लखनऊ के एक निजी अस्पताल ने 35 साल के युवक को अपाहिज बना दिया है। बैटरी रिक्शा पलटा तो उस युवक को चोट आई। अस्पताल में ऑपरेशन कराया गया। मरीज की माने तो उसके पैर का ऑपरेशन गलत तरीके से किया गया। बाद में पैर में सड़न हो गई थी। उस सड़न का इलाज करने के लिए 9 बार ऑपरेशन कराना पड़ा। बार-बार के ऑपरेशन में लाखों रुपए खर्च हुए। दूसरे पैर से मांस निकालने की वजह से वह भी कमजोर हो गया है। अब युवकों को चलने-फिरने में परेशानी हो रही है। CMO की चेकिंग में अस्पताल बेदाग मरीज की झकझोरने वाली इस दास्तान को सुनकर भी जिले के स्वास्थ्य महकमे के अफसरों का दिल नहीं पसीजा। CMO ऑफिस की जांच टीम ने निजी अस्पताल को क्लीन चिट दे दी। पीड़ित ने CMO की जांच रिपोर्ट को गलत होने का आरोप लगाते हुए स्वास्थ्य महानिदेशक से शिकायत दर्ज करा दी। अब मामले की जांच अपर निदेशक स्वास्थ्य के हवाले है। पढ़िए मरीज ने क्या-क्या बताया लखनऊ के गोमतीनगर स्थित खरगापुर के कौशलपुरी रहने वाले नीरज मिश्रा फल और सब्जी बेचकर परिवार का पालन-पोषण करते थे। 28 अप्रैल 2022 को किसी काम से बैटरी रिक्शा से कहीं जा रहे थे। अचानक बैटरी रिक्शा पलट गया, जिसमें वो चोटिल हो गए। नीरज कहते हैं- घटना के समय मौजूद लोगों ने आनन-फानन में उन्हें गोमतीनगर विस्तार के विनोद हॉस्पिटल पहुंचाया। यहां विनोद और राहुल नाम के 2 लोगों ने इलाज शुरू किया। वे खुद को डॉक्टर बता रहे थे। मेरा एक पैर टूटा था, दर्द बेहद ज्यादा था पर मैं होश में था। दूसरे अस्पताल में कराया ऑपरेशन नीरज ने बताया- विनोद अस्पताल ने भर्ती कर लिया पर वहां ऑपरेशन की सुविधा नहीं थी। हैनीमैन के निजी डाइग्नोस्टिक सेंटर में एक्स-रे करवाया। उसमें एक पैर की दो हड्डी टूटी दिखी। अस्पताल मालिक विनोद जो खुद को डॉक्टर बता रहे थे, उन्होंने कहा कि घाव ज्यादा है। हड्डी बाहर निकल आई है। ऐसे में ऑपरेशन कराना पड़ेगा। इस पर परिजन राजी हो गए। 29 अप्रैल 2022 की आधी रात को विनोद अस्पताल ने मरीज को एम्बुलेंस से कुर्सी रोड के ग्रीन सिटी हॉस्पिटल में भर्ती कराया। वहां ऑपरेशन डॉ. संतोष गुप्ता ने किया। ऑपरेशन कर रॉड डाल दिया गया। ऑपरेशन के आधे घंटे बाद ही विनोद हॉस्पिटल में मरीज को वापस लाया गया। 14 दिन इलाज के बाद घर गया तबीयत बिगड़ी पीड़ित नीरज ने बताया- ऑपरेशन के लिए दूसरे पैर से मांस लिया गया था। इस कारण दूसरा पैर भी बेहद कमजोर हो गया। करीब 14 दिन तक विनोद अस्पताल में मैं भर्ती रहा। डिस्चार्ज होने के बाद तबीयत और बिगड़ गई। दूसरे अस्पताल में दिखाया तो वहां के डॉक्टर ने पैर में सड़न होने की बात कही। सरकारी अस्पतालों ने हाथ खड़े किए नीरज ने बताया- लोहिया हॉस्पिटल के बाद KGMU दिखाने पहुंचा। यहां के डॉक्टरों ने भी कहा कि इन्फेक्शन बढ़ चुका है। हो सकता है कि पैर काटना पड़े। फिर हारकर दूसरे निजी अस्पताल पहुंचे। वहां डॉ. वैभव खन्ना ने कहा कि खर्च आएगा और समय भी लगेगा। कई राउंड ऑपरेशन करने पड़ेंगे। डॉ. वैभव खन्ना ने इलाज के दौरान कुल 9 ऑपरेशन किए। उस दौरान करीब 15 लाख का खर्च आया। इसमें 4 लाख की मदद CM रिलीफ फंड से भी मिली। उनके इलाज के बाद ही अब डंडे के सहारे चल पा रहा हूं। पहले तो बैसाखी के बिना नहीं चल पा रहा था। गुहार लगाने अब तक कहां-कहां गया डीएम, कमिश्नर से डिप्टी सीएम तक से मिला नीरज कहते हैं कि न्याय पाने के लिए डीएम, कमिश्नर से लेकर डिप्टी सीएम तक से मिला। सभी ने न्याय का भरोसा दिया पर जांच के बाद कहीं सुनवाई नहीं हुई। सीएमओ ऑफिस की जांच में निजी अस्पताल को क्लीन चिट दे दी गई। अब सिर्फ मुख्यमंत्री से आस है। मानवाधिकार आयोग में भी शिकायत की स्वास्थ्य विभाग से न्याय न मिलते देख नीरज ने मानवाधिकार आयोग में भी शिकायत दर्ज कराई।आयोग से रिपोर्ट तलब की गई है। वह मानते हैं कि यदि निष्पक्ष जांच होगी तो निजी अस्पताल का दोष जरूर सामने आएगा। तभी अस्पताल पर कार्रवाई हो पाएगी। पीड़ित को जरूर मिलेगा न्याय मौजूदा समय शिकायत की जांच कर रहे लखनऊ मंडल के अपर निदेशक स्वास्थ्य डॉ.जीपी गुप्ता ने बताया कि CMO ऑफिस की टीम ने मामले की जांच की थी। वहां से निजी अस्पताल को क्लीन चिट मिली है। मैं खुद ऑर्थोपेडिक सर्जन हूं ऐसे में इलाज के दौरान हुई लापरवाही को समझना मुश्किल नहीं होगा। शुरुआती जांच में निजी अस्पताल संचालक ने तर्क दिया है कि मरीज ऑपरेशन के बाद जब डिस्चार्ज होकर घर गया तो फिर कभी विनोद हॉस्पिटल नहीं आया। इसके अलावा 9 और ऑपरेशन करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि ये जांच के बाद ही बताया जा सकता है कि मरीज के कुल कितने ऑपरेशन हुए। अस्पताल का आरोप- पूरा बिल नहीं भरा विनोद हॉस्पिटल के संचालक विनोद कुमार का कहना है कि मरीज करीब 3 साल पहले आया था। ऑपरेशन के बाद मरीज को 14 दिन भर्ती कर इलाज किया गया था। डिस्चार्ज होने के बाद वह फिर कभी अस्पताल नहीं आया। अब अचानक से शिकायत करनी शुरू कर दी। 60 हजार के करीब बिल था पर 38 हजार रुपए ही मिले हैं। हॉस्पिटल संचालक ने कहा- मशीन खराब थी तो मरीज का ऑपरेशन दूसरे अस्पताल में कराया गया था। मरीज और परिजन सभी राजी थे। दूसरे अस्पताल के ऑर्थोपेडिक डॉक्टर ने उनकी सर्जरी की। यदि इसके बाद भी उन्हें कोई समस्या थी तो पहले उन्हें हमारे अस्पताल में दिखाना चाहिए था। लखनऊ के एक निजी अस्पताल ने 35 साल के युवक को अपाहिज बना दिया है। बैटरी रिक्शा पलटा तो उस युवक को चोट आई। अस्पताल में ऑपरेशन कराया गया। मरीज की माने तो उसके पैर का ऑपरेशन गलत तरीके से किया गया। बाद में पैर में सड़न हो गई थी। उस सड़न का इलाज करने के लिए 9 बार ऑपरेशन कराना पड़ा। बार-बार के ऑपरेशन में लाखों रुपए खर्च हुए। दूसरे पैर से मांस निकालने की वजह से वह भी कमजोर हो गया है। अब युवकों को चलने-फिरने में परेशानी हो रही है। CMO की चेकिंग में अस्पताल बेदाग मरीज की झकझोरने वाली इस दास्तान को सुनकर भी जिले के स्वास्थ्य महकमे के अफसरों का दिल नहीं पसीजा। CMO ऑफिस की जांच टीम ने निजी अस्पताल को क्लीन चिट दे दी। पीड़ित ने CMO की जांच रिपोर्ट को गलत होने का आरोप लगाते हुए स्वास्थ्य महानिदेशक से शिकायत दर्ज करा दी। अब मामले की जांच अपर निदेशक स्वास्थ्य के हवाले है। पढ़िए मरीज ने क्या-क्या बताया लखनऊ के गोमतीनगर स्थित खरगापुर के कौशलपुरी रहने वाले नीरज मिश्रा फल और सब्जी बेचकर परिवार का पालन-पोषण करते थे। 28 अप्रैल 2022 को किसी काम से बैटरी रिक्शा से कहीं जा रहे थे। अचानक बैटरी रिक्शा पलट गया, जिसमें वो चोटिल हो गए। नीरज कहते हैं- घटना के समय मौजूद लोगों ने आनन-फानन में उन्हें गोमतीनगर विस्तार के विनोद हॉस्पिटल पहुंचाया। यहां विनोद और राहुल नाम के 2 लोगों ने इलाज शुरू किया। वे खुद को डॉक्टर बता रहे थे। मेरा एक पैर टूटा था, दर्द बेहद ज्यादा था पर मैं होश में था। दूसरे अस्पताल में कराया ऑपरेशन नीरज ने बताया- विनोद अस्पताल ने भर्ती कर लिया पर वहां ऑपरेशन की सुविधा नहीं थी। हैनीमैन के निजी डाइग्नोस्टिक सेंटर में एक्स-रे करवाया। उसमें एक पैर की दो हड्डी टूटी दिखी। अस्पताल मालिक विनोद जो खुद को डॉक्टर बता रहे थे, उन्होंने कहा कि घाव ज्यादा है। हड्डी बाहर निकल आई है। ऐसे में ऑपरेशन कराना पड़ेगा। इस पर परिजन राजी हो गए। 29 अप्रैल 2022 की आधी रात को विनोद अस्पताल ने मरीज को एम्बुलेंस से कुर्सी रोड के ग्रीन सिटी हॉस्पिटल में भर्ती कराया। वहां ऑपरेशन डॉ. संतोष गुप्ता ने किया। ऑपरेशन कर रॉड डाल दिया गया। ऑपरेशन के आधे घंटे बाद ही विनोद हॉस्पिटल में मरीज को वापस लाया गया। 14 दिन इलाज के बाद घर गया तबीयत बिगड़ी पीड़ित नीरज ने बताया- ऑपरेशन के लिए दूसरे पैर से मांस लिया गया था। इस कारण दूसरा पैर भी बेहद कमजोर हो गया। करीब 14 दिन तक विनोद अस्पताल में मैं भर्ती रहा। डिस्चार्ज होने के बाद तबीयत और बिगड़ गई। दूसरे अस्पताल में दिखाया तो वहां के डॉक्टर ने पैर में सड़न होने की बात कही। सरकारी अस्पतालों ने हाथ खड़े किए नीरज ने बताया- लोहिया हॉस्पिटल के बाद KGMU दिखाने पहुंचा। यहां के डॉक्टरों ने भी कहा कि इन्फेक्शन बढ़ चुका है। हो सकता है कि पैर काटना पड़े। फिर हारकर दूसरे निजी अस्पताल पहुंचे। वहां डॉ. वैभव खन्ना ने कहा कि खर्च आएगा और समय भी लगेगा। कई राउंड ऑपरेशन करने पड़ेंगे। डॉ. वैभव खन्ना ने इलाज के दौरान कुल 9 ऑपरेशन किए। उस दौरान करीब 15 लाख का खर्च आया। इसमें 4 लाख की मदद CM रिलीफ फंड से भी मिली। उनके इलाज के बाद ही अब डंडे के सहारे चल पा रहा हूं। पहले तो बैसाखी के बिना नहीं चल पा रहा था। गुहार लगाने अब तक कहां-कहां गया डीएम, कमिश्नर से डिप्टी सीएम तक से मिला नीरज कहते हैं कि न्याय पाने के लिए डीएम, कमिश्नर से लेकर डिप्टी सीएम तक से मिला। सभी ने न्याय का भरोसा दिया पर जांच के बाद कहीं सुनवाई नहीं हुई। सीएमओ ऑफिस की जांच में निजी अस्पताल को क्लीन चिट दे दी गई। अब सिर्फ मुख्यमंत्री से आस है। मानवाधिकार आयोग में भी शिकायत की स्वास्थ्य विभाग से न्याय न मिलते देख नीरज ने मानवाधिकार आयोग में भी शिकायत दर्ज कराई।आयोग से रिपोर्ट तलब की गई है। वह मानते हैं कि यदि निष्पक्ष जांच होगी तो निजी अस्पताल का दोष जरूर सामने आएगा। तभी अस्पताल पर कार्रवाई हो पाएगी। पीड़ित को जरूर मिलेगा न्याय मौजूदा समय शिकायत की जांच कर रहे लखनऊ मंडल के अपर निदेशक स्वास्थ्य डॉ.जीपी गुप्ता ने बताया कि CMO ऑफिस की टीम ने मामले की जांच की थी। वहां से निजी अस्पताल को क्लीन चिट मिली है। मैं खुद ऑर्थोपेडिक सर्जन हूं ऐसे में इलाज के दौरान हुई लापरवाही को समझना मुश्किल नहीं होगा। शुरुआती जांच में निजी अस्पताल संचालक ने तर्क दिया है कि मरीज ऑपरेशन के बाद जब डिस्चार्ज होकर घर गया तो फिर कभी विनोद हॉस्पिटल नहीं आया। इसके अलावा 9 और ऑपरेशन करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि ये जांच के बाद ही बताया जा सकता है कि मरीज के कुल कितने ऑपरेशन हुए। अस्पताल का आरोप- पूरा बिल नहीं भरा विनोद हॉस्पिटल के संचालक विनोद कुमार का कहना है कि मरीज करीब 3 साल पहले आया था। ऑपरेशन के बाद मरीज को 14 दिन भर्ती कर इलाज किया गया था। डिस्चार्ज होने के बाद वह फिर कभी अस्पताल नहीं आया। अब अचानक से शिकायत करनी शुरू कर दी। 60 हजार के करीब बिल था पर 38 हजार रुपए ही मिले हैं। हॉस्पिटल संचालक ने कहा- मशीन खराब थी तो मरीज का ऑपरेशन दूसरे अस्पताल में कराया गया था। मरीज और परिजन सभी राजी थे। दूसरे अस्पताल के ऑर्थोपेडिक डॉक्टर ने उनकी सर्जरी की। यदि इसके बाद भी उन्हें कोई समस्या थी तो पहले उन्हें हमारे अस्पताल में दिखाना चाहिए था। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
लखनऊ में युवक के पैर का 9 बार ऑपरेशन:दूसरे पैर से मांस निकाला; वह भी कमजोर हो गया, निजी अस्पताल पर लापरवाही का आरोप
