यूपी में क्यों बिखर रहा अपना दल (एस) का कुनबा:क्या अनुप्रिया-आशीष से नाराज हैं नेता; प्रदेश अध्यक्ष के इस्तीफे की इनसाइड स्टोरी

यूपी में क्यों बिखर रहा अपना दल (एस) का कुनबा:क्या अनुप्रिया-आशीष से नाराज हैं नेता; प्रदेश अध्यक्ष के इस्तीफे की इनसाइड स्टोरी

यूपी में गठबंधन की राजनीति के सबसे चर्चित दलों में शुमार अपना दल (एस) अस्तित्व के संकट से गुजर रहा है। राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल, संगठन प्रमुख आशीष पटेल पर लगे आरोपों की लिस्ट लंबी होती जा रही है और नेताओं की नाराजगी की लाइन उससे भी लंबी। बीते तीन सालों में पार्टी के सात बड़े नेताओं ने या तो इस्तीफा दिया है या फिर पार्टी से निष्कासित हुए हैं। इनमें से हर एक नेता ने पार्टी पर ‘एक परिवार की जागीर’ होने का आरोप दोहराया। ताजा झटका पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे राजकुमार पाल ने इस्तीफा देकर दिया है। उन्होंने आरोपों की झड़ी लगाते हुए कहा- ’मैं पार्टी में रबर स्टैंप बनकर नहीं रह सकता। जो नेता अपनी पार्टी को संगठित नहीं कर सकता, उसके लिए कुर्सी पर बैठना सिर्फ औपचारिकता है।’ सवाल ये है कि यूपी की सियासत में सांसद-विधायकों की संख्या के लिहाज से तीसरी सबसे बड़ी पार्टी का कुनबा क्यों बिखरने लगा है? प्रदेश अध्यक्ष रहे राजकुमार पाल के इस्तीफे की इनसाइड स्टोरी क्या है? अनुप्रिया-आशीष से उनकी ही पार्टी के नेताओं की नाराजगी क्यों है? पढ़िए ये स्टोरी… विद्रोह की चिंगारी से हुआ था अपना दल का गठन अपना दल का गठन 4 नवंबर,1995 को डॉ. सोनेलाल पटेल ने इंजीनियर बलिहारी पटेल के साथ मिलकर किया था। डॉ. सोनेलाल पटेल पूर्व में बहुजन समाज पार्टी में थे। कांशी राम से मतभेद के बाद उन्होंने अपना दल की नींव रखी। अपना दल के गठन के पूर्व उन्होंने लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में एक कुर्मी-क्षत्रिय महारैली का आयोजन किया, जिसमें बड़ी संख्या में भीड़ जुटी। इस रैली को बीबीसी न्यूज ने सबसे बड़ी जातीय रैली कहा था। यही रैली अपना दल के गठन का आधार बनी। प्रदेश में कुर्मी-पटेल की आबादी लगभग 6-8% के बीच है। पूर्वांचल के फतेहपुर, कौशांबी, इलाहाबाद, प्रतापगढ़, जौनपुर, वाराणसी, मिर्जापुर, फैजाबाद, बाराबंकी, सुल्तानपुर, अंबेडकरनगर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, गोंडा और बुंदेलखंड में कुर्मी-पटेल की बड़ी आबादी रहती है। यही कारण है कि यहां अपना दल का प्रभाव तेजी से बढ़ा। हालांकि, डॉ. सोनेलाल पटेल अपना दल से कोई चुनाव नहीं जीत पाए। पहली बार पार्टी का खाता गठन के 7 साल बाद 2002 में खुला। तब पार्टी के तीन विधायक विधानसभा में पहुंचे। 2007 में अपना दल का भाजपा से गठबंधन हुआ, मगर कोई सफलता नहीं मिली। 2009 में एक सड़क दुर्घटना में सोनेलाल पटेल के निधन के बाद उनकी बेटी अनुप्रिया पटेल ने पार्टी को आगे बढ़ाया। 2012 में अपना दल ने पीस पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा, तो रोहनिया से सिर्फ अनुप्रिया ही जीत पाईं। यह पहली बार था, जब पटेल परिवार से कोई चुनाव जीता हो। 2014 में बीजेपी से गठबंधन के बाद बदली किस्मत, फिर दो-फाड़ हुई पार्टी अपना दल की किस्मत 2014 के लोकसभा चुनाव से बदली। भाजपा ने अपना दल के साथ गठबंधन में लोकसभा चुनाव लड़ा। अपना दल ने कोटे की दोनों सीटें जीत लीं। अनुप्रिया पटेल केंद्र में मंत्री बनीं। इसके बाद ही अनुप्रिया और उनकी मां कृष्णा पटेल के बीच दूरियां बढ़ती चली गईं। ये दूरी पार्टी के दो-फाड़ होने के बाद भी जारी है। अनुप्रिया ने अपना दल (एस) नाम से अलग पार्टी बना ली। मां कृष्णा पटेल ने छोटी बेटी पल्लवी पटेल के साथ मिलकर अपना दल (कमेरावादी) नाम से अलग पार्टी बनाई। 2017 के विधानसभा चुनाव में अपना दल (एस) और भाजपा गठबंधन में साथ में उतरे। अपना दल (एस) ने कोटे की 11 सीटों में से 9 पर जीत दर्ज की। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी अपना दल (एस) पुरानी दोनों सीटें जीतने में सफल रही। 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में अपना दल (एस) ने 12 सीटें जीत लीं। बाद में उपचुनाव में एक और सीट जीती। वर्तमान में अपना दल (एस) के 13 विधायक हैं और विधानसभा में वह कांग्रेस-बसपा को पछाड़कर तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है। अनुप्रिया पटेल केंद्र में राज्यमंत्री और उनके पति आशीष पटेल यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। अब पढ़िए, अपने इस्तीफे पर राजकुमार पाल ने क्या कहा 6 मई, 2025 को अपना दल (एस) के प्रदेश अध्यक्ष राजकुमार पाल ने इस्तीफा दे दिया। राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल को भेज गए त्याग-पत्र में उन्होंने आरोप लगाए कि पार्टी डॉ. अंबेडकर और डॉ. सोनेलाल पटेल के विचारों से भटक चुकी है। इसके बारे में कई बार अवगत कराया, लेकिन मेरी बातों को अनसुना कर दिया गया। पूर्व विधायक राजकुमार पाल के साथ प्रदेश सचिव कमलेश विश्वकर्मा, अल्पसंख्यक मंच के प्रदेश सचिव मो. फहीम और जिला महासचिव एवं जिला पंचायत सदस्य बीएल सरोज ने भी इस्तीफा दे दिया। इस्तीफा देने के अगले दिन मीडिया से बातचीत में राजकुमार पटेल ने खुलकर अपनी भड़ास निकाली। राजकुमार पाल ने आरोप लगाया कि ‘पार्टी में कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की जा रही है। टिकट वितरण में पारदर्शिता नहीं है। उन्होंने कहा कि पार्टी में लोकतांत्रिक मूल्यों की कमी है और एकतरफा निर्णय लिए जा रहे हैं। मैं रबर स्टैंप बनकर काम नहीं कर सकता। प्रदेश अध्यक्ष रहते जिले के अध्यक्ष को नहीं जान पाता। विधानसभा प्रभारी बनाते समय भी मुझसे पूछना मुनासिब नहीं समझा गया। मनमाने तरीके से निर्णय लिए जा रहे थे।’ इस्तीफे की असली वजह वादाखिलाफी राजकुमार आरोप लगाते हुए कहते हैं कि पार्टी की गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए मैं 50-60 लाख रुपए खुद से लगाकर अपने डीजल और गाड़ी से चल रहा था। आशीष पटेल की ओर से मुझे लगातार एमएलसी का पद देने का वादा किया गया, लेकिन कोई तवज्जो नहीं मिली। मेरा पार्टी में शोषण किया जा रहा था। इसी वादाखिलाफी के चलते राजकुमार पाल ने बगावत की। राजकुमार पाल ने जिस तरीके से पल्लवी पटेल के नेतृत्व की सराहना की, कयास लग रहे हैं कि वे उनके साथ जा सकते हैं। राजकुमार पाल के सामने बसपा व सपा भी एक विकल्प है, लेकिन फिलहाल उन्होंने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। उनके आरोपों पर अनुप्रिया पटेल और आशीष पटेल की ओर से भी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। उनकी पार्टी में वापसी की भी फिलहाल कोई संभावना नहीं दिखती। क्योंकि राजकुमार पाल ने पार्टी पर परिवारवाद को बढ़ावा देने, वरिष्ठों को नजरअंदाज करने और कार्यकर्ताओं की लगातार उपेक्षा के गंभीर आरोप लगाए हैं। अपना दल (एस) का कुनबा बिखर रहा अपना दल में पहला विभाजन अनुप्रिया पटेल की मां कृष्णा पटेल व बहन पल्लवी पटेल ने किया था। राजकुमार पाल से पहले पूर्व सांसद पकौड़ी लाल कोल ने जनवरी 2025 में पार्टी से नाता तोड़कर ‘विंध्य समता मूलक समाज पार्टी’ की स्थापना की थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि पार्टी में परिवारवाद हावी है और कार्यकर्ताओं की अनदेखी की जा रही है। इसके अलावा, पूर्व युवा मोर्चा अध्यक्ष हेमंत चौधरी ने भी पार्टी नेतृत्व पर टिकट बेचने और कार्यकर्ताओं से पैसे लेने के आरोप लगाए थे। उन्होंने कहा था कि पार्टी में टिकट के लिए पैसे लिए जाते हैं और कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज किया जाता है। अब तक 7 बड़े चेहरों ने छोड़ी पार्टी ——————————– ये खबर भी पढ़ें यूपी में टैंकर से पेट्रोल-डीजल चुरा रहे:एथेनॉल मिलाकर गाड़ी का इंजन कबाड़ कर रहे; रिपोर्टर को कट्‌टा दिखाकर धमकाया हाईवे से अचानक टैंकर कच्ची सड़क पर उतर जाता है। 50 मीटर पर खेतों के बीच पर्दा उठता है और टैंकर अंदर चला जाता है। टैंकर के रुकते ही पर्दा गिर जाता है। 6-7 लोग टैंकर में से पेट्रोल निकालकर 100-100 लीटर के 5 कैन भरने लगते हैं। फिर उतना ही 50 रुपए लीटर वाला एथेनॉल टैंकर में मिला देते हैं। पढ़ें पूरी खबर यूपी में गठबंधन की राजनीति के सबसे चर्चित दलों में शुमार अपना दल (एस) अस्तित्व के संकट से गुजर रहा है। राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल, संगठन प्रमुख आशीष पटेल पर लगे आरोपों की लिस्ट लंबी होती जा रही है और नेताओं की नाराजगी की लाइन उससे भी लंबी। बीते तीन सालों में पार्टी के सात बड़े नेताओं ने या तो इस्तीफा दिया है या फिर पार्टी से निष्कासित हुए हैं। इनमें से हर एक नेता ने पार्टी पर ‘एक परिवार की जागीर’ होने का आरोप दोहराया। ताजा झटका पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे राजकुमार पाल ने इस्तीफा देकर दिया है। उन्होंने आरोपों की झड़ी लगाते हुए कहा- ’मैं पार्टी में रबर स्टैंप बनकर नहीं रह सकता। जो नेता अपनी पार्टी को संगठित नहीं कर सकता, उसके लिए कुर्सी पर बैठना सिर्फ औपचारिकता है।’ सवाल ये है कि यूपी की सियासत में सांसद-विधायकों की संख्या के लिहाज से तीसरी सबसे बड़ी पार्टी का कुनबा क्यों बिखरने लगा है? प्रदेश अध्यक्ष रहे राजकुमार पाल के इस्तीफे की इनसाइड स्टोरी क्या है? अनुप्रिया-आशीष से उनकी ही पार्टी के नेताओं की नाराजगी क्यों है? पढ़िए ये स्टोरी… विद्रोह की चिंगारी से हुआ था अपना दल का गठन अपना दल का गठन 4 नवंबर,1995 को डॉ. सोनेलाल पटेल ने इंजीनियर बलिहारी पटेल के साथ मिलकर किया था। डॉ. सोनेलाल पटेल पूर्व में बहुजन समाज पार्टी में थे। कांशी राम से मतभेद के बाद उन्होंने अपना दल की नींव रखी। अपना दल के गठन के पूर्व उन्होंने लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में एक कुर्मी-क्षत्रिय महारैली का आयोजन किया, जिसमें बड़ी संख्या में भीड़ जुटी। इस रैली को बीबीसी न्यूज ने सबसे बड़ी जातीय रैली कहा था। यही रैली अपना दल के गठन का आधार बनी। प्रदेश में कुर्मी-पटेल की आबादी लगभग 6-8% के बीच है। पूर्वांचल के फतेहपुर, कौशांबी, इलाहाबाद, प्रतापगढ़, जौनपुर, वाराणसी, मिर्जापुर, फैजाबाद, बाराबंकी, सुल्तानपुर, अंबेडकरनगर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, गोंडा और बुंदेलखंड में कुर्मी-पटेल की बड़ी आबादी रहती है। यही कारण है कि यहां अपना दल का प्रभाव तेजी से बढ़ा। हालांकि, डॉ. सोनेलाल पटेल अपना दल से कोई चुनाव नहीं जीत पाए। पहली बार पार्टी का खाता गठन के 7 साल बाद 2002 में खुला। तब पार्टी के तीन विधायक विधानसभा में पहुंचे। 2007 में अपना दल का भाजपा से गठबंधन हुआ, मगर कोई सफलता नहीं मिली। 2009 में एक सड़क दुर्घटना में सोनेलाल पटेल के निधन के बाद उनकी बेटी अनुप्रिया पटेल ने पार्टी को आगे बढ़ाया। 2012 में अपना दल ने पीस पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा, तो रोहनिया से सिर्फ अनुप्रिया ही जीत पाईं। यह पहली बार था, जब पटेल परिवार से कोई चुनाव जीता हो। 2014 में बीजेपी से गठबंधन के बाद बदली किस्मत, फिर दो-फाड़ हुई पार्टी अपना दल की किस्मत 2014 के लोकसभा चुनाव से बदली। भाजपा ने अपना दल के साथ गठबंधन में लोकसभा चुनाव लड़ा। अपना दल ने कोटे की दोनों सीटें जीत लीं। अनुप्रिया पटेल केंद्र में मंत्री बनीं। इसके बाद ही अनुप्रिया और उनकी मां कृष्णा पटेल के बीच दूरियां बढ़ती चली गईं। ये दूरी पार्टी के दो-फाड़ होने के बाद भी जारी है। अनुप्रिया ने अपना दल (एस) नाम से अलग पार्टी बना ली। मां कृष्णा पटेल ने छोटी बेटी पल्लवी पटेल के साथ मिलकर अपना दल (कमेरावादी) नाम से अलग पार्टी बनाई। 2017 के विधानसभा चुनाव में अपना दल (एस) और भाजपा गठबंधन में साथ में उतरे। अपना दल (एस) ने कोटे की 11 सीटों में से 9 पर जीत दर्ज की। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी अपना दल (एस) पुरानी दोनों सीटें जीतने में सफल रही। 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में अपना दल (एस) ने 12 सीटें जीत लीं। बाद में उपचुनाव में एक और सीट जीती। वर्तमान में अपना दल (एस) के 13 विधायक हैं और विधानसभा में वह कांग्रेस-बसपा को पछाड़कर तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है। अनुप्रिया पटेल केंद्र में राज्यमंत्री और उनके पति आशीष पटेल यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। अब पढ़िए, अपने इस्तीफे पर राजकुमार पाल ने क्या कहा 6 मई, 2025 को अपना दल (एस) के प्रदेश अध्यक्ष राजकुमार पाल ने इस्तीफा दे दिया। राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल को भेज गए त्याग-पत्र में उन्होंने आरोप लगाए कि पार्टी डॉ. अंबेडकर और डॉ. सोनेलाल पटेल के विचारों से भटक चुकी है। इसके बारे में कई बार अवगत कराया, लेकिन मेरी बातों को अनसुना कर दिया गया। पूर्व विधायक राजकुमार पाल के साथ प्रदेश सचिव कमलेश विश्वकर्मा, अल्पसंख्यक मंच के प्रदेश सचिव मो. फहीम और जिला महासचिव एवं जिला पंचायत सदस्य बीएल सरोज ने भी इस्तीफा दे दिया। इस्तीफा देने के अगले दिन मीडिया से बातचीत में राजकुमार पटेल ने खुलकर अपनी भड़ास निकाली। राजकुमार पाल ने आरोप लगाया कि ‘पार्टी में कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की जा रही है। टिकट वितरण में पारदर्शिता नहीं है। उन्होंने कहा कि पार्टी में लोकतांत्रिक मूल्यों की कमी है और एकतरफा निर्णय लिए जा रहे हैं। मैं रबर स्टैंप बनकर काम नहीं कर सकता। प्रदेश अध्यक्ष रहते जिले के अध्यक्ष को नहीं जान पाता। विधानसभा प्रभारी बनाते समय भी मुझसे पूछना मुनासिब नहीं समझा गया। मनमाने तरीके से निर्णय लिए जा रहे थे।’ इस्तीफे की असली वजह वादाखिलाफी राजकुमार आरोप लगाते हुए कहते हैं कि पार्टी की गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए मैं 50-60 लाख रुपए खुद से लगाकर अपने डीजल और गाड़ी से चल रहा था। आशीष पटेल की ओर से मुझे लगातार एमएलसी का पद देने का वादा किया गया, लेकिन कोई तवज्जो नहीं मिली। मेरा पार्टी में शोषण किया जा रहा था। इसी वादाखिलाफी के चलते राजकुमार पाल ने बगावत की। राजकुमार पाल ने जिस तरीके से पल्लवी पटेल के नेतृत्व की सराहना की, कयास लग रहे हैं कि वे उनके साथ जा सकते हैं। राजकुमार पाल के सामने बसपा व सपा भी एक विकल्प है, लेकिन फिलहाल उन्होंने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। उनके आरोपों पर अनुप्रिया पटेल और आशीष पटेल की ओर से भी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। उनकी पार्टी में वापसी की भी फिलहाल कोई संभावना नहीं दिखती। क्योंकि राजकुमार पाल ने पार्टी पर परिवारवाद को बढ़ावा देने, वरिष्ठों को नजरअंदाज करने और कार्यकर्ताओं की लगातार उपेक्षा के गंभीर आरोप लगाए हैं। अपना दल (एस) का कुनबा बिखर रहा अपना दल में पहला विभाजन अनुप्रिया पटेल की मां कृष्णा पटेल व बहन पल्लवी पटेल ने किया था। राजकुमार पाल से पहले पूर्व सांसद पकौड़ी लाल कोल ने जनवरी 2025 में पार्टी से नाता तोड़कर ‘विंध्य समता मूलक समाज पार्टी’ की स्थापना की थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि पार्टी में परिवारवाद हावी है और कार्यकर्ताओं की अनदेखी की जा रही है। इसके अलावा, पूर्व युवा मोर्चा अध्यक्ष हेमंत चौधरी ने भी पार्टी नेतृत्व पर टिकट बेचने और कार्यकर्ताओं से पैसे लेने के आरोप लगाए थे। उन्होंने कहा था कि पार्टी में टिकट के लिए पैसे लिए जाते हैं और कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज किया जाता है। अब तक 7 बड़े चेहरों ने छोड़ी पार्टी ——————————– ये खबर भी पढ़ें यूपी में टैंकर से पेट्रोल-डीजल चुरा रहे:एथेनॉल मिलाकर गाड़ी का इंजन कबाड़ कर रहे; रिपोर्टर को कट्‌टा दिखाकर धमकाया हाईवे से अचानक टैंकर कच्ची सड़क पर उतर जाता है। 50 मीटर पर खेतों के बीच पर्दा उठता है और टैंकर अंदर चला जाता है। टैंकर के रुकते ही पर्दा गिर जाता है। 6-7 लोग टैंकर में से पेट्रोल निकालकर 100-100 लीटर के 5 कैन भरने लगते हैं। फिर उतना ही 50 रुपए लीटर वाला एथेनॉल टैंकर में मिला देते हैं। पढ़ें पूरी खबर   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर