देश में खेल होना चाहिए, देश से खेल नहीं:गंभीर समस्याओं को खेल समझ रखा है और खेल को गंभीर समस्या

देश में खेल होना चाहिए, देश से खेल नहीं:गंभीर समस्याओं को खेल समझ रखा है और खेल को गंभीर समस्या

भारत चैम्पियंस ट्रॉफी के फाइनल में पहुंच गया है। मुझे क्रिकेट कभी भी पसंद नहीं आया। इसका एक कारण तो ये है कि इसमें दौड़ना बहुत पड़ता है। दूसरा कारण ये है कि इसमें चोट लगने का डर रहता है। मेरा मानना है कि खेल को अहिंसात्मक तरीके से खेला जाना चाहिए। क्या जरूरत है भला इतनी रिस्की बॉल से खेलने की। रबर की बॉल से खेलो। खेल का खेल हो जाएगा और किसी का माथा भी नहीं फूटेगा। देश में खेल होना चाहिए, देश से खेल नहीं होना चाहिए। भारत और पाकिस्तान के बीच जितनी कड़वाहट है, उसे बढ़ाने में खेलों की भी बड़ी भूमिका रही है। दोनों देशों के बीच क्रिकेट और हॉकी न होते तो संबंध शायद कुछ बेहतर होते। हमारी राष्ट्रभक्ति पाकिस्तान को क्रिकेट में हराने से पुष्ट होती है। किसी सीरीज में हम शुरू में ही बाहर हो जाएं तो हमारी इच्छा रहती है कि बस अब पाकिस्तान फाइनल न जीत जाए। और पाकिस्तान हार जाए तो हमें लगता है कि हम जीत गए। हमने खेल भावना को देश भावना समझ लिया। मुझे याद है एक बार, एक अफ्रीकी और एक अंग्रेज तपस्या कर रहे थे। भगवान प्रसन्न हुए। उन्होंने अफ्रीकी से पूछा, क्या वरदान चाहिए। अफ्रीकी ने कहा, ‘मुझे गोरा कर दो।’ फिर अंग्रेज से पूछा तुझे क्या चाहिए? अंग्रेज बोला, ‘इसे फिर से काला कर दो।’ हम अपने भले से पहले दूसरे के बुरे पर ज्यादा ध्यान देते हैं। वैसे खेल का उपयोग कड़वाहट को समाप्त करने में होना चाहिए था। जैसे यूएई की एक टीम होती है, वैसे ही सोचिए अगर भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और अफगानिस्तान की मिलकर एक क्रिकेट टीम होती। फिर इस टीम के जीतने पर पांच देश एक साथ खुश होते, इस टीम के हारने पर पांच देश एक साथ दुखी होते। हमारे सुख-दुःख एक होते तो हमारे संबंध भी गहरे हुए होते। अब कल्पना करिए कि इंग्लैंड में मैच हो रहा है, इंग्लैंड के खिलाफ भारत के बल्लेबाज ने बाउंड्री मारी और इंग्लैंड की धरती पर इंग्लैंड के पिछड़ने पर महिलाएं नाच रही हैं। ये कोई अच्छी बात थोड़े ही है। जब धोनी की टीम ने वर्ल्ड कप जीता था, तभी मैंने कहा था कि अब हम क्रिकेट खेलना बंद कर दें तो वर्ल्ड कप हमेशा के लिए हमारा हो जाएगा। कप दो ही मत वापस। कह दो, अब हमारा मन नहीं कर रहा क्रिकेट खेलने का। लेकिन हमें तो क्रिकेट की जीत-हार को राजनीति में भुनाना है ना। हकीकत यह है कि हमने गंभीर समस्याओं को खेल समझ रखा है, और खेल को गंभीर समस्या समझ रखा है। ————– ये कॉलम भी पढ़ें… राजनीतिक लड़ाकों का युग फिर से लौटेगा:सभी राजनैतिक पार्टियां पहलवानों को टिकट देंगी! लुप्तप्राय दंगल लौटकर आएंगे भारत चैम्पियंस ट्रॉफी के फाइनल में पहुंच गया है। मुझे क्रिकेट कभी भी पसंद नहीं आया। इसका एक कारण तो ये है कि इसमें दौड़ना बहुत पड़ता है। दूसरा कारण ये है कि इसमें चोट लगने का डर रहता है। मेरा मानना है कि खेल को अहिंसात्मक तरीके से खेला जाना चाहिए। क्या जरूरत है भला इतनी रिस्की बॉल से खेलने की। रबर की बॉल से खेलो। खेल का खेल हो जाएगा और किसी का माथा भी नहीं फूटेगा। देश में खेल होना चाहिए, देश से खेल नहीं होना चाहिए। भारत और पाकिस्तान के बीच जितनी कड़वाहट है, उसे बढ़ाने में खेलों की भी बड़ी भूमिका रही है। दोनों देशों के बीच क्रिकेट और हॉकी न होते तो संबंध शायद कुछ बेहतर होते। हमारी राष्ट्रभक्ति पाकिस्तान को क्रिकेट में हराने से पुष्ट होती है। किसी सीरीज में हम शुरू में ही बाहर हो जाएं तो हमारी इच्छा रहती है कि बस अब पाकिस्तान फाइनल न जीत जाए। और पाकिस्तान हार जाए तो हमें लगता है कि हम जीत गए। हमने खेल भावना को देश भावना समझ लिया। मुझे याद है एक बार, एक अफ्रीकी और एक अंग्रेज तपस्या कर रहे थे। भगवान प्रसन्न हुए। उन्होंने अफ्रीकी से पूछा, क्या वरदान चाहिए। अफ्रीकी ने कहा, ‘मुझे गोरा कर दो।’ फिर अंग्रेज से पूछा तुझे क्या चाहिए? अंग्रेज बोला, ‘इसे फिर से काला कर दो।’ हम अपने भले से पहले दूसरे के बुरे पर ज्यादा ध्यान देते हैं। वैसे खेल का उपयोग कड़वाहट को समाप्त करने में होना चाहिए था। जैसे यूएई की एक टीम होती है, वैसे ही सोचिए अगर भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और अफगानिस्तान की मिलकर एक क्रिकेट टीम होती। फिर इस टीम के जीतने पर पांच देश एक साथ खुश होते, इस टीम के हारने पर पांच देश एक साथ दुखी होते। हमारे सुख-दुःख एक होते तो हमारे संबंध भी गहरे हुए होते। अब कल्पना करिए कि इंग्लैंड में मैच हो रहा है, इंग्लैंड के खिलाफ भारत के बल्लेबाज ने बाउंड्री मारी और इंग्लैंड की धरती पर इंग्लैंड के पिछड़ने पर महिलाएं नाच रही हैं। ये कोई अच्छी बात थोड़े ही है। जब धोनी की टीम ने वर्ल्ड कप जीता था, तभी मैंने कहा था कि अब हम क्रिकेट खेलना बंद कर दें तो वर्ल्ड कप हमेशा के लिए हमारा हो जाएगा। कप दो ही मत वापस। कह दो, अब हमारा मन नहीं कर रहा क्रिकेट खेलने का। लेकिन हमें तो क्रिकेट की जीत-हार को राजनीति में भुनाना है ना। हकीकत यह है कि हमने गंभीर समस्याओं को खेल समझ रखा है, और खेल को गंभीर समस्या समझ रखा है। ————– ये कॉलम भी पढ़ें… राजनीतिक लड़ाकों का युग फिर से लौटेगा:सभी राजनैतिक पार्टियां पहलवानों को टिकट देंगी! लुप्तप्राय दंगल लौटकर आएंगे   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर