सावन के इस पवित्र महीने में सड़काें पर कावंड़ियों का हुजूम दिख रहा है। हाथों में गंगाजल का पात्र लेकर हर-हर महादेव का उद्घोष करते हुए इनके कदम शिवालय की ओर बढ़ रहे हैं। सबसे ज्यादा भीड़ प्रयागराज से वाराणसी रूट पर दिख रहा है। खास बात यह है कि कावंड़ यात्रा में सिर्फ पुरुष ही नहीं बल्कि बड़ी संख्या में महिलाएं व बच्चे भी शामिल हो रहे हैं। कई बुजुर्ग महिलाएं भी जल लेकर पैदल चल रही हैं। यह महिलाएं परिवार की सुख-समृद्धि की कामना तो कुछ मनौती पूरी होने की इच्छा लिए चल रही हैं। सभी नंगे पांव चल रही हैं। यह संगम से गंगा-यमुना और सरस्वती का पवित्र जल लेकर काशी विश्वनाथ मंदिर में चढ़ाने के लिए जा रही हैं। 75 साल की दादी कर रहीं अगुवाई वाराणसी के राजातालाब के पास स्थित रखौना गांव के करीब 2 दर्जन लोग संगम से गंगाजल लेकर बाबा विश्वनाथ मंदिर जा रहे हैं। इस यात्रा की अगुवाई 75 साल की अम्मा प्रभावती देवी कर रही हैं। इसमें ज्यादा महिलाएं ही शामिल हैं। यह सभी पहले वाराणसी से संगम पर आए और फिर यहां से जल लेकर रविवार को वाराणसी के लिए पैदल ही रवाना हुए। किसी के चेहरे पर कोई थकान नहीं दिखी। सभी के जुबां पर सिर्फ हर-हर महादेव व बोल बम-बोल बम ही है। भोले बाबा क नाम लेके चलल जाई.. बुजुर्ग महिला प्रभावती देवी ने बनारसी लहजे में कहा कि “चलल जाई-चलल जाई.. भोले बाबा क नाम लेके चलल जाई, बाल-बच्चा हमार मजे में रहें, उ लोग सुखी रहें.. बस बाबा से इहै विनती बा।” दैनिक भास्कर से बातचीत के बाद उनके आस्था के कदम वाराणसी की तरफ बढ़ने लगे। 20 साल से कांवड़ लेके पैदल चलती हैं मालती देवी इस कांवड़ यात्रा में मालती देवी भी शामिल हैं। यह कहती हैं कि वह 20 साल से कांवड़ लेके बाबा के धाम पहुंचती हैं। संगम का जल लेकर पैदल ही प्रयागराज से वाराणसी तक जाती हैं और भोले बाबा पर इससे जलाभिषेक करती हैं। वह कहती हैं कि “हमने जो भी मांगा, भोले बाबा ने सक कुछ दिया है। ऐसे ही सबकी मनोकामना पूरी हो। बीए की छात्रा अंजू राय भी संगम का जल लेकर काशी की तरफ जा रही हैं। वह कहती हैं कि “भोले बाबा से हम कुछ नहीं मांगते, उनके प्रति मेरा विशेष आस्था है, वह जो करेंगे वह सही ही करेंगे।” इसी तरह चिंता देवी अपने माता-पिता के साथ कांवड़ लेकर चल रही हैं। रात में विश्राम, भोर से ही शुरू होती है यात्रा महिलाओं के साथ उनके परिवार के पुरुष भी चल रहे हैं। बीच-बीच में रूकते हुए चल रहीं हैं। रात में सुरक्षित स्थान पर विश्राम करती हैं। भोर से ही फिर यात्रा शुरू हो जाती है। यह पूरी यात्रा 4 से 5 दिन तक की होती है। सावन के इस पवित्र महीने में सड़काें पर कावंड़ियों का हुजूम दिख रहा है। हाथों में गंगाजल का पात्र लेकर हर-हर महादेव का उद्घोष करते हुए इनके कदम शिवालय की ओर बढ़ रहे हैं। सबसे ज्यादा भीड़ प्रयागराज से वाराणसी रूट पर दिख रहा है। खास बात यह है कि कावंड़ यात्रा में सिर्फ पुरुष ही नहीं बल्कि बड़ी संख्या में महिलाएं व बच्चे भी शामिल हो रहे हैं। कई बुजुर्ग महिलाएं भी जल लेकर पैदल चल रही हैं। यह महिलाएं परिवार की सुख-समृद्धि की कामना तो कुछ मनौती पूरी होने की इच्छा लिए चल रही हैं। सभी नंगे पांव चल रही हैं। यह संगम से गंगा-यमुना और सरस्वती का पवित्र जल लेकर काशी विश्वनाथ मंदिर में चढ़ाने के लिए जा रही हैं। 75 साल की दादी कर रहीं अगुवाई वाराणसी के राजातालाब के पास स्थित रखौना गांव के करीब 2 दर्जन लोग संगम से गंगाजल लेकर बाबा विश्वनाथ मंदिर जा रहे हैं। इस यात्रा की अगुवाई 75 साल की अम्मा प्रभावती देवी कर रही हैं। इसमें ज्यादा महिलाएं ही शामिल हैं। यह सभी पहले वाराणसी से संगम पर आए और फिर यहां से जल लेकर रविवार को वाराणसी के लिए पैदल ही रवाना हुए। किसी के चेहरे पर कोई थकान नहीं दिखी। सभी के जुबां पर सिर्फ हर-हर महादेव व बोल बम-बोल बम ही है। भोले बाबा क नाम लेके चलल जाई.. बुजुर्ग महिला प्रभावती देवी ने बनारसी लहजे में कहा कि “चलल जाई-चलल जाई.. भोले बाबा क नाम लेके चलल जाई, बाल-बच्चा हमार मजे में रहें, उ लोग सुखी रहें.. बस बाबा से इहै विनती बा।” दैनिक भास्कर से बातचीत के बाद उनके आस्था के कदम वाराणसी की तरफ बढ़ने लगे। 20 साल से कांवड़ लेके पैदल चलती हैं मालती देवी इस कांवड़ यात्रा में मालती देवी भी शामिल हैं। यह कहती हैं कि वह 20 साल से कांवड़ लेके बाबा के धाम पहुंचती हैं। संगम का जल लेकर पैदल ही प्रयागराज से वाराणसी तक जाती हैं और भोले बाबा पर इससे जलाभिषेक करती हैं। वह कहती हैं कि “हमने जो भी मांगा, भोले बाबा ने सक कुछ दिया है। ऐसे ही सबकी मनोकामना पूरी हो। बीए की छात्रा अंजू राय भी संगम का जल लेकर काशी की तरफ जा रही हैं। वह कहती हैं कि “भोले बाबा से हम कुछ नहीं मांगते, उनके प्रति मेरा विशेष आस्था है, वह जो करेंगे वह सही ही करेंगे।” इसी तरह चिंता देवी अपने माता-पिता के साथ कांवड़ लेकर चल रही हैं। रात में विश्राम, भोर से ही शुरू होती है यात्रा महिलाओं के साथ उनके परिवार के पुरुष भी चल रहे हैं। बीच-बीच में रूकते हुए चल रहीं हैं। रात में सुरक्षित स्थान पर विश्राम करती हैं। भोर से ही फिर यात्रा शुरू हो जाती है। यह पूरी यात्रा 4 से 5 दिन तक की होती है। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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