इमरान की आशु मलिक से लड़ाई या अखिलेश से:​​​​​​​मुस्लिम राजनीति में 50 साल से काजी परिवार का दबदबा, चाचा 9 बार सांसद रहे

इमरान की आशु मलिक से लड़ाई या अखिलेश से:​​​​​​​मुस्लिम राजनीति में 50 साल से काजी परिवार का दबदबा, चाचा 9 बार सांसद रहे

सहारनपुर इन दिनों सुर्खियों में है। वजह वहां कांग्रेस और सपा के बीच चल रहा टकराव है। यह टकराव इमरान मसूद के करीबी और समाजवादी पार्टी के एमएलसी शहनवाज खान और सपा के ही विधायक आशु मलिक के बीच है। शहनवाज मौजूदा विधायक आशु मलिक की विधानसभा सीट सहारनपुर देहात से कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। क्या टकराव की जड़ यही है या कुछ और? इमरान मसूद और आशु आमने-सामने क्यों हैं? इमरान की अखिलेश यादव से बगावत या अदावत की वजह क्या है? इसका सपा-कांग्रेस गठबंधन पर क्या असर पड़ेगा? पढ़िए पूरी रिपोर्ट… पहले बात इमरान मसूद की इमरान मसूद की गिनती पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बड़े मुस्लिम नेताओं के तौर पर होती है। इमरान के राहुल और प्रियंका गांधी से भी अच्छे रिश्ते हैं। इमरान उस राजनीतिक घराने से संबंध रखते हैं, जो पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का काफी करीबी था। इमरान मसूद सपा और बहुजन समाज पार्टी की सियासत से रूबरू होकर वापस कांग्रेस में आए हैं। इनके चाचा काजी रशीद मसूद 5 बार लोकसभा और 4 बार राज्यसभा में सहारनपुर का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। वे जनता दल, राष्ट्रीय लोकदल, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में रहकर सहारनपुर की सियासत में 5 दशकों तक अपना सिक्का चलाते रहे। रशीद मसूद 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की केंद्र सरकार में स्वास्थ्य मंत्री थे। वे 2007 में संयुक्त मोर्चा के उपराष्ट्रपति के चुनाव में प्रत्याशी भी रह चुके हैं। 2012 में रशीद मसूद और इमरान मसूद ने कांग्रेस का दामन थाम लिया। 2020 में रशीद मसूद के निधन के बाद इमरान ने उनकी राजनीतिक विरासत संभाली। 2022 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वे समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक राजेंद्र कुमार कहते हैं- सिर्फ सहारनपुर ही नहीं, बल्कि पश्चिमी यूपी की मुस्लिम सियासत में इमरान मसूद बड़ा चेहरा हैं। वे विधानसभा की कई सीटों पर प्रभाव रखते हैं। उनकी काबिलियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अपने दम पर नरेश सैनी, माविया अली और मसूद अख्तर जैसे स्थानीय नेताओं को विधायक बनवाया। राजेंद्र कुमार बताते हैं- 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले जब वे सपा में शामिल हुए, तो उन्हें उम्मीदें बहुत थीं। सपा ने सरकार बनने पर एडजस्ट करने का वादा किया था। सपा की सरकार बनी नहीं और इमरान मसूद एडजस्ट नहीं हो पाए। फिर इमरान ने सपा छोड़कर बसपा का दामन थाम लिया। बसपा में भी वे ज्यादा दिन नहीं टिके। राहुल गांधी की तारीफ करना उन्हें महंगा पड़ गया। बसपा ने उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। आखिरकार इमरान वापस कांग्रेस में पहुंच गए। इमरान की वजह से टूटने की कगार पर पहुंच गया था गठबंधन
राजेंद्र कुमार बताते हैं- 2024 में सहारनपुर सीट को लेकर सपा-कांग्रेस गठबंधन टूटने की कगार पर पहुंच गया था। अखिलेश यादव की सूझ-बूझ की वजह से यह गठबंधन बच पाया। कांग्रेस मुरादाबाद, अमरोहा और सहारनपुर पर दावेदारी कर रही थी। सहारनपुर और अमरोहा वह किसी कीमत पर छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी। आखिर में अखिलेश यादव ने सहारनपुर और अमरोहा दोनों सीटें कांग्रेस के लिए छोड़ने को तैयार हो गए। इमरान का करियर भी काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है। वे 2006 में पहली बार चेयरमैन चुने गए। 2007 में नकुड़ विधानसभा से निर्विरोध चुनाव जीते। 2012 में कांग्रेस से चुनाव लड़े, लेकिन हार गए। हार का सिलसिला 2014, 2017 और 2019 में भी बरकरार रहा। 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बीच जब कांग्रेस की स्थिति उत्तर प्रदेश में काफी कमजोर थी, उस समय वह करीब पांच लाख वोट हासिल करके 4 हजार वोटों से चुनाव हार गए थे। 2024 के चुनाव में सपा और कांग्रेस का गठबंधन हुआ। इसके बाद इमरान ने राम लखन पाल को मात दी। इमरान यूपी में कांग्रेस पार्टी से चुने जाने वाले इकलौते मुस्लिम सांसद बने। राम को बताते हैं आदर्श, सभी वर्गों में पकड़
इमरान मसूद ने हाल के दिनों में अपनी छवि में अप्रत्याशित बदलाव किया है। वे होली के मौके पर रंग खेलते हैं, मौका पड़ने पर मंदिर में भी माथा टेकने में परहेज नहीं करते। इमरान भगवान राम को आदर्श बताते हैं। कहते हैं- भगवान राम किसी एक के नहीं, सबके हैं। इमरान की यही छवि उनके विरोधियों को नागवार गुजरती है। आशु मलिक के प्रस्तावक बने थे इमरान मसूद
आशु मलिक मूलरूप से गाजियाबाद के रहने वाले हैं। वे अखिलेश यादव के खासम-खास माने जाते हैं। जब 2022 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले इमरान मसूद कांग्रेस छोड़कर समाजवादी पार्टी में आए, तो अखिलेश यादव ने उन्हें सरकार बनने पर एडजस्ट करने का वादा किया था। वहीं, सहारनपुर देहात से सपा प्रत्याशी आशु मलिक काे जिताने की जिम्मेदारी भी उन्हीं को दे दी। नतीजा यह हुआ कि इमरान को आशु मलिक का प्रस्तावक बनना पड़ा। शहनवाज की एंट्री के बाद बिगड़ा संबंध
जानकारों का कहना है कि इमरान मसूद और आशु मलिक के बीच विवाद तब पैदा हुआ, जब MLC शाहनवाज ने सहारनपुर देहात में अपनी सक्रियता बढ़ाई। दरअसल, शाहनवाज भी MLC हैं। इसलिए वह भी अपनी विधायक निधि का पैसा अपने वोट बैंक और समीकरण को देखकर खर्च करने लगे। दोनों ने ही वहां एक-दूसरे के विरोध में होर्डिंग लगवानी शुरू कर दीं। आशु के विरोध को इमरान के विरोध के तौर पर देखा जाने लगा। फिर दोनों एक-दूसरे को खुलकर बुरा-भला कहने लगे। तकरार तब और बढ़ गई, जब एक हेल्थ कैंप को लेकर इमरान मसूद ने स्वास्थ्य अधिकारी को फोन किया। स्वास्थ्य अधिकारी ने कह दिया कि कैंप लगाने के लिए आशु मलिक ने मना किया है। इस पर इमरान आगबबूला हो गए। वहीं, आशु मलिक का कहना था कि उस क्षेत्र में कैंसर के मरीज ज्यादा आ रहे थे। इसे उन्होंने विधानसभा में भी उठाया था। इसके बाद स्वास्थ्य विभाग सक्रिय हुआ और कैंप लगाने की बात कही। उन दिनों आशु मलिक जिले से बाहर थे। इसलिए उन्होंने सहारनपुर लौटने पर कैंप लगाने की बात कही। इसी दौरान इमरान मसूद को पता चलने पर उन्होंने स्वास्थ्य अधिकारी को फोन किया था। इसका वीडियो वायरल हो गया। वीडियो में इमरान मसूद ने कहा था कि अगर आशु मलिक विधायक न हों, तो क्या स्वास्थ्य शिविर नहीं लगेगा? इस बयान के बाद आशु मलिक ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इमरान को कांग्रेस का स्लीपर सेल और बीजेपी के लिए काम करने वाला बताकर पलटवार किया। मलिक ने मसूद को इस्तीफा देकर दोबारा चुनाव लड़ने की चुनौती दी, जिसे मसूद ने खारिज कर दिया। इसके बाद मसूद ने सपा के MLC शाहनवाज खान को 2027 के विधानसभा चुनाव में आशु मलिक के खिलाफ उतारने की घोषणा कर दी। इससे विवाद और भड़क गया। गठबंधन पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?
इमरान मसूद और आशु मलिक के बीच यह टकराव सपा-कांग्रेस गठबंधन के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। 2024 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन ने यूपी में 43 सीटें जीती थीं। लेकिन, मसूद के बयानों से गठबंधन की एकता पर सवाल उठ रहे हैं। मसूद ने साफ कहा कि 2027 में 80-17 का सीट बंटवारा स्वीकार नहीं होगा। कांग्रेस अपने दम पर 200 सीटों पर लड़ेगी। इस संबंध में इमरान मसूद बात करने से ही मना कर देते हैं। उनका कहना है कि वे आशु को नहीं जानते। उनकी लड़ाई अगर है, तो समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव से है। फिलहाल सहारनपुर की जंग को लेकर दोनों दलों के शीर्ष नेता चुप हैं। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जब अखिलेश यादव से इस पर सवाल किया गया, तो वह टाल गए। गठबंधन के बड़े नेता, जैसे अखिलेश यादव और राहुल गांधी, इस विवाद पर चुप हैं, लेकिन जल्द ही हस्तक्षेप की जरूरत पड़ सकती है। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक अशोक त्रिपाठी कहते हैं- सहारनपुर में आशु मलिक इमरान मसूद के मुकाबले कहीं नहीं ठहरते। सारी लड़ाई सहारनपुर देहात के प्रतिनिधित्व की है। मुस्लिम बाहुल्य सीट पर इमरान के प्रत्याशी लंबे समय से जीत हासिल करते रहे हैं। ——————— ये खबर भी पढ़ें… स्मगलिंग का गोल्ड पेट से निकालने को स्पेशल टॉयलेट सीट, 30-30 हजार में दुबई जाते हैं कूरियर बॉय यूपी के मुरादाबाद में 23 मई को पकड़े गए 4 सोना तस्करों से चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। पता चला है कि रामपुर में कस्बा टांडा क्षेत्र के करीब 150 युवक तस्करी में शामिल हैं। फाइनेंसर उन्हें अपने खर्चे पर दुबई भेजते हैं। पढ़ें पूरी खबर सहारनपुर इन दिनों सुर्खियों में है। वजह वहां कांग्रेस और सपा के बीच चल रहा टकराव है। यह टकराव इमरान मसूद के करीबी और समाजवादी पार्टी के एमएलसी शहनवाज खान और सपा के ही विधायक आशु मलिक के बीच है। शहनवाज मौजूदा विधायक आशु मलिक की विधानसभा सीट सहारनपुर देहात से कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। क्या टकराव की जड़ यही है या कुछ और? इमरान मसूद और आशु आमने-सामने क्यों हैं? इमरान की अखिलेश यादव से बगावत या अदावत की वजह क्या है? इसका सपा-कांग्रेस गठबंधन पर क्या असर पड़ेगा? पढ़िए पूरी रिपोर्ट… पहले बात इमरान मसूद की इमरान मसूद की गिनती पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बड़े मुस्लिम नेताओं के तौर पर होती है। इमरान के राहुल और प्रियंका गांधी से भी अच्छे रिश्ते हैं। इमरान उस राजनीतिक घराने से संबंध रखते हैं, जो पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का काफी करीबी था। इमरान मसूद सपा और बहुजन समाज पार्टी की सियासत से रूबरू होकर वापस कांग्रेस में आए हैं। इनके चाचा काजी रशीद मसूद 5 बार लोकसभा और 4 बार राज्यसभा में सहारनपुर का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। वे जनता दल, राष्ट्रीय लोकदल, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में रहकर सहारनपुर की सियासत में 5 दशकों तक अपना सिक्का चलाते रहे। रशीद मसूद 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की केंद्र सरकार में स्वास्थ्य मंत्री थे। वे 2007 में संयुक्त मोर्चा के उपराष्ट्रपति के चुनाव में प्रत्याशी भी रह चुके हैं। 2012 में रशीद मसूद और इमरान मसूद ने कांग्रेस का दामन थाम लिया। 2020 में रशीद मसूद के निधन के बाद इमरान ने उनकी राजनीतिक विरासत संभाली। 2022 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वे समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक राजेंद्र कुमार कहते हैं- सिर्फ सहारनपुर ही नहीं, बल्कि पश्चिमी यूपी की मुस्लिम सियासत में इमरान मसूद बड़ा चेहरा हैं। वे विधानसभा की कई सीटों पर प्रभाव रखते हैं। उनकी काबिलियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अपने दम पर नरेश सैनी, माविया अली और मसूद अख्तर जैसे स्थानीय नेताओं को विधायक बनवाया। राजेंद्र कुमार बताते हैं- 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले जब वे सपा में शामिल हुए, तो उन्हें उम्मीदें बहुत थीं। सपा ने सरकार बनने पर एडजस्ट करने का वादा किया था। सपा की सरकार बनी नहीं और इमरान मसूद एडजस्ट नहीं हो पाए। फिर इमरान ने सपा छोड़कर बसपा का दामन थाम लिया। बसपा में भी वे ज्यादा दिन नहीं टिके। राहुल गांधी की तारीफ करना उन्हें महंगा पड़ गया। बसपा ने उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। आखिरकार इमरान वापस कांग्रेस में पहुंच गए। इमरान की वजह से टूटने की कगार पर पहुंच गया था गठबंधन
राजेंद्र कुमार बताते हैं- 2024 में सहारनपुर सीट को लेकर सपा-कांग्रेस गठबंधन टूटने की कगार पर पहुंच गया था। अखिलेश यादव की सूझ-बूझ की वजह से यह गठबंधन बच पाया। कांग्रेस मुरादाबाद, अमरोहा और सहारनपुर पर दावेदारी कर रही थी। सहारनपुर और अमरोहा वह किसी कीमत पर छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी। आखिर में अखिलेश यादव ने सहारनपुर और अमरोहा दोनों सीटें कांग्रेस के लिए छोड़ने को तैयार हो गए। इमरान का करियर भी काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है। वे 2006 में पहली बार चेयरमैन चुने गए। 2007 में नकुड़ विधानसभा से निर्विरोध चुनाव जीते। 2012 में कांग्रेस से चुनाव लड़े, लेकिन हार गए। हार का सिलसिला 2014, 2017 और 2019 में भी बरकरार रहा। 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बीच जब कांग्रेस की स्थिति उत्तर प्रदेश में काफी कमजोर थी, उस समय वह करीब पांच लाख वोट हासिल करके 4 हजार वोटों से चुनाव हार गए थे। 2024 के चुनाव में सपा और कांग्रेस का गठबंधन हुआ। इसके बाद इमरान ने राम लखन पाल को मात दी। इमरान यूपी में कांग्रेस पार्टी से चुने जाने वाले इकलौते मुस्लिम सांसद बने। राम को बताते हैं आदर्श, सभी वर्गों में पकड़
इमरान मसूद ने हाल के दिनों में अपनी छवि में अप्रत्याशित बदलाव किया है। वे होली के मौके पर रंग खेलते हैं, मौका पड़ने पर मंदिर में भी माथा टेकने में परहेज नहीं करते। इमरान भगवान राम को आदर्श बताते हैं। कहते हैं- भगवान राम किसी एक के नहीं, सबके हैं। इमरान की यही छवि उनके विरोधियों को नागवार गुजरती है। आशु मलिक के प्रस्तावक बने थे इमरान मसूद
आशु मलिक मूलरूप से गाजियाबाद के रहने वाले हैं। वे अखिलेश यादव के खासम-खास माने जाते हैं। जब 2022 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले इमरान मसूद कांग्रेस छोड़कर समाजवादी पार्टी में आए, तो अखिलेश यादव ने उन्हें सरकार बनने पर एडजस्ट करने का वादा किया था। वहीं, सहारनपुर देहात से सपा प्रत्याशी आशु मलिक काे जिताने की जिम्मेदारी भी उन्हीं को दे दी। नतीजा यह हुआ कि इमरान को आशु मलिक का प्रस्तावक बनना पड़ा। शहनवाज की एंट्री के बाद बिगड़ा संबंध
जानकारों का कहना है कि इमरान मसूद और आशु मलिक के बीच विवाद तब पैदा हुआ, जब MLC शाहनवाज ने सहारनपुर देहात में अपनी सक्रियता बढ़ाई। दरअसल, शाहनवाज भी MLC हैं। इसलिए वह भी अपनी विधायक निधि का पैसा अपने वोट बैंक और समीकरण को देखकर खर्च करने लगे। दोनों ने ही वहां एक-दूसरे के विरोध में होर्डिंग लगवानी शुरू कर दीं। आशु के विरोध को इमरान के विरोध के तौर पर देखा जाने लगा। फिर दोनों एक-दूसरे को खुलकर बुरा-भला कहने लगे। तकरार तब और बढ़ गई, जब एक हेल्थ कैंप को लेकर इमरान मसूद ने स्वास्थ्य अधिकारी को फोन किया। स्वास्थ्य अधिकारी ने कह दिया कि कैंप लगाने के लिए आशु मलिक ने मना किया है। इस पर इमरान आगबबूला हो गए। वहीं, आशु मलिक का कहना था कि उस क्षेत्र में कैंसर के मरीज ज्यादा आ रहे थे। इसे उन्होंने विधानसभा में भी उठाया था। इसके बाद स्वास्थ्य विभाग सक्रिय हुआ और कैंप लगाने की बात कही। उन दिनों आशु मलिक जिले से बाहर थे। इसलिए उन्होंने सहारनपुर लौटने पर कैंप लगाने की बात कही। इसी दौरान इमरान मसूद को पता चलने पर उन्होंने स्वास्थ्य अधिकारी को फोन किया था। इसका वीडियो वायरल हो गया। वीडियो में इमरान मसूद ने कहा था कि अगर आशु मलिक विधायक न हों, तो क्या स्वास्थ्य शिविर नहीं लगेगा? इस बयान के बाद आशु मलिक ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इमरान को कांग्रेस का स्लीपर सेल और बीजेपी के लिए काम करने वाला बताकर पलटवार किया। मलिक ने मसूद को इस्तीफा देकर दोबारा चुनाव लड़ने की चुनौती दी, जिसे मसूद ने खारिज कर दिया। इसके बाद मसूद ने सपा के MLC शाहनवाज खान को 2027 के विधानसभा चुनाव में आशु मलिक के खिलाफ उतारने की घोषणा कर दी। इससे विवाद और भड़क गया। गठबंधन पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?
इमरान मसूद और आशु मलिक के बीच यह टकराव सपा-कांग्रेस गठबंधन के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। 2024 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन ने यूपी में 43 सीटें जीती थीं। लेकिन, मसूद के बयानों से गठबंधन की एकता पर सवाल उठ रहे हैं। मसूद ने साफ कहा कि 2027 में 80-17 का सीट बंटवारा स्वीकार नहीं होगा। कांग्रेस अपने दम पर 200 सीटों पर लड़ेगी। इस संबंध में इमरान मसूद बात करने से ही मना कर देते हैं। उनका कहना है कि वे आशु को नहीं जानते। उनकी लड़ाई अगर है, तो समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव से है। फिलहाल सहारनपुर की जंग को लेकर दोनों दलों के शीर्ष नेता चुप हैं। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जब अखिलेश यादव से इस पर सवाल किया गया, तो वह टाल गए। गठबंधन के बड़े नेता, जैसे अखिलेश यादव और राहुल गांधी, इस विवाद पर चुप हैं, लेकिन जल्द ही हस्तक्षेप की जरूरत पड़ सकती है। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक अशोक त्रिपाठी कहते हैं- सहारनपुर में आशु मलिक इमरान मसूद के मुकाबले कहीं नहीं ठहरते। सारी लड़ाई सहारनपुर देहात के प्रतिनिधित्व की है। मुस्लिम बाहुल्य सीट पर इमरान के प्रत्याशी लंबे समय से जीत हासिल करते रहे हैं। ——————— ये खबर भी पढ़ें… स्मगलिंग का गोल्ड पेट से निकालने को स्पेशल टॉयलेट सीट, 30-30 हजार में दुबई जाते हैं कूरियर बॉय यूपी के मुरादाबाद में 23 मई को पकड़े गए 4 सोना तस्करों से चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। पता चला है कि रामपुर में कस्बा टांडा क्षेत्र के करीब 150 युवक तस्करी में शामिल हैं। फाइनेंसर उन्हें अपने खर्चे पर दुबई भेजते हैं। पढ़ें पूरी खबर   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर