राइफलधारी वनकर्मियों में भी खौफ, लोगों को आगे कर रहे:लखीमपुर में टाइगर 5 दिन में 3 बच्चों को खा गया, किसानों ने खेत जाना छोड़ा राजधानी से करीब डेढ़ सौ किलोमीटर दूर लखीमपुर जिले में 50 से ज्यादा गांवों में बाघ का खौफ है। बाघ 5 दिन के भीतर तीन बच्चों को खा गया। जब तक शोर मचता है, आदमखोर शिकार कर गन्ने के खेतों में कहां गायब हो जाता है, पता नहीं चलता। आदमखोर का खौफ इस कदर है कि राइफल लेकर चलने वाली पुलिस और वन विभाग की टीम भी इन गन्ने के खेतों में घुसने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही। वह गांव वालों को ही आगे कर हमले के शिकार व्यक्ति को तलाशने को कहती है। इससे लोगों में गुस्सा है। वे कहते हैं- जिन पर बचाने की जिम्मेदारी है, वही डर रहे हैं। अपनों की सुरक्षा हमें खुद करनी पड़ रही है। बहराइच में भेड़ियों के हमले के बीच पड़ोस का जिला अब बाघों के आतंक में क्यों है? लोग कैसे रह रहे हैं? सुरक्षा के लिए प्रशासन क्या कुछ कर रहा है? दैनिक भास्कर यह जानने के लिए पीड़ितों और प्रशासन के पास पहुंचा। सबसे पहले उन लोगों की कहानी, जिन्होंने अपनों को खोया मूड़ा अस्सी गांव: हल्की सी चीख सुनाई दी, चार खेत बाद लाश मिली
लखीमपुर खीरी से करीब 30 किलोमीटर दूर गोला तहसील है। यहीं हैदराबाद थाना क्षेत्र के मूड़ा अस्सी गांव के जाकिर अपने 5 और साथियों के साथ गन्ना बांधने गए थे। गन्ना बांधने के लिए 200 रुपए मजदूरी मिलती है। जिस खेत में थे, वह घर से करीब 500 मीटर दूर है। जाकिर बांधते हुए बाकी के 4 लोगों से करीब 50 मीटर आगे बढ़ गए। अंदर ही बैठे बाघ ने अचानक हमला कर दबोच लिया और मार दिया। बाकी चारों को भनक तक नहीं लगी। साथ गन्ना बांधने गए मनोज हमले के बाद से बेहद डरे हुए हैं। वह उस घटना को लेकर कहते हैं- जाकिर गन्ना बांधते हुए आगे बढ़ गए। जब उन पर बाघ ने हमला किया तो मध्यम आवाज में चीखने की आवाज आई। लेकिन, हम लोगो ने सोचा कि खेत में कोई बर्रैया या मधुमक्खी वगैरह ने काटा होगा, क्योंकि दोबारा आवाज नहीं आई। यह एकदम तय नहीं था कि बाघ ही होगा। क्योंकि हम लोग काम करने से पहले गन्ने के खेत का एक चक्कर लगा चुके थे। मनोज कहते हैं- जैसे ही हम लोग आगे बढ़े, देखा खून पड़ा है। उसके बाद सब भागे। गांव आए। यहां लोगों को इकट्ठा किया। फिर करीब 50 से ज्यादा लोग गए। जिधर खून गिरा था, उधर खोजा गया तो 4 खेत बाद जाकिर की लाश मिली। इस घटना के बाद हम खेत में गए ही नहीं। पता नहीं कब शेर खा जाए? वन विभाग सिर्फ शेर को बचा रहा है। हम लोगों का पूरा काम बंद हो गया है। ‘पति कमाते थे तो घर चलता था, अब 5 बच्चों का पेट भरना है’
जाकिर की पत्नी हनीफा कहती हैं कि उनके भाई और भतीजे भी गन्ना बांधने गए थे। लेकिन, जब घटना हुई तो किसी को कुछ पता नहीं चला। वो लोग घर पर आकर पूछने लगे कि यहां तो नहीं आए। जब हमने कहा कि नहीं, तब सब खेत की तरफ भागे। पुलिस को फोन किया गया। वो लोग आए, लेकिन पीछे-पीछे चल रहे थे। हनीफा के 5 बच्चे हैं। खेत नहीं है। पति मजदूरी करते थे तो उसी से घर चलता था। मुआवजे और मदद को लेकर हनीफा कहती हैं- जब मौत हुई तो यहां के लोगों ने सड़क पर शव रखकर प्रदर्शन किया। तब एक बीघा खेत, एक आवास, एक नौकरी और 5 लाख रुपए मदद का आश्वासन मिला। 6 दिन बीत गए, लेकिन कोई भी इसके बारे में पूछने नहीं आया। जाकिर के बड़े बेटे आरिफ के साथ हम उस जगह पहुंचे, जहां बाघ ने उनके पिता पर हमला किया था। आसपास चारों तरफ गन्ने का खेत है। परिवार चलाने के सवाल पर वह कहते हैं- घर का बड़ा हूं तो करना सब कुछ मुझे ही है। कुछ मदद मिलेगी तो अच्छा होगा। जो हुआ, वह अच्छा नहीं हुआ। इमलियां गांव: ‘गन्ने के खेत में पति की बिना सिर के लाश मिली’
मूड़ा अस्सी गांव से निकलकर हम इमलिया गांव पहुंचे। यहां 27 अगस्त को बाघ ने अंबरीश कुमार को अपना शिकार बनाया था। घर पर उनकी पत्नी राजकुमारी मिलीं। वह कहती हैं- पति जानवर के लिए घास लाने गए थे। वहीं गन्ना गिरा हुआ था तो उसे बांधने लग गए। काफी देर हो गई तो हमने फोन लगाया। लेकिन, फोन उठा नहीं। हमारा लड़का उन्हें खोजने हुए खेत में पहुंचा तो देखा साइकिल खड़ी है। राजकुमारी कहती हैं- बेटे ने जब हमें यह बताया तो हमने कहा तुम गन्ने के खेत में मत जाना। हम आ रहे हैं। यहां से कई लोग गए। जब गन्ने के अंदर खोजना शुरू किया तो करीब 400 मीटर दूर पति की लाश पड़ी थी। सिर शरीर से अलग था। कान वाला हिस्सा भी बाघ खा गया था। राजकुमारी गुस्से में कहती हैं कि 5-5 लाख रुपए देकर कितने लोगों को मरवाएंगे। कितनी महिलाओं को कटोरा लेकर वन विभाग के पास भीख मंगवाएंगे? कोई किसान जंगल से लकड़ी लाए तो वन विभाग के पास उसकी सजा है। लेकिन, जंगल का शेर किसी को खा जाए तो कोई सजा नहीं है। आखिर ऐसे कितनी महिलाएं विधवा होती रहेंगी? अंबरीश के बेटे योगेश कुमार कहते हैं, असल में हम दो भाई और मम्मी ने ही पापा को ढूंढा। इसके बाद पुलिस, ग्राम प्रधान और वन विभाग के लोग आए। पुलिस के पास राइफल थी, लेकिन वो मेरे 14 साल के भाई को कह रहे थे कि तुम आगे चलो। जबकि राइफल पुलिस के हाथ में थी। उन्हें आगे चलना था। मुआवजे को लेकर योगेश कहते हैं- 4 लाख राजस्व विभाग से मिला। वन विभाग ने कल 1 लाख रुपए का चेक दिया है, लेकिन उसमें पापा के नाम की स्पेलिंग गलत है। 5 दिन के अंदर 3 बच्चों को खा गया बाघ 30 जुलाई: खीरी थाने के डीहपुरवा गांव में 10 साल के कृष्णकांत को घर के पास से ही जंगली जानवर उठाकर ले गया। काफी खोजबीन के बाद कृष्णकांत की लाश मिली। उस वक्त बाघ के हमले की चर्चा नहीं थी, इसलिए तेंदुए का हमला कहा गया। लेकिन, अब लोग बाघ का हमला बता रहे। 1 अगस्त: शारदा नगर रेंज के मैनहा गांव में जानवरों के लिए चारा लेने गए 9 साल के मासूम आनंद पर जंगली जानवर ने हमला कर दिया। उसका शव गन्ने के खेत में मिला। आनंद का घर सीतापुर जिले के जैतापुर गांव में है। वह यहां अपने नाना के घर आया था। वन विभाग के अधिकारियों ने इसे तेंदुए का हमला बताया था। 3 अगस्त: बांकेगंज इलाके के बलारपुर गांव में 13 साल की बच्ची जानकी अपनी दादी के साथ घास काटने गई थी। तभी बाघ आया और जानकी को जबड़े में दबाकर गन्ने के खेत में खींच ले गया। दादी चिल्लाती रहीं, लेकिन बाघ ने नहीं छोड़ा। जब तक और लोग पहुंचते, जानकी की मौत हो चुकी थी। 12 अप्रैल को मौत हुई, वन विभाग से मुआवजा नहीं मिला
गोला से करीब 10 किमी दूर ग्रंट लंदनपुर ग्राम पंचायत के हरैया गांव में 12 अप्रैल को रामू शर्मा पर बाघ ने हमला कर दिया। रामू की चीख सुनकर लोग पहुंचे। रामू के गर्दन और कान पर गहरी चोट थी। उसके चेहरे को कपड़े से बांध दिया गया। रामू को हॉस्पिटल लेकर गए, लेकिन वहां मौत हो गई। रामू की पत्नी सरोजनी देवी कहती हैं- उस वक्त बहुत सारे अफसर लोग आए। 4 लाख रुपए का चेक मिला था। हमने पूछा कि वन विभाग जो 1 लाख 20 हजार देता है वह मिला? वह कहती हैं- ये पैसा नहीं मिला। हम यहां अफसरों व विधायक के पास गए, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। हमारे 5 बच्चे हैं, अब मजदूरी करके पाल रही हूं। इतना कहकर वह भावुक हो गईं। इंसानों पर इसलिए बढ़े हमले… अब तक छुट्टा जानवरों का शिकार करते थे बाघ
बाघों के लगातार हो रहे हमलों को लेकर हम यहां राष्ट्रीय किसान शक्ति संगठन के प्रदेश उपाध्यक्ष श्रीकृष्ण वर्मा से मिले। जिन लोगों की बाघ के हमले में मौत हुई, श्रीकृष्ण उन परिवारों की मदद करते हैं। वह बाघ को पकड़ने को लेकर अक्सर प्रदर्शन करते हैं। श्रीकृष्ण कहते हैं- हमारे यहां एक नहीं, अनेक बाघ हैं। पिछले 2 साल से यह दिख रहे हैं। हमारे यहां नीलगाय, सुअर व छुट्टा पशु बहुत थे, बाघ उनको अपना शिकार बनाते थे। लेकिन, अब वह खत्म हो गए। श्रीकृष्ण ने कहा कि वन विभाग के अधिकारी डर रहे हैं। जहां बाघ के हमले हो रहे, वहां पहुंच भी रहे हैं तो लोगों को आगे रख रहे हैं, खुद पीछे रहते हैं। वन विभाग अगर चाहे तो 12 घंटे के अंदर बाघ पकड़ सकता है, लेकिन ऐसा लगता है कि वह पकड़ना नहीं चाहते। हमने तो मोड़ा वाली घटना के बाद अधिकारियों के सामने कहा था कि अगर आप लोग नहीं पकड़ पा रहे तो हमें लिखित में छूट दे दीजिए, हम पूरे इलाके के बाघों को खदेड़कर जंगल में पहुंचा देंगे। गन्ने के खेत चुनौती, 2 साल में सिर्फ 1 बाघिन पकड़ी गई
गोला में बड़ी चीनी मिल है। इसलिए यहां पूरे इलाके में गन्ने के ही खेत नजर आते हैं। सिर्फ 1 से 2 फीसदी रकबे में ही दूसरी फसल लगती है। कई जगहों पर तो गांव के किनारे-किनारे और गांव में जाने वाले सड़कों के दोनों तरफ गन्ने ही दिखते हैं। ये गन्ने के खेत जंगली जानवरों के शिकार के लिए सबसे मुफीद होते हैं। अब तक जितने भी हमले हुए सभी की लाश इन्हीं गन्नों के खेतों में मिली। वन विभाग के एक कर्मचारी कहते हैं- कई बार हमें सूचना मिली कि फला गांव में बाघ देखा गया। हम लोग वहां पहुंचे। पहुंचने और सेटअप तैयार करने में एक घंटे लग ही जाते हैं, ऐसे में बाघ दूसरी जगह जा चुका होता है। फिर अगर गन्ने के खेत में भी छिप जाए तो हम उसे देख नहीं पाते। हमने इसके लिए इलाके में एक दर्जन से ज्यादा कैमरे लगाए हैं। कई जगह पिंजरा रखा गया है। लखीमपुर जिले में पिछले 5 साल में 30 से ज्यादा लोग जंगली जानवरों के हमले का शिकार हुए हैं। इसमें 20 से ज्यादा मामलों में बाघों का अटैक रहा है। पिछले दो साल में ही 15 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। वन विभाग सिर्फ एक बाघिन पकड़ सका है। 29 जून 2022 को मंझरा पूरब इलाके से 20 लोगों को मारने वाली बाघिन को पकड़ा गया था। इसे लखनऊ चिड़ियाघर में रखा गया है। इसके अलावा अब तक कहीं भी कोई पकड़ नहीं हो सकी। इलाके में डर की स्थिति यह हो गई है कि अब लोग अपने ही खेतों में जाने से बच रहे हैं। वन विभाग अपने स्तर पर पकड़ने की कोशिश कर रहा है। ये भी पढ़ें… लखीमपुर खीरी में बाघ का आतंक:इमलिया गांव में मचा हड़कंप, सरायन नदी के पास मिली बाघ की लोकेशन लखीमपुर खीरी के गोला गोकर्णनाथ के नजदीक इमलिया गांव में बाघ के आतंक से ग्रामीणों में खौफ का माहौल है। मंगलवार को सरायन नदी के आसपास बाघ की गतिविधियों की सूचना मिली जिसके बाद वन विभाग ने ट्रैक्टर और जाल लगाकर इलाके की घेराबंदी शुरू कर दी है। सोमवार को गोला पहुंचे प्रभागीय वनाधिकारी शाहजहांपुर प्रखर गुप्ता और लखीमपुर डीएफओ संजय विस्वाल ने इमलिया गांव का दौरा किया। डीएफओ ने बताया कि बाघ को पकड़ने के लिए व्यापक इंतजाम किए गए हैं, जिसमें दो ड्रोन कैमरे और वन कर्मियों की मदद शामिल है। बाघ के हमले के बाद से इमलिया गांव में दहशत का माहौल बना हुआ है। पूरी खबर पढ़ें…