फसलों की एमएसपी की लीगल गारंटी की मांग को लेकर चल रहे किसान आंदोलन मे खनौरी बॉर्डर पर गोली लगने से 21 फरवरी को बठिंडा के युवा किसान शुभकरण सिंह की मौत हो गई थी। इस मामले में शुभकरण सिंह का परिवार सीबीआई जांच करवाना चाहता है। मृतक के पिता चरनजीत सिंह ने इसी मांग को लेकर पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। साथ ही मामले की निष्पक्ष जांच करवाने का मुद्दा उठाया है। इस पर अदालत ने पंजाब और हरियाणा सरकार से जवाब तलब किया है। पहले ऐसे चला था अदालत में यह मामला जब शुभकरण की मौत हुई थी, उस समय वह किसान आंदोलन में शामिल होने गया था। इस दौरान आरोप था कि जिस गोली से शुभकरण की मौत हुई है। वह हरियाणा पुलिस की तरफ से चलाई गई थी। उस समय यह मामला पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट पहुंचा था। फिर इस मामले की जांच करने के लिए पहले उच्च अदालत ने रिटायर जज की अगुआई में कमेटी गठित की थी। परिवार की दलील है कि इस मामले में कोई उचित कार्रवाई नहीं हुई है। हालांकि इस संबंधी पातड़ा थाने में केस दर्ज जरूर हुआ था। इससे पहले 7 अगस्त को इस मामले की जांच कर रहे हरियाणा पुलिस के अधिकारी बी सतीश बालन ने हाईकोर्ट में अपनी सीलबंद रिपोर्ट दाखिल की थी। उस समय यह बात सामने आई थी कि शुभकरन के सिर पर शॉटगन का निशान लगता है। लेकिन सरकारी वकील ने कहा था हरियाणा पुलिस द्वारा शॉटगन प्रयोग नहीं की जाती है। बहन को नौकरी और परिवार को दिया एक करोड़ किसान शुभकरण की मौत के बाद पंजाब सरकार की तरफ से परिवार की आर्थिक मदद की गई थी, उसकी बहन गुरप्रीत कौर को सरकारी नौकरी दी गई थी। सीएम भगवंत मान ने खुद नियुक्ति पत्र और एक करोड़ रुपए की राशि का चेक परिवार को सौंपा था। उस समय किसान नेता भी मौजूद रहे थे। फसलों की एमएसपी की लीगल गारंटी की मांग को लेकर चल रहे किसान आंदोलन मे खनौरी बॉर्डर पर गोली लगने से 21 फरवरी को बठिंडा के युवा किसान शुभकरण सिंह की मौत हो गई थी। इस मामले में शुभकरण सिंह का परिवार सीबीआई जांच करवाना चाहता है। मृतक के पिता चरनजीत सिंह ने इसी मांग को लेकर पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। साथ ही मामले की निष्पक्ष जांच करवाने का मुद्दा उठाया है। इस पर अदालत ने पंजाब और हरियाणा सरकार से जवाब तलब किया है। पहले ऐसे चला था अदालत में यह मामला जब शुभकरण की मौत हुई थी, उस समय वह किसान आंदोलन में शामिल होने गया था। इस दौरान आरोप था कि जिस गोली से शुभकरण की मौत हुई है। वह हरियाणा पुलिस की तरफ से चलाई गई थी। उस समय यह मामला पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट पहुंचा था। फिर इस मामले की जांच करने के लिए पहले उच्च अदालत ने रिटायर जज की अगुआई में कमेटी गठित की थी। परिवार की दलील है कि इस मामले में कोई उचित कार्रवाई नहीं हुई है। हालांकि इस संबंधी पातड़ा थाने में केस दर्ज जरूर हुआ था। इससे पहले 7 अगस्त को इस मामले की जांच कर रहे हरियाणा पुलिस के अधिकारी बी सतीश बालन ने हाईकोर्ट में अपनी सीलबंद रिपोर्ट दाखिल की थी। उस समय यह बात सामने आई थी कि शुभकरन के सिर पर शॉटगन का निशान लगता है। लेकिन सरकारी वकील ने कहा था हरियाणा पुलिस द्वारा शॉटगन प्रयोग नहीं की जाती है। बहन को नौकरी और परिवार को दिया एक करोड़ किसान शुभकरण की मौत के बाद पंजाब सरकार की तरफ से परिवार की आर्थिक मदद की गई थी, उसकी बहन गुरप्रीत कौर को सरकारी नौकरी दी गई थी। सीएम भगवंत मान ने खुद नियुक्ति पत्र और एक करोड़ रुपए की राशि का चेक परिवार को सौंपा था। उस समय किसान नेता भी मौजूद रहे थे। हरियाणा | दैनिक भास्कर
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हरियाणा में दीपेंद्र हुड्डा की सबसे बड़ी जीत:पिछली बार जहां सबसे बड़ी हार, वहीं सबसे छोटी जीत मिली; सभी 9 विधानसभाओं में हारी BJP लोकसभा चुनाव में हरियाणा में कांग्रेस ने इस बार 5 सीटों पर जीत दर्ज की है। सबसे बड़े जीत की बात की जाए तो वह रोहतक सीट पर कांग्रेस कैंडिडेट दीपेंद्र सिंह हुड्डा की रही। दीपेंद्र ने BJP कैंडिडेट डॉ. अरविंद शर्मा को 3 लाख 45 हजार 298 वोटों से हराया। सबसे बड़ी बात यह रही कि दीपेंद्र हुड्डा ने रोहतक लोकसभा में पड़ने वाली सभी 9 विधानसभाओं में जीत हासिल की। 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में दीपेंद्र हुड्डा, डॉ. अरविंद शर्मा से कांटे की टक्कर में हार गए थे। दीपेंद्र सिंह हुड्डा अपने पिता पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा की विधानसभा क्षेत्र गढ़ी सांपला किलोई से सबसे बड़ी लीड लेकर आए हैं। दीपेंद्र को यहां से 77242 वोट की बढ़त मिली। पिछली बार गढ़ी-सांपला-किलोई हलके से दीपेंद्र को 45725 वोट मिले थे। यहां से उनकी जीत हुई थी।
345298 वोटों से जीते दीपेंद्र हुड्डा रोहतक लोकसभा सीट पर कुल 12 लाख 48 हजार 446 वोट (EVM व बैलट पेपर के मिलाकर) पोल हुए थे। दीपेंद्र हुड्डा को कुल 783578 वोट मिले। जबकि अरविंद शर्मा को 438280 वोट प्राप्त हुए। दोनों में हार-जीत का अंतर 345298 वोटों का रहा। पूरे हरियाणा में सबसे बड़ी लीड दीपेंद्र हुड्डा की रही। कोसली भी नहीं बचा पाई भाजपा
2019 के चुनाव में दीपेंद्र हुड्डा कोसली विधानसभा सीट से 74980 वोटों से हार मिली थी। इस बार कोसली से दीपेंद्र को 83422 वोट मिले। जबकि अरविंद शर्मा को यहां से 83420 वोट हासिल हुए। इस सीट पर दीपेंद्र, शर्मा से 2 वोटों की लीड पर रहे। सभी 9 विधानसभाओं में दीपेंद्र की यह सबसे छोटी जीत है। वोटिंग से पहले कोसली में भाजपा ने रैली भी की थी। यहां केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और गुरुग्राम से सांसद राव इंद्रजीत पहुंचे थे। कोसली में राव इंद्रजीत का काफी प्रभाव माना जाता है। रैली में राव इंद्रजीत ने अपने भाषण में केवल एक बार भाजपा उम्मीदवार डॉ. अरविंद शर्मा का नाम लिया था। जबकि नितिन गड़करी को बार-बार अपना मित्र बनाकर संबोधित कर रहे थे।
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बवानी खेड़ा में चुनाव में विकास बना मुद्दा:लोग बोले- काम करते तो बन जाती बात; कांग्रेस व बीजेपी से कई दावेदार हरियाणा में विधानसभा चुनावों को लेकर बिगुल बज चुका है। चुनाव आयोग ने तारीख निर्धारित कर दी है। बवानी खेड़ा विधान सभा की बात की जाए तो कांग्रेस से लगभग 78 दावेदार है, तो बीजेपी में भी दर्जनों उम्मीदवार दावेदारी कर रहे हैं। विधानसभा चुनाव को लेकर लोगों ने कहा कि पार्टी उम्मीदवार चुनाव से पहले कस्बा में रिहायश बनाकर यहां विकास के साथ हर दुख सुख में साथी बनने का वायदा करता है। लेकिन कस्बा की किस्मत इस मामले में फूटी हुई है। यहां से जीतने के बाद यहां का नुमाईंदा यहां शकल दिखाना भी पसंद नहीं करता। जनता के फोन उठाने में भी नुमांदों को शर्म आने लगती है। लेकिन इस बार 2024 के चुनावों में बड़ा उलटफेर होने का अंदेशा साफ दिखाई दे रहा है। टिकट न मिलने पर दूसरी पार्टी के टच में नेता बवानी खेड़ा में कांग्रेस पार्टी से लगभग 78 दावेदार है, तो बीजेपी में भी दर्जनों उम्मीदवार है जो टिकट का दावा कर रहे हैं। लेकिन टिकट एक को ही मिलनी है, कुछ उम्मीदवार ऐसे हैं जो पिछले काफी समय से अपने आकाओं को संतुष्ट करने के लिए काम-दाम-दंड-भेद सब अपना कर भीड़ दिखाने का प्रयास रहे हैं। लेकिन उनकी स्वयं की हरकतों से अब उन्हें अंदेशा होने लगा है कि उनके हाथ टिकट नहीं आने वाली जिसके कारण वे दूसरी पार्टी में सेटिंग के लिए जुगाड़ भिड़ा रहे हैं चाहे दूसरी पार्टियों के चर्चे भी कुछ खास न हो। चाहे चुनाव का परिणाम जो भी हो लेकिन उनकी मंशा विधानसभा चुनाव लड़ना है। जनता में आकर उनकी सुनते तो बन सकती थी फिर बात बवानी खेड़ा से ऐसे-ऐसे नेता भी हैं जिन्होंने जनता की सुनी और उनके दिल पर राज किया और जनता ने भी उन्हें पलकों पर बैठाया और हैट्रिक का तोहफा दिया। लेकिन कुछ नेता ऐसे भी हैं यदि पार्टी उन्हें टिकट दे, तो हैट्रिक बना सकते थे यदि जनता के बीच आकर दुख-दर्द के साथी बनते। लेकिन अब कुछ लोगों तक ही सिमट कर रह गए। इसबार कस्बा की जनता चाहती है हलके की बागडोर स्थानीय नेता को दी जाए, ताकि यहीं रहकर कस्बा सहित हलके का विकास करे। लेकिन ये तो वक्त बताएगा की पार्टी किसको टिकट देती है और जनता किसके पक्ष में मतदान करती है। करोड़ों खर्च किए पर नहीं बन पाई बात बवानी खेड़ा में भाजपा सरकार के विकास की बात करें तो पंडित दीन दयाल उपाध्याय पर्यटन स्थल जिसका टैंडर लगभग एक करोड़ से कम का था। इसे रिवाइज करके तीन करोड़ पहुंचा दिया लेकिन ये झील कभी पूरी हो ही नहीं पाई। पहले यहां पालतू पशु पानी पीते थे। आज यह डरावना कुंआ बना हुआ है। इसी झील की दो बार विजिलेंस इंक्वारी हुई लेकिन कुछ हल नहीं निकला। वहीं हांसी चुंगी पर करोड़ों की लागत से अग्निशमन केन्द्र व डॉ. हेडग्वार सभागार बनाया गया। जिसे बने हुए लगभग तीन वर्ष हो चुके हैं लेकिन इसका उद्घाटन अभी तक नहीं हुआ और ये भन जर्जर हालत में हो रहे हैं। इसके अलावा सीवरेज व्यवस्था पर करोड़ों खर्च हुए लेकिन ये कस्बावासियों के गले की फांस बनी हुई है। ऐसा रहा बवानी खेड़ा विधान सभा का इतिहास इतिहास खंगालने व जानकारों की मानें तो 1967 में जगन्नाथ, 1968 में सूबेदार प्रभु सिंह, 1972 अमर सिंह, 1977 जगन्नाथ, 1982 में अमर सिंह, 1987 में जगन्नाथ, 1991 में अमर सिंह, 1996 में जगन्नाथ, 2000-2005-2009 रामकिशन फौजी, 2014, 2019 विशंभर वाल्मीकि ने विजय हासिल की। यहां से नेताओं को मंत्रिमंडल में भी स्थान मिला। लेकिन विकास के नाम पर क्या और कितना हुआ किसी से छिपा नहीं। आज करोड़ों रूपए लगाने पश्चात भवन खंडहर बनने को मजबूर दिखाई दे रहे हैं। मंत्री बनने के बाद हलका विकास के मामले में चमकना चाहिए था। लेकिन विकास कस्बा व हलके से कोसों दूर दिखाई देता है।