भारत-नेपाल बॉर्डर पर 3 हजार सिखों का धर्मांतरण:23 साल पहले आए पादरी से फैला सिंडिकेट, घरों में दक्षिण कोरिया के कैलेंडर

भारत-नेपाल बॉर्डर पर 3 हजार सिखों का धर्मांतरण:23 साल पहले आए पादरी से फैला सिंडिकेट, घरों में दक्षिण कोरिया के कैलेंडर

‘ये पूरा क्षेत्र ट्रांस शारदा के नाम से जाना जाता है। इसमें प्योर सिखों की पॉपुलेशन है। नेपाल के पादरी इंडिया में आए। उन्होंने स्थानीय लोग पादरी बनाए। स्थानीय पादरी अब तक ढाई-तीन हजार लोगों का धर्मांतरण करा चुके हैं।’ ये नेपाल बॉर्डर से सटे उत्तर प्रदेश के जिला पीलीभीत के गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सचिव परमजीत सिंह उर्फ पीजी का कहना है। पीलीभीत में 3 हजार सिखों को धर्मांतरण करके ईसाई बनाने का आरोप गुरुद्वारा कमेटी ने लगाया है। धर्मांतरण के आरोप एक दशक से लगते रहे हैं। लेकिन ये हाइलाइट उस वक्त हुआ, जब पिछले साल बॉर्डर के आखिरी गांव में चर्च के लिए नींव रखी गई। साल-2002 में नेपाल से कुछ पास्टर-पादरी यहां आए। उन्होंने लालच देकर अपने साथ कुछ लोगों को जोड़ा। इसके बाद बीते 23 साल में धर्मांतरण सिंडिकेट काफी फल-फूल गया। सिखों पर काम करने वाली संस्थाओं को विदेशों से फंडिंग होने का शक है। क्योंकि, तमाम घरों में दक्षिण कोरिया के ईसाई धर्म के कैलेंडर लगे मिले हैं। दैनिक भास्कर ने इंडो-नेपाल बॉर्डर पर पहुंचकर इस केस की पड़ताल की। एक बात क्लियर हुई कि धर्मांतरण जबरन नहीं हुआ, बल्कि लोगों को पैसे-मकान का लालच दिया गया था। जो लालच दिया गया था, जब वो पूरा नहीं हुआ तो कुछ लोग सिख धर्म में वापस भी आ गए। पूरी रिपोर्ट पढ़िए… सबसे पहले इंडो-नेपाल बॉर्डर की बात बॉर्डर पर नहीं है तारबंदी, सिविलियन आराम से करते हैं क्रॉस
सबसे पहले हम पीलीभीत जिले में पूरनपुर तहसील के गांव बेल्हा पहुंचे। ये गांव नेपाल बॉर्डर से एकदम सटा हुआ है। दोनों देशों के खेत आपस में जुड़े हैं। पीलीभीत टाइगर रिजर्व के घने जंगलों को पार करते हुए हम शारदा नदी पहुंचे। यहां पांटून पुल पर चढ़कर नदी पार की। करीब 10 किलोमीटर खादर और रेतीला मैदान पार करते हुए गांव बेल्हा पहुंच पाए। इस गांव को जाने वाली सड़क के एक तरफ नेपाल बॉर्डर है, दूसरे तरफ बेल्हा गांव है। बॉर्डर पर सुरक्षा के लिए SSB (सशस्त्र सीमा बल) के जवान तैनात थे। उन्होंने हमारे बॉर्डर पर आने की वजह पूछी। आई-कार्ड समेत कई चीजें वेरिफाई कीं। इसके बाद कवरेज की अनुमति मिल पाई। देश के दूसरे अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर जैसा यहां पर देखने को नहीं मिला। मतलब, बॉर्डर पर तारबंदी नहीं थी। करीब 5 फीट ड्रैनेज खुदी हुई थी, जिसमें एक-एक किलोमीटर दूरी पर पिलर लगे थे। इन पिलर्स पर नंबर लिखे थे। सिर्फ यही इस बात का प्रतीक थे कि ये भारत-नेपाल बॉर्डर है। दोनों देशों के लोग खेत-खेत होते हुए आराम से आ-जा रहे थे। एक SSB जवान ने ऑफ कैमरा हमें बताया- एक पॉइंट पर कम से कम दो जवान ड्यूटी करते हैं। इनके पास कम से कम 300 मीटर का एरिया होता है। हम हर पल कितनी नजर रखें? दोनों देशों के खेत सटे हुए हैं। खेतों में फसल खड़ी रहती है। कोई अगर कुछ सामान इधर से उधर फेंक दे, तो हमें कैसे पता चलेगा? ऊपर से साफ निर्देश हैं कि हम नेपाल के क्षेत्र में एक कदम भी नहीं रखेंगे। हां, सिविलियन आ-जा सकते हैं। अगर दूसरे बॉर्डर की तरह यहां भी तारबंदी होती तो सुरक्षा और मजबूत हो सकती थी। अब धर्मांतरण का मामला सिलसिलेवार समझिए भास्कर को दिखाई 150 घरों की लिस्ट, जहां होती है ईसाई पूजा-पाठ
बेल्हा गांव में अंदर घुसते ही गुरुद्वारा है। यहां हमारी मुलाकात गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सचिव परमजीत सिंह उर्फ पीजी से हुई। उन्होंने हमें 150 घरों की एक लिस्ट दिखाकर दावा किया कि ये उन घरों की लिस्ट है, जहां ईसाई धर्म से जुड़ी गतिविधियां होती हैं। इन घरों के बाहर ईसाई समुदाय के प्रतीक क्रॉस का चिह्न बना हुआ है। जबकि कुछ घरों में चर्च जैसी गतिविधियां संचालित होती हैं। हालांकि करीब 10 दिन पहले ही पुलिस-प्रशासन ने विरोध के बाद सभी घरों के बाहर से ये क्रॉस निशान मिटवा दिए हैं। परमजीत सिंह कहते हैं- यहां सिर्फ सिख पॉपुलेशन रहती है। फिर चर्च या मिशनरी पूजा-पाठ का क्या मतलब? नेपाल से ईसाई धर्म से जुड़े लोग गांव में आते हैं। गरीबों को पैसे का लालच देते हैं। बीमारी सही होने का झांसा देते हैं। मकान बनवाने की बात भी कहते हैं। ऐसा करके वो सिखों का ईसाई धर्म में परिवर्तन करवा रहे हैं। 22 हजार की जनसंख्या में करीब 3 हजार लोगों का धर्मांतरण हो चुका है। हमने डीएम-एसपी को कंप्लेंट की है। उस पर जांच शुरू हो गई है। हमें आशंका है कि इसमें नेपाल सहित कई अन्य देशों से फंडिंग हो रही है। परमजीत सिंह ने बताया- हमें करीब 100 घरों में एक विशेष प्रकार के ईयर कैलेंडर लगे मिले। मैंने गृह मंत्रालय में एक सोर्स से उन कैलेंडर की जांच कराई। वहां से पता चला कि ये कैलेंडर दक्षिण कोरिया के हैं। कैलेंडर पर तस्वीर दक्षिण कोरिया की हैं, जबकि उनके नीचे कुछ लिखावट नेपाली भाषा में लिखी है। इससे ये आशंका है कि धर्मांतरण की फंडिंग दक्षिण कोरिया से भी हो रही है। हमने ये कैलेंडर बतौर सबूत डीएम-एसपी को उपलब्ध करवाए हैं। आरोप- नेपाल के पादरियों ने सबसे पहले सतनाम सिंह को जोड़ा जब इस इलाके में सिखों के अलावा कोई और नहीं रहता तो फिर ईसाई पूजा-पाठ की प्रथा कैसे शुरू हुई? इस सवाल के जवाब में गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के संरक्षक मक्खन सिंह बताते हैं- साल, 2002 के आसपास नेपाल के कंचनपुर जिले से पास्टर और पादरी इस गांव में आए। उन्होंने सबसे पहले टाटरगंज गांव के सतननाम सिंह को पास्टर बनाया। इसके बाद सतनाम सिंह ने अपने आसपास रहने वाले लोगों को लालच देना शुरू किया। वो सिखों को ईसाई धर्म से जोड़ता चला गया। 17 मई, 2025 को ही पीलीभीत जिले की माधोटांडा पुलिस ने सतनाम सिंह और एक अन्य युवक छिदर सिंह उर्फ सुरेंद्र सिंह को 2 किलो 230 ग्राम चरस सहित गिरफ्तार करके जेल भेजा है। पुलिस का कहना है कि सतनाम सिंह चरस की तस्करी से भी जुड़ा हुआ था। धर्मांतरण केस की पहली FIR में भी सतनाम का नाम धर्मांतरण प्रकरण में पहली FIR 13 मई, 2025 को पीलीभीत जिले के थाना हजारा में हुई। जो टाटरगंज निवासी मनजीत कौर नामक महिला ने कराई। इसमें सतनाम सिंह, बलवंत सिंह, अर्जुन सिंह, मलकित सिंह, सुरजीत सिंह, सुमित्रा कौर, बलवंत सिंह आदि को आरोपी बनाया गया है। मनजीत कौर के अनुसार, 12 मई को मेरे घर पर ये सभी लोग आए। उन्होंने मेरे पति को 2 लाख रुपए देने, मकान बनवाने का लालच दिया। अब वो हमें जबरदस्ती ईसाई धर्म में कंवर्ट करना चाहते हैं। सिख समाज से 9 परिवारों का सामाजिक बहिष्कार
बेल्हा गांव की गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने सिख समाज में पैदा हुए 9 लोगों के परिवार सहित सामाजिक रूप से बहिष्कार करते हुए उनकी एक लिस्ट गुरुद्वारे के अंदर लगाई है। आरोप है कि ये लोग धर्मांतरण कराते हैं। 9 लोगों में हरजिंदर सिंह, मंगल सिंह, सुरेंद्र सिंह, लखविंदर सिंह, दलबीर सिंह, बूढ़ सिंह, लखमीर सिंह, गुरमेज कौर और मनजीत सिंह के नाम लिखे हैं। सबसे आखिर में जानिए कौन हैं राय सिख? बंटवारे में पाकिस्तान से आए, नेपाल बॉर्डर पर बसाए 3 गांव
भारत में शारदा नदी और नेपाल बॉर्डर के बीच जो जमीन बचती है, उस पर पीलीभीत और लखीमपुर खीरी जिले के कुछ गांव बसे हैं। इसमें पीलीभीत जिले के 3 गांव नानक नगरी बेल्हा, भागीरथ और सिंघाड़ा उर्फ टाटरगंज प्रमुख हैं। इन तीन ग्राम पंचायतों के अंतर्गत 15 मजरे आते हैं। इनकी कुल जनसंख्या तकरीबन 22 हजार है। ज्यादातर लोग राय सिख हैं, जो भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद भारत में आकर बस गए थे। हरियाणा और पंजाब में इनकी अच्छी खासी तादाद है। पीलीभीत जिले में कुछ गांव और मजरे इन्हीं राय सिखों के द्वारा बसाए गए हैं। राय सिखों के रीति-रिवाज जट्ट सिखों जैसे हैं और वे पंजाबी बोलते हैं। बेल्हा ग्राम पंचायत में 12,700 एकड़ जमीन है। इन लोगों की आय का मुख्य साधन सिर्फ कृषि है। उसमें भी जब शारदा नदी में बाढ़ आती है, तो तकरीबन 3 महीने तक खेती नहीं होती। ज्यादातर घर छप्पर से बने हैं। दैनिक भास्कर ने उन लोगों से भी बात करने की कोशिश की, जिन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया है। लेकिन, वो लोग बात करने के लिए तैयार नहीं हुए। कल पढ़िए…पैसे–मकान का लालच मिला तो कर लिया धर्मांतरण ——————– ये खबर भी पढ़ें… भारत-नेपाल सीमा पर मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ी, बड़ी संख्या में नेपाली इधर बस गए; नेता वोट के लालच में आधार बनवा रहे श्रावस्ती जिले के किसान बुधई गुप्ता का गांव भारत-नेपाल सीमा के एकदम किनारे बसा है। इन हिस्सों में बड़ी संख्या में लोग बाहर से आकर बस गए हैं। इनमें हिंदू भी हैं और मुस्लिम भी। नेपाल से जुड़े यूपी के 7 जिलों में बॉर्डर एरिया पर मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ी। इसके पीछे कई कारण निकलकर सामने आए। पढ़ें पूरी खबर ‘ये पूरा क्षेत्र ट्रांस शारदा के नाम से जाना जाता है। इसमें प्योर सिखों की पॉपुलेशन है। नेपाल के पादरी इंडिया में आए। उन्होंने स्थानीय लोग पादरी बनाए। स्थानीय पादरी अब तक ढाई-तीन हजार लोगों का धर्मांतरण करा चुके हैं।’ ये नेपाल बॉर्डर से सटे उत्तर प्रदेश के जिला पीलीभीत के गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सचिव परमजीत सिंह उर्फ पीजी का कहना है। पीलीभीत में 3 हजार सिखों को धर्मांतरण करके ईसाई बनाने का आरोप गुरुद्वारा कमेटी ने लगाया है। धर्मांतरण के आरोप एक दशक से लगते रहे हैं। लेकिन ये हाइलाइट उस वक्त हुआ, जब पिछले साल बॉर्डर के आखिरी गांव में चर्च के लिए नींव रखी गई। साल-2002 में नेपाल से कुछ पास्टर-पादरी यहां आए। उन्होंने लालच देकर अपने साथ कुछ लोगों को जोड़ा। इसके बाद बीते 23 साल में धर्मांतरण सिंडिकेट काफी फल-फूल गया। सिखों पर काम करने वाली संस्थाओं को विदेशों से फंडिंग होने का शक है। क्योंकि, तमाम घरों में दक्षिण कोरिया के ईसाई धर्म के कैलेंडर लगे मिले हैं। दैनिक भास्कर ने इंडो-नेपाल बॉर्डर पर पहुंचकर इस केस की पड़ताल की। एक बात क्लियर हुई कि धर्मांतरण जबरन नहीं हुआ, बल्कि लोगों को पैसे-मकान का लालच दिया गया था। जो लालच दिया गया था, जब वो पूरा नहीं हुआ तो कुछ लोग सिख धर्म में वापस भी आ गए। पूरी रिपोर्ट पढ़िए… सबसे पहले इंडो-नेपाल बॉर्डर की बात बॉर्डर पर नहीं है तारबंदी, सिविलियन आराम से करते हैं क्रॉस
सबसे पहले हम पीलीभीत जिले में पूरनपुर तहसील के गांव बेल्हा पहुंचे। ये गांव नेपाल बॉर्डर से एकदम सटा हुआ है। दोनों देशों के खेत आपस में जुड़े हैं। पीलीभीत टाइगर रिजर्व के घने जंगलों को पार करते हुए हम शारदा नदी पहुंचे। यहां पांटून पुल पर चढ़कर नदी पार की। करीब 10 किलोमीटर खादर और रेतीला मैदान पार करते हुए गांव बेल्हा पहुंच पाए। इस गांव को जाने वाली सड़क के एक तरफ नेपाल बॉर्डर है, दूसरे तरफ बेल्हा गांव है। बॉर्डर पर सुरक्षा के लिए SSB (सशस्त्र सीमा बल) के जवान तैनात थे। उन्होंने हमारे बॉर्डर पर आने की वजह पूछी। आई-कार्ड समेत कई चीजें वेरिफाई कीं। इसके बाद कवरेज की अनुमति मिल पाई। देश के दूसरे अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर जैसा यहां पर देखने को नहीं मिला। मतलब, बॉर्डर पर तारबंदी नहीं थी। करीब 5 फीट ड्रैनेज खुदी हुई थी, जिसमें एक-एक किलोमीटर दूरी पर पिलर लगे थे। इन पिलर्स पर नंबर लिखे थे। सिर्फ यही इस बात का प्रतीक थे कि ये भारत-नेपाल बॉर्डर है। दोनों देशों के लोग खेत-खेत होते हुए आराम से आ-जा रहे थे। एक SSB जवान ने ऑफ कैमरा हमें बताया- एक पॉइंट पर कम से कम दो जवान ड्यूटी करते हैं। इनके पास कम से कम 300 मीटर का एरिया होता है। हम हर पल कितनी नजर रखें? दोनों देशों के खेत सटे हुए हैं। खेतों में फसल खड़ी रहती है। कोई अगर कुछ सामान इधर से उधर फेंक दे, तो हमें कैसे पता चलेगा? ऊपर से साफ निर्देश हैं कि हम नेपाल के क्षेत्र में एक कदम भी नहीं रखेंगे। हां, सिविलियन आ-जा सकते हैं। अगर दूसरे बॉर्डर की तरह यहां भी तारबंदी होती तो सुरक्षा और मजबूत हो सकती थी। अब धर्मांतरण का मामला सिलसिलेवार समझिए भास्कर को दिखाई 150 घरों की लिस्ट, जहां होती है ईसाई पूजा-पाठ
बेल्हा गांव में अंदर घुसते ही गुरुद्वारा है। यहां हमारी मुलाकात गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सचिव परमजीत सिंह उर्फ पीजी से हुई। उन्होंने हमें 150 घरों की एक लिस्ट दिखाकर दावा किया कि ये उन घरों की लिस्ट है, जहां ईसाई धर्म से जुड़ी गतिविधियां होती हैं। इन घरों के बाहर ईसाई समुदाय के प्रतीक क्रॉस का चिह्न बना हुआ है। जबकि कुछ घरों में चर्च जैसी गतिविधियां संचालित होती हैं। हालांकि करीब 10 दिन पहले ही पुलिस-प्रशासन ने विरोध के बाद सभी घरों के बाहर से ये क्रॉस निशान मिटवा दिए हैं। परमजीत सिंह कहते हैं- यहां सिर्फ सिख पॉपुलेशन रहती है। फिर चर्च या मिशनरी पूजा-पाठ का क्या मतलब? नेपाल से ईसाई धर्म से जुड़े लोग गांव में आते हैं। गरीबों को पैसे का लालच देते हैं। बीमारी सही होने का झांसा देते हैं। मकान बनवाने की बात भी कहते हैं। ऐसा करके वो सिखों का ईसाई धर्म में परिवर्तन करवा रहे हैं। 22 हजार की जनसंख्या में करीब 3 हजार लोगों का धर्मांतरण हो चुका है। हमने डीएम-एसपी को कंप्लेंट की है। उस पर जांच शुरू हो गई है। हमें आशंका है कि इसमें नेपाल सहित कई अन्य देशों से फंडिंग हो रही है। परमजीत सिंह ने बताया- हमें करीब 100 घरों में एक विशेष प्रकार के ईयर कैलेंडर लगे मिले। मैंने गृह मंत्रालय में एक सोर्स से उन कैलेंडर की जांच कराई। वहां से पता चला कि ये कैलेंडर दक्षिण कोरिया के हैं। कैलेंडर पर तस्वीर दक्षिण कोरिया की हैं, जबकि उनके नीचे कुछ लिखावट नेपाली भाषा में लिखी है। इससे ये आशंका है कि धर्मांतरण की फंडिंग दक्षिण कोरिया से भी हो रही है। हमने ये कैलेंडर बतौर सबूत डीएम-एसपी को उपलब्ध करवाए हैं। आरोप- नेपाल के पादरियों ने सबसे पहले सतनाम सिंह को जोड़ा जब इस इलाके में सिखों के अलावा कोई और नहीं रहता तो फिर ईसाई पूजा-पाठ की प्रथा कैसे शुरू हुई? इस सवाल के जवाब में गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के संरक्षक मक्खन सिंह बताते हैं- साल, 2002 के आसपास नेपाल के कंचनपुर जिले से पास्टर और पादरी इस गांव में आए। उन्होंने सबसे पहले टाटरगंज गांव के सतननाम सिंह को पास्टर बनाया। इसके बाद सतनाम सिंह ने अपने आसपास रहने वाले लोगों को लालच देना शुरू किया। वो सिखों को ईसाई धर्म से जोड़ता चला गया। 17 मई, 2025 को ही पीलीभीत जिले की माधोटांडा पुलिस ने सतनाम सिंह और एक अन्य युवक छिदर सिंह उर्फ सुरेंद्र सिंह को 2 किलो 230 ग्राम चरस सहित गिरफ्तार करके जेल भेजा है। पुलिस का कहना है कि सतनाम सिंह चरस की तस्करी से भी जुड़ा हुआ था। धर्मांतरण केस की पहली FIR में भी सतनाम का नाम धर्मांतरण प्रकरण में पहली FIR 13 मई, 2025 को पीलीभीत जिले के थाना हजारा में हुई। जो टाटरगंज निवासी मनजीत कौर नामक महिला ने कराई। इसमें सतनाम सिंह, बलवंत सिंह, अर्जुन सिंह, मलकित सिंह, सुरजीत सिंह, सुमित्रा कौर, बलवंत सिंह आदि को आरोपी बनाया गया है। मनजीत कौर के अनुसार, 12 मई को मेरे घर पर ये सभी लोग आए। उन्होंने मेरे पति को 2 लाख रुपए देने, मकान बनवाने का लालच दिया। अब वो हमें जबरदस्ती ईसाई धर्म में कंवर्ट करना चाहते हैं। सिख समाज से 9 परिवारों का सामाजिक बहिष्कार
बेल्हा गांव की गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने सिख समाज में पैदा हुए 9 लोगों के परिवार सहित सामाजिक रूप से बहिष्कार करते हुए उनकी एक लिस्ट गुरुद्वारे के अंदर लगाई है। आरोप है कि ये लोग धर्मांतरण कराते हैं। 9 लोगों में हरजिंदर सिंह, मंगल सिंह, सुरेंद्र सिंह, लखविंदर सिंह, दलबीर सिंह, बूढ़ सिंह, लखमीर सिंह, गुरमेज कौर और मनजीत सिंह के नाम लिखे हैं। सबसे आखिर में जानिए कौन हैं राय सिख? बंटवारे में पाकिस्तान से आए, नेपाल बॉर्डर पर बसाए 3 गांव
भारत में शारदा नदी और नेपाल बॉर्डर के बीच जो जमीन बचती है, उस पर पीलीभीत और लखीमपुर खीरी जिले के कुछ गांव बसे हैं। इसमें पीलीभीत जिले के 3 गांव नानक नगरी बेल्हा, भागीरथ और सिंघाड़ा उर्फ टाटरगंज प्रमुख हैं। इन तीन ग्राम पंचायतों के अंतर्गत 15 मजरे आते हैं। इनकी कुल जनसंख्या तकरीबन 22 हजार है। ज्यादातर लोग राय सिख हैं, जो भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद भारत में आकर बस गए थे। हरियाणा और पंजाब में इनकी अच्छी खासी तादाद है। पीलीभीत जिले में कुछ गांव और मजरे इन्हीं राय सिखों के द्वारा बसाए गए हैं। राय सिखों के रीति-रिवाज जट्ट सिखों जैसे हैं और वे पंजाबी बोलते हैं। बेल्हा ग्राम पंचायत में 12,700 एकड़ जमीन है। इन लोगों की आय का मुख्य साधन सिर्फ कृषि है। उसमें भी जब शारदा नदी में बाढ़ आती है, तो तकरीबन 3 महीने तक खेती नहीं होती। ज्यादातर घर छप्पर से बने हैं। दैनिक भास्कर ने उन लोगों से भी बात करने की कोशिश की, जिन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया है। लेकिन, वो लोग बात करने के लिए तैयार नहीं हुए। कल पढ़िए…पैसे–मकान का लालच मिला तो कर लिया धर्मांतरण ——————– ये खबर भी पढ़ें… भारत-नेपाल सीमा पर मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ी, बड़ी संख्या में नेपाली इधर बस गए; नेता वोट के लालच में आधार बनवा रहे श्रावस्ती जिले के किसान बुधई गुप्ता का गांव भारत-नेपाल सीमा के एकदम किनारे बसा है। इन हिस्सों में बड़ी संख्या में लोग बाहर से आकर बस गए हैं। इनमें हिंदू भी हैं और मुस्लिम भी। नेपाल से जुड़े यूपी के 7 जिलों में बॉर्डर एरिया पर मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ी। इसके पीछे कई कारण निकलकर सामने आए। पढ़ें पूरी खबर   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर