कांवड़ यात्रा से हिंदू वोटर्स के ध्रुवीकरण की तैयारी:उप-चुनाव में पिछड़ा-दलित वोट बैंक साधने की कोशिश, भाजपा बोली- अधिनियम तो UPA ने लागू किया

कांवड़ यात्रा से हिंदू वोटर्स के ध्रुवीकरण की तैयारी:उप-चुनाव में पिछड़ा-दलित वोट बैंक साधने की कोशिश, भाजपा बोली- अधिनियम तो UPA ने लागू किया

योगी सरकार ने कांवड़ यात्रा के मार्ग में लगने वाली दुकानों पर दुकानदारों के नाम और जानकारी लिखने का फरमान जारी किया है। इतना ही नहीं हलाल सर्टिफिकेशन वाले प्रोडक्ट बेचने वालों पर भी कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। सावन शुरू होने से पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह आदेश सामान्य कार्यवाही का हिस्सा नहीं है। बल्कि इसके जरिए विधानसभा की 10 सीटों पर होने वाले उप-चुनाव के लिए हिंदू वोट बैंक के ध्रुवीकरण की तैयारी है। योगी सरकार के आदेश पर लखनऊ से लेकर दिल्ली तक सियासी घमासान शुरू हो गया है। दैनिक भास्कर इस फैसले की तह तक गया, उपचुनाव से ठीक पहले क्या भाजपा अपने हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के मुद्दों को धार देने की कोशिश कर रही है? क्या चुनाव जीतने के लिए भाजपा के पास ध्रुवीकरण ही आखिरी रास्ता बचा है? इन सब सवालों के जवाब इस रिपोर्ट में पढ़िए- उप-चुनाव वाली 10 में से 5 विधानसभा सीटें कांवड़ यात्रा के रूट पर सावन के महीने में पश्चिमी यूपी के मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, शामली, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, हापुड़ और बुलंदशहर में कांवड़ यात्रा की धूम रहती है। यूपी से लेकर उत्तराखंड के बीच सड़कें कांवड़ियों से पट जाती हैं। यूपी के करीब 4 करोड़ से अधिक कांवड़िये कांवड़ में जल भरने हरिद्वार जाते हैं। इनमें से मीरापुर, कुंदरकी, खैर, गाजियाबाद और करहल पश्चिमी यूपी में हैं। योगी सरकार ने कांवड़ यात्रा के मार्ग की दुकानों पर दुकानदार का नाम, पता, लाइसेंस लगाना अनिवार्य कर दिया है। इस आदेश के बाद यह स्पष्ट हो जाएगा कि दुकानदार किस धर्म का है। कांवड़ यात्री हिंदू दुकानदार की दुकान से सामान खरीदना और हिंदू के होटल से ही खाना-पीना पसंद करेंगे। आदेश के राजनीतिक मायने समझिए- 1. जाट, जाटव सहित दलित और पिछड़े वर्ग को साधने की कोशिश लोकसभा चुनाव में भाजपा के राष्ट्रवाद पर इंडी गठबंधन का जाति का कार्ड भारी पड़ा। दलित और पिछड़ा वोट बैंक भाजपा से छिटककर इंडी गठबंधन में चला गया। यही वजह है कि योगी सरकार ने कांवड़ यात्रा के जरिए दलित और पिछड़े वोट बैंक को हिंदुत्व के नाम पर फिर आकर्षित करने की कोशिश की है। वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र नाथ भट्ट कहते हैं कि इस आदेश से भाजपा की हिंदुत्व की अस्मिता की राजनीति को धार मिलेगी। पिछड़े और दलित के साथ हिंदू वोट फिर भाजपा की ओर आकर्षित हो सकता है। भाजपा ने एससी वर्ग के जाटव, कोरी, वाल्मीकि समाज के साथ जाट, कुर्मी, शाक्य, सैनी, कुशवाहा, ब्राह्मण, ठाकुर समाज को भी इस फैसले से संदेश देने की कोशिश की है। जानकार कहते हैं कि कांवड़ यात्रियों में बड़ी संख्या दलित और पिछड़े वर्ग के युवाओं की होती है। भाजपा ने इस आदेश से दोनों वर्ग के युवाओं को संदेश देने की कोशिश की है। बता दें कि भाजपा वोटबैंक के मामले में जाति के आधार पर विभाजन करने से बचती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से लेकर संगठन के अंदर संगठित हिंदू समाज की बात की जाती रही है। वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक सुनीता एरन इसे लेकर कहती हैं- हिंदू इससे ज्यादा प्रभावित नहीं होगा। अगर आपसी सौहार्द बिगड़ता है तो डर का माहौल बन सकता है। नाम लिखना ठीक फैसला नहीं है। यूपी में कई मुस्लिम संगठन भी कांवड़ यात्रियों के लिए भोजन-पानी की व्यवस्था करते थे। इससे किसी राजनीतिक दल का मकसद हल नहीं हो रहा है। 2. लोकसभा चुनाव में करारी हार का हिंदुत्व में हल खोज रही भाजपा वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि सरकार ने हिंदू वोट का राजनीतिक फायदा लेने के लिए यह आदेश जारी किया। लोकसभा चुनाव में जनता ने इस मिशन को नकार दिया था। मुझे लगता है जनता के उस संदेश को भाजपा ने ग्रहण नहीं किया। यूपी में कई सालों से हिंदू-मुस्लिम मिलकर कांवड़ यात्रा निकालते हैं। मोहर्रम भी हिंदू-मुस्लिम साथ मिलकर मनाते हैं। इतना ही नहीं व्यापार में भी साथ रहे हैं। यूपी में भाजपा पर करीब से नजर रखने वालों का मानना है कि भाजपा के लिए चुनावी हार का विकल्प हिंदुत्व का मुद्दा ही है। लोकसभा चुनाव में जो हार मिली, उसका हल हिंदू वोटों को एकजुट कर तलाश रहे हैं। 2018 में भाजपा गोरखपुर, फूलपुर, बिजनौर और कैराना में उप-चुनाव हार गई थी। चुनाव हारते ही भाजपा ने फिर हिंदू वोटों के ध्रवीकरण की कोशिश तेज की। सरकार ने राष्ट्रवाद के प्रतीक स्थलों का जीर्णोद्धार कराने के साथ ही महापुरुषों के स्थलों का भी कायाकल्प हाथ में लिया। यूपी में उत्तर प्रदेश विधि-विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम 2021 लागू किया गया। 3. 11 जिलों की 58 विधानसभा सीटों पर कांवड़ यात्रा का प्रभाव
कांवड़ यात्रा से पहले हिंदू वोट बैंक के ध्रुवीकरण के लिए जारी आदेश की खास वजह है। कांवड़ यात्रा से पश्चिमी यूपी के 11 जिलों की 58 विधानसभा क्षेत्रों का सियासी समीकरण साधा जाता है। इसमें मुजफ्फरनगर जिले की 6 विधानसभा सीटें, मेरठ की 7, मुरादाबाद की 6, सहारनपुर की 7, बिजनौर की 8, हाथरस की 3, हापुड़ की 3, शामली की 3, बुलंदशहर की 7, गाजियाबाद की 5 और बागपत की 3 विधानसभा सीटों पर कांवड़ यात्रा का असर माना जाता है। 4. 11 लोकसभा क्षेत्रों से होकर गुजरता है कांवड़ यात्रा का रूट कांवड़ यात्रा के मार्ग में पड़ने वाली दुकान और इसके मालिकों के नाम पते लिखने का सियासी असर पश्चिमी यूपी की 11 लोकसभा सीटों पर भी रहेगा। लोकसभा चुनाव 2024 में सपा के पास 4, भाजपा के 4, रालोद के पास 2 और एक सीट कांग्रेस के खाते में गई। मुजफ्फरनगर, कैराना, मुरादाबाद और रामपुर में सपा ने चुनाव जीता। कांग्रेस ने सहारनपुर में बाजी मारी। भाजपा के पास गाजियाबाद, मेरठ, बुलंदशहर और हाथरस सीट हैं। रालोद के पास बागपत और बिजनौर सीट हैं। फैसले के विरोध में उतरे विपक्ष के तर्क और उसकी 3 वजहें- 1. इंडी गठबंधन विरोध के जरिए पीडीए को साधने में जुटा इंडी गठबंधन के दोनों प्रमुख दल सपा और कांग्रेस ने योगी सरकार के इस फैसले का विरोध किया है। दोनों दल पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक वोट बैंक को साधने की कोशिश कर रहे हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा- अमन-औ-चैन पसंद करने वाली जनता सरकार के आदेश को मानने वाली नहीं है। ऐसे आदेश पूरी तरह खारिज होने चाहिए। उन्होंने न्यायालय से मामले में हस्तक्षेप करने का भी आग्रह किया। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने सरकार के आदेश को संविधान, लोकतंत्र और साझी विरासत पर हमला बताया। वहीं, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय ने कहा कि भाजपा समाज में भाईचारे की भावना को समाप्त करना चाहती है। 2. 2022 विधानसभा चुनाव में हुए नुकसान की भरपाई करना चाहती है सपा विधानसभा चुनाव 2022 में सपा और रालोद के गठबंधन के कारण भाजपा को पश्चिमी यूपी में काफी नुकसान पहुंचा था। कांवड़ यात्रा के मार्ग से जुड़े 11 जिलों की 55 सीटों में से 33 सीटों पर भाजपा, 20 सीटों पर सपा और 5 सीटों पर रालोद काबिज है। लोकसभा चुनाव में भाजपा और रालोद के गठबंधन के चलते 11 में से छह सीटें एनडीए ने जीती हैं। इस मुद्दे के जरिए इंडी गठबंधन पश्चिमी यूपी में जाटव, मुस्लिम, जाट सहित अन्य पिछड़ी जातियों को साधने का प्रयास कर रहा है। 3. फैसले के विरोध में मायावती की नजर मुस्लिम वोट बैंक पर पश्चिमी यूपी में दलित के साथ मुस्लिम वर्ग भी बसपा का वोट बैंक माना जाता है। मुस्लिम वोट साधने के लिए बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी सरकार के इस आदेश का विरोध किया। मायावती ने भी आदेश को असंवैधानिक और चुनावी लाभ लेने वाला बताया। उन्होंने यहां तक कहा कि यह धर्म विशेष के लोगों का आर्थिक बायकॉट करने का प्रयास है। NDA की सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल फैसले के विरोध में कांवड़ यात्रा के मार्ग की दुकानों पर दुकानदार के नाम लिखने की अनिवार्यता पर एनडीए दो फाड़ हो गया है। एनडीए के सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल ने योगी सरकार के इस फैसले का विरोध किया है। रालोद प्रदेश अध्यक्ष रामाशीष राय ने इसे जाति और संप्रदाय को बढ़ावा देने वाला कदम बताया। उन्होंने इसे असंवैधानिक निर्णय बताते हुए वापस लेने की मांग भी की है। केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री और लोजपा के अध्यक्ष चिराग पासवान ने भी योगी सरकार के निर्णय को गलत बताया। उन्होंने कहा- हम सरकार के फैसले का समर्थन नहीं करते हैं। जाति या धर्म के आधार पर किसी भी विभाजन का समर्थन नहीं करते हैं। जेडीयू प्रवक्ता केसी त्यागी ने भी फैसले पर पुनर्विचार करने की जरूरत बताई। विपक्ष को भाजपा का जवाब- यह नियम यूपीए सरकार ने बनाया भाजपा की ओर से विपक्ष के आरोपों पर कहा गया कि यह नियम यूपीए सरकार में बनाया गया था। खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम -2006 यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार ने 23 अगस्त, 2006 को लागू किया था। इसके तहत हर दुकानदार को लाइसेंस की सत्यापित प्रति दुकान में उचित स्थान पर हमेशा लगाकर रखनी होगी। कैटरिंग, ढाबा, क्लब, कैंटीन, होटल, रेस्टोरेंट, खुदरा और होलसेल की दुकानों, स्लाटर हाउस पर भी यह लागू है। योगी सरकार कांवड़ यात्रा के दौरान किसी प्रकार के तनाव को रोकने के लिए अधिनियम को अब सख्ती से लागू कराने जा रही है। सपा सरकार के समय होता था विवाद, योगी ने कांवड़ियों पर बरसाए थे फूल सपा शासन के समय कई बार ऐसे मौके देखने को मिले हैं जब सांप्रदायिक तनाव होने की आशंका जताते हुए कांवड़ यात्रा को रोका गया। कांवडियों को यात्रा बीच में ही बंद करनी पड़ी। लेकिन 2017 में योगी सरकार ने ना केवल धूमधाम से कांवड़ यात्रा निकालने की व्यवस्था कराई। बल्कि, सीएम योगी ने खुद हेलीकॉप्टर से कांवड़ियों पर पुष्प वर्षा भी की। स्वामी यशवीर महाराज से हुई थी पूरे विवाद की शुरुआत पिछले साल कांवड़ यात्रा के समय मुजफ्फरनगर के बघरा में आश्रम चलाने वाले स्वामी यशवीर महाराज ने गंभीर आरोप लगाए थे। उनका कहना था कि NH-58 पर मुस्लिम समाज के लोग हिंदू देवी-देवताओं के नाम से होटल और ढाबे चला रहे हैं। यशवीर महाराज ने दुकान और ढाबे वालों पर कार्रवाई की मांग की थी। यशवीर महाराज ने प्रशासनिक अधिकारियों से बात कर मुस्लिम होटल संचालकों के नाम मोटे अक्षरों में अंकित कराने की मांग की थी। ऐसे में, स्वामी यशवीर को ही पूरे मामले को तूल देने का श्रेय दिया जा रहा है। पुलिस अधिकारियों की तरफ से भी कई बार कहा गया कि बाद में किसी भी तरह का विवाद ना हो, इसलिए ये कदम उठाया जा रहा है। पिछले साल नॉनवेज की दुकानों और रेस्टोरेंट पर थी बंदी साल 2023 में कांवड़ यात्रा के रूट पर योगी सरकार ने नॉनवेज शॉप और नॉन वेजिटेरियन रेस्टोरेंट बंद रखने के आदेश दिए थे। जब से योगी सरकार सत्ता में है, हर साल कांवड़ यात्रा के दौरान यह कदम उठाया जाता रहा है। पिछले साल विवाद तब और बढ़ गया था, जब मुजफ्फरनगर में पुलिस ने मुस्लिमों के वेज खाना परोसने वाले होटल और रेस्टोरेंट भी बंद करा दिए थे। वहीं, पड़ोस के जिले सहारनपुर और बिजनौर में होटल खुले हुए थे। तब पूरे मुजफ्फरनगर में प्रशासन ने सिर्फ उन रेस्टोरेंट को खुला रहने दिया था, जिनके मालिक हिंदू थे। उसी समय ‘फूड जिहाद’ वाले बाबा चर्चा में आए थे। नाम स्वामी यशवीर। उन्होंने बाकायदा मुजफ्फरपुर में उन रेस्टोरेंट के नाम की लिस्ट बनाई थी, जिनके मालिक मुस्लिम हैं। योगी सरकार ने कांवड़ यात्रा के मार्ग में लगने वाली दुकानों पर दुकानदारों के नाम और जानकारी लिखने का फरमान जारी किया है। इतना ही नहीं हलाल सर्टिफिकेशन वाले प्रोडक्ट बेचने वालों पर भी कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। सावन शुरू होने से पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह आदेश सामान्य कार्यवाही का हिस्सा नहीं है। बल्कि इसके जरिए विधानसभा की 10 सीटों पर होने वाले उप-चुनाव के लिए हिंदू वोट बैंक के ध्रुवीकरण की तैयारी है। योगी सरकार के आदेश पर लखनऊ से लेकर दिल्ली तक सियासी घमासान शुरू हो गया है। दैनिक भास्कर इस फैसले की तह तक गया, उपचुनाव से ठीक पहले क्या भाजपा अपने हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के मुद्दों को धार देने की कोशिश कर रही है? क्या चुनाव जीतने के लिए भाजपा के पास ध्रुवीकरण ही आखिरी रास्ता बचा है? इन सब सवालों के जवाब इस रिपोर्ट में पढ़िए- उप-चुनाव वाली 10 में से 5 विधानसभा सीटें कांवड़ यात्रा के रूट पर सावन के महीने में पश्चिमी यूपी के मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, शामली, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, हापुड़ और बुलंदशहर में कांवड़ यात्रा की धूम रहती है। यूपी से लेकर उत्तराखंड के बीच सड़कें कांवड़ियों से पट जाती हैं। यूपी के करीब 4 करोड़ से अधिक कांवड़िये कांवड़ में जल भरने हरिद्वार जाते हैं। इनमें से मीरापुर, कुंदरकी, खैर, गाजियाबाद और करहल पश्चिमी यूपी में हैं। योगी सरकार ने कांवड़ यात्रा के मार्ग की दुकानों पर दुकानदार का नाम, पता, लाइसेंस लगाना अनिवार्य कर दिया है। इस आदेश के बाद यह स्पष्ट हो जाएगा कि दुकानदार किस धर्म का है। कांवड़ यात्री हिंदू दुकानदार की दुकान से सामान खरीदना और हिंदू के होटल से ही खाना-पीना पसंद करेंगे। आदेश के राजनीतिक मायने समझिए- 1. जाट, जाटव सहित दलित और पिछड़े वर्ग को साधने की कोशिश लोकसभा चुनाव में भाजपा के राष्ट्रवाद पर इंडी गठबंधन का जाति का कार्ड भारी पड़ा। दलित और पिछड़ा वोट बैंक भाजपा से छिटककर इंडी गठबंधन में चला गया। यही वजह है कि योगी सरकार ने कांवड़ यात्रा के जरिए दलित और पिछड़े वोट बैंक को हिंदुत्व के नाम पर फिर आकर्षित करने की कोशिश की है। वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र नाथ भट्ट कहते हैं कि इस आदेश से भाजपा की हिंदुत्व की अस्मिता की राजनीति को धार मिलेगी। पिछड़े और दलित के साथ हिंदू वोट फिर भाजपा की ओर आकर्षित हो सकता है। भाजपा ने एससी वर्ग के जाटव, कोरी, वाल्मीकि समाज के साथ जाट, कुर्मी, शाक्य, सैनी, कुशवाहा, ब्राह्मण, ठाकुर समाज को भी इस फैसले से संदेश देने की कोशिश की है। जानकार कहते हैं कि कांवड़ यात्रियों में बड़ी संख्या दलित और पिछड़े वर्ग के युवाओं की होती है। भाजपा ने इस आदेश से दोनों वर्ग के युवाओं को संदेश देने की कोशिश की है। बता दें कि भाजपा वोटबैंक के मामले में जाति के आधार पर विभाजन करने से बचती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से लेकर संगठन के अंदर संगठित हिंदू समाज की बात की जाती रही है। वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक सुनीता एरन इसे लेकर कहती हैं- हिंदू इससे ज्यादा प्रभावित नहीं होगा। अगर आपसी सौहार्द बिगड़ता है तो डर का माहौल बन सकता है। नाम लिखना ठीक फैसला नहीं है। यूपी में कई मुस्लिम संगठन भी कांवड़ यात्रियों के लिए भोजन-पानी की व्यवस्था करते थे। इससे किसी राजनीतिक दल का मकसद हल नहीं हो रहा है। 2. लोकसभा चुनाव में करारी हार का हिंदुत्व में हल खोज रही भाजपा वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि सरकार ने हिंदू वोट का राजनीतिक फायदा लेने के लिए यह आदेश जारी किया। लोकसभा चुनाव में जनता ने इस मिशन को नकार दिया था। मुझे लगता है जनता के उस संदेश को भाजपा ने ग्रहण नहीं किया। यूपी में कई सालों से हिंदू-मुस्लिम मिलकर कांवड़ यात्रा निकालते हैं। मोहर्रम भी हिंदू-मुस्लिम साथ मिलकर मनाते हैं। इतना ही नहीं व्यापार में भी साथ रहे हैं। यूपी में भाजपा पर करीब से नजर रखने वालों का मानना है कि भाजपा के लिए चुनावी हार का विकल्प हिंदुत्व का मुद्दा ही है। लोकसभा चुनाव में जो हार मिली, उसका हल हिंदू वोटों को एकजुट कर तलाश रहे हैं। 2018 में भाजपा गोरखपुर, फूलपुर, बिजनौर और कैराना में उप-चुनाव हार गई थी। चुनाव हारते ही भाजपा ने फिर हिंदू वोटों के ध्रवीकरण की कोशिश तेज की। सरकार ने राष्ट्रवाद के प्रतीक स्थलों का जीर्णोद्धार कराने के साथ ही महापुरुषों के स्थलों का भी कायाकल्प हाथ में लिया। यूपी में उत्तर प्रदेश विधि-विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम 2021 लागू किया गया। 3. 11 जिलों की 58 विधानसभा सीटों पर कांवड़ यात्रा का प्रभाव
कांवड़ यात्रा से पहले हिंदू वोट बैंक के ध्रुवीकरण के लिए जारी आदेश की खास वजह है। कांवड़ यात्रा से पश्चिमी यूपी के 11 जिलों की 58 विधानसभा क्षेत्रों का सियासी समीकरण साधा जाता है। इसमें मुजफ्फरनगर जिले की 6 विधानसभा सीटें, मेरठ की 7, मुरादाबाद की 6, सहारनपुर की 7, बिजनौर की 8, हाथरस की 3, हापुड़ की 3, शामली की 3, बुलंदशहर की 7, गाजियाबाद की 5 और बागपत की 3 विधानसभा सीटों पर कांवड़ यात्रा का असर माना जाता है। 4. 11 लोकसभा क्षेत्रों से होकर गुजरता है कांवड़ यात्रा का रूट कांवड़ यात्रा के मार्ग में पड़ने वाली दुकान और इसके मालिकों के नाम पते लिखने का सियासी असर पश्चिमी यूपी की 11 लोकसभा सीटों पर भी रहेगा। लोकसभा चुनाव 2024 में सपा के पास 4, भाजपा के 4, रालोद के पास 2 और एक सीट कांग्रेस के खाते में गई। मुजफ्फरनगर, कैराना, मुरादाबाद और रामपुर में सपा ने चुनाव जीता। कांग्रेस ने सहारनपुर में बाजी मारी। भाजपा के पास गाजियाबाद, मेरठ, बुलंदशहर और हाथरस सीट हैं। रालोद के पास बागपत और बिजनौर सीट हैं। फैसले के विरोध में उतरे विपक्ष के तर्क और उसकी 3 वजहें- 1. इंडी गठबंधन विरोध के जरिए पीडीए को साधने में जुटा इंडी गठबंधन के दोनों प्रमुख दल सपा और कांग्रेस ने योगी सरकार के इस फैसले का विरोध किया है। दोनों दल पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक वोट बैंक को साधने की कोशिश कर रहे हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा- अमन-औ-चैन पसंद करने वाली जनता सरकार के आदेश को मानने वाली नहीं है। ऐसे आदेश पूरी तरह खारिज होने चाहिए। उन्होंने न्यायालय से मामले में हस्तक्षेप करने का भी आग्रह किया। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने सरकार के आदेश को संविधान, लोकतंत्र और साझी विरासत पर हमला बताया। वहीं, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय ने कहा कि भाजपा समाज में भाईचारे की भावना को समाप्त करना चाहती है। 2. 2022 विधानसभा चुनाव में हुए नुकसान की भरपाई करना चाहती है सपा विधानसभा चुनाव 2022 में सपा और रालोद के गठबंधन के कारण भाजपा को पश्चिमी यूपी में काफी नुकसान पहुंचा था। कांवड़ यात्रा के मार्ग से जुड़े 11 जिलों की 55 सीटों में से 33 सीटों पर भाजपा, 20 सीटों पर सपा और 5 सीटों पर रालोद काबिज है। लोकसभा चुनाव में भाजपा और रालोद के गठबंधन के चलते 11 में से छह सीटें एनडीए ने जीती हैं। इस मुद्दे के जरिए इंडी गठबंधन पश्चिमी यूपी में जाटव, मुस्लिम, जाट सहित अन्य पिछड़ी जातियों को साधने का प्रयास कर रहा है। 3. फैसले के विरोध में मायावती की नजर मुस्लिम वोट बैंक पर पश्चिमी यूपी में दलित के साथ मुस्लिम वर्ग भी बसपा का वोट बैंक माना जाता है। मुस्लिम वोट साधने के लिए बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी सरकार के इस आदेश का विरोध किया। मायावती ने भी आदेश को असंवैधानिक और चुनावी लाभ लेने वाला बताया। उन्होंने यहां तक कहा कि यह धर्म विशेष के लोगों का आर्थिक बायकॉट करने का प्रयास है। NDA की सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल फैसले के विरोध में कांवड़ यात्रा के मार्ग की दुकानों पर दुकानदार के नाम लिखने की अनिवार्यता पर एनडीए दो फाड़ हो गया है। एनडीए के सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल ने योगी सरकार के इस फैसले का विरोध किया है। रालोद प्रदेश अध्यक्ष रामाशीष राय ने इसे जाति और संप्रदाय को बढ़ावा देने वाला कदम बताया। उन्होंने इसे असंवैधानिक निर्णय बताते हुए वापस लेने की मांग भी की है। केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री और लोजपा के अध्यक्ष चिराग पासवान ने भी योगी सरकार के निर्णय को गलत बताया। उन्होंने कहा- हम सरकार के फैसले का समर्थन नहीं करते हैं। जाति या धर्म के आधार पर किसी भी विभाजन का समर्थन नहीं करते हैं। जेडीयू प्रवक्ता केसी त्यागी ने भी फैसले पर पुनर्विचार करने की जरूरत बताई। विपक्ष को भाजपा का जवाब- यह नियम यूपीए सरकार ने बनाया भाजपा की ओर से विपक्ष के आरोपों पर कहा गया कि यह नियम यूपीए सरकार में बनाया गया था। खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम -2006 यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार ने 23 अगस्त, 2006 को लागू किया था। इसके तहत हर दुकानदार को लाइसेंस की सत्यापित प्रति दुकान में उचित स्थान पर हमेशा लगाकर रखनी होगी। कैटरिंग, ढाबा, क्लब, कैंटीन, होटल, रेस्टोरेंट, खुदरा और होलसेल की दुकानों, स्लाटर हाउस पर भी यह लागू है। योगी सरकार कांवड़ यात्रा के दौरान किसी प्रकार के तनाव को रोकने के लिए अधिनियम को अब सख्ती से लागू कराने जा रही है। सपा सरकार के समय होता था विवाद, योगी ने कांवड़ियों पर बरसाए थे फूल सपा शासन के समय कई बार ऐसे मौके देखने को मिले हैं जब सांप्रदायिक तनाव होने की आशंका जताते हुए कांवड़ यात्रा को रोका गया। कांवडियों को यात्रा बीच में ही बंद करनी पड़ी। लेकिन 2017 में योगी सरकार ने ना केवल धूमधाम से कांवड़ यात्रा निकालने की व्यवस्था कराई। बल्कि, सीएम योगी ने खुद हेलीकॉप्टर से कांवड़ियों पर पुष्प वर्षा भी की। स्वामी यशवीर महाराज से हुई थी पूरे विवाद की शुरुआत पिछले साल कांवड़ यात्रा के समय मुजफ्फरनगर के बघरा में आश्रम चलाने वाले स्वामी यशवीर महाराज ने गंभीर आरोप लगाए थे। उनका कहना था कि NH-58 पर मुस्लिम समाज के लोग हिंदू देवी-देवताओं के नाम से होटल और ढाबे चला रहे हैं। यशवीर महाराज ने दुकान और ढाबे वालों पर कार्रवाई की मांग की थी। यशवीर महाराज ने प्रशासनिक अधिकारियों से बात कर मुस्लिम होटल संचालकों के नाम मोटे अक्षरों में अंकित कराने की मांग की थी। ऐसे में, स्वामी यशवीर को ही पूरे मामले को तूल देने का श्रेय दिया जा रहा है। पुलिस अधिकारियों की तरफ से भी कई बार कहा गया कि बाद में किसी भी तरह का विवाद ना हो, इसलिए ये कदम उठाया जा रहा है। पिछले साल नॉनवेज की दुकानों और रेस्टोरेंट पर थी बंदी साल 2023 में कांवड़ यात्रा के रूट पर योगी सरकार ने नॉनवेज शॉप और नॉन वेजिटेरियन रेस्टोरेंट बंद रखने के आदेश दिए थे। जब से योगी सरकार सत्ता में है, हर साल कांवड़ यात्रा के दौरान यह कदम उठाया जाता रहा है। पिछले साल विवाद तब और बढ़ गया था, जब मुजफ्फरनगर में पुलिस ने मुस्लिमों के वेज खाना परोसने वाले होटल और रेस्टोरेंट भी बंद करा दिए थे। वहीं, पड़ोस के जिले सहारनपुर और बिजनौर में होटल खुले हुए थे। तब पूरे मुजफ्फरनगर में प्रशासन ने सिर्फ उन रेस्टोरेंट को खुला रहने दिया था, जिनके मालिक हिंदू थे। उसी समय ‘फूड जिहाद’ वाले बाबा चर्चा में आए थे। नाम स्वामी यशवीर। उन्होंने बाकायदा मुजफ्फरपुर में उन रेस्टोरेंट के नाम की लिस्ट बनाई थी, जिनके मालिक मुस्लिम हैं।   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर