जोधपुर एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में मोटे अनाज की खेती पर ट्रेनिंग प्रोग्राम, अन्तर्राजीय किसानों ने लिया हिस्सा

जोधपुर एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में मोटे अनाज की खेती पर ट्रेनिंग प्रोग्राम, अन्तर्राजीय किसानों ने लिया हिस्सा

<p style=”text-align: justify;”><strong>Rajasthan News:</strong> देश-दुनिया मे आज के परिदृश्य को देखते हुए जरूरत है कि स्वास्थ्य के लिए लाभकारी मोटे अनाज को हम नियमित रूप से अपने डायट में शामिल करें. साथ ही इसकी खपत बढ़ने से पोषण, खाद्य सुरक्षा और किसानों के रोजगार को भी बढ़ावा मिलता है. डॉक्टर अरुण कुमार ने जोधपुर कृषि विश्वविद्यालय में शनिवार (23 जून) को बतौर मुख्य अतिथि मोटे अनाज की खेती के चार दिवसीय अन्तर्राजीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ किया.</p>
<p style=”text-align: justify;”>इस दौरान बिहार से आए हुए प्रशिक्षणार्थियों को संबोधित करते हुए मोटे अनाज की खेती और उपयोगिता पर चर्चा की. जोधपुर कृषि विश्वविद्यालय मंडोर में कुलपति का पदभार संभालते के बाद डॉक्टर अरुण कुमार ने कहा कि “दुनिया में भारत मोटे अनाज का सबसे बड़ा उत्पादक देश है. जिन राज्यों में पानी की कमी है, उन राज्यों के क्षेत्रों के किसान भी मोटे अनाज को उगाकर फसल का मूल्य संवर्धन कर आजीविका को बढ़ा सकते हैं.”</p>
<p style=”text-align: justify;”>विश्वविद्यालय की कुलसचिव अदिति पुरोहित ने विश्वविद्यालय में लगातार चल रहे प्रशिक्षण शिविरों का उदाहरण देते हुए कहा&zwnj; कि प्रशिक्षण शिविर में उत्पाद का मूल्य संवर्धन करना सीख कर स्वरोजगार की राह में किसान आगे बढ़ रहे हैं. उन्होंने कहा कि ज्वार, बाजरा, रागी, कुट्टू सहित अन्य अनाज न केवल स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छे हैं, बल्कि इनका मूल्य संवर्धन कर बनाए गए उत्पाद किसानों को आर्थिक रूप से भी सुदृढ़ बना रहे हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>मोटे अनाज में पानी की लागत कम</strong><br />किसान कौशल विकास केंद्र प्रभारी डॉक्टर प्रदीप पगारिया ने बिहार से आए हुए प्रशिक्षणार्थियों किसानों का स्वागत करते हुए कहा कि&zwnj; यह उत्साहजनक है कि अन्य राज्यों में भी मोटे अनाज की उपयोगिता बढ़ रही है. मोटे अनाज की खेती के लिए किसानों को धान के मुकाबले पानी की कम जरूरत पड़ती है. साथ ही यूरिया और अन्य रसायनों की जरूरत भी अत्यंत कम है.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”>कार्यक्रम के दौरान बिहार से आए किसानों ने मोटे अनाज की खेती से संबंधित जानकारी ली. आगे डॉक्टर पगारिया ने बताया कि इस चार दिवसीय कार्यक्रम के दौरान विभिन्न विशेषज्ञों के माध्यम से बिहार के किसानों को वहां की जलवायु के अनुरूप मोटे अनाज को उपजाने और उनका मूल्य संवर्धन करना सिखाया जाएगा. कार्यक्रम के दौरान विभिन्न प्रशिक्षण अधिकारी भी मौजूद रहे.</p>
<div id=”article-hstick-inner” class=”abp-story-detail “>
<p><strong>ये भी पढ़ें: <a href=”https://www.abplive.com/states/rajasthan/fruits-vegetables-pulses-price-hike-after-milk-and-curd-rate-increased-after-bharatpur-lok-sabha-elections-ann-2720837″>लोकसभा चुनाव के बाद आम जनता पर बढ़ी महंगाई की मार, दूध-दही के बाद बढ़े फल-सब्जी और दाल के दाम</a></strong></p>
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<p style=”text-align: justify;”>इस दौरान बिहार से आए हुए प्रशिक्षणार्थियों को संबोधित करते हुए मोटे अनाज की खेती और उपयोगिता पर चर्चा की. जोधपुर कृषि विश्वविद्यालय मंडोर में कुलपति का पदभार संभालते के बाद डॉक्टर अरुण कुमार ने कहा कि “दुनिया में भारत मोटे अनाज का सबसे बड़ा उत्पादक देश है. जिन राज्यों में पानी की कमी है, उन राज्यों के क्षेत्रों के किसान भी मोटे अनाज को उगाकर फसल का मूल्य संवर्धन कर आजीविका को बढ़ा सकते हैं.”</p>
<p style=”text-align: justify;”>विश्वविद्यालय की कुलसचिव अदिति पुरोहित ने विश्वविद्यालय में लगातार चल रहे प्रशिक्षण शिविरों का उदाहरण देते हुए कहा&zwnj; कि प्रशिक्षण शिविर में उत्पाद का मूल्य संवर्धन करना सीख कर स्वरोजगार की राह में किसान आगे बढ़ रहे हैं. उन्होंने कहा कि ज्वार, बाजरा, रागी, कुट्टू सहित अन्य अनाज न केवल स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छे हैं, बल्कि इनका मूल्य संवर्धन कर बनाए गए उत्पाद किसानों को आर्थिक रूप से भी सुदृढ़ बना रहे हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>मोटे अनाज में पानी की लागत कम</strong><br />किसान कौशल विकास केंद्र प्रभारी डॉक्टर प्रदीप पगारिया ने बिहार से आए हुए प्रशिक्षणार्थियों किसानों का स्वागत करते हुए कहा कि&zwnj; यह उत्साहजनक है कि अन्य राज्यों में भी मोटे अनाज की उपयोगिता बढ़ रही है. मोटे अनाज की खेती के लिए किसानों को धान के मुकाबले पानी की कम जरूरत पड़ती है. साथ ही यूरिया और अन्य रसायनों की जरूरत भी अत्यंत कम है.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”>कार्यक्रम के दौरान बिहार से आए किसानों ने मोटे अनाज की खेती से संबंधित जानकारी ली. आगे डॉक्टर पगारिया ने बताया कि इस चार दिवसीय कार्यक्रम के दौरान विभिन्न विशेषज्ञों के माध्यम से बिहार के किसानों को वहां की जलवायु के अनुरूप मोटे अनाज को उपजाने और उनका मूल्य संवर्धन करना सिखाया जाएगा. कार्यक्रम के दौरान विभिन्न प्रशिक्षण अधिकारी भी मौजूद रहे.</p>
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