<p style=”text-align: justify;”><strong>Happy Holi 2025:</strong> बिहार के सहरसा जिला मुख्यालय से आठ किलोमीटर दूर पश्चिम कहरा प्रखंड के बनगांव में मनाई जाने वाली घमौर होली की अपनी अलग पहचान है. बनगांव की होली ब्रज की होली के जैसी बेमिसाल है. यहां की होली की खासियत है कि यहां एक दिन पहले ही होली मना ली जाती है. 13 मार्च को ही यहां होली मना ली गई.</p>
<p style=”text-align: justify;”>इसमें लोग एक-दूसरे के कंधे पर सवार होकर जोर आजमाइस करते हुए दिखाई दिए. संत लक्ष्मी नाथ गौसाई ने इस होली की शुरुआत की थी. मान्यता है कि इसकी परंपरा भगवान श्री कृष्ण के काल से चली आ रही है. </p>
<p style=”text-align: justify;”>बनगांव में घमौर होली की शुरुआत 18वीं सदी में यहां के प्रसिद्ध संत लक्ष्मी नाथ गौसाई बाबाजी ने की थी. बिहार की सबसे बड़ी आबादी और तीन पंचायत वाले बनगांव की होली की देश में अलग ही सांस्कृतिक पहचान है. यहां के ग्रामीण घूमोर होली का आनंद लेते हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>सभी जाति-धर्म के लोग मिलकर मनाते हैं होली</strong><br />इस मौके पर पूर्व मुखिया धनंजय झा ने कहा कि बनगांव की होली सामाजिक समरसता और भाईचारे की मिशाल है. 200 साल पहले महान संत और आराध्य देव गोंसाई लक्ष्मीनाथ द्वारा व्यवस्थित की गई घूमोर होली ब्रज की होली की तरह अपने आप में विशिष्ट स्थान रखती है. इस गांव के लोग चाहे कही भी बसे हो वो होली पर अपने गांव ही आते हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”>अगर गांव का कोई नामी गिरामी व्यक्ति होली पर नहीं आता तो उसकी अर्थी निकाली जाती है. यहां सभी जाति धर्म के लोग भगवती स्थान में मिलजुल कर होली मनाते हैं. जिससे आपस में कोई भेदभाव नहीं रहता. ये घूमोर होली सदियों से चलती आ रही है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>भगवती स्थान पर होता है घूमोर होली का आयोजन</strong><br />जब तक भगवती स्थान में होली नहीं मनाते तबतक उनकी होली अधूरी मानी जाती है. गांव की विभिन्न गलियों से गुजरकर भगवती स्थान पर घूमोर होली का आयोजन होता है. बाबा लक्ष्मीनाथ की कृपा से यहां का इतिहास है कि घूमोर होली पर आजतक कोई अप्रिय घटना नहीं हुई है. इसलिए गांव के सभी लोग बाबा लक्ष्मीनाथ के शरणागत रहते हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>(मुकेश कुमार सिंह की रिपोर्ट)</strong></p>
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<p style=”text-align: justify;”>इसमें लोग एक-दूसरे के कंधे पर सवार होकर जोर आजमाइस करते हुए दिखाई दिए. संत लक्ष्मी नाथ गौसाई ने इस होली की शुरुआत की थी. मान्यता है कि इसकी परंपरा भगवान श्री कृष्ण के काल से चली आ रही है. </p>
<p style=”text-align: justify;”>बनगांव में घमौर होली की शुरुआत 18वीं सदी में यहां के प्रसिद्ध संत लक्ष्मी नाथ गौसाई बाबाजी ने की थी. बिहार की सबसे बड़ी आबादी और तीन पंचायत वाले बनगांव की होली की देश में अलग ही सांस्कृतिक पहचान है. यहां के ग्रामीण घूमोर होली का आनंद लेते हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>सभी जाति-धर्म के लोग मिलकर मनाते हैं होली</strong><br />इस मौके पर पूर्व मुखिया धनंजय झा ने कहा कि बनगांव की होली सामाजिक समरसता और भाईचारे की मिशाल है. 200 साल पहले महान संत और आराध्य देव गोंसाई लक्ष्मीनाथ द्वारा व्यवस्थित की गई घूमोर होली ब्रज की होली की तरह अपने आप में विशिष्ट स्थान रखती है. इस गांव के लोग चाहे कही भी बसे हो वो होली पर अपने गांव ही आते हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”>अगर गांव का कोई नामी गिरामी व्यक्ति होली पर नहीं आता तो उसकी अर्थी निकाली जाती है. यहां सभी जाति धर्म के लोग भगवती स्थान में मिलजुल कर होली मनाते हैं. जिससे आपस में कोई भेदभाव नहीं रहता. ये घूमोर होली सदियों से चलती आ रही है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>भगवती स्थान पर होता है घूमोर होली का आयोजन</strong><br />जब तक भगवती स्थान में होली नहीं मनाते तबतक उनकी होली अधूरी मानी जाती है. गांव की विभिन्न गलियों से गुजरकर भगवती स्थान पर घूमोर होली का आयोजन होता है. बाबा लक्ष्मीनाथ की कृपा से यहां का इतिहास है कि घूमोर होली पर आजतक कोई अप्रिय घटना नहीं हुई है. इसलिए गांव के सभी लोग बाबा लक्ष्मीनाथ के शरणागत रहते हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>(मुकेश कुमार सिंह की रिपोर्ट)</strong></p>
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