जौनपुर की शाही अटाला मस्जिद मामले में 18 फरवरी को होने वाली सुनवाई नहीं हो पाई थी। एडीजे चतुर्थ कोर्ट में पत्रावली नहीं पहुंच पाने के कारण 15 अप्रैल 2025 की तारीख तय की गई थी। हिन्दू पक्ष का दावा है कि इस तारीख पर मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज हो जाएगी। दरअसल, स्वराज वाहिनी की तरफ से अटाला मस्जिद को अटाला देवी मंदिर होने का दावा किया गया है। इसके बाद से मामला गरमाया हुआ है। स्वराज वाहिनी एसोसिएशन ने कोर्ट में याचिका दायर की थी। इस याचिका में दावा किया गया है कि जौनपुर की अटाला मस्जिद पूर्व में अटाला देवी का मंदिर हुआ करता था। इसे तोड़ कर मंदिर स्थापित की गई है। इसमें हिन्दू पक्ष को पूजा की इजाजत दी जाए। इस प्रकरण को लेकर कोर्ट में भी सुनवाई होनी थी। इस मामले में कोर्ट की ओर से कई बार तारीख पड़ी। दोनों पक्ष रख चुके हैं अपनी दलील
पूर्व में अटाला मस्जिद प्रकरण को लेकर वक्फ अटाला मस्जिद ने सिविल जज सुधा शर्मा की कोर्ट प्रार्थना पत्र दिया। इसमें कहा था कि वादी स्वराज वाहिनी संगठन के प्रदेश अध्यक्ष संतोष कुमार मिश्रा का दावा पोषणीय नहीं है। कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद वक्फ अटाला मस्जिद का प्रार्थना पत्र निरस्त कर दिया और विपक्षी गण को जवाबदेही, अमीन की रिपोर्ट, अस्थाई निषेधाज्ञा पर आपत्ति की सुनवाई के लिए तिथि नीयत की थी। 13वीं सदी में बना था मंदिर: हिंदू पक्ष
स्वराज वाहिनी एसोसिएशन और एक अन्य याचिकाकर्ता संतोष कुमार मिश्रा ने दावा किया है अटाला मस्जिद पहले अटाला देवी मंदिर थी। यहां हिंदुओं को पूजा करने का अधिकार मिलना चाहिए। उनका कहना है कि अटाला देवी मंदिर का निर्माण 13वीं सदी में राजा विजय चंद्र ने करवाया था। मंदिर नहीं, अटाला मस्जिद: मुस्लिम पक्ष
अटाला मस्जिद प्रशासन ने भी हाई कोर्ट से गुहार लगाई है। मस्जिद प्रशासन का तर्क है कि यहां हमेशा से मस्जिद ही रही है। यहां नमाज पढ़ी जाती रही है। मस्जिद से जुड़े सारे दस्तावेज उनके पास हैं। ऐसे में इस पूरे मामले में अनावश्यक विवाद को जन्म दिया जा रहा है। अटाला देवी मंदिर होने के दावों का आधार हिंदुओं ने किया था मंदिर तोड़े जाने का विरोध
जौनपुर के इतिहास पर लिखी त्रिपुरारि भास्कर की किताब ‘जौनपुर का इतिहास’ में अटाला मस्जिद के बारे में लिखा गया है- लोगों का विचार है कि यहां पहले अटल देवी का मंदिर था। क्योंकि, अब भी मोहल्ला सिपाह के पास गोमती नदी किनारे अटल देवी का विशाल घाट है। इसका निर्माण कन्नौज के राजा विजयचंद्र ने कराया था। इसकी देखरेख जफराबाद के गहरवार लोग किया करते थे। यह कहा जाता है कि इस मंदिर को गिराने का आदेश फिरोज शाह ने दिया था। लेकिन हिंदुओं ने इसका विरोध किया। जिसके कारण समझौता होने पर उसे उसी प्रकार रहने दिया गया था। लेकिन कहानी यहीं नहीं रुकी। 1364 ई. में ख्वाजा कमाल खां ने इसे मस्जिद का रूप देना शुरू किया। 1408 में इसे इब्राहिम शाह ने पूरा किया। इसके विशाल लेखों से पता चलता है कि इसके पत्थर काटने वाले राजगीर हिंदू थे। जिन्होंने इस पर हिंदू शैली के नमूने तराशे हैं। कहीं-कहीं पर कमल का पुष्प है। इसके बीच के कमरे का घेरा करीब 30 फीट है। 1875-76 में ASI के रिपोर्ट में मिलता है अटाला देवी मंदिर का जिक्र
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की स्थापना करने वाले और उसके पहले डायरेक्टर थे अलेक्जेंडर कनिंघम। कनिंघम भारत के अतीत की खोज के क्रम में देशभर में यात्राएं करते और पुरातात्विक खुदाइयां करते। इन खुदाइयों में जो कुछ मिलता उनका वह तब उपलब्ध प्राचीन साहित्यिक स्रोतों में अस्तित्व तलाशते। इन्हीं दौरों में से 1875-76 और 1877-78 में उन्होंने गंगा के मैदानी भागों यानी आज के उत्तर प्रदेश के एक बड़े भूभाग का दौरा किया। इस दौरान उन्हें जो कुछ दिखा और मिला उसका प्रकाशन ASI की सलाना रिपोर्ट में किया। वह हर साल अपने दौरों पर एक सलाना रिपोर्ट पब्लिश करते। 1875-76 और 1877-1877-78 की रिपोर्ट में वो अटाला देवी मंदिर का जिक्र करते हैं। जौनपुर में उन्हें जो कुछ दिखा, उसका वर्णन उन्होंने अपनी रिपोर्ट के पेज नंबर-102 से करना शुरू किया। इसके पेज नंबर 104 पर वह अटाला देवी मंदिर के बारे में बात करते हैं। तब इस मंदिर की जगह अस्तित्व में रहे अटाला मस्जिद के वास्तुकला का हवाला देते हुए उसे अटाला देवी मंदिर से जोड़ते हैं। वो कहते हैं कि जौनपुर में ऐसी कोई मस्जिद नहीं है जो किसी मंदिर को तोड़कर न बनाई गई हो। वो अटाला मस्जिद को तब जौनपुर में मौजूद सभी मस्जिदों में सबसे सुंदर बताते हैं। ‘पुराणों में जिस अटाला मंदिर का वर्णन वह अब नहीं’
जौनपुर में राजा श्री कृष्ण दत्त पीजी कॉलेज में प्रोफेसर रहे डॉ. अखिलेश्वर शुक्ला कहते हैं- पुराणों में जौनपुर में तीन देवियों के मंदिर की चर्चा मिलती है। इसमें शीतला देवी, अचला देवी और अटाला मंदिर का जिक्र है। इन तीन मंदिरों में से दो मंदिर शीतला और अचला देवी का मंदिर तो अभी भी जौनपुर में है, लेकिन अटाला देवी मंदिर का अस्तित्व नहीं मिलता है। प्रोफेसर अखिलेश्वर शुक्ला के मुताबिक, 13वीं सदी के मुस्लिम लेखकों ने भी उस जगह पर अटाला मंदिर होने का जिक्र किया है। फिर बाद के समय में यहां मस्जिद का जिक्र मिलने लगता है। भारत में मुस्लिम शासकों के समय तोड़फोड़ हुई, संभव है कि अटाला मंदिर भी इसका शिकार बना हो। तीन देवियों का मंदिर, दो मौजूद, एक अटाला देवी का नहीं
याचिका दायर करने वाले स्वराज वाहिनी एसोसिएशन (एसवीए) के प्रतिनिधि संतोष कुमार मिश्रा बताते हैं कि जौनपुर में प्राचीन समय से ही शीतला देवी, अचला देवी और अटाला देवी मंदिर मौजूद थे। इस समय शीतला देवी और अचला देवी मंदिर में पूजा-अर्चना होती है। सिर्फ अटाला देवी मंदिर ही मौजूद नहीं है। यह वही मंदिर है, जिसके अवशेषों पर अटाला मस्जिद बनाई गई है। विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारियों ने इसे तोड़कर बनाया है। ‘जौनपुर जिले के इतिहास के गजेटियर में अटाला मंदिर के तोड़े जाने का जिक्र’
अटाला मस्जिद के मंदिर होने का दावा कोर्ट में दाखिल करने वाले स्वराज वाहिनी के प्रदेश अध्यक्ष संतोष मिश्रा कहते हैं- हमने कोर्ट में दावा किया है कि प्राचीन काल से यहां मंदिर था। 1408 में इसे तोड़कर मुस्लिम शासक द्वारा मस्जिद बनाई गई। सबूत के रूप में कई ऐतिहासिक साक्ष्य हमने प्रस्तुत किए हैं। मार्कंण्डेय पुराण में अटाला मंदिर के जिक्र का प्रमाण दिया है। अलेक्जेंडर कनिंघम के ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की सर्वे रिपोर्ट है। 1920 के जौनपुर जिले के इतिहास के गजेटियर में अटाला मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाए जाने के जिक्र को अदालत में सबूत के तौर पर जमा किया है। अटाला मस्जिद होने के दावों का आधार 15वीं सदी में शर्की वास्तुविद ने अटाला मस्जिद के वास्तुविद की तारीफ की
1394 से 1479 तक जौनपुर में एक स्वतंत्र साम्राज्य शर्की राजवंश का राज रहा। इसके वास्तुविद पर्सी ब्राउन ने अटाला मस्जिद के संबंध में उल्लेख किया है कि इमारत निहायत ही अच्छी कही जा सकती है। यह जौनपुर के कारीगरों की बेहतरीन फनकारी का नमूना है। मस्जिद के अलग-अलग हिस्सों की तामीर में बेहतरीन शिल्पकारी हुई है। मस्जिद का हॉल 30 फीट लंबा और 35 फीट चौड़ा है। इसके ऊपर गुंबद है। इतना ही नहीं बल्कि सुंदर नक्काशी युक्त मेहराबें भी हैं। सदियों से विशाल खंभे मेहराबी दरवाजों का बोध संभाले हुए खड़े हैं। मुगलकालीन इतिहासकार अबुल फजल के मुताबिक, फिरोजशाह ने मस्जिद बनवाई
मुगलकालीन इतिहासकार अबुल फजल ने आईने अकबरी में लिखा कि मस्जिद की बुनियाद वर्ष 1376 में फिरोजशाह तुगलक ने रखी। वर्ष 1408 में इब्राहिम शाह ने इसे मुकम्मल कराया था। मध्यकालीन भारत में शिक्षा, साहित्य, संस्कृति और धार्मिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र अटाला मस्जिद हुआ करती थी। उस वक्त तमाम उलेमा पलायन कर जौनपुर में शरण ले रहे थे। कारण था कि जौनपुर राज्य का शासक इब्राहिम शाह विद्वानों और उलेमाओं की कदर करता था और उन्हें हर मुमकिन सुविधाएं मुहैया कराता था। मस्जिद कमेटी का तर्क- पूरे मामले में दोष
मस्जिद कमेटी का इस मामले को लेकर शुरू से कहना है कि हिंदू पक्ष का मुकदमा कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण है। दावा है कि एसवीए सोसायटी के नियम उन्हें इस प्रकार के मामले में शामिल होने की अनुमति नहीं देते। साथ ही, संपत्ति हमेशा से मस्जिद के रूप में उपयोग में रही है और 1398 में इसके निर्माण के बाद से मुस्लिम समुदाय वहां नियमित रूप से नमाज अदा करता आ रहा है। ——————————– ये भी पढ़ें: हर्षा रिछारिया बोलीं- ये तपस्या मुझे कहीं तो लेकर जाएगी:भगवान निराश नहीं करते; मथुरा में टीका लगाकर पदयात्रा में पहुंची मुस्लिम युवती प्रयागराज महाकुंभ से चर्चा में आईं हर्षा रिछारिया ने सोमवार सुबह वृंदावन से संभल के लिए पदयात्रा शुरू की। हर्षा बांके बिहारी का जयकारा लगाते हुए वृंदावन से निकलीं। साधु-संत और सैकड़ों समर्थक उनके साथ चले। समर्थकों ने साधु-संतों और हर्षा पर फूल बरसाए। पढ़ें पूरी खबर… जौनपुर की शाही अटाला मस्जिद मामले में 18 फरवरी को होने वाली सुनवाई नहीं हो पाई थी। एडीजे चतुर्थ कोर्ट में पत्रावली नहीं पहुंच पाने के कारण 15 अप्रैल 2025 की तारीख तय की गई थी। हिन्दू पक्ष का दावा है कि इस तारीख पर मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज हो जाएगी। दरअसल, स्वराज वाहिनी की तरफ से अटाला मस्जिद को अटाला देवी मंदिर होने का दावा किया गया है। इसके बाद से मामला गरमाया हुआ है। स्वराज वाहिनी एसोसिएशन ने कोर्ट में याचिका दायर की थी। इस याचिका में दावा किया गया है कि जौनपुर की अटाला मस्जिद पूर्व में अटाला देवी का मंदिर हुआ करता था। इसे तोड़ कर मंदिर स्थापित की गई है। इसमें हिन्दू पक्ष को पूजा की इजाजत दी जाए। इस प्रकरण को लेकर कोर्ट में भी सुनवाई होनी थी। इस मामले में कोर्ट की ओर से कई बार तारीख पड़ी। दोनों पक्ष रख चुके हैं अपनी दलील
पूर्व में अटाला मस्जिद प्रकरण को लेकर वक्फ अटाला मस्जिद ने सिविल जज सुधा शर्मा की कोर्ट प्रार्थना पत्र दिया। इसमें कहा था कि वादी स्वराज वाहिनी संगठन के प्रदेश अध्यक्ष संतोष कुमार मिश्रा का दावा पोषणीय नहीं है। कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद वक्फ अटाला मस्जिद का प्रार्थना पत्र निरस्त कर दिया और विपक्षी गण को जवाबदेही, अमीन की रिपोर्ट, अस्थाई निषेधाज्ञा पर आपत्ति की सुनवाई के लिए तिथि नीयत की थी। 13वीं सदी में बना था मंदिर: हिंदू पक्ष
स्वराज वाहिनी एसोसिएशन और एक अन्य याचिकाकर्ता संतोष कुमार मिश्रा ने दावा किया है अटाला मस्जिद पहले अटाला देवी मंदिर थी। यहां हिंदुओं को पूजा करने का अधिकार मिलना चाहिए। उनका कहना है कि अटाला देवी मंदिर का निर्माण 13वीं सदी में राजा विजय चंद्र ने करवाया था। मंदिर नहीं, अटाला मस्जिद: मुस्लिम पक्ष
अटाला मस्जिद प्रशासन ने भी हाई कोर्ट से गुहार लगाई है। मस्जिद प्रशासन का तर्क है कि यहां हमेशा से मस्जिद ही रही है। यहां नमाज पढ़ी जाती रही है। मस्जिद से जुड़े सारे दस्तावेज उनके पास हैं। ऐसे में इस पूरे मामले में अनावश्यक विवाद को जन्म दिया जा रहा है। अटाला देवी मंदिर होने के दावों का आधार हिंदुओं ने किया था मंदिर तोड़े जाने का विरोध
जौनपुर के इतिहास पर लिखी त्रिपुरारि भास्कर की किताब ‘जौनपुर का इतिहास’ में अटाला मस्जिद के बारे में लिखा गया है- लोगों का विचार है कि यहां पहले अटल देवी का मंदिर था। क्योंकि, अब भी मोहल्ला सिपाह के पास गोमती नदी किनारे अटल देवी का विशाल घाट है। इसका निर्माण कन्नौज के राजा विजयचंद्र ने कराया था। इसकी देखरेख जफराबाद के गहरवार लोग किया करते थे। यह कहा जाता है कि इस मंदिर को गिराने का आदेश फिरोज शाह ने दिया था। लेकिन हिंदुओं ने इसका विरोध किया। जिसके कारण समझौता होने पर उसे उसी प्रकार रहने दिया गया था। लेकिन कहानी यहीं नहीं रुकी। 1364 ई. में ख्वाजा कमाल खां ने इसे मस्जिद का रूप देना शुरू किया। 1408 में इसे इब्राहिम शाह ने पूरा किया। इसके विशाल लेखों से पता चलता है कि इसके पत्थर काटने वाले राजगीर हिंदू थे। जिन्होंने इस पर हिंदू शैली के नमूने तराशे हैं। कहीं-कहीं पर कमल का पुष्प है। इसके बीच के कमरे का घेरा करीब 30 फीट है। 1875-76 में ASI के रिपोर्ट में मिलता है अटाला देवी मंदिर का जिक्र
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की स्थापना करने वाले और उसके पहले डायरेक्टर थे अलेक्जेंडर कनिंघम। कनिंघम भारत के अतीत की खोज के क्रम में देशभर में यात्राएं करते और पुरातात्विक खुदाइयां करते। इन खुदाइयों में जो कुछ मिलता उनका वह तब उपलब्ध प्राचीन साहित्यिक स्रोतों में अस्तित्व तलाशते। इन्हीं दौरों में से 1875-76 और 1877-78 में उन्होंने गंगा के मैदानी भागों यानी आज के उत्तर प्रदेश के एक बड़े भूभाग का दौरा किया। इस दौरान उन्हें जो कुछ दिखा और मिला उसका प्रकाशन ASI की सलाना रिपोर्ट में किया। वह हर साल अपने दौरों पर एक सलाना रिपोर्ट पब्लिश करते। 1875-76 और 1877-1877-78 की रिपोर्ट में वो अटाला देवी मंदिर का जिक्र करते हैं। जौनपुर में उन्हें जो कुछ दिखा, उसका वर्णन उन्होंने अपनी रिपोर्ट के पेज नंबर-102 से करना शुरू किया। इसके पेज नंबर 104 पर वह अटाला देवी मंदिर के बारे में बात करते हैं। तब इस मंदिर की जगह अस्तित्व में रहे अटाला मस्जिद के वास्तुकला का हवाला देते हुए उसे अटाला देवी मंदिर से जोड़ते हैं। वो कहते हैं कि जौनपुर में ऐसी कोई मस्जिद नहीं है जो किसी मंदिर को तोड़कर न बनाई गई हो। वो अटाला मस्जिद को तब जौनपुर में मौजूद सभी मस्जिदों में सबसे सुंदर बताते हैं। ‘पुराणों में जिस अटाला मंदिर का वर्णन वह अब नहीं’
जौनपुर में राजा श्री कृष्ण दत्त पीजी कॉलेज में प्रोफेसर रहे डॉ. अखिलेश्वर शुक्ला कहते हैं- पुराणों में जौनपुर में तीन देवियों के मंदिर की चर्चा मिलती है। इसमें शीतला देवी, अचला देवी और अटाला मंदिर का जिक्र है। इन तीन मंदिरों में से दो मंदिर शीतला और अचला देवी का मंदिर तो अभी भी जौनपुर में है, लेकिन अटाला देवी मंदिर का अस्तित्व नहीं मिलता है। प्रोफेसर अखिलेश्वर शुक्ला के मुताबिक, 13वीं सदी के मुस्लिम लेखकों ने भी उस जगह पर अटाला मंदिर होने का जिक्र किया है। फिर बाद के समय में यहां मस्जिद का जिक्र मिलने लगता है। भारत में मुस्लिम शासकों के समय तोड़फोड़ हुई, संभव है कि अटाला मंदिर भी इसका शिकार बना हो। तीन देवियों का मंदिर, दो मौजूद, एक अटाला देवी का नहीं
याचिका दायर करने वाले स्वराज वाहिनी एसोसिएशन (एसवीए) के प्रतिनिधि संतोष कुमार मिश्रा बताते हैं कि जौनपुर में प्राचीन समय से ही शीतला देवी, अचला देवी और अटाला देवी मंदिर मौजूद थे। इस समय शीतला देवी और अचला देवी मंदिर में पूजा-अर्चना होती है। सिर्फ अटाला देवी मंदिर ही मौजूद नहीं है। यह वही मंदिर है, जिसके अवशेषों पर अटाला मस्जिद बनाई गई है। विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारियों ने इसे तोड़कर बनाया है। ‘जौनपुर जिले के इतिहास के गजेटियर में अटाला मंदिर के तोड़े जाने का जिक्र’
अटाला मस्जिद के मंदिर होने का दावा कोर्ट में दाखिल करने वाले स्वराज वाहिनी के प्रदेश अध्यक्ष संतोष मिश्रा कहते हैं- हमने कोर्ट में दावा किया है कि प्राचीन काल से यहां मंदिर था। 1408 में इसे तोड़कर मुस्लिम शासक द्वारा मस्जिद बनाई गई। सबूत के रूप में कई ऐतिहासिक साक्ष्य हमने प्रस्तुत किए हैं। मार्कंण्डेय पुराण में अटाला मंदिर के जिक्र का प्रमाण दिया है। अलेक्जेंडर कनिंघम के ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की सर्वे रिपोर्ट है। 1920 के जौनपुर जिले के इतिहास के गजेटियर में अटाला मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाए जाने के जिक्र को अदालत में सबूत के तौर पर जमा किया है। अटाला मस्जिद होने के दावों का आधार 15वीं सदी में शर्की वास्तुविद ने अटाला मस्जिद के वास्तुविद की तारीफ की
1394 से 1479 तक जौनपुर में एक स्वतंत्र साम्राज्य शर्की राजवंश का राज रहा। इसके वास्तुविद पर्सी ब्राउन ने अटाला मस्जिद के संबंध में उल्लेख किया है कि इमारत निहायत ही अच्छी कही जा सकती है। यह जौनपुर के कारीगरों की बेहतरीन फनकारी का नमूना है। मस्जिद के अलग-अलग हिस्सों की तामीर में बेहतरीन शिल्पकारी हुई है। मस्जिद का हॉल 30 फीट लंबा और 35 फीट चौड़ा है। इसके ऊपर गुंबद है। इतना ही नहीं बल्कि सुंदर नक्काशी युक्त मेहराबें भी हैं। सदियों से विशाल खंभे मेहराबी दरवाजों का बोध संभाले हुए खड़े हैं। मुगलकालीन इतिहासकार अबुल फजल के मुताबिक, फिरोजशाह ने मस्जिद बनवाई
मुगलकालीन इतिहासकार अबुल फजल ने आईने अकबरी में लिखा कि मस्जिद की बुनियाद वर्ष 1376 में फिरोजशाह तुगलक ने रखी। वर्ष 1408 में इब्राहिम शाह ने इसे मुकम्मल कराया था। मध्यकालीन भारत में शिक्षा, साहित्य, संस्कृति और धार्मिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र अटाला मस्जिद हुआ करती थी। उस वक्त तमाम उलेमा पलायन कर जौनपुर में शरण ले रहे थे। कारण था कि जौनपुर राज्य का शासक इब्राहिम शाह विद्वानों और उलेमाओं की कदर करता था और उन्हें हर मुमकिन सुविधाएं मुहैया कराता था। मस्जिद कमेटी का तर्क- पूरे मामले में दोष
मस्जिद कमेटी का इस मामले को लेकर शुरू से कहना है कि हिंदू पक्ष का मुकदमा कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण है। दावा है कि एसवीए सोसायटी के नियम उन्हें इस प्रकार के मामले में शामिल होने की अनुमति नहीं देते। साथ ही, संपत्ति हमेशा से मस्जिद के रूप में उपयोग में रही है और 1398 में इसके निर्माण के बाद से मुस्लिम समुदाय वहां नियमित रूप से नमाज अदा करता आ रहा है। ——————————– ये भी पढ़ें: हर्षा रिछारिया बोलीं- ये तपस्या मुझे कहीं तो लेकर जाएगी:भगवान निराश नहीं करते; मथुरा में टीका लगाकर पदयात्रा में पहुंची मुस्लिम युवती प्रयागराज महाकुंभ से चर्चा में आईं हर्षा रिछारिया ने सोमवार सुबह वृंदावन से संभल के लिए पदयात्रा शुरू की। हर्षा बांके बिहारी का जयकारा लगाते हुए वृंदावन से निकलीं। साधु-संत और सैकड़ों समर्थक उनके साथ चले। समर्थकों ने साधु-संतों और हर्षा पर फूल बरसाए। पढ़ें पूरी खबर… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
अटाला मस्जिद-मंदिर विवाद में सुनवाई आज:हिंदू पक्ष का दावा- 13वीं सदी का मंदिर, मुस्लिम पक्ष बोला- हमेशा से मस्जिद
