पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने खालिस्तानी आंदोलन का समर्थन करने वाले आरोपी की जमानत याचिका को खारिज कर दिया है। आरोपी ने जालंधर में पीएपी की दीवारों के अलावा हिमाचल प्रदेश में भी खालिस्तान के नारे लिखे थे। इसके साथ-साथ आरोपी सोशल मीडिया पर उकसावे वाले वीडियो प्रसारित करने का आरोपी पाया गया था। जस्टिस मंजरी नेहरू कौल ने ऑर्डर देते समय कहा कि, प्रथम दृष्टया, याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप न केवल गंभीर हैं, बल्कि राष्ट्रीय अखंडता और सार्वजनिक सुरक्षा की जड़ों पर प्रहार करते हैं। याचिकाकर्ता पर खालिस्तानी आंदोलन को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से गतिविधियों को अंजाम देने का आरोप है, जो पंजाब राज्य और पूरे राष्ट्र की स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण खतरे उत्पन्न करता है। आरोपी के खिलाफ जालंधर में 2022 में धारा 121-ए, 124-ए, 153-ए, 120-बी आईपीसी और आईटी एक्ट की धारा 66-ए, 66-एफ के तहत मामला दर्ज किया गया था। आरोपी की पहचान रमन उर्फ सोनू निवासी अमृतसर के तौर पर हुई थी। इस मामले में सितंबर 2022 में उसकी गिरफ्तारी हुई थी और तभी से वे जेल में है। सरकार अभी तक गवाहियां करवाने में असमर्थ याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि याचिकाकर्ता को 7 सितंबर 2022 को गिरफ्तार किया गया था, 12 मई 2023 को चालान पेश किया गया और 14 अगस्त 2024 को आरोप तय किए गए। हालांकि काफी समय बीत चुका है, लेकिन अब तक मुकदमे की कार्यवाही पूरी नहीं हुई है और न ही अभियोजन पक्ष के किसी गवाह की गवाही हुई है। उन्होंने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता का नाम प्राथमिकी (FIR) में नहीं था और न ही उसके पास से कोई आपत्तिजनक सामग्री बरामद हुई है, जिससे उसे इन अपराधों से जोड़ा जा सके। पंजाब सरकार ने याचिका का विरोध किया राज्य सरकार की तरफ से पेश हुए वकील ने जमानत का विरोध करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने एक भड़काऊ और राष्ट्र-विरोधी वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल किया, जिससे पंजाब में कानून और व्यवस्था के बिगड़ने की आशंका बढ़ गई। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद, अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ विशिष्ट आरोपों में खालिस्तानी आंदोलन के समर्थन में दीवारों पर नारे लिखना और सोशल मीडिया पर भड़काऊ वीडियो प्रसारित करना शामिल है। राज्य में शांति के लिए बेल देना सही नहीं अदालत ने आदेश में कहा कि यदि ये आरोप सिद्ध होते हैं, तो ये केवल आपराधिक कृत्य नहीं हैं, बल्कि इनसे हिंसा भड़काने, सांप्रदायिक द्वेष पैदा करने और राज्य के सामाजिक ताने-बाने को अस्थिर करने की संभावना है। जस्टिस कौल ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ पंजाब और हिमाचल प्रदेश में कई एफआईआर में समान आरोप लगे हुए हैं। निस्संदेह मुकदमे में कुछ देरी हुई है, लेकिन यह देरी याचिकाकर्ता के खिलाफ लगे आरोपों की गंभीरता को कम करने के लिए पर्याप्त नहीं है। कोर्ट ने जमानत देने से किया मना अंत में अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया, याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप राज्य की संप्रभुता और सुरक्षा के लिए प्रत्यक्ष और गंभीर खतरा उत्पन्न करते हैं। इसके आधार पर अदालत ने जमानत याचिका खारिज कर दी। पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने खालिस्तानी आंदोलन का समर्थन करने वाले आरोपी की जमानत याचिका को खारिज कर दिया है। आरोपी ने जालंधर में पीएपी की दीवारों के अलावा हिमाचल प्रदेश में भी खालिस्तान के नारे लिखे थे। इसके साथ-साथ आरोपी सोशल मीडिया पर उकसावे वाले वीडियो प्रसारित करने का आरोपी पाया गया था। जस्टिस मंजरी नेहरू कौल ने ऑर्डर देते समय कहा कि, प्रथम दृष्टया, याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप न केवल गंभीर हैं, बल्कि राष्ट्रीय अखंडता और सार्वजनिक सुरक्षा की जड़ों पर प्रहार करते हैं। याचिकाकर्ता पर खालिस्तानी आंदोलन को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से गतिविधियों को अंजाम देने का आरोप है, जो पंजाब राज्य और पूरे राष्ट्र की स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण खतरे उत्पन्न करता है। आरोपी के खिलाफ जालंधर में 2022 में धारा 121-ए, 124-ए, 153-ए, 120-बी आईपीसी और आईटी एक्ट की धारा 66-ए, 66-एफ के तहत मामला दर्ज किया गया था। आरोपी की पहचान रमन उर्फ सोनू निवासी अमृतसर के तौर पर हुई थी। इस मामले में सितंबर 2022 में उसकी गिरफ्तारी हुई थी और तभी से वे जेल में है। सरकार अभी तक गवाहियां करवाने में असमर्थ याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि याचिकाकर्ता को 7 सितंबर 2022 को गिरफ्तार किया गया था, 12 मई 2023 को चालान पेश किया गया और 14 अगस्त 2024 को आरोप तय किए गए। हालांकि काफी समय बीत चुका है, लेकिन अब तक मुकदमे की कार्यवाही पूरी नहीं हुई है और न ही अभियोजन पक्ष के किसी गवाह की गवाही हुई है। उन्होंने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता का नाम प्राथमिकी (FIR) में नहीं था और न ही उसके पास से कोई आपत्तिजनक सामग्री बरामद हुई है, जिससे उसे इन अपराधों से जोड़ा जा सके। पंजाब सरकार ने याचिका का विरोध किया राज्य सरकार की तरफ से पेश हुए वकील ने जमानत का विरोध करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने एक भड़काऊ और राष्ट्र-विरोधी वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल किया, जिससे पंजाब में कानून और व्यवस्था के बिगड़ने की आशंका बढ़ गई। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद, अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ विशिष्ट आरोपों में खालिस्तानी आंदोलन के समर्थन में दीवारों पर नारे लिखना और सोशल मीडिया पर भड़काऊ वीडियो प्रसारित करना शामिल है। राज्य में शांति के लिए बेल देना सही नहीं अदालत ने आदेश में कहा कि यदि ये आरोप सिद्ध होते हैं, तो ये केवल आपराधिक कृत्य नहीं हैं, बल्कि इनसे हिंसा भड़काने, सांप्रदायिक द्वेष पैदा करने और राज्य के सामाजिक ताने-बाने को अस्थिर करने की संभावना है। जस्टिस कौल ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ पंजाब और हिमाचल प्रदेश में कई एफआईआर में समान आरोप लगे हुए हैं। निस्संदेह मुकदमे में कुछ देरी हुई है, लेकिन यह देरी याचिकाकर्ता के खिलाफ लगे आरोपों की गंभीरता को कम करने के लिए पर्याप्त नहीं है। कोर्ट ने जमानत देने से किया मना अंत में अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया, याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप राज्य की संप्रभुता और सुरक्षा के लिए प्रत्यक्ष और गंभीर खतरा उत्पन्न करते हैं। इसके आधार पर अदालत ने जमानत याचिका खारिज कर दी। पंजाब | दैनिक भास्कर
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