‘मेरे लिए हमारा देश सबसे जरूरी है। सारी दुनिया एक तरफ, मेरा देश एक तरफ। इंडियन आर्मी हमारे लिए जान तक देने को तैयार है, तो क्या मैं उन्हें अपने पैसे भी नहीं दे सकती? मैं इतना छोटा-सा काम कैसे नहीं कर सकती? इसीलिए मैंने अपने सारे पैसे दे दिए। खिलौने बाद में खरीद लूंगी।’ ये भावनाएं हैं गोरखपुर की 8 साल की बच्ची मानवी सिंह। उसने भारत-पाकिस्तान के बीच चले हमलों को देखते हुए अपने पिगी बैंक के सारे पैसे डोनेट कर दिए। अपने पापा से कहा- ये पैसे मोदी जी को भेज दीजिए। इससे हमारी आर्मी मजबूत होगी। इतनी छोटी-सी उम्र में मानवी के मन ये बातें कैसे आईं? ये पैसे उसने कितने दिन में जोड़े थे? कैसे सेना को देने का फैसला लिया? यह सब कुछ जानने के लिए दैनिक भास्कर एप की टीम मानवी के घर पहुंची। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… स्कूल से आते ही बोली- मेरे पैसे मोदी जी को दे दीजिए
शहर में ही बेतियाहाता में कमिश्नर आवास से महज 20 मीटर पहले रवींद्र भवन है। यहां रहने वाला परिवार राजनीतिक और सामाजिक सरोकारों से जुड़ा हुआ है। हमारी टीम जब यहां पहुंची, तो सबसे पहले मुलाकात मानवी के पिता आदित्य प्रताप सिंह से हुई। आदित्य बताते हैं- मेरी बेटी कक्षा-3 की छात्रा है। 8 मई को जब वह स्कूल से लौटी, तो उसके मन में कुछ चल रहा था। वह अपनी मम्मी से सेना और युद्ध की बातें कर रही थी। जैसे ही मैं उसके सामने आया तो तपाक से बोली कि पापा मेरे गुल्लक के सारे पैसे मोदी जी को दे दीजिए। इस पर मैं भी बहुत आश्चर्यचकित हुआ। शायद मैं उसकी भावनाओं को समझ नहीं पाया, इसलिए मैंने चौंकते हुए उससे पूछा कि मोदी जी को पैसे क्यों देने हैं? इस पर उसने कहा- पाकिस्तान से लड़ाई हो रही है, हमें भी तो कुछ करना चाहिए। मैंने उससे फिर पूछा तो मोदी जी को पैसे क्यों देने हैं? उसने कहा कि आप समझ नहीं रहे, हमारी सेना को पैसे की जरूरत है। इसलिए ये पैसे इंडियन आर्मी को दे दीजिए। बेटी के बातें सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगा। इतनी छोटी-सी उम्र में उसके मन में इस तरह के विचार आ रहे हैं, ये मेरे लिए गर्व की बात है। इसके बाद उसी दिन बेटी मानवी का गुल्लक तोड़ा, तो उसमें 25 हजार 549 रुपए निकले। मानवी बोली- पहले देश है, बाकी चीजें बाद में
पिता से बातचीत हो ही रही थी कि उसी बीच मानवी भी वहां आ गई। हमने मानवी से सीधे सवाल पूछा- सेना के लिए पैसे देने का आइडिया कैसे आया? जवाब में मानवी ने बताया- जब हम लोग स्कूल में थे, तो लगातार भारत-पाकिस्तान के बीच लड़ाई की बातचीत चल रही थी। हमारी क्लास में सभी यही बातें कर रहे थे। जब मैं घर आई, तो न्यूज चैनल में भी यही चल रहा था। बाबा और पापा भारत-पाकिस्तान की लड़ाई के समाचार ही देख रहे थे। मैंने भी न्यूज में देखा कि हमारी इंडियन आर्मी वहां लड़ाई कर रही है। मेरे दिमाग में आइडिया आया कि अगर हम लड़ नहीं सकते तो क्या कुछ और कर सकते हैं? इसके बाद मैंने सोचा कि जो पैसे मैंने अपने पिगी बैंक में जोड़े हैं, वो डोनेट कर दिए जाएं। इसलिए मैंने पापा से कहा कि ये पैसे मोदी जी को दे दो। मैं 2 साल से अपनी पॉकेट मनी, बर्थडे में मिले शगुन के पैसों को जोड़ कर रख रही थी। मैं चाहती थी कि अपने पैसों से कपड़े खरीदूंगी, खिलौने खरीदूंगी, गेम खरीदूंगी। लेकिन, जब लड़ाई शुरू हो गई तो मुझे लगा कि सारी दुनिया एक ओर, मेरा देश एक ओर। मैंने पापा से कहा कि सारे पैसे सेना को दे दीजिए…मैं खिलौने कभी और खरीद लूंगी। अब मैं फिर से पैसे जोड़ना शुरू करूंगी। उससे अपनी पसंद की चीजें खरीद लूंगी। मेरे पैसे सेना के पास जाएंगे, तो वो मजबूती से लड़ेंगे। पिता बोले- 50 हजार रुपए प्रधानमंत्री कोष में जमा किए
आदित्य प्रताप बताते हैं- मेरी दो बेटियां हैं, मानवी बड़ी बेटी है। जब मानवी ने स्कूल से आकर सेना को पैसे देने की बात कही तो हमने उसका गुल्लक तोड़ा। उसमें 25 हजार 549 रुपए निकले। 9 मई को मैंने उसमें 25 हजार रुपए और मिलाए। इसके बाद 50 हजार का चेक प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा करा दिया। बेटी के पास इतने पैसे कैसे आए? इस सवाल पर आदित्य बताते हैं कि हर महीने पॉकेट मनी और तमाम सेलिब्रेशन पर मानवी को पैसे मिलते रहे हैं। इसके अलावा हम लोग कुछ दिन पहले विदेश घूमने गए थे। तब इंडियन करेंसी को हमने डॉलर में चेंज करवाया था। उसमें मानवी का भी हिस्सा था, उसके डॉलर खर्च नहीं हुए थे। बाद में उसके डॉलर को हमने एक्सचेंज करवा लिया था, जिससे उसके पैसे बढ़ गए। इसी दौरान मानवी की मम्मी मनाली सिंह से भी बातचीत हुई। मनाली सिंह बताती हैं- मानवी बहुत ही संवेदनशील है। छोटी-छोटी बातों पर सवाल करती है। जब उसने मोदी जी को पैसे देने की बात कही, तो मुझे भी बड़ा अजीब लगा। लेकिन, कुछ ही देर में हमारे घर में सभी को मानवी की भावनाएं समझ में आ गईं। इसलिए हम सभी ने उसकी भावना का समर्थन किया और जैसा उसने चाहा, वैसा किया। अब जानिए मानवी सिंह के परिवार के बारे में
आदित्य प्रताप सिंह के ताऊ स्व. रवींद्र सिंह 80 के दशक के लोकप्रिय नेता थे। विधायक बनने से पहले वह गोरखपुर यूनिवर्सिटी और लखनऊ यूनिवर्सिटी में छात्र संघ के अध्यक्ष भी रहे। उनकी पत्नी गौरी देवी भी विधायक रही हैं। आदित्य रवींद्र सिंह के छोटे भाई श्रवण सिंह के बेटे हैं। रवींद्र भवन उन्हीं का घर है। आदित्य प्रताप सिंह आगू भारतीय कुश्ती संघ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष हैं। मानवी सिंह उनकी बड़ी बेटी हैं। आदित्य खुद भी सामाजिक कार्यों में आगे रहते हैं। दादा-दादी भी काफी खुश नजर आए पोती मानवी के अपने गुल्लक से पैसे डोनेट करने की बात को लेकर दादा (बाबा) श्रवण सिंह भी काफी खुश दिखे। वह कहते हैं- इतनी छोटी-सी उम्र में मेरी पोती ऐसा सोचती है, यह देखकर हमें बहुत अच्छा लगा। हमारा परिवार शुरू से सामाजिक कार्यों में लगा रहा है। बच्ची के विचार अभी से ऐसे हैं, यह अच्छा है। उसके इस फैसले के बारे में सुनकर बहुत गर्व महसूस हो रहा है। मानवी की दादी सुधा सिंह काफी खुश हैं। दादी ने कहा- हमें इस बात की खुशी है कि इतनी छोटी उम्र में भी हमारी पोती देश के लिए इतना कुछ सोच रही है। उसमें देशभक्ति कूट-कूटकर भरी है। लड़ाई की बात सुनकर वह बेचैन हो गई थी। ———————- ये खबर भी पढ़ें… 1971 के युद्ध में आगरा में गिरे थे 16 बम, यूपी को इस बार कितना खतरा, पाक बॉर्डर से सबसे नजदीक हैं पश्चिमी शहर 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध। आगरा एक के बाद एक बमों के हमले से दहल उठा था। पाकिस्तान ने बमवर्षक विमान मार्टिन बी-57 कैनबरा से बम गिराए थे। धिमिश्री और कीठम पर भी बम गिरे थे। धिमिश्री पर गिरे बम से 10-12 फीट गहरा गड्ढा हो गया था। उस समय के लोगों के जेहन में ये यादें आज भी ताजा हैं। पढ़िए पूरी खबर ‘मेरे लिए हमारा देश सबसे जरूरी है। सारी दुनिया एक तरफ, मेरा देश एक तरफ। इंडियन आर्मी हमारे लिए जान तक देने को तैयार है, तो क्या मैं उन्हें अपने पैसे भी नहीं दे सकती? मैं इतना छोटा-सा काम कैसे नहीं कर सकती? इसीलिए मैंने अपने सारे पैसे दे दिए। खिलौने बाद में खरीद लूंगी।’ ये भावनाएं हैं गोरखपुर की 8 साल की बच्ची मानवी सिंह। उसने भारत-पाकिस्तान के बीच चले हमलों को देखते हुए अपने पिगी बैंक के सारे पैसे डोनेट कर दिए। अपने पापा से कहा- ये पैसे मोदी जी को भेज दीजिए। इससे हमारी आर्मी मजबूत होगी। इतनी छोटी-सी उम्र में मानवी के मन ये बातें कैसे आईं? ये पैसे उसने कितने दिन में जोड़े थे? कैसे सेना को देने का फैसला लिया? यह सब कुछ जानने के लिए दैनिक भास्कर एप की टीम मानवी के घर पहुंची। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… स्कूल से आते ही बोली- मेरे पैसे मोदी जी को दे दीजिए
शहर में ही बेतियाहाता में कमिश्नर आवास से महज 20 मीटर पहले रवींद्र भवन है। यहां रहने वाला परिवार राजनीतिक और सामाजिक सरोकारों से जुड़ा हुआ है। हमारी टीम जब यहां पहुंची, तो सबसे पहले मुलाकात मानवी के पिता आदित्य प्रताप सिंह से हुई। आदित्य बताते हैं- मेरी बेटी कक्षा-3 की छात्रा है। 8 मई को जब वह स्कूल से लौटी, तो उसके मन में कुछ चल रहा था। वह अपनी मम्मी से सेना और युद्ध की बातें कर रही थी। जैसे ही मैं उसके सामने आया तो तपाक से बोली कि पापा मेरे गुल्लक के सारे पैसे मोदी जी को दे दीजिए। इस पर मैं भी बहुत आश्चर्यचकित हुआ। शायद मैं उसकी भावनाओं को समझ नहीं पाया, इसलिए मैंने चौंकते हुए उससे पूछा कि मोदी जी को पैसे क्यों देने हैं? इस पर उसने कहा- पाकिस्तान से लड़ाई हो रही है, हमें भी तो कुछ करना चाहिए। मैंने उससे फिर पूछा तो मोदी जी को पैसे क्यों देने हैं? उसने कहा कि आप समझ नहीं रहे, हमारी सेना को पैसे की जरूरत है। इसलिए ये पैसे इंडियन आर्मी को दे दीजिए। बेटी के बातें सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगा। इतनी छोटी-सी उम्र में उसके मन में इस तरह के विचार आ रहे हैं, ये मेरे लिए गर्व की बात है। इसके बाद उसी दिन बेटी मानवी का गुल्लक तोड़ा, तो उसमें 25 हजार 549 रुपए निकले। मानवी बोली- पहले देश है, बाकी चीजें बाद में
पिता से बातचीत हो ही रही थी कि उसी बीच मानवी भी वहां आ गई। हमने मानवी से सीधे सवाल पूछा- सेना के लिए पैसे देने का आइडिया कैसे आया? जवाब में मानवी ने बताया- जब हम लोग स्कूल में थे, तो लगातार भारत-पाकिस्तान के बीच लड़ाई की बातचीत चल रही थी। हमारी क्लास में सभी यही बातें कर रहे थे। जब मैं घर आई, तो न्यूज चैनल में भी यही चल रहा था। बाबा और पापा भारत-पाकिस्तान की लड़ाई के समाचार ही देख रहे थे। मैंने भी न्यूज में देखा कि हमारी इंडियन आर्मी वहां लड़ाई कर रही है। मेरे दिमाग में आइडिया आया कि अगर हम लड़ नहीं सकते तो क्या कुछ और कर सकते हैं? इसके बाद मैंने सोचा कि जो पैसे मैंने अपने पिगी बैंक में जोड़े हैं, वो डोनेट कर दिए जाएं। इसलिए मैंने पापा से कहा कि ये पैसे मोदी जी को दे दो। मैं 2 साल से अपनी पॉकेट मनी, बर्थडे में मिले शगुन के पैसों को जोड़ कर रख रही थी। मैं चाहती थी कि अपने पैसों से कपड़े खरीदूंगी, खिलौने खरीदूंगी, गेम खरीदूंगी। लेकिन, जब लड़ाई शुरू हो गई तो मुझे लगा कि सारी दुनिया एक ओर, मेरा देश एक ओर। मैंने पापा से कहा कि सारे पैसे सेना को दे दीजिए…मैं खिलौने कभी और खरीद लूंगी। अब मैं फिर से पैसे जोड़ना शुरू करूंगी। उससे अपनी पसंद की चीजें खरीद लूंगी। मेरे पैसे सेना के पास जाएंगे, तो वो मजबूती से लड़ेंगे। पिता बोले- 50 हजार रुपए प्रधानमंत्री कोष में जमा किए
आदित्य प्रताप बताते हैं- मेरी दो बेटियां हैं, मानवी बड़ी बेटी है। जब मानवी ने स्कूल से आकर सेना को पैसे देने की बात कही तो हमने उसका गुल्लक तोड़ा। उसमें 25 हजार 549 रुपए निकले। 9 मई को मैंने उसमें 25 हजार रुपए और मिलाए। इसके बाद 50 हजार का चेक प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा करा दिया। बेटी के पास इतने पैसे कैसे आए? इस सवाल पर आदित्य बताते हैं कि हर महीने पॉकेट मनी और तमाम सेलिब्रेशन पर मानवी को पैसे मिलते रहे हैं। इसके अलावा हम लोग कुछ दिन पहले विदेश घूमने गए थे। तब इंडियन करेंसी को हमने डॉलर में चेंज करवाया था। उसमें मानवी का भी हिस्सा था, उसके डॉलर खर्च नहीं हुए थे। बाद में उसके डॉलर को हमने एक्सचेंज करवा लिया था, जिससे उसके पैसे बढ़ गए। इसी दौरान मानवी की मम्मी मनाली सिंह से भी बातचीत हुई। मनाली सिंह बताती हैं- मानवी बहुत ही संवेदनशील है। छोटी-छोटी बातों पर सवाल करती है। जब उसने मोदी जी को पैसे देने की बात कही, तो मुझे भी बड़ा अजीब लगा। लेकिन, कुछ ही देर में हमारे घर में सभी को मानवी की भावनाएं समझ में आ गईं। इसलिए हम सभी ने उसकी भावना का समर्थन किया और जैसा उसने चाहा, वैसा किया। अब जानिए मानवी सिंह के परिवार के बारे में
आदित्य प्रताप सिंह के ताऊ स्व. रवींद्र सिंह 80 के दशक के लोकप्रिय नेता थे। विधायक बनने से पहले वह गोरखपुर यूनिवर्सिटी और लखनऊ यूनिवर्सिटी में छात्र संघ के अध्यक्ष भी रहे। उनकी पत्नी गौरी देवी भी विधायक रही हैं। आदित्य रवींद्र सिंह के छोटे भाई श्रवण सिंह के बेटे हैं। रवींद्र भवन उन्हीं का घर है। आदित्य प्रताप सिंह आगू भारतीय कुश्ती संघ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष हैं। मानवी सिंह उनकी बड़ी बेटी हैं। आदित्य खुद भी सामाजिक कार्यों में आगे रहते हैं। दादा-दादी भी काफी खुश नजर आए पोती मानवी के अपने गुल्लक से पैसे डोनेट करने की बात को लेकर दादा (बाबा) श्रवण सिंह भी काफी खुश दिखे। वह कहते हैं- इतनी छोटी-सी उम्र में मेरी पोती ऐसा सोचती है, यह देखकर हमें बहुत अच्छा लगा। हमारा परिवार शुरू से सामाजिक कार्यों में लगा रहा है। बच्ची के विचार अभी से ऐसे हैं, यह अच्छा है। उसके इस फैसले के बारे में सुनकर बहुत गर्व महसूस हो रहा है। मानवी की दादी सुधा सिंह काफी खुश हैं। दादी ने कहा- हमें इस बात की खुशी है कि इतनी छोटी उम्र में भी हमारी पोती देश के लिए इतना कुछ सोच रही है। उसमें देशभक्ति कूट-कूटकर भरी है। लड़ाई की बात सुनकर वह बेचैन हो गई थी। ———————- ये खबर भी पढ़ें… 1971 के युद्ध में आगरा में गिरे थे 16 बम, यूपी को इस बार कितना खतरा, पाक बॉर्डर से सबसे नजदीक हैं पश्चिमी शहर 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध। आगरा एक के बाद एक बमों के हमले से दहल उठा था। पाकिस्तान ने बमवर्षक विमान मार्टिन बी-57 कैनबरा से बम गिराए थे। धिमिश्री और कीठम पर भी बम गिरे थे। धिमिश्री पर गिरे बम से 10-12 फीट गहरा गड्ढा हो गया था। उस समय के लोगों के जेहन में ये यादें आज भी ताजा हैं। पढ़िए पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
INDIAN ARMY के लिए पैसे देने वाली थर्ड की छात्रा:बोली-हमारे जवान बॉर्डर पर लड़ रहे, हम कुछ तो कर सकते हैं, देश से बड़ा कोई नहीं
