उत्तर प्रदेश पब्लिक सर्विस कमीशन की प्रोविंशियल सिविल सर्विस (PCS) की प्रारंभिक परीक्षा अब एक शिफ्ट में होगी। 4 दिन तक 20 हजार छात्रों के आंदोलन के बाद कमीशन को फैसला वापस लेना पड़ा। प्रदर्शन कर रहे छात्रों का तर्क है, RO-ARO परीक्षा पर फैसला होने तक वह आंदोलन जारी रखेंगे। दैनिक भास्कर ने छात्रों की मांगों पर आयोग के नरम रुख के बाद पूरी स्ट्रेटजी समझने के लिए 6 किरदारों से बात की। जो आंदोलन के सूत्रधार बने। पढ़िए, पूरी स्ट्रैटजी… शिवाजी पार्क में पहली बैठक, 20 जिलों के छात्रों तक मैसेज पहुंचाया
छात्रों ने बताया कि आंदोलन की रुपरेखा प्रयागराज के मम्फोर्डगंज के शिवाजी पार्क में तैयार हुई। यहां कुछ चेहरे ऐसे थे, जो अफसरों और पुलिस से बातचीत करते, उन्हें छात्रों की परेशानी समझाते। उनमें से 3 किरदारों को FIR दर्ज होने के बाद जेल जाना पड़ा। हम 6 ऐसे किरदारों तक पहुंचे, जिन्होंने आयोग को बैकफुट पर आने को मजबूर किया। मगर अब छात्रों के बीच एक सामान्य चेहरा है। हमने उनके काम करने की स्ट्रैटजी समझी। सामने आया कि छात्रों को अलग-अलग जिम्मेदारियां सौंपी गई थीं। स्टेप बाई स्टेप काम पूरे किए गए। सबसे पहले 20 जिलों के सभी छात्रों को क्लियर मैसेज पहुंचाया गया कि 2 मांगों पर आंदोलन करना है। इसकी जिम्मेदारी 20 छात्रों के ग्रुप के पास थी। उन्होंने प्रतियोगी छात्रों के पास एजेंडा पहुंचाया। 1. UPPSC की परीक्षा एक शिफ्ट में कराई जाए। 2. RO-ARO की परीक्षा की तारीख तय करना। इसके बाद दूसरा स्टेप था कि छात्रों को इकट्ठा करना। सभी तक मुद्दे पहुंचाना। अफसरों से बात करने वाले चेहरे अलग थे, छात्रों के लिए भोजन-पानी की व्यवस्था करने वाले किरदार अलग।आइए, आपको 1–1 करके 6 मुख्य किरदारों के बारे में बताते हैं… 1- पंकज पांडेय: प्लानिंग से लेकर आंदोलन एग्जीक्यूट किया
इस पूरे आंदोलन को ड्राइव करने वाले पंकज पांडेय हैं। भदोही के रहने वाले पंकज प्रयागराज के सलोरी में रहकर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं। वह बताते हैं- जब आयोग ने PCS-प्री और RO/ARO एग्जाम को अलग-अलग डेट में कराने की घोषणा की, उसी दिन हमने कुछ साथियों के साथ विचार किया। सबसे पहले इस अभियान का हिस्सा बनने वालों में सौरभ, आशुतोष, नरेंद्र, विशाल जैसे साथी थे। चाय की दुकान से चर्चा शुरू होने के बाद फव्वारा चौराहा के पास शिवाजी पार्क में पहली बैठक हुई। तय हुआ कि 11 नवंबर को 11 बजे आयोग का घेराव किया जाएगा। इसके बाद एक स्ट्रैटजी बनाई गई, छात्रों की अलग-अलग जिम्मेदारी तय की गई। 2- आशुतोष पांडेय: अफसरों तक बेबाकी से छात्रों की बात पहुंचाई
आशुतोष इस आंदोलन में वह चेहरा थे, जो अफसरों के सामने रहते। जब भी कोई आयोग, पुलिस या प्रशासन का अफसर बातचीत के लिए आता। आशुतोष पांडेय से ही एजेंडा पर चर्चा करता। वह छात्रों के मुद्दों को बेबाकी से रखते। कोशिश होती कि अफसर उनकी बातों को विश्वास के साथ समझें। वह 4 दिन और रात आयोग के गेट पर ही बैठे रहे। हालांकि जब अफसर लौटते तो वह भी भीड़ में गुम हो जाते। अलर्ट रहने के बावजूद गुरुवार को सुबह उन्हें पुलिस ने हिरासत में ले ही लिया। इसके बाद छात्र उन्हें छोड़ने की मांग पर अड़ गए हैं। 3- विशाल तिवारी: स्लोगन ऐसे तैयार किए, जो छा गए
उनकी जिम्मेदारी स्लोगन के जरिए लड़ाई लड़ने की थी। शासन और प्रशासन पर तीखे स्लोगन वार उनके दिमाग की उपज थी। फिर चाहे ‘वह न बंटेंगे या न कटेंगे एक ही रहेंगे’ नारा हो या जमीन पर लिखे चिलम आयोग का स्लोगन। सोशल मीडिया पर आम लाेग इस आंदोलन से स्लोगन के जरिए ही जुड़े। विशाल कहते हैं- इस आंदोलन से छात्रों को भी जोड़ना था। इसलिए कोचिंग, लाइब्रेरी जैसी जगह पर गए। छात्रों को समझाया। फिर छात्रों ने प्रदर्शन अपने हाथों में ले लिया। 4- नरेंद्र कुमार: पत्र-ज्ञापन तैयार किए, उनकी अलग टीम
नरेंद्र को आंदोलन की सीधी भूमिका में नहीं रखा गया। तय हुआ कि वह धरने में शामिल नहीं होंगे। अलग बैठकर पत्र और ज्ञापन तैयार करेंगे, ताकि समय-समय पर अधिकारियों के आने पर उन्हें मुद्दे से अवगत कराया जा सके। साथ ही, छात्रों को क्या-क्या समस्याएं आ रही हैं, यह भी अफसरों को समझाया जा सके। ताकि वह आयोग और शासन तक बात पहुंचा सकें। नरेंद्र के साथ करीब 5 लोगों की और टीम रखी गई। जो यही प्लानिंग करती थी कि पत्र या ज्ञापन में क्या-कुछ लिखना चाहिए। ताकि छात्रों की हक की बात आयोग तक पहुंचे। 5- मो. अजान: 20 हजार छात्रों को आयोग के गेट तक लाना ही चुनौती
अजान कहते हैं इस आंदोलन में कोई नेता नहीं था। सभी साथी नेता थे। क्योंकि यह छात्रों के हक की बात थी। मैं ज्यादातर छात्रों के भोजन-पानी की व्यवस्था संभालता रहा। ताकि आने वाले लोगों को परेशानी कम हो। उन्होंने कहा- परीक्षा को कैसे करानी चाहिए। यह कुछ अफसर तय कर लेते थे। तैयारी करने वाले छात्रों की परेशानी से कोई लेना-देना नहीं। ऐसे में छात्रों का एकजुट होना ही सबसे बड़ी चुनौती थी। 20 हजार छात्र जब गेट पर बैठ गए, तब आयोग को विचार करना पड़ा। उन्होंने कहा कि यहां आने वाला हर शख्स एग्जाम के संबंधित डॉक्यूमेंट लेकर आया था। ताकि कोई यह न कहे कि ये तो किसी पार्टी के आदमी हैं। 6- मोनू पांडेय: सोशल मीडिया पर ड्राइव संभाली
पंकज पांडेय के साथ मोनू अगुआई करते रहे। इस आंदोलन में एक अहम भूमिका सोशल मीडिया की ड्राइव संभालने की थी। वॉट्सऐप और फेसबुक पेज पर छात्रों से आयोग पहुंचने की अपील की जाती थी। उन्होंने कहा- हम आंदोलन करना ही नहीं चाहते थे। डीएम से लेकर आयोग के अफसरों से मुलाकात की गई। मगर उन्होंने ज्ञापन लेने तक खुद को सीमित रखा। छात्रों की सुनवाई नहीं की। वॉट्सऐप ग्रुप और टेलीग्राम से फैलाया मैसेज
छात्रों को जोड़ने में सबसे बड़ी भूमिका सोशल मीडिया की थी। वॉट्सऐप ग्रुप और टेलीग्राम के साथ सोशल मीडिया के अन्य प्लेटफार्म के जरिए यह मैसेज ज्यादा से ज्यादा ग्रुपों में शेयर किया गया। 