यूपी में इस बार गर्मी ने कहर बरपाया। 20 शहरों में सामान्य दिनों की तुलना में 4 गुना ज्यादा लावारिस लाशें मिलीं। पोस्टमॉर्टम हाउस में भी डेढ़ गुना से ज्यादा शवों का पोस्टमॉर्टम हुआ। बड़े शहरों वाराणसी, प्रयागराज और कानपुर में तो मॉर्च्युरी में शव रखने तक की जगह नहीं मिली। हमने सामान्य दिनों 1 से 17 मार्च और प्रचंड गर्मी वाले दिनों 1 से 17 जून के बीच का आंकड़ा निकाला। इसमें पोस्टमॉर्टम हाउस में पहुंचने वाले शवों (लावारिस भी) को भी शामिल किया। मार्च में 1 हजार 345 शवों के पोस्टमॉर्टम किए गए थे, जबकि जून में 2 हजार 136 पोस्टमॉर्टम। आशंका जताई जा रही है कि इतनी मौतें गर्मी की वजह (ब्रेन स्टोक और हार्ट अटैक) से हुईं। इस दौरान लावारिस लाशों की संख्या बेतहाशा बढ़ी। 1 से 17 मार्च के बीच 92 लावारिस लाशें मिलीं, जबकि 1 से 17 जून के बीच यह संख्या 414 रही। अब 3 बड़े शहरों वाराणसी, कानपुर और प्रयागराज से रिपोर्ट देखिए… वाराणसी में मॉर्च्युरी हाउसफुल; 17 दिन में हुए 183 पोस्टमॉर्टम, 48 अज्ञात
वाराणसी में तापमान मई मध्य से जून मध्य तक 43 से 46 तक बना रहा। ऐसे में मौतों का सिलसिला भी जारी रहा। सरकारी अस्पतालों की मॉर्च्युरी से लेकर पोस्टमॉर्टम हाउस तक शवों की कतार लग गई। हर जगह क्षमता से अधिक शव पहुंचे। ऐसे में दैनिक भास्कर ने मंडलीय चिकित्सालय, जिला अस्पताल और पोस्टमॉर्टम हाउस की पड़ताल की। वाराणसी के पोस्टमॉर्टम हाउस के आंकड़े की बात करें तो 1 जून से 17 जून तक यहां 183 शवों का पोस्टमॉर्टम हुआ, जिसमें 48 शव लावारिस थे। गर्मी के प्रकोप से लगातार शवों के आने का सिलसिला जारी है। यहां लोग शवों को लेने के लिए कतार में खड़े हैं। उनका कहना है- बदबू से बहुत दिक्कत है और वेटिंग लंबी है। शिवपुर में बने पोस्टमॉर्टम हाउस में बड़ी संख्या में शव लाए जा रहे हैं। 15 की क्षमता वाली मॉर्च्युरी में 50 शवों के आने से इसे बाहर रखना पड़ रहा है। वहीं, मंडलीय चिकित्सालय की मॉर्च्युरी में मंगलवार को 17 शव थे। बुधवार को 12 शव रात 8 बजे लाए गए। शवों को एक कमरे में बंद कर दिया जाता है ताकि कोई जानवर उन तक न पहुंच सके। काशी के मणिकर्णिका घाट पर 30 मई को सामान्य दिनों की तुलना में तीन गुना यानी 400 से ज्यादा शव पहुंचे। यहां गलियों में रातभर जाम लगा रहा। भीड़ से व्यवस्थाएं ध्वस्त हो गईं। हमने घाट पर अंतिम संस्कार कराने वाले डोम राजा ओम चौधरी से बात की। उन्होंने बताया- गर्मी बढ़ने के बाद अचानक शवों की संख्या बढ़ी है। मणिकर्णिका ही नहीं, बल्कि हरिश्चंद्र घाट समेत अन्य श्मशान पर भी शवों की संख्या बढ़ी है। हरिश्चंद्र घाट पर पहले 50 से 60 शव आते थे। यह आंकड़ा बढ़कर 150 से 200 के बीच पहुंच गया है। प्रयागराज में अंतिम संस्कार के लिए वेटिंग
प्रयागराज के रसूलाबाद श्मशान घाट की तरफ जाने के लिए एक संकरा रास्ता है। 18 जून को यहां करीब 1 किमी लंबा जाम था। कुछ लोगों ने अर्थी को सड़क पर रख दिया। हमें बताया गया कि श्मशान घाट के अंदर जगह नहीं है। इसलिए अर्थी को सड़क पर रखकर इंतजार कर रहे हैं। यहां लोग बातें कर रहे थे- आम दिनों में 20 लाशें आती होंगी। अब तो 2-3 घंटे में इतनी लाशें आ रही हैं, कैसे चलेगा? 5 घंटे बाद आ रहा नंबर
इसी भीड़ में कुछ लोग अर्थी को लेकर जल्दबाजी में श्मशान की तरफ जाते हुए दिखे। बताया गया कि वो काफी देर से इंतजार कर रहे थे। उनका नंबर लगा था, अब अंदर बुलाया गया। ये लोग 4-5 घंटे से बाहर इंतजार कर रहे थे। कोई गंभीर बीमारी नहीं थी
अचानक लोगों की मौतें क्यों हो रही हैं? हमने श्मशान घाट पर मौजूद लोगों से इस बारे में बात की। जवाब मिला- जिन लोगों की मौतें हुई हैं,उन्हें कोई गंभीर बीमारी नहीं थी। हीटवेव बर्दाश्त नहीं कर सके। गर्मी में उनकी दिक्कतें बढ़ गईं। हरिकेश सिंह बताते हैं- मैं जिनके अंतिम संस्कार में आया हूं, उनकी उम्र करीब 70 वर्ष थी। 17 जून की दोपहर में घर के बाहर जमीन पर गिर गए। परिवार के लोग नहीं थे, वह 2 घंटे तक जमीन पर पड़े रहे। गर्मी ज्यादा थी, बाद में उनकी मौत हो गई। कोई गंभीर बीमारी नहीं थी। कानपुर में 17 दिन में 493 पोस्टमॉर्टम; 142 लावारिस शव स्टेशन के आसपास मिले भास्कर ने सेंट्रल रेलवे स्टेशन से लेकर घंटाघर चौराहे तक पड़ताल की। अलग-अलग स्पॉट पर फुटपाथ पर रहने वालों से बात की। सामने आया कि करीब 200 लोग अब इस एरिया में नहीं दिखते हैं, बताया गया कि इनमें से ज्यादातर की मौत हो चुकी है। वजह कोई बीमारी, तो कोई गर्मी बताता रहा। इस हकीकत को और करीब से परखने के लिए हम पोस्टमॉर्टम हाउस पहुंचे। दस्तावेज के मुताबिक, 1 से 17 जून में 493 लोगों के पोस्टमॉर्टम हुए। इनमें पुरुष और महिलाओं के 142 लावारिस शव हैं। ज्यादातर के शव फुटपाथ पर मिले। बॉडी क्लेम न होने की वजह से सामाजिक संगठनों ने इनका दाह संस्कार भैरव घाट श्मशान पर किया। लावारिस शवों का दाह संस्कार करने वाले बोले- गरीब ही मर रहे
स्टेशन कैंपस की स्थितियां समझने के बाद हम भैरव घाट श्मशान पहुंचे। लावारिस लोगों का दाह संस्कार करने वाले धनीराम पैंथर से मुलाकात हुई। उन्होंने बताया- गर्मी का असर इस बार ज्यादा है। लावारिस लाशों का दाह संस्कार हम लोग करते हैं। इस बार लावारिस लाशें बहुत मिल रही हैं। मेरे सामने करीब रोज 10-12 शव आते हैं। किसी दिन 15-20 शव भी आ जाते हैं। उन्होंने बताया- लाशों के दाह संस्कार के लिए पुलिस हमसे संपर्क करती है। कुछ लोग हमें फोन करके बुलाते हैं, जब फुटपाथ पर लावारिस लाशें मिलती हैं। अब जानिए हीटवेव यानी लू लगना क्या होता है, प्रभाव कैसे पड़ता है?
पहाड़ी इलाकों में 30 डिग्री और मैदानी इलाकों में 40 डिग्री सेल्सियस या इससे अधिक तापमान होता है तो गर्म हवा चलने लगती है। इसी को लू या हीटवेव कहते हैं। हीट स्ट्रोक या लू लगना एक गंभीर मेडिकल इमरजेंसी है। इसमें शरीर का तापमान 104 डिग्री के ऊपर या उससे अधिक हो जाता है। बीमार व्यक्ति का शरीर सामान्य तापमान में नहीं आ पाता है। ऐसी स्थिति को हीट स्ट्रोक कहा जाता है। चिंताजनक बात : भारतीय मौसम विभाग के अनुसार देश में हर साल हीटवेव के दिन बढ़ रहे हैं। आमतौर पर पहले दो-तीन दिन ही हीटवेव चलती थी, अब यह संख्या बढ़कर 10 दिन तक पहुंच गई है। क्या लू लगने से ब्रेन या हार्ट स्ट्रोक हो सकता है? यूपी में इस बार गर्मी ने कहर बरपाया। 20 शहरों में सामान्य दिनों की तुलना में 4 गुना ज्यादा लावारिस लाशें मिलीं। पोस्टमॉर्टम हाउस में भी डेढ़ गुना से ज्यादा शवों का पोस्टमॉर्टम हुआ। बड़े शहरों वाराणसी, प्रयागराज और कानपुर में तो मॉर्च्युरी में शव रखने तक की जगह नहीं मिली। हमने सामान्य दिनों 1 से 17 मार्च और प्रचंड गर्मी वाले दिनों 1 से 17 जून के बीच का आंकड़ा निकाला। इसमें पोस्टमॉर्टम हाउस में पहुंचने वाले शवों (लावारिस भी) को भी शामिल किया। मार्च में 1 हजार 345 शवों के पोस्टमॉर्टम किए गए थे, जबकि जून में 2 हजार 136 पोस्टमॉर्टम। आशंका जताई जा रही है कि इतनी मौतें गर्मी की वजह (ब्रेन स्टोक और हार्ट अटैक) से हुईं। इस दौरान लावारिस लाशों की संख्या बेतहाशा बढ़ी। 1 से 17 मार्च के बीच 92 लावारिस लाशें मिलीं, जबकि 1 से 17 जून के बीच यह संख्या 414 रही। अब 3 बड़े शहरों वाराणसी, कानपुर और प्रयागराज से रिपोर्ट देखिए… वाराणसी में मॉर्च्युरी हाउसफुल; 17 दिन में हुए 183 पोस्टमॉर्टम, 48 अज्ञात
वाराणसी में तापमान मई मध्य से जून मध्य तक 43 से 46 तक बना रहा। ऐसे में मौतों का सिलसिला भी जारी रहा। सरकारी अस्पतालों की मॉर्च्युरी से लेकर पोस्टमॉर्टम हाउस तक शवों की कतार लग गई। हर जगह क्षमता से अधिक शव पहुंचे। ऐसे में दैनिक भास्कर ने मंडलीय चिकित्सालय, जिला अस्पताल और पोस्टमॉर्टम हाउस की पड़ताल की। वाराणसी के पोस्टमॉर्टम हाउस के आंकड़े की बात करें तो 1 जून से 17 जून तक यहां 183 शवों का पोस्टमॉर्टम हुआ, जिसमें 48 शव लावारिस थे। गर्मी के प्रकोप से लगातार शवों के आने का सिलसिला जारी है। यहां लोग शवों को लेने के लिए कतार में खड़े हैं। उनका कहना है- बदबू से बहुत दिक्कत है और वेटिंग लंबी है। शिवपुर में बने पोस्टमॉर्टम हाउस में बड़ी संख्या में शव लाए जा रहे हैं। 15 की क्षमता वाली मॉर्च्युरी में 50 शवों के आने से इसे बाहर रखना पड़ रहा है। वहीं, मंडलीय चिकित्सालय की मॉर्च्युरी में मंगलवार को 17 शव थे। बुधवार को 12 शव रात 8 बजे लाए गए। शवों को एक कमरे में बंद कर दिया जाता है ताकि कोई जानवर उन तक न पहुंच सके। काशी के मणिकर्णिका घाट पर 30 मई को सामान्य दिनों की तुलना में तीन गुना यानी 400 से ज्यादा शव पहुंचे। यहां गलियों में रातभर जाम लगा रहा। भीड़ से व्यवस्थाएं ध्वस्त हो गईं। हमने घाट पर अंतिम संस्कार कराने वाले डोम राजा ओम चौधरी से बात की। उन्होंने बताया- गर्मी बढ़ने के बाद अचानक शवों की संख्या बढ़ी है। मणिकर्णिका ही नहीं, बल्कि हरिश्चंद्र घाट समेत अन्य श्मशान पर भी शवों की संख्या बढ़ी है। हरिश्चंद्र घाट पर पहले 50 से 60 शव आते थे। यह आंकड़ा बढ़कर 150 से 200 के बीच पहुंच गया है। प्रयागराज में अंतिम संस्कार के लिए वेटिंग
प्रयागराज के रसूलाबाद श्मशान घाट की तरफ जाने के लिए एक संकरा रास्ता है। 18 जून को यहां करीब 1 किमी लंबा जाम था। कुछ लोगों ने अर्थी को सड़क पर रख दिया। हमें बताया गया कि श्मशान घाट के अंदर जगह नहीं है। इसलिए अर्थी को सड़क पर रखकर इंतजार कर रहे हैं। यहां लोग बातें कर रहे थे- आम दिनों में 20 लाशें आती होंगी। अब तो 2-3 घंटे में इतनी लाशें आ रही हैं, कैसे चलेगा? 5 घंटे बाद आ रहा नंबर
इसी भीड़ में कुछ लोग अर्थी को लेकर जल्दबाजी में श्मशान की तरफ जाते हुए दिखे। बताया गया कि वो काफी देर से इंतजार कर रहे थे। उनका नंबर लगा था, अब अंदर बुलाया गया। ये लोग 4-5 घंटे से बाहर इंतजार कर रहे थे। कोई गंभीर बीमारी नहीं थी
अचानक लोगों की मौतें क्यों हो रही हैं? हमने श्मशान घाट पर मौजूद लोगों से इस बारे में बात की। जवाब मिला- जिन लोगों की मौतें हुई हैं,उन्हें कोई गंभीर बीमारी नहीं थी। हीटवेव बर्दाश्त नहीं कर सके। गर्मी में उनकी दिक्कतें बढ़ गईं। हरिकेश सिंह बताते हैं- मैं जिनके अंतिम संस्कार में आया हूं, उनकी उम्र करीब 70 वर्ष थी। 17 जून की दोपहर में घर के बाहर जमीन पर गिर गए। परिवार के लोग नहीं थे, वह 2 घंटे तक जमीन पर पड़े रहे। गर्मी ज्यादा थी, बाद में उनकी मौत हो गई। कोई गंभीर बीमारी नहीं थी। कानपुर में 17 दिन में 493 पोस्टमॉर्टम; 142 लावारिस शव स्टेशन के आसपास मिले भास्कर ने सेंट्रल रेलवे स्टेशन से लेकर घंटाघर चौराहे तक पड़ताल की। अलग-अलग स्पॉट पर फुटपाथ पर रहने वालों से बात की। सामने आया कि करीब 200 लोग अब इस एरिया में नहीं दिखते हैं, बताया गया कि इनमें से ज्यादातर की मौत हो चुकी है। वजह कोई बीमारी, तो कोई गर्मी बताता रहा। इस हकीकत को और करीब से परखने के लिए हम पोस्टमॉर्टम हाउस पहुंचे। दस्तावेज के मुताबिक, 1 से 17 जून में 493 लोगों के पोस्टमॉर्टम हुए। इनमें पुरुष और महिलाओं के 142 लावारिस शव हैं। ज्यादातर के शव फुटपाथ पर मिले। बॉडी क्लेम न होने की वजह से सामाजिक संगठनों ने इनका दाह संस्कार भैरव घाट श्मशान पर किया। लावारिस शवों का दाह संस्कार करने वाले बोले- गरीब ही मर रहे
स्टेशन कैंपस की स्थितियां समझने के बाद हम भैरव घाट श्मशान पहुंचे। लावारिस लोगों का दाह संस्कार करने वाले धनीराम पैंथर से मुलाकात हुई। उन्होंने बताया- गर्मी का असर इस बार ज्यादा है। लावारिस लाशों का दाह संस्कार हम लोग करते हैं। इस बार लावारिस लाशें बहुत मिल रही हैं। मेरे सामने करीब रोज 10-12 शव आते हैं। किसी दिन 15-20 शव भी आ जाते हैं। उन्होंने बताया- लाशों के दाह संस्कार के लिए पुलिस हमसे संपर्क करती है। कुछ लोग हमें फोन करके बुलाते हैं, जब फुटपाथ पर लावारिस लाशें मिलती हैं। अब जानिए हीटवेव यानी लू लगना क्या होता है, प्रभाव कैसे पड़ता है?
पहाड़ी इलाकों में 30 डिग्री और मैदानी इलाकों में 40 डिग्री सेल्सियस या इससे अधिक तापमान होता है तो गर्म हवा चलने लगती है। इसी को लू या हीटवेव कहते हैं। हीट स्ट्रोक या लू लगना एक गंभीर मेडिकल इमरजेंसी है। इसमें शरीर का तापमान 104 डिग्री के ऊपर या उससे अधिक हो जाता है। बीमार व्यक्ति का शरीर सामान्य तापमान में नहीं आ पाता है। ऐसी स्थिति को हीट स्ट्रोक कहा जाता है। चिंताजनक बात : भारतीय मौसम विभाग के अनुसार देश में हर साल हीटवेव के दिन बढ़ रहे हैं। आमतौर पर पहले दो-तीन दिन ही हीटवेव चलती थी, अब यह संख्या बढ़कर 10 दिन तक पहुंच गई है। क्या लू लगने से ब्रेन या हार्ट स्ट्रोक हो सकता है? उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर