जिला- लखीमपुर खीरी, गांव- मूढ़ा जवाहर गांव, समय- रात 8 बजे गांव में जाने वाली सड़क के दोनों तरफ गन्ने के खेत हैं। सड़क किनारे झाड़ियां उगी हैं। इससे आधी सड़क ही चलने लायक दिखती है। गांव के एक छोर पर पूरी तरह सन्नाटा था। कोई भी बाहर नहीं दिख रहा था। हर कोई अपने घरों में कैद हो गया था। गांव के दूसरे छोर की तरफ जाने पर करीब 20 लोगों का एक ग्रुप दिखा। इनके हाथों में डंडे थे। ये बीच-बीच में पटाखे फोड़ रहे थे। पूछने पर बताया, यह इसलिए कर रहे ताकि बाघ गांव की तरफ न आए। इससे लोगों को भी सचेत कर रहे कि बाहर नहीं सोएं। घर के अंदर या फिर छत पर सोएं। यह गांव लखीमपुर खीरी जिले की गोला तहसील में पड़ता है। यहां कई बार बाघ देखा गया, इसलिए वन विभाग ने कैमरे लगा दिए। मचान बना दिए। पिंजरा रखकर बाघ को पकड़ने की कोशिश की जा रही।
यह डर सिर्फ मूढ़ा जवाहर गांव का नहीं, 50 गांवों में डर का माहौल है। बाघ डेढ़ महीने में 5 लोगों को अपना शिकार बना चुका है। हालात यह हो गए कि शाम होते ही लोग गांव से बाहर निकलना छोड़ देते हैं, 8 बजे तक घरों में कैद हो जाते हैं। बाघ से बचाव के लिए गांव वालों और वन-विभाग की क्या तैयारियां हैं? विभाग की बाघ पकड़ने की कोशिशों को लेकर गांव वालों का क्या कहना है? क्या इसका कोई असर हुआ? इस रिपोर्ट में पढ़िए… गांव के अनूप यादव कहते हैं- हमारा बच्चा 12वीं में पढ़ता है। उसका 5 किमी दूर स्कूल है। जब तक वह स्कूल से आ नहीं जाता, चिंता लगी रहती है। खाना तक ठीक ढंग से नहीं खा पा रहे। सिर्फ मैं नहीं, पूरे क्षेत्र में लोग बाघ के हमले से डर रहे हैं। पहले तो वन विभाग यहां रहता भी था, लेकिन अब दूसरी जगह हमला हुआ तो वह भी चले गए। बाघ के डर से लोग काम पर नहीं जा रहे, बच्चों को स्कूल जाना भी बंद
इसी गांव में हमारी मुलाकात अवधेश से हुई। वह बाघ को लेकर परेशान हैं। कहते हैं- मेरे दो बच्चे हैं। दोनों यहां से 5 किलोमीटर दूर गोला में पढ़ते हैं। हम उनकी 2 हजार रुपए महीने की फीस जमा करते हैं, लेकिन दोनों स्कूल नहीं जा पा रहे। स्कूल में कहते हैं, फीस भरिए। अब आखिर हम कहां से भरें फीस? हम तो काम पर ही नहीं जा पा रहे, पैसा कैसे आएगा? हम लोग पटाखा फोड़कर खुद को किसी तरह से बचाए हैं। गांव वालों का आरोप- वन विभाग बाघ को पकड़ने की कोशिश नहीं कर रहा
इसी गांव के नंदलाल भार्गव कहते हैं- 15 दिन में हमारे इलाके में दो लोगों को बाघ ने मार डाला। इससे डर कुछ ऐसा है कि लोग मार्केट तक नहीं जा पा रहे। जानवरों के लिए चारा तक नहीं ला पा रहे। रातभर लोग अलग-अलग जगहों पर बैठकर पहरा दे रहे। मशालें जलाते हैं। जो बाघ हमला कर रहा है, वह यहां दो साल से है। गांव के कई लोगों ने इसे देखा, लेकिन वन विभाग पकड़ने की कोशिश नहीं कर रहा। वकील सुचेंद्र कुमार मिश्रा कहते हैं- पास के दो गांव में दो लोगों को बाघ खा गया। दोनों बेहद गरीब परिवार से हैं। आप बताइए, उनका परिवार कैसे चलेगा। बहुत बुरी स्थिति है। हमारे तो गांव के बाहर एक जो बाग है, वहां बाघ रहता है। ये सूचना हम लोगों ने वन विभाग को भी दी, लेकिन उसके कर्मचारी भी वहां जाने से बचने लगे हैं। वन मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक पकड़ने का आदेश देते हैं, लेकिन यहां कोई ठोस कदम नहीं उठाना चाहता। जगह- अजान गांव, समय- रात के 11 बजे गांव वालों का दावा- विभाग पकड़ने की जगह बाघ को खाना दे रहा
रात के करीब 11 बजे हम अजान गांव पहुंचे। पूरे गांव में सन्नाटा था। कोई भी घर के बाहर नजर नहीं आया। यहां हमें घर के बाहर श्रीकृष्ण वर्मा मिले। वह कहते हैं- हमारे पूरे गांव में इस बात की चर्चा है कि वन विभाग बाघ को पकड़ना ही नहीं चाहता। वह तो बाघ के भोजन का प्रबंध कर रहा है। यह सुनने में अजीब लगा, हमने पूछा- कैसे? श्रीकृष्ण कहते हैं- इन लोगों ने आबादी से दूर गन्ने के खेतों के बीच पिंजरा लगाया है। वहां ये पड्डा यानी भैंस का बच्चा ले जाकर बांधते हैं। इस दौरान गांव के किसी व्यक्ति को नहीं ले जाते। कल ही जो पड्डा लगाया, उसे बाघ खा गया। अब अगर पिंजरा है, तो उसके अंदर क्यों नहीं बांधते? अगर उसके अंदर बांधा जाए तो बाघ को आसानी से पकड़ा जा सकता है, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा। उस खौफ की कहानी जब लोगों का बाघ से सामना हुआ- बाघ का बच्चा देखा तो साइकिल उल्टा मोड़ा और जान बचाकर भागा
क्षेत्र के अनीश अहमद बताते हैं- मैं रपटा पुल की तरफ जा रहा था। मैंने देखा, वहीं सामने बाघ का बच्चा खड़ा था। मेरे होश उड़ गए। कुछ समझ ही नहीं आया। अचानक मैंने साइकिल घुमाई। वहां से जितनी तेज हो सकता है, उतनी तेज भगाकर अपनी जान बचाई। मैंने वहां तो एक ही बच्चा देखा, लेकिन संभव है कि वहां बाघिन और उसका दूसरा भी बच्चा हो। इस घटना के बाद मैं उधर कभी अकेले नहीं गया। बाघ को अक्सर गन्ने के खेतों से आते-जाते देखा
हम मूढ़ा अस्सी गांव पहुंचे। इसी गांव में पिछले हफ्ते जाकिर को गन्ना बांधते वक्त बाघ ने अपना शिकार बनाया था। यहां के शिवाजी वर्मा बताते हैं- हमने कई बार बाघ देखा। वह अक्सर गन्ने के खेतों से होकर आता-जाता रहता है। अब हमारे गांव में उसने शिकार कर लिया, इसलिए यहां लोगों में जबरदस्त डर है। लोग अपने गन्ने के खेतों में नहीं जा पा रहे। गन्ने को नहीं बांधने से सब गिरता जा रहा। एक बाघ के चलते किसानों का बहुत नुकसान हो रहा। इसी गांव के पितंबर कहते हैं- हमने अपने जीवन में बाघ को लेकर इतना डर नहीं देखा। 25 साल पहले भी बाघ आया था। उस वक्त एक व्यक्ति मेरे गांव का दूसरा बगल वाले गांव का खा गया था। लेकिन उस वक्त इतना डर नहीं लगा, जितना आज लग रहा। कोई भी व्यक्ति आज बाहर नहीं जा रहा। वन विभाग यहां बाघ पकड़ने नहीं, उसे सुरक्षा देने आता है। शाम 4 बजे के बाद कोई गांव से बाहर नहीं जा रहा
हम दो दिन में करीब 20 गांवों में गए। इन सभी गांव के हालात एक जैसे दिखे। शाम को 4 बजे के बाद कोई भी व्यक्ति गांव से बाहर अकेले नहीं जाता। रात 8 बजे तक घर के बच्चों को घरों में कैद कर दिया जाता है। हर दो घंटे पर पटाखे फोड़े जा रहे। लाठी-डंडों के साथ लोग समूह में बैठे दिखे। कुछ तो दबी जुबान में यह भी कहते हैं कि अगर हमें लिखित आदेश मिल जाए तो हम बाघ को पकड़ लें, चाहे जिंदा पकड़ें या फिर मुर्दा। DFO बोले- बाघ रॉयल जानवर, वह पिंजरे में नहीं जाता
गांव वालों के आरोप पर DFO संजय बिस्वाल कहते हैं- यह सही है कि हम लोग पड्डे को पिंजरे के बाहर बांधते हैं, लेकिन एक पड्डा पिंजरे के अंदर भी होता है। असल में बाघ रॉयल जानवर है, वह पिंजरे में नहीं जाता। हमारी कोशिश होती है, पड्डे के जरिए उसे उस जगह दोबारा बुलाया जाए। फिर जब वह आराम से बैठकर खाए तो हम उसे ट्रेंकुलाइज (बेहोश) करें। अगर वह भाग रहा होगा, तो हम उसे बेहोश नहीं कर सकते। वह बताते हैं- बाघ अपने शिकार को मारकर एक बार में नहीं खाता। वह दोबारा खाने के लिए आता है। दुधवा टाइगर रिजर्व लेकर बाहर से यहां टाइगर को पकड़ने के लिए टीमें काम कर रही हैं। ऐसे में गांव वालों में इस बात को लेकर कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि प्रशासन बाघ को पकड़ना नहीं चाहता। बाघ को पकड़ने के लिए प्रशासन की तैयारियां DFO ने कहा- गन्ने के खेतों की वजह से बाघ पकड़ने में आ रही दिक्कत
हमने वन विभाग के इंतजाम को लेकर डिस्ट्रिक्ट फॉरेस्ट ऑफिसर (DFO) संजय कुमार बिस्वाल से बात की। वह बताते हैं- हमारी टीम बाघ को पकड़ने की लगातार कोशिश कर रही है। हमने इलाके में 40 कैमरे लगाए हैं। दो ड्रोन के जरिए निगरानी कर रहे हैं। बाघ अगर दिखता है, तो उसे ट्रेंकुलाइज करने के लिए दो डॉक्टर लगे हैं। इसके अलावा वन विभाग के तमाम कर्मचारी लगे हैं। हमने पूछा, बाघ पकड़ने में दिक्कत कहां आ रही? DFO कहते हैं- आपने देखा होगा कि पूरे इलाका गन्ने की फसल से भरा हुआ है। कई-कई किलोमीटर तक सिर्फ गन्ना दिखता है। जब भी सर्च अभियान चलता है, बाघ इन्हीं गन्नों के सहारे भाग जाता है या फिर कहीं छिप जाता है। वह ड्रोन में नहीं आ पा रहा। DFO आगे बताते हैं- जिन जगहों पर बाघ बार-बार देखा जा रहा, हमने उन जगहों पर पिंजरा लगाया है। वहां मचान बनाई जा रही, ताकि बाघ को ट्रेंकुलाइज किया जा सके। बाकी रात में कोई सर्च अभियान नहीं चल रहा। लोगों को जागरूक कर रहे कि रात में घर के बाहर न निकलें। हमारी कोशिश है कि बाघ जल्द से जल्द पकड़ लिया जाए। ये खबर भी पढ़ें… टाइगर 5 दिन में 3 बच्चों को खा गया; लखीमपुर में बंदूक लिए वनकर्मियों में भी खौफ, किसानों ने खेत जाना छोड़ा राजधानी लखनऊ से करीब डेढ़ सौ किलोमीटर दूर लखीमपुर जिले में 50 से ज्यादा गांवों में बाघ का खौफ है। बाघ 5 दिन के भीतर तीन बच्चों को खा गया। जब तक शोर मचता है, आदमखोर शिकार कर गन्ने के खेतों में कहां गायब हो जाता है, पता नहीं चलता। पूरी खबर पढ़ें… जिला- लखीमपुर खीरी, गांव- मूढ़ा जवाहर गांव, समय- रात 8 बजे गांव में जाने वाली सड़क के दोनों तरफ गन्ने के खेत हैं। सड़क किनारे झाड़ियां उगी हैं। इससे आधी सड़क ही चलने लायक दिखती है। गांव के एक छोर पर पूरी तरह सन्नाटा था। कोई भी बाहर नहीं दिख रहा था। हर कोई अपने घरों में कैद हो गया था। गांव के दूसरे छोर की तरफ जाने पर करीब 20 लोगों का एक ग्रुप दिखा। इनके हाथों में डंडे थे। ये बीच-बीच में पटाखे फोड़ रहे थे। पूछने पर बताया, यह इसलिए कर रहे ताकि बाघ गांव की तरफ न आए। इससे लोगों को भी सचेत कर रहे कि बाहर नहीं सोएं। घर के अंदर या फिर छत पर सोएं। यह गांव लखीमपुर खीरी जिले की गोला तहसील में पड़ता है। यहां कई बार बाघ देखा गया, इसलिए वन विभाग ने कैमरे लगा दिए। मचान बना दिए। पिंजरा रखकर बाघ को पकड़ने की कोशिश की जा रही।
यह डर सिर्फ मूढ़ा जवाहर गांव का नहीं, 50 गांवों में डर का माहौल है। बाघ डेढ़ महीने में 5 लोगों को अपना शिकार बना चुका है। हालात यह हो गए कि शाम होते ही लोग गांव से बाहर निकलना छोड़ देते हैं, 8 बजे तक घरों में कैद हो जाते हैं। बाघ से बचाव के लिए गांव वालों और वन-विभाग की क्या तैयारियां हैं? विभाग की बाघ पकड़ने की कोशिशों को लेकर गांव वालों का क्या कहना है? क्या इसका कोई असर हुआ? इस रिपोर्ट में पढ़िए… गांव के अनूप यादव कहते हैं- हमारा बच्चा 12वीं में पढ़ता है। उसका 5 किमी दूर स्कूल है। जब तक वह स्कूल से आ नहीं जाता, चिंता लगी रहती है। खाना तक ठीक ढंग से नहीं खा पा रहे। सिर्फ मैं नहीं, पूरे क्षेत्र में लोग बाघ के हमले से डर रहे हैं। पहले तो वन विभाग यहां रहता भी था, लेकिन अब दूसरी जगह हमला हुआ तो वह भी चले गए। बाघ के डर से लोग काम पर नहीं जा रहे, बच्चों को स्कूल जाना भी बंद
इसी गांव में हमारी मुलाकात अवधेश से हुई। वह बाघ को लेकर परेशान हैं। कहते हैं- मेरे दो बच्चे हैं। दोनों यहां से 5 किलोमीटर दूर गोला में पढ़ते हैं। हम उनकी 2 हजार रुपए महीने की फीस जमा करते हैं, लेकिन दोनों स्कूल नहीं जा पा रहे। स्कूल में कहते हैं, फीस भरिए। अब आखिर हम कहां से भरें फीस? हम तो काम पर ही नहीं जा पा रहे, पैसा कैसे आएगा? हम लोग पटाखा फोड़कर खुद को किसी तरह से बचाए हैं। गांव वालों का आरोप- वन विभाग बाघ को पकड़ने की कोशिश नहीं कर रहा
इसी गांव के नंदलाल भार्गव कहते हैं- 15 दिन में हमारे इलाके में दो लोगों को बाघ ने मार डाला। इससे डर कुछ ऐसा है कि लोग मार्केट तक नहीं जा पा रहे। जानवरों के लिए चारा तक नहीं ला पा रहे। रातभर लोग अलग-अलग जगहों पर बैठकर पहरा दे रहे। मशालें जलाते हैं। जो बाघ हमला कर रहा है, वह यहां दो साल से है। गांव के कई लोगों ने इसे देखा, लेकिन वन विभाग पकड़ने की कोशिश नहीं कर रहा। वकील सुचेंद्र कुमार मिश्रा कहते हैं- पास के दो गांव में दो लोगों को बाघ खा गया। दोनों बेहद गरीब परिवार से हैं। आप बताइए, उनका परिवार कैसे चलेगा। बहुत बुरी स्थिति है। हमारे तो गांव के बाहर एक जो बाग है, वहां बाघ रहता है। ये सूचना हम लोगों ने वन विभाग को भी दी, लेकिन उसके कर्मचारी भी वहां जाने से बचने लगे हैं। वन मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक पकड़ने का आदेश देते हैं, लेकिन यहां कोई ठोस कदम नहीं उठाना चाहता। जगह- अजान गांव, समय- रात के 11 बजे गांव वालों का दावा- विभाग पकड़ने की जगह बाघ को खाना दे रहा
रात के करीब 11 बजे हम अजान गांव पहुंचे। पूरे गांव में सन्नाटा था। कोई भी घर के बाहर नजर नहीं आया। यहां हमें घर के बाहर श्रीकृष्ण वर्मा मिले। वह कहते हैं- हमारे पूरे गांव में इस बात की चर्चा है कि वन विभाग बाघ को पकड़ना ही नहीं चाहता। वह तो बाघ के भोजन का प्रबंध कर रहा है। यह सुनने में अजीब लगा, हमने पूछा- कैसे? श्रीकृष्ण कहते हैं- इन लोगों ने आबादी से दूर गन्ने के खेतों के बीच पिंजरा लगाया है। वहां ये पड्डा यानी भैंस का बच्चा ले जाकर बांधते हैं। इस दौरान गांव के किसी व्यक्ति को नहीं ले जाते। कल ही जो पड्डा लगाया, उसे बाघ खा गया। अब अगर पिंजरा है, तो उसके अंदर क्यों नहीं बांधते? अगर उसके अंदर बांधा जाए तो बाघ को आसानी से पकड़ा जा सकता है, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा। उस खौफ की कहानी जब लोगों का बाघ से सामना हुआ- बाघ का बच्चा देखा तो साइकिल उल्टा मोड़ा और जान बचाकर भागा
क्षेत्र के अनीश अहमद बताते हैं- मैं रपटा पुल की तरफ जा रहा था। मैंने देखा, वहीं सामने बाघ का बच्चा खड़ा था। मेरे होश उड़ गए। कुछ समझ ही नहीं आया। अचानक मैंने साइकिल घुमाई। वहां से जितनी तेज हो सकता है, उतनी तेज भगाकर अपनी जान बचाई। मैंने वहां तो एक ही बच्चा देखा, लेकिन संभव है कि वहां बाघिन और उसका दूसरा भी बच्चा हो। इस घटना के बाद मैं उधर कभी अकेले नहीं गया। बाघ को अक्सर गन्ने के खेतों से आते-जाते देखा
हम मूढ़ा अस्सी गांव पहुंचे। इसी गांव में पिछले हफ्ते जाकिर को गन्ना बांधते वक्त बाघ ने अपना शिकार बनाया था। यहां के शिवाजी वर्मा बताते हैं- हमने कई बार बाघ देखा। वह अक्सर गन्ने के खेतों से होकर आता-जाता रहता है। अब हमारे गांव में उसने शिकार कर लिया, इसलिए यहां लोगों में जबरदस्त डर है। लोग अपने गन्ने के खेतों में नहीं जा पा रहे। गन्ने को नहीं बांधने से सब गिरता जा रहा। एक बाघ के चलते किसानों का बहुत नुकसान हो रहा। इसी गांव के पितंबर कहते हैं- हमने अपने जीवन में बाघ को लेकर इतना डर नहीं देखा। 25 साल पहले भी बाघ आया था। उस वक्त एक व्यक्ति मेरे गांव का दूसरा बगल वाले गांव का खा गया था। लेकिन उस वक्त इतना डर नहीं लगा, जितना आज लग रहा। कोई भी व्यक्ति आज बाहर नहीं जा रहा। वन विभाग यहां बाघ पकड़ने नहीं, उसे सुरक्षा देने आता है। शाम 4 बजे के बाद कोई गांव से बाहर नहीं जा रहा
हम दो दिन में करीब 20 गांवों में गए। इन सभी गांव के हालात एक जैसे दिखे। शाम को 4 बजे के बाद कोई भी व्यक्ति गांव से बाहर अकेले नहीं जाता। रात 8 बजे तक घर के बच्चों को घरों में कैद कर दिया जाता है। हर दो घंटे पर पटाखे फोड़े जा रहे। लाठी-डंडों के साथ लोग समूह में बैठे दिखे। कुछ तो दबी जुबान में यह भी कहते हैं कि अगर हमें लिखित आदेश मिल जाए तो हम बाघ को पकड़ लें, चाहे जिंदा पकड़ें या फिर मुर्दा। DFO बोले- बाघ रॉयल जानवर, वह पिंजरे में नहीं जाता
गांव वालों के आरोप पर DFO संजय बिस्वाल कहते हैं- यह सही है कि हम लोग पड्डे को पिंजरे के बाहर बांधते हैं, लेकिन एक पड्डा पिंजरे के अंदर भी होता है। असल में बाघ रॉयल जानवर है, वह पिंजरे में नहीं जाता। हमारी कोशिश होती है, पड्डे के जरिए उसे उस जगह दोबारा बुलाया जाए। फिर जब वह आराम से बैठकर खाए तो हम उसे ट्रेंकुलाइज (बेहोश) करें। अगर वह भाग रहा होगा, तो हम उसे बेहोश नहीं कर सकते। वह बताते हैं- बाघ अपने शिकार को मारकर एक बार में नहीं खाता। वह दोबारा खाने के लिए आता है। दुधवा टाइगर रिजर्व लेकर बाहर से यहां टाइगर को पकड़ने के लिए टीमें काम कर रही हैं। ऐसे में गांव वालों में इस बात को लेकर कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि प्रशासन बाघ को पकड़ना नहीं चाहता। बाघ को पकड़ने के लिए प्रशासन की तैयारियां DFO ने कहा- गन्ने के खेतों की वजह से बाघ पकड़ने में आ रही दिक्कत
हमने वन विभाग के इंतजाम को लेकर डिस्ट्रिक्ट फॉरेस्ट ऑफिसर (DFO) संजय कुमार बिस्वाल से बात की। वह बताते हैं- हमारी टीम बाघ को पकड़ने की लगातार कोशिश कर रही है। हमने इलाके में 40 कैमरे लगाए हैं। दो ड्रोन के जरिए निगरानी कर रहे हैं। बाघ अगर दिखता है, तो उसे ट्रेंकुलाइज करने के लिए दो डॉक्टर लगे हैं। इसके अलावा वन विभाग के तमाम कर्मचारी लगे हैं। हमने पूछा, बाघ पकड़ने में दिक्कत कहां आ रही? DFO कहते हैं- आपने देखा होगा कि पूरे इलाका गन्ने की फसल से भरा हुआ है। कई-कई किलोमीटर तक सिर्फ गन्ना दिखता है। जब भी सर्च अभियान चलता है, बाघ इन्हीं गन्नों के सहारे भाग जाता है या फिर कहीं छिप जाता है। वह ड्रोन में नहीं आ पा रहा। DFO आगे बताते हैं- जिन जगहों पर बाघ बार-बार देखा जा रहा, हमने उन जगहों पर पिंजरा लगाया है। वहां मचान बनाई जा रही, ताकि बाघ को ट्रेंकुलाइज किया जा सके। बाकी रात में कोई सर्च अभियान नहीं चल रहा। लोगों को जागरूक कर रहे कि रात में घर के बाहर न निकलें। हमारी कोशिश है कि बाघ जल्द से जल्द पकड़ लिया जाए। ये खबर भी पढ़ें… टाइगर 5 दिन में 3 बच्चों को खा गया; लखीमपुर में बंदूक लिए वनकर्मियों में भी खौफ, किसानों ने खेत जाना छोड़ा राजधानी लखनऊ से करीब डेढ़ सौ किलोमीटर दूर लखीमपुर जिले में 50 से ज्यादा गांवों में बाघ का खौफ है। बाघ 5 दिन के भीतर तीन बच्चों को खा गया। जब तक शोर मचता है, आदमखोर शिकार कर गन्ने के खेतों में कहां गायब हो जाता है, पता नहीं चलता। पूरी खबर पढ़ें… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर