ण अभिव्यक्ति का अद्वितीय समन्वय देखने को मिलता है। विदेश में भी दिखाया जलवा
गौरी शर्मा ने कथक को भारतीय मंच से लेकर अंतरराष्ट्रीय मंचों तक ले जाने का काम किया। गौरी शर्मा ने यूरोप, अमेरिका और एशिया के कई देशों में अपने डांस का जलवा दिखाया है। उन्होंने कई प्रमुख नृत्य प्रस्तुतियों की कोरियोग्राफी की है, जिनमें पारंपरिक कथक और आधुनिक थीम का मिश्रण है। उनकी कोरियोग्राफी में तकनीकी बारीकी और भावनात्मक गहराई दोनों का सुंदर संगम देखने को मिलता है। गौरी बोलीं- संस्कृति और इतिहास को समझने का माध्यम गौरी ने विभिन्न प्रतिष्ठित नृत्य महोत्सवों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लिया है। गौरी ने कहा कि, कथक केवल नृत्य नहीं है, यह आत्मा और शरीर का संवाद है। यह कला हमारी संस्कृति और इतिहास को समझने का माध्यम है। गौरी को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कई पुरस्कार मिले हैं। भारत की सांस्कृतिक धरोहर के लिए आर्ट एंबेसडर से सम्मानित किया गया था। संवाद के रूप में कथक को प्रस्तुत किया गौरी शर्मा की शैली में घुंघरू की लय, तालों की जटिलता और अभिनय की गहराई देखने को मिलती है। उन्होंने कथक को केवल एक नृत्य के रूप में नहीं, बल्कि एक संवाद के रूप में प्रस्तुत किया है। श्याम बेनेगल की भारत एक खोज (1988), जो जवाहरलाल नेहरू की पुस्तक द डिस्कवरी ऑफ इंडिया पर आधारित है, में भारतीय सांस्कृतिक और कलात्मक परंपराओं को दर्शाने के लिए कथक नृत्य का विशेष रूप से उपयोग किया गया था। महाभारत में किया था उर्वशी का रोल महाभारत टीवी सीरियल में गौरी शर्मा ने उर्वशी का किरदार प्ले किया था। अप्सरा और नृतकी के तौर पर उन्होंने पांडव योद्धा अर्जुन (फिरोज खान) को नृत्य की कला सिखाई, इस दौरान वह अर्जुन की तरफ आकर्षित होने लगीं, लेकिन अर्जुन ने उनकी मनोकामना पूर्ण नहीं और गुस्से में आकर उर्वशी ने उन्हें किन्नर बनने का श्राप दिया। इस भूमिका को अदाकारा गौरी शर्मा ने बखूबी अदा किया और आज भी महाभारत की उर्वशी के रोल के लिए उन्हें याद किया जाता है। सांसद पति बोले- यह गर्व की बात पुरस्कार समारोह के दौरान उनके पति और देवरिया से भाजपा सांसद शशांक मणि त्रिपाठी ने कहा, कभी-कभी पति-पत्नी में से एक को दूसरे को आगे बढ़ाने के लिए पिछली सीट लेनी होती है। यह मेरे लिए गर्व की बात है कि गौरी को इस प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्होंने न केवल अपनी कला को निखारा, बल्कि हमारी बेटियों की परवरिश की और घर को सफलतापूर्वक संभाला। लच्छू महाराज से सीखी बारिकियां गौरी शर्मा त्रिपाठी ने कथक का प्रशिक्षण अपनी मां और गुरु, पद्मा शर्मा (संगीत नाटक अकादमी अमृत पुरस्कार विजेता) से लिया। उन्होंने अपने शुरुआती कदम गुरु लच्छू महाराज के निर्देशन में सीखे। भारतीय लोक नृत्य की बारीकियों को भी उन्होंने अपने कथक में शामिल कर इसे समृद्ध बनाया। तीन पीढ़ियों की परंपरा
गौरी ने अपनी मां पद्मा शर्मा और बेटी तारिणी के साथ मिलकर ‘Taa: द बिगिनिंग’ नामक एक अद्वितीय प्रदर्शन तैयार किया जो कथक की परंपरा और आधुनिक दृष्टिकोण का संगम है। लखनऊ घराने की कथक नृत्यांगना गौरी शर्मा त्रिपाठी को नालंदा अकादमी ने ‘कनक नर्तन पुरस्कार’ से सम्मानित किया है। यह पुरस्कार उन्हें कथक के प्रति 25 वर्षों से अधिक के समर्पण और शिक्षा के माध्यम से भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए प्रदान किया गया। गौरी शर्मा त्रिपाठी भारत की एक प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना, कोरियोग्राफर और शिक्षिका हैं। उनका नाम आधुनिक और पारंपरिक कथक के बीच पुल बनाने वालों में लिया जाता है। लखनऊ से लिया प्रारंभिक शिक्षा
गौरी शर्मा का जन्म लखनऊ में हुआ और प्रारंभिक शिक्षा भी यहीं से हुई। कथक के लखनऊ घराने से जुड़ी हुई हैं। उनका नृत्य परिवार से ही प्रेरित है। गौरी ने कथक नृत्य में शिक्षा अपनी मां और प्रसिद्ध गुरुओं से प्राप्त की। उन्होंने लखनऊ घराने की परंपराओं को आत्मसात करते हुए इसमें अपनी रचनात्मकता जोड़ी। उनकी शैली में तकनीकी दक्षता और भावपूर्ण अभिव्यक्ति का अद्वितीय समन्वय देखने को मिलता है। विदेश में भी दिखाया जलवा
गौरी शर्मा ने कथक को भारतीय मंच से लेकर अंतरराष्ट्रीय मंचों तक ले जाने का काम किया। गौरी शर्मा ने यूरोप, अमेरिका और एशिया के कई देशों में अपने डांस का जलवा दिखाया है। उन्होंने कई प्रमुख नृत्य प्रस्तुतियों की कोरियोग्राफी की है, जिनमें पारंपरिक कथक और आधुनिक थीम का मिश्रण है। उनकी कोरियोग्राफी में तकनीकी बारीकी और भावनात्मक गहराई दोनों का सुंदर संगम देखने को मिलता है। गौरी बोलीं- संस्कृति और इतिहास को समझने का माध्यम गौरी ने विभिन्न प्रतिष्ठित नृत्य महोत्सवों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लिया है। गौरी ने कहा कि, कथक केवल नृत्य नहीं है, यह आत्मा और शरीर का संवाद है। यह कला हमारी संस्कृति और इतिहास को समझने का माध्यम है। गौरी को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कई पुरस्कार मिले हैं। भारत की सांस्कृतिक धरोहर के लिए आर्ट एंबेसडर से सम्मानित किया गया था। संवाद के रूप में कथक को प्रस्तुत किया गौरी शर्मा की शैली में घुंघरू की लय, तालों की जटिलता और अभिनय की गहराई देखने को मिलती है। उन्होंने कथक को केवल एक नृत्य के रूप में नहीं, बल्कि एक संवाद के रूप में प्रस्तुत किया है। श्याम बेनेगल की भारत एक खोज (1988), जो जवाहरलाल नेहरू की पुस्तक द डिस्कवरी ऑफ इंडिया पर आधारित है, में भारतीय सांस्कृतिक और कलात्मक परंपराओं को दर्शाने के लिए कथक नृत्य का विशेष रूप से उपयोग किया गया था। महाभारत में किया था उर्वशी का रोल महाभारत टीवी सीरियल में गौरी शर्मा ने उर्वशी का किरदार प्ले किया था। अप्सरा और नृतकी के तौर पर उन्होंने पांडव योद्धा अर्जुन (फिरोज खान) को नृत्य की कला सिखाई, इस दौरान वह अर्जुन की तरफ आकर्षित होने लगीं, लेकिन अर्जुन ने उनकी मनोकामना पूर्ण नहीं और गुस्से में आकर उर्वशी ने उन्हें किन्नर बनने का श्राप दिया। इस भूमिका को अदाकारा गौरी शर्मा ने बखूबी अदा किया और आज भी महाभारत की उर्वशी के रोल के लिए उन्हें याद किया जाता है। सांसद पति बोले- यह गर्व की बात पुरस्कार समारोह के दौरान उनके पति और देवरिया से भाजपा सांसद शशांक मणि त्रिपाठी ने कहा, कभी-कभी पति-पत्नी में से एक को दूसरे को आगे बढ़ाने के लिए पिछली सीट लेनी होती है। यह मेरे लिए गर्व की बात है कि गौरी को इस प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्होंने न केवल अपनी कला को निखारा, बल्कि हमारी बेटियों की परवरिश की और घर को सफलतापूर्वक संभाला। लच्छू महाराज से सीखी बारिकियां गौरी शर्मा त्रिपाठी ने कथक का प्रशिक्षण अपनी मां और गुरु, पद्मा शर्मा (संगीत नाटक अकादमी अमृत पुरस्कार विजेता) से लिया। उन्होंने अपने शुरुआती कदम गुरु लच्छू महाराज के निर्देशन में सीखे। भारतीय लोक नृत्य की बारीकियों को भी उन्होंने अपने कथक में शामिल कर इसे समृद्ध बनाया। तीन पीढ़ियों की परंपरा
गौरी ने अपनी मां पद्मा शर्मा और बेटी तारिणी के साथ मिलकर ‘Taa: द बिगिनिंग’ नामक एक अद्वितीय प्रदर्शन तैयार किया जो कथक की परंपरा और आधुनिक दृष्टिकोण का संगम है। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर