कानपुर और अकबरपुर लोकसभा सीट पर भाजपा ने लगातार तीसरी बार जीत दर्ज की है। कानपुर नगर सीट पर विपक्ष से कांग्रेस मजबूत दौड़ में थी, जबकि अकबरपुर में पहली बार सपा ने मजबूत बढ़त बनाई, लेकिन अंत में हार का सामना करना पड़ा। कानपुर सीट से पहली बार बने सांसद
कानपुर नगर सीट पर भाजपा से रमेश अवस्थी को कुल 443055 वोट मिले, जबकि उनके प्रतिद्वंदी कांग्रेस से आलोक मिश्रा को 422087 वोट हासिल हुए। बसपा से कुलदीप भदौरिया अपनी जमानत तक नहीं बचा सके। भाजपा प्रत्याशी ने 20,968 वोटों से जीत दर्ज की। रमेश अवस्थी का ये पहला लोकसभा चुनाव था और पहली बार वे सांसद चुने गए हैं। अकबरपुर सीट पर तीसरी बार जीता विश्वास
वहीं अकबरपुर सीट की बात करें तो भाजपा से देवेंद्र सिंह भोले ने तीसरी बार जनता का विश्वास जीतने में कामयाब रहे। उन्हें कुल 517423 वोट मिले। जबकि उनके प्रतिद्वंदी सपा से राजा राम पाल को 473078 वोटर हासिल हुए। इस सीट पर भी बसपा से राजेश द्विवेदी अपनी जमानत नहीं बचा सके। अब बात करते हैं कानपुर सीट पर कांग्रेस के हार के कारणों की… कानपुर नगर सीट पर इस बार कांग्रेस गठबंधन प्रत्याशी रहे आलोक मिश्रा ने भाजपा को कड़ी चुनौती दी। 26 राउंड की गिनती में वे 11 राउंड में आगे रहे, लेकिन भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया। भाजपा सीट पर शुरू में भाजपा कैंडिडेट को लेकर खासी नाराजगी थी, लेकिन कांग्रेस उस मुद्दे को भुना नहीं सकी। जबकि कांग्रेस और सपा संगठन भी चुनाव लड़ने में बेहद कमजोर साबित हुआ। वरिष्ठ कांग्रेसियों ने चुनाव से पहले बदला पाला
चुनाव एलान से पहले ही कानपुर की कांग्रेस का मजबूत नाम रहे अजय कपूर ने पार्टी का दामन छोड़ दिया और भाजपा में शामिल हो गए। किदवई नगर में उनका अच्छा प्रभाव है। कांग्रेस अगर यहां से मजबूत होती तो कांग्रेस जीत सकती थी। जबकि आर्य नगर, कैंट और सीसामऊ विधानसभा भाजपा बुरी तरह हार गई। गोविंद नगर और किदवई नगर से ही भाजपा को लीड मिली और जीत का बड़ा कारण बनी। मोदी के रोडशो में बढ़ाया उत्साह
रमेश अवस्थी को लेकर भाजपा के अंदरखाने और लोगों में भी काफी नाराजगी थी। लेकिन अमित शाह की बैठक, मोदी का रोड शो और अंत में योगी की जनसभा ने भाजपा के पक्ष में माहौल खड़ा कर दिया। अंतरकलह को अमित शाह जहां पूरी तरह खत्म करने में कामयाब रहे, वहीं योगी-मोदी के चेहरे ने कानपुर में मजबूती दे दी। हालांकि राहुल और अखिलेश की जनसभा कोई खास माहौल नहीं खड़ा की सकी। कांग्रेस भुना नहीं सके मुद्दे
कानपुर में भाजपा प्रत्याशी के बाहरी होने का मुद्दा बड़ी प्रमुखता से छाया रहा। लोगों में भी इसकी खासी चर्चा रही। लेकिन कांग्रेस इस मुद्दे को पूरी तरह नहीं भुना सकी। इसके उलट भाजपा आलोक मिश्रा को शिक्षा माफिया की छवि गढ़ने में कामयाब रही। गोविंद नगर और किदवई नगर में कांग्रेस संगठन की कमजोरी भी हार का बड़ा कारण बनी। कानपुर में कांग्रेस की हार की 5 बड़े कारण
1. वरिष्ठ कांग्रेसियों ने छोड़ दिया साथ
2. ब्राह्मणों ने आलोक मिश्रा का साथ नहीं दिया
3. भाजपा शिक्षा माफिया की छवि रचने में कामयाब रही
4. कांग्रेस और सपा का कमजोर संगठन
5. गोविंद नगर और किदवई नगर विधानसभा में कमजोर पकड़ अब बात अकबरपुर सीट की करते हैं… अकबरपुर सीट पर पहली बार सपा फाइट में नजर आई। वर्ष-2019 के चुनाव में बसपा यहां दूसरे नंबर पर थी, वहीं सपा ने इस बार मुख्य प्रतिद्वंदी के रूप में झंडे गाड़ दिए। हालांकि राजाराम पाल को यहां हार का मुंह देखना पड़ा और भाजपा से देवेंद्र सिंह भोले तीसरी बार जीतने में कामयाब रहे। कांग्रेस की कमजोरी सपा को ले डूबी
अकबरपुर सीट पर सपा और राजा राम पाल ने बेहद मजबूत संगठन खड़ा किया, जबकि उनके मुकाबले कांग्रेस बेहद कमजोर रही। यही कारण रहा कि सपा को इस सीट पर कांग्रेस के वोटबैंक से कोई खास बढ़त नहीं मिली। लेकिन पिछली बार जहां भाजपा प्रत्याशी करीब डेढ़ लाख वोट से जीते थे, लेकिन ये जीत इस बार 44345 वोट पर ही सिमट कर रह गई। बसपा को साधने में रह गए पीछे
वर्ष-2019 के चुनाव में बसपा यहां दूसरे नंबर पर थी। ऐसे में बसपा के वोट बैंक और कुर्मी जाति को साधने में सपा पीछे रह गई। इस सीट पर पीडीए फैक्टर के हिसाब से सभी जातियां थी, लेकिन पीडीए फैक्टर पर भी इस सीट पर कुछ खास काम नहीं किया। जबकि राजाराम ने पीडीए फैक्टर के इस सीट पर काम करने के बड़े दावे किए थे। योगी-मोदी चेहरा रहा कामयाब
भाजपा प्रत्याशी को लेकर लोगों के बीच शुरुआत में नाराजगी काफी थी। लेकिन योगी-मोदी का चेहरा इस सीट पर भी काम कर गया। बिठूर विधायक अभिजीत सिंह सांगा की नाराजगी भी जगजाहिर थी, लेकिन बावजूद इसे सपा भुनाने में कामयाब नहीं रही। अकबरपुर सीट पर सपा की हार के 5 बड़े कारण
1. सपा के लिए कांग्रेस वोटबैंक कुछ खास मजबूती नहीं दे सका
2. बसपा के वोटर्स को साधने में कामयाब नहीं रही सपा
3. सपा, कांग्रेस का कमजोर संगठन हार की बड़ी वजह बना
4. योगी-मोदी का चेहरा अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहा
5. पीडीए फैक्टर को जनता ने पूरी तरह नकार दिया कानपुर और अकबरपुर लोकसभा सीट पर भाजपा ने लगातार तीसरी बार जीत दर्ज की है। कानपुर नगर सीट पर विपक्ष से कांग्रेस मजबूत दौड़ में थी, जबकि अकबरपुर में पहली बार सपा ने मजबूत बढ़त बनाई, लेकिन अंत में हार का सामना करना पड़ा। कानपुर सीट से पहली बार बने सांसद
कानपुर नगर सीट पर भाजपा से रमेश अवस्थी को कुल 443055 वोट मिले, जबकि उनके प्रतिद्वंदी कांग्रेस से आलोक मिश्रा को 422087 वोट हासिल हुए। बसपा से कुलदीप भदौरिया अपनी जमानत तक नहीं बचा सके। भाजपा प्रत्याशी ने 20,968 वोटों से जीत दर्ज की। रमेश अवस्थी का ये पहला लोकसभा चुनाव था और पहली बार वे सांसद चुने गए हैं। अकबरपुर सीट पर तीसरी बार जीता विश्वास
वहीं अकबरपुर सीट की बात करें तो भाजपा से देवेंद्र सिंह भोले ने तीसरी बार जनता का विश्वास जीतने में कामयाब रहे। उन्हें कुल 517423 वोट मिले। जबकि उनके प्रतिद्वंदी सपा से राजा राम पाल को 473078 वोटर हासिल हुए। इस सीट पर भी बसपा से राजेश द्विवेदी अपनी जमानत नहीं बचा सके। अब बात करते हैं कानपुर सीट पर कांग्रेस के हार के कारणों की… कानपुर नगर सीट पर इस बार कांग्रेस गठबंधन प्रत्याशी रहे आलोक मिश्रा ने भाजपा को कड़ी चुनौती दी। 26 राउंड की गिनती में वे 11 राउंड में आगे रहे, लेकिन भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया। भाजपा सीट पर शुरू में भाजपा कैंडिडेट को लेकर खासी नाराजगी थी, लेकिन कांग्रेस उस मुद्दे को भुना नहीं सकी। जबकि कांग्रेस और सपा संगठन भी चुनाव लड़ने में बेहद कमजोर साबित हुआ। वरिष्ठ कांग्रेसियों ने चुनाव से पहले बदला पाला
चुनाव एलान से पहले ही कानपुर की कांग्रेस का मजबूत नाम रहे अजय कपूर ने पार्टी का दामन छोड़ दिया और भाजपा में शामिल हो गए। किदवई नगर में उनका अच्छा प्रभाव है। कांग्रेस अगर यहां से मजबूत होती तो कांग्रेस जीत सकती थी। जबकि आर्य नगर, कैंट और सीसामऊ विधानसभा भाजपा बुरी तरह हार गई। गोविंद नगर और किदवई नगर से ही भाजपा को लीड मिली और जीत का बड़ा कारण बनी। मोदी के रोडशो में बढ़ाया उत्साह
रमेश अवस्थी को लेकर भाजपा के अंदरखाने और लोगों में भी काफी नाराजगी थी। लेकिन अमित शाह की बैठक, मोदी का रोड शो और अंत में योगी की जनसभा ने भाजपा के पक्ष में माहौल खड़ा कर दिया। अंतरकलह को अमित शाह जहां पूरी तरह खत्म करने में कामयाब रहे, वहीं योगी-मोदी के चेहरे ने कानपुर में मजबूती दे दी। हालांकि राहुल और अखिलेश की जनसभा कोई खास माहौल नहीं खड़ा की सकी। कांग्रेस भुना नहीं सके मुद्दे
कानपुर में भाजपा प्रत्याशी के बाहरी होने का मुद्दा बड़ी प्रमुखता से छाया रहा। लोगों में भी इसकी खासी चर्चा रही। लेकिन कांग्रेस इस मुद्दे को पूरी तरह नहीं भुना सकी। इसके उलट भाजपा आलोक मिश्रा को शिक्षा माफिया की छवि गढ़ने में कामयाब रही। गोविंद नगर और किदवई नगर में कांग्रेस संगठन की कमजोरी भी हार का बड़ा कारण बनी। कानपुर में कांग्रेस की हार की 5 बड़े कारण
1. वरिष्ठ कांग्रेसियों ने छोड़ दिया साथ
2. ब्राह्मणों ने आलोक मिश्रा का साथ नहीं दिया
3. भाजपा शिक्षा माफिया की छवि रचने में कामयाब रही
4. कांग्रेस और सपा का कमजोर संगठन
5. गोविंद नगर और किदवई नगर विधानसभा में कमजोर पकड़ अब बात अकबरपुर सीट की करते हैं… अकबरपुर सीट पर पहली बार सपा फाइट में नजर आई। वर्ष-2019 के चुनाव में बसपा यहां दूसरे नंबर पर थी, वहीं सपा ने इस बार मुख्य प्रतिद्वंदी के रूप में झंडे गाड़ दिए। हालांकि राजाराम पाल को यहां हार का मुंह देखना पड़ा और भाजपा से देवेंद्र सिंह भोले तीसरी बार जीतने में कामयाब रहे। कांग्रेस की कमजोरी सपा को ले डूबी
अकबरपुर सीट पर सपा और राजा राम पाल ने बेहद मजबूत संगठन खड़ा किया, जबकि उनके मुकाबले कांग्रेस बेहद कमजोर रही। यही कारण रहा कि सपा को इस सीट पर कांग्रेस के वोटबैंक से कोई खास बढ़त नहीं मिली। लेकिन पिछली बार जहां भाजपा प्रत्याशी करीब डेढ़ लाख वोट से जीते थे, लेकिन ये जीत इस बार 44345 वोट पर ही सिमट कर रह गई। बसपा को साधने में रह गए पीछे
वर्ष-2019 के चुनाव में बसपा यहां दूसरे नंबर पर थी। ऐसे में बसपा के वोट बैंक और कुर्मी जाति को साधने में सपा पीछे रह गई। इस सीट पर पीडीए फैक्टर के हिसाब से सभी जातियां थी, लेकिन पीडीए फैक्टर पर भी इस सीट पर कुछ खास काम नहीं किया। जबकि राजाराम ने पीडीए फैक्टर के इस सीट पर काम करने के बड़े दावे किए थे। योगी-मोदी चेहरा रहा कामयाब
भाजपा प्रत्याशी को लेकर लोगों के बीच शुरुआत में नाराजगी काफी थी। लेकिन योगी-मोदी का चेहरा इस सीट पर भी काम कर गया। बिठूर विधायक अभिजीत सिंह सांगा की नाराजगी भी जगजाहिर थी, लेकिन बावजूद इसे सपा भुनाने में कामयाब नहीं रही। अकबरपुर सीट पर सपा की हार के 5 बड़े कारण
1. सपा के लिए कांग्रेस वोटबैंक कुछ खास मजबूती नहीं दे सका
2. बसपा के वोटर्स को साधने में कामयाब नहीं रही सपा
3. सपा, कांग्रेस का कमजोर संगठन हार की बड़ी वजह बना
4. योगी-मोदी का चेहरा अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहा
5. पीडीए फैक्टर को जनता ने पूरी तरह नकार दिया उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर