उत्तराखंड वन विभाग के पास नहीं हैं वेटरनरी डॉक्टर, संकट में वन्यजीवों का इलाज

उत्तराखंड वन विभाग के पास नहीं हैं वेटरनरी डॉक्टर, संकट में वन्यजीवों का इलाज

<p style=”text-align: justify;”><strong>Uttarakhand Forest /epartment News:</strong> उत्तराखंड जैसे जैव विविधता से भरपूर राज्य में जहां बाघ, हाथी, तेंदुआ और अन्य वन्यजीवों की सुरक्षा पर हर साल करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं, वहीं उनकी सेहत के लिए जिम्मेदार सबसे जरूरी कड़ी पशु चिकित्सक की भारी कमी है. उत्तराखंड वन विभाग के पास वेटरनरी डॉक्टरों का कोई स्वतंत्र ढांचा ही नहीं है. ऐसे में घायल या बीमार वन्यजीवों का इलाज करना चुनौती बन गया है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>वर्तमान में वन विभाग पशुपालन विभाग से प्रतिनियुक्ति पर आए वेटरनरी डॉक्टरों के भरोसे चल रहा है. लेकिन हाल ही में वित्त विभाग द्वारा जारी एक आदेश ने इस व्यवस्था को झटका दे दिया है. आदेश के अनुसार, पिछले पांच साल से प्रतिनियुक्ति पर कार्य कर रहे कर्मचारियों को अब अपने मूल विभाग में लौटना होगा. इसका सीधा असर वन विभाग में तैनात पशु चिकित्सकों पर पड़ा है</p>
<p style=”text-align: justify;”>वन विभाग में वर्तमान में आठ पशु चिकित्सक कार्यरत हैं, जिनमें से चार को अब अपने मूल विभाग पशुपालन में लौटना होगा. जबकि वन विभाग ने शासन से छह नए वेटरनरी डॉक्टरों की मांग की है. विभाग का कहना है कि वह पशुपालन विभाग के साथ मिलकर एक स्थायी ढांचा तैयार करना चाहता है, लेकिन इस दिशा में फिलहाल कोई ठोस कार्रवाई होती नहीं दिख रही.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>घायल या बीमार जंगली जानवरों का इलाज कौन करेगा?</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>सचिव पशुपालन का कहना है कि विभाग के पास खुद पशु चिकित्सकों की भारी कमी है, ऐसे में वे ज्यादा डॉक्टर वन विभाग को नहीं दे सकते. इसका मतलब साफ है वन्यजीवों के इलाज की जिम्मेदारी अब लटकती हुई तलवार बन गई है. यह सवाल अब बड़े पैमाने पर खड़ा हो गया है कि जब वन विभाग के पास अपने डॉक्टर ही नहीं होंगे, तो घायल या बीमार जंगली जानवरों का इलाज कौन करेगा? खासकर ऐसे समय में जब मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं और वन्यजीवों के घायल होने की खबरें आम हो गई हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>कैमरा ट्रैपिंग, ट्रैकिंग सिस्टम, गश्त और बाड़बंदी पर होते हैं करोड़ों खर्च</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>वन विभाग द्वारा हर साल वन्यजीवों की सुरक्षा और संरक्षण पर मोटा बजट खर्च किया जाता है. कैमरा ट्रैपिंग, ट्रैकिंग सिस्टम, गश्त और बाड़बंदी पर करोड़ों खर्च होते हैं, लेकिन सबसे जरूरी व्यवस्था चिकित्सकीय देखभाल अभी भी दूसरे विभाग के रहमोकरम पर चल रही है. उत्तराखंड के वन्यजीवों की सुरक्षा और उनके जीवन की रक्षा तब तक अधूरी है, जब तक वन विभाग के पास खुद का वेटरनरी सिस्टम नहीं होगा. शासन को चाहिए कि वह वन विभाग में एक स्थायी पशु चिकित्सा ढांचा तैयार करे, ताकि संकट की घड़ी में घायल वन्यजीवों को तत्काल इलाज मिल सके और उनकी जान बचाई जा सके. वरना वन्यजीव संरक्षण की सारी योजनाएं केवल कागजों तक सिमट कर रह जाएंगी.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong><a href=”https://www.abplive.com/states/up-uk/up-politics-akhilesh-yadav-and-congress-strategy-for-up-assembly-election-2027-2922906″>यूपी में 2027 के लिए सपा और कांग्रेस की यह है साझा रणनीति! दोनों यूं कर रहे बीजेपी पर सियासी वार</a></strong></p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Uttarakhand Forest /epartment News:</strong> उत्तराखंड जैसे जैव विविधता से भरपूर राज्य में जहां बाघ, हाथी, तेंदुआ और अन्य वन्यजीवों की सुरक्षा पर हर साल करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं, वहीं उनकी सेहत के लिए जिम्मेदार सबसे जरूरी कड़ी पशु चिकित्सक की भारी कमी है. उत्तराखंड वन विभाग के पास वेटरनरी डॉक्टरों का कोई स्वतंत्र ढांचा ही नहीं है. ऐसे में घायल या बीमार वन्यजीवों का इलाज करना चुनौती बन गया है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>वर्तमान में वन विभाग पशुपालन विभाग से प्रतिनियुक्ति पर आए वेटरनरी डॉक्टरों के भरोसे चल रहा है. लेकिन हाल ही में वित्त विभाग द्वारा जारी एक आदेश ने इस व्यवस्था को झटका दे दिया है. आदेश के अनुसार, पिछले पांच साल से प्रतिनियुक्ति पर कार्य कर रहे कर्मचारियों को अब अपने मूल विभाग में लौटना होगा. इसका सीधा असर वन विभाग में तैनात पशु चिकित्सकों पर पड़ा है</p>
<p style=”text-align: justify;”>वन विभाग में वर्तमान में आठ पशु चिकित्सक कार्यरत हैं, जिनमें से चार को अब अपने मूल विभाग पशुपालन में लौटना होगा. जबकि वन विभाग ने शासन से छह नए वेटरनरी डॉक्टरों की मांग की है. विभाग का कहना है कि वह पशुपालन विभाग के साथ मिलकर एक स्थायी ढांचा तैयार करना चाहता है, लेकिन इस दिशा में फिलहाल कोई ठोस कार्रवाई होती नहीं दिख रही.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>घायल या बीमार जंगली जानवरों का इलाज कौन करेगा?</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>सचिव पशुपालन का कहना है कि विभाग के पास खुद पशु चिकित्सकों की भारी कमी है, ऐसे में वे ज्यादा डॉक्टर वन विभाग को नहीं दे सकते. इसका मतलब साफ है वन्यजीवों के इलाज की जिम्मेदारी अब लटकती हुई तलवार बन गई है. यह सवाल अब बड़े पैमाने पर खड़ा हो गया है कि जब वन विभाग के पास अपने डॉक्टर ही नहीं होंगे, तो घायल या बीमार जंगली जानवरों का इलाज कौन करेगा? खासकर ऐसे समय में जब मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं और वन्यजीवों के घायल होने की खबरें आम हो गई हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>कैमरा ट्रैपिंग, ट्रैकिंग सिस्टम, गश्त और बाड़बंदी पर होते हैं करोड़ों खर्च</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>वन विभाग द्वारा हर साल वन्यजीवों की सुरक्षा और संरक्षण पर मोटा बजट खर्च किया जाता है. कैमरा ट्रैपिंग, ट्रैकिंग सिस्टम, गश्त और बाड़बंदी पर करोड़ों खर्च होते हैं, लेकिन सबसे जरूरी व्यवस्था चिकित्सकीय देखभाल अभी भी दूसरे विभाग के रहमोकरम पर चल रही है. उत्तराखंड के वन्यजीवों की सुरक्षा और उनके जीवन की रक्षा तब तक अधूरी है, जब तक वन विभाग के पास खुद का वेटरनरी सिस्टम नहीं होगा. शासन को चाहिए कि वह वन विभाग में एक स्थायी पशु चिकित्सा ढांचा तैयार करे, ताकि संकट की घड़ी में घायल वन्यजीवों को तत्काल इलाज मिल सके और उनकी जान बचाई जा सके. वरना वन्यजीव संरक्षण की सारी योजनाएं केवल कागजों तक सिमट कर रह जाएंगी.</p>
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