केंद्रीय ऊर्जा मंत्री एवं हरियाणा के पूर्व CM मनोहर लाल खट्टर ने पानीपत जिले में अपने प्रतिनिधि को नियुक्त किया है। भाजपा के सीनियर नेता गजेंद्र सलूजा को प्रतिनिधि बनाया है। इनकी नियुक्ति से अब पानीपत जिले के लोगों को मंत्री तक अपनी समस्याएं पहुंचाने के लिए सहूलियत होगी। अब केंद्रीय मंत्री से मिलने, काम करवाने समेत विकास कार्यों की देखरेख का जिम्मा गजेंद्र सलूजा पर होगा। गजेंद्र सलूजा के पिता का नाम आशाराम है। इनके 2 बेटे हैं। एक बेटा विवाहित है। बड़ा बेटा गैस एजेंसी चलाता है। सलूजा ने CS की पढ़ाई की है। वह स्कूल में पढ़ते वक्त ही बीजेपी से जुड़ गए थे। इन पदों पर रह चुके हैं
वह नगर निगम के पार्षद, भाजपा के जिला महामंत्री, उद्योग प्रकोष्ठ के जिला संयोजक, जिला के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष, मीडिया प्रभारी और प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य रह चुके हैं। अभी राष्ट्रीय सदस्यता अभियान के प्रमुख होने के साथ करनाल लोकसभा निगरानी के अध्यक्ष और लैय्या बिरादरी के कार्यकारी प्रधान हैं। लोकसभा चुनाव में खट्टर के लिए किया काम
सामाजिक संस्थाओं से भी जुड़ें रहे हैं। पार्टी के प्रचार के लिए अन्य प्रदेशों में लगातार जिम्मेदारी मिलती रही हैं। सबसे मिलनसार हैं। लोकसभा चुनाव में मनोहर लाल खट्टर के लिए काफी काम किया। इसी काम को देखते हुए और पिछला रिकॉर्ड देखते हुए उन्हें ये पद दिया गया है। केंद्रीय ऊर्जा मंत्री एवं हरियाणा के पूर्व CM मनोहर लाल खट्टर ने पानीपत जिले में अपने प्रतिनिधि को नियुक्त किया है। भाजपा के सीनियर नेता गजेंद्र सलूजा को प्रतिनिधि बनाया है। इनकी नियुक्ति से अब पानीपत जिले के लोगों को मंत्री तक अपनी समस्याएं पहुंचाने के लिए सहूलियत होगी। अब केंद्रीय मंत्री से मिलने, काम करवाने समेत विकास कार्यों की देखरेख का जिम्मा गजेंद्र सलूजा पर होगा। गजेंद्र सलूजा के पिता का नाम आशाराम है। इनके 2 बेटे हैं। एक बेटा विवाहित है। बड़ा बेटा गैस एजेंसी चलाता है। सलूजा ने CS की पढ़ाई की है। वह स्कूल में पढ़ते वक्त ही बीजेपी से जुड़ गए थे। इन पदों पर रह चुके हैं
वह नगर निगम के पार्षद, भाजपा के जिला महामंत्री, उद्योग प्रकोष्ठ के जिला संयोजक, जिला के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष, मीडिया प्रभारी और प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य रह चुके हैं। अभी राष्ट्रीय सदस्यता अभियान के प्रमुख होने के साथ करनाल लोकसभा निगरानी के अध्यक्ष और लैय्या बिरादरी के कार्यकारी प्रधान हैं। लोकसभा चुनाव में खट्टर के लिए किया काम
सामाजिक संस्थाओं से भी जुड़ें रहे हैं। पार्टी के प्रचार के लिए अन्य प्रदेशों में लगातार जिम्मेदारी मिलती रही हैं। सबसे मिलनसार हैं। लोकसभा चुनाव में मनोहर लाल खट्टर के लिए काफी काम किया। इसी काम को देखते हुए और पिछला रिकॉर्ड देखते हुए उन्हें ये पद दिया गया है। हरियाणा | दैनिक भास्कर
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काउंटिंग से पहले हरियाणा कांग्रेस में CM चेहरे पर घमासान:भूपेंद्र हुड्डा बोले- मैं न टायर्ड, न रिटायर्ड; सैलजा बोलीं- हाईकमान को सब पता है
काउंटिंग से पहले हरियाणा कांग्रेस में CM चेहरे पर घमासान:भूपेंद्र हुड्डा बोले- मैं न टायर्ड, न रिटायर्ड; सैलजा बोलीं- हाईकमान को सब पता है हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों पर वोटों की काउंटिंग से पहले कांग्रेस में घमासान मचता हुआ नजर आ रहा है। लगभग सभी एग्जिट पोल्स में कांग्रेस को बहुमत में दिखाया गया है। जिसके बाद अब यहां CM की कुर्सी को लेकर खींचतान तेज हो गई है। दिल्ली में CM बनने के बारे में जब भूपेंद्र हुड्डा से पूछा गया तो उन्होंने कहा- ”मैं न टायर्ड हूं और न रिटायर्ड हूं। विधायकों के मत और हाईकमान के फैसले से CM तय होगा।” सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने भी दिल्ली में मीडिया के सामने पिता की पैरवी करते हुए कहा- ””हुड्डा साहब (भूपेंद्र हुड्डा) ने बड़ी मेहनत की है। चुनाव में सबका योगदान है लेकिन हुड्डा साहब का विशेष योगदान है जो चुनाव में कांग्रेस की स्ट्रेंथ बनी है।” CM चेहरे की दावेदारी पर जब सांसद कुमारी सैलजा ने पूछा गया तो उन्होंने कहा- ”इसका फैसला विधायक दल की बैठक में होगा। उन्होंने कहा कि कई उम्मीद होती है लोगों की, चाहे दलित की बात हो या महिला की हो, हाईकमान को सब पता है।” दीपेंद्र-उदयभान के नाम की भी चर्चा
कांग्रेस में मची खींचतान के बीच 2 और नामों की सीएम को लेकर चर्चा हो रही है। इनमें पहला नाम दीपेंद्र हुड्डा का है। हालांकि जब उनसे इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने हाईकमान के फैसला करने की बात कहकर इसे टाल दिया। दूसरा नाम हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष उदयभान का है। उदयभान दलित नेता हैं। अगर कुमारी सैलजा जाट चेहरे भूपेंद्र हुड्डा की जगह दलित चेहरे की बात पर अड़ीं तो हाईकमान के पास हुड्डा ग्रुप से चौधरी उदयभान का नाम सामने आ सकता है। कांग्रेस पंजाब में भी कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाकर दलित चेहरे चरणजीत चन्नी को सीएम बना चुकी है। हालांकि विधानसभा चुनाव से पहले यह प्रयोग किए जाने से कांग्रेस को सत्ता से बाहर होना पड़ा। कांग्रेस नेताओं की CM बनने के लिए दौड़ भूपेंद्र हुड्डा ने दिल्ली में डेरा डाला
2 बार मुख्यमंत्री रह चुके भूपेंद्र हुड्डा रविवार रात ही रोहतक से दिल्ली रवाना हो गए। जहां उनकी कांग्रेस प्रभारी दीपक बाबरिया से मुलाकात हुई। शाम को वे राहुल गांधी से भी मिल सकते हैं। इससे पहले रविवार को उन्होंने अपने भरोसेमंद कांग्रेस उम्मीदवारों से रोहतक में मीटिंग भी की।
दिल्ली में उनसे ऑल इंडिया किसान कांग्रेस के वाइस चेयरमैन बजरंग पूनिया और प्रदेश अध्यक्ष उदयभान ने उनसे मुलाकात की है। इसके अलावा हुड्डा की हिमाचल प्रदेश के प्रभारी राजीव शुक्ला से भी मुलाकात हुई है। सैलजा ने गाय की पूंछ का आशीर्वाद लिया
CM की दूसरी बड़ी दावेदार कुमारी सैलजा वोटिंग के दिन ही राजस्थान में सालासर धाम पहुंच गईं थी। वहां पूजा करने के बाद उन्होंने गाय की पूंछ से भी CM बनने का आशीर्वाद लिया। रणदीप सुरजेवाला ने केदारनाथ धाम में माथा टेका
तीसरे दावेदार रणदीप सुरजेवाला ने एग्जिट पोल आने के बाद उत्तराखंड में केदारनाथ धाम में माथा टेका है। वह चुनाव के दौरान भी मुख्यमंत्री बनने की महत्वकांक्षा जाहिर कर चुके हैं। कांग्रेस हाईकमान ने 2 नेताओं की ड्यूटी लगाई
हरियाणा में कांग्रेस सरकार बनने की सूरत में किसी तरह की सेंधमारी न हो, इसके लिए हाईकमान भी एक्टिव हो चुका है। हाईकमान ने AICC के महासचिव केसी वेणुगोपाल और अजय माकन को हरियाणा पर नजर रखने के लिए कहा है। वोटिंग से पहले ही केंद्रीय ऑब्जर्वर्स के नाम तय किए जा रहे हैं। हालांकि इन्हें रिजल्ट आने के बाद ही चंडीगढ़ भेजा जाएगा। काउंटिंग के दिन दिल्ली में रहेंगे खड़गे-राहुल
हरियाणा में कांग्रेस के जीतने पर इसका नेशनल इंपैक्ट देखते हुए कांग्रेस हाईकमान भी पूरी तरह से नजर बनाए हुए हैं। काउंटिंग के दिन यानी कल 8 अक्टूबर को राहुल गांधी और राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे दिल्ली में ही रहेंगे। कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक रिजल्ट आने के बाद किसी तरह की रणनीति को लेकर फैसले में देरी न हो, इसके लिए यह फैसला लिया गया है। कांग्रेस में विधायकों की राय लेंगे, अंतिम फैसला हाईकमान का ही
कांग्रेस में CM चुनने की प्रक्रिया के तहत पहले ऑब्जर्वर्स भेजे जाते हैं। जो वन टू वन विधायकों की राय लेते हैं। उसके बाद इसकी रिपोर्ट हाईकमान को दी जाती है। फिर वहां से सीएम का नाम फाइनल किया जाता है। हालांकि आम तौर पर कांग्रेस विधायक दल एक लाइन का प्रस्ताव पास कर हाईकमान को अंतिम फैसले की छूट दे देता है। फिर भी कांग्रेस ज्यादा विधायकों की एक राय हो तो उसे नजरअंदाज नहीं करती। हरियाणा कांग्रेस में CM पद पर किसका दावा कितना मजबूत… भूपेंद्र हुड्डा: 2 बार CM रह चुके हैं। इस बार 90 में से करीब 72 उन्हीं के समर्थकों को टिकट मिला था। ऐसे में कांग्रेस सरकार बनाने की स्थिति में आई तो सबसे ज्यादा उनके ही समर्थक विधायक होंगे। ऐसे में विधायकों की राय मानी गई तो हुड्डा CM होंगे। हुड्डा खुद भी गढ़ी सांपला किलोई सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। कुमारी सैलजा: सैलजा सिरसा से सांसद हैं। वह विधानसभा चुनाव लड़ना चाहती थीं लेकिन हाईकमान की मंजूरी नहीं मिली। इसके बाद वह अपने ज्यादा समर्थकों के लिए टिकट मांग रहीं थी लेकिन उनके खाते सिर्फ 5 ही टिकटें आईं। ऐसे में विधायकों की राय मानी गई तो सैलजा का सीएम बनना मुश्किल है। हालांकि अगर कांग्रेस हाईकमान किसी दलित चेहरे को सीएम बनाना चाहे तो फिर सैलजा का नंबर आ सकता है। कांग्रेस पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की जगह चरणजीत चन्नी को सीएम बनाकर ये प्रयोग कर चुकी है। सैलजा प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुकी हैं। हालांकि अगर दलित चेहरे की बात आई तो फिर हुड्डा खेमे से ही प्रदेश अध्यक्ष उदयभान का भी नंबर लग सकता है। रणदीप सुरजेवाला: सुरजेवाला राज्यसभा सांसद हैं। उन्हें भी विधानसभा चुनाव लड़ने की मंजूरी नहीं मिली। हालांकि कांग्रेस ने उनके बेटे आदित्य सुरजेवाला को कैथल से टिकट दे दी। वह भी सीएम का दावा कर रहे हैं और राहुल-सोनिया गांधी के करीबी माने जाते हैं। इसी लिहाज से उनके दावे को थोड़ा असरदार माना जा रहा है। दीपेंद्र हुड्डा: अगर इन तीनों के नाम पर ज्यादा कलह बढ़ी तो फिर भूपेंद्र हुड्डा की जगह दीपेंद्र हुड्डा का भी नंबर आ सकता है। वह राहुल गांधी की गुडबुक में हैं और चुनाव प्रचार के दौरान भी वह ग्राउंड पर लगभग सभी कांग्रेसियों से ज्यादा एक्टिव नजर आए। BJP में CM चेहरा सैनी, विज-राव इंद्रजीत भी दावेदार
कांग्रेस के मुकाबले भाजपा ने पहले ही अपना सीएम चेहरा घोषित कर रखा है। भाजपा ने चुनाव में जीत होने पर ओबीसी वर्ग के नायब सैनी को ही सीएम बनाना है। हालांकि अगर हंग असेंबली के बाद जोड़तोड़ से भाजपा किसी सूरत में सरकार बनाने जैसी परिस्थिति में आती है तो फिर दूसरा कोई चेहरा भी आगे किया जा सकता है। वैसे भाजपा में सैनी के अलावा पूर्व गृह मंत्री अनिल विज और केंद्रीय राज्य मंत्री राव इंद्रजीत दावा ठोक रहे हैं।
विनेश फोगाट ने खेले 3 ओलिंपिक, तीनों में वेट अलग:इस बार ट्रायल में 2 वेट कैटेगरी में लड़ीं, हंगामा भी हुआ था
विनेश फोगाट ने खेले 3 ओलिंपिक, तीनों में वेट अलग:इस बार ट्रायल में 2 वेट कैटेगरी में लड़ीं, हंगामा भी हुआ था पेरिस ओलिंपिक में केवल 100 ग्राम वजन ज्यादा होने के कारण डिस्क्वालिफाई की गईं हरियाणा की रेसलर विनेश फोगाट ट्रायल के समय वेट कैटेगरी में क्लैरिटी न होने के चलते 50 किलोग्राम कैटेगरी में लड़ी थीं। उन्होंने ट्रायल तो 53 किलोग्राम वेट कैटेगरी में भी दिया था, लेकिन वहां उन्हें सफलता नहीं मिली। जबकि 50 किलोग्राम वेट कैटेगरी में उन्हें जीत मिली थी। इसलिए उन्होंने इसी कैटेगरी में ओलिंपिक जाने का फैसला किया। इससे पहले भी विनेश फोगाट अपने करियर में कई नेट कैटेगरी में कुश्ती लड़ चुकी हैं। जब वह पेरिस ओलिंपिक में वूमेन रेसलिंग की 50 किलोग्राम कैटेगरी के फाइनल में पहुंची तो देश में दीवाली जैसा माहौल बन गया था। गोल्ड नहीं तो सिल्वर पक्का था। हालांकि, कुछ ही समय में यह खुशी उदासी में बदल गई, क्योंकि विनेश फोगाट अपनी कैटेगरी में तय वजन से 100 ग्राम अधिक पाई गईं। इंटरनेशनल रेसलिंग फेडरेशन के नियम बेहद सख्त हैं। एक ग्राम वजन भी अधिक होता है तो रेसलर को अयोग्य घोषित कर दिया जाता है। इसकी जानकारी विनेश को भी थी। जब उन्हें रात में ही पता चला कि उनका वजन बढ़ा है तो उन्होंने रात में ही वजन कम करने की तमाम कोशिशें कीं, लेकिन सफलता नहीं मिली। नियम के मुताबिक, महिलाओं की फ्रीस्टाइल रेसलिंग में 50, 53, 57, 62, 68 और 76 किलोग्राम की कैटेगरी होती हैं। मुकाबले से पहले सुबह रेसलर का वजन मापा जाता है। टूर्नामेंट के दोनों दिन रेसलर को अपने वजन के भीतर रहना होता है। यदि रेसलर फाइनल में पहुंचती है तो उसे सुबह अपना वजन कराना होता है। विनेश फोगाट मंगलवार को मुकाबले के लिए जब गईं तो उनका वजन तय मानक से अधिक था। लगातार तीसरा ओलिंपिक, तीनों अलग-अलग भार वर्ग में
विनेश फोगाट का यह तीसरा ओलिंपिक था। रियो ओलिंपिक 2016 में उन्होंने 48 किलोग्राम कैटेगरी में भाग लिया था। टोक्यो ओलिंपिक 2020 में वह 53 किलोग्राम कैटेगरी में खेलीं, लेकिन पेरिस ओलिंपिक में आकर उन्होंने 50 किलोग्राम कैटेगरी में खेलना तय किया। यह सही है कि 53 किलोग्राम की कैटेगरी में खेलना थोड़ा मुश्किल होता है, क्योंकि दुनिया के बेस्ट रेसलर 53 किलोग्राम की कैटेगरी में आते हैं। पटियाला कैंप में ट्रायल के दौरान हुआ था हंगामा
पटियाला में राष्ट्रीय खेल संस्थान के हॉल में 12 मार्च 2024 को हंगामा हुआ था। पहलवान विनेश फोगाट ने 50 किलोग्राम और 53 किलोग्राम दोनों कैटेगरी में हिस्सा लेने का विकल्प चुना। इसके बाद वह 50 किलोग्राम का ट्रायल जीतीं, जबकि 53 किलोग्राम के ट्रायल में टॉप 4 में रहीं। नियमों की क्लैरिटी न होने के कारण विनेश फोगाट को यह नहीं पता था कि वह किस कैटेगरी का हिस्सा होंगी। इसलिए उन्होंने दो कैटेगरी में हिस्सा लिया। महज 5 महीने बाद विनेश फोगाट के इस फैसले ने उन्हें 2024 पेरिस ओलिंपिक में रजत या स्वर्ण पदक दिलाने के बेहद करीब पहुंचा दिया। अंतिम पंघाल ने 2023 वर्ल्ड चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता
वहीं इस बीच अंतिम पंघाल ने 2023 वर्ल्ड चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता। इससे भारत को 53 किलोग्राम वर्ग में पेरिस ओलिंपिक का कोटा मिला। भारतीय कुश्ती महासंघ के नियमों के अनुसार, कोटा विजेता को ओलिंपिक के लिए हरी झंडी मिल गई थी। अब विनेश फोगाट असमंजस में थीं। उस समय भारत में कुश्ती का संचालन एडहॉक कमेटी कर रही थी। उन्होंने उनसे वादा किया था कि 53 किलोग्राम वर्ग के लिए ट्रायल होगा, लेकिन ऐसा शायद ही हो पाता। क्योंकि रेसलिंग फेडरेशन का चुनाव हो गया था। संजय सिंह नए अध्यक्ष चुन लिए गए थे। 50 किलोग्राम वर्ग या 57 किलोग्राम का विकल्प
12 मार्च आ गया। फोगाट का मानना था कि WFI की वापसी से उन्हें 53 किलोग्राम वर्ग में ओलिंपिक में हिस्सा लेने का मौका नहीं मिलेगा। उनके पास 50 किलोग्राम वर्ग या 57 किलोग्राम का विकल्प था। उन्होंने 50 किलोग्राम चुना। इस वर्ग में उन्होंने आखिरी बार 2018 में हिस्सा लिया था। इसे लेकर विनेश ने कहा था, “मुझे 53 किग्रा कोटा के लिए ट्रायल को लेकर कोई स्पष्टता नहीं थी। आमतौर पर कोटा देश को मिलता है, लेकिन उन्होंने पहले ट्रायल नहीं किए थे। उन्होंने (एडहॉक कमेटी) कहा था कि इस बार ऐसा नहीं होगा। मेरे पास ऐसा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। क्योंकि मुझे ओलिंपिक में हिस्सा लेना था।” इस दौरान विनेश फोगाट ने ये भी कहा था कि उन्होंने वजन में ये बदलाव इसलिए किया क्योंकि और कोई विकल्प नहीं था। मैं खुश हूं कि ओलिंपिक खेलने का मौका मिल रहा है। लगातार दो दिनों तक 50 तक वजन रखना काफी मुश्किल
विनेश फोगाट का वजन आमतौर पर 55-56 किलोग्राम के आसपास होता है। लगातार दो दिनों तक 50 तक वजन रखना काफी मुश्किल है। इसीलिए, यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग के अध्यक्ष नेनाद लालोविक ने कहा कि यह एक किलो का मामला नहीं था बल्कि 100 ग्राम के आंकड़े तक पहुंचने के लिए उन्हें पहले ही बहुत अधिक वजन कम करना पड़ा। जिसकी वजह से समस्या हुई। ये खबर भी पढ़ें… विनेश फोगाट को सिल्वर मेडल की उम्मीद जगी:CAS में अब सुनवाई कल दोपहर डेढ़ बजे; ओलिंपिक से डिसक्वालिफाई होने पर संन्यास ले चुकीं पेरिस ओलिंपिक में ओवरवेट के चलते अयोग्य करार दी गईं रेसलर विनेश फोगाट की अपनी डिसक्वालीफिकेशन के खिलाफ दायर अपील पर अब 9 अगस्त (शुक्रवार) को सुनवाई होगी। कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन फॉर स्पोर्ट्स (CAS) में यह सुनवाई आज यानि गुरुवार रात साढ़े 9 बजे ही होनी थी मगर विनेश के साथ मौजूद दल ने भारतीय वकील को पेश करने के लिए समय की मांग की। इसके बाद CAS ने कल सुबह 10 बजे (भारतीय समयानुसार दोपहर डेढ़ बजे) तक का वक्त दे दिया। (पूरी खबर पढ़ें)
हरियाणा में इनेलो से छिन सकता है सिंबल:वोट शेयर समेत 5 में से एक भी नियम पूरा नहीं, जेजेपी की रहेगी नजर
हरियाणा में इनेलो से छिन सकता है सिंबल:वोट शेयर समेत 5 में से एक भी नियम पूरा नहीं, जेजेपी की रहेगी नजर हरियाणा में पूर्व उपमुख्यमंत्री ताऊ देवीलाल की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) का सिंबल किसी भी समय छीन सकता है। 2029 में इनेलो अपने सिंबल चश्मे पर चुनाव नहीं लड़ पाएगा। लगातार 2 विधानसभा चुनाव में इनेलो के प्रदर्शन को देखते हुए चुनाव आयोग इनेलो का स्थायी सिंबल छीन सकता है। इनेलो को भले ही इस चुनाव में 2 सीटों पर जीत मिली हो, लेकिन पार्टी चुनाव आयोग के सिंबल बचाने के 5 नियमों में से किसी को पूरा नहीं कर पाई। इस बार भी पार्टी को 6 फीसदी से कम वोट मिले। वहीं 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में 2.44% ही वोट हासिल किए थे। इस बारे में जब इनेलो महासचिव अभय चौटाला से बात की तो उन्होंने इसे बकवास बताया। वहीं जननायक जनता पार्टी (JJP) ने 2029 के चुनाव में 5 नियम पूरे नहीं किए तो उनके चुनाव चिह्न चाबी पर संकट पैदा हो सकता है। JJP भी यह प्रयास करेगी कि वह इनेलो के सिंबल को हासिल कर पाए। दुष्यंत चौटाला ने लोकसभा चुनाव के बाद इस ओर इशारा भी किया था। शर्तों को पूरा नहीं कर सकी पार्टी
हरियाणा विधानसभा के स्पेशल सचिव रहे रामनारायण यादव ने बताया कि इनेलो के पास यह अंतिम मौका था। पार्टी चुनाव चिह्न बचाने के लिए चुनाव आयोग के एक्ट 1968 की धारा 6 ए और सी के तहत दी गई शर्तों को पूरा नहीं कर सकी। जजपा के पास एक और मौका
रामनारायण यादव ने बताया कि इनेलो के सिंबल पर जहां खतरा है वहीं JJP के पास अभी 2029 चुनाव तक मौका है। अगर अगले चुनाव में जजपा 5 में से एक भी नियम पूरा नहीं करती है तो उनका भी सिंबल (चाबी का निशान) जा सकता है। जजपा के पास आगामी दो चुनाव हैं। 2029 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव हैं। ऐसे में वह अपने सिंबल को बचा सकती है। INSO पर दावा ठोक चुकी जजपा
2019 में विधानसभा चुनाव से पहले डॉ. अजय सिंह चौटाला ने इनेलो से अलग होकर जजपा पार्टी बना ली थी। इनेलो ने इसके बाद स्टूडेंट विंग इंडियन नेशनल स्टूडेंट ऑर्गेनाइजेशन (INSO) को भंग करने का ऐलान किया था। जेल से बाहर आने के बाद डॉ. अजय सिंह चौटाला ने कहा था कि मैं INSO का संस्थापक हूं, इसे कोई भंग नहीं कर सकता। इसके बाद जजपा ने INSO पर दावा ठोक दिया था। इनेलो के आगे अस्तित्व बचाने की लड़ाई
कभी हरियाणा की राजनीति की दशा-दिशा तय करने वाली इनेलो के लिए अब अस्तित्व बचाने की चुनौती है। इनेलो के लिए चश्मा चुनाव चिन्ह बचाना ही मुश्किल हो रहा है। जिसके लिए उन्हें इस बार 6% मत हासिल करना इसलिए जरूरी था, लेकिन 4.14 फीसदी वोट ही मिले। ऐसे में सिंबल छिन गया तो इनेलो के लिए मुश्किल हो सकती है। कैसे मिलता है राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा
इसके लिए केंद्रीय चुनाव आयोग के नियम 1968 का पालन किया जाता है। जिसके मुताबिक किसी पार्टी को राष्ट्रीय दल का दर्जा हासिल करने के लिए 4 या उससे ज्यादा राज्यों में लोकसभा चुनाव या विधानसभा चुनाव लड़ना होता है। इसके साथ ही इन चुनावों में उस पार्टी को कम से कम 6 प्रतिशत वोट हासिल करने होते हैं। चुनाव आयोग राष्ट्रीय दर्जा प्राप्त पार्टियों को ही बैठक में निमंत्रण देता है। इसके अलावा भी तमाम तरह की सुविधाएं पार्टी को मिलती है। परिवार में आपसी कलह से टूटी थी इनेलो
2018 में परिवार में आपसी कलह के चलते इनेलो में बड़ी टूट हुई थी। अभय चौटाला के भाई अजय चौटाला ने अपने बेटों दुष्यंत और दिग्विजय के अलावा कई अन्य नेताओं के साथ पार्टी को अलविदा कह दिया। इसके बाद हरियाणा में जन नायक जनता पार्टी यानी जजपा का गठन हुआ। अब स्थिति ये है कि हरियाणा में न इनेलो का व्यापक प्रभाव देखने को मिलता है और न ही जजपा का। जजपा और इनेलो में फूट का सबसे ज्यादा फायदा भाजपा और कांग्रेस को हुआ है। पूर्व डिप्टी PM देवीलाल ने बनाई थी INLD
पूर्व डिप्टी PM ताऊ देवीलाल ने 1987 में इंडियन नेशनल लोकदल के नाम से क्षेत्रीय दल बनाया था, जिसके अध्यक्ष अब उनके बेटे व पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला हैं। वर्तमान में हरियाणा में इनेलो और जजपा ही दो क्षेत्रीय दल हैं।