29 नवंबर, 2024
वाराणसी में ATS ने कैंट रेलवे स्टेशन से मोहम्मद अब्दुल्लाह को पकड़ा। वह बांग्लादेश से पश्चिम बंगाल के रास्ते भारत में अवैध घुसपैठ करवाता था। इन लोगों के पहले पश्चिम बंगाल में आधार कार्ड समेत दस्तावेज बनवाए जाते हैं, फिर यूपी के अलग-अलग शहरों में भेजा जाता है। इस धरपकड़ के बाद ATS और इंटेलिजेंस एक्टिव हुईं। वाराणसी के 12 इलाकों में रह रहे 100 से ज्यादा संदिग्ध लोगों को ढूंढ निकाला। सभी के पास पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद के पते के पहचान पत्र मिले। इनमें से करीब 15% ऐसे लोग भी हैं, जो बनारस और चंदौली की ID के साथ यहां रह रहे हैं। संदेह है कि इनमें कई लोग ऐसे हो सकते हैं, जिन्हें बांग्लादेश से पश्चिम बंगाल और फिर यूपी में एंट्री दिलवाई गई। ये सभी ATS के रडार पर हैं। पहले पुलिस एक्शन जानिए… 18 बांग्लादेशी हिरासत में, 100 से ज्यादा पर संदेह
वाराणसी पुलिस ने बड़ागांव, जैतपुरा, आदमपुरा, कैंट और रोहनिया समेत कई इलाकों में संदिग्धों से पूछताछ की। 3 दिन पहले बड़ागांव थाने की पुलिस ने सिसवां और बाबतपुर रोड किनारे कटरे में किराए पर रहने वाले 18 बांग्लादेशियों को हिरासत में लिया था। पूछताछ में लोगों ने पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद पते के आधार कार्ड दिखाए। काशी जोन, वरुणा जोन और गोमती जोन इलाकों में जिन बांग्ला भाषा बोलने वालों को पकड़ा गया, उनके पास से बंगाल के दक्षिण 24 परगना का आधार कार्ड मिला। ज्यादातर ने अपना स्थायी पता मुर्शिदाबाद बताया। पुलिस के पास अब तक 100 से ज्यादा ऐसे लोगों के नाम-पते हैं, जो कि मुर्शिदाबाद के पते वाली ID लेकर काशी में मौजूद हैं। ये सभी लोग जांच एजेंसियों के रडार पर हैं। जिन लोगों के बांग्लादेश से भारत के अंदर आने की पुष्टि होगी, उन्हें वापस भेजा जाएगा। पुलिस कार्रवाई के बाद दैनिक भास्कर टीम वाराणसी में संदिग्ध बसाहट वाले इलाकों में पहुंची। अंसाराबाद (थाना आदमपुर) और कोनिया डाट पुल (थाना आदमपुर) की झुग्गी-झोपड़ियों में लोगों से बातचीत की… पहले अंसाराबाद की झुग्गी में रहने वाले परिवार से बातचीत
यहां लोगों से बात करने के बाद सामने आया कि ज्यादातर लोग कूड़ा बीनते हैं और उनका राशन और आधार कार्ड बना हुआ हैं। कई ऐसे हैं,जिनके पास यूपी और पश्चिम बंगाल, दो जगह की आईडी हैं। हमने कुछ लोगों से बात की। इसमें एक व्यक्ति नगर निगम में संविदा पर काम करने वाला भी मिला, जो मुर्शिदाबाद का रहने वाला है। वहीं एक व्यक्ति जो झारखंड का रहने वाला है। उसके बच्चों की आईडी वाराणसी और झारखंड दोनों जगहों की हैं। साथ ही राशन कार्ड भी दोनों जगहों का है। मोंजूल 30 साल से यहां, नगर निगम में सफाई कर्मी
अंसराबाद में 11 कमरों का बाड़ा है। जिसमें 11 परिवार रहते हैं। इनमें 9 परिवार बंगाल और 2 परिवार बिहार के हैं। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद के रहने वाले मोंजूल से हमने बात की। उन्होंने बताया- पिछले 30 साल से यहां हूं। मुर्शिदाबाद में पैसे की दिक्कत हुई, तो यहां आ गया। कुछ दिन काम किया, रिक्शा चलाया। ट्राली खींची। मेरा सब कुछ बना हुआ है। राशन कार्ड, पैन कार्ड, आधार कार्ड और वोटर आईडी कार्ड। वोट भी देता हूं। वहीं, जब उसके काम के बारे में पूछा गया, तो बड़ा खुलासा हुआ। उसने बताया वह नगर निगम में सफाई कर्मी के पद पर काम करता है। बंगाल का रहने वाला व्यक्ति जो 30 साल से यहां रह रहा है। उसे किस तरह नगर निगम में कर्मचारी बनाया गया, इस बारे में वह कुछ बता नहीं पाए। मुझे 12 हजार मिलते हैं, सैलरी बहुत कम
मोंजूल ने बताया- मैं सफाई कर्मी हूं, मगर पैसा कम मिलता है, सिर्फ 12 हजार मिलते हैं। उसमें कैसे खर्च चलेगा। जो हाल वहां थे, वही हाल यहां हैं। बस बच्चे जी खा रहे हैं। इसके बाद फिर वो अपनी पत्नी के साथ काम में लग गया। आधार बनवाने गए तो वापस कर दिया, राशन कार्ड बना दिया
मेराजुल शेख भी पश्चिम बंगाल के रहने वाले हैं। वो 30 साल पहले काशी आए थे। उन्होंने बताया कि वहां आमदनी कम थी, इसलिए मुर्शिदाबाद से यहां आ गए। हम यहां कभी रिक्शा चलाते हैं। कभी कबाड़ बीन लेते हैं। जब जैसा काम मिलता है, वैसा कर लेते हैं। उसने बताया, हमारा सिर्फ यहां राशन कार्ड बना था। कुछ दिन से उससे अनाज भी नहीं मिल रहा । पता करना है कि ऐसा क्यों है। हम आधार कार्ड बनवाने गए तो मना कर दिया, बोले नहीं बनेगा। यहां भी राशन कार्ड, मुर्शिदाबाद में भी राशन कार्ड
मेराजुलने बताया- हमारा वहां भी राशन कार्ड है और यहां भी है। राशन मिलता है। पर हमारे बेटे-बेटी का कुछ भी नहीं बन रहा। हम गए तो पैसे की डिमांड हुई। मेराजुल की बेटी गुड़िया ने बताया- मेरा आधार कार्ड है। लेकिन वोटर आईडी नहीं बना। हमें कोई सुविधा नहीं मिलती, बस चुनाव में लोग दिखते हैं। कोनिया डाट पुल के पास रहने वाले लोगों से बातचीत… हम ज्यादा दिन नहीं रुकते
छागुन शेख मुर्शिदाबाद के रहने वाले हैं। वो फेरी लगाने यहां आते हैं। फेरी करके वापस चले जाते हैं। दो महीने बनारस रहते हैं और फिर एक महीने के लिए मुर्शिदाबाद चले जाते हैं। उन्होंने बताया, हमारा यहां कोई पहचान पत्र नहीं बना है। हम यहां ज्यादा दिन नहीं रहते। हमारा परिवार बंगाल में ही है। हम यहां सीजन में आते हैं, फिर वापस चले जाते हैं। मानो बीबी शादी के 4 महीने बाद से वाराणसी में
मुर्शिदाबाद की रहने वाली मानो बीबी की शादी मिंटू शेख से 40 साल पहले हुई थी। मानो ने बताया- शादी के चार महीने बाद ही मैं बनारस आ गई। मेरे पति यहीं फेरी लगाते थे। उसके बाद उनकी मौत हुई तो फिर मैं वापस नहीं गई। अब अपना जीवन यहीं बिता रही हूं। मानो का राशन, आधार, पैन और वोटर आईडी भी बना हुआ है। उसने बताया हमें कोई सुविधा आज तक नहीं मिली। बस पार्षद वोट के समय आता है। हमें यहां रहने के लिए थोड़ी सी जमीन दी, उसका भी किराया 3500 रुपए देना होता है। साथ में बिजली का बिल भी। मानो बीबी का भाई भी करता है फेरी
मानो बीबी के भाई ने कैमरे पर कुछ भी बोलने से मना कर दिया। उसने बताया कि वह भी फेरी करता है। मानो ने बताया पति मर गया तो अपने भाई को यहां बुला लिया। वह साथ रहता है तो ढाढस रहती है। इस एरिया में ज्यादातर लोग फेरी और कूड़ा बीनने का काम करते हैं। अब अब्दुल्लाह की यूपी मूवमेंट के बारे में भी पढ़िए… रोहिंग्या रिफ्यूजी बनकर 7 साल पहले शरण पाई
ATS के सोर्स के मुताबिक, पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर में रोहिंग्या रिफ्यूजी बनकर 7 साल पहले मोहम्मद अब्दुल्ला ने शरण पाई और बॉर्डर इलाके में परिवार लेकर रहने लगा। शरणार्थी होने के बाद उसने मोहम्मद अब्दुल्ला उर्फ अब्दुस सलाम मंडल के नाम से आधार कार्ड बनवा लिया। इसके बाद पैन कार्ड और अन्य दस्तावेज तैयार करवाकर खुद को भारत का नागरिक बना लिया। सहारनपुर आने के बाद अयोध्या, मथुरा, काशी का मूवमेंट किया
मो. अब्दुल्ला रोहिंग्या घुसपैठिए मुसलमानों के संपर्क में था और बहुत जल्द अंतरराष्ट्रीय मानव तस्करी गिरोह से जुड़ गया। पश्चिम बंगाल से निकलकर अब्दुल्ला ने अपना ठिकाना देवबंद (सहारनपुर) में बना लिया और यूपी की धार्मिक शहरों में मूवमेंट शुरू किया। इसमें अयोध्या, मथुरा और वाराणसी शामिल हैं। यूपी बॉर्डर से सटे राज्यों में भी उसके मूवमेंट की जानकारी ATS को मिली है। वह बॉर्डर एरिया में बनी मस्जिदों और मदरसों का डेटा जुटा रहा था। मोबाइल, 3 मेमोरी कार्ड, दस्तावेज मिले
मो. अब्दुल्ला 2 दिन पहले गुरुवार को वाराणसी आया तो उसकी गतिविधियों की भनक ATS को लगी, वाराणसी की ATS टीम ने म्यांमार के घुसपैठिए को कैंट स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया। बंद कमरे 8 घंटे पूछताछ की। सामने आया कि वाराणसी में ज्ञानवापी विवादित परिसर में वह पहुंचा था। 4 और मस्जिदों के इनपुट भी मिले, मगर खुफिया जांच एजेंसी ने इसका खुलासा नहीं किया है। अब्दुल्ला के मोबाइल फोन और तीन मेमोरी कार्ड में कई अहम जानकारियां, नेटवर्क और उससे जुड़े लोगों के नाम नंबर एटीएस के हाथ लगे हैं। अब्दुस सलाम मंडल के नाम का भारतीय आधार कार्ड भी बनवा रखा था, इसके अलावा निर्वाचन कार्ड और पैन कार्ड भी था। अब 2 स्लाइड में रोहिंग्या मुस्लिम की बांग्लादेश और इंडिया में स्थिति समझिए… …… ये भी पढ़ें :
ज्ञानवापी की रेकी…म्यांमार का घुसपैठिया गिरफ्तार:यूपी कॉलेज वक्फ विवाद की भी जानकारी ली, वाराणसी ATS ने कैंट स्टेशन से पकड़ा वाराणसी की ATS टीम ने म्यांमार के घुसपैठिए को कैंट स्टेशन से गिरफ्तार किया है। मोहम्मद अब्दुल्ला गुरुवार को बनारस आया था। शुक्रवार को ज्ञानवापी समेत चार मस्जिदों की रेकी की। बांग्लादेश से रोहिंग्याओं को फर्जी दस्तावेज से एंट्री दिलाता है। पढ़िए पूरी खबर… 29 नवंबर, 2024
वाराणसी में ATS ने कैंट रेलवे स्टेशन से मोहम्मद अब्दुल्लाह को पकड़ा। वह बांग्लादेश से पश्चिम बंगाल के रास्ते भारत में अवैध घुसपैठ करवाता था। इन लोगों के पहले पश्चिम बंगाल में आधार कार्ड समेत दस्तावेज बनवाए जाते हैं, फिर यूपी के अलग-अलग शहरों में भेजा जाता है। इस धरपकड़ के बाद ATS और इंटेलिजेंस एक्टिव हुईं। वाराणसी के 12 इलाकों में रह रहे 100 से ज्यादा संदिग्ध लोगों को ढूंढ निकाला। सभी के पास पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद के पते के पहचान पत्र मिले। इनमें से करीब 15% ऐसे लोग भी हैं, जो बनारस और चंदौली की ID के साथ यहां रह रहे हैं। संदेह है कि इनमें कई लोग ऐसे हो सकते हैं, जिन्हें बांग्लादेश से पश्चिम बंगाल और फिर यूपी में एंट्री दिलवाई गई। ये सभी ATS के रडार पर हैं। पहले पुलिस एक्शन जानिए… 18 बांग्लादेशी हिरासत में, 100 से ज्यादा पर संदेह
वाराणसी पुलिस ने बड़ागांव, जैतपुरा, आदमपुरा, कैंट और रोहनिया समेत कई इलाकों में संदिग्धों से पूछताछ की। 3 दिन पहले बड़ागांव थाने की पुलिस ने सिसवां और बाबतपुर रोड किनारे कटरे में किराए पर रहने वाले 18 बांग्लादेशियों को हिरासत में लिया था। पूछताछ में लोगों ने पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद पते के आधार कार्ड दिखाए। काशी जोन, वरुणा जोन और गोमती जोन इलाकों में जिन बांग्ला भाषा बोलने वालों को पकड़ा गया, उनके पास से बंगाल के दक्षिण 24 परगना का आधार कार्ड मिला। ज्यादातर ने अपना स्थायी पता मुर्शिदाबाद बताया। पुलिस के पास अब तक 100 से ज्यादा ऐसे लोगों के नाम-पते हैं, जो कि मुर्शिदाबाद के पते वाली ID लेकर काशी में मौजूद हैं। ये सभी लोग जांच एजेंसियों के रडार पर हैं। जिन लोगों के बांग्लादेश से भारत के अंदर आने की पुष्टि होगी, उन्हें वापस भेजा जाएगा। पुलिस कार्रवाई के बाद दैनिक भास्कर टीम वाराणसी में संदिग्ध बसाहट वाले इलाकों में पहुंची। अंसाराबाद (थाना आदमपुर) और कोनिया डाट पुल (थाना आदमपुर) की झुग्गी-झोपड़ियों में लोगों से बातचीत की… पहले अंसाराबाद की झुग्गी में रहने वाले परिवार से बातचीत
यहां लोगों से बात करने के बाद सामने आया कि ज्यादातर लोग कूड़ा बीनते हैं और उनका राशन और आधार कार्ड बना हुआ हैं। कई ऐसे हैं,जिनके पास यूपी और पश्चिम बंगाल, दो जगह की आईडी हैं। हमने कुछ लोगों से बात की। इसमें एक व्यक्ति नगर निगम में संविदा पर काम करने वाला भी मिला, जो मुर्शिदाबाद का रहने वाला है। वहीं एक व्यक्ति जो झारखंड का रहने वाला है। उसके बच्चों की आईडी वाराणसी और झारखंड दोनों जगहों की हैं। साथ ही राशन कार्ड भी दोनों जगहों का है। मोंजूल 30 साल से यहां, नगर निगम में सफाई कर्मी
अंसराबाद में 11 कमरों का बाड़ा है। जिसमें 11 परिवार रहते हैं। इनमें 9 परिवार बंगाल और 2 परिवार बिहार के हैं। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद के रहने वाले मोंजूल से हमने बात की। उन्होंने बताया- पिछले 30 साल से यहां हूं। मुर्शिदाबाद में पैसे की दिक्कत हुई, तो यहां आ गया। कुछ दिन काम किया, रिक्शा चलाया। ट्राली खींची। मेरा सब कुछ बना हुआ है। राशन कार्ड, पैन कार्ड, आधार कार्ड और वोटर आईडी कार्ड। वोट भी देता हूं। वहीं, जब उसके काम के बारे में पूछा गया, तो बड़ा खुलासा हुआ। उसने बताया वह नगर निगम में सफाई कर्मी के पद पर काम करता है। बंगाल का रहने वाला व्यक्ति जो 30 साल से यहां रह रहा है। उसे किस तरह नगर निगम में कर्मचारी बनाया गया, इस बारे में वह कुछ बता नहीं पाए। मुझे 12 हजार मिलते हैं, सैलरी बहुत कम
मोंजूल ने बताया- मैं सफाई कर्मी हूं, मगर पैसा कम मिलता है, सिर्फ 12 हजार मिलते हैं। उसमें कैसे खर्च चलेगा। जो हाल वहां थे, वही हाल यहां हैं। बस बच्चे जी खा रहे हैं। इसके बाद फिर वो अपनी पत्नी के साथ काम में लग गया। आधार बनवाने गए तो वापस कर दिया, राशन कार्ड बना दिया
मेराजुल शेख भी पश्चिम बंगाल के रहने वाले हैं। वो 30 साल पहले काशी आए थे। उन्होंने बताया कि वहां आमदनी कम थी, इसलिए मुर्शिदाबाद से यहां आ गए। हम यहां कभी रिक्शा चलाते हैं। कभी कबाड़ बीन लेते हैं। जब जैसा काम मिलता है, वैसा कर लेते हैं। उसने बताया, हमारा सिर्फ यहां राशन कार्ड बना था। कुछ दिन से उससे अनाज भी नहीं मिल रहा । पता करना है कि ऐसा क्यों है। हम आधार कार्ड बनवाने गए तो मना कर दिया, बोले नहीं बनेगा। यहां भी राशन कार्ड, मुर्शिदाबाद में भी राशन कार्ड
मेराजुलने बताया- हमारा वहां भी राशन कार्ड है और यहां भी है। राशन मिलता है। पर हमारे बेटे-बेटी का कुछ भी नहीं बन रहा। हम गए तो पैसे की डिमांड हुई। मेराजुल की बेटी गुड़िया ने बताया- मेरा आधार कार्ड है। लेकिन वोटर आईडी नहीं बना। हमें कोई सुविधा नहीं मिलती, बस चुनाव में लोग दिखते हैं। कोनिया डाट पुल के पास रहने वाले लोगों से बातचीत… हम ज्यादा दिन नहीं रुकते
छागुन शेख मुर्शिदाबाद के रहने वाले हैं। वो फेरी लगाने यहां आते हैं। फेरी करके वापस चले जाते हैं। दो महीने बनारस रहते हैं और फिर एक महीने के लिए मुर्शिदाबाद चले जाते हैं। उन्होंने बताया, हमारा यहां कोई पहचान पत्र नहीं बना है। हम यहां ज्यादा दिन नहीं रहते। हमारा परिवार बंगाल में ही है। हम यहां सीजन में आते हैं, फिर वापस चले जाते हैं। मानो बीबी शादी के 4 महीने बाद से वाराणसी में
मुर्शिदाबाद की रहने वाली मानो बीबी की शादी मिंटू शेख से 40 साल पहले हुई थी। मानो ने बताया- शादी के चार महीने बाद ही मैं बनारस आ गई। मेरे पति यहीं फेरी लगाते थे। उसके बाद उनकी मौत हुई तो फिर मैं वापस नहीं गई। अब अपना जीवन यहीं बिता रही हूं। मानो का राशन, आधार, पैन और वोटर आईडी भी बना हुआ है। उसने बताया हमें कोई सुविधा आज तक नहीं मिली। बस पार्षद वोट के समय आता है। हमें यहां रहने के लिए थोड़ी सी जमीन दी, उसका भी किराया 3500 रुपए देना होता है। साथ में बिजली का बिल भी। मानो बीबी का भाई भी करता है फेरी
मानो बीबी के भाई ने कैमरे पर कुछ भी बोलने से मना कर दिया। उसने बताया कि वह भी फेरी करता है। मानो ने बताया पति मर गया तो अपने भाई को यहां बुला लिया। वह साथ रहता है तो ढाढस रहती है। इस एरिया में ज्यादातर लोग फेरी और कूड़ा बीनने का काम करते हैं। अब अब्दुल्लाह की यूपी मूवमेंट के बारे में भी पढ़िए… रोहिंग्या रिफ्यूजी बनकर 7 साल पहले शरण पाई
ATS के सोर्स के मुताबिक, पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर में रोहिंग्या रिफ्यूजी बनकर 7 साल पहले मोहम्मद अब्दुल्ला ने शरण पाई और बॉर्डर इलाके में परिवार लेकर रहने लगा। शरणार्थी होने के बाद उसने मोहम्मद अब्दुल्ला उर्फ अब्दुस सलाम मंडल के नाम से आधार कार्ड बनवा लिया। इसके बाद पैन कार्ड और अन्य दस्तावेज तैयार करवाकर खुद को भारत का नागरिक बना लिया। सहारनपुर आने के बाद अयोध्या, मथुरा, काशी का मूवमेंट किया
मो. अब्दुल्ला रोहिंग्या घुसपैठिए मुसलमानों के संपर्क में था और बहुत जल्द अंतरराष्ट्रीय मानव तस्करी गिरोह से जुड़ गया। पश्चिम बंगाल से निकलकर अब्दुल्ला ने अपना ठिकाना देवबंद (सहारनपुर) में बना लिया और यूपी की धार्मिक शहरों में मूवमेंट शुरू किया। इसमें अयोध्या, मथुरा और वाराणसी शामिल हैं। यूपी बॉर्डर से सटे राज्यों में भी उसके मूवमेंट की जानकारी ATS को मिली है। वह बॉर्डर एरिया में बनी मस्जिदों और मदरसों का डेटा जुटा रहा था। मोबाइल, 3 मेमोरी कार्ड, दस्तावेज मिले
मो. अब्दुल्ला 2 दिन पहले गुरुवार को वाराणसी आया तो उसकी गतिविधियों की भनक ATS को लगी, वाराणसी की ATS टीम ने म्यांमार के घुसपैठिए को कैंट स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया। बंद कमरे 8 घंटे पूछताछ की। सामने आया कि वाराणसी में ज्ञानवापी विवादित परिसर में वह पहुंचा था। 4 और मस्जिदों के इनपुट भी मिले, मगर खुफिया जांच एजेंसी ने इसका खुलासा नहीं किया है। अब्दुल्ला के मोबाइल फोन और तीन मेमोरी कार्ड में कई अहम जानकारियां, नेटवर्क और उससे जुड़े लोगों के नाम नंबर एटीएस के हाथ लगे हैं। अब्दुस सलाम मंडल के नाम का भारतीय आधार कार्ड भी बनवा रखा था, इसके अलावा निर्वाचन कार्ड और पैन कार्ड भी था। अब 2 स्लाइड में रोहिंग्या मुस्लिम की बांग्लादेश और इंडिया में स्थिति समझिए… …… ये भी पढ़ें :
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