8-10 ऐसे युवा रहे जो नए स्लोगन और मैसेज बनाते रहे और उसे ग्रुपों में भेजते रहे। इस आंदोलन के लिए 25 से ज्यादा वॉट्सऐप और टेलीग्राम के ग्रुप बनाए गए। इसमें हजारों की संख्या में प्रतियोगी छात्र-छात्राओं को एड किया था। इस ग्रुप में पल-पल की जानकारी दी जा रही थी। राजन, प्रभात साथियों संग सोशल मीडिया पर एक्टिव प्रतियोगी छात्र राजन तिवारी व प्रभात पांडेय सोशल मीडिया पर बहुत सक्रिय रहे। यह विभिन्न सूचनाओं काे वॉट्सऐप ग्रुपों में भेजते रहे। कब और कहां छात्रों को जुटना है यह सब सूचना यह सोशल मीडिया जैसे वॉट्सऐप ग्रुप या टेलीग्राम के जरिए छात्र-छात्राओं तक पहुंचाने का काम करते रहे। इसमें शामिल हर अभ्यर्थी अपने जानने वाले छात्रों को सभी जानकारी दे रहे थे। दरअसल, देर रात और भोर में छात्र-छात्राओं की संख्या धरनास्थल पर कम हो जाती थी। जब छात्राओं की संख्या कम होती थी तो पुलिस के जवान उन्हें हटाने का प्रयास करती थी लेकिन धरने पर बैठे छात्र वॉट्सऐप ग्रुपों में मैसेज डालते और लिखते थे, जल्दी सभी छात्र आयोग गेट पर पहुंचे..आप लोगों की जरूरत है। इसके आधे से एक घंटे में बड़ी संख्या में छात्रों का आना शुरू हो जाता था। ————– अब आयोग के गेट पर डटे छात्रों की खबर पढ़िए… UPPSC ने दो शिफ्ट में परीक्षा का फैसला वापस लिया:लेकिन, RO/ARO एग्जाम में फंसा पेंच; प्रयागराज में 4 दिन से छात्र आंदोलन कर रहे उत्तर प्रदेश पब्लिक सर्विस कमीशन की प्रोविंशियल सिविल सर्विस (PCS) की प्रारंभिक परीक्षा अब एक शिफ्ट में होगी। 20 हजार छात्रों के आंदोलन के बाद कमीशन को 10 दिन में ही फैसला वापस लेना पड़ा। UPPSC ने गुरुवार,14 नवंबर को 2 शिफ्ट में परीक्षा का फैसला वापस ले लिया। पढ़िए पूरी खबर… उत्तर प्रदेश पब्लिक सर्विस कमीशन की प्रोविंशियल सिविल सर्विस (PCS) की प्रारंभिक परीक्षा अब एक शिफ्ट में होगी। 4 दिन तक 20 हजार छात्रों के आंदोलन के बाद कमीशन को फैसला वापस लेना पड़ा। प्रदर्शन कर रहे छात्रों का तर्क है, RO-ARO परीक्षा पर फैसला होने तक वह आंदोलन जारी रखेंगे। दैनिक भास्कर ने छात्रों की मांगों पर आयोग के नरम रुख के बाद पूरी स्ट्रेटजी समझने के लिए 6 किरदारों से बात की। जो आंदोलन के सूत्रधार बने। पढ़िए, पूरी स्ट्रैटजी… शिवाजी पार्क में पहली बैठक, 20 जिलों के छात्रों तक मैसेज पहुंचाया
छात्रों ने बताया कि आंदोलन की रुपरेखा प्रयागराज के मम्फोर्डगंज के शिवाजी पार्क में तैयार हुई। यहां कुछ चेहरे ऐसे थे, जो अफसरों और पुलिस से बातचीत करते, उन्हें छात्रों की परेशानी समझाते। उनमें से 3 किरदारों को FIR दर्ज होने के बाद जेल जाना पड़ा। हम 6 ऐसे किरदारों तक पहुंचे, जिन्होंने आयोग को बैकफुट पर आने को मजबूर किया। मगर अब छात्रों के बीच एक सामान्य चेहरा है। हमने उनके काम करने की स्ट्रैटजी समझी। सामने आया कि छात्रों को अलग-अलग जिम्मेदारियां सौंपी गई थीं। स्टेप बाई स्टेप काम पूरे किए गए। सबसे पहले 20 जिलों के सभी छात्रों को क्लियर मैसेज पहुंचाया गया कि 2 मांगों पर आंदोलन करना है। इसकी जिम्मेदारी 20 छात्रों के ग्रुप के पास थी। उन्होंने प्रतियोगी छात्रों के पास एजेंडा पहुंचाया। 1. UPPSC की परीक्षा एक शिफ्ट में कराई जाए। 2. RO-ARO की परीक्षा की तारीख तय करना। इसके बाद दूसरा स्टेप था कि छात्रों को इकट्ठा करना। सभी तक मुद्दे पहुंचाना। अफसरों से बात करने वाले चेहरे अलग थे, छात्रों के लिए भोजन-पानी की व्यवस्था करने वाले किरदार अलग।आइए, आपको 1–1 करके 6 मुख्य किरदारों के बारे में बताते हैं… 1- पंकज पांडेय: प्लानिंग से लेकर आंदोलन एग्जीक्यूट किया
इस पूरे आंदोलन को ड्राइव करने वाले पंकज पांडेय हैं। भदोही के रहने वाले पंकज प्रयागराज के सलोरी में रहकर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं। वह बताते हैं- जब आयोग ने PCS-प्री और RO/ARO एग्जाम को अलग-अलग डेट में कराने की घोषणा की, उसी दिन हमने कुछ साथियों के साथ विचार किया। सबसे पहले इस अभियान का हिस्सा बनने वालों में सौरभ, आशुतोष, नरेंद्र, विशाल जैसे साथी थे। चाय की दुकान से चर्चा शुरू होने के बाद फव्वारा चौराहा के पास शिवाजी पार्क में पहली बैठक हुई। तय हुआ कि 11 नवंबर को 11 बजे आयोग का घेराव किया जाएगा। इसके बाद एक स्ट्रैटजी बनाई गई, छात्रों की अलग-अलग जिम्मेदारी तय की गई। 2- आशुतोष पांडेय: अफसरों तक बेबाकी से छात्रों की बात पहुंचाई
आशुतोष इस आंदोलन में वह चेहरा थे, जो अफसरों के सामने रहते। जब भी कोई आयोग, पुलिस या प्रशासन का अफसर बातचीत के लिए आता। आशुतोष पांडेय से ही एजेंडा पर चर्चा करता। वह छात्रों के मुद्दों को बेबाकी से रखते। कोशिश होती कि अफसर उनकी बातों को विश्वास के साथ समझें। वह 4 दिन और रात आयोग के गेट पर ही बैठे रहे। हालांकि जब अफसर लौटते तो वह भी भीड़ में गुम हो जाते। अलर्ट रहने के बावजूद गुरुवार को सुबह उन्हें पुलिस ने हिरासत में ले ही लिया। इसके बाद छात्र उन्हें छोड़ने की मांग पर अड़ गए हैं। 3- विशाल तिवारी: स्लोगन ऐसे तैयार किए, जो छा गए
उनकी जिम्मेदारी स्लोगन के जरिए लड़ाई लड़ने की थी। शासन और प्रशासन पर तीखे स्लोगन वार उनके दिमाग की उपज थी। फिर चाहे ‘वह न बंटेंगे या न कटेंगे एक ही रहेंगे’ नारा हो या जमीन पर लिखे चिलम आयोग का स्लोगन। सोशल मीडिया पर आम लाेग इस आंदोलन से स्लोगन के जरिए ही जुड़े। विशाल कहते हैं- इस आंदोलन से छात्रों को भी जोड़ना था। इसलिए कोचिंग, लाइब्रेरी जैसी जगह पर गए। छात्रों को समझाया। फिर छात्रों ने प्रदर्शन अपने हाथों में ले लिया। 4- नरेंद्र कुमार: पत्र-ज्ञापन तैयार किए, उनकी अलग टीम
नरेंद्र को आंदोलन की सीधी भूमिका में नहीं रखा गया। तय हुआ कि वह धरने में शामिल नहीं होंगे। अलग बैठकर पत्र और ज्ञापन तैयार करेंगे, ताकि समय-समय पर अधिकारियों के आने पर उन्हें मुद्दे से अवगत कराया जा सके। साथ ही, छात्रों को क्या-क्या समस्याएं आ रही हैं, यह भी अफसरों को समझाया जा सके। ताकि वह आयोग और शासन तक बात पहुंचा सकें। नरेंद्र के साथ करीब 5 लोगों की और टीम रखी गई। जो यही प्लानिंग करती थी कि पत्र या ज्ञापन में क्या-कुछ लिखना चाहिए। ताकि छात्रों की हक की बात आयोग तक पहुंचे। 5- मो. अजान: 20 हजार छात्रों को आयोग के गेट तक लाना ही चुनौती
अजान कहते हैं इस आंदोलन में कोई नेता नहीं था। सभी साथी नेता थे। क्योंकि यह छात्रों के हक की बात थी। मैं ज्यादातर छात्रों के भोजन-पानी की व्यवस्था संभालता रहा। ताकि आने वाले लोगों को परेशानी कम हो। उन्होंने कहा- परीक्षा को कैसे करानी चाहिए। यह कुछ अफसर तय कर लेते थे। तैयारी करने वाले छात्रों की परेशानी से कोई लेना-देना नहीं। ऐसे में छात्रों का एकजुट होना ही सबसे बड़ी चुनौती थी। 20 हजार छात्र जब गेट पर बैठ गए, तब आयोग को विचार करना पड़ा। उन्होंने कहा कि यहां आने वाला हर शख्स एग्जाम के संबंधित डॉक्यूमेंट लेकर आया था। ताकि कोई यह न कहे कि ये तो किसी पार्टी के आदमी हैं। 6- मोनू पांडेय: सोशल मीडिया पर ड्राइव संभाली
पंकज पांडेय के साथ मोनू अगुआई करते रहे। इस आंदोलन में एक अहम भूमिका सोशल मीडिया की ड्राइव संभालने की थी। वॉट्सऐप और फेसबुक पेज पर छात्रों से आयोग पहुंचने की अपील की जाती थी। उन्होंने कहा- हम आंदोलन करना ही नहीं चाहते थे। डीएम से लेकर आयोग के अफसरों से मुलाकात की गई। मगर उन्होंने ज्ञापन लेने तक खुद को सीमित रखा। छात्रों की सुनवाई नहीं की। वॉट्सऐप ग्रुप और टेलीग्राम से फैलाया मैसेज
छात्रों को जोड़ने में सबसे बड़ी भूमिका सोशल मीडिया की थी। वॉट्सऐप ग्रुप और टेलीग्राम के साथ सोशल मीडिया के अन्य प्लेटफार्म के जरिए यह मैसेज ज्यादा से ज्यादा ग्रुपों में शेयर किया गया। 8-10 ऐसे युवा रहे जो नए स्लोगन और मैसेज बनाते रहे और उसे ग्रुपों में भेजते रहे। इस आंदोलन के लिए 25 से ज्यादा वॉट्सऐप और टेलीग्राम के ग्रुप बनाए गए। इसमें हजारों की संख्या में प्रतियोगी छात्र-छात्राओं को एड किया था। इस ग्रुप में पल-पल की जानकारी दी जा रही थी। राजन, प्रभात साथियों संग सोशल मीडिया पर एक्टिव प्रतियोगी छात्र राजन तिवारी व प्रभात पांडेय सोशल मीडिया पर बहुत सक्रिय रहे। यह विभिन्न सूचनाओं काे वॉट्सऐप ग्रुपों में भेजते रहे। कब और कहां छात्रों को जुटना है यह सब सूचना यह सोशल मीडिया जैसे वॉट्सऐप ग्रुप या टेलीग्राम के जरिए छात्र-छात्राओं तक पहुंचाने का काम करते रहे। इसमें शामिल हर अभ्यर्थी अपने जानने वाले छात्रों को सभी जानकारी दे रहे थे। दरअसल, देर रात और भोर में छात्र-छात्राओं की संख्या धरनास्थल पर कम हो जाती थी। जब छात्राओं की संख्या कम होती थी तो पुलिस के जवान उन्हें हटाने का प्रयास करती थी लेकिन धरने पर बैठे छात्र वॉट्सऐप ग्रुपों में मैसेज डालते और लिखते थे, जल्दी सभी छात्र आयोग गेट पर पहुंचे..आप लोगों की जरूरत है। इसके आधे से एक घंटे में बड़ी संख्या में छात्रों का आना शुरू हो जाता था। ————– अब आयोग के गेट पर डटे छात्रों की खबर पढ़िए… UPPSC ने दो शिफ्ट में परीक्षा का फैसला वापस लिया:लेकिन, RO/ARO एग्जाम में फंसा पेंच; प्रयागराज में 4 दिन से छात्र आंदोलन कर रहे उत्तर प्रदेश पब्लिक सर्विस कमीशन की प्रोविंशियल सिविल सर्विस (PCS) की प्रारंभिक परीक्षा अब एक शिफ्ट में होगी। 20 हजार छात्रों के आंदोलन के बाद कमीशन को 10 दिन में ही फैसला वापस लेना पड़ा। UPPSC ने गुरुवार,14 नवंबर को 2 शिफ्ट में परीक्षा का फैसला वापस ले लिया। पढ़िए पूरी खबर… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर