<p style=”text-align: justify;”><strong>AAP Candidate List Haryana:</strong> हरियाणा चुनाव को लेकर AAP ने गुरुवार (12 सितंबर) को उम्मीदवारों की सातवीं और आखिरी लिस्ट जारी की. जगाधरी से AAP ने आदर्श पाल को उम्मीदवार बनाया है. आदर्श पाल आज ही कांग्रेस छोड़कर आम आदमी पार्टी में शामिल हुए हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”>नरनौद से AAP ने राजीव पाली को टिकट दिया था. उनका टिकट काटकर रणवीर सिंह लोहान को उम्मीदवार बनाया. पुनहाना से भी AAP ने अपना उम्मीदवार बदला, नेहा खान की जगह AAP ने नायब ठेकेदार बिसरू को उम्मीदवार बनाया. नूंह से राबिया किदवई को टिकट दिया.</p> <p style=”text-align: justify;”><strong>AAP Candidate List Haryana:</strong> हरियाणा चुनाव को लेकर AAP ने गुरुवार (12 सितंबर) को उम्मीदवारों की सातवीं और आखिरी लिस्ट जारी की. जगाधरी से AAP ने आदर्श पाल को उम्मीदवार बनाया है. आदर्श पाल आज ही कांग्रेस छोड़कर आम आदमी पार्टी में शामिल हुए हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”>नरनौद से AAP ने राजीव पाली को टिकट दिया था. उनका टिकट काटकर रणवीर सिंह लोहान को उम्मीदवार बनाया. पुनहाना से भी AAP ने अपना उम्मीदवार बदला, नेहा खान की जगह AAP ने नायब ठेकेदार बिसरू को उम्मीदवार बनाया. नूंह से राबिया किदवई को टिकट दिया.</p> हरियाणा Shimla Masjid Row: शिमला में नहीं थम रहा संजौली मस्जिद का विवाद, पुलिस के लाठीचार्ज से उखड़े व्यापारी, दुकानें बंद
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RDF मामले की आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई:पंजाब सरकार द्वारा दायर किया गया केस, फंड जारी न होने से रुका ग्रामीण विकास पंजाब के केंद्र सरकार द्वारा रोके गए रुलर डेवलपमेंट फंड (RDF) का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। इस मामले में आज सोमवार को सुनवाई होगी। इस दौरान पंजाब सरकार अपना पक्ष रखेगी। हालांकि पंजाब सरकार का पहले दिन से कहना है कि केंद्र सरकार जानबूझकर फंड रोक रही है। सारा काम नियमों के मुताबिक किया जा रहा है। उनकी तरफ से अपने एक्ट में संशोधन तक किया गया है। 66 हजार किमी सड़कों का मामला लटका RDF इश्यू को लेकर केंद्र और पंजाब सरकार में कई बार विवाद हुआ है। पंजाब सरकार के विधायकों का तर्क है कि केंद्र सरकार ने पहले किसानों के लिए 3 कृषि कानून लागू किए थे। लेकिन जब किसानों के संघर्ष के चलते सरकार इसमें कामयाब नहीं हो पाई तो यह चाल चली गई। केंद्र की तरफ से करीब 6700 करोड़ रुपए का फंड रोका गया। क्योंकि RDF का सारा पैसा गांवों के लिए खर्च होता है। उससे ग्रामीण एरिया की 66 हजार किलोमीटर सड़क बनाई जानी थी। लेकिन जानबूझकर ऐसा किया गया। उन्होंने कहा कि पंजाब के खिलाफ जानबूझकर साजिश रची जा रही है। मंडी बोर्ड को तबाह किया जा रहा है। राज्यसभा में उठ चुका है मुद्दा पंजाब के करोड़ों रुपए का फंड रोके जाने का मुद्दा सांसद राघव चड्ढा की तरफ से राज्यसभा में उठाया गया था। चड्ढा ने कहा था कि केंद्र ने RDF के तहत 5600 करोड़, मंडी बोर्ड के तहत 1100 करोड़, नेशनल हेल्थ मिशन के 1100 करोड़, समग्र शिक्षा अभियान के 180 करोड़ और कैपिटल क्रिएशन के तहत 1800 करोड़ रुपए के फंड रोक रखे हैं।
गोद लेकर मुकरे तो पिता को कोर्ट में घसीटा:इंदिरा के न चाहते हुए भी 2 बार CM बने भगवत दयाल; 13 दिन में गिरी सरकार
गोद लेकर मुकरे तो पिता को कोर्ट में घसीटा:इंदिरा के न चाहते हुए भी 2 बार CM बने भगवत दयाल; 13 दिन में गिरी सरकार 26 जनवरी 1918, संयुक्त पंजाब के जींद जिले के बैरो गांव में एक बच्चे का जन्म हुआ। सवा साल बाद उसकी मां नहीं रहीं। पिता हीरालाल शास्त्री ने कुछ साल बच्चे को संभाला, फिर रोहतक के मुरारीलाल को गोद दे दिया। गांव वालों की मौजूदगी में गोद देने कार्यक्रम भी हुआ। बच्चा 16 साल का हुआ, तो उसकी शादी करा दी गई। उसके बाद वो आजादी के आंदोलन में कूद गया, जेल भी गया। 14 साल बाद घर लौटा, तो गोद लेने वाले पिता मुरारीलाल के पास गया। उन्होंने उसे बेटा मानने से इनकार कर दिया। फिर वो हीरालाल के पास गया, उन्होंने कहा- ‘हम तो पहले ही तुम्हें गोद दे चुके हैं।’ दरअसल, जब लड़का जेल में था, तब ब्रितानिया हुकूमत की पुलिस हीरालाल और मुरारीलाल के घर पहुंची थी। दोनों डर गए थे कि उस लड़के की वजह से उन पर मुकदमा न हो जाए। इन सब के बीच लड़के को याद आया कि उसकी एक बहन है, जो गोद लेने वाले पिता की बेटी थी। गांव वालों से पता चला कि उसकी शादी दिल्ली में हुई है। वो बहन से मिलने दिल्ली पहुंचा। उसे आपबीती सुनाई। दोनों भाई-बहन मुरारीलाल के पास पहुंचे, लेकिन उन्होंने लड़के को बेटा मानने से फिर इनकार कर दिया। थक हारकर लड़के ने रोहतक कोर्ट में मुरारीलाल के खिलाफ केस कर दिया। गांव वाले उसके पक्ष में थे, लेकिन कोर्ट गोद लिए जाने का सबूत मांग रहा था। लड़के ने कोर्ट के सामने एक तस्वीर पेश की, जिसमें वो गोद लेने वाले पिता की गोद में बैठा था। फैसला लड़के के पक्ष में आया। मुरारीलाल रो पड़े। लड़के ने उन्हें प्रणाम किया, गले लगाया और कहा- ‘मुझे आपकी संपत्ति नहीं चाहिए, मैं बस ये चाहता था कि आपको अपनी गलती का एहसास हो।’ आगे चलकर यही लड़का हरियाणा का पहला मुख्यमंत्री बना, नाम- भगवत दयाल शर्मा। उनकी बेटी डॉ. भारती शर्मा ने अपनी किताब ‘स्मृतियों के आइने में पंडित भगवत दयाल शर्मा’ में इस किस्से का जिक्र किया है। दैनिक भास्कर की स्पेशल सीरीज ‘मैं हरियाणा का सीएम’ के पहले एपिसोड में भगवत दयाल शर्मा के मुख्यमंत्री बनने की कहानी… डॉ. भारती शर्मा लिखती हैं- साल 1962, प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने संयुक्त पंजाब के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों से कहा- मैं दिल्ली को स्विट्जरलैंड बनाना चाहता हूं। वे अपनी बात पूरी करते, उससे पहले ही कैरों बोल पड़े- पंडित जी मुझसे पंजाब का टुकड़ा मत मांगो, क्योंकि स्विट्जरलैंड के चारों तरफ तो 40 मील तक फैक्ट्रियां हैं। नेहरू ने तब के श्रम मंत्री रहे खंडू भाई देसाई से कहा कि प्रताप बहुत मजबूत हो चुका है। मुझे इसका विकल्प दो। खंडू भाई ने कहा- एक पढ़ा-लिखा शख्स है, इंदिरा से मिलने रोज जाता है। पंजाब का ही रहने वाला है। आप उसे मौका दो, भगवत दयाल नाम है। कुछ दिनों बाद… भगवत दयाल, इंदिरा से मिलकर दिल्ली के तीन मूर्ति भवन से बाहर निकल रहे थे। अचानक पंडित नेहरू की कार आ गई। कार रोककर नेहरू ने भगवत दयाल से उनका नाम पूछा। फिर अंदर बुला लिया। तीन मूर्ति भवन में दोनों के बीच देर तक बातचीत हुई। इस दौरान भगवत दयाल ने पंडित नेहरू से कहा- ‘मुझे झज्जर से शेर सिंह के सामने चुनाव लड़ना है।’ शेर सिंह झज्जर के कद्दावर नेता थे। लगातार तीन बार चुनाव जीत चुके थे। नेहरू ने कहा कि उनके सामने तो मैं भी चुनाव हार जाऊंगा। आखिरकार भगवत दयाल शर्मा को टिकट मिला और वे करीब 16 हजार वोट से जीते। शेर सिंह के समर्थक हंगामे पर उतारू थे। भगवत दयाल ने एक तरकीब निकाली। उन्होंने शेर सिंह से कहा कि बाहर जाकर कह दो कि शेर सिंह चुनाव जीत गया है। शेर सिंह ने वैसा ही किया। शेर सिंह के समर्थकों ने उन्हें कंधों पर उठा लिया। हालांकि, कुछ देर बाद समर्थक जान गए कि शेर सिंह हार गए हैं। समर्थकों ने शेर सिंह को नीचे उतार दिया। इंदिरा ने देवीलाल की मदद से अलग हरियाणा के लिए भगवत दयाल को मनाया
1960 के दशक की शुरुआत में ही पंजाब के बंटवारे की सुगबुगाहट होने लगी थी। भाषा के आधार पर नया राज्य हरियाणा बनना था, लेकिन भगवत दयाल शर्मा इसके विरोध में थे। उनके निजी सुरक्षा अधिकारी रहे दादा राम स्वरूप बताते हैं- ‘इंदिरा गांधी ने भगवत दयाल शर्मा को बुलाकर कहा कि वे अलग हरियाणा राज्य की मांग करें, लेकिन पंडित जी ने इनकार कर दिया। उनका मानना था कि पंजाब को बड़े स्तर पर आर्थिक मदद दी गई है। बंटवारे से पहले हरियाणा को भी आर्थिक तौर पर मजबूत किया जाना चाहिए।’ इसके बाद इंदिरा ने चौधरी देवीलाल से कहा कि वे भगवत दयाल शर्मा से बात करें। आखिरकार देवीलाल ने भगवत दयाल को मना लिया। डॉ. भारती शर्मा लिखती हैं- ‘पंडित जी हरियाणा निर्माण के नहीं, बल्कि पंजाब के बंटवारे के खिलाफ थे। तब वे पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष थे। वे कांग्रेस से बाहर आकर ही हरियाणा बनने का समर्थन कर सकते थे। साथ ही वे जातिवाद और भाषाई संकीर्णता के हामी नहीं थे। जब एक बार राष्ट्रीय नेतृत्व ने पंजाब विभाजन का मन बना लिया, तो इतिहास गवाह है कि उन्होंने हरियाणा के हितों के लिए कांग्रेस आलाकमान से टक्कर लेने में गुरेज नहीं किया।’ इंदिरा के न चाहने के बाद भी हरियाणा के पहले CM बने भगवत दयाल
1 नवंबर 1966 को पंजाब से अलग होकर हरियाणा नया राज्य बना। उस दौरान संयुक्त पंजाब कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भगवत दयाल शर्मा थे। राजनीतिक हलकों में चर्चा पहले से थी कि जो नए राज्य में कांग्रेस अध्यक्ष होगा, उसे ही CM बनाया जाएगा। भगवत दयाल शर्मा, जाट नेताओं के विरोध के बावजूद अब्दुल गफ्फार खान को हराकर हरियाणा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बन गए। इधर, दिल्ली में इंदिरा पहली बार प्रधानमंत्री बनी थीं। ये वो दौर था जब कांग्रेस में मोरारजी देसाई, गुलजारी लाल नंदा जैसे नेताओं का दबदबा था। गुलजारी लाल नंदा उस समय केंद्रीय गृहमंत्री थे और पंजाब के मामलों को देख रहे थे। भगवत दयाल के साथ ही पंजाब कैबिनेट में मंत्री रहे चौधरी रणबीर सिंह और राव बीरेंद्र सिंह भी CM की रेस में थे। वरिष्ठ पत्रकार सतीश त्यागी अपनी किताब ‘पॉलिटिक्स ऑफ चौधर’ में लिखते हैं- ‘इंदिरा गांधी जिस नेता को मुख्यमंत्री बनाना चाहती थीं, वे राव बीरेंद्र सिंह थे। इंदिरा ने भगवत दयाल को बुलाकर कहा था कि वे राव को CM बनाना चाहती हैं और बेहतर होगा कि शर्मा इसमें बाधा न बनें। इस पर भगवत दयाल ने कहा- राव विधायक भी नहीं हैं। उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया, तो गलत परंपरा शुरू हो जाएगी। ज्यादातर विधायक भी मेरे साथ हैं। इंदिरा ने भगवत दयाल का रुख भांपते हुए ज्यादा जोर नहीं दिया।’ दूसरी तरफ चौधरी रणबीर सिंह ने मुख्यमंत्री पद के लिए ज्यादा जोर-आजमाइश नहीं की। इसके अलावा हरियाणा को अलग राज्य बनाने और हिंदी आंदोलन के अगुवा रहे चौधरी देवीलाल और शेर सिंह 1962 से ही कांग्रेस से निष्कासित चल रहे थे। ऐसे में उनकी दावेदारी अपने आप खारिज हो गई। गुलजारी लाल नंदा, पंडित भगवत दयाल शर्मा को ही मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे। इंदिरा उनकी बात मानती थीं। उन्होंने पंडित भगवत दयाल को मुख्यमंत्री बनाने के लिए पूरा जोर लगा दिया। इस तरह भगवत दयाल शर्मा 1 नवंबर 1966 को हरियाणा के पहले मुख्यमंत्री बने। CM बनने के बाद भगवत दयाल का पार्टी में दबदबा बढ़ने लगा। उन्होंने अपने करीबी रामकृष्ण गुप्ता को हरियाणा कांग्रेस का निर्विरोध अध्यक्ष बनवाया, ताकि राव बीरेंद्र सिंह और रणबीर सिंह का वर्चस्व न चले। 1967 में पहली बार हरियाणा विधानसभा के चुनाव की घोषणा हुई। वरिष्ठ पत्रकार महेश कुमार वैद्य बताते हैं- भगवत दयाल शर्मा कोताही नहीं बरतना चाहते थे। उन्होंने टिकट वितरण पर बारीकी से नजर रखी। उनकी कोशिश थी कि किसी भी ऐसे उम्मीदवार को टिकट न मिले, जो आगे चलकर उनके खिलाफ बगावत कर दे। मुख्यमंत्री भगवत दयाल कहते थे- ‘कुछ भी करो, लेकिन बंसीलाल को हराओ’
बंसीलाल के प्रिंसिपल सेक्रेटरी रहे रिटायर्ड IAS अफसर एसके मिश्रा अपनी किताब ‘फ्लाइंग इन हाई विंड्स’ में लिखते हैं- ‘हरियाणा बनने के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव हो रहे थे। मुख्यमंत्री भगवत दयाल मुझे पसंद करते थे। उन्होंने कहा कि आप साफ-सुथरा चुनाव कराइए, लेकिन दो लोगों को किसी भी तरह हराना होगा। पहला देवीलाल और दूसरा बंसीलाल। मैंने कहा- किसी को हराना या जिताना मेरे हाथ में नहीं है। मैं इसमें आपकी मदद नहीं कर सकता।’ भगवत दयाल ने देवीलाल का टिकट कटवाने के लिए पूरा जोर लगा दिया। उन्होंने मोरारजी देसाई की मदद से देवीलाल का टिकट कटवा दिया। मजबूरन देवीलाल ने बेटे प्रताप सिंह को ऐलनाबाद सीट से चुनाव लड़ाया। हालांकि, भगवत दयाल के न चाहने के बावजूद रणबीर सिंह और राव बीरेंद्र सिंह को टिकट मिल गया। चुनाव से पहले चौधरी देवीलाल और शेर सिंह भी वापस कांग्रेस में आ गए। भगवत दयाल ने नई सियासी चाल चली और जिन सीटों पर उनकी पसंद के उम्मीदवार नहीं थे, वहां निर्दलीय उम्मीदवार उतार दिए। इसका सबसे बड़ा उदाहरण रोहतक की किलोई सीट पर देखने को मिला, जहां से महंत श्रेयानाथ निर्दलीय उतरे। इसी सीट से चौधरी रणबीर सिंह चुनाव लड़ रहे थे। नतीजे आए तो रणबीर सिंह 8673 वोटों से हार गए। ये रणबीर सिंह की पहली हार थी। कांग्रेस ने 81 सीटों में से 48 सीटें जीत लीं। जनसंघ को 12, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया को 2, स्वतंत्र पार्टी को 3 और 16 सीटें निर्दलीय को मिलीं। अब भगवत दयाल के सामने सिर्फ राव बीरेंद्र सिंह ही चुनौती थे। राव पटौदी विधानसभा सीट से चुनाव जीते थे। इंदिरा गांधी इस बार भी उन्हें CM बनाना चाहती थीं, लेकिन मोरारजी देसाई और गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा ने फिर से भगवत दयाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनवा दिया। 10 मार्च 1967 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। पहली बार किसी राज्य में CM का प्रस्ताव गिरा
CM बनने के बाद भगवत दयाल ने विरोधियों को किनारे करते हुए अपने करीबी नेताओं को मंत्री बनाया। इससे उनके प्रति विधायकों की नाराजगी और बढ़ गई। अब बारी थी विधानसभा स्पीकर चुनने की। इधर टिकट कटने से नाराज देवीलाल तय कर चुके थे कि किसी भी तरह भगवत दयाल की सरकार गिरानी है। उन्हें पता था कि इस काम में राव बीरेंद्र सिंह उनके साझेदार बन सकते हैं, लेकिन दोनों में पहले से तकरार चल रही थी। देवीलाल ने दिल्ली के एक बिल्डर की मदद ली। बिल्डर ने राव बीरेंद्र सिंह को डिनर के लिए घर बुलाया। जब राव बीरेंद्र सिंह उसके घर पहुंचे, तो वहां देवीलाल पहले से मौजूद थे। देवीलाल को देखते ही राव लौटने लगे, लेकिन बिल्डर ने जैसे-तैसे उन्हें रोक लिया। इसके बाद हिम्मत जुटाकर बताया कि देवीलाल उन्हें मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं। राव ने जवाब दिया कि वे देवीलाल पर भरोसा नहीं कर सकते। उन्होंने पहले भी उनके साथ धोखा किया है। इसके बाद देवीलाल ने आगे बढ़कर राव बीरेंद्र सिंह को मनाया और स्पीकर का चुनाव लड़ने के लिए राजी कर लिया। 17 मार्च 1967, स्पीकर चुनने की तारीख तय हुई। CM भगवत दयाल शर्मा ने स्पीकर पद के लिए जींद के विधायक लाला दयाकिशन के नाम का प्रस्ताव रखा। उसी समय उन्हीं की पार्टी के एक विधायक ने राव बीरेंद्र सिंह का नाम भी प्रपोज कर दिया। मुख्यमंत्री दंग रह गए। वोटिंग हुई, राव बीरेंद्र सिंह जीत गए। आजाद भारत के इतिहास में ये पहला मौका था, जब किसी सदन में मुख्यमंत्री का प्रस्ताव खारिज हुआ। इससे हरियाणा में संवैधानिक संकट पैदा हो गया। कांग्रेस के बागी 12 विधायकों ने हरियाणा कांग्रेस नाम से नया ग्रुप बनाया। 16 निर्दलीय विधायकों ने मिलकर नवीन हरियाणा कांग्रेस बनाई। ये दोनों ग्रुप साथ मिल गए। भारतीय जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया ने इनका समर्थन कर दिया। मजबूरन CM बनने के 13 दिन बाद ही भगवत दयाल को इस्तीफा देना पड़ गया। 24 मार्च 1967 को राव बीरेंद्र सिंह पहली बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। हालांकि, 9 महीने बाद ही राज्यपाल ने बार-बार विधायकों के दल बदलने की बात कहकर विधानसभा भंग कर दी। जिस आधार पर भगवत दयाल ने राव को CM बनने से रोका, उसी आधार पर खुद फंस गए
मई 1968 में हरियाणा में फिर से विधानसभा चुनाव हुए। इस बार भी कांग्रेस ने 81 में से 48 सीटें जीतीं। राव बीरेंद्र सिंह विशाल हरियाणा पार्टी नाम से अलग पार्टी बना चुके थे। अब CM की रेस में भगवत दयाल शर्मा के साथ चौधरी देवीलाल, शेर सिंह, गुलजारी लाल नंदा और रामकृष्ण गुप्ता शामिल थे। इस बार भगवत दयाल विधायक नहीं थे, लेकिन विधायक दल के नेता के लिए उनका दावा सबसे मजबूत था। विधायकों पर उनकी मजबूत पकड़ थी। इंदिरा गांधी को छोड़कर केंद्र में कांग्रेस के कई दिग्गज उनके साथ थे। संविधान विशेषज्ञ और लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉ. सुभाष कश्यप के हवाले से सतीश त्यागी अपनी किताब ‘पॉलिटिक्स ऑफ चौधर’ में लिखते हैं- ‘भगवत दयाल कांग्रेस हाईकमान को 37 विधायकों के हस्ताक्षर वाला पत्र सौंप चुके थे। उसमें आग्रह किया गया था कि शर्मा को विधायक दल का नेता बनाया जाए, लेकिन पार्टी के संसदीय बोर्ड ने फैसला लिया कि जो विधायक नहीं हैं, उन्हें विधायक दल के नेतृत्व से दूर रखा जाएगा। ऐसे में चौधरी देवीलाल, शेर सिंह, गुलजारी लाल नंदा के साथ भगवत दयाल शर्मा भी विधायक दल के नेता की दौड़ से बाहर हो गए। ये भी अजीब संयोग है कि 1966 में जब इंदिरा, राव बीरेंद्र सिंह को मुख्यमंत्री बनाना चाहती थीं, तब भगवत दयाल ने ही विधायक नहीं होने की दलील देते हुए राव को CM नहीं बनने दिया था।
महाकुंभ में एससी-एसटी के 71 संत बनेंगे महामंडलेश्वर:प्रयागराज के महाकुंभ में मिलेगी उपाधि, धर्मांतरण रोकेंगे, जानिए कैसे बनते हैं महामंडलेश्वर
महाकुंभ में एससी-एसटी के 71 संत बनेंगे महामंडलेश्वर:प्रयागराज के महाकुंभ में मिलेगी उपाधि, धर्मांतरण रोकेंगे, जानिए कैसे बनते हैं महामंडलेश्वर 2025 में प्रयागराज महाकुंभ में एससी-एसटी समाज से 71 लोग महामंडलेश्वर बनेंगे। महामंडलेश्वर की उपाधि जूना अखाड़ा देगा। इन सभी संतों ने दो से तीन साल पहले अखाड़े में संन्यास लिया था। महामंडलेश्वर बनने के बाद इन्हें अखाड़े के मठ-मंदिरों की जिम्मेदारी दी जाएगी। इसके पीछे मुख्य वजह धर्मांतरण रोकना है। सबसे ज्यादा ईसाई मिशनरी एससी-एसटी का धर्मांतरण करा रहे हैं। वहीं, बौद्ध धर्म भी तेजी से इस समाज में पैठ बना रहा है। इसे देखते हुए जूना अखाड़ा के संत मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, केरल, महाराष्ट्र और गुजरात पर फोकस कर रहे हैं। यहां आदिवासी-अनुसूचित जाति की आबादी अच्छी-खासी है। इस बार संडे बिग स्टोरी में पढ़िए कैसे बनाए जाते हैं महामंडलेश्वर? अखाड़ों में इनका क्या ओहदा रहता है… महामंडलेश्वर को समझने से पहले अखाड़ा को जानना जरूरी…
पहले आश्रमों के अखाड़ों को बेड़ा अर्थात साधुओं का जत्था कहते थे। जत्थे में पीर होते थे। अखाड़ा शब्द का चलन मुगलकाल से शुरू हुआ। हालांकि, कुछ ग्रंथों के मुताबिक अलख शब्द से ही ‘अखाड़ा’ शब्द की उत्पत्ति हुई। धर्म के जानकारों के मुताबिक, साधुओं के अक्खड़ स्वभाव के चलते इसे अखाड़ा नाम दिया गया है। माना जाता है, आदि शंकराचार्य ने धर्म प्रचार के लिए भारत भ्रमण के दौरान इन अखाड़ों को तैयार किया था। देश में फिलहाल शैव, वैष्णव और उदासीन पंथ के संन्यासियों के मान्यता प्राप्त कुल 13 अखाड़े हैं। देश में 13 अखाड़ों को मान्यता
मान्यता प्राप्त 13 अखाड़ों के संत, महंत और महामंडलेश्वर को कुंभ के दौरान मेले में सुविधा और पेशवाई में निकलने का मौका मिलता है। हालांकि, उज्जैन 2016 में हुए कुंभ मेले के दौरान किन्नर अखाड़ा भी अस्तित्व में आया। लेकिन, अखाड़ा परिषद ने उसे मान्यता देने से मना कर दिया। बाद में किन्नर अखाड़ा श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा के हिस्से के रूप में शामिल किया गया। अलग मान्यता देने को लेकर विरोध चल रहा है। फिलहाल, तीन संप्रदायों के अखाड़े हैं, जिनमें महामंडलेश्वर का पद होता है। ये तीनों संप्रदाय अलग-अलग हैं। इनमें शैव (शिव को मानने वाले), वैष्णव संप्रदाय (विष्णु और उनके अवतारों को मानने वाले) और उदासीन संप्रदाय शामिल हैं। इसमें शैव संप्रदाय के सात अखाड़े हैं। वैष्णव और उदासीन संप्रदाय के तीन-तीन अखाड़े हैं। अब जानिए, अखाड़ों में प्रवेश के बाद किन पदों पर रहते हैं
अखाड़ों में आचार्य महामंडलेश्वर, महामंडलेश्वर और महंत तीन प्रमुख पद होते हैं। इसके बाद काम के आधार पर अलग-अलग पद भी निर्धारित किए गए हैं। इनमें सभी का काम, अलग-अलग जिम्मेदारी तय होती है। जैसे, थानापति, कोतवाल, कोठारी, भंडारी, कारोबारी आदि। साधु-संत जब पहली बार प्रवेश करते हैं, तो उन्हें पहले संन्यासी का पद मिलता है। इसके बाद महापुरुष, कोतवाल, थानापति, आसंधारी, महंत, महंत श्री, भंडारी, पदाधिकार सचिव, मंडलेश्वर, महामंडलेश्वर और हर अखाड़े का एक-एक आचार्य महामंडलेश्वर होता है, जो किसी भी अखाड़े का सर्वोच्च पद माना जाता है। इसलिए अहम है महामंडलेश्वर पद
उज्जैन, इलाहाबाद, नासिक, हरिद्वार में हर 12 साल में एक जगह कुंभ का आयोजन होता है। इलाहाबाद और हरिद्वार में हर 6 साल में अर्धकुंभ लगता है। कुंभ और अर्धकुंभ में स्नान के दौरान इन सभी अखाड़ों को विशेष सुविधाएं मिलती हैं। स्नान के लिए विशेष प्रबंध होते हैं। इनके स्नान के बाद ही आम श्रद्धालु स्नान कर सकते हैं। कुंभ के दौरान सबसे ज्यादा साधु, अखाड़ों में प्रवेश करते हैं। संत समाज में महामंडलेश्वर पद बड़ा ओहदा होता है। वे अपने शिष्य भी बना सकते हैं। उनका लोगों से जुड़ाव रहता है। वे जहां भी जाते हैं, उनका अलग प्रोटोकॉल होता है। कुंभ के शाही स्नान में महामंडलेश्वर रथ पर सवार होकर निकलते हैं। कुंभ मेले के दौरान VIP ट्रीटमेंट मिलता है। जानिए, महामंडलेश्वर कौन बन सकता है?
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवींद्र पुरी महाराज बताते हैं, महामंडलेश्वर बनने के लिए किसी खास डिग्री की जरूरत नहीं होती। कोई सीनियॉरिटी नहीं चाहिए होती। यानी सबसे पहली स्टेज वाला संन्यासी भी सीधे महामंडलेश्वर बन सकता है। जरूरत है, तो सिर्फ आपके आर्थिक रूप से संपन्न, लोगों पर प्रभुत्व और धर्म में रुचि की। वैसे, साल 2022 में अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवींद्र पुरी महाराज ने हरिद्वार में कहा था कि कई महामंडलेश्वर अनपढ़ हैं, जो अनर्गल बयान देते रहते हैं। इसे ध्यान में रखते हुए महामंडलेश्वर बनने के लिए आचार्य की डिग्री अनिवार्य की जाएगी। इसके बाद इसे लागू भी किया गया। पहले भी एससी-एसटी समाज से बनाए गए हैं महामंडलेश्वर
इसके पहले जूना अखाड़ा ने 2018 में अनुसूचित जाति के कन्हैया प्रभुनंद गिरि को महामंडलेश्वर बनाया था। 2021 में हरिद्वार कुंभ में 10 एससी समाज के संतों को महामंडलेश्वर बनाया था। अप्रैल 2024 में महेंद्रानंद गिरी को जगद्गुरु और कैलाशांनद गिरी को महामंडलेश्वर की उपाधि दी। इसके अलावा गुजरात के साइंस सिटी सोला अहमदाबाद में मंगल दास, प्रेम दास, हरि प्रसाद और मोहन दास बाबू को महामंडलेश्वर की उपाधि दी गई। अब महाकुंभ में गुजरात के 15, महाराष्ट्र के 12, छत्तीसगढ़ के 12, झारखंड के 9, मध्य प्रदेश-केरल के आठ-आठ, ओडिशा के 7 एससी-एसटी समाज के लोगों को महामंडलेश्वर की उपाधि दी जाएगी। ये महामंडलेश्वर हरिद्वार, नासिक, उज्जैन, प्रयागराज, वाराणसी, कोलकाता, अहमदाबाद, गांधीनगर समेत देश के अन्य शहरों में स्थित अखाड़े के मठ-मंदिरों का संचालन करेंगे। इनके अलावा एससी-एसटी समाज के 500 लोगों को संन्यास की दीक्षा दी जाएगी। महामंडलेश्वर को लेकर विवाद भी रहा है
15 जुलाई, 2024 को गोपनीय जांच के बाद परिषद ने ऐसे 13 महामंडलेश्वर और संत निष्कासित कर दिए हैं। वहीं, 112 संतों को नोटिस थमाया गया है। 10 मई, 2024 को जयपुर के महामंडलेश्वर नर्मदाशंकर ने महामंडलेश्वर मंदाकिनी पर आचार्य महामंडलेश्वर बनाने का झांसा देकर 8 लाख 90 हजार रुपए लेने की FIR दर्ज कराई थी। मंदाकिनी को महामंडलेश्वर पद से हटा दिया गया। 6 मई, 2024 निरंजनी अखाड़े के महंत सुरेश्वरानंद पुरी महाराज ने महामंडलेश्वर मंदाकिनी पुरी उर्फ ममता जोशी पर महामंडलेश्वर की उपाधि दिलवाने के बदले 7.50 लाख रुपए लेने की FIR दर्ज कराई। साल 2017 में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने 14 बाबाओं की लिस्ट जारी कर उन्हें फर्जी करार दिया था। परिषद ने तय किया था कि किसी को संत की उपाधि देने से पहले पड़ताल की जाएगी। साल 2017 में राधे मां से महामंडलेश्वर की पदवी जूना अखाड़े ने छीन ली थी। अखाड़े राधे मां का नाम फर्जी बाबाओं की सूची में डाल दिया था। एक साल बाद फिर उनके माफीनामे के बाद महामंडलेश्वर की पदवी लौटा भी दी थी। अगस्त 2015 में नोएडा के शराब कारोबारी रहे सचिन दत्ता को निरंजनी अखाड़े का 32वां महामंडलेश्वर बना दिया गया। नाम रखा गया सच्चिदानंद गिरि महाराज। 6 दिन बाद पद छीन लिया गया था। ——————– ये भी पढ़ें… प्रयागराज महाकुंभ में ‘शाही स्नान’ और ‘पेशवाई’ नहीं:700 साल बाद संत करेंगे राजसी स्नान; नाम बदलने के पीछे के तर्क की पूरी कहानी प्रयागराज में कुंभ 2025 की तैयारियां अब आखिरी चरण में हैं। तमाम अखाड़े भी अपनी तैयारियों को अंतिम रूप देने में लगे हैं। उनकी इन्हीं तैयारियों में इस बार एक काम और शामिल है, वह है- कुछ नामों को बदलना। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया है कि वो इस बार कुंभ में ‘शाही स्नान’, ‘पेशवाई’ और ‘चेहरा-मोहरा’ शब्द का इस्तेमाल नहीं करेंगे। वजह बताई कि ये उर्दू शब्द हैं, जो मुगलों ने दिए थे। गुलामी के प्रतीक हैं। इसलिए संतों ने कुंभ में उर्दू और फारसी शब्दों का प्रयोग नहीं करने का फैसला किया है। इन शब्दों की जगह संस्कृतनिष्ठ हिंदी के शब्दों के प्रयोग होगा। नए नाम राजसी स्नान और छावनी प्रवेश रखा गया है। परिषद ने नाम बदलने का प्रस्ताव शासन को भी भेज दिया है। पढ़ें पूरी खबर