सोनीपत में स्थित अशोका यूनिवर्सिटी एक बार फिर विवादों के केंद्र में है। अशोका यूनिवर्सिटी के ट्रस्टी और इंफोएज (नौकरी डॉट कॉम) के संस्थापक संजीव बिखचंदानी द्वारा भेजे गए एक इंटरनल ईमेल ने हलचल मचा दी है। इस ईमेल में उन्होंने यूनिवर्सिटी को “बहुत ज्यादा सिरदर्द” बताते हुए अपने पद से इस्तीफा देने की बात कही। यह विवाद तब गहराया जब यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद ने सेना की दो महिला अधिकारियों को लेकर सोशल मीडिया पर विवादित टिप्पणी की, जिसके चलते उन्हें गिरफ्तार भी किया गया और बाद में जेल से रिहा हो गए। संजीव बिखचंदानी ने अपने मेल में लिखा कि उन्होंने और साथी ट्रस्टी प्रमथ राज सिन्हा और आशीष धवन ने इस्तीफा देने पर गंभीरता से विचार किया है। उन्होंने कहा, “अशोका यूनिवर्सिटी बहुत ज्यादा सिरदर्द बन चुकी है। क्या यह प्रयास के लायक है?” उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि अब पूर्व छात्रों को नेतृत्व संभालना चाहिए। यूनिवर्सिटी और राजनीतिक सक्रियता अलग हों बिखचंदानी ने जोर देकर कहा कि यूनिवर्सिटी का काम शिक्षा देना है, न कि राजनीतिक विचारधारा को बढ़ावा देना। उन्होंने कहा कि “सोशल मीडिया पर किसी प्रोफेसर द्वारा दी गई राजनीतिक राय को अकादमिक स्वतंत्रता नहीं कहा जा सकता।” उन्होंने चेताया कि ऐसी टिप्पणियों से यूनिवर्सिटी की प्रतिष्ठा और जवाबदेही प्रभावित होती है। प्रो. अली खान महमूदाबाद का बयान और गिरफ्तारी अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की प्रेस ब्रीफिंग में भाग लेने वाली महिला अधिकारियों पर टिप्पणी की थी। उन्होंने इसे “दिखावा और पाखंड” बताया था। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार मुस्लिम समुदाय के खिलाफ है और अब मुस्लिम महिला अधिकारी को सिर्फ दिखावे के लिए सामने लाया गया है। इस बयान के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, हालांकि सुप्रीम कोर्ट से उन्हें अंतरिम जमानत मिल गई। बिखचंदानी का महमूदाबाद को जवाब: जिम्मेदारी लें बिखचंदानी ने प्रो. महमूदाबाद को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि वे एक वयस्क हैं और उन्हें अपने कार्यों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। उन्होंने लिखा, “आपने अशोका से बिना पूछे सोशल मीडिया पर बयान दिया, अब आप संस्थान से समर्थन की उम्मीद नहीं कर सकते।” बिखचंदानी ने स्पष्ट किया कि यदि सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर कोई सरकारी कार्रवाई होती है, तो वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मामला हो सकता है, पर इसे अकादमिक स्वतंत्रता से नहीं जोड़ा जा सकता। उन्होंने कहा कि यूनिवर्सिटी को इन विवादों से बचना चाहिए, ताकि उसका उद्देश्य शिक्षा और रिसर्च बाधित न हो। अशोका यूनिवर्सिटी पर लगातार विवादों के आरोप अशोका यूनिवर्सिटी पर वामपंथी राजनीति को बढ़ावा देने के आरोप पहले भी लगते रहे हैं। मार्च 2024 में यूनिवर्सिटी के छात्रों पर “ब्राह्मण-बनिया मुर्दाबाद” जैसे नारे लगाने के आरोप लगे थे। मई 2024 में दीक्षांत समारोह के दौरान छात्रों ने फिलिस्तीन समर्थक तख्तियां लहराई थीं। इसके अलावा चुनावी हेराफेरी से जुड़ा शोधपत्र और नेताजी की तस्वीर पर गलत दावा भी यूनिवर्सिटी की छवि को प्रभावित कर चुके हैं। नीतिगत दिशा और भविष्य की चुनौती बिखचंदानी ने सवाल किया कि क्या एक पूर्णकालिक प्रोफेसर को राजनीतिक कार्यकर्ता बनने की अनुमति होनी चाहिए? उन्होंने सुझाव दिया कि यूनिवर्सिटी को इस पर स्पष्ट नीति बनानी चाहिए। उन्होंने याद दिलाया कि अशोका यूनिवर्सिटी एक शैक्षणिक संस्थान है, कोई राजनीतिक मंच नहीं। सोनीपत में स्थित अशोका यूनिवर्सिटी एक बार फिर विवादों के केंद्र में है। अशोका यूनिवर्सिटी के ट्रस्टी और इंफोएज (नौकरी डॉट कॉम) के संस्थापक संजीव बिखचंदानी द्वारा भेजे गए एक इंटरनल ईमेल ने हलचल मचा दी है। इस ईमेल में उन्होंने यूनिवर्सिटी को “बहुत ज्यादा सिरदर्द” बताते हुए अपने पद से इस्तीफा देने की बात कही। यह विवाद तब गहराया जब यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद ने सेना की दो महिला अधिकारियों को लेकर सोशल मीडिया पर विवादित टिप्पणी की, जिसके चलते उन्हें गिरफ्तार भी किया गया और बाद में जेल से रिहा हो गए। संजीव बिखचंदानी ने अपने मेल में लिखा कि उन्होंने और साथी ट्रस्टी प्रमथ राज सिन्हा और आशीष धवन ने इस्तीफा देने पर गंभीरता से विचार किया है। उन्होंने कहा, “अशोका यूनिवर्सिटी बहुत ज्यादा सिरदर्द बन चुकी है। क्या यह प्रयास के लायक है?” उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि अब पूर्व छात्रों को नेतृत्व संभालना चाहिए। यूनिवर्सिटी और राजनीतिक सक्रियता अलग हों बिखचंदानी ने जोर देकर कहा कि यूनिवर्सिटी का काम शिक्षा देना है, न कि राजनीतिक विचारधारा को बढ़ावा देना। उन्होंने कहा कि “सोशल मीडिया पर किसी प्रोफेसर द्वारा दी गई राजनीतिक राय को अकादमिक स्वतंत्रता नहीं कहा जा सकता।” उन्होंने चेताया कि ऐसी टिप्पणियों से यूनिवर्सिटी की प्रतिष्ठा और जवाबदेही प्रभावित होती है। प्रो. अली खान महमूदाबाद का बयान और गिरफ्तारी अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की प्रेस ब्रीफिंग में भाग लेने वाली महिला अधिकारियों पर टिप्पणी की थी। उन्होंने इसे “दिखावा और पाखंड” बताया था। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार मुस्लिम समुदाय के खिलाफ है और अब मुस्लिम महिला अधिकारी को सिर्फ दिखावे के लिए सामने लाया गया है। इस बयान के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, हालांकि सुप्रीम कोर्ट से उन्हें अंतरिम जमानत मिल गई। बिखचंदानी का महमूदाबाद को जवाब: जिम्मेदारी लें बिखचंदानी ने प्रो. महमूदाबाद को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि वे एक वयस्क हैं और उन्हें अपने कार्यों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। उन्होंने लिखा, “आपने अशोका से बिना पूछे सोशल मीडिया पर बयान दिया, अब आप संस्थान से समर्थन की उम्मीद नहीं कर सकते।” बिखचंदानी ने स्पष्ट किया कि यदि सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर कोई सरकारी कार्रवाई होती है, तो वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मामला हो सकता है, पर इसे अकादमिक स्वतंत्रता से नहीं जोड़ा जा सकता। उन्होंने कहा कि यूनिवर्सिटी को इन विवादों से बचना चाहिए, ताकि उसका उद्देश्य शिक्षा और रिसर्च बाधित न हो। अशोका यूनिवर्सिटी पर लगातार विवादों के आरोप अशोका यूनिवर्सिटी पर वामपंथी राजनीति को बढ़ावा देने के आरोप पहले भी लगते रहे हैं। मार्च 2024 में यूनिवर्सिटी के छात्रों पर “ब्राह्मण-बनिया मुर्दाबाद” जैसे नारे लगाने के आरोप लगे थे। मई 2024 में दीक्षांत समारोह के दौरान छात्रों ने फिलिस्तीन समर्थक तख्तियां लहराई थीं। इसके अलावा चुनावी हेराफेरी से जुड़ा शोधपत्र और नेताजी की तस्वीर पर गलत दावा भी यूनिवर्सिटी की छवि को प्रभावित कर चुके हैं। नीतिगत दिशा और भविष्य की चुनौती बिखचंदानी ने सवाल किया कि क्या एक पूर्णकालिक प्रोफेसर को राजनीतिक कार्यकर्ता बनने की अनुमति होनी चाहिए? उन्होंने सुझाव दिया कि यूनिवर्सिटी को इस पर स्पष्ट नीति बनानी चाहिए। उन्होंने याद दिलाया कि अशोका यूनिवर्सिटी एक शैक्षणिक संस्थान है, कोई राजनीतिक मंच नहीं। हरियाणा | दैनिक भास्कर
