यूपी में उपचुनाव वाली 10 सीटों पर कांग्रेस रैली और कार्यकर्ता सम्मेलन कराने जा रही है। तारीख तय करके प्रभारी और पर्यवेक्षक भी नियुक्त कर दिए हैं। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने हर सीट पर 5 से 10 हजार कार्यकर्ताओं को जुटाने का लक्ष्य रखा है। कांग्रेस के इस रुख से चर्चा तेज हो गई है कि यूपी उपचुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन होगा या नहीं? संभावनाएं क्या बन रही हैं? आखिर पेंच कहां फंसा है? पहले जानते हैं दोनों पार्टी के नेताओं ने यूपी में सीट बंटवारे पर अब तक क्या कुछ कहा… अखिलेश यादव, सपा सुप्रीमो: सपा के लिए सीट नहीं, जीत मायने रखती है। पार्टी की जीत हो और गठबंधन की जीत हो, इसके लिए त्याग करने को भी तैयार हैं। अजय राय, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष: यूपी उपचुनाव में कांग्रेस को पांच सीटें चाहिएं। अपनी बात आलाकमान के सामने रखी है। कांग्रेस नेतृत्व जो तय करेगा, वह हम सभी के लिए मान्य होगा। दोनों दलों में अब तक औपचारिक बैठक नहीं हुई है। पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स का मानना है कि दोनों दल एक-दूसरे पर दबाव की राजनीति कर रहे हैं। भले ही राहुल और अखिलेश के बीच बॉन्डिंग अच्छी है, लेकिन लोकल लेवल पर कांग्रेस ‘एकला चलो’ की राह पर है। खुद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय 5 सीटें मांग रहे हैं। ये सीटें फूलपुर, मझवां, गाजियाबाद, खैर और मीरापुर हैं, जो सपा 2022 में नहीं जीत पाई थी। इतना ही नहीं, बीते दिनों उन्होंने उपचुनाव वाली 10 सीटों पर प्रभारी और पर्यवेक्षक नियुक्त करके कार्यकर्ता सम्मेलन और रैली की घोषणा कर दी। हालांकि, समाजवादी पार्टी के लोग कांग्रेस के इस तर्क को जमीनी हकीकत से परे बताते हैं। सपा नेताओं का कहना है कि अगर यह फार्मूला कांग्रेस का है तो फिर 2027 में कांग्रेस 293 सीटों पर लड़ने का दावा कर सकती है। क्योंकि, सपा 2022 में 293 सीट पर चुनाव हार गई थी। सपा को यह भी डर है कि अगर आज कांग्रेस की मांग मान ली जाएगी, तो 2027 में वह आधी सीटों पर दावेदारी करने लगेगी। मीरापुर सीट को लेकर क्या रुख?
कांग्रेस और सपा के बीच मीरापुर सीट को लेकर पेंच फंसा है। कांग्रेस इस सीट पर अपनी दावेदारी कर रही, सपा यहां से किसी मुस्लिम कैंडिडेट को लड़ाने के पक्ष में है। सपा ने 2022 में यह सीट RLD के साथ गठबंधन कर जीती थी। इसलिए भी यह सीट चाहती है। सपा उसे गाजियाबाद और खैर सीट देना चाहती है। कांग्रेस का मानना है, ये दोनों सीटें लंबे समय से भाजपा के पास हैं। यहां उसे उपचुनाव में हरा पाना आसान नहीं होगा। ऐसे में कम से कम एक सीट ऐसी हो, जहां वह मजबूती से चुनाव लड़ सके और 2027 में होने वाले चुनाव के लिए एक संदेश दे सके। वहीं, सपा नेताओं का मानना है कि अखिलेश यादव की तैयारी 2027 के चुनाव को लेकर है। संभव है, उपचुनाव में वह कांग्रेस को 2 से अधिक सीटें दे भी दें। इसके बाद कांग्रेस उपचुनाव में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाती है, तो 2027 में सपा के पास यह कहने का मौका रहेगा कि वह उतनी ही सीट कांग्रेस को देगी, जिस पर वह जीत हासिल कर सके या लड़ाई में दिखाई दे। सीट बंटवारे को लेकर तीन संभावनाएं क्या हैं? 1- सपा 8 और कांग्रेस 2 पर लड़े: उपचुनाव वाली 10 सीटों में से 8 पर सपा लड़े और कांग्रेस 2 पर। सपा भी यही चाहती है। अगर सपा मीरापुर और फूलपुर सीट कांग्रेस को दे, तो बात बन सकती है। इसकी संभावना ज्यादा है। 2- सपा कांग्रेस को 3 सीट दे: कांग्रेस 5 सीट चाहती है। सपा किसी हाल में कांग्रेस को 5 सीट नहीं देगी। सपा लचीला रुख दिखाते हुए 3 सीट कांग्रेस को दे सकती है। कांग्रेस अगर इन सीटों पर ज्यादा कुछ नहीं कर पाती है, तो 2027 में ज्यादा सीटों पर नहीं अड़ेगी। इसकी संभावना 50-50 है। 3- अलग-अलग लड़ें: कांग्रेस अपने रुख पर अड़ी रही तो दोनों पार्टियां चुनाव में अलग-अलग जा सकती हैं। हालांकि इसकी संभावना बहुत कम है। समाजवादी पार्टी के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है, कांग्रेस के साथ यूपी में उसका गठबंधन कायम रहेगा। गठबंधन को लेकर सपा के लोग न सिर्फ उपचुनाव, 2027 के चुनाव को लेकर भी आश्वस्त हैं। अखिलेश यूपी में गठबंधन चाहते हैं तो जम्मू-कश्मीर में क्यों तोड़ा?
इस पर सपा को नजदीक से जानने वाले और पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स का कहना है- हरियाणा में अगर समाजवादी पार्टी प्रत्याशी उतारती तो गठबंधन के वोटों का बंटवारा होता, जबकि कश्मीर में ऐसा नहीं होगा। सपा कश्मीर में पहली बार चुनाव लड़ रही है। भाजपा जो दूसरे राज्यों में करती रही है कि दूसरी पार्टियों को खड़ा कराकर सेक्युलर वोट बांटना चाहती है, वही काम अखिलेश यादव जम्मू-कश्मीर में करने जा रहे हैं। ताकि हिंदू वोट बंटे। सपा को राष्ट्रीय पार्टी बनने का आधार चाहिए। उस लिहाज से कश्मीर इनके लिए मुफीद है। वरिष्ठ पत्रकार और समाजवादी पार्टी को करीब से कवर करने वाले राजेंद्र कुमार का कहना है- सपा को हरियाणा के मुकाबले कश्मीर में ज्यादा वोट मिल सकते हैं। जहां सपा के कैंडिडेट से गठबंधन को नुकसान हो सकता है, वहां वह प्रत्याशी नहीं उतार रहे। अखिलेश ने अपना स्टैंड क्लियर कर रखा है। लोकसभा चुनाव से पहले और बाद में कांग्रेस का रुख भी अपने गठबंधन साथियों को लेकर लचीला ही रहा है। यह बात अलग है कि हरियाणा में आम आदमी पार्टी के साथ उसकी बात नहीं बन सकी और दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ रही हैं। यूपी में सीट बंटवारे के लिए राहुल गांधी और अखिलेश यादव के बीच एक मुलाकात में फैसला हो जाएगा कि उपचुनाव में समीकरण क्या रहने वाले हैं? सपा और कांग्रेस के बीच बदलते रहे हैं समीकरण
पहले भी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच समीकरण समय-समय पर बदलते रहे हैं। कांग्रेस 1989 से यूपी की सत्ता में नहीं है। सपा केंद्र में कांग्रेस का और कांग्रेस राज्य में साथ देती रही है। लेकिन, दोनों मिलकर 2017 से पहले कभी चुनाव नहीं लड़े। न ही एक-दूसरे की सरकार में कभी शामिल रहे। मुलायम सिंह यादव हमेशा तीसरे मोर्चे के समर्थक रहे थे। तीसरे मोर्चे की सरकार में ही वह देश के रक्षा मंत्री भी बने थे। 2017 में अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ समझौता किया था। इसके बावजूद कई सीटों पर कांग्रेस और सपा दोनों के प्रत्याशी मैदान में आ गए थे। कांग्रेस 114 सीटों पर चुनाव लड़ी और 7 सीटों पर जीत हासिल की थी। समाजवादी पार्टी ने 311 सीटों पर चुनाव लड़ा और 47 सीटों पर जीत हासिल की। यानी समझौते के बावजूद कम से कम 22 सीटें ऐसी थीं, जहां सपा और कांग्रेस के प्रत्याशी आमने सामने थे। चुनाव हारने के बाद सपा-कांग्रेस का गठबंधन टूट गया। लंबे समय तक दोनों एक-दूसरे पर वार करते रहे। 2019 के चुनाव में सपा और बसपा का गठबंधन हुआ। यह गठबंधन भी फेल हो गया। 2022 के चुनाव में सपा ने छोटे दलों के साथ समझौता किया। इसमें आरएलडी, सुभासपा और अपनादल कमेरावादी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। इस गठबंधन ने प्रदेश में 125 सीटें हासिल कीं। हालांकि चुनाव के बाद आरएलडी और सुभासपा दोनों भाजपा के साथ हो गए। 2024 में सपा इंडी गठबंधन का हिस्सा बनी और यूपी में कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ी। उसे अप्रत्याशित सफलता भी हाथ लगी। 80 में से 43 सीटों पर सपा और कांग्रेस गठबंधन ने जीत हासिल की। ये भी पढ़ें… योगी बोले-सारे माफिया अखिलेश के चचाजान:सपा के दरिंदे कुत्ते की पूंछ जैसे; सपाई लूटते थे, बबुआ 12 बजे तक सोता था सीएम योगी ने अयोध्या के मिल्कीपुर में जनसभा को संबोधित किया। अखिलेश यादव का नाम लिए बिना कहा- सपा सरकार में माफिया की पैरलर सरकार चलती थी। बबुआ अपने घर के बाहर नहीं निकलता था। दोपहर 12 बजे सोकर उठता था। सारे माफिया इनके चचा जान जैसे हैं। इनके अंदर औरंगजेब की आत्मा घुस गई है। योगी ने कहा- जैसे कुत्ते की पूंछ सीधे नहीं हो सकती, वैसे ही बेटियों की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करने वाले सपा के दरिंदे ठीक नहीं हो सकते हैं। पढ़ें पूरी खबर यूपी में उपचुनाव वाली 10 सीटों पर कांग्रेस रैली और कार्यकर्ता सम्मेलन कराने जा रही है। तारीख तय करके प्रभारी और पर्यवेक्षक भी नियुक्त कर दिए हैं। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने हर सीट पर 5 से 10 हजार कार्यकर्ताओं को जुटाने का लक्ष्य रखा है। कांग्रेस के इस रुख से चर्चा तेज हो गई है कि यूपी उपचुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन होगा या नहीं? संभावनाएं क्या बन रही हैं? आखिर पेंच कहां फंसा है? पहले जानते हैं दोनों पार्टी के नेताओं ने यूपी में सीट बंटवारे पर अब तक क्या कुछ कहा… अखिलेश यादव, सपा सुप्रीमो: सपा के लिए सीट नहीं, जीत मायने रखती है। पार्टी की जीत हो और गठबंधन की जीत हो, इसके लिए त्याग करने को भी तैयार हैं। अजय राय, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष: यूपी उपचुनाव में कांग्रेस को पांच सीटें चाहिएं। अपनी बात आलाकमान के सामने रखी है। कांग्रेस नेतृत्व जो तय करेगा, वह हम सभी के लिए मान्य होगा। दोनों दलों में अब तक औपचारिक बैठक नहीं हुई है। पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स का मानना है कि दोनों दल एक-दूसरे पर दबाव की राजनीति कर रहे हैं। भले ही राहुल और अखिलेश के बीच बॉन्डिंग अच्छी है, लेकिन लोकल लेवल पर कांग्रेस ‘एकला चलो’ की राह पर है। खुद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय 5 सीटें मांग रहे हैं। ये सीटें फूलपुर, मझवां, गाजियाबाद, खैर और मीरापुर हैं, जो सपा 2022 में नहीं जीत पाई थी। इतना ही नहीं, बीते दिनों उन्होंने उपचुनाव वाली 10 सीटों पर प्रभारी और पर्यवेक्षक नियुक्त करके कार्यकर्ता सम्मेलन और रैली की घोषणा कर दी। हालांकि, समाजवादी पार्टी के लोग कांग्रेस के इस तर्क को जमीनी हकीकत से परे बताते हैं। सपा नेताओं का कहना है कि अगर यह फार्मूला कांग्रेस का है तो फिर 2027 में कांग्रेस 293 सीटों पर लड़ने का दावा कर सकती है। क्योंकि, सपा 2022 में 293 सीट पर चुनाव हार गई थी। सपा को यह भी डर है कि अगर आज कांग्रेस की मांग मान ली जाएगी, तो 2027 में वह आधी सीटों पर दावेदारी करने लगेगी। मीरापुर सीट को लेकर क्या रुख?
कांग्रेस और सपा के बीच मीरापुर सीट को लेकर पेंच फंसा है। कांग्रेस इस सीट पर अपनी दावेदारी कर रही, सपा यहां से किसी मुस्लिम कैंडिडेट को लड़ाने के पक्ष में है। सपा ने 2022 में यह सीट RLD के साथ गठबंधन कर जीती थी। इसलिए भी यह सीट चाहती है। सपा उसे गाजियाबाद और खैर सीट देना चाहती है। कांग्रेस का मानना है, ये दोनों सीटें लंबे समय से भाजपा के पास हैं। यहां उसे उपचुनाव में हरा पाना आसान नहीं होगा। ऐसे में कम से कम एक सीट ऐसी हो, जहां वह मजबूती से चुनाव लड़ सके और 2027 में होने वाले चुनाव के लिए एक संदेश दे सके। वहीं, सपा नेताओं का मानना है कि अखिलेश यादव की तैयारी 2027 के चुनाव को लेकर है। संभव है, उपचुनाव में वह कांग्रेस को 2 से अधिक सीटें दे भी दें। इसके बाद कांग्रेस उपचुनाव में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाती है, तो 2027 में सपा के पास यह कहने का मौका रहेगा कि वह उतनी ही सीट कांग्रेस को देगी, जिस पर वह जीत हासिल कर सके या लड़ाई में दिखाई दे। सीट बंटवारे को लेकर तीन संभावनाएं क्या हैं? 1- सपा 8 और कांग्रेस 2 पर लड़े: उपचुनाव वाली 10 सीटों में से 8 पर सपा लड़े और कांग्रेस 2 पर। सपा भी यही चाहती है। अगर सपा मीरापुर और फूलपुर सीट कांग्रेस को दे, तो बात बन सकती है। इसकी संभावना ज्यादा है। 2- सपा कांग्रेस को 3 सीट दे: कांग्रेस 5 सीट चाहती है। सपा किसी हाल में कांग्रेस को 5 सीट नहीं देगी। सपा लचीला रुख दिखाते हुए 3 सीट कांग्रेस को दे सकती है। कांग्रेस अगर इन सीटों पर ज्यादा कुछ नहीं कर पाती है, तो 2027 में ज्यादा सीटों पर नहीं अड़ेगी। इसकी संभावना 50-50 है। 3- अलग-अलग लड़ें: कांग्रेस अपने रुख पर अड़ी रही तो दोनों पार्टियां चुनाव में अलग-अलग जा सकती हैं। हालांकि इसकी संभावना बहुत कम है। समाजवादी पार्टी के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है, कांग्रेस के साथ यूपी में उसका गठबंधन कायम रहेगा। गठबंधन को लेकर सपा के लोग न सिर्फ उपचुनाव, 2027 के चुनाव को लेकर भी आश्वस्त हैं। अखिलेश यूपी में गठबंधन चाहते हैं तो जम्मू-कश्मीर में क्यों तोड़ा?
इस पर सपा को नजदीक से जानने वाले और पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स का कहना है- हरियाणा में अगर समाजवादी पार्टी प्रत्याशी उतारती तो गठबंधन के वोटों का बंटवारा होता, जबकि कश्मीर में ऐसा नहीं होगा। सपा कश्मीर में पहली बार चुनाव लड़ रही है। भाजपा जो दूसरे राज्यों में करती रही है कि दूसरी पार्टियों को खड़ा कराकर सेक्युलर वोट बांटना चाहती है, वही काम अखिलेश यादव जम्मू-कश्मीर में करने जा रहे हैं। ताकि हिंदू वोट बंटे। सपा को राष्ट्रीय पार्टी बनने का आधार चाहिए। उस लिहाज से कश्मीर इनके लिए मुफीद है। वरिष्ठ पत्रकार और समाजवादी पार्टी को करीब से कवर करने वाले राजेंद्र कुमार का कहना है- सपा को हरियाणा के मुकाबले कश्मीर में ज्यादा वोट मिल सकते हैं। जहां सपा के कैंडिडेट से गठबंधन को नुकसान हो सकता है, वहां वह प्रत्याशी नहीं उतार रहे। अखिलेश ने अपना स्टैंड क्लियर कर रखा है। लोकसभा चुनाव से पहले और बाद में कांग्रेस का रुख भी अपने गठबंधन साथियों को लेकर लचीला ही रहा है। यह बात अलग है कि हरियाणा में आम आदमी पार्टी के साथ उसकी बात नहीं बन सकी और दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ रही हैं। यूपी में सीट बंटवारे के लिए राहुल गांधी और अखिलेश यादव के बीच एक मुलाकात में फैसला हो जाएगा कि उपचुनाव में समीकरण क्या रहने वाले हैं? सपा और कांग्रेस के बीच बदलते रहे हैं समीकरण
पहले भी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच समीकरण समय-समय पर बदलते रहे हैं। कांग्रेस 1989 से यूपी की सत्ता में नहीं है। सपा केंद्र में कांग्रेस का और कांग्रेस राज्य में साथ देती रही है। लेकिन, दोनों मिलकर 2017 से पहले कभी चुनाव नहीं लड़े। न ही एक-दूसरे की सरकार में कभी शामिल रहे। मुलायम सिंह यादव हमेशा तीसरे मोर्चे के समर्थक रहे थे। तीसरे मोर्चे की सरकार में ही वह देश के रक्षा मंत्री भी बने थे। 2017 में अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ समझौता किया था। इसके बावजूद कई सीटों पर कांग्रेस और सपा दोनों के प्रत्याशी मैदान में आ गए थे। कांग्रेस 114 सीटों पर चुनाव लड़ी और 7 सीटों पर जीत हासिल की थी। समाजवादी पार्टी ने 311 सीटों पर चुनाव लड़ा और 47 सीटों पर जीत हासिल की। यानी समझौते के बावजूद कम से कम 22 सीटें ऐसी थीं, जहां सपा और कांग्रेस के प्रत्याशी आमने सामने थे। चुनाव हारने के बाद सपा-कांग्रेस का गठबंधन टूट गया। लंबे समय तक दोनों एक-दूसरे पर वार करते रहे। 2019 के चुनाव में सपा और बसपा का गठबंधन हुआ। यह गठबंधन भी फेल हो गया। 2022 के चुनाव में सपा ने छोटे दलों के साथ समझौता किया। इसमें आरएलडी, सुभासपा और अपनादल कमेरावादी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। इस गठबंधन ने प्रदेश में 125 सीटें हासिल कीं। हालांकि चुनाव के बाद आरएलडी और सुभासपा दोनों भाजपा के साथ हो गए। 2024 में सपा इंडी गठबंधन का हिस्सा बनी और यूपी में कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ी। उसे अप्रत्याशित सफलता भी हाथ लगी। 80 में से 43 सीटों पर सपा और कांग्रेस गठबंधन ने जीत हासिल की। ये भी पढ़ें… योगी बोले-सारे माफिया अखिलेश के चचाजान:सपा के दरिंदे कुत्ते की पूंछ जैसे; सपाई लूटते थे, बबुआ 12 बजे तक सोता था सीएम योगी ने अयोध्या के मिल्कीपुर में जनसभा को संबोधित किया। अखिलेश यादव का नाम लिए बिना कहा- सपा सरकार में माफिया की पैरलर सरकार चलती थी। बबुआ अपने घर के बाहर नहीं निकलता था। दोपहर 12 बजे सोकर उठता था। सारे माफिया इनके चचा जान जैसे हैं। इनके अंदर औरंगजेब की आत्मा घुस गई है। योगी ने कहा- जैसे कुत्ते की पूंछ सीधे नहीं हो सकती, वैसे ही बेटियों की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करने वाले सपा के दरिंदे ठीक नहीं हो सकते हैं। पढ़ें पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर