भगवान दुश्मन को भी ऐसी औलादें न दे:बेटों ने लात मारकर मां की पसली तोड़ी; हाईकोर्ट के आदेश पर घर मिला; रिटायर प्रोफेसर की कहानी ‘बेटों ने मुझे बहुत प्रताड़ित किया। उन्हें हम अपनी जान से ज्यादा चाहते थे। उनके मुंह से कुछ निकलता, पहले ही डिमांड पूरी कर देते थे। बड़ा बेटा जब 15 साल का था, तब मैंने उसे डायमंड रिंग गिफ्ट की थी। अब हर चीज का बंटवारा कर दिया। मुझे पीटते हुए पसली तक तोड़ दी।’ यह कहते हुए 59 साल की तारा पांडेय रो पड़ती हैं। पास बैठे उनके पति रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ. विनोद पांडेय की आंखों में भी आंसू आ जाते हैं। दोनों कहते हैं- अब हमारा घर…घर जैसा नहीं रहा। भगवान ऐसी औलादें किसी दुश्मन को भी न दें। प्रोफेसर पांडेय के वाराणसी के घर पर एक लेडी कॉन्स्टेबल के साथ दो पुलिस वाले तैनात हैं। कोर्ट के आदेश पर सोमवार को पुलिस ने विनोद और तारा को उनके घर पर कब्जा दिलाया। दैनिक भास्कर प्रोफेसर के घर पहुंचा तो उन्होंने अपना दर्द साझा किया। चलिए विस्तार से पूरे मामले को जानते हैं… विनोद पांडेय 2 साल पहले रिटायर हुए तो वाराणसी लौटे
डॉक्टर विनोद पांडेय का घर वाराणसी के भृगुनगर मंडुआडीह में है। वे अहमदाबाद की गुजरात विद्यापीठ में पत्रकारिता और जनसंचार विभाग के प्रवक्ता थे। 16 साल तक उन्होंने वहां पत्रकारिता पढ़ाई। 2 साल पहले रिटायर हुए, तो होम टाउन वाराणसी आ गए। डॉ. विनोद बताते हैं- हमारे तीन बेटे- अमित, अजीत और अरुण हैं। अमित बड़ा और अरुण सबसे छोटा है। एक बेटी भी है। चारों की शादी हो गई है। मैं पत्रकारिता का प्रवक्ता रहा, तो अमित और अजीत को भी उसी फील्ड में रखा। एक दिल्ली में पत्रकार है, दूसरा वाला अजीत अपना खुद का पोर्टल चलाता है। उसके पोर्टल को भी मैंने ही खुलवाया था। दोनों बेटों की डिमांड को हम लोग पूरा करते थे। तीन बेटे, छोटे वाले ने दिया साथ
प्रोफेसर विनोद ने कहा- 2022 में मई तक सब कुछ ठीक रहा। लेकिन, फिर बेटे और बहुओं के व्यवहार में चेंज आने लगा। ये लोग छोटी-छोटी बात पर मुझसे उलझते। मेरी पत्नी तारा से लड़ने लगते। हम लोगों को खाना नहीं देते। धीरे-धीरे यह सब मारपीट में बदल गया। सितंबर 2022 में मैं दुबई चला गया। वहां 15 दिन रहा, जब वापस लौटा तो दोनों बेटे हम लोगों से आए दिन मारपीट करने लगे। धमकाने लगे। मुझसे 6 लाख रुपए की डिमांड की। हमने पूछा- क्यों चाहिए। लेकिन वो लोग बंटवारे की बात पर आ गए। हालांकि छोटा बेटा अरुण इन सब चीज से दूर रहा। वो ठीक है। पीएफ, ग्रेज्युटी तक में बंटवारे की बात की गई
डॉ. विनोद बताते हैं- हम अपने ही घर में असहज होने लगे। एक दिन हमारे चचेरे भाई की पत्नी आ गईं। उन्होंने कहा कि आप सब कुछ बांट दीजिए। क्योंकि अब ये लोग बंटवारा चाहते हैं। पीएफ और ग्रेच्युटी के भी बंटवारे की बात कही गई। हमने जवाब दिया कि अभी पीएफ और ग्रेच्युटी जैसा कोई फंड नहीं मिला। और फिर बांटने की क्या बात है। जहां खर्चा होगा, वहां हम लोग खर्च करेंगे। पहली बार झगड़ा हुआ तो हमें तीन दिन गेस्ट हाउस में रहना पड़ा। दूसरी बार झगड़ा हुआ तो हम लोगों को दो महीने घर से बाहर रहना पड़ा। फिर भी झगड़ा खत्म नहीं हुआ तो दूसरों का सहारा लेना पड़ा। हम होली दिवाली भी घर पर नहीं मानते थे। हम खानाबदोश की तरह रहने लगे। कभी रिश्तेदारों के यहां तो कभी किसी होटल में। हमने अपनी चाची को मां माना, हमें सब कुछ मिला लेकिन…
डॉ. विनोद बताते हैं- ये घर हमारे चाचा ने हमें दिया था, क्योंकि उनकी कोई संतान नहीं थी। वो हमें ही अपने बेटा मानते थे। लेकिन, हमारे बेटे हमें अपना नहीं मानते। मेरी चाची को टीबी हो गई थी, तब हमने उनकी सेवा की। वो मरते हुए यही बोल गईं कि तुम लोगों ने हमारी बहुत सेवा की, सब कुछ तुम लोग रखो। एक बार समझौता भी हुआ, मगर हालात नहीं बदले
प्रो. पांडेय ने कहा- 2022 में ही हमने वाराणसी पुलिस कमिश्नर से शिकायत की थी। उन्होंने SHO को भेजकर हमारे बेटों को समझाया। जब वे नहीं माने, तो उनको थाने भी लेकर गए। अगले दिन पुलिस ने फोन करके कहा- आपके बेटे आपके साथ रहने को तैयार हैं। मैं, पत्नी और छोटा बेटा जब थाने पहुंचे तो वहां पर उसकी तरफ से कुल 14 पैरोकार आए थे। उसने पुलिस के सामने समझौता किया कि कामवाली रख लेंगे, तो दिक्कत नहीं होगी। लेकिन घर आने के बाद फिर से कलह शुरू हो गई। बेटे-बहू को PhD में कराई, अभी तक देते रहे खर्चा
बीच वाले बेटे के पास ढंग का काम नहीं था, तो उसका खर्च उठाते थे। लेकिन, उन लोगों ने पूरा घर ही बांटने का मन बना लिया था। हम पर घर से हटने का दबाव बनाने लगे। छोटे बेटे से झगड़ा कर बैठते थे, जबकि हमने छोटे बेटे से कहीं ज्यादा उन दोनों के लिए किया है। बीच वाली बहू को अहमदाबाद से ही PhD करा दी। बेटे का भी दो बार एडमिशन कराया, जिससे वो अपने करियर में आगे बढ़ सकें, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। मां बोली- किचन बांट दिया, बर्तन धुलने में डर लगता था
तारा पांडेय कहती हैं- जिन्हें जान से प्यारा समझती थी, वो हमें प्रताड़ित करेगा, सोचा ही नहीं था। बीच वाले बेटे की पत्नी ने खाना बनाकर खिलाने में आपत्ति कर दी। हमने घर पर एक मेड रख दी। वो खाना बनाने और बर्तन मांजने का काम करती। कुछ दिन घर में शांति थी। लेकिन फिर, बीच वाले बहू-बेटे ने किचन का भी बंटवारा कर दिया। हमें एक छोटा सा किचन मिला। उसमें बर्तन धोने भर की जगह नहीं थी, खाना कहां बनाते? घर में देखते ही मारने के लिए दौड़ते थे। छोटे वाले को छोड़ दें, तो दोनों बेटों के साथ हमने खूब किया। अपने पति से लड़-लड़कर उन्हें पैसे भिजवाए, लेकिन छोटा बेटा मेरे साथ है और वो दोनों दुश्मन बन बैठे हैं। क्या अपने मां-बाप को कोई औलाद गाली देता है? 5 घंटे में हुई कार्रवाई, घर खाली करवाया गया
डॉक्टर विनोद अपने बेटों से इस कदर तंग आ गए कि उन्हें हाईकोर्ट का सहारा लेना पड़ा। इसी साल जून में उन्होंने हाईकोर्ट में अपील की। लेकिन, जून में कोर्ट बंद हो गई। इसके बाद 3 जुलाई को कोर्ट ने डीएम, पुलिस कमिश्नर और सीएमओ से अलग-अलग रिपोर्ट तलब की। रिपोर्ट मिलने के बाद कोर्ट सख्त हुआ, तो बेटे ने मकान खाली करने के लिए मोहलत मांगी। हालांकि कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया। सख्त निर्देश देते हुए दोनों बेटों को घर खाली करने का निर्देश दिया। 9 जुलाई को पुलिस ने 5 घंटे के अंदर मकान खाली करवाकर बुजुर्ग दंपती को कब्जा दिलाया। साथ ही दोनों को सुरक्षा व्यवस्था मुहैया कराई है। बूढ़े मां-बाप की देखभाल बच्चों का दायित्व, जानें बुजुर्गों के कानूनी अधिकार
यूपी में बुजुर्गों के लिए मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन एक्ट, 2007 लागू है। इसमें बुजुर्गों के लिए फाइनेंशियल सिक्योरिटी, मेडिकल सिक्योरिटी, भरण-पोषण के लिए खर्च और प्रोटेक्शन का प्रावधान है। इस एक्ट के मुताबिक, अगर माता-पिता, दादा-दादी या ऐसे बुजुर्ग जो अपनी इनकम या संपत्ति से अपना खर्चा नहीं चला पा रहे हैं, उन्हें मेंटेनेंस के लिए बच्चों पर दावा करने का अधिकार है। इसमें जन्म देने वाले माता-पिता, गोद लेने वाले माता-पिता और सौतेले मां-बाप या संपत्ति के वारिस सभी लोगों को शामिल किया गया है। यह खबर भी पढ़ें SSP की चौखट पर रोया 94 साल का बुजुर्ग: कहा- बेटे-बहू ने सब छीन लिया; सिर छिपाने की जगह भी नहीं, मैं कहां जाऊं मेरे बेटे-बहू ने सब कुछ छीन लिया। मुझे बर्बाद कर दिया। अल्लाह रहम करे। कहां जाऊं? कहां सिर छिपाऊं? मुझे तो उन्होंने बेघर कर दिया। साहब न्याय दिलाइए।- यह कहना है 94 साल के बुजुर्ग का। मेरठ में SSP ऑफिस पहुंचे बुजुर्ग आपबीती बताते-बताते रो पड़े। पढ़ें पूरी खबर…