यूपी में सातवें फेज की 5 सीट पर कड़ी टक्कर:भाजपा 6 सीट पर सेफ, गाजीपुर में अफजाल मजबूत; बांसगांव में कांग्रेस का ‘खेला’ पूर्वांचल में सातवें फेज के चुनाव में 13 सीटें हैं। इन पर हवा का रुख देखें, तो 5 सीटों पर भाजपा को इंडी गठबंधन से कड़ी टक्कर मिल रही। 6 सीटों पर भाजपा बढ़त में है। 1-1 सीट पर सपा और कांग्रेस सेफ दिख रही हैं। ये सीटें हैं, बांसगांव और गाजीपुर। चुनाव का आखिरी फेज हाईप्रोफाइल चेहरों का है। ये कैंडिडेट PM नरेंद्र मोदी, अनुप्रिया पटेल, रवि किशन, महेंद्र नाथ पांडे और अफजाल अंसारी हैं। इनमें वाराणसी, गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर, सलेमपुर की सियासी रेस में भाजपा इंडी गठबंधन के मुकाबले काफी आगे दिख रही है। गाजीपुर में सपा के अफजाल अंसारी को मुख्तार की मौत के बाद सहानुभूति मिल रही है। घोसी सीट NDA गठबंधन कोटे में सुभासपा के पास है, ओपी राजभर के बेटे अरविंद राजभर सियासी मैदान में हैं। उनके सामने भाजपा का वोट सहेजने का चैलेंज है। बलिया में पूर्व PM चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर भाजपा कैंडिडेट हैं। उन्हें सपा के सनातन पांडे से कड़ी टक्कर है। वह पिछला चुनाव सिर्फ 15 हजार वोट से हारे थे। वह राजभर, भूमिहार वोट में सेंधमारी कर रहे हैं। अपना दल (एस) के प्रभाव वाली मिर्जापुर और रॉबर्ट्सगंज सीट पर NDA गठबंधन मजबूत है। महराजगंज में 6 बार चुनाव जीतने वाले भाजपा के पंकज चौधरी के पक्ष में हवा नहीं दिख रही है। लोगों का झुकाव I.N.D.I गठबंधन की तरफ ज्यादा है। बांसगांव में लोग सीटिंग भाजपा सांसद से खफा हैं, इसलिए सपा फाइट में है। 2019 के चुनाव में गाजीपुर और घोसी सीट बसपा ने जीती थी, जबकि मिर्जापुर और रॉबर्ट्सगंज सीट NDA गठबंधन की पार्टी अपना दल के पाले में गई थी। भाजपा 9 सीटों पर जीती थी। इनमें से 2024 के चुनाव में चंदौली और बलिया सीट पर भाजपा को फाइट का सामना करना पड़ रहा है। ग्राफिक्स में जातिगत समीकरण समझिए… पब्लिक और एक्सपर्ट से बात करके 3 बातें समझ में आती हैं… सबसे पहले गोरखपुर की हवा…
छात्र बोले- बदलाव जरूरी
गोरखपुर यूनिवर्सिटी पर पहुंचते ही छात्रों की भीड़ दिखी। चुनावी माहौल पर छात्र पीयूष पांडेय ने कहा- चुनाव में पढ़े-लिखे प्रत्याशी को वोट करेंगे। भाजपा सरकार में गुंडा राज तो जरूर खत्म हुआ है, लेकिन अब पुलिसराज आ गया है। पुलिस खुद ही मुकदमा लिख देती है, किसी का भी एनकाउंटर हो जाता है। नौकरी-रोजगार की बात करने वाले को वोट करेंगे। विश्वविद्यालयों में कांट्रैक्ट बेस पर टीचर रखे जा रहे हैं। जिससे कि छात्रों का भविष्य खराब हो रहा है। शिवम का कहना है- जो भी नौकरी, रोजगार, महिला सुरक्षा की बात करेगा हम लोग उसी को वोट देंगे। लंबे समय से एक ही सरकार है। अब इसमें बदलाव की जरूरत है। सरकारी संस्थाओं का पूरी तरह से प्राइवेटाइजेशन किया जा रहा है। ऐसे में यहां अब बदलाव बहुत जरूरी है। पॉलिटिकल एक्सपर्ट गोरक्षनाथ पीठ और भाजपा फैक्टर के अलावा गोरखपुर में क्या चल रहा है?
वरिष्ठ पत्रकार सुशील कुमार वर्मा बताते हैं- गोरखपुर सीट पर लंबे समय से भाजपा का ही सांसद रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद लगातार 5 बार यहां से सांसद चुने जा चुके हैं। उनके बाद रवि किशन यहां सांसद बनें। सिर्फ लोकसभा ही नहीं, किसी भी चुनाव में यहां बात कुछ भी की जाए लेकिन वोट सिर्फ गोरखनाथ मंदिर और योगी आदित्यनाथ के नाम पर पड़ते हैं। ऐसे में इस बार भी भाजपा की गठबंधन प्रत्याशी से टक्कर तो जरूर है, लेकिन भाजपा की सीट पूरी तरह सुरक्षित नजर आ रही है। क्या गोरखपुर सीट पर काम करेगा जातीय समीकरण?
रिटायर्ड प्रवक्ता डॉ. सीपी चंद का कहना है- गोरखपुर सीट पर मुस्लिम 10%, जनरल 31%, दलित 12%, OBC 45% और 2% अन्य जातियों के मतदाता हैं। लेकिन, यहां के चुनावी फैक्टर में कभी भी जातीय समीकरण काम नहीं करते। यह शुरू से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गढ़ और भाजपा की सेफ सीट रही है। ऐसे में जातीय समीकरण को देखकर यहां कभी भी हार-जीत का अनुमान नहीं लगाया जा सकता। बांसगांव में लोग भाजपा कैंडिडेट से खुश नहीं
बांसगांव चौराहे पर पहुंचते ही हमें सोनू यादव मिले। उनका कहना है- इस बार चुनाव में हिंदू-मुस्लिम या किसी धर्म का मुद्दा नहीं चलेगा। यहां 60% से ज्यादा युवा मतदाता हैं। सभी पढ़ें-लिखे हैं और खुद के लिए रोजगार तलाश रहे हैं। ऐसे में यहां इस बार का चुनावी मुद्दा हिंदू-मुस्लिम और धर्म-जाति नहीं बल्कि नौकरी, सेहत और शिक्षा है। इसी के आधार पर वोट दिया जाएगा। आर्मी के रिटायर्ड कैप्टन आरबी यादव कहते हैं- इस चुनाव में नौकरी, शिक्षा, सेहत और सुरक्षा पर कोई बात नहीं कर रहा। ऐसे में इस बार वोट उसी को दिया जाएगा, जो हमें बेकार के मुद्दों में ना उलझाए। बांसगांव क्षेत्र विकास से अभी कोसों दूर है। जबकि, गोरखपुर शहर में काफी अधिक विकास हुआ है। 50 किलोमीटर की दूरी पर विकास में आखिर इतना भेदभाव क्यों किया जा रहा है? पॉलिटिकल एक्सपर्ट
क्या बांसगांव में इंडी गठबंधन मजबूत चुनाव लड़ रहा है?
वरिष्ठ पत्रकार वशिष्ठ दुबे का कहना है- बांसगांव में कभी विकास नहीं हुआ। न ही कोई कंपनी है और न ही फैक्ट्रियां। मौजूदा सांसद कमलेश पासवान खुद भाजपा से हैं। आम मतदाता नाराज है। मैं व्यक्तिगत रूप से खुद ही भाजपा की नीतियों को पसंद नहीं करता हूं। लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लोग काफी पसंद करते हैं, क्योंकि वो कर्मठ व्यक्ति हैं। जबकि, उसी पार्टी के सांसद कमलेश पासवान अपना क्षेत्र डेवलप नहीं कर सके। इसलिए लोग उनसे नाराज हैं। महराजगंज में इंडी गठबंधन मजबूत
महराजगंज में बस स्टेशन के पास पहुंचते हमें विकास दुबे मिले। विकास व्यापारी हैं, वे कहते हैं- नोटबंदी के बाद से GST और कोविड ने मिडिल क्लास व्यापारियों की हालत खराब कर दी। छोटे व्यापारियों का व्यापार खत्म होता जा रहा है, सरकार फिर भी गंभीर नहीं हुई। हमारे सांसद 6 बार से जीत रहे हैं, वो वित्त राज्यमंत्री भी हैं। मगर किया कुछ नहीं। कुछ दूरी पर दुर्गा मंदिर के पास हमें स्थानीय निवासी सोनू सिंह मिले। सोनू का कहना है- इस बार चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा है कि युवा बेरोजगार हैं। महंगाई चरम पर है। यहां से 6 बार के सांसद पंकज चौधरी वित्त मंत्री तो हैं लेकिन इन्होंने अपने क्षेत्र के लिए कोई भी विकास का काम नहीं किया। वे खुद बताएं कि इतने दिनों में उन्होंने युवाओं के लिए क्या किया, युवाओं के लिए ऐसा कौन सा उद्योग-धंधा लगाया, जिसकी वजह से हम लोग उन्हें वोट करें। पॉलिटिकल एक्सपर्ट
चुनावी समीकरण किस तरफ इशारा कर रहे हैं?
सीनियर जर्नलिस्ट आकाश पांडेय बताते हैं- इस बार मोदी फैक्टर बिल्कुल नहीं दिख रहा। वोटर्स का रुझान गठबंधन की ओर है। हालांकि, मतदाताओं की नाराजगी भाजपा से नहीं, बल्कि सांसद से है। दरअसल सांसद कभी क्षेत्र में नहीं गए। जो लोग भाजपा सरकार के बांटे गए राशन या अन्य सरकारी सुविधाओं का फायदा पा चुके हैं, ऐसे लोग नाराजगी के बाद भी भाजपा को वोट देने की बात कर रहे हैं। काफी अधिक संख्या में यहां वोटर साइलेंट हैं। देवरिया में भाजपा सेफ, लोगों को डेवलपमेंट पंसद
कलेक्ट्रेट चौराहे पर पहुंचते ही हमें अभिषेक कुमार मिले। वह कहते हैं- देवरिया में इस बार भाजपा मजबूत है। पहले भी यहां से जो सांसद रहे हैं, वो भाजपा से ही रहे हैं। गठबंधन फाइट में जरूर है। मगर लोग मोदी के नाम पर वोट करेंगे। क्योंकि, वोटर्स को एक स्ट्रांग एडमिनिस्ट्रेटर चाहिए। ताकि, देश हित में बड़े और कड़े फैसले हो सकें। प्रधानमंत्री मोदी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह कड़े फैसले लेते वक्त भी अपना या पार्टी का फायदा-नुकसान नहीं सोचते हैं। संदीप कुमार वैश्य का कहना है- देवरिया में कांटे की लड़ाई चल रही है। एक वर्ग भाजपा के समर्थन में है तो दूसरा बड़ा वर्ग भाजपा के खिलाफ खड़ा है। दोनों पार्टियां अपनी-अपनी जोर आजमाइश कर रही हैं। अगर मुद्दों की बात की जाए तो इंडी गठबंधन के पक्ष में माहौल बना हुआ है। भाजपा के लगातार टैक्स, GST से व्यापारी वर्ग परेशान है। इसे लेकर नाराजगी भी है। चूंकि, देवरिया में ब्राह्मण वोटर की संख्या ज्यादा है। अगर जाति के आधार पर वोटिंग हुई तो हवा भाजपा के पक्ष में जाएगी। पॉलिटिकल एक्सपर्ट
देवरिया में क्या भाजपा फिर से सांसद बना पाएगी?
वरिष्ठ पत्रकार सौरभ उपाध्याय बताते हैं- देवरिया में 3 विधानसभा हैं। ये बांसगांव, सलेमपुर और देवरिया सदर है। देवरिया सदर में भाजपा लीड कर रही है। सलेमपुर में भाजपा को लेकर मतदाताओं में कुछ हद तक नाराजगी देखने को मिल रही है। लेकिन अनुमान है कि यहां भी भाजपा अपने पक्ष में माहौल बनाने में कामयाब हो सकती है। सबसे गड़बड़ स्थिति भाजपा की बांसगांव विधानसभा में है। अगर जातीय समीकरण की बात की जाए तो देवरिया सदर ब्राह्मण बहुल विधानसभा है। जबकि, सलेमपुर सामान्य है। बांसगांव विधानसभा के दो क्षेत्र रूद्रपुर और बरहज भी ब्राह्मण और यादव बाहुल्य हैं। यहां दोनों पार्टियों में कांटे की टक्कर है। भाटपार में स्थिति भाजपा की फंसी हुई दिख रही है। वाराणसी में बस पीएम मोदी की हवा, फिर भी अजय राय टक्कर में
वाराणसी कचहरी पर व्यवसायी चंद्र प्रकाश गुप्ता मिले। उन्होंने कहा- काशी में भाजपा की जीत ऐतिहासिक होगी। काशीवासी तो सीधे प्रधानमंत्री चुनते हैं, पिछली बार की तरह ही इस बार भाजपा के अलावा कोई लड़ाई में नहीं है। आज जनता जागरूक हो चुकी है, सब जानते हैं, कौन सही काम कर रहा है। यहां के सांसद फिर पीएम नरेंद्र मोदी होंगे। वकील सुभाष नंदन चतुर्वेदी कहते हैं- 2019 में ही 2024 की जीत तय हो गई थी, काशी में पीएम मोदी का काम बोल रहा है। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, रुद्राक्ष जैसे कई उदाहरण हैं। एडवोकेट अमित द्विवेदी कहते हैं- सांसद ने काशी से धोखा किया, काशी की संस्कृति पर हमला किया है। कॉरिडोर के नाम पर वटवृक्ष को काटा गया, इसका विरोध है। काशी के लोग 1 जून को अपनी बात कहेंगे। पॉलिटिकल एक्सपर्ट
वाराणसी में कांग्रेस के अजय राय कितनी फाइट में हैं?
राजनीतिक विशेषज्ञ राजेश गुप्ता ने कहा- चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी के होने से पूर्वांचल में फिजा बदल गई है। सभी प्रत्याशी मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ रहे हैं। वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अब तक की सबसे बड़ी जीत होने वाली है। वहीं गाजीपुर में पारस नाथ राय नए चेहरे हैं। लेकिन भाजपा ने पूरी ताकत लगा दी है, जिससे अफजाल के लिए मुश्किलें बढ़ी है। चंदौली में वीरेंद्र सिंह क्षत्रियों का बड़ा चेहरा हैं। लेकिन महेंद्र नाथ पांडे अपने विकास के बल पर जनता के बीच जा रहे हैं। गाजीपुर में मुख्तार फैक्टर, पारस नाथ राय टक्कर में
सिंचाई विभाग चौराहे पर मिले शशिकांत शर्मा ने कहा- भाजपा के नए प्रत्याशी से बदलाव आया है। गाजीपुर में 5 साल में जनता ने जनप्रतिनिधि होते हुए भी जनप्रतिनिधि नहीं होने का दंश झेला है। भाजपा के पास सभी लोगों का वोट है। निश्चित तौर पर यह पार्टी राष्ट्रीय पार्टी है। हम अपने इस प्रत्याशी को सदन में देखना चाहते हैं। विजय सिंह कहते हैं- गाजीपुर में कांटे की टक्कर है, परिणाम जो भी हो। गाजीपुर में पूरी लड़ाई सपा और भाजपा में नजर आ रही है। बसपा इसमें कहीं नहीं दिख रही है। पांच साल में सांसद ने कुछ नहीं किया, इसलिए जनता परिवर्तन करेगी। पॉलिटिकल एक्सपर्ट
गाजीपुर में क्या मुख्तार की मौत के बाद इंडी के लिए सियासी लड़ाई आसान हो गई है?
पॉलिटिकल एक्सपर्ट विनय सिंह बीनू कहते हैं- मुख्तार अंसारी की मौत के बाद अंसारी परिवार पहला चुनाव लड़ रहा है। सपा ने अफजाल को बसपा से बिना इस्तीफा दिए प्रत्याशी बनाया है। भाजपा और सपा के बीच टक्कर नजर आ रही है। पूरे समीकरण इन दोनों के आस-पास ही घूम रहे हैं। बसपा यहां सिर्फ लड़ाई में बने रहने के लिए चुनाव लड़ रही है। सांसद अफजाल अंसारी 2019 में बसपा-सपा गठबंधन के प्रत्याशी थे। उनके लिए वोट बैंक सहेजना आसान होगा, जबकि पारस नाथ राय नए प्रत्याशी हैं। इनके सामने सबसे बड़ी चुनौती 2019 में मनोज सिन्हा को मिले 4.46 लाख वोटों को पाना है। यही वोट उन्हें फाइट में ला सकते हैं। घोसी में सुभासपा-सपा में कड़ी फाइट, हार-जीत का मार्जिन कम रहेगा
मुन्ना दुबे कहते हैं- रुख तो भाजपा की ओर नजर आया, भाजपा पिछली बार से ज्यादा वोट पा रही है। इस बार मुख्तार के जाने के बाद कोई सहानुभूति नहीं है। पहले डर था, कुछ में अब भी डर होगा लेकिन यह सही है मुस्लिम भाजपा को वोट नहीं देंगे। मुस्लिम वोट सपा और बसपा में बंटेंगे। भाजपा का भरोसा ओबीसी और सवर्ण मतदाताओं पर है। अमानुल्लाह कहते हैं- अरविंद राजभर का चुनाव अच्छा है लेकिन मुस्लिम समुदाय दोनों ओर है। जो जिसको पसंद कर रहा है, उसको वोट दे रहा है। राजीव राय पहले भी लड़ चुके हैं, इसलिए लोग नए प्रत्याशी को चुनना चाहते हैं। पॉलिटिकल एक्सपर्ट घोसी सीट पर क्या राजभर वोटर निर्णायक भूमिका में दिखते हैं?
सीनियर जर्नलिस्ट अभिषेक सिंह बताते हैं- घोसी लोकसभा में पूरी लड़ाई त्रिकोणीय नजर आ रही है। सपा से प्रत्याशी राजीव राय फिर मैदान में हैं। यादव-मुस्लिम के अलावा ओबीसी वोट पर मजबूती से पकड़ बनाए हुए हैं। वहीं बसपा प्रत्याशी बालकृष्ण चौहान दलित और चौहान वोटर्स के बीच चुनाव प्रचार कर रहे हैं। सुभासपा के ओमप्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर कोर वोटर्स के सहारे यह चुनाव जीतना चाहते हैं। बलिया में भाजपा को सपा से कड़ी टक्कर, हार-जीत का मार्जिन कम रहेगा
बलिया पहुंचने के बाद हमारी मुलाकात मान सिंह से हुई। वह कहते हैं- बलिया का इतिहास शानदार रहा है। मंगल पांडे, पूर्व पीएम चंद्रशेखर, जय प्रकाश नारायण समेत कई पुरोधा हैं, जिन पर बलिया को गर्व है। बलिया नेताओं का जिला है, नौटंकीबाजों का जिला नहीं है। ग्रामीण इलाकों अग्निवीर बड़ा मुद्दा है, सरकार का विरोध नजर आ रहा है। अग्निवीर को शहीद का दर्जा नहीं मिलेगा लेकिन चार साल की ट्रेनिंग के बाद आने वाले बेरोजगार होकर समाज में घूमेंगे। पॉलिटिकल एक्सपर्ट क्या बलिया में जातिगत समीकरण सपा की तरफ जाते दिख रहा है?
पॉलिटिकल एक्सपर्ट डा. शिव कुमार कौशिक कहते हैं- बलिया में सपा और भाजपा के बीच चुनावी जंग में माहौल हर दिन बदल रहा है। सपा ने ब्राह्मण चेहरे के तौर पर पूर्व मंत्री सनातन पांडेय पर दांव लगाया है। भाजपा के उम्मीदवार पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर हैं। दोनों में कांटे की टक्कर है। बसपा ने लल्लन यादव को उतारा है, लेकिन वह फाइट में नहीं हैं। बलिया के जातिगत समीकरण सपा की ओर हैं, उन्हें सवर्ण के साथ यादव समेत गैर OBC वोट मिल रहा है। भाजपा के पास अपने वोट को सहेजने की चुनौती है। कुशीनगर में लोग नाराज, एक्सपर्ट बोले- भाजपा सेफ
कुशीनगर के सुभाष चौक पर हमें व्यापारी सैयद अंसारी मिले। सैयद कहते हैं- महंगाई और बेरोजगारी हावी है। हिंदू-मुस्लिम और मंदिर-मस्जिद से न ही किसी का पेट भरेगा और न ही बीमारों का इलाज होगा। इन बातों को देखते हुए कुशीनगर की जनता इस बार बदलाव के मूड में आ चुकी है। इस बार भाजपा प्रत्याशी संघर्ष करते हुए नजर आ रहे हैं। अजय कुशवाहा कहते हैं- कुशीनगर की जनता भाजपा के जुमलों को अच्छी तरह समझ चुकी है। 2014 में मोदी का किया हुआ वादा पूरी तरह से जुमला साबित हुआ है। उन्होंने कुशीनगर में 100 दिनों में मिल चलवाने का वादा किया था, जो आज तक नहीं चल सका। पॉलिटिकल एक्सपर्ट कुशीनगर में जातिगत समीकरण किसके पक्ष में दिख रहा है?
सीनियर जर्नलिस्ट राकेश कुमार गौड़ बताते हैं- अभी जो माहौल दिख रहा है, उसके मुताबिक भाजपा और इंडी गठबंधन में कांटे की टक्कर दिख रही है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कुशीनगर में हुई अखिलेश यादव की जनसभा में जिस तरह की भीड़ दिखाई दी, वो चौंकाने वाली थी। जबकि, अब तक यहां भाजपा के भी कई बड़े नेताओं ने सभा की है। लेकिन, उनकी सभाओं में भीड़ जुटाने के बाद भी यह स्थिति देखने को नहीं मिली। अगर जातीय समीकरण की बात की जाए तो यहां से 3 बार स्वामी प्रसाद मौर्य भी विधायक रह चुके हैं। यहां कुशवाहा बिरादरी के वोट भी ज्यादा हैं। ऐसे में स्वामी प्रसाद मौर्य का वोट भी इंडी गठबंधन को जाता हुआ दिख रहा है। सैंथवार समाज के लोग भी भाजपा से नाराज हैं और इनका वोट भी इंडी गठबंधन को जाता हुआ दिख रहा है। सलेमपुर में लोग भाजपा से नाराज, एक्सपर्ट ने कहा- भाजपा ही जीत रही
सलेमपुर कस्बे में पहुंचने पर हमें पीयूष तिवारी मिले। पीयूष प्राइवेट जॉब करते हैं। वे कहते हैं- यहां माहौल पूरी तरह से भाजपा के पक्ष में है। यह इलाका पहले काफी पिछड़ा हुआ था। बिहार सीमा होने की वजह से यहां मूलभूत सुविधाएं भी नहीं थीं। लेकिन, अब यहां की सड़कें अच्छी हो गई हैं। डेवलपमेंट काफी तेजी से हो रहा है। ऐसे में इस बार यहां के लोग विकास के नाम पर भाजपा को चुनने का फैसला करेंगे। पॉलिटिकल एक्सपर्ट क्या सलेमपुर में सियासी हवा भाजपा के खिलाफ बह रही है?
वरिष्ठ पत्रकार संजय चाणक्य बताते हैं- यहां भाजपा और गठबंधन में कांटे की टक्कर चल रही है। चुनाव में लोकल मुद्दे नहीं हैं, नेशनल मुद्दों पर ही बात हो रही है। भाजपा के लिए पब्लिक में नाराजगी है। अब तक माहौल को देखा जाए तो यहां इंडी गठबंधन ही आगे चल रहा है। लेकिन जानकारों का ऐसा अनुमान है कि आखिरी समय में कम अंतर से ही सही लेकिन भाजपा प्रत्याशी ही जीत हासिल करेगा। अच्छा माहौल होते हुए भी इंडी गठबंधन के प्रत्याशी की जीत का दावा नहीं किया जा सकता है। चंदौली में भाजपा को सपा से फाइट मिल रही
चंदौली में हमारी मुलाकात सर्वेश पांडेय से हुई। वह कहते हैं- चंदौली में एक ओर हिंदुत्व है तो दूसरी तरफ रोजगार की बात हो रही है। नौजवानों में सरकार के खिलाफ आक्रोश है। पेपर लीक का मुद्दा हावी है। सेना भर्ती समेत बाकी तैयारियों की कोचिंग करने वाले छात्र भी सरकार को कोस रहे हैं। मोहम्मद रहमान कहते हैं- मुस्लिम का रुझान सपा की ओर है। कौम ने अधिकतम मतदान करने की अपील की है। गैर यादव ओबीसी वोट भी सपा को जा रहा है। हालांकि कुछ तबका भाजपा के साथ है। वहीं बसपा को मुस्लिम फाइट में नहीं मान रहे हैं। पॉलिटिकल एक्सपर्ट चंदौली में सपा कितनी मजबूती से चुनाव लड़ रही है?
पॉलिटिकल एक्सपर्ट धनंजय सिंह कहते हैं- महेंद्र नाथ पांडे के साथ जनता ने मोदी का चेहरा देखा तो जीत तय है। फिर भी उनकी दिल्ली की राह जटिल होगी। सपा प्रत्याशी वीरेंद्र सिंह सपा कार्यकाल के कामों को गिना रहे हैं, एक साल से जमीन पर चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा के मंत्रियों और नेताओं ने चंदौली का दौरा करके जरूर माहौल बदला है, फिर भी कड़ी टक्कर मिल रही है। मिर्जापुर में अनुप्रिया की तरफ सियासी हवा
मिर्जापुर में हमें मवैया गांव के राम सजीवन मिले। कहते हैं- 45 साल से मवैया गांव में चकबंदी नहीं हो सकी। किसान परेशान हैं। चाय की दुकान पर बैठे मुस्तफा कहते हैं- सपा का पलड़ा भारी लग रहा है। 10 साल से सांसद व केंद्रीय मंत्री ने कोई काम नहीं किया। इस बार इंडी गठबंधन के प्रत्याशी की जीत की संभावना ज्यादा है। पुरोहित रविश त्रिपाठी कहते हैं- मिर्जापुर के लोग अनुप्रिया पटेल के खिलाफ वोट देने जा रहे हैं। गंगा नदी के किनारे बसे शहर में तट से 200 मीटर तक निर्माण पर रोक लगा दिया गया। उन्होंने जन समस्याओं पर कभी ध्यान नहीं दिया। लिहाजा जो कुछ केंद्र और प्रदेश सरकार की झोली से कई जिलों को मिला, वही इस जिले को भी नसीब हुआ। पॉलिटिकल एक्सपर्ट जिले में चुनावी माहौल क्या है?
सीनियर जर्नलिस्ट सलिल पांडेय कहते हैं- 10 साल से NDA गठबंधन में शामिल अपना दल (एस) की अनुप्रिया पटेल सांसद के साथ ही केंद्रीय मंत्री हैं। अलग-अलग समाज में अनुप्रिया पटेल के खिलाफ बगावत के चलते हैट्रिक लगाने की मंशा पर ब्रेक लग सकता है। वर्तमान में केंद्र सरकार की योजनाओं का असर भी यहां देखा जा रहा है। मनमोहन कहते हैं- तमाम सरकारी योजनाओं का फायदा लोगों को मिला है। उसका असर पड़ना तय है। एक्सपर्ट सलिल पांडेय कहते हैं- सपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। सबका अपना कैडर वोट है, भाजपा का अपना। दोनों पार्टियों में कांटे की टक्कर है। समझौते के तहत अपना दल को सीट दिए जाने से लोकल भाजपा नेता नाराज हैं। उन्हें लगता है कि अनुप्रिया जीतती रहीं, तो उनकी बारी नहीं आएगी। अब 2014 या 2019 जैसा माहौल नहीं है। रॉबर्ट्सगंज में भाजपा को INDI से टक्कर
लोकसभा सीट पर हमारी मुलाकात आनंद पिंकू से हुई। वह कहते हैं- यहां सांसद भाजपा का ही बनेगा। ये पिछड़ा इलाका है, यहां भाजपा सरकार में काम हुए हैं। लोग वोट करते वक्त इसको ध्यान में रखेंगे। कुछ दूरी पर जूस की दुकान लगाने वाले जुगनू गुप्ता कहते हैं- पिछड़े इलाके में भी डेवलपमेंट हुए हैं। ये काम दिखते हैं। 2017 से पहले की और आज की तस्वीरें अलग-अलग है। इसलिए यहां भाजपा आगे चल रही है। पॉलिटिकल एक्सपर्ट रॉबर्ट्सगंज में चुनावी माहौल क्या है?
सीनियर जर्नलिस्ट सुनील तिवारी ने कहा- पिछले चुनाव में सपा से गठबंधन के चलते गायब रही बसपा ने अबकी धनेश्वर गौतम पर दांव लगाया है। लेकिन ‘हाथी’ का प्रभाव कम ही दिखाई दे रहा है। क्षेत्र के दुर्गम इलाकों में भी ‘मोदी के मुफ्त राशन’ का असर तो खूब है। लेकिन मैदान में भाजपा के नहीं होने से लोगों में अपना दल (एस) के प्रति उत्साह कम दिखा। मुख्य लड़ाई सपा की ‘साइकिल’ और अपना दल (एस) के बीच ही है। ‘कमल’ न होने से सपा-कांग्रेस गठबंधन को अपनी जीत की राह आसान दिख रही है। लेकिन जिस तरह से मिर्जापुर की चुनावी जनसभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपना नाता जोड़ते हुए सिर्फ सांसद ही नहीं पीएम चुनने की बात कही, उससे अब सपा की चुनौती बढ़ती दिख रही है।