उत्तर प्रदेश, जो 31 नदियों का घर है। या यूं कहें कि नदियां प्रदेश की जीवन रेखा हैं। इनके किनारों पर जन्म से मृत्यु तक के संस्कार होते हैं। रीति-रिवाजों से जुड़ी इन नदियों में ज्यादातर की हालत दयनीय है। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की रिपोर्ट बताती है, ये नदियां अब जीवनदायिनी न होकर बीमारियां बांट रही हैं। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने नदियों को स्वच्छता के आधार पर 5 कैटेगरी में बांटा है। इसमें कैटेगरी A, B, C, D और E हैं। किसी नदी का पानी अगर A कैटेगरी में है, तो इसका मतलब है कि बिना किसी तरह के प्यूरिफिकेशन के पिया जा सकता है। अगर B कैटेगरी है, तो सिर्फ नहाया जा सकता है। C में है तो प्यूरिफाई करके पिया जा सकता है। सबसे खराब कैटेगरी D और फिर E है। उत्तर प्रदेश की प्रमुख जीवनदायिनी नदियों का क्या हाल है? क्या पूरे प्रदेश में इन नदियों का पानी इस्तेमाल करने लायक बचा है? नदियों की स्वच्छता के लिए क्या किया जा रहा है? पढ़िए पूरी रिपोर्ट कानपुर में गंगा का पानी न पीने लायक, न नहाने लायक
कानपुर, कन्नौज, मिर्जापुर, सोनभद्र, वाराणसी, गाजीपुर और बलिया…ये वो शहर हैं, जहां गंगा का पानी इस्तेमाल करने लायक नहीं है। न तो पीने के लिहाज से सही है और न ही इससे नहाया जा सकता है। इस साल फरवरी में यूपी पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने इसको लेकर रिपोर्ट दी है। इसमें प्रदेश की कुल 13 नदियों को शामिल किया गया। सबसे ज्यादा 40 नमूने गंगा नदी के हैं। कानपुर में नानामऊ गंगा ब्रिज, भैरव घाट, डी एस शुक्ला गंज, गोला घाट, जाजमऊ ब्रिज, जाना गांव और पुराना राजापुर जैसे स्पॉट हैं। यहां पानी इंसानों के पीने और नहाने लायक नहीं है। इसी तरह वाराणसी में गोमती नदी में मिलने से पहले भुसावल और जमनिया गंगा ब्रिज का पानी न आचमन करने लायक है, न ही नहाने लायक। बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU) के प्रोफेसर डॉ. बीडी त्रिपाठी ने गंगा नदी पर रिसर्च किया है। वह कहते हैं, जिस पानी में मानक से ज्यादा डिजॉल्व ऑक्सीजन और बैक्टीरिया होंगे वो किसी इस्तेमाल के लायक नहीं रहेगा। अगर बैक्टीरिया रहित पानी शरीर में गया, तो बीमारी पैदा करेगा। प्रोफेसर त्रिपाठी सरकार की रिपोर्ट को लेकर कहते हैं- पूरी गंगा ही D या E कैटेगरी में है, ऐसा नहीं है। जिन जगहों से ये सैंपल लिए गए हैं, वहां गंदगी ज्यादा है। मथुरा के शाहपुरा में यमुना का पानी सबसे खराब
यमुना नदी का हाल भी गंगा की तरह बेहाल है। बोर्ड ने प्रदेश में कुल 14 जगहों से नमूने लिए। हाल ये है कि सभी जगहों पर पानी इस्तेमाल लायक नहीं बचा है। नदियों के पानी में फीकॉल कोलीफार्म नाम का बैक्टीरिया पाया जाता है। सामान्य स्थिति में यह एक मिलीलीटर में 100 बैक्टीरिया होना चाहिए। लेकिन इन जगहों पर यह 6 हजार से शुरू होकर 49 हजार तक है। सबसे ज्यादा मथुरा के शाहपुरा में यह 49 हजार है। वहीं, वृंदावन के केसीघाट पर यह 27 हजार है। आगरा, इटावा, मथुरा, हमीरपुर इन सभी जगहों पर यमुना नदी का पानी D कैटेगरी में है। यानी इन सभी शहरों में यमुना का पानी इंसानों के इस्तेमाल लायक नहीं बचा है। हालांकि, प्रयागराज में नदी के हालात कुछ बेहतर हैं। यहां पानी निर्धारित मानक के मुताबिक C कैटेगरी में है। यानी इस पानी को इस्तेमाल तो किया जा सकता है लेकिन ट्रीटमेंट और डिसइंफेक्ट करने के बाद। लखनऊ में गोमती नदी के पानी में बैक्टीरिया का मानक 100 की जगह 79 हजार
मोहन मीकिन और पिपराघाट ये लखनऊ में उन दो जगहों के नाम हैं, जो शहर में गोमती नदी के हाल का रिपोर्ट कार्ड पेश करता है। इन दो जगहों से कलेक्ट सैंपल के जांच से पता चलता है, लखनऊ में गोमती नदी E कैटेगरी में है। यानी इंसान तो क्या जानवरों तक के लिए यह पानी जहर जैसा है। पिपराघाट में गोमती नदी के सैंपल में बैक्टीरिया का मानक 79 हजार है। जबकि यह एक मिलीलीटर में यह सिर्फ 100 होना चाहिए। प्रोफेसर बीडी त्रिपाठी कहते हैं- अगर पानी में मानक से ऊपर बैक्टीरिया है और वो इंसानों के इस्तेमाल में है, तो यह त्वचा रोग की वजह बन सकता है। लखनऊ में सिर्फ गऊघाट ऐसा है, जहां पानी C कैटेगरी में है। यानी यहां के पानी का इस्तेमाल तो कर सकते हैं, लेकिन बिना ट्रीटमेंट के नहीं। इसमें भी गऊघाट डाउनस्ट्रीम यानी उल्टी धारा में कैटेगरी D है। बाराबंकी, सुल्तानपुर जौनपुर और वाराणसी तक के रास्ते में भी गोमती नदी का हाल लखनऊ जैसा ही है। वाराणसी में गंगा नदी में मिलने से पहले रजवारी तक नदी का पानी D कैटेगरी में है। काली नदी बन चुकी है कैंसर जैसी घातक बीमारी का घर
अगस्त, 2023 में भाजपा के राज्यसभा सांसद विजय पाल सिंह तोमर ने कहा था कि उत्तर प्रदेश में काली नदी समेत हिंडन और यमुना नदी कई गांवों में कैंसर जैसी बीमारी की वजह बन रही है। उनका कहना था कि कोली नदी में जहां-जहां सैंपल लिया गया वहां के पानी में ऑक्सीजन लेवल जीरो पाया गया। यह पीने लायक तो छोड़िए, सिंचाई के लायक भी नहीं है। विजय पाल सिंह तोमर के इस बयान की पुष्टि खुद उत्तर प्रदेश पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की रिपोर्ट ने की है। मेरठ से लेकर कन्नौज, मुजफ्फरनगर और बुलंदशहर में नदियों का यही हाल है। इन जगहों पर काली नदी D और E कैटेगरी में है। यानी ये पानी सिंचाई के काम भी नहीं आ सकता। वरुणा, घाघरा, सरयू, राप्ती नदियों की बात करें तो सैंपल कलेक्शन की जगहों पर पानी D कैटेगरी का है। जहां फीकॉल कोलीफार्म बैक्टीरिया एक मिलीलीटर में 100 बैक्टीरिया होना चाहिए, वहां संख्या हजारों में है। हिंडन नदी का पानी जानवरों के इस्तेमाल लायक भी नहीं
हिंडन नदी से कुल 13 सैंपल लिए गए। इसमें सहारनपुर, बागपत, मेरठ, गाजियाबाद और नोएडा जैसे जिले शामिल हैं। हिंडन नदी के ये सभी सबसे खराब कैटेगरी E में आते हैं। यानी यह पानी जानवरों के लिए इस्तेमाल लायक भी नहीं बचा है। इसमें घुले बैक्टीरिया और केमिकल्स की रिपोर्ट पर प्रोफेसर त्रिपाठी कहते हैं कि यह सीवर की कैटेगरी में आता है। सहारनपुर जिले सहित महेशपुर डाउनस्ट्रीम में हिंडन नदी का यही हाल है। कुछ ऐसा ही हाल मेरठ में बरनावा डाउनस्ट्रीम और अपस्ट्रीम में है। यहां फीकॉन कोलीफार्म बैक्टीरिया एक मिलीलीटर पानी में 1 लाख 30 हजार पाए गए। यानी बरनावा में नदी की धारा जिस तरफ बह रही है, वहां और उसके विपरीत दिशा दोनों ही ओर पानी सबसे दूषित है। हिंडन नदी का कुछ यही हाल दिल्ली से सटे गाजियाबाद में भी है। यहां करहेडा, रोडब्रिज, छिजारसी के पास से लिए गए सैंपल में पानी सबसे खराब हालत में है। गंगा और सहयोगी नदियों को साफ करने के लिए नमामि गंगे परियोजना 2026 तक बढ़ी
बात सबसे पहले नमामि गंगे योजना की। साल 2014 में जून महीने में इसे लॉन्च किया गया। इसमें गंगा और उसकी सहयोगी नदियों को साफ करने के लिए 31 मार्च, 2021 तक का समय तय किया गया। उत्तर प्रदेश में गंगा की सहयोगी नदियों में यमुना, घाघरा, रामगंगा, काली, सोन, गंडक, केन, बेतवा जैसी नदियां शामिल हैं। साल 2023 में इस योजना की तिथि बढ़ाकर 31 मार्च, 2026 कर दिया गया है। इसमें साल 2014 से 2024 तक यानी एक दशक में केंद्र सरकार इसके लिए 16,011 करोड़ रुपए जारी कर चुकी है। इन सब प्रयासों के बावजूद हर महीने पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की रिपोर्ट इसकी गवाह हैं कि स्थिति में कोई सुधार नहीं है। गंगा में प्रदूषण के लिए खुला सीवेज और इंडस्ट्रियल वेस्ट जिम्मेदार
कानपुर का चमड़ा उद्योग गंगा में प्रदूषण के लिए जिम्मेदार बताया जाता है। चमड़ा बनाने वाली फैक्ट्रियों से केमिकल वेस्ट किसी न किसी रास्ते गंगा नदी में पहुंचता है। पिछले कुछ सालों में नमामि गंगे परियोजना के तहत फैक्ट्रियों से निकलने वाले कचरे को ट्रीटमेंट के बाद गंगा में गिराने की कवायदें की गई हैं। वासाणसी में गंगा आस्था का प्रतीक है। इसके बावजूद शहर का सीवेज, आसपास की फैक्ट्रियों का वेस्ट और पूजा-पाठ सामग्री सीधे गंगा में जाता रहा है। 2014 के बाद नमामि गंगे परियोजना के तहत यहां रामनगर, दीनापुर और भगवानपुर में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का भी निर्माण किया गया है। इस साल तक गंगा में बाई तरफ से गिरने वाले 23 नालों में से 22 बंद किए जा चुके हैं। लेकिन शहर जितनी गंदगी पैदा करता है, उसकी तुलना में बचाव परियोजना नाकाफी साबित हो रही है। यहां नमामि गंगे के तहत 12 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं। फिलहाल 5 परियोजनाओं पर काम चल रहा है। उत्तर प्रदेश, जो 31 नदियों का घर है। या यूं कहें कि नदियां प्रदेश की जीवन रेखा हैं। इनके किनारों पर जन्म से मृत्यु तक के संस्कार होते हैं। रीति-रिवाजों से जुड़ी इन नदियों में ज्यादातर की हालत दयनीय है। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की रिपोर्ट बताती है, ये नदियां अब जीवनदायिनी न होकर बीमारियां बांट रही हैं। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने नदियों को स्वच्छता के आधार पर 5 कैटेगरी में बांटा है। इसमें कैटेगरी A, B, C, D और E हैं। किसी नदी का पानी अगर A कैटेगरी में है, तो इसका मतलब है कि बिना किसी तरह के प्यूरिफिकेशन के पिया जा सकता है। अगर B कैटेगरी है, तो सिर्फ नहाया जा सकता है। C में है तो प्यूरिफाई करके पिया जा सकता है। सबसे खराब कैटेगरी D और फिर E है। उत्तर प्रदेश की प्रमुख जीवनदायिनी नदियों का क्या हाल है? क्या पूरे प्रदेश में इन नदियों का पानी इस्तेमाल करने लायक बचा है? नदियों की स्वच्छता के लिए क्या किया जा रहा है? पढ़िए पूरी रिपोर्ट कानपुर में गंगा का पानी न पीने लायक, न नहाने लायक
कानपुर, कन्नौज, मिर्जापुर, सोनभद्र, वाराणसी, गाजीपुर और बलिया…ये वो शहर हैं, जहां गंगा का पानी इस्तेमाल करने लायक नहीं है। न तो पीने के लिहाज से सही है और न ही इससे नहाया जा सकता है। इस साल फरवरी में यूपी पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने इसको लेकर रिपोर्ट दी है। इसमें प्रदेश की कुल 13 नदियों को शामिल किया गया। सबसे ज्यादा 40 नमूने गंगा नदी के हैं। कानपुर में नानामऊ गंगा ब्रिज, भैरव घाट, डी एस शुक्ला गंज, गोला घाट, जाजमऊ ब्रिज, जाना गांव और पुराना राजापुर जैसे स्पॉट हैं। यहां पानी इंसानों के पीने और नहाने लायक नहीं है। इसी तरह वाराणसी में गोमती नदी में मिलने से पहले भुसावल और जमनिया गंगा ब्रिज का पानी न आचमन करने लायक है, न ही नहाने लायक। बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU) के प्रोफेसर डॉ. बीडी त्रिपाठी ने गंगा नदी पर रिसर्च किया है। वह कहते हैं, जिस पानी में मानक से ज्यादा डिजॉल्व ऑक्सीजन और बैक्टीरिया होंगे वो किसी इस्तेमाल के लायक नहीं रहेगा। अगर बैक्टीरिया रहित पानी शरीर में गया, तो बीमारी पैदा करेगा। प्रोफेसर त्रिपाठी सरकार की रिपोर्ट को लेकर कहते हैं- पूरी गंगा ही D या E कैटेगरी में है, ऐसा नहीं है। जिन जगहों से ये सैंपल लिए गए हैं, वहां गंदगी ज्यादा है। मथुरा के शाहपुरा में यमुना का पानी सबसे खराब
यमुना नदी का हाल भी गंगा की तरह बेहाल है। बोर्ड ने प्रदेश में कुल 14 जगहों से नमूने लिए। हाल ये है कि सभी जगहों पर पानी इस्तेमाल लायक नहीं बचा है। नदियों के पानी में फीकॉल कोलीफार्म नाम का बैक्टीरिया पाया जाता है। सामान्य स्थिति में यह एक मिलीलीटर में 100 बैक्टीरिया होना चाहिए। लेकिन इन जगहों पर यह 6 हजार से शुरू होकर 49 हजार तक है। सबसे ज्यादा मथुरा के शाहपुरा में यह 49 हजार है। वहीं, वृंदावन के केसीघाट पर यह 27 हजार है। आगरा, इटावा, मथुरा, हमीरपुर इन सभी जगहों पर यमुना नदी का पानी D कैटेगरी में है। यानी इन सभी शहरों में यमुना का पानी इंसानों के इस्तेमाल लायक नहीं बचा है। हालांकि, प्रयागराज में नदी के हालात कुछ बेहतर हैं। यहां पानी निर्धारित मानक के मुताबिक C कैटेगरी में है। यानी इस पानी को इस्तेमाल तो किया जा सकता है लेकिन ट्रीटमेंट और डिसइंफेक्ट करने के बाद। लखनऊ में गोमती नदी के पानी में बैक्टीरिया का मानक 100 की जगह 79 हजार
मोहन मीकिन और पिपराघाट ये लखनऊ में उन दो जगहों के नाम हैं, जो शहर में गोमती नदी के हाल का रिपोर्ट कार्ड पेश करता है। इन दो जगहों से कलेक्ट सैंपल के जांच से पता चलता है, लखनऊ में गोमती नदी E कैटेगरी में है। यानी इंसान तो क्या जानवरों तक के लिए यह पानी जहर जैसा है। पिपराघाट में गोमती नदी के सैंपल में बैक्टीरिया का मानक 79 हजार है। जबकि यह एक मिलीलीटर में यह सिर्फ 100 होना चाहिए। प्रोफेसर बीडी त्रिपाठी कहते हैं- अगर पानी में मानक से ऊपर बैक्टीरिया है और वो इंसानों के इस्तेमाल में है, तो यह त्वचा रोग की वजह बन सकता है। लखनऊ में सिर्फ गऊघाट ऐसा है, जहां पानी C कैटेगरी में है। यानी यहां के पानी का इस्तेमाल तो कर सकते हैं, लेकिन बिना ट्रीटमेंट के नहीं। इसमें भी गऊघाट डाउनस्ट्रीम यानी उल्टी धारा में कैटेगरी D है। बाराबंकी, सुल्तानपुर जौनपुर और वाराणसी तक के रास्ते में भी गोमती नदी का हाल लखनऊ जैसा ही है। वाराणसी में गंगा नदी में मिलने से पहले रजवारी तक नदी का पानी D कैटेगरी में है। काली नदी बन चुकी है कैंसर जैसी घातक बीमारी का घर
अगस्त, 2023 में भाजपा के राज्यसभा सांसद विजय पाल सिंह तोमर ने कहा था कि उत्तर प्रदेश में काली नदी समेत हिंडन और यमुना नदी कई गांवों में कैंसर जैसी बीमारी की वजह बन रही है। उनका कहना था कि कोली नदी में जहां-जहां सैंपल लिया गया वहां के पानी में ऑक्सीजन लेवल जीरो पाया गया। यह पीने लायक तो छोड़िए, सिंचाई के लायक भी नहीं है। विजय पाल सिंह तोमर के इस बयान की पुष्टि खुद उत्तर प्रदेश पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की रिपोर्ट ने की है। मेरठ से लेकर कन्नौज, मुजफ्फरनगर और बुलंदशहर में नदियों का यही हाल है। इन जगहों पर काली नदी D और E कैटेगरी में है। यानी ये पानी सिंचाई के काम भी नहीं आ सकता। वरुणा, घाघरा, सरयू, राप्ती नदियों की बात करें तो सैंपल कलेक्शन की जगहों पर पानी D कैटेगरी का है। जहां फीकॉल कोलीफार्म बैक्टीरिया एक मिलीलीटर में 100 बैक्टीरिया होना चाहिए, वहां संख्या हजारों में है। हिंडन नदी का पानी जानवरों के इस्तेमाल लायक भी नहीं
हिंडन नदी से कुल 13 सैंपल लिए गए। इसमें सहारनपुर, बागपत, मेरठ, गाजियाबाद और नोएडा जैसे जिले शामिल हैं। हिंडन नदी के ये सभी सबसे खराब कैटेगरी E में आते हैं। यानी यह पानी जानवरों के लिए इस्तेमाल लायक भी नहीं बचा है। इसमें घुले बैक्टीरिया और केमिकल्स की रिपोर्ट पर प्रोफेसर त्रिपाठी कहते हैं कि यह सीवर की कैटेगरी में आता है। सहारनपुर जिले सहित महेशपुर डाउनस्ट्रीम में हिंडन नदी का यही हाल है। कुछ ऐसा ही हाल मेरठ में बरनावा डाउनस्ट्रीम और अपस्ट्रीम में है। यहां फीकॉन कोलीफार्म बैक्टीरिया एक मिलीलीटर पानी में 1 लाख 30 हजार पाए गए। यानी बरनावा में नदी की धारा जिस तरफ बह रही है, वहां और उसके विपरीत दिशा दोनों ही ओर पानी सबसे दूषित है। हिंडन नदी का कुछ यही हाल दिल्ली से सटे गाजियाबाद में भी है। यहां करहेडा, रोडब्रिज, छिजारसी के पास से लिए गए सैंपल में पानी सबसे खराब हालत में है। गंगा और सहयोगी नदियों को साफ करने के लिए नमामि गंगे परियोजना 2026 तक बढ़ी
बात सबसे पहले नमामि गंगे योजना की। साल 2014 में जून महीने में इसे लॉन्च किया गया। इसमें गंगा और उसकी सहयोगी नदियों को साफ करने के लिए 31 मार्च, 2021 तक का समय तय किया गया। उत्तर प्रदेश में गंगा की सहयोगी नदियों में यमुना, घाघरा, रामगंगा, काली, सोन, गंडक, केन, बेतवा जैसी नदियां शामिल हैं। साल 2023 में इस योजना की तिथि बढ़ाकर 31 मार्च, 2026 कर दिया गया है। इसमें साल 2014 से 2024 तक यानी एक दशक में केंद्र सरकार इसके लिए 16,011 करोड़ रुपए जारी कर चुकी है। इन सब प्रयासों के बावजूद हर महीने पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की रिपोर्ट इसकी गवाह हैं कि स्थिति में कोई सुधार नहीं है। गंगा में प्रदूषण के लिए खुला सीवेज और इंडस्ट्रियल वेस्ट जिम्मेदार
कानपुर का चमड़ा उद्योग गंगा में प्रदूषण के लिए जिम्मेदार बताया जाता है। चमड़ा बनाने वाली फैक्ट्रियों से केमिकल वेस्ट किसी न किसी रास्ते गंगा नदी में पहुंचता है। पिछले कुछ सालों में नमामि गंगे परियोजना के तहत फैक्ट्रियों से निकलने वाले कचरे को ट्रीटमेंट के बाद गंगा में गिराने की कवायदें की गई हैं। वासाणसी में गंगा आस्था का प्रतीक है। इसके बावजूद शहर का सीवेज, आसपास की फैक्ट्रियों का वेस्ट और पूजा-पाठ सामग्री सीधे गंगा में जाता रहा है। 2014 के बाद नमामि गंगे परियोजना के तहत यहां रामनगर, दीनापुर और भगवानपुर में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का भी निर्माण किया गया है। इस साल तक गंगा में बाई तरफ से गिरने वाले 23 नालों में से 22 बंद किए जा चुके हैं। लेकिन शहर जितनी गंदगी पैदा करता है, उसकी तुलना में बचाव परियोजना नाकाफी साबित हो रही है। यहां नमामि गंगे के तहत 12 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं। फिलहाल 5 परियोजनाओं पर काम चल रहा है। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर