कानपुर में रावण का एक ऐसा मंदिर है, जो पूरे उत्तर भारत में कहीं नहीं है। शिवाला स्थित लंकेश का दशानन मंदिर सिर्फ आज के दिन यानि विजयादशमी के दिन ही खोला जाता है। भोर पहर में ही मंदिर का ताला खोलकर साफ-सफाई के साथ ही पूजा-अर्चना शुरू होती है। चढ़ाया जाता है तरोई का फूल
मंदिर के पुजारी ने बताया कि रावण को पीली चीजें बहुत पसंद थी, इसलिए उन्हें तरोई का पीला फूल विशेष तौर पर चढ़ाया जाता है। साथ ही सरसों के तेल का दीपक ही उन्हें अर्पित किया जाता है। सुबह मंदिर खोलने के साथ ही दशानन का जन्मदिन भी मनाया जाता है। पुजारी बोले- प्रभु रावण से बड़ा विद्वान कोई नहीं
दशानन मंदिर के पुजारी पंडित राम बाजपेई ने बनाया कि करीब 200 साल मूर्ति स्थापना के हो गए हैं। जयपुर से खास दशानन की मूर्ति को लाया गया था। लोग कहते हैं कि पूरे देश में रावण जलाया जाता है, हम पूजते हैं। तो हम सभी रावण की विद्वानता की पूजा करते हैं। ये विद्धान पंडित हुआ करते थे। जो 9 ग्रहों को अपने वश में कर सकता था। उससे बड़ा पंडित कोई नहीं हो सकता है। प्रभु रावण के अहंकार का पुतला दहन करते हैं। जो दर्शन करने आते हैं वो प्रभु रावण से उनके जैसी बुद्धि और विद्या मांगने आते हैं। भक्त यहां सरसों के तेल का दीपक और तरोई के फूल को चढ़ाते हैं और अपनी मान्यता मांगते हैं। साल में सिर्फ विजयादशमी के दिन ही मंदिर खोला जाता है। सुबह रावण का मनाते हैं जन्मदिन
पुजारी आगे बताते हैं कि पुराणों के मुताबिक अश्विनी मास शुक्ल पक्ष की दशमी को इनका जन्म भी हुआ था। प्रात:काल मंदिर खोलकर दूध, दही, घी, शक्कर से स्नान कराते हैं। भोग लगाते हैं और महाआरती की जाती है। पूरे दिन दर्शन के बाद रावण दहन होने के बाद पूरे साल के लिए मंदिर को फिर बंद कर दिया जाता है। यहां छात्र बड़ी संख्या में आते हैं और भक्तों में 60 फीसदी छात्र होते हैं। प्रहरी के तौर पर स्थापित हैं रावण
भक्त संतोष पाठक कहते हैं कि हम लोग बचपन से इस मंदिर में आते हैं। सुबह से ही बड़ी संख्या में लोग दर्शन के लिए आते हैं। बड़ी संख्या में छात्र यहां रावण के दर्शन के लिए आते हैं और अपने विद्या, धन, बल, बुद्धि मांगते हैं। यहां पर रावण को कैलाश मंदिर, मां छिन्नमस्तिका और राधा-कृष्ण मंदिर के प्रहरी के तौर पर रावण को स्थापित किया गया है। दूर-दूर से दर्शन के लिए पहुंचते हैं भक्त
शिवाला के स्थानीय निवासी सुरेंद्र शुक्ला कहते हैं कि दशानन के दर्शन के लिए बड़ी दूर-दूर से यहां लोग दर्शन करने आते हैं। रावण बुराई का प्रतीक रहा। ब्राह्मण के अलावा इनकी ज्ञान को पूजते हैं, बल्कि अहंकार को नहीं पूजते हैं। कैलाश मंदिर में सभी भगवान विराजमान
मुकेश पांडेय बताते हैं कि रावण ब्रह्म जीव हैं। भले ही राम आए, लेकिन राम के साथ रावण का भी नाम लिया जाता है। यहां बड़ी संख्या में लोग दर्शन के लिए आते हैं। उन्नाव के रहने वाले शुक्ला परिवार द्वारा इनको स्थापित कराया गया था। कैलाश मंदिर में 56 करोड़ देवी-देवता विराजमान हैं, इनको भी स्थापित किया गया है। अब बात मंदिर से जुड़ी पुरानी मान्यताओं की…
इस मंदिर का निर्माण करीब 200 साल पहले महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने कराया था। इस मंदिर को बनाने के पीछे कई धार्मिक तर्क भी हैं। कहते हैं कि रावण बहुत विद्वान था और भगवान शिव का परम भक्त भी, भोले बाबा को खुश करने के लिए मां छिन्नमस्तिका देवी की रावण आराधना करता था। मां ने पूजा से प्रसन्न होकर रावण को यह वरदान दिया था कि उनकी पूजा सफल तभी होगी जब श्रद्धालु रावण की पहले पूजा करेंगे। कहते हैं कि शिवाला में 1868 में किसी राजा ने मां छिन्नमस्तिका का मंदिर बनवाया था। यहां रावण की एक मूर्ति भी प्रहरी के रूप में स्थापित की गई। कानपुर में रावण का एक ऐसा मंदिर है, जो पूरे उत्तर भारत में कहीं नहीं है। शिवाला स्थित लंकेश का दशानन मंदिर सिर्फ आज के दिन यानि विजयादशमी के दिन ही खोला जाता है। भोर पहर में ही मंदिर का ताला खोलकर साफ-सफाई के साथ ही पूजा-अर्चना शुरू होती है। चढ़ाया जाता है तरोई का फूल
मंदिर के पुजारी ने बताया कि रावण को पीली चीजें बहुत पसंद थी, इसलिए उन्हें तरोई का पीला फूल विशेष तौर पर चढ़ाया जाता है। साथ ही सरसों के तेल का दीपक ही उन्हें अर्पित किया जाता है। सुबह मंदिर खोलने के साथ ही दशानन का जन्मदिन भी मनाया जाता है। पुजारी बोले- प्रभु रावण से बड़ा विद्वान कोई नहीं
दशानन मंदिर के पुजारी पंडित राम बाजपेई ने बनाया कि करीब 200 साल मूर्ति स्थापना के हो गए हैं। जयपुर से खास दशानन की मूर्ति को लाया गया था। लोग कहते हैं कि पूरे देश में रावण जलाया जाता है, हम पूजते हैं। तो हम सभी रावण की विद्वानता की पूजा करते हैं। ये विद्धान पंडित हुआ करते थे। जो 9 ग्रहों को अपने वश में कर सकता था। उससे बड़ा पंडित कोई नहीं हो सकता है। प्रभु रावण के अहंकार का पुतला दहन करते हैं। जो दर्शन करने आते हैं वो प्रभु रावण से उनके जैसी बुद्धि और विद्या मांगने आते हैं। भक्त यहां सरसों के तेल का दीपक और तरोई के फूल को चढ़ाते हैं और अपनी मान्यता मांगते हैं। साल में सिर्फ विजयादशमी के दिन ही मंदिर खोला जाता है। सुबह रावण का मनाते हैं जन्मदिन
पुजारी आगे बताते हैं कि पुराणों के मुताबिक अश्विनी मास शुक्ल पक्ष की दशमी को इनका जन्म भी हुआ था। प्रात:काल मंदिर खोलकर दूध, दही, घी, शक्कर से स्नान कराते हैं। भोग लगाते हैं और महाआरती की जाती है। पूरे दिन दर्शन के बाद रावण दहन होने के बाद पूरे साल के लिए मंदिर को फिर बंद कर दिया जाता है। यहां छात्र बड़ी संख्या में आते हैं और भक्तों में 60 फीसदी छात्र होते हैं। प्रहरी के तौर पर स्थापित हैं रावण
भक्त संतोष पाठक कहते हैं कि हम लोग बचपन से इस मंदिर में आते हैं। सुबह से ही बड़ी संख्या में लोग दर्शन के लिए आते हैं। बड़ी संख्या में छात्र यहां रावण के दर्शन के लिए आते हैं और अपने विद्या, धन, बल, बुद्धि मांगते हैं। यहां पर रावण को कैलाश मंदिर, मां छिन्नमस्तिका और राधा-कृष्ण मंदिर के प्रहरी के तौर पर रावण को स्थापित किया गया है। दूर-दूर से दर्शन के लिए पहुंचते हैं भक्त
शिवाला के स्थानीय निवासी सुरेंद्र शुक्ला कहते हैं कि दशानन के दर्शन के लिए बड़ी दूर-दूर से यहां लोग दर्शन करने आते हैं। रावण बुराई का प्रतीक रहा। ब्राह्मण के अलावा इनकी ज्ञान को पूजते हैं, बल्कि अहंकार को नहीं पूजते हैं। कैलाश मंदिर में सभी भगवान विराजमान
मुकेश पांडेय बताते हैं कि रावण ब्रह्म जीव हैं। भले ही राम आए, लेकिन राम के साथ रावण का भी नाम लिया जाता है। यहां बड़ी संख्या में लोग दर्शन के लिए आते हैं। उन्नाव के रहने वाले शुक्ला परिवार द्वारा इनको स्थापित कराया गया था। कैलाश मंदिर में 56 करोड़ देवी-देवता विराजमान हैं, इनको भी स्थापित किया गया है। अब बात मंदिर से जुड़ी पुरानी मान्यताओं की…
इस मंदिर का निर्माण करीब 200 साल पहले महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने कराया था। इस मंदिर को बनाने के पीछे कई धार्मिक तर्क भी हैं। कहते हैं कि रावण बहुत विद्वान था और भगवान शिव का परम भक्त भी, भोले बाबा को खुश करने के लिए मां छिन्नमस्तिका देवी की रावण आराधना करता था। मां ने पूजा से प्रसन्न होकर रावण को यह वरदान दिया था कि उनकी पूजा सफल तभी होगी जब श्रद्धालु रावण की पहले पूजा करेंगे। कहते हैं कि शिवाला में 1868 में किसी राजा ने मां छिन्नमस्तिका का मंदिर बनवाया था। यहां रावण की एक मूर्ति भी प्रहरी के रूप में स्थापित की गई। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर