‘लहू रोता है हिंदुस्तान…
गांधी के सिंहासन पर है नाथू की संतान
लहू रोता है हिंदुस्तान… ये नज्म मशहूर शायरा शबीना अदीब की है, जो उन्होंने 20 साल पहले लिखी थी। लेकिन, विरोध अब हो रहा है। विरोध भी ऐसा कि शबीना अदीब मेरठ के नौचंदी मेले में होने वाले मुशायरे में नहीं आ सकीं। प्रशासन ने उनकी एंट्री बैन कर दी। दैनिक भास्कर ने शबीना अदीब से एक्सक्लूसिव बात की, विरोध की वजह भी पूछी। जवाब मिला- जब गीत लिखा था, तब भाजपा सरकार भी नहीं थी। मैंने तो कवि सम्मेलनों में सरस्वती वंदना और राम का भजन पढ़ा है। हमेशा मोहब्बतों की शायरी की। मैं यही कहूंगी कि ये गलतफहमी पैदा करने वाला देश नहीं है। मेरठ के मुशायरा में शिरकत क्यों नहीं की? इस पर शबीना बोलीं- मैं कानपुर में हूं, 15 दिन से तबीयत खराब है। शबीना अदीब से हुई बातचीत से पहले शायरी पर हुआ पूरा विवाद पढ़िए… CM पोर्टल पर शिकायत, फिर मुशायरा में आने से मना हुआ
मेरठ के नौचंदी मेला में शनिवार, 20 जुलाई को ऑल इंडिया मुशायरा था। पटेल मंडप में शबीना अदीब को नज्म पढ़नी थी। इससे पहले मेरठ नगर निगम की अपर नगर आयुक्त ममता मालवीय ने शबीना अदीब को फोन करके आयोजन में आने से मना कर दिया। उन्होंने बताया- शबीना को बुलाया गया था। बाद में किसी ने मुख्यमंत्री पोर्टल पर शिकायत की, वो सत्ता और पीएम मोदी के खिलाफ शायरी करती हैं, उनको नहीं बुलाना चाहिए। इसके बाद आयोजन समिति ने भी उनके आने पर विरोध जताया। ये मुशायरा डॉ. मेराजुद्दीन करवाते हैं। वो मोदी सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री जयंत चौधरी की पार्टी राष्ट्रीय लोक दल (RLD) के जनरल सेक्रेटरी हैं। उन्होंने कहा- उन (शबीना अदीब) पर गलत इल्जाम लगाया गया। 20 साल पहले उन्होंने सरकार के खिलाफ विवादित नज्म कही। मैंने उसको सुना, वो सरकार के खिलाफ इतनी विवादित भी नहीं थी। शायर तो ऐसा ही लिखते हैं। जिन लोगों ने इस विवाद को खड़ा किया, वो सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वाले लोग हैं। इस विवाद के बाद दैनिक भास्कर ने शबीना अदीब से बात की। शबीना कानपुर के दलेलपुरवा की रहने वाली हैं। उन्होंने फोन पर हमारे सवालों के जवाब दिए। पढ़िए… सवाल – आपको फोन कर मुशायरे में आने से रोक दिया गया? क्या कहेंगी?
जवाब – देखिए, मेरी तबीयत एक हफ्ते से खराब थी। मैं पहले से ही आना नहीं चाह रही थी। मुझे जानकारी दी गई कि वहां ‘लहू रोता है हिंदुस्तान’ गीत को लेकर कुछ विरोध हुआ है। अब लोगों ने उस गीत को लेकर क्या महसूस किया। क्या कह सकते हैं? हमने डा. मेराज साहब से बात की। उन्होंने मेरी बात अपर नगर आयुक्त ममता मालवीय से कराई। फिर मैंने ही उन्हें आने से मना कर दिया। सवाल – उस वक्त आप कहां थी, जब आपको मना किया गया?
जवाब – मैं उस वक्त कानपुर में ही थी। बीते एक हफ्ते से मैं बीमार चल रही हूं। एक-दो प्रोग्राम और थे, उसमें भी नहीं जा सकी। पता नहीं कौन लोग हैं, जिन्होंने हंगामे का ऐलान किया। बताइए इतनी पुराने गीत को लेकर आज विरोध कर रहे हैं। सवाल – विरोध के पीछे कारण बताया गया कि आपने शाहीनबाग में PM और CM के खिलाफ बोला था?
जवाब – (सवालिया अंदाज में) वो जो कह रहे हैं कि PM और CM का विरोध किया, उनके पास कोई रिकॉर्ड तो होगा? मेरे जैसे कितने लोग हालातों पर शायरी करते हैं, पढ़ते हैं। यह उनका पॉइंट ऑफ व्यू है, वो इसे किस नजरिए से देखते हैं, महसूस करते हैं। हमने किसी का नाम लिया हो तो और बात है। जब ये गीत लिखा था, तब सरकार भी इनकी नहीं थी। उस वक्त की सरकार को आपत्ति नहीं थी। अब कुछ लोग गलतफहमी पैदा कर रहे हैं। वो क्यों कर रहे हैं, ये वो लोग ही जाने। सवाल – कुछ लोगों का मानना है कि आपकी नज्म से उन्हें ठेस लगी?
जवाब – कोई ऐसी बात नहीं है। अगर किसी को लगता है कि मैंने किसी बात पर कोई कमेंट किया है तो मैं सॉरी बोलती हूं। मेरी ये सोच भी नहीं है। मैंने हमेशा मोहब्बतों की शायरी की है। शबीना ने हमेशा सरस्वती वंदना कवि सम्मेलनों में पढ़ी। राम का भजन सम्मेलनों में पढ़ा। हम हमेशा ही कौमी एकता की बात करते हैं। सवाल – इस पूरे विवाद को आप किस नजरिए से देखती हैं?
जवाब – हम अपने देश का परचम लेकर जश्न-ए-हिंदुस्तान मनाने कभी दुबई तो कभी सऊदी अरब गए। दूसरे देश में जाकर वतन का नगमा पढ़ा। हम जिस सरजमीं पर रहते हैं, वहां कभी भी ऐसी बातें नहीं थी। सवाल – क्या आपको लगता है ये पूरा वाकया राजनीति से प्रेरित है?
जवाब – अब, मुझे नहीं मालूम इसके पीछे कौन लोग हैं, जिन्होंने इसको इश्यू बना दिया। विवाद का पता चलने के बाद मैंने खुद कह दिया कि मैं वहां नहीं आ रही हूं। किसी को मेरे 20 साल पुराने गीत से आपत्ति है, तो मैं क्या कह सकती हूं। प्रयागराज के वीडियो भी देखा जाए कि मैंने वहां क्या पढ़ा है। सवाल – मुशायरे में पढ़ने वाली नज्म, क्या आयोजक तय करते हैं या आप तय करती हैं?
जवाब – उदाहरण के लिए बता दूं कि बहुत सारे दौर बदलते रहते हैं। शुरुआती दौर में इंसान को पता नहीं होता कि उसे क्या पढ़ना है और क्या नहीं पढ़ना है। ये हमारी नज्म 20-22 साल पुरानी है। लोगों ने इसको अपने-अपने तरीके से बताया। कुछ लोग, जिनको शायरी का सहूर नहीं है, उन लोगों ने हेडिंग लगा दी कि फला नेता को ललकार दिया। हम पढ़ रहे हैं कि जो खानदानी रईस हैं वो मिजाज रखते हैं नर्म अपना, तुम्हारा लहजा बता रहा है तुम्हारी दौलत नई-नई है। जिस गीत को लेकर विवाद हुआ, वो गीत भी पढ़िए… शबीना अदीब 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी चर्चा में रहीं, जानिए वजह… ‘अच्छे दिन कब आएंगे’ नज्म सबकी जुबां पर थी
2014 लोकसभा चुनाव के वक्त शायरा शबीना अदीब की लिखी एक नज्म खूब चर्चा में रही। उनकी एक नज्म है- ‘अच्छे दिन कब आएंगे, जब भारत को लूटने वाले जेल की रोटी खाएंगे’। ये नज्म इतनी लोकप्रिय हुई कि हर शख्स की जुबान पर आ गई। हर कोई कहता था कि अच्छे दिन कब आएंगे। चुनाव के नतीजे आने के बाद शबीना ने बागपत के एक मुशायरे में यह नज्म पढ़ी थी। पूरी नज्म पढ़िए… अच्छे दिन कब आएंगे, जब भारत को लूटने वाले जेल की रोटी खाएंगे
आटा चावल इतना महंगा, आम इंसान का क्या खाएगा
इस दिन सुकून उसी दिन, चैन उसी दिन आएगा
रेल की राहत पाने वाले जब पैदल हो जाएंगे
अच्छे दिन कब आएंगे….
नेताओं अब होश में आओ, दुनिया जाग चुकी है,
नेताओं अब होश में आओ, जनता जाग चुकी है,
अब तुम अपनी खैर मनाओ, जनता जाग चुकी है
जिन्होंने तुमको सत्ता सौंपी, वही तुम्हें ठुकराएंगे
अच्छे दिन कब आएंगे…
महंगाई का इतना बढ़ना, जुल्म है मजलूमों पर
भूख से बच्चे तड़प रहे हैं, शहर के फुटपाथों पर
जब भी जुल्म किया जाएगा, हम आवाज उठाएंगे
अच्छे दिन कब आएंगे…. हम हो तुम हो ये हो वो हो या हो देश के रहबर
मिलेगा जो सबसे झुककर, वो रहेगा ऊंचाई पर
जो मगरुर है वो सब इक दिन मिट्टी में मिल जाएंगे
अच्छे दिन कब आएंगे… यह भी पढ़ें 20 साल पुरानी नज्म पर मुशायरे में आने से रोका:मेरठ प्रशासन ने शायरा शबीना को फोन कर मना किया, आयोजक बोले- गलत हुआ मेरठ में गंगा-जमुनी तहजीब के प्रतीक नौचंदी मेले में मुस्लिम शायर शबीना अदीब के आने पर प्रशासन ने रोक लगा दी। शनिवार को पटेल मंडप में ‘ऑल इंडिया मुशायरा’ में शबीना अदीब को आना था, लेकिन भाजपा समर्थकों ने उनकी नज्म ‘लहू रोता है हिंदुस्तान’ पर विरोध जताया। इसके बाद अपर नगर आयुक्त ने कार्यक्रम से 24 घंटे पहले शबीना अदीब को फोन कर कार्यक्रम में आने से मना कर दिया। पढ़ें पूरी खबर… ‘लहू रोता है हिंदुस्तान…
गांधी के सिंहासन पर है नाथू की संतान
लहू रोता है हिंदुस्तान… ये नज्म मशहूर शायरा शबीना अदीब की है, जो उन्होंने 20 साल पहले लिखी थी। लेकिन, विरोध अब हो रहा है। विरोध भी ऐसा कि शबीना अदीब मेरठ के नौचंदी मेले में होने वाले मुशायरे में नहीं आ सकीं। प्रशासन ने उनकी एंट्री बैन कर दी। दैनिक भास्कर ने शबीना अदीब से एक्सक्लूसिव बात की, विरोध की वजह भी पूछी। जवाब मिला- जब गीत लिखा था, तब भाजपा सरकार भी नहीं थी। मैंने तो कवि सम्मेलनों में सरस्वती वंदना और राम का भजन पढ़ा है। हमेशा मोहब्बतों की शायरी की। मैं यही कहूंगी कि ये गलतफहमी पैदा करने वाला देश नहीं है। मेरठ के मुशायरा में शिरकत क्यों नहीं की? इस पर शबीना बोलीं- मैं कानपुर में हूं, 15 दिन से तबीयत खराब है। शबीना अदीब से हुई बातचीत से पहले शायरी पर हुआ पूरा विवाद पढ़िए… CM पोर्टल पर शिकायत, फिर मुशायरा में आने से मना हुआ
मेरठ के नौचंदी मेला में शनिवार, 20 जुलाई को ऑल इंडिया मुशायरा था। पटेल मंडप में शबीना अदीब को नज्म पढ़नी थी। इससे पहले मेरठ नगर निगम की अपर नगर आयुक्त ममता मालवीय ने शबीना अदीब को फोन करके आयोजन में आने से मना कर दिया। उन्होंने बताया- शबीना को बुलाया गया था। बाद में किसी ने मुख्यमंत्री पोर्टल पर शिकायत की, वो सत्ता और पीएम मोदी के खिलाफ शायरी करती हैं, उनको नहीं बुलाना चाहिए। इसके बाद आयोजन समिति ने भी उनके आने पर विरोध जताया। ये मुशायरा डॉ. मेराजुद्दीन करवाते हैं। वो मोदी सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री जयंत चौधरी की पार्टी राष्ट्रीय लोक दल (RLD) के जनरल सेक्रेटरी हैं। उन्होंने कहा- उन (शबीना अदीब) पर गलत इल्जाम लगाया गया। 20 साल पहले उन्होंने सरकार के खिलाफ विवादित नज्म कही। मैंने उसको सुना, वो सरकार के खिलाफ इतनी विवादित भी नहीं थी। शायर तो ऐसा ही लिखते हैं। जिन लोगों ने इस विवाद को खड़ा किया, वो सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वाले लोग हैं। इस विवाद के बाद दैनिक भास्कर ने शबीना अदीब से बात की। शबीना कानपुर के दलेलपुरवा की रहने वाली हैं। उन्होंने फोन पर हमारे सवालों के जवाब दिए। पढ़िए… सवाल – आपको फोन कर मुशायरे में आने से रोक दिया गया? क्या कहेंगी?
जवाब – देखिए, मेरी तबीयत एक हफ्ते से खराब थी। मैं पहले से ही आना नहीं चाह रही थी। मुझे जानकारी दी गई कि वहां ‘लहू रोता है हिंदुस्तान’ गीत को लेकर कुछ विरोध हुआ है। अब लोगों ने उस गीत को लेकर क्या महसूस किया। क्या कह सकते हैं? हमने डा. मेराज साहब से बात की। उन्होंने मेरी बात अपर नगर आयुक्त ममता मालवीय से कराई। फिर मैंने ही उन्हें आने से मना कर दिया। सवाल – उस वक्त आप कहां थी, जब आपको मना किया गया?
जवाब – मैं उस वक्त कानपुर में ही थी। बीते एक हफ्ते से मैं बीमार चल रही हूं। एक-दो प्रोग्राम और थे, उसमें भी नहीं जा सकी। पता नहीं कौन लोग हैं, जिन्होंने हंगामे का ऐलान किया। बताइए इतनी पुराने गीत को लेकर आज विरोध कर रहे हैं। सवाल – विरोध के पीछे कारण बताया गया कि आपने शाहीनबाग में PM और CM के खिलाफ बोला था?
जवाब – (सवालिया अंदाज में) वो जो कह रहे हैं कि PM और CM का विरोध किया, उनके पास कोई रिकॉर्ड तो होगा? मेरे जैसे कितने लोग हालातों पर शायरी करते हैं, पढ़ते हैं। यह उनका पॉइंट ऑफ व्यू है, वो इसे किस नजरिए से देखते हैं, महसूस करते हैं। हमने किसी का नाम लिया हो तो और बात है। जब ये गीत लिखा था, तब सरकार भी इनकी नहीं थी। उस वक्त की सरकार को आपत्ति नहीं थी। अब कुछ लोग गलतफहमी पैदा कर रहे हैं। वो क्यों कर रहे हैं, ये वो लोग ही जाने। सवाल – कुछ लोगों का मानना है कि आपकी नज्म से उन्हें ठेस लगी?
जवाब – कोई ऐसी बात नहीं है। अगर किसी को लगता है कि मैंने किसी बात पर कोई कमेंट किया है तो मैं सॉरी बोलती हूं। मेरी ये सोच भी नहीं है। मैंने हमेशा मोहब्बतों की शायरी की है। शबीना ने हमेशा सरस्वती वंदना कवि सम्मेलनों में पढ़ी। राम का भजन सम्मेलनों में पढ़ा। हम हमेशा ही कौमी एकता की बात करते हैं। सवाल – इस पूरे विवाद को आप किस नजरिए से देखती हैं?
जवाब – हम अपने देश का परचम लेकर जश्न-ए-हिंदुस्तान मनाने कभी दुबई तो कभी सऊदी अरब गए। दूसरे देश में जाकर वतन का नगमा पढ़ा। हम जिस सरजमीं पर रहते हैं, वहां कभी भी ऐसी बातें नहीं थी। सवाल – क्या आपको लगता है ये पूरा वाकया राजनीति से प्रेरित है?
जवाब – अब, मुझे नहीं मालूम इसके पीछे कौन लोग हैं, जिन्होंने इसको इश्यू बना दिया। विवाद का पता चलने के बाद मैंने खुद कह दिया कि मैं वहां नहीं आ रही हूं। किसी को मेरे 20 साल पुराने गीत से आपत्ति है, तो मैं क्या कह सकती हूं। प्रयागराज के वीडियो भी देखा जाए कि मैंने वहां क्या पढ़ा है। सवाल – मुशायरे में पढ़ने वाली नज्म, क्या आयोजक तय करते हैं या आप तय करती हैं?
जवाब – उदाहरण के लिए बता दूं कि बहुत सारे दौर बदलते रहते हैं। शुरुआती दौर में इंसान को पता नहीं होता कि उसे क्या पढ़ना है और क्या नहीं पढ़ना है। ये हमारी नज्म 20-22 साल पुरानी है। लोगों ने इसको अपने-अपने तरीके से बताया। कुछ लोग, जिनको शायरी का सहूर नहीं है, उन लोगों ने हेडिंग लगा दी कि फला नेता को ललकार दिया। हम पढ़ रहे हैं कि जो खानदानी रईस हैं वो मिजाज रखते हैं नर्म अपना, तुम्हारा लहजा बता रहा है तुम्हारी दौलत नई-नई है। जिस गीत को लेकर विवाद हुआ, वो गीत भी पढ़िए… शबीना अदीब 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी चर्चा में रहीं, जानिए वजह… ‘अच्छे दिन कब आएंगे’ नज्म सबकी जुबां पर थी
2014 लोकसभा चुनाव के वक्त शायरा शबीना अदीब की लिखी एक नज्म खूब चर्चा में रही। उनकी एक नज्म है- ‘अच्छे दिन कब आएंगे, जब भारत को लूटने वाले जेल की रोटी खाएंगे’। ये नज्म इतनी लोकप्रिय हुई कि हर शख्स की जुबान पर आ गई। हर कोई कहता था कि अच्छे दिन कब आएंगे। चुनाव के नतीजे आने के बाद शबीना ने बागपत के एक मुशायरे में यह नज्म पढ़ी थी। पूरी नज्म पढ़िए… अच्छे दिन कब आएंगे, जब भारत को लूटने वाले जेल की रोटी खाएंगे
आटा चावल इतना महंगा, आम इंसान का क्या खाएगा
इस दिन सुकून उसी दिन, चैन उसी दिन आएगा
रेल की राहत पाने वाले जब पैदल हो जाएंगे
अच्छे दिन कब आएंगे….
नेताओं अब होश में आओ, दुनिया जाग चुकी है,
नेताओं अब होश में आओ, जनता जाग चुकी है,
अब तुम अपनी खैर मनाओ, जनता जाग चुकी है
जिन्होंने तुमको सत्ता सौंपी, वही तुम्हें ठुकराएंगे
अच्छे दिन कब आएंगे…
महंगाई का इतना बढ़ना, जुल्म है मजलूमों पर
भूख से बच्चे तड़प रहे हैं, शहर के फुटपाथों पर
जब भी जुल्म किया जाएगा, हम आवाज उठाएंगे
अच्छे दिन कब आएंगे…. हम हो तुम हो ये हो वो हो या हो देश के रहबर
मिलेगा जो सबसे झुककर, वो रहेगा ऊंचाई पर
जो मगरुर है वो सब इक दिन मिट्टी में मिल जाएंगे
अच्छे दिन कब आएंगे… यह भी पढ़ें 20 साल पुरानी नज्म पर मुशायरे में आने से रोका:मेरठ प्रशासन ने शायरा शबीना को फोन कर मना किया, आयोजक बोले- गलत हुआ मेरठ में गंगा-जमुनी तहजीब के प्रतीक नौचंदी मेले में मुस्लिम शायर शबीना अदीब के आने पर प्रशासन ने रोक लगा दी। शनिवार को पटेल मंडप में ‘ऑल इंडिया मुशायरा’ में शबीना अदीब को आना था, लेकिन भाजपा समर्थकों ने उनकी नज्म ‘लहू रोता है हिंदुस्तान’ पर विरोध जताया। इसके बाद अपर नगर आयुक्त ने कार्यक्रम से 24 घंटे पहले शबीना अदीब को फोन कर कार्यक्रम में आने से मना कर दिया। पढ़ें पूरी खबर… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर