‘देश के प्रधान सांसद किसी गांव को गोद लें, लेकिन उसकी तस्वीर न बदले तो मैं नहीं समझता देश के किसी गांव की तस्वीर बदली होगी।’ ‘पांच साल पहले खूब शोर हुआ था कि बनारस शहर की तरह चमचमाने लगा गांव, हकीकत में कुछ नहीं हुआ। टूटी सड़कें, कच्ची पगडंडियां, उखड़े और टूटे खड़ंजे, बदहाल हैंडपंप, खाली पड़े रसोई गैस के सिलेंडर। क्या गांव गोद लेने की जो बात कही थी, वह भी जुमला था।’ ये बात सपा प्रमुख और कन्नौज सांसद अखिलेश यादव ने संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर कही। उन्होंने पीएम मोदी के 10 साल पहले गोद लिए गांव जयापुर का जिक्र किया। दैनिक भास्कर की टीम गांव पहुंची। गांव का क्या हाल है? पढ़िए इस रिपोर्ट में … 2014 में पीएम ने गोद लिया था गांव
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांसद आदर्श ग्राम 2014 में पहला गांव जयापुर गोद लिया। मकसद था, इसे आदर्श गांव बनाने के साथ विश्व पटल पर ले जाना। जयापुर को गोद लेते ही विभागों, मंत्रियों, एनजीओ और बैकों ने इस गांव की राह पकड़ी। तेजी से गांव में शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य जैसी मूलभूत जरूरतों पर काम हुआ। हालांकि, शुरुआत के 2-3 सालों के बाद जिम्मेदार संस्थाएं उदासीन हो गईं। नतीजा, 10 साल पहले हुए विकास कार्यों की स्थिति खराब है। जयापुर उन आठ गांवों में शामिल है, जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2014 में गोद लिया था। जयापुर देश का पहला ऐसा गांव है, जिसे बीजेपी ने मॉडल विलेज के रूप में पेश करते हुए ‘ग्राम स्वराज’ का नारा दिया था। पीएम मोदी ने जयापुर के बाद नागेपुर, ककरहिया, डोमरी, परमपुर, पूरी बरियार, पूरी गांव और कुरहुआ को गोद लिया था। सड़क अधूरी, मानिकपुर-मूसेपुर की राह पगडंडी
राजातालाब से चंदापुर होकर जयापुर जक्खिनी जाने वाली सड़क सबसे बेहतर है। जयापुर गेट से लेकर गांव तक पक्की सड़क बनी, लेकिन अभी पूरी नहीं हुई। यह सड़क मुख्य गेट से रामाशंकर के घर होकर हरिजन बस्ती तक आती है, फिर पत्थर का खड़ंजा है। मूसेपुर और मानिकपुर गांव की सड़क बदहाल
जक्खिनी या राजातालाब से गांव को जाने वाली मुख्य सड़क तो कुछ महीने पहले बन गई, लेकिन दूसरे गांव को जोड़ने वाली अन्य सड़कों का हाल ठीक नहीं है। जयापुर पंचायत के अलावा मूसेपुर और मानिकपुर गांव की सड़कें बदहाल हैं। 10 साल बाद भी पगडंडी का रास्ता
जयापुर गांव को गोद लिए जाने के दस साल बाद भी मानिकपुर और मूसेपुर जानी वाली सड़क कच्ची है। वर्षों पुरानी इस सड़क की हालत पगडंडी जैसी है। बारिश में यहां से गुजरना खतरे से खाली नहीं। गांव से बाहर निकलने पर कच्ची पगडंडी का रास्ता पकड़ना पड़ता है, जो बारिश के बाद चलने लायक नहीं रहता। प्रधान राजकुमार यादव ग्राम पंचायत के दूसरे गांव मानिकपुर में रहते हैं, हालांकि उनके घर तक खड़ंजा और अंदर तक इंटरलॉकिंग बिछी है। गांव में शिक्षा व्यवस्था का हाल कन्या विद्यालय में चल रहा हथकरघा केंद्र
गांव के बीच में आदर्श कन्या विद्यालय बनाया गया, लेकिन उसमें आज तक क्लास नहीं लगी। निर्माण के एक साल बाद ही उसमें हथकरघा केंद्र खुल गया और पढ़ाई की बिल्डिंग में सिलाई-कढ़ाई होने लगी। गांव वालों की माने तो बारिश होने पर पूरे परिसर में जलभराव हो जाता है। बड़ी समस्या- आठवीं के बाद कहां करें पढ़ाई
जयापुर का पूर्व माध्यमिक विद्यालय चंदापुर गांव के आखिरी छोर पर है। यहां आठवीं तक की पढ़ाई होती है। इससे आगे की पढ़ाई के लिए गांव में कोई इंतजाम नहीं है। जयापुर के बच्चों को मैट्रिक में दाखिला लेने के लिए जक्खिनी या राजातालाब जाना पड़ता है। दोनों जगहों से जयापुर की दूरी तकरीबन 8 किमी है। जयापुर गांव में एक लाइब्रेरी है। इसकी दीवार पर अच्छे-अच्छे स्लोगन लिखे हैं, मगर उस पर सालों से ताला लगा हुआ है। किसी को पता नहीं है कि लाइब्रेरी आखिरी बार कब खुली थी। लाइब्रेरी से किसी ने कभी कोई किताब ली हो, ऐसा कोई शख्स गांव में नहीं मिला। गांव में सरकारी योजनाओं की हालत 40 विभागों पर थी विकास की जिम्मेदारी, अब अधिकारी झांकने तक नहीं आते
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांसदों से गांवों को गोद लेने की अपील के साथ जयापुर को 7 नवंबर, 2014 को गोद लिया। सेवापुरी विधानसभा क्षेत्र के इस गांव में विकास के आयाम खुल गए। आनन-फानन में सोलर प्लांट, दो बैंक, कई एटीएम, स्वास्थ्य केंद्र, पंचायत घर, बायो टॉयलेट, एंबुलेंस, कम्प्यूटर सेंटर और सिलाई केंद्र समेत कई परियोजनाओं को पंख लग गए। जयापुर के विकास का ब्लूप्रिंट तैयार किया गया। 40 विभागों को इसके विकास की जिम्मेदारी सौंपी गई। गांव के लोग कहते हैं- अधिकारी शुरुआत में आए, लेकिन 2020 के बाद आना बंद कर दिया। गांव आज भी उच्च शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी, बेहतर सड़कें और मूलभूत सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहा है। प्राइवेट नौकरी और खेती से चलती है आजीविका
गांव के प्रधान राजकुमार यादव हैं, जबकि सबसे ज्यादा आबादी पटेलों की है। गांव में सरकारी नौकरी में बहुत ही चुनिंदा लोग हैं, बाकी प्राइवेट नौकरी के साथ खेती करते हैं। गांव में वर्तमान समय में रोजगार का कोई ठोस साधन नहीं है। गांव के बाहर केंद्र सरकार ने लाखों रुपए लगाकर सोलर चरखा प्रशिक्षण एवं प्रसार केंद्र बनवाया। एक कमरे में 24 और दूसरे में 15 सोलर चरखे जंग खा रहे हैं। गोशाला परिसर में घास-फूस और झाड़ियां उग आई हैं। यहां भारती हरित खादी संस्था के जरिए मुद्रा लोन स्कीम के तहत डेढ़-दौ सौ महिलाओं को सोलर चरखा बांटा गया था। तब दावा किया गया कि महिला सशक्तिकरण मुहिम के तहत भाजपा सरकार महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना चाहती है। गोशाला बंद, नहीं मिल रहा किराया
जयापुर में आदर्श भारती संस्था ने डेयरी प्लांट के तौर पर गोशाला बनाई थी, जो कुछ महीने में ही बंद हो गई। इसका शिलान्यास तत्कालीन केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर ने किया था। गांव के मेखुर सिंह की जमीन 30 हजार रुपए सालाना की दर से तीस साल तक के लिए लीज पर ली गई थी। गोशाला में ताला पड़ा है और लीज का पैसा भी नहीं मिल रहा। जैसे ही सरकार की नजर हटी, संस्था के लोग गाय-भैंस बेचकर चले गए। बकाया बिल के चलते गोशाला परिसर की बिजली भी कट गई। सोलर प्लांट बंद होने से गांव में अंधेरा
प्रधानमंत्री के आदर्श गांव जयापुर को सौर ऊर्जा से रोशन किया गया। इसमें 100 सौर ऊर्जा संयंत्र लगाए गए और वहां से पूरे गांव को आपूर्ति दी गई। हर घर पर 2.5 पॉइंट का कनेक्शन दिया गया। हर घर में एक बिजली, पंखा और चार्जिंग प्वाइंट दिया गया। केंद्र सरकार ने न्यू एंड रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी (नेडा) के जरिए गांव को पंखे और बल्ब से रोशनी की कवायद की। अब यह प्लांट पूरी तरह से बंद है। हालांकि, विधायक और सांसद निधि से गांव में सोलर लाइट्स लगी हैं, जो मददगार हैं। वरना गांव में लाइट जाने पर अंधेरा छा जाता है। 7000 की आबादी, 3250 मतदाता
जयापुर की कुल आबादी लगभग सात हजार है। कुल 3250 वोटर हैं। गांव पटेल, ब्राह्मण, भूमिहार, कुम्हार, दलित आदि जातियों का मूल निवास है। यहां एक भी मुस्लिम परिवार नहीं है। गांव की स्थिति को लेकर निवासी मायूस
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के आरोपों से चतुर्भुज सिंह सहमत हैं। चतुर्भुज सिंह जनप्रतिनिधियों के प्रति आक्रोशित नजर आए। कहा- जयापुर गांव की स्थिति पहले से भी खराब हो गई। पिच रोड जयापुर गांव में नहीं है। सड़कों के नाम पर केवल खड़ंजा हैं, जिन पर निकलना मुश्किल होता है। अंदर की गलियों को इंटरलॉकिंग किया गया है, लेकिन कोई डामरीकरण नहीं हुआ। गांव में एक तालाब है, जिसे हर प्रधान खुदवाता है। गांव में ना नाला है, ना सड़क है ना कोई शिक्षण संस्थान है। कन्या स्कूल बनवाया गया है, लेकिन उसमें पढ़ाई की जगह कढ़ाई हो रही है। गांव में आने वाली एक सड़क है, जिस पर डामर लगा, लेकिन वह भी आधे गांव तक आकर समाप्त हो गई। खरीद केंद्र बनाया गया है, लेकिन उसमें हमें एमएसपी नहीं मिल रही है। ग्राम प्रधान राजकुमार यादव ने बताया कि गांव में कुछ सड़कें टूटी हैं। इनका प्रस्ताव शासन को दिया गया है, जल्द ही बनेंगी। गांव में तीन चार सड़कें हैं, जिनके लिए जनप्रतिनिधियों से मांग की है। उज्जवला योजना के तहत अभी सिलेंडर मिलने लगा है, बीच में यह बंद हो गया था। लेकिन अब सुधार है। गांव के राहुल सिंह कहते हैं- प्रधानमंत्री ने जब गांव गोद लिया तो विकास हुआ, लेकिन देखरेख के अभाव में सोलर प्लांट खराब हो गया। दो सोलर प्लांट लगे हैं, जो फ्लॉप हैं। एक बस चलाई गई, जो अनियमित है। पढ़ाई के लिए स्कूल नहीं है। उप स्वास्थ्य केंद्र केवल नाम का है, वहां दवा नहीं मिलती। अटल नगर बनाया है, जिसमें वनवासियों को आवास मिला, जो बहुत खराब है। जगह-जगह सड़कें उखड़ रही हैं। सीवर या नाले की कोई व्यवस्था नहीं है। हर घर जल नल योजना के ठेकेदारों ने कई सड़कें उखाड़ दी हैं। बायो टॉयलेट आए थे, अब पता नहीं कहां गए। ‘देश के प्रधान सांसद किसी गांव को गोद लें, लेकिन उसकी तस्वीर न बदले तो मैं नहीं समझता देश के किसी गांव की तस्वीर बदली होगी।’ ‘पांच साल पहले खूब शोर हुआ था कि बनारस शहर की तरह चमचमाने लगा गांव, हकीकत में कुछ नहीं हुआ। टूटी सड़कें, कच्ची पगडंडियां, उखड़े और टूटे खड़ंजे, बदहाल हैंडपंप, खाली पड़े रसोई गैस के सिलेंडर। क्या गांव गोद लेने की जो बात कही थी, वह भी जुमला था।’ ये बात सपा प्रमुख और कन्नौज सांसद अखिलेश यादव ने संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर कही। उन्होंने पीएम मोदी के 10 साल पहले गोद लिए गांव जयापुर का जिक्र किया। दैनिक भास्कर की टीम गांव पहुंची। गांव का क्या हाल है? पढ़िए इस रिपोर्ट में … 2014 में पीएम ने गोद लिया था गांव
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांसद आदर्श ग्राम 2014 में पहला गांव जयापुर गोद लिया। मकसद था, इसे आदर्श गांव बनाने के साथ विश्व पटल पर ले जाना। जयापुर को गोद लेते ही विभागों, मंत्रियों, एनजीओ और बैकों ने इस गांव की राह पकड़ी। तेजी से गांव में शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य जैसी मूलभूत जरूरतों पर काम हुआ। हालांकि, शुरुआत के 2-3 सालों के बाद जिम्मेदार संस्थाएं उदासीन हो गईं। नतीजा, 10 साल पहले हुए विकास कार्यों की स्थिति खराब है। जयापुर उन आठ गांवों में शामिल है, जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2014 में गोद लिया था। जयापुर देश का पहला ऐसा गांव है, जिसे बीजेपी ने मॉडल विलेज के रूप में पेश करते हुए ‘ग्राम स्वराज’ का नारा दिया था। पीएम मोदी ने जयापुर के बाद नागेपुर, ककरहिया, डोमरी, परमपुर, पूरी बरियार, पूरी गांव और कुरहुआ को गोद लिया था। सड़क अधूरी, मानिकपुर-मूसेपुर की राह पगडंडी
राजातालाब से चंदापुर होकर जयापुर जक्खिनी जाने वाली सड़क सबसे बेहतर है। जयापुर गेट से लेकर गांव तक पक्की सड़क बनी, लेकिन अभी पूरी नहीं हुई। यह सड़क मुख्य गेट से रामाशंकर के घर होकर हरिजन बस्ती तक आती है, फिर पत्थर का खड़ंजा है। मूसेपुर और मानिकपुर गांव की सड़क बदहाल
जक्खिनी या राजातालाब से गांव को जाने वाली मुख्य सड़क तो कुछ महीने पहले बन गई, लेकिन दूसरे गांव को जोड़ने वाली अन्य सड़कों का हाल ठीक नहीं है। जयापुर पंचायत के अलावा मूसेपुर और मानिकपुर गांव की सड़कें बदहाल हैं। 10 साल बाद भी पगडंडी का रास्ता
जयापुर गांव को गोद लिए जाने के दस साल बाद भी मानिकपुर और मूसेपुर जानी वाली सड़क कच्ची है। वर्षों पुरानी इस सड़क की हालत पगडंडी जैसी है। बारिश में यहां से गुजरना खतरे से खाली नहीं। गांव से बाहर निकलने पर कच्ची पगडंडी का रास्ता पकड़ना पड़ता है, जो बारिश के बाद चलने लायक नहीं रहता। प्रधान राजकुमार यादव ग्राम पंचायत के दूसरे गांव मानिकपुर में रहते हैं, हालांकि उनके घर तक खड़ंजा और अंदर तक इंटरलॉकिंग बिछी है। गांव में शिक्षा व्यवस्था का हाल कन्या विद्यालय में चल रहा हथकरघा केंद्र
गांव के बीच में आदर्श कन्या विद्यालय बनाया गया, लेकिन उसमें आज तक क्लास नहीं लगी। निर्माण के एक साल बाद ही उसमें हथकरघा केंद्र खुल गया और पढ़ाई की बिल्डिंग में सिलाई-कढ़ाई होने लगी। गांव वालों की माने तो बारिश होने पर पूरे परिसर में जलभराव हो जाता है। बड़ी समस्या- आठवीं के बाद कहां करें पढ़ाई
जयापुर का पूर्व माध्यमिक विद्यालय चंदापुर गांव के आखिरी छोर पर है। यहां आठवीं तक की पढ़ाई होती है। इससे आगे की पढ़ाई के लिए गांव में कोई इंतजाम नहीं है। जयापुर के बच्चों को मैट्रिक में दाखिला लेने के लिए जक्खिनी या राजातालाब जाना पड़ता है। दोनों जगहों से जयापुर की दूरी तकरीबन 8 किमी है। जयापुर गांव में एक लाइब्रेरी है। इसकी दीवार पर अच्छे-अच्छे स्लोगन लिखे हैं, मगर उस पर सालों से ताला लगा हुआ है। किसी को पता नहीं है कि लाइब्रेरी आखिरी बार कब खुली थी। लाइब्रेरी से किसी ने कभी कोई किताब ली हो, ऐसा कोई शख्स गांव में नहीं मिला। गांव में सरकारी योजनाओं की हालत 40 विभागों पर थी विकास की जिम्मेदारी, अब अधिकारी झांकने तक नहीं आते
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांसदों से गांवों को गोद लेने की अपील के साथ जयापुर को 7 नवंबर, 2014 को गोद लिया। सेवापुरी विधानसभा क्षेत्र के इस गांव में विकास के आयाम खुल गए। आनन-फानन में सोलर प्लांट, दो बैंक, कई एटीएम, स्वास्थ्य केंद्र, पंचायत घर, बायो टॉयलेट, एंबुलेंस, कम्प्यूटर सेंटर और सिलाई केंद्र समेत कई परियोजनाओं को पंख लग गए। जयापुर के विकास का ब्लूप्रिंट तैयार किया गया। 40 विभागों को इसके विकास की जिम्मेदारी सौंपी गई। गांव के लोग कहते हैं- अधिकारी शुरुआत में आए, लेकिन 2020 के बाद आना बंद कर दिया। गांव आज भी उच्च शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी, बेहतर सड़कें और मूलभूत सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहा है। प्राइवेट नौकरी और खेती से चलती है आजीविका
गांव के प्रधान राजकुमार यादव हैं, जबकि सबसे ज्यादा आबादी पटेलों की है। गांव में सरकारी नौकरी में बहुत ही चुनिंदा लोग हैं, बाकी प्राइवेट नौकरी के साथ खेती करते हैं। गांव में वर्तमान समय में रोजगार का कोई ठोस साधन नहीं है। गांव के बाहर केंद्र सरकार ने लाखों रुपए लगाकर सोलर चरखा प्रशिक्षण एवं प्रसार केंद्र बनवाया। एक कमरे में 24 और दूसरे में 15 सोलर चरखे जंग खा रहे हैं। गोशाला परिसर में घास-फूस और झाड़ियां उग आई हैं। यहां भारती हरित खादी संस्था के जरिए मुद्रा लोन स्कीम के तहत डेढ़-दौ सौ महिलाओं को सोलर चरखा बांटा गया था। तब दावा किया गया कि महिला सशक्तिकरण मुहिम के तहत भाजपा सरकार महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना चाहती है। गोशाला बंद, नहीं मिल रहा किराया
जयापुर में आदर्श भारती संस्था ने डेयरी प्लांट के तौर पर गोशाला बनाई थी, जो कुछ महीने में ही बंद हो गई। इसका शिलान्यास तत्कालीन केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर ने किया था। गांव के मेखुर सिंह की जमीन 30 हजार रुपए सालाना की दर से तीस साल तक के लिए लीज पर ली गई थी। गोशाला में ताला पड़ा है और लीज का पैसा भी नहीं मिल रहा। जैसे ही सरकार की नजर हटी, संस्था के लोग गाय-भैंस बेचकर चले गए। बकाया बिल के चलते गोशाला परिसर की बिजली भी कट गई। सोलर प्लांट बंद होने से गांव में अंधेरा
प्रधानमंत्री के आदर्श गांव जयापुर को सौर ऊर्जा से रोशन किया गया। इसमें 100 सौर ऊर्जा संयंत्र लगाए गए और वहां से पूरे गांव को आपूर्ति दी गई। हर घर पर 2.5 पॉइंट का कनेक्शन दिया गया। हर घर में एक बिजली, पंखा और चार्जिंग प्वाइंट दिया गया। केंद्र सरकार ने न्यू एंड रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी (नेडा) के जरिए गांव को पंखे और बल्ब से रोशनी की कवायद की। अब यह प्लांट पूरी तरह से बंद है। हालांकि, विधायक और सांसद निधि से गांव में सोलर लाइट्स लगी हैं, जो मददगार हैं। वरना गांव में लाइट जाने पर अंधेरा छा जाता है। 7000 की आबादी, 3250 मतदाता
जयापुर की कुल आबादी लगभग सात हजार है। कुल 3250 वोटर हैं। गांव पटेल, ब्राह्मण, भूमिहार, कुम्हार, दलित आदि जातियों का मूल निवास है। यहां एक भी मुस्लिम परिवार नहीं है। गांव की स्थिति को लेकर निवासी मायूस
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के आरोपों से चतुर्भुज सिंह सहमत हैं। चतुर्भुज सिंह जनप्रतिनिधियों के प्रति आक्रोशित नजर आए। कहा- जयापुर गांव की स्थिति पहले से भी खराब हो गई। पिच रोड जयापुर गांव में नहीं है। सड़कों के नाम पर केवल खड़ंजा हैं, जिन पर निकलना मुश्किल होता है। अंदर की गलियों को इंटरलॉकिंग किया गया है, लेकिन कोई डामरीकरण नहीं हुआ। गांव में एक तालाब है, जिसे हर प्रधान खुदवाता है। गांव में ना नाला है, ना सड़क है ना कोई शिक्षण संस्थान है। कन्या स्कूल बनवाया गया है, लेकिन उसमें पढ़ाई की जगह कढ़ाई हो रही है। गांव में आने वाली एक सड़क है, जिस पर डामर लगा, लेकिन वह भी आधे गांव तक आकर समाप्त हो गई। खरीद केंद्र बनाया गया है, लेकिन उसमें हमें एमएसपी नहीं मिल रही है। ग्राम प्रधान राजकुमार यादव ने बताया कि गांव में कुछ सड़कें टूटी हैं। इनका प्रस्ताव शासन को दिया गया है, जल्द ही बनेंगी। गांव में तीन चार सड़कें हैं, जिनके लिए जनप्रतिनिधियों से मांग की है। उज्जवला योजना के तहत अभी सिलेंडर मिलने लगा है, बीच में यह बंद हो गया था। लेकिन अब सुधार है। गांव के राहुल सिंह कहते हैं- प्रधानमंत्री ने जब गांव गोद लिया तो विकास हुआ, लेकिन देखरेख के अभाव में सोलर प्लांट खराब हो गया। दो सोलर प्लांट लगे हैं, जो फ्लॉप हैं। एक बस चलाई गई, जो अनियमित है। पढ़ाई के लिए स्कूल नहीं है। उप स्वास्थ्य केंद्र केवल नाम का है, वहां दवा नहीं मिलती। अटल नगर बनाया है, जिसमें वनवासियों को आवास मिला, जो बहुत खराब है। जगह-जगह सड़कें उखड़ रही हैं। सीवर या नाले की कोई व्यवस्था नहीं है। हर घर जल नल योजना के ठेकेदारों ने कई सड़कें उखाड़ दी हैं। बायो टॉयलेट आए थे, अब पता नहीं कहां गए। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर