हिमाचल प्रदेश की नदियों पर बने बांधों के जलाशय इस बार बरसात में भी पूरी तरह नहीं भर पाए हैं। जानकारों की माने तो इसका असर आने वाले दिनों में राजस्थान, पंजाब, और हरियाणा की खेतीबाड़ी पर पड़ सकता है। खासकर भाखड़ा और पौंग बांध को पड़ोसी राज्य की लाइफ लाइन माना जाता है। क्योंकि इन राज्यों की खेतीबाड़ी हिमाचल की नदियों से बहने वाले पानी पर बहुत ज्यादा निर्भर रहती है। यह पानी नहरों के जरिए पड़ोसी राज्यों के किसानों के खेतों में पहुंचता है। बांध में जब पानी नहीं होगा तो किसानों के खेतों को पर्याप्त पानी नहीं मिल पाएगा। हिमाचल में पावर प्रोडक्शन पर भी इसका असर देखने को मिल सकता है। भाखड़ा बांध का जलाशय इस बार बरसात में भी 11 मीटर और पौंग बांध का जलाशय 8 मीटर खाली खाली रह गया है। बरसात में पूरी तरह भर जाते थे बांध आमतौर पर बरसात में प्रदेश की विभिन्न नदियों पर बने बांध के जलाशय पूरी तरह भर जाते थे। मगर इस बार ज्यादातर बांध के जलाशय 10 से 120 फीट तक खाली पड़े हैं। क्योंकि इस बार मानसून सीजन में सामान्य से 18 प्रतिशत कम बारिश हुई है। चिंता इस बात की है कि मानसून के बाद पोस्ट मानसून सीजन में भी प्रदेश में बारिश नहीं हो रही। प्रदेश में मानसून की विदाई के बाद से यानी एक से 15 अक्टूबर के बीच सामान्य से 95 प्रतिशत कम बारिश हुई है। अगले 5-6 दिन तक भी बारिश के आसार नहीं है। भाखड़ा बांध का जलाशय 36 फीट खाली भारत की सबसे बड़ी बहु उद्देशीय जल विद्युत परियोजना भाखड़ा बांध का जलाशय 11 मीटर यानी 36 फीट से ज्यादा खाली पड़ा है। पार्वती-2 प्रोजेक्ट का जलाशय लगभग 118 फीट, मलाणा-1 का जलाशय 45 फीट और पौंग डेम का जलाशय भी लगभग 26 फीट खाली पड़ा है। मानसून विड्रा होने के बाद हर रोज बांधों के जलाशय में जल स्तर धीरे धीरे कम होता जा रहा है। इससे उत्तर भारत में जल संकट गहरा सकता है। प्रदेश में जैसे जैसे सर्दी बढ़ रही है। इससे ग्लेशियर पिघलने भी बंद हो रहे है। इससे नदियों में वाटर लेवल और गिरेगा और बिजली उत्पादन के लिए पानी की कमी खलनी शुरू होगी। सर्दियों में 15-20% रह जाता है विद्युत उत्पादन बता दें कि सर्दियों में ग्लेशियर जमने के बाद नदी नालों में जल स्तर गिर जाता है। इससे हिमाचल में कुल क्षमता का मुश्किल से 15 से 20 प्रतिशत विद्युत उत्पादन हो पाता है। जाहिर है कि जो बांध पहले ही पूरी तरह नहीं भर पाए, आने वाले दिनों में जब ग्लेशियर पिघलने बंद होंगे, इससे बांधों में जल स्तर और तेजी से गिरेगा। हिमाचल प्रदेश की नदियों पर बने बांधों के जलाशय इस बार बरसात में भी पूरी तरह नहीं भर पाए हैं। जानकारों की माने तो इसका असर आने वाले दिनों में राजस्थान, पंजाब, और हरियाणा की खेतीबाड़ी पर पड़ सकता है। खासकर भाखड़ा और पौंग बांध को पड़ोसी राज्य की लाइफ लाइन माना जाता है। क्योंकि इन राज्यों की खेतीबाड़ी हिमाचल की नदियों से बहने वाले पानी पर बहुत ज्यादा निर्भर रहती है। यह पानी नहरों के जरिए पड़ोसी राज्यों के किसानों के खेतों में पहुंचता है। बांध में जब पानी नहीं होगा तो किसानों के खेतों को पर्याप्त पानी नहीं मिल पाएगा। हिमाचल में पावर प्रोडक्शन पर भी इसका असर देखने को मिल सकता है। भाखड़ा बांध का जलाशय इस बार बरसात में भी 11 मीटर और पौंग बांध का जलाशय 8 मीटर खाली खाली रह गया है। बरसात में पूरी तरह भर जाते थे बांध आमतौर पर बरसात में प्रदेश की विभिन्न नदियों पर बने बांध के जलाशय पूरी तरह भर जाते थे। मगर इस बार ज्यादातर बांध के जलाशय 10 से 120 फीट तक खाली पड़े हैं। क्योंकि इस बार मानसून सीजन में सामान्य से 18 प्रतिशत कम बारिश हुई है। चिंता इस बात की है कि मानसून के बाद पोस्ट मानसून सीजन में भी प्रदेश में बारिश नहीं हो रही। प्रदेश में मानसून की विदाई के बाद से यानी एक से 15 अक्टूबर के बीच सामान्य से 95 प्रतिशत कम बारिश हुई है। अगले 5-6 दिन तक भी बारिश के आसार नहीं है। भाखड़ा बांध का जलाशय 36 फीट खाली भारत की सबसे बड़ी बहु उद्देशीय जल विद्युत परियोजना भाखड़ा बांध का जलाशय 11 मीटर यानी 36 फीट से ज्यादा खाली पड़ा है। पार्वती-2 प्रोजेक्ट का जलाशय लगभग 118 फीट, मलाणा-1 का जलाशय 45 फीट और पौंग डेम का जलाशय भी लगभग 26 फीट खाली पड़ा है। मानसून विड्रा होने के बाद हर रोज बांधों के जलाशय में जल स्तर धीरे धीरे कम होता जा रहा है। इससे उत्तर भारत में जल संकट गहरा सकता है। प्रदेश में जैसे जैसे सर्दी बढ़ रही है। इससे ग्लेशियर पिघलने भी बंद हो रहे है। इससे नदियों में वाटर लेवल और गिरेगा और बिजली उत्पादन के लिए पानी की कमी खलनी शुरू होगी। सर्दियों में 15-20% रह जाता है विद्युत उत्पादन बता दें कि सर्दियों में ग्लेशियर जमने के बाद नदी नालों में जल स्तर गिर जाता है। इससे हिमाचल में कुल क्षमता का मुश्किल से 15 से 20 प्रतिशत विद्युत उत्पादन हो पाता है। जाहिर है कि जो बांध पहले ही पूरी तरह नहीं भर पाए, आने वाले दिनों में जब ग्लेशियर पिघलने बंद होंगे, इससे बांधों में जल स्तर और तेजी से गिरेगा। पंजाब | दैनिक भास्कर
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