अमृतसर में निहंगों ने मनाया बंदी छोड़ दिवस:घोड़ों के साथ दिखाए करतब; गुरुद्वारों में अरदास की, दीप जलाकर समर्पण को याद किया

अमृतसर में निहंगों ने मनाया बंदी छोड़ दिवस:घोड़ों के साथ दिखाए करतब; गुरुद्वारों में अरदास की, दीप जलाकर समर्पण को याद किया

दिवाली के अगले दिन गुरु गोबिंद सिंह जी की लाडली फौज निहंगों ने बंदी छोड़ दिवस के उपलक्ष्य में अमृतसर में घुड़सवारी का प्रदर्शन किया। जिसमें उन्होंने अपने अद्भुत कौशल और परंपरागत सैन्य विरासत का प्रदर्शन किया। सिख समाज के लिए यह दिन विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह सिखों के छठवें गुरु, गुरु हरगोबिंद साहिब जी की रिहाई का प्रतीक है। बंदी छोड़ दिवस का इतिहास मुगल बादशाह जहांगीर के समय से जुड़ा है। सिख धर्म के बढ़ते प्रभाव और लोकप्रियता के कारण जहांगीर ने गुरु हरगोविंद साहिब जी को बंदी बना लिया था और उन्हें ग्वालियर के किले में कैद कर दिया। उस समय ग्वालियर के किले में 52 अन्य हिंदू राजा भी कैद थे। गुरु हरगोविंद साहिब जी को रिहा कराने के लिए सिख अनुयायियों ने प्रयास किए, लेकिन जहांगीर ने उन्हें बंदी बनाए रखा। संयोगवश, इस दौरान जहांगीर गंभीर रूप से बीमार पड़ गया। कई तरह के इलाज के बाद भी जब उसकी तबीयत में सुधार नहीं हुआ, तो उसके काजी ने सुझाव दिया कि गुरु हरगोविंद साहिब जी की कैद ही उसकी बीमारी का कारण हो सकती है। काजी की सलाह पर जहांगीर ने गुरु हरगोविंद साहिब जी को रिहा करने का फैसला किया, लेकिन उन्होंने शर्त रखी कि केवल वही राजा गुरु के साथ बाहर जा सकेंगे जो उनके वस्त्र का कोई हिस्सा पकड़ेंगे। कार्यक्रम के दौरान निहंग सिखों की तस्वीरें- गुरु हरगोविंद साहिब की सूझबूझ और 52 राजाओं की रिहाई जहांगीर की सोच थी कि गुरु हरगोविंद साहिब के साथ अधिक राजा बाहर नहीं जा सकेंगे। लेकिन गुरु हरगोविंद साहिब जी ने इस चालाकी को समझते हुए एक विशेष कुर्ता बनवाया जिसमें 52 कलियां (फंदे) लगी थीं। इन फंदों को पकड़कर सभी राजा उनके साथ किले से बाहर निकल गए। इस प्रकार गुरु हरगोविंद साहिब की सूझबूझ और दृढ़ता ने 52 हिंदू राजाओं को भी स्वतंत्रता दिलाई। निहंगों का प्रदर्शन और सांस्कृतिक आयोजन बंदी छोड़ दिवस के अगले दिन आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम में अमृतसर में विशेष आयोजन किए गए। जिनमें निहंगों द्वारा घुड़सवारी और शस्त्र संचालन का प्रदर्शन मुख्य आकर्षण था। निहंगों की यह परंपरा सिख धर्म के सैन्य इतिहास और उनकी वीरता का प्रतीक है। सिख अनुयायियों ने गुरु हरगोविंद साहिब की स्मृति में गुरुद्वारों में अरदास की और दीप जलाकर उनके बलिदान और धर्म के प्रति समर्पण को याद किया। दिवाली के अगले दिन गुरु गोबिंद सिंह जी की लाडली फौज निहंगों ने बंदी छोड़ दिवस के उपलक्ष्य में अमृतसर में घुड़सवारी का प्रदर्शन किया। जिसमें उन्होंने अपने अद्भुत कौशल और परंपरागत सैन्य विरासत का प्रदर्शन किया। सिख समाज के लिए यह दिन विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह सिखों के छठवें गुरु, गुरु हरगोबिंद साहिब जी की रिहाई का प्रतीक है। बंदी छोड़ दिवस का इतिहास मुगल बादशाह जहांगीर के समय से जुड़ा है। सिख धर्म के बढ़ते प्रभाव और लोकप्रियता के कारण जहांगीर ने गुरु हरगोविंद साहिब जी को बंदी बना लिया था और उन्हें ग्वालियर के किले में कैद कर दिया। उस समय ग्वालियर के किले में 52 अन्य हिंदू राजा भी कैद थे। गुरु हरगोविंद साहिब जी को रिहा कराने के लिए सिख अनुयायियों ने प्रयास किए, लेकिन जहांगीर ने उन्हें बंदी बनाए रखा। संयोगवश, इस दौरान जहांगीर गंभीर रूप से बीमार पड़ गया। कई तरह के इलाज के बाद भी जब उसकी तबीयत में सुधार नहीं हुआ, तो उसके काजी ने सुझाव दिया कि गुरु हरगोविंद साहिब जी की कैद ही उसकी बीमारी का कारण हो सकती है। काजी की सलाह पर जहांगीर ने गुरु हरगोविंद साहिब जी को रिहा करने का फैसला किया, लेकिन उन्होंने शर्त रखी कि केवल वही राजा गुरु के साथ बाहर जा सकेंगे जो उनके वस्त्र का कोई हिस्सा पकड़ेंगे। कार्यक्रम के दौरान निहंग सिखों की तस्वीरें- गुरु हरगोविंद साहिब की सूझबूझ और 52 राजाओं की रिहाई जहांगीर की सोच थी कि गुरु हरगोविंद साहिब के साथ अधिक राजा बाहर नहीं जा सकेंगे। लेकिन गुरु हरगोविंद साहिब जी ने इस चालाकी को समझते हुए एक विशेष कुर्ता बनवाया जिसमें 52 कलियां (फंदे) लगी थीं। इन फंदों को पकड़कर सभी राजा उनके साथ किले से बाहर निकल गए। इस प्रकार गुरु हरगोविंद साहिब की सूझबूझ और दृढ़ता ने 52 हिंदू राजाओं को भी स्वतंत्रता दिलाई। निहंगों का प्रदर्शन और सांस्कृतिक आयोजन बंदी छोड़ दिवस के अगले दिन आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम में अमृतसर में विशेष आयोजन किए गए। जिनमें निहंगों द्वारा घुड़सवारी और शस्त्र संचालन का प्रदर्शन मुख्य आकर्षण था। निहंगों की यह परंपरा सिख धर्म के सैन्य इतिहास और उनकी वीरता का प्रतीक है। सिख अनुयायियों ने गुरु हरगोविंद साहिब की स्मृति में गुरुद्वारों में अरदास की और दीप जलाकर उनके बलिदान और धर्म के प्रति समर्पण को याद किया।   पंजाब | दैनिक भास्कर