शिरोमणि अकाली दल (शिअद) ने नाराज चल रहे बिक्रम सिंह मजीठिया को मनाने के प्रयास शुरू कर दिए हैं। पिछले सोमवार को कार्यकारी अध्यक्ष बलविंदर सिंह भूंदड़ और पूर्व विधायक विरसा सिंह वल्टोहा नाराज चल रहे बिक्रम सिंह मजीठिया के चंडीगढ़ स्थित घर पहुंचे, लेकिन उनसे मुलाकात नहीं हो सकी। विरसा सिंह वल्टोहा का कहना है कि गुस्से और नाराजगी से पैदा हुई दरार को कम करने के प्रयास किए जा रहे हैं। वल्टोहा ने बताया कि वह और बलविंदर भूंदड़ बिक्रम मजीठिया से मिलने गए थे। उन्होंने उनकी पत्नी गनीव मजीठिया से मुलाकात की, लेकिन मजीठिया से मुलाकात नहीं हो पाई, जो अपने वकील से मिलने गए थे। कार्यकारी अध्यक्ष भूंदड़ ने भी कुछ देर इंतजार किया, लेकिन एक जरूरी फोन आने के बाद उन्हें वहां से जाना पड़ा। इस मुलाकात को सुखबीर सिंह बादल और मजीठिया के बीच बढ़ती दरार को कम करने के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है। SAD और SGPC के फैसले पर विवाद यह विवाद तब शुरू हुआ जब मजीठिया ने 7 मार्च को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) द्वारा अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी रघुबीर सिंह और केसगढ़ साहिब के जत्थेदार सुल्तान सिंह को हटाने के फैसले से खुद को अलग कर लिया। इसके बाद, पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष भूंदड़ ने उन पर “पीठ में छुरा घोंपने” का आरोप लगाया। मजीठिया ने एक साझा बयान में कहा था “SGPC का यह फैसला सिख संगत और हमारे लिए बहुत आहत करने वाला है। गुरु साहिब जी ने संगत को दिव्य दर्जा दिया है, और संगत की भावनाओं को देखते हुए हम इस फैसले से सहमत नहीं हो सकते।” मजीठिया का साथ 6 अकाली नेताओं ने भी दिया इस बयान पर मजीठिया के साथ पूर्व मंत्री शरणजीत सिंह ढिल्लों, कोर कमेटी सदस्य लखबीर सिंह लोधीनंगल, अजनाला से जोध सिंह समरा, मुकेरियां से सरबजीत सिंह साबी, गुरदासपुर जिला अध्यक्ष रमणदीप सिंह संधू और युवा अकाली दल (YAD) के नेता सिमरजीत सिंह ढिल्लों के हस्ताक्षर भी थे। भूंदड़ के बयान पर विवाद बढ़ा इसके बाद, कई अकाली नेता, जो मजीठिया के करीबी माने जाते थे, पार्टी से इस्तीफा देने लगे। भूंदड़ ने 8 मार्च को कहा, “हरसिमरत कौर बादल ने बचपन से ही बिक्रम मजीठिया की परवरिश की। बादल परिवार ने हमेशा उन्हें सम्मान और उच्च पद दिए। सुखबीर बादल ने भी हर मुश्किल घड़ी में मजीठिया का साथ दिया। लेकिन आज, जब अकाली दल मुश्किल दौर में है, मजीठिया ने पार्टी के साथ विश्वासघात किया है।” वल्टोहा ने दिया सुलह का संदेश वल्टोहा ने कहा कि स्थिति को देखते हुए इस बयान से बचना चाहिए था। मीडिया ने मजीठिया के बयान को उकसाने वाले तरीके से पेश किया, जिससे तुरंत प्रतिक्रिया आई। यह सब गुस्से में हुआ। वल्टोहा और भूंदड़ जब मजीठिया के घर पहुंचे, तो वह वहां मौजूद नहीं थे। वल्टोहा ने बताया कि मजीठिया उस समय अपने वकीलों के साथ बैठक कर रहे थे, क्योंकि उन्हें 17 मार्च को पटियाला में विशेष जांच टीम (SIT) के सामने पेश होने के लिए बुलाया गया था। वल्टोहा ने सोशल मीडिया पर लिखा “कृपया बिक्रम सिंह मजीठिया के खिलाफ कठोर शब्दों का इस्तेमाल न करें। आंतरिक मतभेद सुलझने में ज्यादा समय नहीं लगता, इसलिए सभी को सकारात्मक भूमिका निभानी चाहिए। एकता में ताकत है। मजीठिया को भी पुराने गिले-शिकवे भुलाकर अकाली दल के लिए और मेहनत करनी चाहिए।” अभी तक सुलह के संकेत नहीं भूंदड़ और वल्टोहा की कोशिशों के बावजूद अब तक कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है। न ही सुखबीर बादल और मजीठिया ने इस विवाद को सुलझाने को लेकर कोई सार्वजनिक बयान दिया है। वहीं, SAD विरोधी गुट भी मजीठिया के प्रति नरम रुख अपना रहे हैं। पूर्व जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने भी जत्थेदारों की बर्खास्तगी के खिलाफ मजीठिया की आपत्ति का समर्थन किया है। शिरोमणि अकाली दल (शिअद) ने नाराज चल रहे बिक्रम सिंह मजीठिया को मनाने के प्रयास शुरू कर दिए हैं। पिछले सोमवार को कार्यकारी अध्यक्ष बलविंदर सिंह भूंदड़ और पूर्व विधायक विरसा सिंह वल्टोहा नाराज चल रहे बिक्रम सिंह मजीठिया के चंडीगढ़ स्थित घर पहुंचे, लेकिन उनसे मुलाकात नहीं हो सकी। विरसा सिंह वल्टोहा का कहना है कि गुस्से और नाराजगी से पैदा हुई दरार को कम करने के प्रयास किए जा रहे हैं। वल्टोहा ने बताया कि वह और बलविंदर भूंदड़ बिक्रम मजीठिया से मिलने गए थे। उन्होंने उनकी पत्नी गनीव मजीठिया से मुलाकात की, लेकिन मजीठिया से मुलाकात नहीं हो पाई, जो अपने वकील से मिलने गए थे। कार्यकारी अध्यक्ष भूंदड़ ने भी कुछ देर इंतजार किया, लेकिन एक जरूरी फोन आने के बाद उन्हें वहां से जाना पड़ा। इस मुलाकात को सुखबीर सिंह बादल और मजीठिया के बीच बढ़ती दरार को कम करने के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है। SAD और SGPC के फैसले पर विवाद यह विवाद तब शुरू हुआ जब मजीठिया ने 7 मार्च को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) द्वारा अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी रघुबीर सिंह और केसगढ़ साहिब के जत्थेदार सुल्तान सिंह को हटाने के फैसले से खुद को अलग कर लिया। इसके बाद, पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष भूंदड़ ने उन पर “पीठ में छुरा घोंपने” का आरोप लगाया। मजीठिया ने एक साझा बयान में कहा था “SGPC का यह फैसला सिख संगत और हमारे लिए बहुत आहत करने वाला है। गुरु साहिब जी ने संगत को दिव्य दर्जा दिया है, और संगत की भावनाओं को देखते हुए हम इस फैसले से सहमत नहीं हो सकते।” मजीठिया का साथ 6 अकाली नेताओं ने भी दिया इस बयान पर मजीठिया के साथ पूर्व मंत्री शरणजीत सिंह ढिल्लों, कोर कमेटी सदस्य लखबीर सिंह लोधीनंगल, अजनाला से जोध सिंह समरा, मुकेरियां से सरबजीत सिंह साबी, गुरदासपुर जिला अध्यक्ष रमणदीप सिंह संधू और युवा अकाली दल (YAD) के नेता सिमरजीत सिंह ढिल्लों के हस्ताक्षर भी थे। भूंदड़ के बयान पर विवाद बढ़ा इसके बाद, कई अकाली नेता, जो मजीठिया के करीबी माने जाते थे, पार्टी से इस्तीफा देने लगे। भूंदड़ ने 8 मार्च को कहा, “हरसिमरत कौर बादल ने बचपन से ही बिक्रम मजीठिया की परवरिश की। बादल परिवार ने हमेशा उन्हें सम्मान और उच्च पद दिए। सुखबीर बादल ने भी हर मुश्किल घड़ी में मजीठिया का साथ दिया। लेकिन आज, जब अकाली दल मुश्किल दौर में है, मजीठिया ने पार्टी के साथ विश्वासघात किया है।” वल्टोहा ने दिया सुलह का संदेश वल्टोहा ने कहा कि स्थिति को देखते हुए इस बयान से बचना चाहिए था। मीडिया ने मजीठिया के बयान को उकसाने वाले तरीके से पेश किया, जिससे तुरंत प्रतिक्रिया आई। यह सब गुस्से में हुआ। वल्टोहा और भूंदड़ जब मजीठिया के घर पहुंचे, तो वह वहां मौजूद नहीं थे। वल्टोहा ने बताया कि मजीठिया उस समय अपने वकीलों के साथ बैठक कर रहे थे, क्योंकि उन्हें 17 मार्च को पटियाला में विशेष जांच टीम (SIT) के सामने पेश होने के लिए बुलाया गया था। वल्टोहा ने सोशल मीडिया पर लिखा “कृपया बिक्रम सिंह मजीठिया के खिलाफ कठोर शब्दों का इस्तेमाल न करें। आंतरिक मतभेद सुलझने में ज्यादा समय नहीं लगता, इसलिए सभी को सकारात्मक भूमिका निभानी चाहिए। एकता में ताकत है। मजीठिया को भी पुराने गिले-शिकवे भुलाकर अकाली दल के लिए और मेहनत करनी चाहिए।” अभी तक सुलह के संकेत नहीं भूंदड़ और वल्टोहा की कोशिशों के बावजूद अब तक कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है। न ही सुखबीर बादल और मजीठिया ने इस विवाद को सुलझाने को लेकर कोई सार्वजनिक बयान दिया है। वहीं, SAD विरोधी गुट भी मजीठिया के प्रति नरम रुख अपना रहे हैं। पूर्व जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने भी जत्थेदारों की बर्खास्तगी के खिलाफ मजीठिया की आपत्ति का समर्थन किया है। पंजाब | दैनिक भास्कर
