जून में 10 दिन बरसने वाला मानसून यूपी में इस बार सिर्फ 4 दिन ही बरस पाया। भदोही में सूखा ही रह गया। यहां एक दिन भी बारिश नहीं हुई। वेस्ट यूपी के भी कुछ जिलों का हाल ऐसा ही रहा। पूरे प्रदेश की बात करें तो 34% कम बारिश हुई। 32 जिलों में तो 50% भी बारिश भी नहीं हो पाई। इस कंडीशन के पीछे की वजह यूपी का बढ़ा हुआ तापमान है। जून महीने में कई शहरों का तापमान 15 से 20 दिन 45-48 डिग्री सेल्सियस के बीच रहा। इससे प्रदेश के 32 शहर हीट आईलैंड बन गए। तापमान ज्यादा होने से मानसून के बादल नमी सोख ले रहे हैं। इसका असर बारिश पर भी पड़ रहा है। ऐसा होने के पीछे वजह क्या है? दैनिक भास्कर ने BHU के मौसम वैज्ञानिक और जियो फिजिक्स के विभागाध्यक्ष प्रो. ज्ञान प्रकाश सिंह से बातचीत की। उन्होंने मौसम को लेकर विभिन्न एजेंसियों की रिपोर्ट के हवाले से इसकी वजहें गिनाईं। पढ़िए बारिश क्यों कम हो रही है? इसके लिए कौन जिम्मेदार है? सबसे पहले जानिए, जून महीने में यूपी में मानसून की क्या हालत रही अब जानिए कम बारिश और सामान्य से ज्यादा गर्मी की वजह क्या है 1. वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड की मोटी लेयर बनी देश में हर 10 साल में तापमान 0.2 डिग्री बढ़ रहा है। हर 10 साल में गर्मी के साढ़े 5 दिन बढ़ रहे हैं। ऐसे में 80 साल बाद, यानी 2100 सदी के अंत तक गर्मी के 44 दिन ज्यादा होंगे। नॉर्मल पारा 50 डिग्री से ऊपर होगा। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) के मुताबिक, वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2) की मोटी लेयर जम चुकी है। यह जमीन की गर्मी को वायुमंडल से बाहर ही नहीं जाने दे रही। कार्बन डाई ऑक्साइड की लेयर गर्मी को फिर से आबादी की ओर लौटा दे रही है। इसके आने-जाने की परिधि को ‘हीट अंब्रेला’ कहा जा रहा है। इसलिए गड़बड़ हो रहा मौसम
मई-जून में जितनी गर्मी सूरज से निकली है, अभी तक वो वायुमंडल से बाहर नहीं जा सकी है। यानी कुल मिलाकर कहें तो लॉन्ग हीट वेव वायुमंडल के अंदर फंसी है। जबकि, सामान्य हालात में यह वायुमंडल से बाहर निकल जाती है। इसे हीट बजट बैलेंस कहते हैं। आमतौर पर मानसून आने पर सामान्य बारिश होती है, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। वायुमंडल में एक हीट अंब्रेला यानी गर्म छतरी बन गई है। मानसून के बादल आ रहे हैं, लेकिन बरस नहीं पा रहे हैं। सूखा और बाढ़ जैसी स्थिति एक साथ देखने को मिल रही है। एक-दो जगह पर जरूरत से ज्यादा बारिश, तो ज्यादातर जगहों पर बेहद कम बारिश हुई है। क्यों जम रही कार्बन डाई ऑक्साइड की परत
आबादी बढ़ रही है तो जरूरतें भी बढ़ रही हैं। बिल्डिंग्स, कटते जंगल-बगीचे और शहरों में बढ़ती गाड़ियां, ट्रैफिक जाम के साथ ही AC की खपत काफी बढ़ गई है। इससे शहरों का तापमान बढ़ा है। सबसे बड़ा नुकसान पेड़ों की कटाई से हुआ है। दरसअल, पेड़ कार्बन डाई ऑक्साइड को सोख लेते हैं और बदले में ऑक्सीजन छोड़ते हैं। पेड़ों के कम होने से वायुमंडल में करीब 2 से 3 किमी की ऊंचाई पर कार्बन डाई ऑक्साइड का आवरण बन गया है। यह ग्रीन हाउस गैस की तरह से काम कर रहा है। जिन जगहों पर ऐसी स्थिति है, वहां का तापमान जरूरत से ज्यादा हो चुका है। मानसून के बादल जब इन जगहों पर 6 दिन देरी से पहुंचे तो बारिश कराने के लिए उन्हें कम तापमान चाहिए था। लेकिन, तब पारा 42 डिग्री तक पहुंच रहा था। ऐसे में, बढ़े तापमान से बादल के पानी वाष्प बनने लगे। फिर बादल शिफ्ट होकर पहाड़ों की ओर चले गए या गांवों में कम तापमान की वजह से थोड़ी-बहुत बारिश हुई। कम बारिश की दूसरी वजह बंगाल की खाड़ी से आने वाली मानसूनी हवाएं यूपी में मानसून की बारिश बंगाल की खाड़ी वाली शाखा से होती है। मानसून जब बंगाल पहुंचता है तो वहां पर एक साइक्लोनिक कंडीशन बनती है। यहां पर डिप्रेशन होता है तो काफी तेज हवा पूरे बंगाल, बिहार और यूपी में चलती है, जिससे अच्छी-खासी बारिश हो जाती है। इस बार ये कंडीशन बंगाल की खाड़ी में बनने के बजाय, गुजरात और राजस्थान में बन गई। अरब सागर की ओर से आने वाली मानसूनी हवा ने जोर पकड़ा और दिल्ली समेत वेस्ट यूपी के कई जिलों में जोरदार बारिश हो गई। अब सवाल उठता है, फिर दिल्ली में ज्यादा बारिश क्यों?
यूपी से ज्यादा गर्मी दिल्ली में पड़ी। वहां वायु प्रदूषण भी ज्यादा है। फिर ज्यादा बारिश क्यों हुई? इस पर एक्सपर्ट कहते हैं- मानसून की अरब सागर वाली शाखा दिल्ली से आगे हिमालय तक एक्टिव है। राजस्थान में लो प्रेशर का बनना इसकी बड़ी वजह है। दिल्ली भी हीट आईलैंड में ही आने वाला शहर है, लेकिन यहां बारिश होने के पीछे साइक्लोनिक कारण है, जो कि क्लाइमेट चेंज का ही एक रूप है। दिल्ली में कभी भी इतनी बारिश एक साथ नहीं देखी गई। इसलिए, वहां पर सीवर की पाइपलाइन भी काफी पतली हैं। बारिश की वजह से सीवर भरा और बाढ़ जैसे हालात बन गए। जून में 10 दिन बरसने वाला मानसून यूपी में इस बार सिर्फ 4 दिन ही बरस पाया। भदोही में सूखा ही रह गया। यहां एक दिन भी बारिश नहीं हुई। वेस्ट यूपी के भी कुछ जिलों का हाल ऐसा ही रहा। पूरे प्रदेश की बात करें तो 34% कम बारिश हुई। 32 जिलों में तो 50% भी बारिश भी नहीं हो पाई। इस कंडीशन के पीछे की वजह यूपी का बढ़ा हुआ तापमान है। जून महीने में कई शहरों का तापमान 15 से 20 दिन 45-48 डिग्री सेल्सियस के बीच रहा। इससे प्रदेश के 32 शहर हीट आईलैंड बन गए। तापमान ज्यादा होने से मानसून के बादल नमी सोख ले रहे हैं। इसका असर बारिश पर भी पड़ रहा है। ऐसा होने के पीछे वजह क्या है? दैनिक भास्कर ने BHU के मौसम वैज्ञानिक और जियो फिजिक्स के विभागाध्यक्ष प्रो. ज्ञान प्रकाश सिंह से बातचीत की। उन्होंने मौसम को लेकर विभिन्न एजेंसियों की रिपोर्ट के हवाले से इसकी वजहें गिनाईं। पढ़िए बारिश क्यों कम हो रही है? इसके लिए कौन जिम्मेदार है? सबसे पहले जानिए, जून महीने में यूपी में मानसून की क्या हालत रही अब जानिए कम बारिश और सामान्य से ज्यादा गर्मी की वजह क्या है 1. वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड की मोटी लेयर बनी देश में हर 10 साल में तापमान 0.2 डिग्री बढ़ रहा है। हर 10 साल में गर्मी के साढ़े 5 दिन बढ़ रहे हैं। ऐसे में 80 साल बाद, यानी 2100 सदी के अंत तक गर्मी के 44 दिन ज्यादा होंगे। नॉर्मल पारा 50 डिग्री से ऊपर होगा। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) के मुताबिक, वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2) की मोटी लेयर जम चुकी है। यह जमीन की गर्मी को वायुमंडल से बाहर ही नहीं जाने दे रही। कार्बन डाई ऑक्साइड की लेयर गर्मी को फिर से आबादी की ओर लौटा दे रही है। इसके आने-जाने की परिधि को ‘हीट अंब्रेला’ कहा जा रहा है। इसलिए गड़बड़ हो रहा मौसम
मई-जून में जितनी गर्मी सूरज से निकली है, अभी तक वो वायुमंडल से बाहर नहीं जा सकी है। यानी कुल मिलाकर कहें तो लॉन्ग हीट वेव वायुमंडल के अंदर फंसी है। जबकि, सामान्य हालात में यह वायुमंडल से बाहर निकल जाती है। इसे हीट बजट बैलेंस कहते हैं। आमतौर पर मानसून आने पर सामान्य बारिश होती है, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। वायुमंडल में एक हीट अंब्रेला यानी गर्म छतरी बन गई है। मानसून के बादल आ रहे हैं, लेकिन बरस नहीं पा रहे हैं। सूखा और बाढ़ जैसी स्थिति एक साथ देखने को मिल रही है। एक-दो जगह पर जरूरत से ज्यादा बारिश, तो ज्यादातर जगहों पर बेहद कम बारिश हुई है। क्यों जम रही कार्बन डाई ऑक्साइड की परत
आबादी बढ़ रही है तो जरूरतें भी बढ़ रही हैं। बिल्डिंग्स, कटते जंगल-बगीचे और शहरों में बढ़ती गाड़ियां, ट्रैफिक जाम के साथ ही AC की खपत काफी बढ़ गई है। इससे शहरों का तापमान बढ़ा है। सबसे बड़ा नुकसान पेड़ों की कटाई से हुआ है। दरसअल, पेड़ कार्बन डाई ऑक्साइड को सोख लेते हैं और बदले में ऑक्सीजन छोड़ते हैं। पेड़ों के कम होने से वायुमंडल में करीब 2 से 3 किमी की ऊंचाई पर कार्बन डाई ऑक्साइड का आवरण बन गया है। यह ग्रीन हाउस गैस की तरह से काम कर रहा है। जिन जगहों पर ऐसी स्थिति है, वहां का तापमान जरूरत से ज्यादा हो चुका है। मानसून के बादल जब इन जगहों पर 6 दिन देरी से पहुंचे तो बारिश कराने के लिए उन्हें कम तापमान चाहिए था। लेकिन, तब पारा 42 डिग्री तक पहुंच रहा था। ऐसे में, बढ़े तापमान से बादल के पानी वाष्प बनने लगे। फिर बादल शिफ्ट होकर पहाड़ों की ओर चले गए या गांवों में कम तापमान की वजह से थोड़ी-बहुत बारिश हुई। कम बारिश की दूसरी वजह बंगाल की खाड़ी से आने वाली मानसूनी हवाएं यूपी में मानसून की बारिश बंगाल की खाड़ी वाली शाखा से होती है। मानसून जब बंगाल पहुंचता है तो वहां पर एक साइक्लोनिक कंडीशन बनती है। यहां पर डिप्रेशन होता है तो काफी तेज हवा पूरे बंगाल, बिहार और यूपी में चलती है, जिससे अच्छी-खासी बारिश हो जाती है। इस बार ये कंडीशन बंगाल की खाड़ी में बनने के बजाय, गुजरात और राजस्थान में बन गई। अरब सागर की ओर से आने वाली मानसूनी हवा ने जोर पकड़ा और दिल्ली समेत वेस्ट यूपी के कई जिलों में जोरदार बारिश हो गई। अब सवाल उठता है, फिर दिल्ली में ज्यादा बारिश क्यों?
यूपी से ज्यादा गर्मी दिल्ली में पड़ी। वहां वायु प्रदूषण भी ज्यादा है। फिर ज्यादा बारिश क्यों हुई? इस पर एक्सपर्ट कहते हैं- मानसून की अरब सागर वाली शाखा दिल्ली से आगे हिमालय तक एक्टिव है। राजस्थान में लो प्रेशर का बनना इसकी बड़ी वजह है। दिल्ली भी हीट आईलैंड में ही आने वाला शहर है, लेकिन यहां बारिश होने के पीछे साइक्लोनिक कारण है, जो कि क्लाइमेट चेंज का ही एक रूप है। दिल्ली में कभी भी इतनी बारिश एक साथ नहीं देखी गई। इसलिए, वहां पर सीवर की पाइपलाइन भी काफी पतली हैं। बारिश की वजह से सीवर भरा और बाढ़ जैसे हालात बन गए। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर