यूपी में 1 महीने पहले आई बाढ़:पहाड़ों पर ज्यादा बारिश से उफान पर नदियां, 26 साल पहले पूर्वांचल के 22 जिले डूबे थे

यूपी में 1 महीने पहले आई बाढ़:पहाड़ों पर ज्यादा बारिश से उफान पर नदियां, 26 साल पहले पूर्वांचल के 22 जिले डूबे थे

इस बार यूपी में बाढ़ एक महीने पहले से ही कहर ढाने लगी है। बाढ़ आने का समय अगस्त है, लेकिन पहाड़ों पर भारी बारिश और नेपाल से पानी जल्दी छोड़े जाने से ऐसी स्थिति जुलाई में ही बन गई। समय से पहले आई बाढ़ ने प्रशासन को भी चौंका दिया है। बाढ़ की एक वजह यूपी में इस बार ज्यादा बारिश भी है। प्रदेश में अभी तक 21 फीसदी ज्यादा बारिश हो चुकी है, जिसने मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। हाल यह है कि पश्चिम उत्तर प्रदेश के पीलीभीत से लेकर पूर्वांचल के बलिया तक बाढ़ की चपेट में 800 से ज्यादा गांव आ चुके हैं। अब तक 16 जिले बाढ़ प्रभावित हैं। 18 लाख से भी ज्यादा आबादी पर असर पड़ा है। सबसे ज्यादा खराब स्थिति पीलीभीत, लखीमपुर खीरी और शाहजहांपुर की है। यह स्थिति 26 साल पहले (1998) जैसी बन रही है, जब पूर्वांचल के 22 जिलों में बाढ़ का पानी घुस गया था। सबसे पहले पिछले साल के आंकड़ों से जानिए, कौन-कौन से जिले पहले ही बाढ़ से प्रभावित हैं। यूपी में बाढ़ के लिए उत्तराखंड और नेपाल जिम्मेदार
हिमालय की तराई से सटे यूपी के जिले हर साल बाढ़ की चपेट में आते हैं। किसी साल इसकी गंभीरता कम होती है तो कभी ज्यादा। दरअसल, उत्तराखंड और नेपाल के पहाड़ी क्षेत्रों में भारी बारिश के बाद शारदा और राप्ती नदी उफान पर होती हैं। उत्तराखंड में ज्यादा बारिश से प्रभावित होने वाले जिलों में पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, शाहजहांपुर, हरदोई और बरेली शामिल हैं। वहीं, नेपाल से पानी छोड़े जाने से प्रभावित होने वाले जिलों में बलिया और मऊ में सरयू खतरे के निशान को पार कर जाती है। उधर राप्ती, सरयू और आमी नदी में जलस्तर बढ़ने से गोरखपुर बाढ़ की चपेट में आ जाता है। चंदन, प्यास और महाव नाला में पानी बढ़ने से महराजगंज में बाढ़ आ जाती है। इस साल भी ताजा हालात ये हैं कि ये सभी जल स्रोत खतरे के निशान से ऊपर बह रहे हैं। इस साल बाढ़ आखिर एक महीने पहले क्यों आई?
उत्तराखंड में जुलाई के पहले सप्ताह में सामान्य से 142 एमएम ज्यादा बारिश रिकॉर्ड की गई है। 94 एमएम बारिश होनी चाहिए थी, जो कि 228 एमएम दर्ज की गई। पीलीभीत के निचले इलाकों से होकर देवहा नदी बहती है। ये उत्तराखंड के नैनीताल से निकलती है और हरदोई में जाकर गंगा में मिल जाती है। पीलीभीत के पूर्व बाढ़ अभियंता शैलेश कुमार कहते हैं कि पहाड़ों पर बारिश ज्यादा होती है तो पानी पहाड़ से सीधे ऊधम सिंह नगर में बने दूनी बांध में आ जाता है। वहां से कई छोटी-छोटी नहरें निकलती हैं। इसमें काफी मात्रा में पानी डायवर्ट हो जाता है। लेकिन अगर बारिश ज्यादा हो जाए तब पानी का फ्लो काफी बढ़ जाता है। इससे बांध में लगे ऑटोमेटिक गेट खुद ही खुल जाते हैं। यहीं से सीधे पानी पीलीभीत में बढ़ने लगता है। यहां से पीलीभीत समेत बीसलपुर, खिरकिया, बरगदिया जैसे क्षेत्रों में पानी बढ़ जाता है। इस बार कुछ ऐसा ही हुआ है। पहाड़ों पर ज्यादा बारिश हो रही है। इससे दूनी बैराज पर दबाव बढ़ा और उसके गेट खुल गए। इससे करीब 100 मीटर चौड़ी और 10 मीटर गहरी देवहा नदी में उफान आ गया और पूरा इलाका डूब गया। इस साल बाढ़ को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कहा कि असमय बाढ़ आने से फसलें बर्बाद हुई हैं। UP में बाढ़ को तीन कैटेगरी में बांटा गया है
उत्तर प्रदेश को 3 फ्लड मैनेजमेंट जोन्स में बांटा गया है। इसमें 29 हाई सेंसिटिव, 11 सेंसिटिव और 35 नॉर्मल जिलों में बंटा है। इन जिलों पर नजर रखने के लिए सरकार सिंचाई, कृषि और पशुपालन विभाग के असफरों की टीम बनाती है। इन पर हाई सेंसिटिव और सेंसिटिव जिलों पर नजर बनाए रखने की जिम्मेदारी होती है। इसी कैटेगरी के आधार पर सरकार बाढ़ से राहत और बचाव के लिए अपनी तैयारियां करती हैं। किसी भी आपात स्थिति के लिए राज्य सरकार करीब 400 आपदा मित्रों को प्रशिक्षित करती है। इनके अलावा 10 हजार 500 वॉलिंटियर्स को भी तैयार रखा जाता है। अब तक 21% ज्यादा हो चुकी है बारिश
यूपी में 11 जुलाई तक 179 एमएम बारिश होनी थी। हालांकि, दर्ज की गई बारिश में 21 फीसदी इजाफा हुआ है। 11 जुलाई तक 218 एमएम बारिश हो चुकी है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने पूर्वी उत्तर प्रदेश सहित उत्तर और उत्तर पूर्व भारत में ज्यादा बारिश का अनुमान जताया है। उत्तर प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों में बारिश का वार्षिक औसत 1700 एमएम (170 सेंटीमीटर) से लेकर 840 एमएम (84 सेंटीमीटर) तक है। दक्षिण-पूर्व और पूर्व में औसत लगभग 1000 मिलीमीटर है, जबकि दक्षिण-पश्चिमी भाग में यह करीब 650 मिलीमीटर है। बाढ़ से घिरे घरों में हर 15 दिन में पहुंचेगा राशन
10 जुलाई को सीएम योगी आदित्यनाथ ने बाढ़ से प्रभावित पीलीभीत और लखीमपुर खीरी का हवाई सर्वे किया। अधिकारियों से उन्होंने राहत कार्यों की जानकारी ली। मदद की बात करें तो बाढ़ की वजह से मृत्यु होने पर परिवार को तत्काल 4 लाख रुपए की सहायता राशि दी जाएगी। वहीं, राहत शिविर में रह रहे लोगों को दो समय के भोजन की व्यवस्था राज्य सरकार की तरफ से की गई है। जिनका घर बाढ़ के बीच घिर गया है और वहां लोग फंसे हैं, उनके लिए हर 15 दिन पर राहत सामग्री पहुंचाई जाएगी। इसके अलावा सीएम ने अधिकारियों को युद्ध स्तर पर राहत कार्य में तेजी लाने के निर्देश दिए हैं। जानिए कब-कब बाढ़ से उत्तर प्रदेश में तबाही मची… 2022 में बाढ़ से 1 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हुए
साल 2022 में आई बाढ़ ने उत्तर प्रदेश के बड़े इलाके को चपेट में लिया था। यह बाढ़ अगस्त महीने में आई थी। इसमें प्रदेश के करीब 466 से भी अधिक गांव प्रभावित हुए थे। बाढ़ से कुल 21 जिले और करीब 1 लाख से भी ज्यादा लोग प्रभावित हुए थे। हजारों घर पानी में समा गए थे। प्रभावित जिलों में प्रशासन ने 880 राहत और बचाव केंद्र खोले थे। नेशनल डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स के अलावा आर्मी की फ्लड रिलीफ टीम बुलानी पड़ी थी। तब सेंट्रल वाटर कमीशन ने बताया था कि प्रदेश में यमुना, बेतवा, गंगा और कुआनो नदियां 12 जगहों पर खतरे के निशान से ऊपर बह रही थीं। 2010 में गंगा में आई बाढ़ ने एक दशक का रिकॉर्ड तोड़ा था
साल 2010 में उत्तर प्रदेश के तीन गेज स्टेशन कन्नौज, अंकीनघाट और कानपुर में गंगा के जलस्तर में अप्रत्याशित बढ़ोतरी रिकॉर्ड हुई थी। इस जलस्तर ने गंगा में एक दशक से भी ज्यादा का रिकॉर्ड तोड़ दिया था। इस बाढ़ से गंगा किनारे बसे कन्नौज, उन्नाव, कानपुर, फतेहपुर और प्रयागराज जैसे जिले बुरी तरह प्रभावित हुए थे। 2010 से पहले 1998 में इन जगहों पर गंगा का जलस्तर इतना बढ़ा था। 1998 में पूर्वांचल में आई बाढ़ ने मचाया था तांडव
साल 1998 में पूर्वांचल के जिलों में आई बाढ़ को लोग अब भी याद करते हैं। इसमें सबसे बुरी स्थिति गोरखपुर जिले की हुई थी। तब राप्ती नदी का पानी डैम से होते हुए सड़क पर आ गया था। जिले में 13 बांध टूट गए थे। इसमें कई लोगों की मौत हो गई थी। तब पूर्वांचल के जिलों से होकर बहने वाली घाघरा, आमी, रोहणी, राप्ती और कुआनो नदी का पानी रिकॉर्ड जलस्तर को पार कर गया था। पूर्वांचल के गोरखपुर, महराजगंज, संतकबीरनगर, सिद्धार्थनगर, मऊ, बलिया, गाजीपुर, देवरिया समेत 22 जिलों के सैकड़ों गांव बाढ़ के पानी में डूब गए थे। 1978 में प्रयागराज और वाराणसी में बुलानी पड़ी थी सेना
प्रयागराज में गंगा और यमुना के लिए खतरे का निशान 84.73 मीटर है। इससे ऊपर अगर जलस्तर जाता है तो उसे खतरे की घंटी माना जाता है। 1978 में गंगा-यमुना ने खतरे के इस निशान को भी पार कर दिया था। आपदा विभाग के हाथ से स्थिति बाहर हो गई थी। राहत और बचाव कार्य के लिए सेना को बुलाना पड़ा। दोनों नदियां उस साल 87 मीटर के ऊपर बह रही थीं। नतीजा यह हुआ कि आज के प्रयागराज और तब के इलाहाबाद में लोग जान-माल बचाकर भागने लगे। तब प्रयागराज के फाफामऊ में गंगा का जलस्तर 87.98 मीटर दर्ज हुआ था। छतनाग में 88.03 मीटर और नैनी में यमुना का जलस्तर 87.98 मीटर दर्ज हुआ था। इस बाढ़ की चपेट में इलाहाबाद के साथ वाराणसी शहर भी था। वहां भी स्थिति सेना ने संभाली। वाराणसी में तो पानी शहर के अंदर नगवां, संकट मोचन, लंका, दुर्गा कुंड, अस्सी, मथीघाट, हरिश्चंद्र घाट और गोदौलिया चौक तक आ गया था। बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी पूरे शहर से कट चुकी थी। लंका से जाने वाले रास्ते पर कमर तक पानी भर गया था। इस बार यूपी में बाढ़ एक महीने पहले से ही कहर ढाने लगी है। बाढ़ आने का समय अगस्त है, लेकिन पहाड़ों पर भारी बारिश और नेपाल से पानी जल्दी छोड़े जाने से ऐसी स्थिति जुलाई में ही बन गई। समय से पहले आई बाढ़ ने प्रशासन को भी चौंका दिया है। बाढ़ की एक वजह यूपी में इस बार ज्यादा बारिश भी है। प्रदेश में अभी तक 21 फीसदी ज्यादा बारिश हो चुकी है, जिसने मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। हाल यह है कि पश्चिम उत्तर प्रदेश के पीलीभीत से लेकर पूर्वांचल के बलिया तक बाढ़ की चपेट में 800 से ज्यादा गांव आ चुके हैं। अब तक 16 जिले बाढ़ प्रभावित हैं। 18 लाख से भी ज्यादा आबादी पर असर पड़ा है। सबसे ज्यादा खराब स्थिति पीलीभीत, लखीमपुर खीरी और शाहजहांपुर की है। यह स्थिति 26 साल पहले (1998) जैसी बन रही है, जब पूर्वांचल के 22 जिलों में बाढ़ का पानी घुस गया था। सबसे पहले पिछले साल के आंकड़ों से जानिए, कौन-कौन से जिले पहले ही बाढ़ से प्रभावित हैं। यूपी में बाढ़ के लिए उत्तराखंड और नेपाल जिम्मेदार
हिमालय की तराई से सटे यूपी के जिले हर साल बाढ़ की चपेट में आते हैं। किसी साल इसकी गंभीरता कम होती है तो कभी ज्यादा। दरअसल, उत्तराखंड और नेपाल के पहाड़ी क्षेत्रों में भारी बारिश के बाद शारदा और राप्ती नदी उफान पर होती हैं। उत्तराखंड में ज्यादा बारिश से प्रभावित होने वाले जिलों में पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, शाहजहांपुर, हरदोई और बरेली शामिल हैं। वहीं, नेपाल से पानी छोड़े जाने से प्रभावित होने वाले जिलों में बलिया और मऊ में सरयू खतरे के निशान को पार कर जाती है। उधर राप्ती, सरयू और आमी नदी में जलस्तर बढ़ने से गोरखपुर बाढ़ की चपेट में आ जाता है। चंदन, प्यास और महाव नाला में पानी बढ़ने से महराजगंज में बाढ़ आ जाती है। इस साल भी ताजा हालात ये हैं कि ये सभी जल स्रोत खतरे के निशान से ऊपर बह रहे हैं। इस साल बाढ़ आखिर एक महीने पहले क्यों आई?
उत्तराखंड में जुलाई के पहले सप्ताह में सामान्य से 142 एमएम ज्यादा बारिश रिकॉर्ड की गई है। 94 एमएम बारिश होनी चाहिए थी, जो कि 228 एमएम दर्ज की गई। पीलीभीत के निचले इलाकों से होकर देवहा नदी बहती है। ये उत्तराखंड के नैनीताल से निकलती है और हरदोई में जाकर गंगा में मिल जाती है। पीलीभीत के पूर्व बाढ़ अभियंता शैलेश कुमार कहते हैं कि पहाड़ों पर बारिश ज्यादा होती है तो पानी पहाड़ से सीधे ऊधम सिंह नगर में बने दूनी बांध में आ जाता है। वहां से कई छोटी-छोटी नहरें निकलती हैं। इसमें काफी मात्रा में पानी डायवर्ट हो जाता है। लेकिन अगर बारिश ज्यादा हो जाए तब पानी का फ्लो काफी बढ़ जाता है। इससे बांध में लगे ऑटोमेटिक गेट खुद ही खुल जाते हैं। यहीं से सीधे पानी पीलीभीत में बढ़ने लगता है। यहां से पीलीभीत समेत बीसलपुर, खिरकिया, बरगदिया जैसे क्षेत्रों में पानी बढ़ जाता है। इस बार कुछ ऐसा ही हुआ है। पहाड़ों पर ज्यादा बारिश हो रही है। इससे दूनी बैराज पर दबाव बढ़ा और उसके गेट खुल गए। इससे करीब 100 मीटर चौड़ी और 10 मीटर गहरी देवहा नदी में उफान आ गया और पूरा इलाका डूब गया। इस साल बाढ़ को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कहा कि असमय बाढ़ आने से फसलें बर्बाद हुई हैं। UP में बाढ़ को तीन कैटेगरी में बांटा गया है
उत्तर प्रदेश को 3 फ्लड मैनेजमेंट जोन्स में बांटा गया है। इसमें 29 हाई सेंसिटिव, 11 सेंसिटिव और 35 नॉर्मल जिलों में बंटा है। इन जिलों पर नजर रखने के लिए सरकार सिंचाई, कृषि और पशुपालन विभाग के असफरों की टीम बनाती है। इन पर हाई सेंसिटिव और सेंसिटिव जिलों पर नजर बनाए रखने की जिम्मेदारी होती है। इसी कैटेगरी के आधार पर सरकार बाढ़ से राहत और बचाव के लिए अपनी तैयारियां करती हैं। किसी भी आपात स्थिति के लिए राज्य सरकार करीब 400 आपदा मित्रों को प्रशिक्षित करती है। इनके अलावा 10 हजार 500 वॉलिंटियर्स को भी तैयार रखा जाता है। अब तक 21% ज्यादा हो चुकी है बारिश
यूपी में 11 जुलाई तक 179 एमएम बारिश होनी थी। हालांकि, दर्ज की गई बारिश में 21 फीसदी इजाफा हुआ है। 11 जुलाई तक 218 एमएम बारिश हो चुकी है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने पूर्वी उत्तर प्रदेश सहित उत्तर और उत्तर पूर्व भारत में ज्यादा बारिश का अनुमान जताया है। उत्तर प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों में बारिश का वार्षिक औसत 1700 एमएम (170 सेंटीमीटर) से लेकर 840 एमएम (84 सेंटीमीटर) तक है। दक्षिण-पूर्व और पूर्व में औसत लगभग 1000 मिलीमीटर है, जबकि दक्षिण-पश्चिमी भाग में यह करीब 650 मिलीमीटर है। बाढ़ से घिरे घरों में हर 15 दिन में पहुंचेगा राशन
10 जुलाई को सीएम योगी आदित्यनाथ ने बाढ़ से प्रभावित पीलीभीत और लखीमपुर खीरी का हवाई सर्वे किया। अधिकारियों से उन्होंने राहत कार्यों की जानकारी ली। मदद की बात करें तो बाढ़ की वजह से मृत्यु होने पर परिवार को तत्काल 4 लाख रुपए की सहायता राशि दी जाएगी। वहीं, राहत शिविर में रह रहे लोगों को दो समय के भोजन की व्यवस्था राज्य सरकार की तरफ से की गई है। जिनका घर बाढ़ के बीच घिर गया है और वहां लोग फंसे हैं, उनके लिए हर 15 दिन पर राहत सामग्री पहुंचाई जाएगी। इसके अलावा सीएम ने अधिकारियों को युद्ध स्तर पर राहत कार्य में तेजी लाने के निर्देश दिए हैं। जानिए कब-कब बाढ़ से उत्तर प्रदेश में तबाही मची… 2022 में बाढ़ से 1 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हुए
साल 2022 में आई बाढ़ ने उत्तर प्रदेश के बड़े इलाके को चपेट में लिया था। यह बाढ़ अगस्त महीने में आई थी। इसमें प्रदेश के करीब 466 से भी अधिक गांव प्रभावित हुए थे। बाढ़ से कुल 21 जिले और करीब 1 लाख से भी ज्यादा लोग प्रभावित हुए थे। हजारों घर पानी में समा गए थे। प्रभावित जिलों में प्रशासन ने 880 राहत और बचाव केंद्र खोले थे। नेशनल डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स के अलावा आर्मी की फ्लड रिलीफ टीम बुलानी पड़ी थी। तब सेंट्रल वाटर कमीशन ने बताया था कि प्रदेश में यमुना, बेतवा, गंगा और कुआनो नदियां 12 जगहों पर खतरे के निशान से ऊपर बह रही थीं। 2010 में गंगा में आई बाढ़ ने एक दशक का रिकॉर्ड तोड़ा था
साल 2010 में उत्तर प्रदेश के तीन गेज स्टेशन कन्नौज, अंकीनघाट और कानपुर में गंगा के जलस्तर में अप्रत्याशित बढ़ोतरी रिकॉर्ड हुई थी। इस जलस्तर ने गंगा में एक दशक से भी ज्यादा का रिकॉर्ड तोड़ दिया था। इस बाढ़ से गंगा किनारे बसे कन्नौज, उन्नाव, कानपुर, फतेहपुर और प्रयागराज जैसे जिले बुरी तरह प्रभावित हुए थे। 2010 से पहले 1998 में इन जगहों पर गंगा का जलस्तर इतना बढ़ा था। 1998 में पूर्वांचल में आई बाढ़ ने मचाया था तांडव
साल 1998 में पूर्वांचल के जिलों में आई बाढ़ को लोग अब भी याद करते हैं। इसमें सबसे बुरी स्थिति गोरखपुर जिले की हुई थी। तब राप्ती नदी का पानी डैम से होते हुए सड़क पर आ गया था। जिले में 13 बांध टूट गए थे। इसमें कई लोगों की मौत हो गई थी। तब पूर्वांचल के जिलों से होकर बहने वाली घाघरा, आमी, रोहणी, राप्ती और कुआनो नदी का पानी रिकॉर्ड जलस्तर को पार कर गया था। पूर्वांचल के गोरखपुर, महराजगंज, संतकबीरनगर, सिद्धार्थनगर, मऊ, बलिया, गाजीपुर, देवरिया समेत 22 जिलों के सैकड़ों गांव बाढ़ के पानी में डूब गए थे। 1978 में प्रयागराज और वाराणसी में बुलानी पड़ी थी सेना
प्रयागराज में गंगा और यमुना के लिए खतरे का निशान 84.73 मीटर है। इससे ऊपर अगर जलस्तर जाता है तो उसे खतरे की घंटी माना जाता है। 1978 में गंगा-यमुना ने खतरे के इस निशान को भी पार कर दिया था। आपदा विभाग के हाथ से स्थिति बाहर हो गई थी। राहत और बचाव कार्य के लिए सेना को बुलाना पड़ा। दोनों नदियां उस साल 87 मीटर के ऊपर बह रही थीं। नतीजा यह हुआ कि आज के प्रयागराज और तब के इलाहाबाद में लोग जान-माल बचाकर भागने लगे। तब प्रयागराज के फाफामऊ में गंगा का जलस्तर 87.98 मीटर दर्ज हुआ था। छतनाग में 88.03 मीटर और नैनी में यमुना का जलस्तर 87.98 मीटर दर्ज हुआ था। इस बाढ़ की चपेट में इलाहाबाद के साथ वाराणसी शहर भी था। वहां भी स्थिति सेना ने संभाली। वाराणसी में तो पानी शहर के अंदर नगवां, संकट मोचन, लंका, दुर्गा कुंड, अस्सी, मथीघाट, हरिश्चंद्र घाट और गोदौलिया चौक तक आ गया था। बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी पूरे शहर से कट चुकी थी। लंका से जाने वाले रास्ते पर कमर तक पानी भर गया था।   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर