उत्तर भारत की पवित्र एवं पावन मणिमहेश यात्रा के लिए हिमाचल के भरमौर में भारी जन सैलाब उमड़ आया है। देश के विभिन्न राज्यों से पहुंचे सैकड़ों श्रद्धालु डल झील में आस्था की डुबकी लगा रहे हैं। जन्माष्टमी के अवसर पर बीते 26 अगस्त से शुरू मणिमहेश यात्रा आज देर रात आधिकारिक तौर पर यात्रा संपन्न हो जाएगी। मणिमहेश यात्रा के शाही स्नान की शुभ मुहूर्त बीती रात 11 बजकर 13 मिनट से शुरू हुआ, जो कि बुधवार रात 11 बजकर 47 मिनट पर खत्म होगा। बीते कल शिव चेलों ने शिव कुंड की परिक्रमा करने के बाद डल तोड़ने की परंपरा निभाई। एक लाख श्रद्धालु करेंगे शाही स्नान SDM भरमौर कुलविंदर सिंह ने बताया कि इस बार एक लाख से ज्यादा श्रद्धालु शाही स्नान करेंगे। उन्होंने बताया कि यात्रा शुरू होने के बाद से अब तक 6 लाख से ज्यादा लोग मणिमहेश पहुंच चुके हैं। आज शाम तक श्रद्धालुओं का यह आंकड़ा और बढ़ेगा। इस यात्रा के लिए पंजाब, हरियाणा, जम्मू कश्मीर, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और चंडीगढ़ से काफी संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। शिव भक्त हर हर महादेव का जयकारे लगाते हुए आगे बढ़ रहे हैं। मान्यता के अनुसार मणिमहेश की इन पहाड़ियों पर शिव का वास है। नीचे डल झील जहां शाही स्नान के लिए श्रद्धालु पहुंचे हैं। हेलिकॉप्टर की उड़ान में खराब मौसम से बाधा उत्पन्न मणिमहेश के लिए सरकार ने भरमौर से हेलिकॉप्टर सेवा बीते 24 अगस्त को ही शुरू कर दी थी, लेकिन इस बार खराब मौसम ने इसमें बाधा उत्पन्न की है। लिहाजा ज्यादातर श्रद्धालु इस बार पैदल चल कर मणिमहेश पहुंचे है। कुछ श्रद्धालु घोड़ों व खच्चरों पर भी इस पावन यात्रा के लिए आएं। यहां बनाए गए कैंप प्रशासन ने मणिमहेश यात्रा के लिए भरमौर, हड़सर, धनछो, सुंदरासी और गौरीकुंड में 5 जगह कैंप स्थापित किए है। यहां से प्रत्येक श्रद्धालुओं को स्वास्थ्य जांच के बाद ही आगे भेजा गया, क्योंकि 13385.83 फीट की ऊंचाई पर स्थित मणिमहेश में कई बार ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। इन कैंप में मेडिकल टीमें तैनात की गई है। उत्तर भारत की कठिन धार्मिक यात्रा मणिमहेश यात्रा को उत्तर भारत की कठिन धार्मिक यात्रा माना जाता है। 13 हजार फीट से ज्यादा की ऊंचाई पर स्थिति मणिमहेश पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को ऊंचे-ऊंचे पहाड़ चढ़ने पड़ते हैं। यह यात्रा अपनी प्राकृतिक सुंदरता और सुंदर दृश्यों के लिए भी जानी जाती है, क्योंकि इस यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को घने जंगलों, अल्पाइन घास के मैदानों और चट्टानों के बीच बीच से होकर गुजरना पड़ता है। इस दौरान हिमालय का मनमोहक दृश्य भी देखने को मिलता हैं। यही वजह है कि यह अध्यात्मिक यात्रा रोमांच और प्राकृतिक सुंदरता का भी आभास कराती है। मणिमहेश के कैलाश शिखर में शिव का निवास मान्यता है कि भगवान शिव मणिमहेश के कैलाश शिखर पर निवास करते हैं, जो झील से दिखाई देता है। यह यात्रा हर साल, आमतौर पर अगस्त या सितंबर के महीने में हिंदू त्यौहार जन्माष्टमी के अवसर पर होती है। माना जाता है कि यह यात्रा 9वीं शताब्दी में शुरू हुई थी जब एक स्थानीय राजा, राजा साहिल वर्मन को भगवान शिव के दर्शन हुए थे जिन्होंने मणिमहेश झील पर एक मंदिर स्थापित करने का निर्देश दिया। उत्तर भारत की पवित्र एवं पावन मणिमहेश यात्रा के लिए हिमाचल के भरमौर में भारी जन सैलाब उमड़ आया है। देश के विभिन्न राज्यों से पहुंचे सैकड़ों श्रद्धालु डल झील में आस्था की डुबकी लगा रहे हैं। जन्माष्टमी के अवसर पर बीते 26 अगस्त से शुरू मणिमहेश यात्रा आज देर रात आधिकारिक तौर पर यात्रा संपन्न हो जाएगी। मणिमहेश यात्रा के शाही स्नान की शुभ मुहूर्त बीती रात 11 बजकर 13 मिनट से शुरू हुआ, जो कि बुधवार रात 11 बजकर 47 मिनट पर खत्म होगा। बीते कल शिव चेलों ने शिव कुंड की परिक्रमा करने के बाद डल तोड़ने की परंपरा निभाई। एक लाख श्रद्धालु करेंगे शाही स्नान SDM भरमौर कुलविंदर सिंह ने बताया कि इस बार एक लाख से ज्यादा श्रद्धालु शाही स्नान करेंगे। उन्होंने बताया कि यात्रा शुरू होने के बाद से अब तक 6 लाख से ज्यादा लोग मणिमहेश पहुंच चुके हैं। आज शाम तक श्रद्धालुओं का यह आंकड़ा और बढ़ेगा। इस यात्रा के लिए पंजाब, हरियाणा, जम्मू कश्मीर, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और चंडीगढ़ से काफी संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। शिव भक्त हर हर महादेव का जयकारे लगाते हुए आगे बढ़ रहे हैं। मान्यता के अनुसार मणिमहेश की इन पहाड़ियों पर शिव का वास है। नीचे डल झील जहां शाही स्नान के लिए श्रद्धालु पहुंचे हैं। हेलिकॉप्टर की उड़ान में खराब मौसम से बाधा उत्पन्न मणिमहेश के लिए सरकार ने भरमौर से हेलिकॉप्टर सेवा बीते 24 अगस्त को ही शुरू कर दी थी, लेकिन इस बार खराब मौसम ने इसमें बाधा उत्पन्न की है। लिहाजा ज्यादातर श्रद्धालु इस बार पैदल चल कर मणिमहेश पहुंचे है। कुछ श्रद्धालु घोड़ों व खच्चरों पर भी इस पावन यात्रा के लिए आएं। यहां बनाए गए कैंप प्रशासन ने मणिमहेश यात्रा के लिए भरमौर, हड़सर, धनछो, सुंदरासी और गौरीकुंड में 5 जगह कैंप स्थापित किए है। यहां से प्रत्येक श्रद्धालुओं को स्वास्थ्य जांच के बाद ही आगे भेजा गया, क्योंकि 13385.83 फीट की ऊंचाई पर स्थित मणिमहेश में कई बार ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। इन कैंप में मेडिकल टीमें तैनात की गई है। उत्तर भारत की कठिन धार्मिक यात्रा मणिमहेश यात्रा को उत्तर भारत की कठिन धार्मिक यात्रा माना जाता है। 13 हजार फीट से ज्यादा की ऊंचाई पर स्थिति मणिमहेश पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को ऊंचे-ऊंचे पहाड़ चढ़ने पड़ते हैं। यह यात्रा अपनी प्राकृतिक सुंदरता और सुंदर दृश्यों के लिए भी जानी जाती है, क्योंकि इस यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को घने जंगलों, अल्पाइन घास के मैदानों और चट्टानों के बीच बीच से होकर गुजरना पड़ता है। इस दौरान हिमालय का मनमोहक दृश्य भी देखने को मिलता हैं। यही वजह है कि यह अध्यात्मिक यात्रा रोमांच और प्राकृतिक सुंदरता का भी आभास कराती है। मणिमहेश के कैलाश शिखर में शिव का निवास मान्यता है कि भगवान शिव मणिमहेश 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हिमाचल में श्रीखंड यात्रा के लिए पहुंचे श्रद्धालुओं की वापसी:3 की हो चुकी है मौत, प्रशासन की अपील- 14 जुलाई से पहले न आएं धार्मिक श्रीखंड यात्रा के लिए देश के विभिन्न राज्यों से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। लेकिन अभी यह यात्रा आधिकारिक तौर पर शुरू नहीं हुई है। इसे देखते हुए स्थानीय प्रशासन ने 140 से अधिक श्रद्धालुओं को वापस भेज दिया है। अभी किसी को भी श्रीखंड जाने की अनुमति नहीं दी जा रही है। एसडीएम निरमंड मनमोहन ने बताया कि पिछले डेढ़ सप्ताह के दौरान दो श्रद्धालुओं और एक स्थानीय व्यक्ति की मौत हो चुकी है। इनमें एक श्रद्धालु हरियाणा, दूसरा यूपी के बुलंदशहर और तीसरा स्थानीय व्यक्ति था। इसे देखते हुए प्रशासन ने फैसला लिया है कि किसी भी श्रद्धालु को श्रीखंड नहीं जाने दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि वापस भेजे गए अधिकतर श्रद्धालु गैर हिमाचली यानी दूसरे राज्यों से आए थे। आधिकारिक तौर पर 14 जुलाई से शुरू होगी यात्रा एसडीएम ने बताया कि आधिकारिक तौर पर यात्रा 14 से 27 जुलाई तक चलेगी। इस यात्रा के लिए विशेष सुरक्षा व्यवस्था की जा रही है। इसलिए आधिकारिक यात्रा से पहले किसी को भी श्रीखंड जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। दुनिया की सबसे कठिन धार्मिक यात्रा श्रीखंड यात्रा दुनिया की सबसे कठिन धार्मिक यात्रा मानी जाती है। 18,570 फीट की ऊंचाई तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को ग्लेशियर, ऊंचे पहाड़, संकरे रास्तों से 32 किलोमीटर पैदल यात्रा करनी पड़ती है। हर समय हादसे का डर बना रहता है। पार्वती बाग से आगे कुछ इलाके ऐसे हैं जहां ऑक्सीजन की भी कमी है। ऐसे में अगर श्रद्धालुओं को समय रहते उपचार या नीचे नहीं उतारा गया तो हादसे का डर बना रहता है। इस कारण कई श्रद्धालु भोले के दर्शन किए बिना ही लौटने को मजबूर हो जाते हैं। यात्रा को आसान बनाने के लिए पांच स्थानों पर बनाए जा रहे बेस कैंप एसडीएम ने बताया कि यात्रा को आसान बनाने के लिए श्रीखंड ट्रस्ट समिति और जिला प्रशासन पांच स्थानों पर बेस कैंप बना रहा है। पहले चरण में सिंघगाड़ में बेस कैंप बनाया जा रहा है। इसके अलावा थाचडू, कुंशा, भीमद्वार और पार्वती बाग में भी बेस कैंप बनाए जाएंगे। इसमें सेक्टर मजिस्ट्रेट और उनके साथ पुलिस अधिकारी/प्रभारी के अलावा मेडिकल स्टाफ और बचाव दल भी तैनात रहेंगे। पहली बार बचाव दल एसडीआरएफ की यूनिट तैनात की जाएगी इस यात्रा में पहली बार पार्वती बाग में बचाव दल एसडीआरएफ की यूनिट तैनात की जाएगी, क्योंकि संकरा और खतरनाक रास्ता होने के कारण इस यात्रा के दौरान कई अनचाहे हादसे होते रहते हैं। खास तौर पर बारिश के कारण यह यात्रा बाधित होती है। ऑनलाइन पंजीकरण के लिए पोर्टल बनाया गया बाहरी राज्यों से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए ऑनलाइन पंजीकरण पोर्टल बनाया गया है। बिना पंजीकरण के किसी भी श्रद्धालु को श्रीखंड नहीं भेजा जाएगा। देश भर से श्रद्धालु पहुंचते हैं श्रीखंड श्रीखंड यात्रा में हिमाचल के अलावा देश के कोने-कोने और नेपाल से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं। इसलिए जिला प्रशासन और श्रीखंड ट्रस्ट के लिए लोगों की जान की सुरक्षा सुनिश्चित करना चुनौती भरा होगा।