राहुल गांधी केरल की वायनाड सीट से इस्तीफा देंगे। रायबरेली से सांसद बने रहेंगे। दैनिक भास्कर ने 10 दिन पहले ही बता दिया था कि राहुल वायनाड से इस्तीफा देंगे और प्रियंका गांधी वायनाड से उपचुनाव लड़ेंगी। राहुल ने वायनाड सीट को छोड़कर देश के सबसे बड़े सियासी स्टेट और गांधी परिवार के गढ़ को फिर से अपना बना लिया। राहुल ने रायबरेली सीट को क्यों अपनाया? वायनाड क्यों छोड़ा? बहन प्रियंका क्यों उपचुनाव लड़ेंगी? दोनों की फ्यूचर पॉलिटिकल स्ट्रैटजी क्या होगी? इन सारे सवालों के जवाब हैं, इनके अपने सियासी मायने और समीकरण हैं। इसमें नॉर्थ और साउथ की पॉलिटिक्स भी है। चलिए, बताते हैं… राजनीतिक जानकारों का मानना है- गांधी परिवार को पता है कि यूपी में अपनी खोई जमीन को दोबारा पाने का इससे बेहतर मौका नहीं आएगा। आम चुनाव में इंडिया गठबंधन ने यूपी में देश का सबसे बेस्ट परफॉर्मेंस दिया। राहुल ने वायनाड से इस्तीफे का ऐलान भले आज किया हो, लेकिन यह फैसला 10 दिन पहले ही कर लिया था। सोमवार की मीटिंग महज औपचारिकता थी। बैठक में भी ज्यादातर नेताओं का कहना था कि राहुल ने साउथ इंडिया में कांग्रेस को काफी मजबूत कर दिया है। अब नॉर्थ इंडिया की यानी हिंदी पट्टी की बारी है। देश में कांग्रेस को अकेले दम पर सरकार बनानी है तो उसे हिंदी पट्टी को जीतना ही होगा। इसीलिए पार्टी ने अच्छा निर्णय लिया कि राहुल उत्तर भारत को लीड करेंगे, जबकि प्रियंका साउथ इंडिया को। प्रियंका के साउथ में जाने से वहां कांग्रेस के प्रति लोगों में नाराजगी भी नहीं होगी। साथ ही कांग्रेस की पकड़ भी बनी रहेगी। राहुल के रायबरेली सीट को बरकरार रखने के पीछे की 3 वजह- 1. पार्टी और परिवार के लिए लकी सीट और विरासत भी
गांधी परिवार की अब तक की राजनीति देखेंगे तो उसमें पार्टी के मुखिया ने हमेशा अमेठी या रायबरेली से ही देश की राजनीति को चलाया है। ये दोनों सीटें परिवार के लिए लकी भी मानी जाती हैं। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, पहले मां सोनिया ने राहुल को समझाया कि UP कांग्रेस के लिए बेहद जरूरी है। इसलिए उन्हें रायबरेली अपने पास रखना चाहिए। राहुल के रायबरेली में बने रहने की सहमति के पीछे मां सोनिया की वह भावुक अपील भी है, जिसमें उन्होंने कहा था, ‘आपको बेटा सौंप रही हूं।’ सोनिया के अलावा बहन प्रियंका और जीजा रॉबर्ट वाड्रा ने भी समझाया कि रायबरेली की जीत इस लिहाज से भी बड़ी है कि परिवार ने अमेठी की खोई सीट भी हासिल कर ली। रायबरेली में राहुल को वायनाड से बड़ी जीत मिली। ऐसे में रायबरेली छोड़ेंगे तो UP में गलत मैसेज जाएगा। यही नहीं, गांधी परिवार के मुखिया ने हमेशा UP से ही राजनीति की। पिता राजीव गांधी अमेठी और परदादा जवाहरलाल नेहरू इलाहाबाद से चुनाव लड़ते रहे हैं। रायबरेली उनकी मां, दादी इंदिरा और दादा फिरोज गांधी की सीट है। 2. हिंदी पट्टी और देश में पैठ का रास्ता यूपी से जाता है
उत्तर भारत के राज्यों में लोकसभा की 543 में से करीब 350 सीटें हिंदी भाषी बहुल राज्यों से आती हैं। यहां 2019 में भाजपा को 170 से ज्यादा सीटें मिली थीं और भाजपा ने अकेले दम पर सरकार बनाई थी। कांग्रेस की भी यही सोच है कि अगर उसे अकेले दम पर केंद्र में सरकार बनानी है तो हिंदी भाषी राज्य और खासकर यूपी में मजबूत होना होगा, क्योंकि गठबंधन के भरोसे बहुत दिन सत्ता में कायम नहीं रहा जा सकता है। यूपी कांग्रेस को UP में इस बार 9.4 फीसदी वोट मिले। यह कांग्रेस के लिए संजीवनी की तरह है। 2019 में 6.36% वोट शेयर और 1सीट ही मिली थी। 2022 UP विधानसभा चुनाव में 2.33% वोट और दो सीटें मिली थीं। 3. यूपी से हो विपक्ष का नेता, मोदी को संसद में देंगे चैलेंज
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा था कि राहुल को संसद में विपक्ष का नेता बनना होगा, नहीं तो अनुशासनात्मक कार्रवाई करूंगा। इसके बाद से राहुल का विपक्ष का नेता बनना तय माना जा रहा है। रायबरेली सीट को बरकरार रखने के पीछे कांग्रेस का एक आइडिया ये भी है कि जिस राज्य से प्रधानमंत्री आते हैं, उसी राज्य से विपक्ष का नेता भी होगा। इससे राहुल को नेशनल मीडिया और लोगों के बीच में बने रहने का ज्यादा मौका मिलेगा। राहुल यूपी में ज्यादा एक्टिव होंगे तो वह मोदी को और ज्यादा टक्कर दे सकेंगे। राहुल मुखर होकर यूपी के मुद्दों को सदन में उठा सकेंगे। इससे कांग्रेस का यूपी में मास कनेक्ट और बढ़ेगा। साथ ही कांग्रेस हिंदी भाषी राज्यों में और मजबूत होगी। कांग्रेस के कार्यकर्ता एक बार फिर नई ऊर्जा और जोश के साथ जनता के बीच में होंगे। यहीं नहीं, यूपी और अन्य राज्यों में कांग्रेस भाजपा का विकल्प बन सकेगी। प्रियंका ने वायनाड सीट को क्यों अपनाया? भाई को ब्रांड बनाने के लिए प्रियंका ने किया समझौता
सूत्र बताते हैं कि प्रियंका के खेमे के कुछ लोग पहले चाहते थे कि राहुल वायनाड में ही रहें और प्रियंका रायबरेली से उपचुनाव लड़ें, लेकिन बाद में प्रियंका राजी नहीं हुईं। दरअसल, नामांकन से ठीक 1 दिन पहले ही गांधी परिवार ने फैसला लिया था कि राहुल रायबरेली से लड़ेंगे। यह फैसला आखिरी वक्त में इसलिए हुआ कि प्रियंका और पति रॉबर्ट वाड्रा दोनों चुनाव लड़ना चाहते थे। लेकिन पार्टी के सीनियर नेताओं ने प्रियंका को समझाया कि परिवारवाद के आरोप से कांग्रेस कमजोर होगी। पूरे परिवार को चुनाव में उतरने की बजाय राहुल को ब्रांड बनाना जरूरी है। प्रियंका को भी यह बात ज्यादा समझ में आई। इसीलिए प्रियंका वायनाड सीट से उपचुनाव लड़ने को लेकर राजी हो गईं। दरअसल, प्रियंका को पार्टी बनारस में मोदी के खिलाफ भी लड़ाना चाहती थी, लेकिन आखिरी वक्त में फैसला बदल दिया गया। राहुल ने हाल ही में रायबरेली में अपने एक भाषण में इस ओर इशारा भी किया था। नॉर्थ के साथ साउथ भी है कांग्रेस के लिए जरूरी
राहुल 2019 में वायनाड से जीतकर संसद पहुंचे। राहुल ने भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत भी कन्याकुमारी से की। इसके बाद कांग्रेस लगातार दक्षिण में मजबूत हुई। खासकर केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक में। कर्नाटक में कांग्रेस ने सरकार भी बना ली। इस चुनाव में केरल में कांग्रेस को 20 में से 14 सीटें, तमिलनाडु में 9 और कर्नाटक में 9 सीटें मिलीं। अब राहुल गांधी नॉर्थ इंडिया खासकर हिंदी पट्टी को मजबूत करने पर फोकस करना चाहते हैं, लेकिन साउथ को किसी भी कीमत पर नहीं गंवाना चाहते। बताया जाता है कि राहुल के कहने पर ही प्रियंका वायनाड से उपचुनाव लड़ने के लिए राजी हुई हैं। राहुल ने बहन को समझाया कि साउथ में उनके आने से दोबारा पार्टी के कार्यकर्ताओं में काफी उत्साह आया है। इसका रिजल्ट भी पिछले 2 चुनाव में दिखा है। इसलिए उनके उपचुनाव लड़ने से पब्लिक को इस बात का एहसास रहेगा कि गांधी परिवार उनका साथ नहीं छोड़ रहा है। पार्टी की जरूरतों के लिए सिर्फ राहुल रायबरेली जा रहे हैं। प्रियंका के संसद पहुंचने से कांग्रेस में जोश आएगा, राहुल ताकतवर होंगे
प्रियंका गांधी ने जिस जोश के साथ इस बार आम चुनाव में कैंपेन किया। जिस सधे हुए लहजे में उन्होंने पीएम मोदी और भाजपा नेताओं को जवाब दिया, चाहे मंगलसूत्र को लेकर जवाब हो या फिर मुस्लिम आरक्षण की बात हो। प्रियंका ने बहुत परिपक्वता का परिचय दिया। इससे पूरी कांग्रेस में ऊर्जा का संचार हुआ। कांग्रेस के कई सीनियर नेता सदन से बाहर हो चुके हैं या कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जा चुके हैं। ऐसे में प्रियंका के सदन में पहुंचने से पार्टी की आइडियोलॉजी को मजबूती मिलेगी। वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कपूर कहते हैं- प्रियंका के संसद में आने से राहुल अब भाजपा के सामने अकेले नहीं पड़ेंगे। प्रियंका की वाक्यपटुता और भाषण शैली बहुत ही सधी हुई रहती है। इसलिए प्रियंका गांधी के संसद पहुंचने पर सदन में एक नई कांग्रेस की झलक दिखेगी। प्रियंका का संसद पहुंचना, कांग्रेस के लिए किसी मास्टर स्ट्रोक से कम नहीं होगा। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का फ्यूचर प्लान क्या होगा?… राहुल यूपी में जनसंपर्क अभियान शुरू कर सकते हैं
पार्टी सूत्रों के मुताबिक आने वाले वक्त में राहुल यूपी में अपना नेटवर्क बढ़ाना चाहते हैं। वह पूरे प्रदेश में जनसंपर्क अभियान शुरू कर सकते हैं। कांग्रेस जिन सीटों पर चुनाव लड़ी है, वहां पद यात्रा भी कर सकते हैं। वह ग्राउंड वर्क पर फोकस करेंगे। इसके अलावा यूपी में होने वाली बड़ी घटनाओं पर मौके पर भी जा सकते हैं। इससे उनका पब्लिक कनेक्ट और पार्टी का जनाधार बढ़ेगा। आने वाले दिनों में दोनों भाई-बहन यूपी में अपनी एक्टिविटी और बढ़ा सकते हैं। दरअसल, राहुल पिछले आम चुनाव और विधानसभा चुनाव के बाद से यूपी में काफी कम नजर आ रहे थे। प्रियंका यूपी की दोबारा प्रभारी बन सकती हैं
यह भी कहा जा रहा है कि प्रियंका दोबारा UP प्रदेश प्रभारी की जिम्मेदारी संभाल सकती हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में हार के बाद उन्होंने इस पद को छोड़ दिया था। यूपी में विधानसभा चुनाव 2027 में होंगे। इससे पहले भाई-बहन यूपी में कांग्रेस की जड़ को मजबूत करने के लिए बूथ और संगठन को मजबूत करना चाहते हैं। प्रियंका को यूपी की समझ भी अच्छी है, क्योंकि यहां उन्होंने काम किया है। प्रियंका ने यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान ही अकेले ही पार्टी की कमान संभाल रखी थी। अखिलेश के सहारे गठबंधन और पार्टी को मजबूत करेंगे भाई-बहन
पार्टी सूत्रों के मुताबिक राहुल और प्रियंका यूपी में कांग्रेस के जनाधार को बढ़ाने के साथ गठबंधन का भी पूरा ध्यान रखेंगे। यही वजह है कि वे जल्द ही लखनऊ भी आने वाले हैं। यहां वे जीत पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का शुक्रिया अदा कर सकते हैं। साथ ही प्रदेश में बड़े मौकों पर अखिलेश के साथ प्रियंका और राहुल दिख सकते हैं। अखिलेश लोकसभा में बैठेंगे। यहां राहुल अखिलेश को अपने बगल की सीट भी ऑफर कर सकते हैं। सपा इस वक्त देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी भी बन चुकी है। राहुल गांधी केरल की वायनाड सीट से इस्तीफा देंगे। रायबरेली से सांसद बने रहेंगे। दैनिक भास्कर ने 10 दिन पहले ही बता दिया था कि राहुल वायनाड से इस्तीफा देंगे और प्रियंका गांधी वायनाड से उपचुनाव लड़ेंगी। राहुल ने वायनाड सीट को छोड़कर देश के सबसे बड़े सियासी स्टेट और गांधी परिवार के गढ़ को फिर से अपना बना लिया। राहुल ने रायबरेली सीट को क्यों अपनाया? वायनाड क्यों छोड़ा? बहन प्रियंका क्यों उपचुनाव लड़ेंगी? दोनों की फ्यूचर पॉलिटिकल स्ट्रैटजी क्या होगी? इन सारे सवालों के जवाब हैं, इनके अपने सियासी मायने और समीकरण हैं। इसमें नॉर्थ और साउथ की पॉलिटिक्स भी है। चलिए, बताते हैं… राजनीतिक जानकारों का मानना है- गांधी परिवार को पता है कि यूपी में अपनी खोई जमीन को दोबारा पाने का इससे बेहतर मौका नहीं आएगा। आम चुनाव में इंडिया गठबंधन ने यूपी में देश का सबसे बेस्ट परफॉर्मेंस दिया। राहुल ने वायनाड से इस्तीफे का ऐलान भले आज किया हो, लेकिन यह फैसला 10 दिन पहले ही कर लिया था। सोमवार की मीटिंग महज औपचारिकता थी। बैठक में भी ज्यादातर नेताओं का कहना था कि राहुल ने साउथ इंडिया में कांग्रेस को काफी मजबूत कर दिया है। अब नॉर्थ इंडिया की यानी हिंदी पट्टी की बारी है। देश में कांग्रेस को अकेले दम पर सरकार बनानी है तो उसे हिंदी पट्टी को जीतना ही होगा। इसीलिए पार्टी ने अच्छा निर्णय लिया कि राहुल उत्तर भारत को लीड करेंगे, जबकि प्रियंका साउथ इंडिया को। प्रियंका के साउथ में जाने से वहां कांग्रेस के प्रति लोगों में नाराजगी भी नहीं होगी। साथ ही कांग्रेस की पकड़ भी बनी रहेगी। राहुल के रायबरेली सीट को बरकरार रखने के पीछे की 3 वजह- 1. पार्टी और परिवार के लिए लकी सीट और विरासत भी
गांधी परिवार की अब तक की राजनीति देखेंगे तो उसमें पार्टी के मुखिया ने हमेशा अमेठी या रायबरेली से ही देश की राजनीति को चलाया है। ये दोनों सीटें परिवार के लिए लकी भी मानी जाती हैं। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, पहले मां सोनिया ने राहुल को समझाया कि UP कांग्रेस के लिए बेहद जरूरी है। इसलिए उन्हें रायबरेली अपने पास रखना चाहिए। राहुल के रायबरेली में बने रहने की सहमति के पीछे मां सोनिया की वह भावुक अपील भी है, जिसमें उन्होंने कहा था, ‘आपको बेटा सौंप रही हूं।’ सोनिया के अलावा बहन प्रियंका और जीजा रॉबर्ट वाड्रा ने भी समझाया कि रायबरेली की जीत इस लिहाज से भी बड़ी है कि परिवार ने अमेठी की खोई सीट भी हासिल कर ली। रायबरेली में राहुल को वायनाड से बड़ी जीत मिली। ऐसे में रायबरेली छोड़ेंगे तो UP में गलत मैसेज जाएगा। यही नहीं, गांधी परिवार के मुखिया ने हमेशा UP से ही राजनीति की। पिता राजीव गांधी अमेठी और परदादा जवाहरलाल नेहरू इलाहाबाद से चुनाव लड़ते रहे हैं। रायबरेली उनकी मां, दादी इंदिरा और दादा फिरोज गांधी की सीट है। 2. हिंदी पट्टी और देश में पैठ का रास्ता यूपी से जाता है
उत्तर भारत के राज्यों में लोकसभा की 543 में से करीब 350 सीटें हिंदी भाषी बहुल राज्यों से आती हैं। यहां 2019 में भाजपा को 170 से ज्यादा सीटें मिली थीं और भाजपा ने अकेले दम पर सरकार बनाई थी। कांग्रेस की भी यही सोच है कि अगर उसे अकेले दम पर केंद्र में सरकार बनानी है तो हिंदी भाषी राज्य और खासकर यूपी में मजबूत होना होगा, क्योंकि गठबंधन के भरोसे बहुत दिन सत्ता में कायम नहीं रहा जा सकता है। यूपी कांग्रेस को UP में इस बार 9.4 फीसदी वोट मिले। यह कांग्रेस के लिए संजीवनी की तरह है। 2019 में 6.36% वोट शेयर और 1सीट ही मिली थी। 2022 UP विधानसभा चुनाव में 2.33% वोट और दो सीटें मिली थीं। 3. यूपी से हो विपक्ष का नेता, मोदी को संसद में देंगे चैलेंज
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा था कि राहुल को संसद में विपक्ष का नेता बनना होगा, नहीं तो अनुशासनात्मक कार्रवाई करूंगा। इसके बाद से राहुल का विपक्ष का नेता बनना तय माना जा रहा है। रायबरेली सीट को बरकरार रखने के पीछे कांग्रेस का एक आइडिया ये भी है कि जिस राज्य से प्रधानमंत्री आते हैं, उसी राज्य से विपक्ष का नेता भी होगा। इससे राहुल को नेशनल मीडिया और लोगों के बीच में बने रहने का ज्यादा मौका मिलेगा। राहुल यूपी में ज्यादा एक्टिव होंगे तो वह मोदी को और ज्यादा टक्कर दे सकेंगे। राहुल मुखर होकर यूपी के मुद्दों को सदन में उठा सकेंगे। इससे कांग्रेस का यूपी में मास कनेक्ट और बढ़ेगा। साथ ही कांग्रेस हिंदी भाषी राज्यों में और मजबूत होगी। कांग्रेस के कार्यकर्ता एक बार फिर नई ऊर्जा और जोश के साथ जनता के बीच में होंगे। यहीं नहीं, यूपी और अन्य राज्यों में कांग्रेस भाजपा का विकल्प बन सकेगी। प्रियंका ने वायनाड सीट को क्यों अपनाया? भाई को ब्रांड बनाने के लिए प्रियंका ने किया समझौता
सूत्र बताते हैं कि प्रियंका के खेमे के कुछ लोग पहले चाहते थे कि राहुल वायनाड में ही रहें और प्रियंका रायबरेली से उपचुनाव लड़ें, लेकिन बाद में प्रियंका राजी नहीं हुईं। दरअसल, नामांकन से ठीक 1 दिन पहले ही गांधी परिवार ने फैसला लिया था कि राहुल रायबरेली से लड़ेंगे। यह फैसला आखिरी वक्त में इसलिए हुआ कि प्रियंका और पति रॉबर्ट वाड्रा दोनों चुनाव लड़ना चाहते थे। लेकिन पार्टी के सीनियर नेताओं ने प्रियंका को समझाया कि परिवारवाद के आरोप से कांग्रेस कमजोर होगी। पूरे परिवार को चुनाव में उतरने की बजाय राहुल को ब्रांड बनाना जरूरी है। प्रियंका को भी यह बात ज्यादा समझ में आई। इसीलिए प्रियंका वायनाड सीट से उपचुनाव लड़ने को लेकर राजी हो गईं। दरअसल, प्रियंका को पार्टी बनारस में मोदी के खिलाफ भी लड़ाना चाहती थी, लेकिन आखिरी वक्त में फैसला बदल दिया गया। राहुल ने हाल ही में रायबरेली में अपने एक भाषण में इस ओर इशारा भी किया था। नॉर्थ के साथ साउथ भी है कांग्रेस के लिए जरूरी
राहुल 2019 में वायनाड से जीतकर संसद पहुंचे। राहुल ने भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत भी कन्याकुमारी से की। इसके बाद कांग्रेस लगातार दक्षिण में मजबूत हुई। खासकर केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक में। कर्नाटक में कांग्रेस ने सरकार भी बना ली। इस चुनाव में केरल में कांग्रेस को 20 में से 14 सीटें, तमिलनाडु में 9 और कर्नाटक में 9 सीटें मिलीं। अब राहुल गांधी नॉर्थ इंडिया खासकर हिंदी पट्टी को मजबूत करने पर फोकस करना चाहते हैं, लेकिन साउथ को किसी भी कीमत पर नहीं गंवाना चाहते। बताया जाता है कि राहुल के कहने पर ही प्रियंका वायनाड से उपचुनाव लड़ने के लिए राजी हुई हैं। राहुल ने बहन को समझाया कि साउथ में उनके आने से दोबारा पार्टी के कार्यकर्ताओं में काफी उत्साह आया है। इसका रिजल्ट भी पिछले 2 चुनाव में दिखा है। इसलिए उनके उपचुनाव लड़ने से पब्लिक को इस बात का एहसास रहेगा कि गांधी परिवार उनका साथ नहीं छोड़ रहा है। पार्टी की जरूरतों के लिए सिर्फ राहुल रायबरेली जा रहे हैं। प्रियंका के संसद पहुंचने से कांग्रेस में जोश आएगा, राहुल ताकतवर होंगे
प्रियंका गांधी ने जिस जोश के साथ इस बार आम चुनाव में कैंपेन किया। जिस सधे हुए लहजे में उन्होंने पीएम मोदी और भाजपा नेताओं को जवाब दिया, चाहे मंगलसूत्र को लेकर जवाब हो या फिर मुस्लिम आरक्षण की बात हो। प्रियंका ने बहुत परिपक्वता का परिचय दिया। इससे पूरी कांग्रेस में ऊर्जा का संचार हुआ। कांग्रेस के कई सीनियर नेता सदन से बाहर हो चुके हैं या कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जा चुके हैं। ऐसे में प्रियंका के सदन में पहुंचने से पार्टी की आइडियोलॉजी को मजबूती मिलेगी। वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कपूर कहते हैं- प्रियंका के संसद में आने से राहुल अब भाजपा के सामने अकेले नहीं पड़ेंगे। प्रियंका की वाक्यपटुता और भाषण शैली बहुत ही सधी हुई रहती है। इसलिए प्रियंका गांधी के संसद पहुंचने पर सदन में एक नई कांग्रेस की झलक दिखेगी। प्रियंका का संसद पहुंचना, कांग्रेस के लिए किसी मास्टर स्ट्रोक से कम नहीं होगा। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का फ्यूचर प्लान क्या होगा?… राहुल यूपी में जनसंपर्क अभियान शुरू कर सकते हैं
पार्टी सूत्रों के मुताबिक आने वाले वक्त में राहुल यूपी में अपना नेटवर्क बढ़ाना चाहते हैं। वह पूरे प्रदेश में जनसंपर्क अभियान शुरू कर सकते हैं। कांग्रेस जिन सीटों पर चुनाव लड़ी है, वहां पद यात्रा भी कर सकते हैं। वह ग्राउंड वर्क पर फोकस करेंगे। इसके अलावा यूपी में होने वाली बड़ी घटनाओं पर मौके पर भी जा सकते हैं। इससे उनका पब्लिक कनेक्ट और पार्टी का जनाधार बढ़ेगा। आने वाले दिनों में दोनों भाई-बहन यूपी में अपनी एक्टिविटी और बढ़ा सकते हैं। दरअसल, राहुल पिछले आम चुनाव और विधानसभा चुनाव के बाद से यूपी में काफी कम नजर आ रहे थे। प्रियंका यूपी की दोबारा प्रभारी बन सकती हैं
यह भी कहा जा रहा है कि प्रियंका दोबारा UP प्रदेश प्रभारी की जिम्मेदारी संभाल सकती हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में हार के बाद उन्होंने इस पद को छोड़ दिया था। यूपी में विधानसभा चुनाव 2027 में होंगे। इससे पहले भाई-बहन यूपी में कांग्रेस की जड़ को मजबूत करने के लिए बूथ और संगठन को मजबूत करना चाहते हैं। प्रियंका को यूपी की समझ भी अच्छी है, क्योंकि यहां उन्होंने काम किया है। प्रियंका ने यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान ही अकेले ही पार्टी की कमान संभाल रखी थी। अखिलेश के सहारे गठबंधन और पार्टी को मजबूत करेंगे भाई-बहन
पार्टी सूत्रों के मुताबिक राहुल और प्रियंका यूपी में कांग्रेस के जनाधार को बढ़ाने के साथ गठबंधन का भी पूरा ध्यान रखेंगे। यही वजह है कि वे जल्द ही लखनऊ भी आने वाले हैं। यहां वे जीत पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का शुक्रिया अदा कर सकते हैं। साथ ही प्रदेश में बड़े मौकों पर अखिलेश के साथ प्रियंका और राहुल दिख सकते हैं। अखिलेश लोकसभा में बैठेंगे। यहां राहुल अखिलेश को अपने बगल की सीट भी ऑफर कर सकते हैं। सपा इस वक्त देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी भी बन चुकी है। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर