यूपी में बिजली के निजीकरण का विरोध क्यों?:उपभोक्ताओं को महंगी बिजली, तो कर्मचारियों को नौकरी छीनने का डर

यूपी में बिजली के निजीकरण का विरोध क्यों?:उपभोक्ताओं को महंगी बिजली, तो कर्मचारियों को नौकरी छीनने का डर

प्रदेश सरकार 42 जिलों की बिजली निजी हाथों में सौंपने की तैयारी में है। इससे पूर्वांचल-दक्षिणांचल कंपनी के डेढ़ करोड़ उपभोक्ता सीधे तौर पर प्रभावित होंगे। इसके अलावा दोनों कंपनियों के 75 हजार नियमित और संविदा कर्मियों की नौकरी भी खतरे में बताई जा रही है। सरकार का तर्क है कि निजीकरण से वह शहर और गांव में 24 घंटे बिजली दे सकेगी। बिजली पर होने वाले खर्च से सरकार बचेगी और ये पैसे विकास कार्यों में खर्च किए जा सकेंगे। प्रदेश में सबसे पहले 1993 में ग्रेटर नोएडा और 2010 में आगरा शहर की बिजली का निजीकरण किया गया था। चंडीगढ़ की पूरी बिजली व्यवस्था निजी हाथों में सौंप दी गई है। सवाल ये है कि निजीकरण के पक्ष में सरकारों के तर्क में कितना दम है? क्या वाकई में शहर-गांव में 24 घंटे बिजली मिल पाएगी? निजीकरण से कर्मचारियों की नौकरी कितनी सुरक्षित रहेगी? इसे लेकर बिजली विभाग के एक्सपर्ट और सरकार के दावों की पड़ताल में अलग ही सच्चाई सामने आई। पढ़िए ये रिपोर्ट… ऊर्जा मंत्री एके शर्मा निजीकरण पर कहते हैं- इससे 24 घंटे बिजली देने में मदद मिलेगी। पूर्वांचल और दक्षिणांचल बिजली वितरण कंपनी क्षेत्र में प्रदेश के 42 जिलों के करीब 1.58 करोड़ उपभोक्ता आते हैं। दोनों कंपनियों को घाटे में बताकर सरकार ने निजीकरण का निर्णय लिया है। इसके लिए ट्रांजैक्शन कंसल्टेंट की नियुक्ति होनी है। दोनों कंपनियों में 26 हजार 500 नियमित और 50 हजार संविदा कर्मचारी कार्यरत हैं। सरकार का दावा है कि कर्मचारियों का हित प्रभावित नहीं होगा, लेकिन कर्मचारी आंदोलित है। वे चंडीगढ़ में हुए निजीकरण का उदाहरण दे रहे हैं। वहां निजीकरण के बाद कर्मियों को बाहर कर दिया गया है। हालांकि सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि हर साल 20 प्रतिशत कर्मचारियों को दूसरी कंपनियों में समायोजित करने का विकल्प दिया जाएगा। इसके अलावा कर्मचारियों को वीआरएस का भी विकल्प मिलेगा। यूपी में दो जिलों की बिजली व्यवस्था पहले से निजी हाथों में
निजीकरण को समझने के लिए हमने प्रदेश के दो जिलों ग्रेटर नोएडा और आगरा जिलों में चल रही व्यवस्था को समझने की कोशिश की। प्रदेश में पहली बार बिजली निजीकरण की शुरुआत ग्रेटर नोएडा से 1993 में हुई। ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण और गोयनका ग्रुप के संयुक्त उपक्रम में नोएडा पावर कंपनी लिमिटेड वहां की व्यवस्था संभालती है। नाेएडा में 1.35 लाख उपभोक्ता हैं। इसमें 118 गांव के ग्रामीण उपभोक्ता भी हैं। शहर, उद्योगों और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को 24 घंटे बिजली मिलती है, लेकिन गांवों को बमुश्किल 10-12 घंटे ही बिजली मिलती है। कम पैसे मिलने की वजह से ग्रामीण क्षेत्र के घरेलू और कृषि क्षेत्र को कम बिजली दी जा रही है। जबकि अधिक पैसे देने वाले उद्योगों और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को पूरे 24 घंटे बिजली दी जाती है। निजीकरण में इसी तरह का भेदभाव किया जाता है। यहां कृषि उपभोक्ताओं को सब्सिडी भी नहीं मिलती है। सरकार से एग्रीमेंट के समय 54 महीने में खुद का बिजली घर लगाकर पावर सप्लाई की व्यवस्था करने की बात कही थी। पर 32 सालों बाद भी कंपनी खुद का बिजली घर नहीं लगा पाई। कई सालों तक पावर कॉर्पोरेशन महंगी बिजली खरीद कर उन्हें सस्ते में देती रही। अब जाकर यहां की कंपनी खुद से बिजली की व्यवस्था कर रही है। कंपनी को 30 साल का दिया गया लाइसेंस भी अगस्त 2023 में समाप्त हो चुका है। ये कंपनी उपभोक्ताओं से औसत बिजली लागत 6.12 रुपए प्रति यूनिट की बजाय 8.17 रुपए प्रति यूनिट वसूलती रही। इस कारण नियामक आयोग ने यहां के उपभोक्ताओं को 10 प्रतिशत बिजली सस्ती देने का निर्देश दिया है। राज्य सरकार भी अब इस कंपनी का एग्रीमेंट निरस्त कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ रही है। आगरा-कानपुर के उदाहरण से समझें निजीकरण से कैसे महंगी होगी बिजली
2009 में प्रदेश सरकार ने एक साथ आगरा और कानपुर शहर की बिजली को निजी हाथों में सौंपने का निर्णय लिया। तब कानपुर के बिजली कर्मियों के जोरदार विरोध के चलते सरकार को कदम पीछे खींचने पड़े। कानपुर शहर की बिजली व्यवस्था सरकारी उपक्रम में कानपुर विद्युत आपूर्ति कंपनी लिमिटेड (केस्को) को सौंप दी गई। 1 अप्रैल 2010 को आगरा की बिजली व्यवस्था टोरेंट पावर लिमिटेड को हैंडओवर हो गई थी। आगरा में एशिया का सबसे बड़ा चमड़ा उद्योग है। विश्व प्रसिद्ध ताजमहल के चलते वहां कई पांच सितारा होटल हैं। इसके अलावा कई व्यवसायिक गतिविधियां संचालित हैं। इसकी तुलना में कानपुर में कोई उद्योग नहीं है, जो थे वो बंद हो चुके हैं। नई इंडस्ट्रीज कानपुर देहात क्षेत्र में लग रही हैं। कानपुर शहर में शहरी घरेलू और व्यवसायिक प्रतिष्ठान ही हैं। उत्तर प्रदेश बिजली कर्मचारी संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने बताया, 2023-24 के आंकड़ों के अनुसार कानपुर और आगरा की कंपनियों की तुलना कर लें तो सारा खेल समझ में आ जाएगा। कानपुर की कंपनी बिजली बेच कर उपभोक्ताओं से औसतन 7.96 रुपए प्रति यूनिट वसूलती है। जबकि आगरा की टोरेंट कंपनी को यूपी कॉर्पोरेशन कंपनी 5.55 रुपए प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीद कर 4.36 रुपए प्रति यूनिट की दर से उपलब्ध कराती है। इससे यूपी पावर कॉर्पोरेशन को हर साल 275 करोड़ रुपए की चपत लग रही है। यूपी पावर कॉर्पोरेशन से टोरेंट कंपनी हर साल लगभग 2300 मिलियन यूनिट 4.36 रुपए प्रति यूनिट की दर से खरीद कर 7.98 रुपए प्रति यूनिट की दर से उपभोक्ताओं को बेच रहा है। इससे भी सरकार को प्रति यूनिट 3 रुपए का साफ घाटा लग रहा है। इससे टोरेंट को हर साल लगभग 700 करोड़ रुपए का मुनाफा हो रहा है। यदि निजीकरण नहीं होता तो ये फायदा यूपी पावर कॉरपोरेशन का होता। मतलब साफ है कि अकेले आगरा के निजीकरण से हर साल यूपी पावर कॉरपोरेशन को 1000 करोड़ का नुकसान हो रहा है। दूसरा दावा- निजीकरण से बिजली चोरी और लाइन लॉस कम होगा
पूर्वांचल-दक्षिणांचल के 42 जिलों की बिजली के निजीकरण के पक्ष में सरकार का एक दावा ये भी है कि इससे बिजली चोरी और लाइन लॉस कम होगा। शैलेंद्र दुबे इसे भी आगरा और कानपुर की बिजली व्यवस्था के उदाहरण से समझाते हैं। वह कहते हैं कि आगरा की टोरेंट कंपनी का एग्रीगेट टेक्निकल एंड कॉमर्शियल (एटी एंड सी) लॉस 9.82 प्रतिशत है। जबकि केस्को का लाइन लॉस 9.6 प्रतिशत है। अब पूर्वांचल और दक्षिणांचल बिजली वितरण कंपनी पर आते हैं। 2017 में जब यूपी में योगी सरकार ने कमान संभाली थी तो इन कंपनियों का लाइन लॉस 41 प्रतिशत के लगभग था। केंद्र सरकार की आरडीएसएस (पुनर्व्यवस्थित वितरण क्षेत्र योजना) में पूरे देश में बिजली की बुनियादी सिस्टम को इम्प्रूव करने के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। इसमें जर्जर तारों को बदलने से लेकर ट्रांसफॉर्मर, सब स्टेशन की क्षमता बढ़ाई जा रही है। खुले बिजली के तारों को केबल वाले तारों से बदला जा रहा है। इसका परिणाम भी दिखने लगा है। वर्तमान में दोनों कंपनियों का लाइन लॉस 17 प्रतिशत तक आ चुका है। अगले एक साल में हम इसे 15 प्रतिशत तक ला देंगे। अब चंडीगढ़ और दूसरे राज्यों में निजीकरण का परिणाम भी देख लें
शैलेंद्र दुबे चंडीगढ़ शहर के निजीकरण का उदाहरण देकर समझाते हैं कि इसकी सीबीआई जांच हो जाए तो सारी हकीकत सामने आ जाएगी। यह स्वयं में बड़ा घोटाला है। वर्ष 2024-25 में चंडीगढ़ की बिजली कंपनी 2.77 लाख रुपए के फायदे में थी। नो टैरिफ इनकम ही करीब 18 करोड़ रुपए की थी। ऐसी मुनाफा कमाने वाली कंपनी को बेचने की साजिश का खुलासा होना चाहिए। चंडीगढ़ की बिजली को निजी हाथों में सौंपने के लिए 175 करोड़ रुपए का रिजर्व प्राइस रखा गया था। जबकि चंडीगढ़ की क्लोजिंग इक्विटी साल 2022 में 191 करोड़ रुपए थी। संपत्तियों का मूल्य 534 करोड़ रुपए था। मतलब 700 करोड़ की कंपनी को सिर्फ 175 करोड़ में बेच दिया गया। जबकि चंडीगढ़ देश में सबसे सस्ती दर पर बिजली उपलब्ध करवा रहा था। अब निजी कंपनी बिजली की दरें बढ़ाकर उपभोक्ताओं पर और बोझ डालेगी। चंडीगढ़ के निजीकरण के बाद वहां के सरकारी कर्मियों को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। इसी तरह महाराष्ट्र की बिजली व्यवस्था भी निजी हाथों में है। वहां 500 यूनिट के ऊपर बिजली खपत करने पर 17.82 रुपए प्रति यूनिट की दर से भुगतान करने पड़ते हैं। उद्योगों को 22 रुपए प्रति यूनिट तक बिजली दी जाती है। ——————————- ये भी पढ़ें: यूपी में अब गांवों से भी चलेंगी सरकारी बसें:परिवहन विभाग ड्राइवर और कंडक्टर की करेगा भर्ती; देखिए सभी 374 रूट की लिस्ट उत्तर प्रदेश के 28 हजार गांवों को जोड़ने के लिए 1 हजार 540 रूट तए किए गए हैं। इनमें 1 हजार 130 पुराने रूट हैं, 410 नए रूट जोड़े गए हैं। इस पर पहली बार परिवहन विभाग की बसें चलेंगी। 374 रूट का परमिट भी जारी हो चुका है। होली बाद इन मार्गों पर बसें चलने लगेंगी। बाकी रूटों पर परमिट देने की प्रक्रिया चल रही है। (पढ़ें पूरी खबर) प्रदेश सरकार 42 जिलों की बिजली निजी हाथों में सौंपने की तैयारी में है। इससे पूर्वांचल-दक्षिणांचल कंपनी के डेढ़ करोड़ उपभोक्ता सीधे तौर पर प्रभावित होंगे। इसके अलावा दोनों कंपनियों के 75 हजार नियमित और संविदा कर्मियों की नौकरी भी खतरे में बताई जा रही है। सरकार का तर्क है कि निजीकरण से वह शहर और गांव में 24 घंटे बिजली दे सकेगी। बिजली पर होने वाले खर्च से सरकार बचेगी और ये पैसे विकास कार्यों में खर्च किए जा सकेंगे। प्रदेश में सबसे पहले 1993 में ग्रेटर नोएडा और 2010 में आगरा शहर की बिजली का निजीकरण किया गया था। चंडीगढ़ की पूरी बिजली व्यवस्था निजी हाथों में सौंप दी गई है। सवाल ये है कि निजीकरण के पक्ष में सरकारों के तर्क में कितना दम है? क्या वाकई में शहर-गांव में 24 घंटे बिजली मिल पाएगी? निजीकरण से कर्मचारियों की नौकरी कितनी सुरक्षित रहेगी? इसे लेकर बिजली विभाग के एक्सपर्ट और सरकार के दावों की पड़ताल में अलग ही सच्चाई सामने आई। पढ़िए ये रिपोर्ट… ऊर्जा मंत्री एके शर्मा निजीकरण पर कहते हैं- इससे 24 घंटे बिजली देने में मदद मिलेगी। पूर्वांचल और दक्षिणांचल बिजली वितरण कंपनी क्षेत्र में प्रदेश के 42 जिलों के करीब 1.58 करोड़ उपभोक्ता आते हैं। दोनों कंपनियों को घाटे में बताकर सरकार ने निजीकरण का निर्णय लिया है। इसके लिए ट्रांजैक्शन कंसल्टेंट की नियुक्ति होनी है। दोनों कंपनियों में 26 हजार 500 नियमित और 50 हजार संविदा कर्मचारी कार्यरत हैं। सरकार का दावा है कि कर्मचारियों का हित प्रभावित नहीं होगा, लेकिन कर्मचारी आंदोलित है। वे चंडीगढ़ में हुए निजीकरण का उदाहरण दे रहे हैं। वहां निजीकरण के बाद कर्मियों को बाहर कर दिया गया है। हालांकि सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि हर साल 20 प्रतिशत कर्मचारियों को दूसरी कंपनियों में समायोजित करने का विकल्प दिया जाएगा। इसके अलावा कर्मचारियों को वीआरएस का भी विकल्प मिलेगा। यूपी में दो जिलों की बिजली व्यवस्था पहले से निजी हाथों में
निजीकरण को समझने के लिए हमने प्रदेश के दो जिलों ग्रेटर नोएडा और आगरा जिलों में चल रही व्यवस्था को समझने की कोशिश की। प्रदेश में पहली बार बिजली निजीकरण की शुरुआत ग्रेटर नोएडा से 1993 में हुई। ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण और गोयनका ग्रुप के संयुक्त उपक्रम में नोएडा पावर कंपनी लिमिटेड वहां की व्यवस्था संभालती है। नाेएडा में 1.35 लाख उपभोक्ता हैं। इसमें 118 गांव के ग्रामीण उपभोक्ता भी हैं। शहर, उद्योगों और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को 24 घंटे बिजली मिलती है, लेकिन गांवों को बमुश्किल 10-12 घंटे ही बिजली मिलती है। कम पैसे मिलने की वजह से ग्रामीण क्षेत्र के घरेलू और कृषि क्षेत्र को कम बिजली दी जा रही है। जबकि अधिक पैसे देने वाले उद्योगों और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को पूरे 24 घंटे बिजली दी जाती है। निजीकरण में इसी तरह का भेदभाव किया जाता है। यहां कृषि उपभोक्ताओं को सब्सिडी भी नहीं मिलती है। सरकार से एग्रीमेंट के समय 54 महीने में खुद का बिजली घर लगाकर पावर सप्लाई की व्यवस्था करने की बात कही थी। पर 32 सालों बाद भी कंपनी खुद का बिजली घर नहीं लगा पाई। कई सालों तक पावर कॉर्पोरेशन महंगी बिजली खरीद कर उन्हें सस्ते में देती रही। अब जाकर यहां की कंपनी खुद से बिजली की व्यवस्था कर रही है। कंपनी को 30 साल का दिया गया लाइसेंस भी अगस्त 2023 में समाप्त हो चुका है। ये कंपनी उपभोक्ताओं से औसत बिजली लागत 6.12 रुपए प्रति यूनिट की बजाय 8.17 रुपए प्रति यूनिट वसूलती रही। इस कारण नियामक आयोग ने यहां के उपभोक्ताओं को 10 प्रतिशत बिजली सस्ती देने का निर्देश दिया है। राज्य सरकार भी अब इस कंपनी का एग्रीमेंट निरस्त कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ रही है। आगरा-कानपुर के उदाहरण से समझें निजीकरण से कैसे महंगी होगी बिजली
2009 में प्रदेश सरकार ने एक साथ आगरा और कानपुर शहर की बिजली को निजी हाथों में सौंपने का निर्णय लिया। तब कानपुर के बिजली कर्मियों के जोरदार विरोध के चलते सरकार को कदम पीछे खींचने पड़े। कानपुर शहर की बिजली व्यवस्था सरकारी उपक्रम में कानपुर विद्युत आपूर्ति कंपनी लिमिटेड (केस्को) को सौंप दी गई। 1 अप्रैल 2010 को आगरा की बिजली व्यवस्था टोरेंट पावर लिमिटेड को हैंडओवर हो गई थी। आगरा में एशिया का सबसे बड़ा चमड़ा उद्योग है। विश्व प्रसिद्ध ताजमहल के चलते वहां कई पांच सितारा होटल हैं। इसके अलावा कई व्यवसायिक गतिविधियां संचालित हैं। इसकी तुलना में कानपुर में कोई उद्योग नहीं है, जो थे वो बंद हो चुके हैं। नई इंडस्ट्रीज कानपुर देहात क्षेत्र में लग रही हैं। कानपुर शहर में शहरी घरेलू और व्यवसायिक प्रतिष्ठान ही हैं। उत्तर प्रदेश बिजली कर्मचारी संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने बताया, 2023-24 के आंकड़ों के अनुसार कानपुर और आगरा की कंपनियों की तुलना कर लें तो सारा खेल समझ में आ जाएगा। कानपुर की कंपनी बिजली बेच कर उपभोक्ताओं से औसतन 7.96 रुपए प्रति यूनिट वसूलती है। जबकि आगरा की टोरेंट कंपनी को यूपी कॉर्पोरेशन कंपनी 5.55 रुपए प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीद कर 4.36 रुपए प्रति यूनिट की दर से उपलब्ध कराती है। इससे यूपी पावर कॉर्पोरेशन को हर साल 275 करोड़ रुपए की चपत लग रही है। यूपी पावर कॉर्पोरेशन से टोरेंट कंपनी हर साल लगभग 2300 मिलियन यूनिट 4.36 रुपए प्रति यूनिट की दर से खरीद कर 7.98 रुपए प्रति यूनिट की दर से उपभोक्ताओं को बेच रहा है। इससे भी सरकार को प्रति यूनिट 3 रुपए का साफ घाटा लग रहा है। इससे टोरेंट को हर साल लगभग 700 करोड़ रुपए का मुनाफा हो रहा है। यदि निजीकरण नहीं होता तो ये फायदा यूपी पावर कॉरपोरेशन का होता। मतलब साफ है कि अकेले आगरा के निजीकरण से हर साल यूपी पावर कॉरपोरेशन को 1000 करोड़ का नुकसान हो रहा है। दूसरा दावा- निजीकरण से बिजली चोरी और लाइन लॉस कम होगा
पूर्वांचल-दक्षिणांचल के 42 जिलों की बिजली के निजीकरण के पक्ष में सरकार का एक दावा ये भी है कि इससे बिजली चोरी और लाइन लॉस कम होगा। शैलेंद्र दुबे इसे भी आगरा और कानपुर की बिजली व्यवस्था के उदाहरण से समझाते हैं। वह कहते हैं कि आगरा की टोरेंट कंपनी का एग्रीगेट टेक्निकल एंड कॉमर्शियल (एटी एंड सी) लॉस 9.82 प्रतिशत है। जबकि केस्को का लाइन लॉस 9.6 प्रतिशत है। अब पूर्वांचल और दक्षिणांचल बिजली वितरण कंपनी पर आते हैं। 2017 में जब यूपी में योगी सरकार ने कमान संभाली थी तो इन कंपनियों का लाइन लॉस 41 प्रतिशत के लगभग था। केंद्र सरकार की आरडीएसएस (पुनर्व्यवस्थित वितरण क्षेत्र योजना) में पूरे देश में बिजली की बुनियादी सिस्टम को इम्प्रूव करने के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। इसमें जर्जर तारों को बदलने से लेकर ट्रांसफॉर्मर, सब स्टेशन की क्षमता बढ़ाई जा रही है। खुले बिजली के तारों को केबल वाले तारों से बदला जा रहा है। इसका परिणाम भी दिखने लगा है। वर्तमान में दोनों कंपनियों का लाइन लॉस 17 प्रतिशत तक आ चुका है। अगले एक साल में हम इसे 15 प्रतिशत तक ला देंगे। अब चंडीगढ़ और दूसरे राज्यों में निजीकरण का परिणाम भी देख लें
शैलेंद्र दुबे चंडीगढ़ शहर के निजीकरण का उदाहरण देकर समझाते हैं कि इसकी सीबीआई जांच हो जाए तो सारी हकीकत सामने आ जाएगी। यह स्वयं में बड़ा घोटाला है। वर्ष 2024-25 में चंडीगढ़ की बिजली कंपनी 2.77 लाख रुपए के फायदे में थी। नो टैरिफ इनकम ही करीब 18 करोड़ रुपए की थी। ऐसी मुनाफा कमाने वाली कंपनी को बेचने की साजिश का खुलासा होना चाहिए। चंडीगढ़ की बिजली को निजी हाथों में सौंपने के लिए 175 करोड़ रुपए का रिजर्व प्राइस रखा गया था। जबकि चंडीगढ़ की क्लोजिंग इक्विटी साल 2022 में 191 करोड़ रुपए थी। संपत्तियों का मूल्य 534 करोड़ रुपए था। मतलब 700 करोड़ की कंपनी को सिर्फ 175 करोड़ में बेच दिया गया। जबकि चंडीगढ़ देश में सबसे सस्ती दर पर बिजली उपलब्ध करवा रहा था। अब निजी कंपनी बिजली की दरें बढ़ाकर उपभोक्ताओं पर और बोझ डालेगी। चंडीगढ़ के निजीकरण के बाद वहां के सरकारी कर्मियों को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। इसी तरह महाराष्ट्र की बिजली व्यवस्था भी निजी हाथों में है। वहां 500 यूनिट के ऊपर बिजली खपत करने पर 17.82 रुपए प्रति यूनिट की दर से भुगतान करने पड़ते हैं। उद्योगों को 22 रुपए प्रति यूनिट तक बिजली दी जाती है। ——————————- ये भी पढ़ें: यूपी में अब गांवों से भी चलेंगी सरकारी बसें:परिवहन विभाग ड्राइवर और कंडक्टर की करेगा भर्ती; देखिए सभी 374 रूट की लिस्ट उत्तर प्रदेश के 28 हजार गांवों को जोड़ने के लिए 1 हजार 540 रूट तए किए गए हैं। इनमें 1 हजार 130 पुराने रूट हैं, 410 नए रूट जोड़े गए हैं। इस पर पहली बार परिवहन विभाग की बसें चलेंगी। 374 रूट का परमिट भी जारी हो चुका है। होली बाद इन मार्गों पर बसें चलने लगेंगी। बाकी रूटों पर परमिट देने की प्रक्रिया चल रही है। (पढ़ें पूरी खबर)   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर