काशी के गुटखा कारोबारी की आत्महत्या की कहानी:उधार के 25 लाख मिले नहीं, शेयर में भी 10 लाख डूबे…घर पर बढ़ा झगड़ा

काशी के गुटखा कारोबारी की आत्महत्या की कहानी:उधार के 25 लाख मिले नहीं, शेयर में भी 10 लाख डूबे…घर पर बढ़ा झगड़ा

काशी के गुटखा कारोबारी ने खुद को लाइसेंसी पिस्टल से गोली मार ली। 16 नवंबर को सुसाइड करने वाले विजय राठौर 1 साल से डिप्रेशन में थे। दैनिक भास्कर ने उनके पड़ोसी और दोस्तों से अलग-अलग बात की। सामने आया कि फाइनेंशियल नुकसान ज्यादा होने से विजय टूट गए थे। 7 दिन पहले से डिप्रेशन की दवाएं भी लेना बंद कर दिया था। विजय ने 25 लाख का उधार बांटा, जो वापस नहीं मिल रहा था। शेयर बाजार में भी 10 लाख रुपए डूब गए थे। परिवार के अंदर हो रहे विवादों ने उनकी परेशानी को बढ़ा दिया था। चाय-पान की दुकानों पर लगने वाली अड़ी पर बैठना छोड़ दिया था। पढ़िए वाराणसी से पूरी रिपोर्ट… गुटखा कारोबार से प्रॉपर्टी बनाई, मगर दूसरे इन्वेस्टमेंट में नुकसान हुआ
पान कारोबारी रतन गुप्ता के मुताबिक, विजय कई तरह के मानसिक दबाव में थे। गुटखा कारोबार से होने वाली कमाई से विजय ने शहर में 4 मकान खरीदे। साथ ही, छोटे कारोबारियों को ब्याज पर उधार पैसा बांटा। इनमें ऐसे लोग भी थे, जिन्होंने विजय से पैसा लेकर शेयर बाजार में लगाया और मुनाफा कमाया। लेकिन, जब विजय ने शेयर मार्केट में पैसा इन्वेस्ट किया, तो उनके करीब 10 लाख रुपए डूब गए। दूसरी तरफ, जिन लोगों को पैसा उधार दिया था, उन्होंने रुपए वापस नहीं किए। फोन तक उठाने बंद कर दिए। जो लोग फोन पर बात करते, वो बिजनेस में घाटे का बहाना करते। इधर, परिवार में भी विवाद होने लगे। इससे विजय परेशान रहने लगे। भतीजी की शादी भी टूट गई थी
विजय की शादी करीब 25 साल पहले श्वेता सिंह से हुई थी। दो बेटियां संस्कृति, श्रुति और एक बेटा शिवांश है। तीन भाई-बहनों में शिवांश (11) सबसे छोटा है। विजय 4 भाइयों में सबसे छोटे थे। कुछ साल पहले एक भाई वीरेंद्र की लिवर ट्रांसप्लांट के दौरान मौत हो गई थी। इसके बाद वीरेंद्र के बेटे ने घर छोड़ दिया और अपनी पत्नी के साथ किराए के मकान में रहने लगा था। जबकि, वीरेंद्र की पत्नी और उसकी बेटी विजय के मकान के पिछले हिस्से में मौजूद पुश्तैनी मकान में रहती हैं। वीरेंद्र की बेटी की शादी का जिम्मा विजय ने ही उठाया था। लेकिन, किस्मत यहां भी दगा दे गई। सब कुछ तय होने के बाद लड़के वालों ने रिश्ता तोड़ दिया, जिससे विजय और तनाव में रहने लगे थे। दशहरा में थाने से पिस्टल भी छुड़ाई
जिस लाइसेंसी पिस्टल से विजय ने खुद को गोली मारी, उसे उन्होंने दशहरा के दिन थाने से छुड़ाई थी। मई में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने पिस्टल थाने में जमा कराई थी। कुछ मित्रों ने उनकी मानसिक हालत को समझते हुए पिस्टल थाने में ही जमा रहने पर जोर दिया था। दशहरा पर शस्त्र पूजन के लिए विजय अपनी बेटी के साथ थाने पहुंचे और पिस्टल छुड़ा लाए थे। पारिवारिक मित्रों का मानना है कि विजय के दिमाग में आत्मघाती कदम उठाने की प्लानिंग चल रही होगी। तभी थाने से पिस्टल वापस ली थी। पुश्तैनी मकान में बंटवारे के विवाद ने और परेशान किया
विजय का कारोबार अच्छा-खासा फैला था। इससे वह अन्य भाइयों से ज्यादा संपन्न थे। कुछ महीने पहले पुश्तैनी मकान के बंटवारे को लेकर भी घर में विवाद हो गया था। वीरेंद्र की पत्नी बंटवारे में मिले हिस्से को लेकर खुश नहीं थी। इसके लिए वह विजय को ही जिम्मेदार मानती थी। मेवा बीड़ी वाले के नाम से मशहूर था परिवार
पान दरीबा, कालिमहल के आसपास इलाके में विजय के परिवार का काफी नाम था। विजय के पिता मेवा बीड़ी के नाम से बीड़ी बनाकर बेचते थे। वाराणसी समेत आसपास के जिलों में सप्लाई थी। बड़े भाई वीरेंद्र की मौत के बाद विजय ने अपना कारोबार अलग कर लिया था, जबकि अन्य भाई राजू और संजय पुश्तैनी कारोबार से जुड़े रहे। नया मकान में शिफ्ट होने के बाद बदला व्यवहार
विजय ने करीब डेढ़ साल पहले पुश्तैनी मकान के बगल में ही अपना निजी चार मंजिला मकान बनवाया था। शहर में तीन-चार मकान और जमीनें खरीदी थीं। परिवार से जुड़े मित्रों ने बताया कि जब से विजय इस मकान में रहने आए, तभी से उनका व्यवहार अचानक बदलने लगा था। ————————-
यह भी पढ़ें : जेल में कैदी की मौत…परिजनों ने दरोगा को थप्पड़ मारा:लाश मॉर्च्युरी में लॉक कर भागे पुलिसकर्मी; वाराणसी में दहेज हत्या केस में बंद था वाराणसी जेल में दहेज हत्या मामले में बंद एक कैदी की मौत हो गई। पुलिस वाले बॉडी को पंडित दीन दयाल अस्पताल के मॉर्च्युरी लाए। इसके बाद मॉर्च्युरी में बॉडी को लॉक करके चले गए। इसकी खबर मिलते ही कैदी के घर वाले मॉर्च्युरी पहुंच गए। वहां उनकी और कैदी के घर वालों के बीच मारपीट हो गई। पढ़िए पूरी खबर… काशी के गुटखा कारोबारी ने खुद को लाइसेंसी पिस्टल से गोली मार ली। 16 नवंबर को सुसाइड करने वाले विजय राठौर 1 साल से डिप्रेशन में थे। दैनिक भास्कर ने उनके पड़ोसी और दोस्तों से अलग-अलग बात की। सामने आया कि फाइनेंशियल नुकसान ज्यादा होने से विजय टूट गए थे। 7 दिन पहले से डिप्रेशन की दवाएं भी लेना बंद कर दिया था। विजय ने 25 लाख का उधार बांटा, जो वापस नहीं मिल रहा था। शेयर बाजार में भी 10 लाख रुपए डूब गए थे। परिवार के अंदर हो रहे विवादों ने उनकी परेशानी को बढ़ा दिया था। चाय-पान की दुकानों पर लगने वाली अड़ी पर बैठना छोड़ दिया था। पढ़िए वाराणसी से पूरी रिपोर्ट… गुटखा कारोबार से प्रॉपर्टी बनाई, मगर दूसरे इन्वेस्टमेंट में नुकसान हुआ
पान कारोबारी रतन गुप्ता के मुताबिक, विजय कई तरह के मानसिक दबाव में थे। गुटखा कारोबार से होने वाली कमाई से विजय ने शहर में 4 मकान खरीदे। साथ ही, छोटे कारोबारियों को ब्याज पर उधार पैसा बांटा। इनमें ऐसे लोग भी थे, जिन्होंने विजय से पैसा लेकर शेयर बाजार में लगाया और मुनाफा कमाया। लेकिन, जब विजय ने शेयर मार्केट में पैसा इन्वेस्ट किया, तो उनके करीब 10 लाख रुपए डूब गए। दूसरी तरफ, जिन लोगों को पैसा उधार दिया था, उन्होंने रुपए वापस नहीं किए। फोन तक उठाने बंद कर दिए। जो लोग फोन पर बात करते, वो बिजनेस में घाटे का बहाना करते। इधर, परिवार में भी विवाद होने लगे। इससे विजय परेशान रहने लगे। भतीजी की शादी भी टूट गई थी
विजय की शादी करीब 25 साल पहले श्वेता सिंह से हुई थी। दो बेटियां संस्कृति, श्रुति और एक बेटा शिवांश है। तीन भाई-बहनों में शिवांश (11) सबसे छोटा है। विजय 4 भाइयों में सबसे छोटे थे। कुछ साल पहले एक भाई वीरेंद्र की लिवर ट्रांसप्लांट के दौरान मौत हो गई थी। इसके बाद वीरेंद्र के बेटे ने घर छोड़ दिया और अपनी पत्नी के साथ किराए के मकान में रहने लगा था। जबकि, वीरेंद्र की पत्नी और उसकी बेटी विजय के मकान के पिछले हिस्से में मौजूद पुश्तैनी मकान में रहती हैं। वीरेंद्र की बेटी की शादी का जिम्मा विजय ने ही उठाया था। लेकिन, किस्मत यहां भी दगा दे गई। सब कुछ तय होने के बाद लड़के वालों ने रिश्ता तोड़ दिया, जिससे विजय और तनाव में रहने लगे थे। दशहरा में थाने से पिस्टल भी छुड़ाई
जिस लाइसेंसी पिस्टल से विजय ने खुद को गोली मारी, उसे उन्होंने दशहरा के दिन थाने से छुड़ाई थी। मई में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने पिस्टल थाने में जमा कराई थी। कुछ मित्रों ने उनकी मानसिक हालत को समझते हुए पिस्टल थाने में ही जमा रहने पर जोर दिया था। दशहरा पर शस्त्र पूजन के लिए विजय अपनी बेटी के साथ थाने पहुंचे और पिस्टल छुड़ा लाए थे। पारिवारिक मित्रों का मानना है कि विजय के दिमाग में आत्मघाती कदम उठाने की प्लानिंग चल रही होगी। तभी थाने से पिस्टल वापस ली थी। पुश्तैनी मकान में बंटवारे के विवाद ने और परेशान किया
विजय का कारोबार अच्छा-खासा फैला था। इससे वह अन्य भाइयों से ज्यादा संपन्न थे। कुछ महीने पहले पुश्तैनी मकान के बंटवारे को लेकर भी घर में विवाद हो गया था। वीरेंद्र की पत्नी बंटवारे में मिले हिस्से को लेकर खुश नहीं थी। इसके लिए वह विजय को ही जिम्मेदार मानती थी। मेवा बीड़ी वाले के नाम से मशहूर था परिवार
पान दरीबा, कालिमहल के आसपास इलाके में विजय के परिवार का काफी नाम था। विजय के पिता मेवा बीड़ी के नाम से बीड़ी बनाकर बेचते थे। वाराणसी समेत आसपास के जिलों में सप्लाई थी। बड़े भाई वीरेंद्र की मौत के बाद विजय ने अपना कारोबार अलग कर लिया था, जबकि अन्य भाई राजू और संजय पुश्तैनी कारोबार से जुड़े रहे। नया मकान में शिफ्ट होने के बाद बदला व्यवहार
विजय ने करीब डेढ़ साल पहले पुश्तैनी मकान के बगल में ही अपना निजी चार मंजिला मकान बनवाया था। शहर में तीन-चार मकान और जमीनें खरीदी थीं। परिवार से जुड़े मित्रों ने बताया कि जब से विजय इस मकान में रहने आए, तभी से उनका व्यवहार अचानक बदलने लगा था। ————————-
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