अमेरिका से डिपोर्ट हुए 104 भारतीय में से एक युवक कुरुक्षेत्र का भी है, जिसकी पहचान इस्माइलाबाद के रहने वाले 26 साल के रोबिन के तौर पर हुई है। रोबिन बुधवार देर रात अपने गांव पहुंचे। वो बताते हैं कि प्लेन में उनके हाथों में हथकड़ियां थी, पैरों में चेन बंधे थे। प्लेन में जब उन लोगों बिठाया गया तो किसी से बात नहीं करने दी गई। उनको खाने के लिए फल, पानी और चिप्स दिए। हथकड़ियां लगाकर ही खाना खाने दिया। रोबिन बताते है कि जब उन्हें अमेरिकी पुलिस ने पकड़ा तो उन्हें पुलिस ने उन्हें मेंटली टॉर्चर किया। पुलिस ने उनके कैंपों में AC को चालू कर छोड़ दिया, जिससे वे ठंड से तड़पते रहे। पुलिस उनको सोने ही नहीं देती थी। उनका मकसद सिर्फ उनको मेंटली टॉर्चर करना था ताकि किसी सुनवाई से पहले ही हम हार जाए। रोबिन का कहना है कि राष्ट्रपति ट्रंप ने एक कानून से उनका भविष्य तबाह कर दिया। वह दिल में कई अरमान लेकर 7 महीने में तरह-तरह के टॉर्चर सहकर अमेरिका पहुंचा था, मगर उनको सुनवाई तक का मौका नहीं दिया गया। उनको अपनी बात कहने का एक मौका जरूर मिलना चाहिए था, मगर उनको क्रिमनल की तरह वापस भेज दिया। 1 किल्ला बेचकर गया, 45 लाख का खर्च
रोबिन ने कहा, मैं 45 लाख रुपए खर्च लगाकर अमेरिका पहुंचा था। पिता मनजीत सिंह ने अपनी पुश्तैनी जमीन और 1 किल्ला (एकड़) बेच दिया था। जानकारों से भी उधार लिया था। एजेंट ने उसको एक महीने के अंदर अमेरिका भेजने का भरोसा दिया था, मगर करीब 7 महीने माफिया के साथ रहकर 8 कंट्री पार करके अमेरिका पहुंचा था। एजेंट ने उसे 24 जुलाई को मुंबई एयरपोर्ट से गयाना का वीजा लगवाकर भेजा था। इसके बाद ब्राजील, कोलंबिया, इक्वाडोर, ग्वाटेमाला के टापुओं, अमेजन जंगल से पैदल तो कभी क्रूज तो कभी गाड़ियों में सफर करके मेक्सिको से 22 जनवरी को अमेरिका में दाखिल हुआ था। यहां उनको पुलिस ने पकड़ कैंप में डाल दिया था। दिए जाते थे बिजली के झटके
रोबिन के कहा कि डोंकी में उनके साथ काफी बुरा बर्ताव किया जाता था। माफिया ने हाथ पड़ते ही उसका मोबाइल छीन लिया। उनको 3-4 घंटे पैदल चलना पड़ता था। उनको परिवार से पैसे मंगवाने के लिए बोला जाता था। पैसे नहीं मिलने पर भूखा रखकर मारपीट की जाती थी। बिजली के झटके भी दिए जाते थे। खाना 2-3 दिन में दिया जाता था। डंकी का पूरा काम माफिया करता है। इसमें पाकिस्तान समेत अफ्रीका के कई लोग शामिल है। पुलिस के साथ भी उनकी पूरी सेटिंग है। यहां भागना मतलब मौत को दावत देना है, क्योंकि माफिया से छूटकर भागने वाले की फोटो सभी माफिया के पास पहुंचा दी जाती थी। उसके बाद मुश्किल से कोई बचता होगा। माफिया के पास डंकी में जाने वाले पूरी जानकारी दर्ज होती है। नदी में बह रही थीं लाशें
रोबिन ने कहा कि उनको गुयाना, ब्राजील व कोलंबिया गाड़ी और नाव के जरिए भेजा गया। पेरू में उनको पैदल पहाड़ क्रॉस करवाकर अमेजन जंगल में उतार दिया गया। इस जंगल की नदी में लाशें ही बह रही थीं। उस बारे में सोचकर भी डर लगता है। उन्हें लगा था कि अमेरिका पहुंचकर कुछ राहत मिलेगी, मगर कैंप में उनको मेंटली टॉर्चर किया गया। कैंप में 800 से ज्यादा लोग कैद
रोबिन ने बताया कि उनको अमेरिका के जिस कैंप में रखा गया था, उसमें 800 से ज्यादा अलग-अलग कंट्री के लोग कैद थे। सभी के लिए अलग-अलग हॉल में 50-60 के ग्रुप में रखा जाता है। यहां उनको मेंटली टॉर्चर किया जाता था। दिन में 5 बार उनकी हाजिरी होती थी। सुबह उनको 5 बजे उठाकर बाहर बैठाया जाता था। यहां ठंड में उनकी हालत बुरी हो जाती थी। ओढ़ने के लिए मिला था चाइनीज पेपर
उनको ठंड से बचने के लिए चाइनीज सिल्वर पेपर दिया हुआ था। इसमें ठंड नहीं रुकती थी। इसके साथ ही हॉल में टॉर्चर करने के लिए AC को चालू कर छोड़ दिया जाता था। ठंड से बचने के लिए वे दो पेपर जोड़कर एक साथ लेटते थे, मगर पुलिस उनको सोने ही नहीं देती थी। उनका मकसद सिर्फ उनको मेंटली टॉर्चर करना था ताकि किसी सुनवाई से पहले ही हम हार जाए। खाने में एक सेब और फ्रूटी
खाने में उनको सुबह एक सेब, किशमिश, चिप्स, फ्रूटी और चॉकलेट दी जाती थी। उसके रात को सलाद वाला सेंडविच देते थे। इसका स्वाद ऐसा था कि कोई ज्यादातर लोग उसे फेंक देते थे। हॉल के बाहर कई बाथरूम और टॉयलेट एक साथ बने हुए थे। नहाने के लिए पानी ठंडा मिलता था। ठंड में कुछ लोग ही नहाने की हिम्मत करते थे। 2 फरवरी लाए आर्मी कैंप
रोबिन ने बताया कि 2 फरवरी रात करीब 12 बजे उनको हाथ में हथकड़ी, पांव और कमर में बेड़ियां डालकर आर्मी कैंप लाया गया। यहां उन्हें लगा कि अब उनका काम खत्म हो चुका है और उनको वापस भेजा जा रहा है। इसके बाद उनको आर्मी के प्लेन में बैठा दिया गया, जिसमें 20 अमेरिकन सोल्जर भी थे। यह अमेरिकन आर्मी का युद्ध में काम आने वाला प्लेन था। महिला और बच्चों को भी लगाई हथकड़ी
रोबिन का कहना है कि अमेरिकन आर्मी ने महिलाओं और बच्चों को हथकड़ी और बेड़ियां डाल रखी थी। उस प्लेन में 30 से ज्यादा महिला और 18 साल से कम के करीब 15 बच्चे शामिल थे। दो बार प्लेन को रोककर उसमें फ्यूल डाला गया, मगर यह कौन-ही जगह थी किसी को पता नहीं था। 5 फरवरी को उनको अमृतसर एयरपोर्ट पर उतार दिया गया। मुंबई में खोली हथकड़ी और बेड़ियां
अमेरिकन आर्मी ने मुंबई के पास महिला-बच्चों की हथकड़ी और बेड़ियां खोली थी। प्लेन में लोग इतने घबराए और डरे हुए थे कि कोई किसी से बात तक नहीं कर रहा था। उनको बाथरूम जाने के लिए भी सोल्जर से पूछ जाना होता था। वे सोल्जर ही उनको बाथरूम तक ले जाते थे और बाहर आने तक वहीं खड़े मिलते थे। 19 हजार को भेजा जाएगा वापस
रोबिन ने बताया कि उनके प्लेन के बाद 3 प्लेन आने बकाया है। हालांकि अमेरिकन कैंप से 19 हजार लोगों को डिपोर्ट किया जाना है। मैं अभी डंकी के रास्ते अमेरिका जाने वाले लोगों से यही कहूंगा कि अभी अमेरिका जाने की भूल मत करना। कल 3 बजे बुलाया अंबाला
मनजीत सिंह ने बताया कि उसके बेटे रोबिन ने बीते साल कंप्यूटर इंजीनियरिंग की थी। 18 जुलाई को रोबिन अमेरिका के लिए रवाना हुआ था। 22 जुलाई को उसे दिल्ली से मुंबई पहुंचाया गया और 24 जुलाई को मुंबई से गुयाना भेज दिया था। बुधवार को उनको मैसेज देकर अंबाला बुलाया गया था। यहां बेटे को देखकर वे सन्न रह गए। कुछ देर बाद रोबिन को उनके हवाले कर दिया। मनजीत सिंह की इस्माइलाबाद में घर के साथ ही मोटर की दुकान है। अमेरिका से डिपोर्ट हुए 104 भारतीय में से एक युवक कुरुक्षेत्र का भी है, जिसकी पहचान इस्माइलाबाद के रहने वाले 26 साल के रोबिन के तौर पर हुई है। रोबिन बुधवार देर रात अपने गांव पहुंचे। वो बताते हैं कि प्लेन में उनके हाथों में हथकड़ियां थी, पैरों में चेन बंधे थे। प्लेन में जब उन लोगों बिठाया गया तो किसी से बात नहीं करने दी गई। उनको खाने के लिए फल, पानी और चिप्स दिए। हथकड़ियां लगाकर ही खाना खाने दिया। रोबिन बताते है कि जब उन्हें अमेरिकी पुलिस ने पकड़ा तो उन्हें पुलिस ने उन्हें मेंटली टॉर्चर किया। पुलिस ने उनके कैंपों में AC को चालू कर छोड़ दिया, जिससे वे ठंड से तड़पते रहे। पुलिस उनको सोने ही नहीं देती थी। उनका मकसद सिर्फ उनको मेंटली टॉर्चर करना था ताकि किसी सुनवाई से पहले ही हम हार जाए। रोबिन का कहना है कि राष्ट्रपति ट्रंप ने एक कानून से उनका भविष्य तबाह कर दिया। वह दिल में कई अरमान लेकर 7 महीने में तरह-तरह के टॉर्चर सहकर अमेरिका पहुंचा था, मगर उनको सुनवाई तक का मौका नहीं दिया गया। उनको अपनी बात कहने का एक मौका जरूर मिलना चाहिए था, मगर उनको क्रिमनल की तरह वापस भेज दिया। 1 किल्ला बेचकर गया, 45 लाख का खर्च
रोबिन ने कहा, मैं 45 लाख रुपए खर्च लगाकर अमेरिका पहुंचा था। पिता मनजीत सिंह ने अपनी पुश्तैनी जमीन और 1 किल्ला (एकड़) बेच दिया था। जानकारों से भी उधार लिया था। एजेंट ने उसको एक महीने के अंदर अमेरिका भेजने का भरोसा दिया था, मगर करीब 7 महीने माफिया के साथ रहकर 8 कंट्री पार करके अमेरिका पहुंचा था। एजेंट ने उसे 24 जुलाई को मुंबई एयरपोर्ट से गयाना का वीजा लगवाकर भेजा था। इसके बाद ब्राजील, कोलंबिया, इक्वाडोर, ग्वाटेमाला के टापुओं, अमेजन जंगल से पैदल तो कभी क्रूज तो कभी गाड़ियों में सफर करके मेक्सिको से 22 जनवरी को अमेरिका में दाखिल हुआ था। यहां उनको पुलिस ने पकड़ कैंप में डाल दिया था। दिए जाते थे बिजली के झटके
रोबिन के कहा कि डोंकी में उनके साथ काफी बुरा बर्ताव किया जाता था। माफिया ने हाथ पड़ते ही उसका मोबाइल छीन लिया। उनको 3-4 घंटे पैदल चलना पड़ता था। उनको परिवार से पैसे मंगवाने के लिए बोला जाता था। पैसे नहीं मिलने पर भूखा रखकर मारपीट की जाती थी। बिजली के झटके भी दिए जाते थे। खाना 2-3 दिन में दिया जाता था। डंकी का पूरा काम माफिया करता है। इसमें पाकिस्तान समेत अफ्रीका के कई लोग शामिल है। पुलिस के साथ भी उनकी पूरी सेटिंग है। यहां भागना मतलब मौत को दावत देना है, क्योंकि माफिया से छूटकर भागने वाले की फोटो सभी माफिया के पास पहुंचा दी जाती थी। उसके बाद मुश्किल से कोई बचता होगा। माफिया के पास डंकी में जाने वाले पूरी जानकारी दर्ज होती है। नदी में बह रही थीं लाशें
रोबिन ने कहा कि उनको गुयाना, ब्राजील व कोलंबिया गाड़ी और नाव के जरिए भेजा गया। पेरू में उनको पैदल पहाड़ क्रॉस करवाकर अमेजन जंगल में उतार दिया गया। इस जंगल की नदी में लाशें ही बह रही थीं। उस बारे में सोचकर भी डर लगता है। उन्हें लगा था कि अमेरिका पहुंचकर कुछ राहत मिलेगी, मगर कैंप में उनको मेंटली टॉर्चर किया गया। कैंप में 800 से ज्यादा लोग कैद
रोबिन ने बताया कि उनको अमेरिका के जिस कैंप में रखा गया था, उसमें 800 से ज्यादा अलग-अलग कंट्री के लोग कैद थे। सभी के लिए अलग-अलग हॉल में 50-60 के ग्रुप में रखा जाता है। यहां उनको मेंटली टॉर्चर किया जाता था। दिन में 5 बार उनकी हाजिरी होती थी। सुबह उनको 5 बजे उठाकर बाहर बैठाया जाता था। यहां ठंड में उनकी हालत बुरी हो जाती थी। ओढ़ने के लिए मिला था चाइनीज पेपर
उनको ठंड से बचने के लिए चाइनीज सिल्वर पेपर दिया हुआ था। इसमें ठंड नहीं रुकती थी। इसके साथ ही हॉल में टॉर्चर करने के लिए AC को चालू कर छोड़ दिया जाता था। ठंड से बचने के लिए वे दो पेपर जोड़कर एक साथ लेटते थे, मगर पुलिस उनको सोने ही नहीं देती थी। उनका मकसद सिर्फ उनको मेंटली टॉर्चर करना था ताकि किसी सुनवाई से पहले ही हम हार जाए। खाने में एक सेब और फ्रूटी
खाने में उनको सुबह एक सेब, किशमिश, चिप्स, फ्रूटी और चॉकलेट दी जाती थी। उसके रात को सलाद वाला सेंडविच देते थे। इसका स्वाद ऐसा था कि कोई ज्यादातर लोग उसे फेंक देते थे। हॉल के बाहर कई बाथरूम और टॉयलेट एक साथ बने हुए थे। नहाने के लिए पानी ठंडा मिलता था। ठंड में कुछ लोग ही नहाने की हिम्मत करते थे। 2 फरवरी लाए आर्मी कैंप
रोबिन ने बताया कि 2 फरवरी रात करीब 12 बजे उनको हाथ में हथकड़ी, पांव और कमर में बेड़ियां डालकर आर्मी कैंप लाया गया। यहां उन्हें लगा कि अब उनका काम खत्म हो चुका है और उनको वापस भेजा जा रहा है। इसके बाद उनको आर्मी के प्लेन में बैठा दिया गया, जिसमें 20 अमेरिकन सोल्जर भी थे। यह अमेरिकन आर्मी का युद्ध में काम आने वाला प्लेन था। महिला और बच्चों को भी लगाई हथकड़ी
रोबिन का कहना है कि अमेरिकन आर्मी ने महिलाओं और बच्चों को हथकड़ी और बेड़ियां डाल रखी थी। उस प्लेन में 30 से ज्यादा महिला और 18 साल से कम के करीब 15 बच्चे शामिल थे। दो बार प्लेन को रोककर उसमें फ्यूल डाला गया, मगर यह कौन-ही जगह थी किसी को पता नहीं था। 5 फरवरी को उनको अमृतसर एयरपोर्ट पर उतार दिया गया। मुंबई में खोली हथकड़ी और बेड़ियां
अमेरिकन आर्मी ने मुंबई के पास महिला-बच्चों की हथकड़ी और बेड़ियां खोली थी। प्लेन में लोग इतने घबराए और डरे हुए थे कि कोई किसी से बात तक नहीं कर रहा था। उनको बाथरूम जाने के लिए भी सोल्जर से पूछ जाना होता था। वे सोल्जर ही उनको बाथरूम तक ले जाते थे और बाहर आने तक वहीं खड़े मिलते थे। 19 हजार को भेजा जाएगा वापस
रोबिन ने बताया कि उनके प्लेन के बाद 3 प्लेन आने बकाया है। हालांकि अमेरिकन कैंप से 19 हजार लोगों को डिपोर्ट किया जाना है। मैं अभी डंकी के रास्ते अमेरिका जाने वाले लोगों से यही कहूंगा कि अभी अमेरिका जाने की भूल मत करना। कल 3 बजे बुलाया अंबाला
मनजीत सिंह ने बताया कि उसके बेटे रोबिन ने बीते साल कंप्यूटर इंजीनियरिंग की थी। 18 जुलाई को रोबिन अमेरिका के लिए रवाना हुआ था। 22 जुलाई को उसे दिल्ली से मुंबई पहुंचाया गया और 24 जुलाई को मुंबई से गुयाना भेज दिया था। बुधवार को उनको मैसेज देकर अंबाला बुलाया गया था। यहां बेटे को देखकर वे सन्न रह गए। कुछ देर बाद रोबिन को उनके हवाले कर दिया। मनजीत सिंह की इस्माइलाबाद में घर के साथ ही मोटर की दुकान है। हरियाणा | दैनिक भास्कर
![अमेरिका से डिपोर्ट हुआ कुरुक्षेत्र का युवक:बोला- अमेरिका पुलिस ने टॉर्चर किया, पिता ने जमीन बेची, 45 लाख खर्च कर गया](https://images.bhaskarassets.com/thumb/1000x1000/web2images/521/2025/02/06/ezgif-12eec7473705e_1738845646.gif)